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दुष्टता का फल Fruit of evil 1#
कंचनपुर के एक धनी व्यापारी के घर में रसोई में एक कबूतर ने घोंसला बना रखा था । किसी दिन एक लालची कौवा जो है वो उधर से आ निकला । मछली को देखकर उसके मुह में पानी आ गया । तब उसके मन में विचार आया कि मुझे इस रसोघर में घुसना चाहिए लेकिन कैसे घुसू सोचकर वो परेशान था तभी उसकी नजर कबूतरों के घोंसले पर पड़ी ।
उसने सोचा कि मैं अगर कबूतर से दोस्ती कर लूँ तो शायद मेरी बात बन जाएँ । कबूतर जब दाना चुगने के लिए बाहर निकलता है तो कौवा उसके साथ साथ निकलता है । थोड़ी देर बाद कबूतर ने पीछे मुड़कर देखता तो देखा कि कौवा उसके पीछे है इस पर कबूतर ने कौवे से कहा
—— भाई तुम मेरे पीछे क्यों हो इस पर कौवे ने कबूतर से कहा
—— तुम मुझे अच्छे लगते हो इसलिए मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ इस पर कौवे से कबूतर ने कहा कि
——- हम कैसे दोस्त बन सकते है हमारा और तुम्हारा भोजन भी तो अलग अलग है मैं बीज खाता हूँ और तुम कीड़े । इस पर कौवे ने चापलूसी दिखाते हुए कहा
——कौनसी बड़ी बात है मेरे पास घर नहीं है इसलिए हम साथ साथ तो रह ही सकते है है न और साथ ही भोजन खोजने आया करेंगे तुम अपना और मैं अपना ।
इस पर घर के मालिक ने देखा कि कबूतर के साथ एक कौवा भी है तो उसने सोचा कि चलो कबूतर का मित्र होगा इसलिए उसने उस बारे में अधिक नहीं सोचा । अगले दिन कबूतर खाना खोजने के लिए साथ चलने को कहता है तो कौवे ने पेट दर्द का बहाना बना कर मना कर दिया । इस पर कबूतर अकेला ही चला गया क्योंकि कौवे ने घर के मालिक को यह कहते हुए सुना था नौकर को
———— आज कुछ मेहमान आ रहे है इसलिए तुम मछली बना लेना ।
उधर कौवा नौकर के रसोई से बाहर निकलने का इन्तजार ही कर रहा था कि उसके जाते ही कौवे ने थाली और झपटा और मछली उठाकर आराम से खाने लगा । नौकर जब वापिस आया तो कौवे को मछली खाते देख गुस्से से भर गया और उसने कौवे को पकड़ कर गर्दन मरोड़ कर मार डाला ।
जब शाम में कबूतर वापिस आया तो उसने कौवे की हालत देखी तो सारी बात समझ गया । इसलिए कहा गया है दुष्ट प्रकृति के प्राणी को उसके किये की सज़ा अवश्य मिलती है ।
लालच की सजा Greedy punishment 2#
एक शहर में एक आदमी रहता था। वह बहुत ही लालची था। उसने सुन रखा था की अगर संतो और साधुओं की सेवा करे तो बहुत ज्यादा money प्राप्त होता है। यह सोच कर उसने साधू-संतो की सेवा करनी प्रारम्भ कर दी। एक बार उसके घर बड़े ही चमत्कारी मास्टर आये।
उन्होंने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर उसे चार दीये दिए और कहा,
———-इनमे से एक LAMP जला लेना और पूरब दिशा की ओर चले जाना जहाँ यह LAMP बुझ जाये, वहा की जमीन को खोद लेना, वहा तुम्हे काफी धन मिल जायेगा। अगर फिर तुम्हे धन की आवश्यकता पड़े तो दूसरा LAMP जला लेना और पक्षिम दिशा की ओर चले जाना, जहाँ यह LAMP बुझ जाये, वहा की जमीन खोद लेना तुम्हे मन चाही माया मिलेगी। फिर भी संतुष्टि ना हो तो तीसरा LAMP जला लेना और दक्षिण दिशा की ओर चले जाना। उसी प्रकार LAMP बुझने पर जब तुम वहाँ की जमीन खोदोगे तो तुम्हे बेअन्त धन मिलेगा। तब तुम्हारे पास केवल एक LAMP बच जायेगा और एक ही दिशा रह जायेगी। तुमने यह LAMP ना ही जलाना है और ना ही इसे उत्तर दिशा की ओर ले जाना है।”
