गहन कृषि क्या होती है ? गहन कृषि की विशेषताएं ,के बारे मे इस लेख मे हम बात करेंगे।कृषि एक ऐसी चीज है जो फसलों के उत्पादन और जानवरों के पालन का कारण बना है। जिसकी वजह से अनेक मानव सभ्यताएं अस्ति्व के अंदर आई थी।खाद्य का उत्पादन कृषि से ही संभव हो पा रहा है। कृषि से संबंधित चीजों के अध्ययन को कृषि विज्ञान के नाम से जाना जाता है। कृषि के अंदर कई चीजों को शामिल किया जाता है । जैसे भूमी के अंदर पानी के चैनल खोदना और सिंचाई की अलग अलग विधियों का प्रयोग करना ,चारागाह पर पशुओं को चराना और आधुनिक तकनीकों की मदद से कृषि उत्पादन मे तेजी से बढ़ोतरी हुई है। प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर भोजन, रेशा, ईंधन, कच्चा माल, फार्मास्यूटिकल्स और उद्दीपकों में समूहित किया जा सकता है।
खेती की मदद से खाद्य के अंदर अनाज ,फल ,सब्जी और मांस का उत्पादन किया जाता है ।वहीं रेशे के अंदर कपास ,रेशम ,उन आता है। उद्दीपकों के अंदर तंबाखू ,शराब और कोकिन आता है।2007 में, दुनिया के लगभग एक तिहाई श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे।लेकिन औधोगिकरण की वजह से श्रमिकों की कृषि पर निर्भरता कम हुई है। लेकिन उसके बाद भी पुरी दुनिया की एक तिहाई आबादी को कृषि से ही रोजगार प्राप्त होता है।
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Table of Contents
गहन कृषि क्या होती है
गहन कृषि वैसे स्थानों पर की जाती है जहां पर छोटे छोटे खेत होते हैं और अधिक जनसंख्या के भरणपोषण के लिए अधिक उत्पादन पर बल दिया जाता है।पश्चिमी यूरोप , दक्षिणी — पूर्वी एशिया — चीन , भारत , जापान , कोरिया , इण्डोचीन , सुमात्रा तथा जावा जैसे क्षेत्रों के अंदर गहन कृषि की जाती है।
इन भागों के अंदर जनसंख्या धनत्व अधिक होता है।गहन खेती के अंदर चावल की खेती आती है जिसको साल के अंदर दो या 3 बार लिया जाता है।
गहन खेती या गहन कृषि की विशेषताएं
अब तक हमने गहन कृषि क्या होती है ? के बारे मे विस्तार से जाना अब आइए जानते हैं कि गहन कृषि की क्या क्या विशेषताएं होती हैं ?
गहन कृषि एक छोटे भू भाग पर की जाती है
आपको बतादें कि गहन कृषि है वह एक छोटे भू भाग पर की जाती है। एक छोटा खेत गहन खेती करने के लिए उपयुक्त होता है। बड़े जनसंख्या घनत्व होने की वजह से अधिक जमीन उपलब्ध नहीं हो पाती है।
इसमे खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर अधिक जोर दिया जाता है
गहन खेती का प्रमुख उदेश्य अधिक जनसंख्या के लिए खाने पीने की चीजों की आपूर्ति होता है। इस लिए गहन खेती अधिक उत्पादन पर जोर देती है। और इसके लिए नई नई तकनीक का भी प्रयोग किया जाता है। आजकल उत्पादन की आपूर्ति गहन खेती की वजह से ही हो रही है।
प्रतिवर्ष कई फसले लगाना
गहन खेती की एक और विशेषता यह होती है कि इसके अंदर प्रति वर्ष कई फसलों को लगाया जाता है। जिसकी वजह से उत्पादन तो बढ़ता ही है और इससे किसानों की आय के अंदर भी बढ़ोतरी होती है।जैसे चावल की फसल को साल के अंदर 2 से 3 बार लिया जाता है।जिससे बड़ी मात्रा के अंदर मार्केट मे चावल पहुंचता है।
श्रम और खाद का उचित प्रयोग
