बकासुर एक राक्षस था । जिसका प्रयोग कर कंस भगवान क्रष्ण को मारना चाहते थे । यहां पर हम बकासुर वध की दो कहानी बता रहे हैं।
मथुरा के राजा कंस ने भगवान क्रष्ण को मारने के अनेक प्रयास किये थे । वह अपने प्रयत्नों के अंदर सफल नहीं हो पा रहा था । कंस ने वैसे तो भगवान को मारने के लिए अनेक असुर भेजे थे ।
वह राक्षस बगुले के रूप मे था ।
दोपहर को जब भगवान क्रष्ण भोजन करने के बाद आराम कर रहे थे । कुछ गाएं उनके आस पास चर रही थी । कुछ ग्वाले पानी पीने के लिए जब यमुना किनारे गए तो उन्होंने वहां पर एक बहुत ही बड़े बगुले को देखा जोकि सामान्य बगुले से काफी बड़ा था । जिसको देख कर वे चीख उठे । उनकी
चीख सुनकर भगवान क्रष्ण यमुना के किनारे दौड कर आए । भगवान को उसे देखकर समझते देर नहीं लगी की वह एक दैत्य है। और वे तुरन्त उसके पास जा पहुंचे और उसकी गर्दन को पकड़कर मरोड़ डाला ।उसकी आंखे बाहर निकल गई और वह अपने असली रूप के अंदर आ गया ।
और बेजान होकर धरती पर गिर पड़ा ।
क्रष्ण की ताकत को देखकर उसके साथी आश्चर्य चकित हो गए । वे क्रष्ण को अपना भगवान समझने लगे और शाम को अपनी बस्ती के अंदर आकर सब लोगों की बताया की भयानक दैत्य को किसी प्रकार भगवान ने मार डाला ।
भगवदपुराण के अंदर एक अन्य प्रकार की कथा का उल्लेख मिलता है। इस कथा के अनुसार ग्वाले जब पानी पी रहे थे तो एक बहुत बड़ा पत्थर जमीन पर गिरा ग्वालों ने देखा की एक बड़ा बगुला पहाड़ पर बैठा है। वे बहुत अधिक डर गए और चीखे । बुगले ने भगवान क्रष्ण को भी निगल लिया ।
भगवान को निगलते देख सारे ग्वाले अचेत से हो गए । किंतु दैत्य भगवान को निगल नहीं सका क्योंकि उसे अपने अंदर बहुत अधिक जलन महसूस हुई और उन्हें वापस उगल दिया । उसके बाद जैसे ही उसने भगवान पर प्रहार करने की कोशिश की भगवान ने उसकी चोंच पकड़ कर चीर दी । यह सब देख सारे देवता प्रसन्न हो गए और
भगवान के उपर फूल बरसाने लगे । जब ग्वालों ने देखा की क्रष्ण जिंदा ही वापस आ रहे हैं तो उनकी जान मे जान आई और सभी ने भगवान को गले लगा लिया । बाद मे जब सारे ग्वाले भगवान की सच्चाई ब्रज के लोगों को बताई तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि इतना छोटा बालक यह चमत्कार कर सकता है।
लेकिन ग्वाले उस घटना के बाद क्रष्ण को सामान्य बच्चा ही ना समझकर अपना भगवान समझने लगे थे ।
बकासुर महा भारत काल के अंदर
बकासुर एक अन्य राक्षस की स्टोरी महाभारत के अंदर भी मिलती है। जिसका उल्लेख भी हम यहां पर कर रहे हैं।
पांच पांडव और कुंति कौरवों से बचने के लिए एकाचक्रा नगरी के अंदर ब्राहामण को वेश धारण करके रहने लगे ।यह उतरप्रदेस के प्रतापगढ के दक्षिण के अंदर पड़ता है। वर्तमान मे इस चक्रनगरी को जकवड़ कहा जाता है। बकागढ के अंदर भी बकासुर रहता था । जोकि चक्रनगरी के अंदर आता है। वर्तमान के अंदर इस जगह को बकाजलालपुर के नाम से जानते हैं जोकि इलाहाबाद के अंदर आता है।डीहनगर तीसरा स्थान है जहां पर बकासुर रहता था । यह इलाहाबाद जिले के बुकलादी नदी के तट पर है।
वे भीख मांगकर अपना गुजारा करते थे । वहां का राजा काफी कमजोर था । और उस नगरी के पास मे एक बकासुर नामक राक्षस भी रहता था । उसका आतंक पूरे राज्य के अंदर था ।
बकासुर हिंसक प्राणियों से नगरी की सुरक्षा भी करता था । वहां के लोग ही उसके भोजन का प्रबंध करते थे । उसे चावल दो भैंसे और एक मनुष्य की रोजाना आवश्यकता होती थी । रोज रोज को बारी बारी एक व्यक्ति को उसके भोजन के लिए जाना होता था । वह नर भक्षी था । और भोजन के लिए भेजे गए मनुष्य को खा जाता था
फिर एक दिन एक ब्राहामण की बारी थी । उसके परिवार के अंदर पति पत्नी और एक पुत्री और एक पुत्र था । वे निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि किसको भेजे । किंतु माता कुंति की आज्ञा के अनुसार उनके स्थान पर भीम को बकासुर के लिए भेजा गया । बकासुर एक ताकतवर इंसान को देखकर बहुत खुश हुआ ।
और बोला कि इतना अच्छा मोटा तगड़ा इंसान आज खाने को मिलेगा । उसके बाद भीम ने उसके भेज खाने को ही खुद खाना शूरू कर दिया । जिसे देखकर असुर चिढ गया और भीम पर आक्रमण कर दिया लेकिन अंत मे भीम ने बकासुर को मार दिया ।
तब ब्राहामण को पता चला की भीम कोई सामान्य इंसान नहीं है। और वे पांड़वों के बारे मे सब कुछ जान गए । उसके बाद ब्राहामण ने प्रतिज्ञा की कि वे इस विषय के अंदर किसी को कुछ नहीं बताएंगे ।बकासुर के वध की सूचना जब गांव वालों को लगी तो वे सारे खुशी से झूम उठे । और भीम का स्वागत करने के लिए उमड़ पड़े । लेकिन भीम और उनका पूरा परिवार चुपके से उस नगरी से निकल गया । और अन्य लोगों को पता नहीं चल सका कि बकासुर को किसने मार दिया ।