यह कह कर मास्टर चले गए। लालची आदमी उसी वक्त पहला LAMP जला कर पूरब दिशा की ओर चला गया। दूर जंगल में जाकर LAMP बुझ गया। उस आदमी ने उस जगह को खोदा तो उसे पैसो से भरी एक गागर मिली। वह बहुत खुश हुआ। उसने सोचा की इस गागर को फिलहाल यही रहने देता हूँ,
फिर कभी ले जाऊंगा। पहले मुझे जल्दी ही पक्षिम दिशा वाला धन देख लेना चाहिए। यह सोच कर उसने दुसरे दिन दूसरा LAMP जलाया और पक्षिम दिशा की ओर चल पड़ा। दूर एक उजाड़ स्थान में जाकर LAMP बुझ गया। वहा उस आदमी ने जब जमीन खोदी तो उसे सोने की मोहरों से भरा एक घड़ा मिला। उसने घड़े को भी यही सोचकर वही रहने दिया की पहले दक्षिण दिशा में जाकर देख लेना चाहिए। जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा धन प्राप्त करने के लिए वह बेचैन हो गया।
अगले दिन वह दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ा। LAMP एक मैदान में जाकर बुझ गया। उसने वहा की जमीन खोदी तो उसे हीरे-मोतियों से भरी दो पेटिया मिली। वह आदमी अब बहुत खुश था।
तब वह सोचने लगा अगर इन तीनो दिशाओ में इतना धन पड़ा है तो 4th दिशा में इनसे भी ज्यादा धन होगा। फिर उसके मन में ख्याल आया की मास्टर ने उसे 4th दिशा की ओर जाने के लिए मना किया है। दुसरे ही पल उसके मन ने कहा,
——– हो सकता है उत्तर दिशा की दौलत मास्टर अपने लिए रखना चाहते हो। मुझे जल्दी से जल्दी उस पर भी कब्ज़ा कर लेना चाहिए।
ज्यादा से ज्यादा धन प्राप्त करने की लालच ने उसे संतो के वचनों को दुबारा सोचने ही नहीं दिया।
अगले दिन उसने चौथा LAMP जलाया और जल्दी-जल्दी उत्तर दिशा की ओर चल पड़ा। दूर आगे एक महल के पास जाकर LAMP बुझ गया। महल का दरवाज़ा बंद था। उसने दरवाज़े को धकेला तो दरवाज़ा खुल गया। वह बहुत खुश हुआ। उसने मन ही मन में सोचा की यह महल उसके लिए ही है। वह अब तीनो दिशाओ की दौलत को भी यही ले आकर रखेगा और ऐश करेगा।
वह आदमी महल के एक-एक कमरे में गया। कोई कमरा हीरे-मोतियों से भरा हुआ था। किसी कमरे में सोने के किमती आभूषण भरे पड़े थे। इसी प्रकार अन्य कमरे भी धन से भरे हुए थे। वह आदमी चकाचौंध होता जाता और अपने भाग्य को शाबासी देता। वह जरा और आगे बढ़ा तो उसे एक कमरे में चक्की चलने की आवाज़ सुनाई दी। वह उस कमरे में दाखिल हुआ तो उसने देखा की एक बूढ़ा आदमी चक्की चला रहा है। लालची आदमी ने बूढ़े से कहा की तू यहाँ कैसे पंहुचा। बूढ़े ने कहा,”ऐसा कर यह जरा चक्की चला, तुझे बताता हूँ।”
लालची आदमी ने चक्की चलानी प्रारम्भ कर दी। बूढ़ा चक्की से हट जाने पर ऊँची-ऊँची हँसने लगा। लालची आदमी उसकी ओर हैरानी से देखने लगा। वह चक्की बंद ही करने लगा था की बूढ़े ने खबरदार करते हुए कहा, “ ना चक्की चलानी बंद ना कर।” फिर बूढ़े ने कहा,”यह महल अब तेरा है। परन्तु यह उतनी देर तक खड़ा रहेगा जितनी देर तक तू चक्की चलाता रहेगा। अगर चक्की चक्की चलनी बंद हो गयी तो महल गिर जायेगा और तू भी इसके निचे दब कर मर जायेगा।——–कुछ समय रुक कर बूढ़ा फिर कहने लगा,”मैंने भी तेरी तरह लालच करके संतो की बात नहीं मानी थी और मेरी सारी जवानी इस चक्की को चलाते हुए बीत गयी।”
वह लालची आदमी बूढ़े की बात सुन कर रोने लग पड़ा। फिर कहने लगा,
————- मेरा इस चक्की से छुटकारा कैसे होगा?”
