इस लेख मे हम बात करने वाले हैं चौरी चौरा कांड कब और कहां हुआ था [ chori chora kand kab hua ], हिस्ट्री ऑफ़ चौरी चौरा कांड , चौरी चौरा कांड निबंध और इसकी सम्पूर्ण जानकारी पर।
भारत को अंग्रेजों की गुलाम से मुक्त करवाने के लिए चौरी चौरा जैसे अनेक कांड तो हुए भी थे । जिसमे से कुछ देसद्रोही लोगो ने बिट्रिस सरकार के चरण धोकर पिये थे । देस को अंग्रेजों की गुलामी से इस वजह से मुक्ति मिलने मे कई साल लग गए क्योंकि भारतिए भोले थे और आज भी भोले ही हैं।
आज भी हमें दूसरे देस के लोग आपस मे लड़वाकर हमारे देस पर कब्जा कर सकते हैं। इसमे कोई शक नहीं है।दोस्तों चौरी चौरा कांड उत्तर प्रदेस के गोयखपुर अंदर मे एक कस्बा है।4 फ़रवरी 1922 को भारतिय क्रांतिकारियों ने एक पुलिस स्टेशन के अंदर आग लगादी थी । जिसमे 22 पुलिसवालों की मौत हो गई थी ।
क्योंकि यह घटना चौरी चौरा नामक स्थान पर हुई थी इस वजह से इसको चौरी चौरा कांड का नाम दिया गया ।
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हिंसा होने के बाद गांधिजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेलिया था । सभी अभियुक्तों को गिरफतार कर उनपर मुकदमे चलाए गए थे ।पंडित मदन मोहन मालवीय ने इनका केस लड़ा था ।
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chori chora kand kab hua क्यों हुआ था चौरी चौरा कांड
दोस्तों हमारा इतिहास हमारे द्वारा नहीं लिखा गया । वह भी अंग्रेजों के द्वारा लिखा गया है। और इसमे हम भारतिए ही दोषी ठहराए जाते हैं। बहुतसी किताबों के अंदर बस इतना दिया होता है कि चौरी चौरा कांड मे 22 पुलिस वालों को जला दिया था । लेकिन इतना नहीं दिया होता है। कि गलती किसकी थी ।चौरी चौरा की धरती जमिंदारों के जुल्म से आक्रांत थी । इस क्षेत्र के अंदर जंगल , जमीन की पैदावार , रेल का आवागमन और मुंडेरा ,भोपा जैसे बाजारों की अर्थव्यवस्था जमींदारों के अनुकूल थी ।
जमींदारों को हर हाल के अंदर कर चाहिए था । पुलिस बेकार थी । जिसका काम मात्र किसानों के स्वर को दबाना होता था। और जनता से कर वसूली करना होता था । इस वजह से किसान पुलिस के घोर दुश्मन थे ।22 जनवरी को थाने के अंदर रामसरन सिपाही और किसानों के बीच विरोध भी हुआ था । जिसकी वजह से किसान काफी उत्तेजित हो चुके थे ।
उस विद्रोह के बाद विद्रोह करने वाले लोगों को लंबे समय तक चोर , उच्चके , जाहिल और गुंडे जैसी उपमाओं से नवाजा गया था।वैसे यदि देखा जाए तो वहां के लोगों को किसी भी प्रकार की क्रांतिकारी विचार धारा का पाठ नहीं पढ़ाया गया था । उन्हें न ही इस बारे मे कोई विशेष जानकारी ही थी । बस उनको सामान्य विरोध करना आता था । उन्होंने थोड़ा बहुत रूसी क्रांति के बारे मे भी सुन रखा था।
चैरी चौरा के लोग राष्टि्रय स्वयसेवक के कुछ सीखाए गए बातों की परिभाषा अपने अनुरूप गढ़ी । उन्होंने मिलकर यह फैसला कर लिया था कि हम अपना राज्य लेकर रहेंगे । ऐसा राज्य जहां पर अपना कानून हो और लगान नाम मात्र की हो । और चौरी चौरा कांड होने की दूसरी सबसे बड़ी बात थी कि वहां के किसानों के पास खोने के लिए कुछ नहीं होना । वे सरकार के अत्याचारों से तंग आ चुके थे । और उनके पास इस काम के अलावा कोई चारा नहीं बचा था ।