गहन खेती के अधिक श्रम का प्रयोग किया जाता है ताकि काम को जल्दी से जल्दी पूरा किया जा सके और भूमी को दूसरी फसल के लिए तैयार किया जा सके । इतना ही नहीं उत्पादन को बढ़ाने के लिए अधिक कीटनाशकों और उर्वरक का प्रयोग किया जाता है ।
अधिक मशीनों का प्रयोग
विकसित देशों के अंदर अधिक गहन कृषि फार्म हैं। इनके अंदर सारे कार्य मशीनों की मदद से किये जाते हैं। किसानों को अधिक परेशान होने की आवश्यकता नहीं होती है। सुपरमार्केट में उपलब्ध अधिकांश मांस , डेयरी उत्पाद , अंडे , फल और सब्जियां ऐसे खेतों द्वारा उत्पादित की जाती हैं।
गहन पशु खेती मे बड़ी संख्या मे जानवर पाले जाते हैं
गहन पशु खेती के अंदर बड़ी संख्या के अंदर जानवर पाले जाते हैं और घूर्णी चराई की मदद से बड़ी संख्या मे प्रति एकड़ भोजन की पैदावार को बढ़ाते हैं।और इसकी मदद से जानवरों के लिए बार बार हरा चारा खिलाया जाता है।
गहन खेती का इतिहास
प्राचीन काल के अंदर कोरिया मे चावल की खेती का प्रचलन था।डेचियन-नी पुरातात्विक स्थल पर एक गड्ढे वाले घर में कार्बोनेटेड चावल के दाने और रेडियोकार्बन खजूर की पैदावार है जो दर्शाता है कि कोरियाई प्रायद्वीप में मध्य जूलमुन पॉटरी अवधि (सी। 3500-22000 ईसा पूर्व) चावल की खेती शुरू हो चुकी थी।
16 वीं व 19 वीं शताब्दी मे ब्रेटेन मे कृषि उत्पादन मे भारी बढ़ोतरी को देखा गया था।औद्योगिक कृषि का उदय औद्योगिक क्रांति में हुआ। 19 वीं शताब्दी की शुरुआत तक, कृषि तकनीक, औजार, बीज भंडार और कल्टीवियर्स में इतना सुधार हुआ कि प्रति यूनिट यूनिट की उपज कई बार मध्य युग में देखी गई ।
औधोगिकरण की प्रक्रिया तेज हो जाने के बाद फसल कटाई की मशीन बनने लगी । इसी प्रकार से प्रसंस्करण की लागत को कम करने के लिए मशीनरी बनने लगी । इसी प्रकार भाप से चलने वाले थ्रेसरों और ट्रेक्टरों का आविष्कार किया गया ।
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पौधे के विकास मे नाइट्रोजन , फास्फोरस और पोटेशियम के योगदान का पता चला जिससे कृत्रिम उर्वरक के निर्माण का रास्ता साफ हो गया ।सन 1909 ई के अंदर औद्योगिक कृषि की वजह से भूमी के प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की गई थी।समग्र मिट्टी की उर्वरता में गिरावट के साथ-साथ विषाक्त रसायनों के बारे में स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने के बारे मे विचार किया गया ।20 वीं शताब्दी मे विटामिन की खोज की गई थी और उसके बाद यह पता चला कि पोषण के अंदर विटामिन बहुत ही उपयोगी है। उसके बाद पशुओं को और अधिक घर मे रखा जाने लगा ।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सिंथेटिक उर्वरक का उपयोग तेजी से बढ़ा गया ।एंटीबायोटिक्स के प्रयोग से बीमारियों को रोकने मे मदद मिली ।
घूर्णी चराई
घूर्णी चराई एक प्रकार की चराई होती है। जिसमे ताजा चारा प्राप्त किया जाता है। और चारे की मात्रा और गुणवकता को नियंत्रित किया जाता है।मवेशियों, भेड़, बकरियों, सूअरों, मुर्गियों, टर्की, बतख आदि को इसमे चराया जा सकता है।