बूढ़े ने कहा,”जब तक मेरे और तेरे जैसा कोई आदमी लालच में अंधा होकर यहाँ नही आयेगा। तब तक तू इस चक्की से छुटकारा नहीं पा सकेगा।” तब उस लालची आदमी ने बूढ़े से सवाल पूछा,”तू अब बाहर जाकर क्या करेगा?”
बूढ़े ने कहा,”मैं कहूँगा, लालच बुरी बला है।”
Aflatoon ki story#3
यूनानी दार्शनिक अफलातून के पास हर दिन कई विद्वानों का जमावड़ा लगा रहता था । सभी लोग उनसे कुछ न कुछ Knowledge प्राप्त करके ही जाया करते थे । लेकिन स्वयं अफलातून (Aflatoon ) खुद को कभी ज्ञानी नहीं मानते थे क्योंकि उनका मानना था कि इन्सान कभी भी ज्ञानी नहीं हो सकता है जबकि हमेशा वो सीखता ही रहता है ।
एक दिन उनके एक मित्र ने उनसे कहा कि ” आपके पास दुनियाभर के विद्वान आपसे ज्ञान लेने आते है और वो लोग आपसे बाते करते हुए अपना जीवन धन्य समझते है लेकिन भी आपकी एक बात मुझे आज तक समझ नहीं आई ” इस पर अफलातून बोले तुम्हे किस बात की शंका है जाहिर तो करो जो पता चले ।
मित्र ने कहा आप खुद बड़े विद्वान और ज्ञानी है लेकिन फिर भी मेने देखा है आप हर समय दूसरों से शिक्षा लेने को तत्पर रहते है । वह भी बड़े उत्साह और उमंग के साथ । इस से बड़ी बात है कि आपको साधारण व्यक्ति से भी सीखने में कोई परेशानी नहीं होती आप उस से भी सीखने को तत्पर रहते है । आपको भला सीखने को जरुरत क्या है कंही आप लोगो को खुश करने के लिए तो उनसे सीखने का दिखावा नहीं करते है ?
अफलातून (Aflatoon ) जोर जोर से हंसने लगे तो मित्र ने पूछा ऐसा क्यों तो अफलातून ने जवाब दिया कि इन्सान अपनी पूरी जिन्दगी में भी कुछ पूरा नहीं सीख सकता हमेशा कुछ न कुछ अधूरा ही रहता है और फिर हर इन्सान के पास कुछ न कुछ ऐसा जरूर है जो दूसरों के पास नहीं है । इसलिए हर किसी को हर किसी से सीखते रहना चाहिए । और फिर हर बात और अनुभव किताबों में तो नहीं मिलते क्योंकि बहुत कुछ ऐसा है जो लिखा नहीं गया है जबकि वास्तविकता में रहकर और लोगो से सीखते रहने की आदत आपको पूरा नहीं पूर्णता के करीब जरुर ले जाती है । यही जिन्दगी का सार है
सच्चा हीरा True diamond #4
सायंकाल का समय था | सभी पक्षी अपने अपने घोसले में जा रहे थे | तभी गाव कि चार ओरते कुए पर पानी भरने आई और अपना अपना मटका भरकर बतयाने बैठ गई |
इस पर पहली ओरत बोली अरे ! भगवान मेरे जैसा लड़का सबको दे | उसका कंठ इतना सुरीला हें कि सब उसकी आवाज सुनकर मुग्ध हो जाते हें |
इसपर दूसरी ओरत बोली कि मेरा लड़का इतना बलवान हें कि सब उसे आज के युग का भीम कहते हें |
इस पर तीसरी ओरत कहाँ चुप रहती वह बोली अरे ! मेरा लड़का एक बार जो पढ़ लेता हें वह उसको उसी समय कंठस्थ हो जाता हें |
यह सब बात सुनकर चोथी ओरत कुछ नहीं बोली तो इतने में दूसरी ओरत ने कहाँ “ अरे ! बहन आपका भी तो एक लड़का हें ना आप उसके बारे में कुछ नहीं बोलना चाहती हो” |
इस पर से उसने कहाँ मै क्या कहू वह ना तो बलवान हें और ना ही अच्छा गाता हें |
यह सुनकर चारो स्त्रियों ने मटके उठाए और अपने गाव कि और चल दी |
