बालक आइंस्टीन जब 9 साल के थे तब तक वे ठीक से नहीं बोल पाते थे। एक बार की बात है बालक आइंस्टीन को उनके टीचर ने कहा…. तुम बताओ समाज क्या होता है।लेकिन आइंस्टीन उतर नहीं दे पाए तब उनके टीचर ने कहा … कल याद करके आना
कल फिर उनसे वही सवाल पूछा गया लेकिन आइंस्टीन हकलाकर टूटी फूटी भाषा के
अंदर टीचर को जवाब दिया। उनका जवाब सुनकर टीचर बहुत गुस्सा हो गए और बोले
एक तो तुम9 साल के होने को हो ठीक से बोल भी नहीं पा रहे हो और तुम्हारा दिमाग भी ढंग से काम नहीं कर रहा है।मैं सर्त लगा सकता हूं की तुम दिमाग से पैदल हो तुम कभी आगे नहीं बढ़ सकते।
लेकिन बालक आइंस्टीन ने उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया। और धीरे धीरे उनको स्कूल के अंदर बेइज्जत किया जाने लगा। लड़के भी उनका मजाक बनाते रहते थे। फिर एक दिन उनका एक टीचर mom केपास गयाऔर बोला.. आपका बच्चा पढाई के अंदर कामयाब नहीं हो सकता इसलिएआपसे मेरी यह गुजारीश है कि उसे
पढ़ने के लिएना भेजे क्योंकि वह मंद बुद्वी है। उनके माता पिता को इस बात से गहरा झटका लगा और उनकी मां ने कहा. नहीं मेरा बेटा मंदबुद्वी नहीं हो सकता आज से मैं इसे अपने घर पर पढ़ाउंगी ।और उस दिन के बात उनकी माता ने उनको खुद बढ़ाना शूरूकिया औरवे धीरे धीरे चीजे सीखने लगे।
उनकी रूचि गणित और विज्ञान के अंदर सबसे अधिक थी। यही वजह थी कि वे गणित केअंदर पढाई मे सदैव अव्वल रहे जबकि बाकी विषयों केअंदर एकदम से ठप पड़ गए।
हर तरफ उनको ताने सहन करने पड़े। नजाने कितनी कॉलेजों ने उनकोअयोग्य करार दिया किंतु अंत मे उन्होने जब सापेक्षता का सिद्वांत दिया तो उनको खूब प्रसिद्वी मिली और वो लोग जो आइंस्टीन को मंदबुद्वी तक कह दिया उनकी प्रतिभा के आगे सर झुकाने को मजबुर होगए ।
सिक्के के दोपहलू होते हैं
दोस्तों इससे हमे यह शिक्षा मिलती है कि सिक्के के दो पहलू होते हैं। यदि आप किसी व्यक्ति की केवल बुराई देखकर यह सोच लेते हैं कि वह आदमी सही नहीं है। तो यह आपकी नजर की समस्या है।आपको चाहिए कि हर इंसान के दोनों पक्ष देखने के बाद ही निर्णय लें। यदि हम आइंस्टीन की कमजोरियों को ही देखें तो आईस्टीन का दिमाग अन्य इंसानों की तुलना मे कमतर था । लेकिन उनकी अच्छाइयों को देखें तो इनसे यह पता चलता है कि वे काफी तेज और बुद्विमान थे । यह हो सकता है कि कोई इंसान किसी विशेष क्षेत्र के अंदर दक्ष हो तो उसे केवल उसी क्षेत्र के आधार पर आंके
मन मे हीन भावना न पालें खुद पर भरोसा रखें
आइंस्टीन को नजाने कितनी बाद दिमागी रूप से कमजोर कहा गया। अनेकों बार कॉलेजों ने उनका एडमिशन तक नहीं लिया । लेकिन उन्होंने कभी अपने आपको कमजोर नहीं समझा । अपने आपको हीन भावना से ग्रस्ति नहीं किया।
यदि आप किसे के कमजोर कहने से अपने आपको कमजोर मान लेते हैं तो आप बहुत बड़ी गलती पर हैं। क्योंकि लोगों का काम ताने मारना है। और ऐसे ही मारते रहेंगे । और आपका काम उनको एक कान से सुनना और दुसरे से निकाल देना है। दिल से लगाकर उनको नहीं रखना।
अपनी योग्यता को निखारते रहें
भले ही आइंस्टीन को सामाजिक विज्ञान के अंदर कुछ नहीं आता हो लेकिन गणीत के वे बादसाह थे । और निरंतर वे गणीत के अपने ज्ञान के विकास के अंदर लगे रहे । और अंत मे नये सिद्वांतों का प्रतिपादन कर सके । लोग भले ही आपको आपकी अन्य कमजोरियों की वजह से भला बुरा कहें ।
लेकिन आप के अंदर जो टैलेंट है। जिस चीज के आप अच्छे जानकार हैं। उसका इतना विकास करें की आपकी सारी कमजोरियां उसके आगे छुप जाएं । फिर देखिए कमाल वो ही लोग आपको सलाम ठोकेगें । ऐसा ही आइंस्टीन ने किया था। उनकी गणीतिए प्रतिभा की वजह से आज उनका पूरी दुनिया याद करती है।
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This post was last modified on March 7, 2024