घूर्णी चराई की सबसे बड़ी खास बात यह है कि एक तरफ जानवर चरते हैं तो दूसरी तरफ घास को बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब उचित रूप से घास बढ़ जाती है और तने अच्छी तरह से पनप जाते हैं तो जानवरों को इस हिस्से के अंदर चराया जाता है।घूर्णी चराई जानवरों को अच्छी और पोष्टिक घास को प्राप्त करने मे मदद करती है।
गहन पशुधन खेती
गहन पशुधन खेती के अंदर बड़ी संख्या मे पशुओं को पाला जाता है। जिसमे कम क्षेत्र का प्रयोग करके अधिक उत्पादन पर ध्यान दिया जाता है।गहन पशुधन खेती की मदद से दुनिया भर मे पशुपालन से भोजन के उत्पादन मे तेजी से बढ़ोतरी हुई है।
भोजन और पानी जानवरों को दिया जाता है, और रोगाणुरोधी एजेंटों, विटामिन की खुराक, और विकास हार्मोन के चिकित्सीय उपयोग को अक्सर नियोजित किया जाता है।ग्रोथ हार्मोन भी मुर्गी वैगरह को दिया जाता है ताकि उनकी ग्रोथ अच्छे तरीके से हो सके । इसके अलावा जानवरों को आपस मे लड़ने से बचाने के लिए पिंजरे का प्रयोग किया जाता है।
बीज का विकास
1970 ई के अंदर वैज्ञानिकों ने गेहूं और चावल की अधिक उत्पादन देने वाली किस्मे बनाई ।इन किस्मों के अंदर नाइट्रोजन के अवशोषण की क्षमता बहुत अधिक थी।गेहूं की भी कई किस्मों का विकास किया गया जैसे जापानी गेहूं ,नोरिन 10 गेहूं आदि ।किसान अब अधिक उपज देने वाली किस्मों का प्रयोग करने लगे ।और सिंचाई व कीटनाशकों के प्रयोग से पैदावार के अंदर सुधार देखने को मिला ।इसकी वजह से किसानों के मुनाफे मे भी सुधार हुआ ।
फसल का चक्रिकरण
क्रॉप रोटेशन या क्रॉप सीक्वेंसिंग, रोगज़नक़ और कीट बिल्डअप जैसी चीजों से बचने के लिए फसलों का चक्रीकरण करना बेहद ही जरूरी होता है। आपको बतादें कि जब हम जमीन के अंदर बार बार एक ही पौधें को बोते हैं तो उससे संबंधित पोषक तत्वों की जमीन मे कमी हो जाती है।
ऐसी स्थिति मे पौधे की गुणवकता भी प्रभावित होती है।फसल चक्रीकरण के अंदर हम भूमी पर एक ही फसल को बार बार नहीं बोते हैं वरन चुन कर फसल को बोते हैं। आपने देखा होगा की जिस भाग पर हम पहली बार बाजरा बोते हैं दूसरी बार उसी जगह पर ग्वार बोते हैं ताकि जमीन के अंदर पोषक तत्वों की मात्रा संतुलित बनी रहे ।
सिंचाई के साधन
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सिंचाई के लिए ताजे पानी का प्रयोग किया जाता है । सिंचाई के संसाधनों मे कुए ,नलकूप और तालाब और नहरें आती हैं। कुल क्षेत्रफल का लगभग 51 प्रतिशत भाग कृषि के अन्तर्गत आता है। नहर से 40 प्रतिशत भू भाग पर सिंचाई होती है। कुए से 38 ,तालाब से 14 व अन्य से 7 प्रतिशत भूभाग की संचाई होती है।आज भी भारत के अधिकतर क्षेत्रों के अंदर कुआ और टयूबवैल से सिंचाई होती है। हालांकि कुआ का वक्त जा चुका है। अब लगभग हर खेत के अंदर टयूबवैल ही मिलेगी ।
असम, पंजाब, हरियाणा, केरल, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि के अंदर नहरों की मदद से सिंचाई की जाती है।गुजरात ,उत्तरप्रदेश और राजस्थान के अंदर सिंचाई के लिए टयूबवैल का इस्तेमाल किया जाता है।आंध्रप्रदेश कर्नाटका और उडिसा के अंदर सिंचाई के लिए तालाब का इस्तेमाल होता है।