तभी कानो में कुछ सुरीला सा स्वर सुनाई दिया | पहली स्त्री ने कहाँ “देखा ! मेरा पुत्र आ रहा हें | वह कितना सुरीला गाना गा रहा हें |” पर उसने अपनी माँ को नही देखा और उनके सामने से निकल गया |
अब दूर जाने पर एक बलवान लड़का वहाँ से गुजरा उस पर दूसरी ओरत ने कहाँ | “देखो ! मेरा बलिष्ट पुत्र आ रहा हें |” पर उसने भी अपनी माँ को नही देखा और सामने से निकल गया तभी दूर जाकर मंत्रो कि ध्वनि उनके कानो में पड़ी तभी तीसरी ओरत ने कहाँ “देखो ! मेरा बुद्धिमान पुत्र आ रहा हें |” पर वह भी श्लोक कहते हुए वहाँ से उन दोनों कि भाति निकल गया तभी वहाँ से एक और लड़का निकला वह उस चोथी स्त्री का पूत्र था वह अपनी माता के पास आया और माता के सर पर से पानी का घड़ा ले लिया और गाव कि और निकल पढ़ा |
यह देख तीनों स्त्रीयां चकित रह गई | मानो उनको साप सुंघ गया हो | वे तीनों उसको आश्चर्य से देखने लगी तभी वहाँ पर बैठी एक वृद्ध महिला ने कहाँ “देखो इसको कहते हें सच्चा हिरा”सबसे पहला और सबसे बड़ा ज्ञान संस्कार का होता हें जो किसे और से नहीं बल्कि स्वयं हमारे माता-पिता से प्राप्त होता हें | फिर भले ही हमारे माता-पिता शिक्षित हो या ना हो यह ज्ञान उनके अलावा दुनिया का कोई भी व्यक्ति नहीं दे सकता हें
विद्या का सदुपयोग करना Use of knowledge #5
एक व्यक्ति पशु पक्षियों का व्यापार किया करता था | एक दिन उसे पता लगा कि उसके गुरु को पशु पक्षियों की बोली की समझ है | उसके मन में ये ख्याल आया कि कितना अच्छा हो अगर ये विद्या उसे भी मिल जाये तो उसके लिए भी यह फायदेमंद हो | वह पहुँच गया अपने गुरु के पास और उनकी खूब सेवा पानी की और उनसे ये विद्या सिखाने के लिए आग्रह किया |
गुरु ने उसे वो विद्या सिखा तो दी लेकिन साथ ही उसे चेतावनी भी दी कि अपने लोभ के लिए वो इसका इस्तेमाल नहीं करें अन्यथा उसे इस कुफल भोगना पड़ेगा | व्यक्ति ने हाभी भर दी | वो घर आया तो उसने अपने कबूतरों के जोड़े को यह कहते हुए सुना कि मालिक का घोडा दो दिन बाद मरने वाला है इस पर उसने अगले ही दिन घोड़े को अच्छे दाम पर बेच दिया | अब उसे भरोसा होने लगा कि पशु पक्षी एक दूसरे को अच्छे से जानते है |
अगले दिन उसने अपने कुत्ते को यह कहते हुए सुना कि मालिक की मुर्गिया जल्दी ही मर जाएँगी तो उसने बाजार जाकर सारी मुर्गियों को अच्छे दामों पर बेच दिया | और कई दिनों बाद उसने सुना कि शहर की अधिकतर मुर्गियां किसी महामारी की वजह से मर चुकी है वो बड़ा खुश हुआ कि चलो मेरा नुकसान नहीं हुआ |
हद तो तब हो गयी जब उसने एक दिन अपनी बिल्ली को यह कहते हुए सुना कि हमारा मालिक अब तो कुछ ही दिनों का मेहमान है तो उसे पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ लेकिन बाद में अपने गधे को भी उसने वही बात दोहराते हुए सुना तो वो घबरा कर अपने गुरु के पास गया और उनसे बोला कि मेरे अंतिम क्षणों में करने योग्य कोई काम है तो बता दें क्योंकि मेरी मृत्यु निकट है |
