दोस्तों आंखों की रोशनी कम होना आजकल आम बात हो चुकी है। बड़ों की आंखों पर तो चश्मा लग ही रहा है। इसके अलावा छोटे छोटे बच्चों की ओंखों पर भी आप चश्मा लगा देख सकते हैं। आजकल यह बहुत तेजी से हो रहा है। यदि हम अपने दादा दादी को देखेंगे तो वे भी शायद अब तक चश्मा नहीं पहनते होंगे ।और जब हम उनके जितने बूढ़े होंगे तो हमारा क्या हाल होगा ? अब आप खुद ही सोच लिजिए ।बहुत से हमारे भाई सर्च करते हैं कि आंखों की रोशनी कम क्यों होती है? आंखों की रोशनी कम होने का कारण । इस लेख के अंदर हम आपको वही बताने वाले हैं।
- WHO के अनुसार पुरी दुनिया के अंदर 1.3 बिलियन लोग द्रष्टि हीनता के साथ रहते हैं।
- 188.5 मिलियन लोगों के पास दूर दृष्टि दोष है, 217 मिलियन में मध्यम दृष्टि दोष है, और 36 मिलियन लोग अंधे हैं।
- 826 मिलियन लोग निकट द्रष्टि दोष से झूझ रहे हैं।
- पूरी दुनिया के अंदर द्रष्टि दोष का कारण अचूक अपवर्तक त्रुटियां और मोतियाबिंद होता है।
- द्रष्टि दोष वाले अधिकांश लोग 50 वर्ष की आयु के होते हैं।
आंखों की रोशनी कम होने के कारण की बात करें तो इसके अंदर कई विकार हो जाते हैं । जिसकी वजह से आंखों की रोशनी कम हो जाती है। यहां पर हम कुछ विकारों की चर्चा कर रहे हैं। जिससे आपको यह पता चलेगा कि आंखों की रोशनी क्यों कम होती है।
Table of Contents
1.आंखों की रोशनी कम क्यों होती है Macular Degeneration धब्बेदार अंध पतन
धब्बेदार अंध पतन एक प्रकार का विकार होता है। जोकि आंखों की रेटिना को प्रभावित करता है।आंखों के पीछे प्रकाश संवेदनशील अस्तर होता है। जहां पर प्रकाश केद्रित होता है।वहां पर बिगड़ाव होता है जिसकी वजह से कई समस्याएं हो सकती हैं। जैसे पढ़ने मे समस्या हो सकती है। इसके अलावा देखने मे समस्या होने लगती है।इसको गैर-एक्सुडेटिव या सूखा के नाम से जाना जाता है। जिससे आंखों की रोशनी धीरे धीरे कम होती है।
इसके अलावा गम्भीर द्रष्टि हानी असामान्य रक्त वाहिकाएं मैक्युला और रिसाव द्रव और रक्त के नीचे विकसित होती हैं।
आंखों की रोशनी कम होने के दोनो स्वरूप एक्सुडेटिव और गैर-एक्सुडेटिव उम्र से जुड़े हुए हैं। और अधिकांश रूप से 50 से ज्यादा उम्र के लोग इनका शिकार होते हैं।हाल के अध्ययनों का अनुमान है कि 1.6 मिलियन से अधिक पुराने अमेरिकियों में यह समस्या मौजूद है।
हालांकि यह रोग क्यों होते हैं? इसके कारण अभी तक अज्ञात हैं लेकिन फिर भी यह अनुमान लगाया जाता है कि धुम्रपान , पोषण संबंधित समस्या और स्टारगार्ड मैक्यूलर डिस्ट्रॉफी नामक मैक्युलर पीढ़ी का एक किशोर भी इस समस्या का शिकार हो सकता है।
वैसे यह बीमारी तब होती है जब मैक्युला के अंदर बदलाव होता है। मैक्युला रेटिना का एक छोटा हिस्सा होता है। जोकि आंखे पीछे स्थिति होता है।जैसा कि हम आपको उपर बता चुके हैं यह दो रूपों मे हो सकता है। जिसके अंदर दो रूपों में हो सकता है: “सूखा” (एट्रोफिक) और “गीला” (एक्सयूडेटिव) है।अधिकांश लोगों के अंदर इसका सूखा रूप होता है। वैसे इसके सूखे रूप का कोई ईलाज नहीं है लेकिन रिसर्च से यह पता चला है कि पर्याप्त विटामिन और आहार व धुम्रपान ना करने से लाभ होता है। इसके अलावा इसके गीले रूप के लिए दवाएं काम करती हैं।