चौरी चौरा कांड हिस्ट्री चौरी चौरा कांड ने अंग्रेजों को हिलाकर रखदिया था
बेसश चौरी चौरा कांड को गलत माना जाता हो लेकिन मैं तो इसको बिल्कुल सही मानता हूं । चौरी चौरा कांड की वजह से अंग्रेज सरकार पूरी तरह से हिल चुकी थी । बड़े बड़े अधिकारियों की रातों की नींद हराम हो चुकी थी । सपने के अंदर भी जलता हुआ थाना नजर आता था। चौरा चौरी कांड के महत्व को कम नहीं आंका जाना चाहिए ।
इस कांड को ऐसे लोगों ने अंजाम दिया था जो कभी अंग्रेजों के सामने सर नहीं उठाए थे । और वे अब अंग्रेजों के सामने सर उठाकर बोल ही नहीं रहे थे । वरन उनको मौत के घाट भी उतार चुके थे कोर्ट के अंदर उन्हें इसे स्वीकार भी किया था ।उनके इस प्रकार के साहस से अंग्रेज बुरी तरह से डर गए थे । फांसी के समय वे कह रहे थे कि हम एक बार फिर दूसरा जन्म लेंगे और दूबारा यही काम करेंगे । अंग्रेजों को हमारे देस से भगा कर रहेंगे।
चौरी चौरा कांड के अंदर शामिल लोगों की सबसे बड़ी कमी तो यह थी कि वे सीधे साधे लोग थे । यदि वे ही चालू किस्म के होते तो थाने को जलानें के बाद उनको फरार हो जाना चाहिए था । बस उसके बाद पुलिस हाथ मलती रह जाती ।
चौरी चौरा कांड के प्रमुख नेता CHIEF LEADER OF CHAURI CHAURA KAND
वैसे यदि चौरी चौरा कांड के नायकों की बात करें तो इसके अंदर कई नायक थे । जिन्होंने विद्रोह का नेत्रत्व किया था । लेकिन मुख्य रूप से इसके अंदर केवल 6 लोग ही थे । लाल महमुम्द , नजरअली , भगवान अहिर , अब्दुला , इंद्रजीत आदि। इस घटना के अंदर लाल मुहम्मद अब्दुला और भगवान अहीर कि सबसे निर्णायक भूमिका रही थी । इन तीनों ने विदेसी सत्ता को बहुत करीब से देखा था । और उनके मन मे हमेशा से ही विदेसी सता को उखाड़ फेंकने का विचार था ।यह वे लोग थे जो देस दुनिया घूम चुके थे ।
अब्दुला बोल्विेशिक क्रांति से परिचित थे । मुल रूप से वे कहीं ओर के रहने वाले थे । लेकिन यहां पर अपने रिश्तेदार के यहां रहते थे । प्रथम विश्व युद्व के दौरान वे ब्रिटिश सैना की कुली टुकड़ी के अंदर थे । 2 वर्ष सेवा देने के बाद उनकी सेवा को समाप्त कर दिया गया था ।युद्व के मोर्चे पर जर्मन मे रह रहे भारतिए वांमपंथियों ने इन सैनिकों को उकसाने का काम भी किया था ।
जिसकी वजह से यह लोग सेना छोड़ कर आने के बाद देस को आजाद करवाने की जदोजहद के अंदर लग गए थे ।भगवान अहीर भी मोसोपोटामिया के युद्व के अंदर भाग ले चुके थे । और अब उनको 5 रूपये भत्ता मिलता था । लेकिन उसके बाद भी उन्होंने राष्टीय स्वंसेवक को प्रशिक्षण देने का फैसला किया ।
नजर अली भी एक चूड़ीहार थे । जब खेती के अंदर गुजर बसर नहीं होती तो उन्होंने रंगून की ओर रोजी रोटी की तलास मे जाने का फैसला किया था । वे दूर दूर तक जाते थे । जैसे आसाम हावड़ा आदि । लेकिन उनके मन मे सदा से ही ब्रिटिस सरकार के प्रति असंतोष था ।इसके अलावा यदि लाल मुहमद की बात करें तो उनका काम गाढ़ा कपड़े बेचने का था । उनके पास खेत नहीं था । इसके अलावा वे भोपा बाजार के अंदर जानवरों की खाल और गिड़ेल घोड़ों को बेचने का काम भी करते थे ।वैसे इनका अपने जवानी के दिनों मे कुश्ति मे नाम हुआ करता था।
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chora chori kand kya hai चौरी चौरा कांड