इस पर गुरु ने उसे डांटा और कहा कि मूर्ख मेने पहले ही तुझसे कहा था कि अपने हित के लिए इस विद्या का उपयोग मत करना क्योंकि सिद्धियाँ न किसी की हुई है और न किसी की होंगी | इसलिए मेने तुझसे कहा था कि अपने लाभ के लिए और किसी के नुकसान के लिए इनका प्रयोग मत करो |
सच्चा राजा True king#6
चन्दन वन का राजा शेर बहुत वृद्ध हो गया | इसी वजह से उसने शिकार के लिए बाहर निकलना भी बंद कर दिया | वह अब और अधिक वन पर शासन नहीं कर सकता था और इसी वजह से वन में बहुत अशांति पैदा हो गयी |
शेर ने एक दिन सभी जानवरों को बुलाकर कहा कि तुम जाकर सभी जानवरों में से एक को राजा चुन लो जो जंगल की व्यवस्था को देख सके ताकि सब पहले जैसा हो जाये और चूँकि मैं अब वृद्द हो चुका हूँ इसलिए और अधिक राज्य नहीं कर सकता |
इस पर सभी जानवरों ने इकठ्ठा होकर इस पर सहमती करने का विचार किया और वो इसके बाहर आ कर आपस में विचार करने लगे तो समस्या ये हो गयी कि सभी जानवर खुद को राजा बनने के योग्य मान रहे थे तो इस पर सभी के अपने अपने मतभेद भी थे इस पर काफी देर बाद भी जब सहमती नहीं बन पाई तो चंदू खरगोश ने एक सुझाव दिया कि सभी जानवरों को उनकी क्षमता के अनुसार काम दिया जायेगा और दस दिन बाद फिर यंही पर एक सभा होगी और जानवरों द्वारा किये जाने वाले काम की समीक्षा की जाएगी जिसने सबसे अधिक काम किया होगा वही राजा बनने के योग्य होगा सभी जानवरों को उनकी जिम्मेदारी दे दी गयी और मोटू हाथी को जिम्मेदारी मिली वो थी बड़े बड़े पत्थरों को गड्ढे में डालना |
दस दिन बड़ी आसानी से बीत गये सभी जानवर इकठा हुए तो देखा कि मोटू हाथी को छोड़कर सभी लोगो ने अपना अपना काम कर दिया है तो वो लोग फिर दुविधा में हो गये ऐसे में पक्षिराज गरुड़ ने मतदान करने की सलाह दी तो सब इसके लिए राजी हो गये | मतदान हुआ तो देखते है कि सबसे अधिक वोट जिसके पक्ष में पड़े है वो है मोटू हाथी सबको बड़ी हैरानी हुए तो एक चिड़िया ने आकर सबकी उलझन दूर की |
चिड़िया ने कहा कि मोटू हाथी ने इसलिए गड्ढे में पत्थर नहीं डाले क्योंकि गड्डे में ऊगे एक छोटे पेड़ पर मेने अंडे दिए हुए थे और मोटू ने अपने राजा बनने की परवाह नहीं करते हुए मेरे बच्चो के जीवन के बारे में अधिक सोचा इसलिए गरुड़ ने मतदान का सुझाव दिया क्योंकि जो अपनी नहीं सोचकर दूसरों के बारे में अधिक सोचता है वही राजा बनने के योग्य है |
वंहा मौजूद सभी जानवरों ने ध्वनिमत से हाँ में हाँ मिलायी और मोटू हाथी वो वंहा का राजा घोषित कर दिया इसके बाद चन्दन वन में फिर कभी अशांति नहीं हुई |
एक सच्चे नागरिक का फर्ज क्या होता है What is the effect of a true citizen#7
एक बार की बात है चीन के महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस अपने चेलो के साथ एक पहाड़ी से गुजर रहे थे । थोड़ी दूर चलने के बाद वो एक जगह अचानक रुक गये और कन्फ्यूशियस बोले ” कंही कोई रो रहा है ” वो आवाज को लक्ष्य करके उस और बढ़ने लगे । शिष्य भी पीछे हो लिए एक जगह उन्होंने देखा कि एक स्त्री रो रही है ।