इसके कुछ लक्षण हैं
- स्पष्ट रूपसे वस्तुओं को देखने मे समस्या होना
- वस्तुओं का आकार सही नहीं दिखाई देना
- द्रष्टि रंग का नुकसान
- और धीरे धीरे आंखों की रोशनी कम होना ।
2. आंखों की रोशनी कम होने के कारण – Cataracts मोतियाबिंद
आंखों की रोशनी कम होने के कारण के अंदर मोतियाबिंद भी आता है।मोतियाबिंद आंखों के अंदर विकसित होता है। और यह द्रष्टि के अंदर हस्तक्षेप करता है और जिसकी वजह से देखने मे समस्या होती है।मोतियाबिंद आमतौर पर 55 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के अदर विकसित होता है। लेकिन यह कभी कभी बच्चों के अंदर भी विकसित हो सकता है।लेंस रेटिना पर प्रकाश को केंद्रित करता है, जो मस्तिष्क को ऑप्टिक तंत्रिका के माध्यम से छवि भेजता है। लेकिन यदि मोतियाबिंद हो जाता है तो प्रकाश भिखर जाता है।जिससे लेंस प्रकाश को सही से केंद्रित नहीं कर पाता है। जिससे द्रष्टि हानि होती है।
लेंस ज्यादातर प्रोटिन और पानी से बना होता है।मोतियाबिंद आमतौर पर धीरे धीरे बनता है। मोतियाबिंद के कुछ लक्षण होते हैं। जिनमे से कुछ निम्न लिखित होते हैं।
- धुंधली द्रष्टि होना
- रंगों की तीव्रता मे बदलाव होना ।
- रात मे देखने मे समस्या होना ।
- ड्राइवरिंग करने मे समस्या ।
वैसे मोतियाबिंद को रोकने का कोई उपचार नहीं है। यदि कोई इसको पहचान लेता है तो इसका कुछ किया जा सकता है। वैसे मोतियाबिंद कई प्रकार का होता है।
आपको बतादें कि हमारी आंख का लेंस एक प्याज की परतों की तरह होता है। और इसकी उपरी परत को कैप्सूल कहते हैं।उसके बाद की परत को कोर्टेक्स कहा जाता है।इन क्षेत्रों के अंदर किसी भी जगह पर मोतियाबिंद विकसित हो सकता है।
- एक परमाणु मोतियाबिंद के अंदर नाभिक पूरा काला पड़ जाता है।जो पीले और कभी कभी भूरे रंग के अंदर बदल जाता है।
- एक कॉर्टिकल मोतियाबिंद नाभिक के आस पास के क्षेत्र को प्रभावित करता है।
- लेंस की परत मे एक पश्च-आवरणीय मोतियाबिंद भी हो सकता है।
वैसे मोतियाबिंद के विकसित होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। लेकिन उम्र के साथ आंख के अंदर होने वाले बदलाव की वजह से मोतियाबिंद हो सकता है।जिन लोगों को मधुमेह होता है उनको मोतियाबिंद होने का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा ड्रग्स लेने वाले लोगों के अंदर मोतियाबिंद होने का खतरा अधिक होता है।
पोषण की कमी की वजह से भी मोतियाबिंद हो सकता है। खास कर विटामिन सी, विटामिन ई और कैरोटीनॉयड की कमी से मोतियाबिंद हो सकता है। इन सबके अलावा एक और मोतियाबिंद होने का कारण है पराबैंगनी किरणों से । दोस्तों आज से करीब 50 साल पहले लोगों को आंखों के विकार कम थे । लेकिन आज तेजी से आंखों के विकारों की समस्या बढ़ रही है। इसकी वजह पराबैंगनी किरणें भी हैं।
