पेराकास खोपड़ी Paracas skulls or Conehead skulls का नाम आपने अवश्य ही सुना होगा । यह एक अजीब प्रकार की खोपड़ी होती है। पेराकास खोपड़ी पीछले हिस्से से काफी लम्बी होती है। यानि खोपड़ी का पीछला हिस्सा अधिक लम्बा होता है। यह पाराकास संस्क्रति से जुड़ी हुई मानी जाती है । कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि इस संस्क्रति के लोग सर को रस्सी से बांध कर आवश्यकता से अधिक लम्बा कर देते हैं। जबकि कुछ वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि यह एलियन की खोपड़ी हो सकती है।
यह अजीब खोपड़ियां पेरू के दक्षिण तट के पास पिस्को प्रांत में एक साइट पर पेरू के पुरातत्वविद् जूलियो टेलो द्वारा 1 9 28 में खोजी गई थी। यहां पर एक पूराना कब्रिस्तान मिला है। जिस कब्रिस्तान के अंदर ऐसे 300 से अधिक लोगों को दफनाया गया है। जिनके सर का पीछला हिस्सा अधिक लम्बा है।
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कहां से आई इस प्रकार की रहस्य मय खोपड़ियां
वैज्ञानिकों के लिए इस प्रकार की रहस्यमय खोपड़ियों के बारे मे समझा पाना मुश्किल हो रहा है। फिर भी कुछ वैज्ञानिक बताते हैं कि पाराकास संस्क्रति के अंदर बच्चों के सर को मैन्यूअल स्प्रिंग आदि से इस प्रकार से लम्बा बनाया गया होगा । लेकिन इस धारण को साबित करने के लिए वैज्ञानिकों के पास प्रर्याप्त सबूत नहीं हैं। हालांकि कुछ ऐसे सबूत भी मिले हैं जिनमे कुछ लोग अपनी खोपड़ी को जन्म से ही धागे से बांधे रखते थे । लेकिन ऐसा करने से खोपड़ी फैल तो सकती है। लेकिन इतनी अधिक लम्बी नहीं हो सकती ।
DNA टेस्ट से result और भी रहस्यमय
एक तो कुछ वैज्ञानिक पहले से ही यह मान रहे थे कि यह अजीब प्रकार की खोपड़ी किसी ऐलियन की हो सकती हैं। वही 2014 के अंदर इन खोपड़ियों का वैज्ञानिकों ने डिएन टेस्ट किया तो पता चला कि यह खोपड़ियां 2000 साल पुरानी हैं और इनका DNA किसी भी इंसान से नहीं मिलता है।और अब तक ज्ञात किसी भी जीव से भी इनका DNA मैच नहीं खाता है।जुआन नेवरो, म्यूजियो आर्किओल्गोको पैराकास के मालिक और निदेशक हैं, जो 35 से अधिक पैराकास खोपड़ी का संग्रह रखते हैं । खोपड़ी का डीएनए टेस्ट करने के लिए तीन खोपड़ी चुनी गई। तीनों खोपड़ियों को अलग अलग प्रयोग शाला के अंदर भेजा गया था । इनमे से एक खोपड़ी 800 साल पूरानी भी है।
क्रानीयोसिनोस्टोसिस रोग तो नहीं इन खोपड़ियों के अंदर
यह एक अजीब प्रकार का रोग होता है जिसकी वजह से इंसान की खोपड़ी आवश्यकता से अधिक लम्बी हो जाती है। लेकिन इन खोपड़ियों के अंदर इस प्रकार के किसी भी रोग के नहीं मिलने का वैज्ञानिक दावा करते हैं। हांलाकि क्रानीयोसिनोस्टोसिस रोग के साथ कई बच्चे भारत मे भी जन्म ले चुके हैं।
किस की हैं यह रहस्यमय खोपड़ियां
वैज्ञानिकों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि यह खोपड़ियां किसकी हैं। लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं। कि इन खोपड़ियों वाले इंसान होमो सेपियन्स, नेएंडरथल्स और डेनिसोवों से बहुत अलग हैं। हो सकता है आज से कुछ हजार साल पहले एलियन धरती पर आएं हो और वो यहीं पर बस गए हों । यह भी हो सकता है कि हजारों साल पहले धरती पर कोई अलग ही मानव प्रजाति निवास करती थी । जोकि इंसानों से बहुत अलग हुआ करती थी । और उस प्रजाति का इंसानों से संपर्क नहीं था । जो किसी वजह से विलुप्त हो गई।
ऐसा भी हो सकता है कि उत्परिर्वतन की वजह से कोई नई प्रजाति पैदा हुई हो और बाद मे वह नष्ट हो गई हो । क्योंकि उत्परिर्वतन एक सतत चलने वाली पक्रिया है जो परिवर्तन वातावरण के अनूकुल होते हैं वे ही जीव धरती पर जिंदा रह पाते हैं। जबकि बाकी खत्म हो जाते हैं।
अभी और रिसर्च की आवश्यकता
कुछ वैज्ञानिक अभी भी इन खोपड़ियों के रहस्य को सुलझाने मे जुटे हुए हैं। वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि इन मानवों की खोपड़ी आवश्यकता से अधिक लम्बी कैसे हो गई । और क्या यह कोई दूसरी प्रजाति है।