4 फरवरी 1922 को वांलटियरों ने मुंडेर बाजार के अंदर पहुंच कर मछली मांस आदि की कीमत कम करने के बारे मे कहा उसके बाद बाजार के एक करीदें ने उनको वहां से जाने के लिए कहा तो वे चले गए ।
उसके बाद 4 फरवरी को ही सुबह लोग खलियान मे जमा हो गए और बहस करने लगे की बदला कैसे लिया जाए।उस समय मिटिंग के अंदर 800 से ज्यादा लोग जमा हो चुके थे । इस खबर का जब थानेदार गुप्तेश्वर सिंह को पता चला तो उसने अतिरिक्त पुलिस बल को बुलाया और लोगों को आक्रमक फैसला लेने से रोकना चाहा । लेकिन लोगों ने एक न सुनी।
उसके बाद सभा ने एक जुलूस का रूप लेलिया और गांधी जी और जय हिंद का नारे लगाते हुए चौरा थाने की ओर चल पड़ी ।उसके बाद वहां पहुंचते पहुंचते उनकी संख्या 3 हजार के आस पास हो गई।उसके बाद उन्हें वहां संत बॉक्स का व्यक्ति मिला उसने लोगों को समझाया लेकिन उनकी एक न चली।
उसके बाद आगे दरोगा और पुलिस वाले मिले जूलुस के नेता पहले तो देखकर डरे लेकिन भीड़ इतनी थी कि दरोगा भी कुछ नहीं कर सकता था । उसके बाद जमींदार हरीचरण ने नेताओं को रोकने की कोशिश की तो सब लोगों ने कहा की वे शांति पूर्वक रेली कर रहे हैं।
तब जूलूस को जाने दिया गया । उसके बाद भीड़ जैसे ही थाने के पास पहुंची लोगों ने थाने के कांच खिड़की को तोड़ना शूरू कर दिया । कुछ लोग केरोसनी तेल लेकर आए और थाने मे आग लगादी । पुलिस वाले जैसे ही बाहर निकलने की कोशिश करते उनको लात घूसे से अंदर भेज दिया जाता । इसके अलावा क्रांतिकारियों ने दरोगा के घर को भी लूट लिया । आस पास की रेललाइन और तार व्यवस्था को बुरी तरह ठप कर दिया । उसके बाद सब कुछ तहस नहस करने के बाद अधिकतर लोग दूर दराज जगह पर जाकर छिप गए । क्योंकि उनको पता था पुलिस बदला जरूर लेगी ।
झूंठी गवाही से मिली थी सजा
चौरा चौरी कांड एक महान स्वतंत्रता विद्रोह था । जिसका प्रयोग दलित किसानों ने रावण पुलिस वालों का नास करने के लिए किया । लेकिन यदि चौरा चौरी कस्बे के अंदर दलितों के इस आंदोलन को गुंड़ों का आंदोलन इस वजह से कहा गया क्योंकि इसको जन्म देने वाली जातियां नीची जाति थी । इस कांड के अंदर क्रांतिकारियों को सजा दिलाने के लिए सांमतों ने झूंठी गवाही का सहारा लिया था । इसकी वजह यह थी कि सांमत दलित लोगों को पसंद नहीं करतें थ । सामंतों के सामने दलित लोगों को नीचे बैठना पड़ता था । मतलब पूरा छूआछूत चलता था।
श्याम सुंदर ने 1923 को जेल के अंदर से भेजी एक अपील मे कहा था कि मेरे को सजा दिलवाने के लिए 8 गवाहों को पेश किया गया था। वे ऐसे गवाह थे जिनको मेरा नाम तक पता नहीं था और उनको पुलिस ने गवाही देने के लिए राजी किया था । इसी प्रकार
1923 को एक अन्य क्रांतिकारी रूदली ने अपनी दया याचिका के अंदर कहा था कि उनको फंसाया जा रहा है। राजकुमार पांड़े से मेरी दुश्मनी थी । इस वजह से उसने मेरे खिलाफ झूंठी गवाही दी थी । रामलाल चौकी दार ने भी उसे फंसाने के लिए झूंठी गवाही दी थी । उसने बाद मे कोर्ट के अंदर स्वीकार किया की उसने रूदली को दंगों मे नहीं देखा था ।
चौरी चौरा कांड के अंदर 172 लोगों को फांसी दी गई थी 172