आंखों की रोशनी कम होने के कारण मे मोतियाबिंद दूसरा बड़ा कारण है।
3. आंखों की रोशनी कम होती है Glaucoma ग्लूकोमा से
इस तरह से ग्लूकोमा भी आंखों की रोशनी कम होने के कारण मे से एक है। और बहुत से लोग पूरी दुनिया के अंदर इसके शिकार हो चुके हैं।
ग्लूकोमा ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाता है। जिससे स्थाई द्रष्टि हानि हो सकती है।मोतियाबिंद वाले लोगों के अंदर भी यह विकसित हो सकता है।ऑप्टिक नर्व लगभग 1 मिलियन तंत्रिका वाला एक बंडल होता है।आंख के अंदर जब द्रव्य का दबाव बढ जाता है तो जिससे तंत्रिका को नुकसान होता है। जिसके कारण मोतिया बिंद से आंखों की रोशनी जा सकती है।आंखों के अंदर उच्च दबाव वाले सभी लोगों के अंदर ग्लूकोमा विकसित नहीं करते हैं। वरन विशेष रूप से जब आंखों के अंदर का दबाव ऑप्टिक तंत्रिका के लिए अधिक हो जाता है तो ग्लूकोमा विकसित हो सकता है।
ग्लूकोमा से अंधापन विकसित करने मे अमेरिका के अंदर दूसरा सबसे बड़ा कारण माना जाता है।अक्सर 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के अंदर यह विकसित हो सकता है। लेकिन यह जन्मजात भी हो सकता है।इसके अलावा कॉर्निया का पतला होना ,आंखों मे सूजन और आंखों पर दबाव बढ़ाने वाली दवाओं के लेने से भी ग्लूकोमा विकसित हो सकता है।ग्लुकोमा का सबसे आम रूप होता है प्राथमिक ओपन-एंगल ग्लूकोमा जोकि धीरे धीरे विकसित होता है। लोगों को इसके बारे मे तब पता चलता है जबकि उनको दिखाई कम देने लग जाता है।प्रारम्भ के अंदर यह साइड विजन को प्रभावित करता है। लेकिन बाद मे यह अंधा पन भी पैदा कर सकता है।
तीव्र कोण-बंद मोतियाबिंद एक प्रकार का मोतियाबिंद होता है जो आंखों के अंदर दबाव बढ़ाने का कारण हो सकता है। इसके लक्षणों में आंखों में गंभीर दर्द, मतली, आंख में लालिमा, रोशनी के चारों ओर हॉगल या रंगीन छल्ले देखना और धुंधली दृष्टि शामिल हो सकती है। इसको फिल्हाल रोका नहीं जा सकता है ,लेकिन इसका निदान और उपचार जल्दी किया जाए तो इसको नियंत्रित किया जा सकता है।
और सबसे बड़ी बात तो यह है कि यदि ग्लूकोमा की वजह से एक बार आंखों की रोशनी चली गई तो फिर उसको किसी भी हाल के अंदर वापस नहीं लाया जा सकता है। इसी वजह से यह सुझाव दिया जाता है कि आंखों को समय समय पर चैक करवाते रहना चाहिए ।
ग्लूकोमा का पहले पता लगाना आसान नहीं होता है। क्योंकि इसका कोई सीधा संकेत नहीं होता है। लेकिन परीक्षण करके इसके बारे मे पता लगाया जा सकता है। अक्सर आप अपने शहर के आंखों के अस्पताल के अंदर जाते हैं , वहां पर सरकारी डॉक्टर कितना अच्छे से काम करते हैं यह तो आप जानते ही हैं।यदि डॉक्टर आपकी आंखों की जांच नहीं करते हैं तो फिर ग्लुकोमा का पता लगाना काफी मुश्किल हो जाता है।लेकिन कुछ परीक्षण ऐसे होते हैं। जिनकी मदद से ग्लूकोमा को आसानी से पता लगाया जा सकता है।