कन्फ्यूशियस ने उसके रोने का कारण पूछा तो स्त्री ने कहा इसी स्थान पर उसके पुत्र को चीते ने मार डाला । इस पर कन्फ्यूशियस ने उस स्त्री से कहा तो तुम तो यंहा अकेली हो न तुम्हारा बाकि का परिवार कंहा है ? इस पर स्त्री ने जवाब दिया हमारा पूरा परिवार इसी पहाड़ी पर रहता था लेकिन अभी थोड़े दिन पहले ही मेरे पति और ससुर को भी इसी चीते ने मार दिया था । अब मेरा पुत्र और मैं यंहा रहते थे और आज चीते ने मेरे पुत्र को भी मार दिया ।
इस पर कन्फ्यूशियस हैरान हुए और बोले कि अगर ऐसा है तो तुम इस खतरनाक जगह को छोड़ क्यों नहीं देती । इस पर स्त्री ने कहा ” इसलिए नहीं छोडती क्योंकि कम से कम यंहा किसी अत्याचारी का शासन तो नहीं है ।” और चीते का अंत तो किसी न किसी दिन हो ही जायेगा ।
इस पर कन्फ्यूशियस ने अपने शिष्यों से कहा निश्चित ही यह स्त्री करूँणा और सहानुभूति की पात्र है लेकिन फिर भी एक महत्वपूरण सत्य से इसने हमे अवगत करवाया है कि एक बुरे शासक के राज्य में रहने से अच्छा है किसी जंगल या पहाड़ी पर ही रह लिया जाये । यह स्टोरी हमे शिक्षा देती है कि हर नागरिक को अपना फर्ज मसझना चाहिए ।
kharab kapde#8
शहर के निकट ही एक गाँव में एक विद्वान मास्टर रहा करते थे । एक दिन मास्टर अपने एक अनुयायी के साथ सुबह की सैर कर रहे थे । अचानक एक व्यक्ति उनके निकट आया और उन्हें बुरा भला कहने लगा । उसने मास्टर के लिए बहुत सारे अपशब्द कहे लेकिन मास्टर फिर भी मुस्कुराते हुए चलते रहे । उस व्यक्ति ने देखा कि मास्टर पर कोई असर नहीं हुआ तो वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उनके पूर्वजो तक को गालियाँ देने लगा ।
मास्टर फिर भी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते रहे और मास्टर पर कोई असर नहीं होते देख वो व्यक्ति निराश हो गया और उनके रास्ते से हट गया । उस व्यक्ति के जाते ही मास्टर के अनुयायी ने उस मास्टर से पूछा कि अपने उस दुष्ट की बातों का कोई जवाब क्यों नहीं दिया वो बोलता रहा और आप मुस्कुराते रहे क्या आपको उसकी बातों से जरा भी कष्ट नहीं हुआ ।
मास्टर ने अपने अनुयायी को अपने पीछे आने का इशारा किया । कुछ देर चलने के बाद वो दोनों मास्टर के कक्ष तक पहुँच गये । उस से मास्टर बोले तुम यही रुको मैं अंदर से अभी आया । कुछ देर बाद मास्टर अपने कमरे से निकले तो उनके हाथों में कुछ मैले कपडे थे उन्होंने बाहर आकर उस अनुयायी से कहा ” ये लो तुम अपने कपडे उतारकर ये कपडे धारण कर लों इस पर उस व्यक्ति ने देखा कि उन कपड़ों में बड़ी तेज अजीब सी दुर्गन्ध आ रही थी इस पर उसने हाथ में लेते ही उन कपड़ों को दूर फेंक दिया ।”
मास्टर बोले अब समझे जब कोई तुमसे बिना मतलब के बुरा भला कहता है तो तुम क्रोधित होकर उसके फेंके हुए अपशब्द धारण करते हो अपने साफ़ सुथरे कपड़ो की जगह । इसलिए जिस तरह तुम अपने साफ सुथरे कपड़ों की जगह ये मैले कपडे धारण नहीं कर सकते उसी तरह मैं भी उस आदमी में फेंके हुए अपशब्दों को कैसे धारण करता यही वजह थी कि मुझे उसकी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा ।
This post was last modified on November 4, 2018