चौरी चौरा कांड के अंदर बाद मे 172 लोगों को पकड़ लिया था । और उनको सरकार ने सजा दी थी । लेकिन यदि हम सच्चाई की बात करें तो पुलिस कितना सही काम करती है यह तो आप जानते ही हैं। 172 लोगों मे से केवल कुछ लोग वास्तव मे उस कांड के अंदर शामिल थे। बाकि लोगों ने पुलिस को एक मोहरे के रूप मे इस्तेमाल किया ।
कई लोगों को तो सिर्फ इस वजह से फांसी पर लटकादिया गया क्योंकि उन्होंने झूंठी गवाही नहीं दी । इसके अलावा कुछ लोग दुश्मनी निकालने के लिए भी कुछ दूसरे लोगों को फंसा दिया । कुल मिलाकर पुलिस के सामने जो भी आया उसे पकड़ लिया और फांसी पर लटका दिया ।सबसे पहले फांसी जुलाई 1923 को अब्दुला को दी गई थी । उसके बाद विभिन्न समय और दिन पर अन्य क्रांतिकारियों को भी फांसी पर लटका दिया गया था ।
चौरी चौरा कांड के आजीवन कारावास पाए क्रांतिकारी
उच्च न्यायलय ने 14 क्रांतिकारियों की सजा को आजीवन कारावास की सजा के अंदर बदल दिया था । वैसे देखा जाए तो आजीवन कारावास की सजा फंसी से घटिया सजा है। जिसके अंदर व्यक्तिे तिल तिल कर मरना पड़ता है। फांसी पर लटकने के बाद व्यक्ति मुक्त हो जाता है। लेकिन आजीवन कारावास की सजा के अंदर पूरी उम्र जेल के अंदर गुजारनी पड़ती है। लेकिन बाद मे इन कैदियों ने अपील भी की थी । जिसकी वजह से इनको 25 साल तक की सजा दी गई थी ।
क्या कहती है पुलिस की रिपोर्ट WHAT THE POLICE REPORT SAYS
पुलिस के आंकड़ों की यदि हम बात करें तो यह वास्तविक आंकड़ों से बिल्कुल भिन्न हैं। इनके अनुसार इस कांड के अंदर 6000 लोग शामिल थे । जिसमे 1000 लोगों से पूछताछ और 225 लोगों पर मुकदमा चलाया गया था ।9 जनवरी 1923 को 172 लोगों को फंसी की सजा सुनाई गई। जिस मेसे 50 को बरी भी किया गया था ।जबकि 19 लोगों की फंसी की सजा को बहाल रखा गया था।
असहयोग आंदोलन की वापसी RETURN OF NON-COOPERATION MOVEMENT
चौरी चौरा कांड के बाद गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था । वैसे गांधी जी ने इस आंदोलन को इस वजह से भी वापस लेलिया था क्योंकि यह आंदोलन ठंड़ा पड़ चुका था । और इससे स्वतंत्रता मिलने के कोई आसर नजर नहीं आ रहे थे । लेकिन गांधीजी ने अपने एक लेख के अंदर बताया कि उन्होंने चौरी चौरा कांड की वजह से अपना आंदोलन वापस लिया था ताकि अन्य जगह पर ऐसी हिंसा ना हो पाए।
हिस्ट्री ऑफ़ चौरी चौरा कांड चौरा चौरी सहायता कोष की स्थापना
गोरखपुर के अंदर मर चुके पुलिस वालों के लिए सहायता कोष की स्थापना भी की थी । जिसके अंदर कांग्रेस नेताओं को दो दो हजार रूपये जमा करवाने थे । इसके अंदर से क्रांतिकारियों को कुछ नहीं मिला क्योंकि उन्होंने अपराध किया था ।
चौरी–चौरा शहीद स्मारक
1971 में गोरखपुर ज़िले के लोगों ने चौरी-चौरा शहीद स्मारक समीति का गठन किया गया और उसके बाद इस समीति की मदद से कुछ चंदा एकत्रित भी किया गया । इस चंदे की मदद से एक स्मारक बनाया गया ।1973 ई के अंदर यह बना था और 21 मीटर तक उंचा बना हुआ है।एक शहीद को इसके अंदर फांसी पर लटकते हुए दिखाया गया है।
उसके बाद भारत सरकार ने भी यहीं पर एक स्मारक बना दिया था।और इस स्मारक पर शहीदों के नाम भी अंकित कर दिये । अब इसी स्मारक को ही मुख्य स्मारक के नाम से जाना जाता है।भारतीय रेलवे ने दो ट्रेन भी चौरी-चौरा के शहीदों के नाम से चलवाई. ट्रेनों के नाम कुछ इस प्रकार से हैं शहीद एक्सप्रेस और चौरी-चौरा एक्सप्रेस
चौरी–चौरा क्या थे असल मे ?