- ग्लूकोमा के बारे मे जानने के लिए रोगी का पूरा इतिहास जानना होगा और उसकी बिमारियों के बारे मे भी जानना होगा ।
- दृश्य तीक्ष्णता माप की मदद से ग्लूकोमा का पता लगाया जा सकता है।
- आंख के अंदर के दबाव को मापने से ग्लूकोमा का पता चल सकता है।
- कॉर्नियल मोटाई को मापने से भी ग्लुकोमा का पता लगाया जा सकता है। अक्सर पतले कॉर्नियल होने की स्थिति के अंदर ग्लूकोमा होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है।
- दृश्य क्षेत्र परीक्षण भी ग्लूकोमा का पता लगाने के लिए काफी आवश्यक होता है। इसके अंदर यह पता लगाया जाता है कि क्या द्रष्टि क्षेत्र ग्लूकोमा से प्रभावित हुआ है या नहीं ?
- आंख की रेटिना का मूल्यांकन किया जाता है। इस तरीके से भी ग्लूकोमा का पता लगाया जा सकता है।
- गोनोस्कोपी के अंदर आंखों के अंदर के कई क्षेत्रों को चैक किया जाता है।यह आंखों के अंदर तरल पदार्थ को चैक करता है। इसके अलावा आंखों के अंदर दबाव मे बदलाव की तलास करती है।तंत्रिका फाइबर की मोटाई को मापने मे भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
4.Diabetic Retinopathy मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी
आंखों की रोशनी कम होने के कारण मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी भी आती है।मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी उन लोगों के अंदर हो सकती है जोकि मधुमेह का शिकार हैं। मधुमेह से रेटिना को क्षति हो सकती है।आंख के पीछे संवेदनशील अस्त्र के अपर यह क्षति हो सकती है।मधुमेह हो जाने पर रक्त के अंदर बहुत अधिक चीनी की मात्रा होती है। इस वजह से आंखों सहित पूरे शरीर को नुकसान होता है।
समय के साथ मधुमेह छोटे रक्त वाहिनियों को नुकसान पहुंचाता है। जिसके अंदर रेटिना भी आती है।डायबिटिक रेटिनोपैथी तब हो जाता है। जबकि छोटे रक्त वहिनियां रक्त का रिसाव करने लग जाती हैं।और ऐसा होने से रेटिना के उत्तकों के अंदर सूजन आ जाता है। और आंखों की रोशनी कम हो जाती है।
जितने अधिक समय तक मधुमेह रहेगा डायबिटिक रेटिनोपैथी के विकसित होने का खतरा भी अधिक हो जाएगा ।इसके कई लक्षण होते हैं। जिनमे से कुछ लक्षण निम्न लिखित हैं।
- रात के अंदर कम दिखाई देना ।
- धब्बे से दिखाई देना ।
- धुंधला दिखाई देना
- केंद्र मे गोला दिखाई देना ।
जब रक्त के अंदर अधिक चीनी हो जाती है तो आंख के अंदर लेंस मे तरल पदार्थ जमा होने लग जाता है। जोकि लेंस की वक्रता को बदल देता है।जिससे देखने मे समस्या होने लग जाती है। हालांकि यदि आप एक बार रक्त के अंदर शर्करा के स्तर को नियंत्रित कर लेते हैं। तो उसके बाद अपने आप द्रष्टि के अंदर सुधार होने लग जाता है।डायबिटिक रेटिनोपैथी के शूरूआती स्थिति का पता नहीं चल पाता है। इस वजह से यह सलाह दी जाती है कि हर इंसान को साल के अंदर कम से कम दो बार आंखों की अच्छे से जांच करवानी चाहिए ताकि इसका पता चल सके ।