जैसा कि हमने आपको उपर बताया कि 40 प्रतिशत से अधिक भू भाग को नहरों की मदद से सींचा जाता है।आमतौर पर नहरे दो प्रकार की होती हैं। पहली वे नहरे होती हैं जो नित्य चलती रहती हैं और इनके जल को बांध बनाकर रोक लिया जाता है और उसके बाद सिंचाई की जाती है। दूसरी वे नहरें होती हैं जो नदी के अंदर आने वाली बाढ़ की वजह से होती हैं।यह हमेशा नहीं रहती है। वरन इनकी मदद से मात्र एक फसल की ही सिंचाई की जा सकती है।
देश के अंदर कुए का निर्माण ऐसे स्थानों पर हुआ है ,जहां पर मिट्टी इस प्रकार की है कि पानी रिस कर जमीन के अंदर चला जाता है। गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश जैसे कुछ ऐसे राज्य हैं जिनके अंदर कुए से सिंचाई होती है। नलकूप की संख्या की यदि हम बात करें तो यह 57 लाख है।तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जहां पर नलकूपों की सबसे अधिक संख्या है और दूसरा राज्य महाराष्ट्र है।
प्राकृतिक तथा कृत्रिम दो प्रकार के तालाब होते हैं।तालाब से सबसे अधिक सिंचाई आंध्रप्रदेश तमिलनाडू और कर्नाटक मे होती है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार एक ऐसा पौधा होता है जो अनावश्यक रूप से उगता है और किसान को लाभ की बजाय नुकसान पहुंचाता है। खेती के अंदर खरपतवार को नियंत्रित करना बेहद ही जरूरी होता है। आमतौर पर बाजरे की खेती के समय जब बाजरा थोड़ा उपर उठता है तो उसके साथ खरपतवार भी उग जाता है। तो उसको हटाने के लिए कसियों का प्रयोग किया जाता है। और सारे खेत के अंदर के खरपतवार को काट दिया जाता है। खरपतवार अनाज के पोषक तत्वों को सोख लेता है और इससे अनाज को नुकसान पहुंचता है।
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और यदि खरपतवार को नहीं हटाया जाता है तो वह इतना अधिक बड़ा हो जाता है कि अनाज का उत्पादन ही नहीं होता है। कर्षण, यांत्रिकी, रसायनों आदि की मदद से खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है। वैसे खरपतवार को नियंत्रित करने की परम्परागत विधियां अच्छी होती है। लेकिन इसके अंदर समय अधिक लगता है और लागत भी अधिक आती है।
रसायनिक विधियों का प्रयोग भी खरपतवार को नियंत्रित करने मे किया जाता है।रसायनिक विधियों की मदद से खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए आपको पता होना चाहिए कि कौनसा रसायन किस फसल के अंदर प्रयोग किया जाता है ?
फसल का नाम | Gram | प्रयोग का time | |
धान | प्रोटिलाक्लोर | बोवाई के 1 दिन बाद डालें | |
धान | ब्युटालाक्लोर | बोवाई के एक से दो दिन के मे डालें | |
धान | प्रोटिलाक्लोर | रोपाई/बोवाई के एक से दो दिन मे डालें | |
धान | पाईराजो स्लोयुरोन | 10 ऐ 20 दिन पर डालें | |
मक्का | एट्राजीन +पैंडीमिथालिन | बोवाई के 1 दिन बाद डालें | |
गन्ना | एट्राजीन | बोवाई के 1 दिन बाद डालें | |
सोयाबीन | क्लोरीमूरोन | बोवाई के 15-20 दिन अंदर डालें | |
मूंगफली/भिन्डी/अरहर/ मुंग/उड़द/तोरी/राई आदि | पैंडीमिथालिन | बोवाई के 1 दिन बाद डालें |
गहन कृषि क्या होती है ? लेख के अंदर हमने गहन खेती के बारे मे विस्तार से जाना उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आयेगा । यदि आपका कोई सवाल हो तो नीचे कमेंट करके बता सकते हैं।