दोस्तों चौरी चौरा दो गांवों के नाम हैं।1885 को यहां पर एक रेल्वे स्टेशन भी स्थापित किया गया था। यहां पर एक माल गोदाम भी था जिसके अंदर ट्रेन से माल लाकर स्टोर किया जाता था।1922 के अंदर जिस थाने को जलाया गया था वह भी चौरा गांव के अंदर ही था। चौरी चौरा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर ज़िले में स्थित एक क़स्बा है।
चोरा चोरी कांड क्यों हुआ था
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दोस्तों यह बात है सन फरवरी 1922 की जब मुंडेर बाजार के अंदर शांति पूर्ण बहिष्कार किया जा रहा था। यह जगह चौरा चौरी के पास ही पड़ती है तो उस वक्त पुलिस ने आंदोलन कर रहे लोगों को पीट दिया । जिससे कि लोगों को काफी गुस्सा आया ।1922 को एक सभा का आयोजन हुआ । इस सभा के अंदर हजारों लोग एकत्रित हुए और नेताओं के भाषण के बाद यह सारे लोग थाने की तरफ चले गए । और थानेदारों से पिटाई का स्पष्टिकरण मांगने लगे ।
उसके बाद पुलिस ने गोली चलादी जिससे कि 26 लौगों की मौके पर ही मौत हो गई तो इससे भीड़ काफी क्रोधित हो गई और पुलिस को बाहर आने की चेतावनी दी लेकिन जब पुलिस बाहर नहीं आई तो गेट को बंद कर थाने को ही फूंक डाला जिससे कि 22 पुलिस वाले जिंदा जले । इसके अंदर केवल एक चोकीदार ही बचा था।
चौरीचौरा की घटना की सूचना उच्च अधिकारियों को दी
दोस्तों चौरी चौरा कांड होने के बाद इसकी सूचना उच्च अधिकारियों को दी गई। उस समय दिल के अंदर ही अधिकारी बैठेते थे । तो यह यह खबर सुनते ही दिल्ली के अंदर भी हडकंप मच गया । और सूचना के अंदर यह लिखा गया की गांव के अंदर बहुत अधिक तनाव है और जल्दी से जल्दी एक सैनिक छावनी को भेज देने का आग्रह किया गया था।
चौरी चौरा कांड से जुड़े दस्तावेज की पर्दशनी
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दोस्तों चौरी चौरा से जुड़े दस्तावेज की पर्दशनी लगाई गई थी। जिसको देखने के लिए कई लोग आए थे । इसके अंदर आरोपियों की कोर्ट मे पैसी की जानकारी इसके अलावा कई अलग अलग तरह की फोटो थी।इसके अलावा चौरी चोरा कांड से जुड़ी कुछ चिट्टी भी थी।
थाने मे जलने वाले पुलिसवालों के नाम
पृथ्वी पाल सिंह, हेड कांस्टेबल वशीर खां, कपिलदेव सिंह, लखई सिंह, रघुवीर सिंह, विषेशर राम यादव, मुहम्मद अली, हसन खां, गदाबख्श खां, जमा खां, मगरू चौबे, रामबली पाण्डेय, कपिल देव, इन्द्रासन सिंह, रामलखन सिंह, मर्दाना खां, जगदेव सिंह, जगई सिंह।
चौरी चौरा कांड के अंदर इनको फांसी दी गई थी।
अब्दुल्ला, भगवान, विक्रम, दुदही, काली चरण, लाल मुहम्मद, लौटी, मादेव, मेघू अली, नजर अली, रघुवीर, रामलगन, रामरूप, रूदाली, सहदेव, सम्पत पुत्र मोहन, संपत, श्याम सुंदर व सीताराम
मदनमोहन मालवीय ने बचाया था लोगों को
जब चौरी चौरा कांड हो गया तो उसके बाद पुलिस ने कुल 172 लोगों को दोषी बनाया गया ।गोरखपुर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश मिस्टर एचई होल्मस ने 9 जनवरी 1923 को यह फैसला सुनाया था। उसके बाद इस फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के अंदर अपील की थी। 30 अप्रैल 1923 को फैसला आया । इसकी पैरवी मदनमोहन ने की थी।इसमे से अधिकांश को बचा लिया गया था
- 14 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
- 19 लोगों को 8 साल कैद की सजा सुनाई गई।
- 57 लोगों को 5 साल कैद की सजा सुनाई गई।
- 20 लोगों को 3 साल कैद की सजा सुनाई गई है।
- 3 लोगों को 2 साल की कैद।
- 38 लोगों को बरी कर दिया गया।
- मौत की निंदा करने वाले 19 प्रतिवादियों को 2 और 11 जुलाई 1923 के बीच फांसी दी गई थी।
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यह घटना 1922 में हुई और इसके कारण कई लोग मारे गए लेकिन बेगुनाह लोग ज्यादा मारे गए उस दिन भी और उसके बाद फांसी की सजा में भी
इस दिन कि बहुत निंदा हुई लेकिन यह आक्रोश बहुत दिनो का था
कितना सही कितना गलत ये वही कह सकते थे जिन्होने इसे सहा