मधुमेह रेटिनोपैथी का उपचार कई तरीकों से किया जाता है।लीक होने वाली रक्त वाहिनियों को सिल कर उपचार किया जा सकता है।इसके अलावा सूजन को कम करने और नई रक्त वाहिनियों के गठन को रोकने के लिए आंखों के अंदर दवा को इंजेक्ट करने की आवश्यकता होती है।
इसके अलावा आंख के पीछे मौजूद तरल पदार्थ को बदले या फिर उसको हटाने के लिए शल्य चिकित्सा की आवश्यकता हो सकती है।मधुमेह संबंधित रेटिनोपैथी को कम करने के लिए कुछ टिप्स निम्न लिखित हैं।
- नियमित समय पर अपनी दवा लें
- नियमित रूप से व्यायाम करें ।
- शराब और धुम्रपान से बचें।
5.रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा Retinitis Pigmentosa
रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा भी आंखों की रोशनी कम होने के कारण हैं। इस बीमारी के बारे मे यह कहा जाता है कि यह विरासत मे मिली बिमारी होती है। जोकि हमारी आंखों के पीछले हिस्से के अंदर हल्के शंकु और छड़ को नुकसान पहुंचाती हैं। जिसकी वजह से हम रात के अंदर स्पष्ट देख पाते हैं। इसके लक्षण आमतौर पर बाल्यकाल के अंदर ही दिखाई देने लगते हैं। और सबसे पहला लक्षण रतौंधी होता है। उसके बाद का लक्षण साइड विजन की हानी होता है।
जैसे जैसे उनकी बीमारी बढ़ती जाती है। उनके अंदर देखने की समस्या अधिक हो जाती है। और वे कुर्सियों और दूसरी चीजों से टकराने लगते हैं।सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस बीमारी के विकसित होने मे लंबा समय लगता है और पूर्ण रूप से विकसित होने मे इसको कई साल लग जाते हैं।
वर्तमान मे इस समस्या का कोई भी ईलाज नहीं है लेकिन रिसर्च यह बताते हैं कि विटामिन ए और ल्यूटिन रोग की गति को धीमा कर सकता है। हालांकि इसको पूरी तरीके से रोका नहीं जा सकता है। यह बीमारी जीन के अंदर गड़बड़ी होने की वजह से होती है।
6.अंबोलिया Amblyopia
आंख का यह रोग आमतौर पर तब होता है , जब दोनों आंखों को सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इस रोग का वैसे कोई उपचार नहीं है। वरन इसका सीधा उपचार होता है जिसके अंदर रोगी को यह सीखाया जाता है कि दोनों आंखों का इस्तेमाल किस तरीके से किया जाना चाहिए। यह आमतौर पर 6 साल की उम्र से पहले ही विकसित हो जाता है।
7.रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी (ROP)
समय से पहले जन्मे बच्चों के अंदर रेटिनोपैथी होती है। यह महत्वपूर्ण नवजात अवधि के दौरान इनक्यूबेटरों में उच्च ऑक्सीजन के स्तर के कारण हो सकता है।
8.रेटिनल डिटैचमेंट
रेटिनल डिटैचमेंट के अंदर आंख की रोशनी कम होने के कारण कई हो सकते हैं।जैसे रेटिना अपनी जगह से अलग हो जाना ।आंख मे छेद ,आंख मे अघात , आंख मे टयूमर ,रक्त वाहिनी मे गड़बड़ी आदि हो सकते हैं। इन सभी समस्याओं का उपचार उपलब्ध है। जिसे अंदर आंखों की रोशनी को बहाल किया जा सकता है।
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This post was last modified on August 23, 2019