इंद्र ने कर्ण से क्या भिक्षा मांगी कर्ण जिन्होंने स्वयं भगवान इंद्र से धनुष का उपयोग सीखा था। वह शक्तिशाली पंच-वर्त सहित विभिन्न प्रकार के बाणों का उपयोग करने में विशेषज्ञ था। कर्ण के धनुर्विद्या कौशल इतने दुर्जेय थे कि उसने अकेले ही राजा दुर्योधन सहित पचहत्तर राजाओं को एक ही दिन में हरा दिया। कर्ण एक महान योद्धा और रणनीतिकार भी थे।
कर्ण धनुर्विद्या के लिए एक प्राकृतिक प्रतिभा के साथ पैदा हुआ था और उसमें बड़ी दूरी से लक्ष्य भेदने की अद्भुत क्षमता थी। वह अविश्वसनीय रूप से मजबूत और तेज भी था, जिससे वह सेना के सबसे घातक योद्धाओं में से एक बन गया। कर्ण का कौशल इतना प्रभावशाली था कि भगवान परशुराम ने भी उसकी श्रेष्ठता को स्वीकार किया। कर्ण की वास्तविक माँ कुन्ती थीं और कर्ण और उनके छ: भाइयों के धर्मपिता महाराज पांडु थे। कर्ण के वास्तविक पिता भगवान सूर्य थे।आपको बतादें कि कर्ण जो था वह दुर्योधन का सबसे अच्छा मित्र था और यही कारण था कि उसे बाद मे यह पता चला कि उसकी माता कुंती है। लेकिन वह अपने भाइयों के साथ नहीं मिल सकता था और भले ही यह अधर्म का युद्ध था लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था । उसे दुर्योधन का साथ देना ही पड़ा । दोस्तों आपको पता ही होगा कि कर्ण को महादानवीर के नाम से जाना जाता है। इद्र को कर्ण ने ही अपने कवच और कुंडल दान मे दिये थे । आप इस बात को समझ सकते हैं।
कृष्ण कर्ण की शक्ति को भली भांति जानते थे और वे इस बात को भी अच्छी तरह से जानते थे कि जब तक कर्ण के पास कवच और कुंडल है कर्ण को कोई भी नहीं मार सकता है। और इसी वजह से उनको अर्जुन की चिंता भी सताने लगी थी। और कौरवों की सेना के अंदर कर्ण का नाम भी सबसे उपर आता था । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सही होगा ।उसके बाद इंद्र और कृष्ण ने मिलकर एक प्रकार की योजना बनाई और फिर कृष्ण ने इंद्र को ब्राह्मण के वेश मे कर्ण के पास जाने के लिए कहा और कर्ण रोजाना गरीबों को कुछ ना कुछ दान करते थे । और इंद्र अपने नकली रूप के अंदर कर्ण के पास गया तो कर्ण ने इंद्र से पूछा कि तुम क्या लेना चाहते हो तो तब ब्राह्मण वेश में इंद्र ने कहा कि महाराज में आपकी ख्याति की चर्चा सुनकर आया हूं। और आपको पहले वचन देना होगा कि मैं जो मांगूंगा आपको वो देना होगा । उसके बाद कर्ण ने हाथ मे जल को लेते हुए यह वचन दिया कि आप जो भी मांगेगें वही मैं दूंगा । और उसके बाद इंद्र ने कर्ण के कवच और कुंडल को मांग लिया । फिर क्या कर्ण कुछ भी नहीं कर सकता था उसने कवच और कुंडल को दान मे देदिया ।
और उसके बाद जब इंद्र ने कर्ण के कवच और कुंडल को लेकर भागने का मन बनाया । क्योंकि इंद्र नहीं चाहता था कि इसलियत का उनको पता चले लेकिन उसके बाद आकाशवाणी हुई और फिर इंद्र का रथ जमीन के अंदर धंस गया और कहा गया कि इंद्र तुमने अपने पुत्र अर्जुन को बचाने के लिए छलपूर्वक कवच और कुंडल को प्राप्त कर लिया । अब यह रथ यही धंस जाएगा और इसके अंदर तुम भी यहीं पर धंस जाओगे ।उसके बाद इंद्र ने कहा कि इस श्राप से बचने के लिए क्या करना होगा तो उसके बाद कहा गया कि जो तुमने लिया है उसकी बराबरी की वस्तु कर्ण को देनी होगी । और उसके बाद कर्ण इंद्र के वेष मे कर्ण के पास गए और उसके बाद कर्ण नें इंद्र को आने का कारण पूछा ।
उसके बाद इंद्र ने कर्ण से कहा कि वह उनसे कुछ भी मांग लें । बस कवच और कुंडल ना मांगे । लेकिन कर्ण ने कुछ भी मांगने से मना कर दिया । कर्ण ने कहा कि वह मांगता नहीं है। वह सिर्फ देता है। लेकिन इंद्र ने कहा कि वह बिना दिये यहां से जा नहीं सकता है। इसलिए कुछ भी मांगलें ।उसके बाद इंद्र ने व्रज शक्ति कर्ण को प्रदान की और कहा कि इसको तुम बस एक बार ही प्रयोग कर सकते हो और जिसके उपर भी आप इसको चला देंगे वह बच नहीं सकता है। चाहे कितना ही बड़ा क्यों ना । हो उसके बाद इंद्र वहां पर नहीं रूके और चले गए । उधर जब इसके बारे मे दुर्योधन को पता चला कि कर्ण के कवच और कुंडल नहीं रहे तो उसे काफी अधिक दुख भी हुआ था । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए।
कर्ण को मिले थे कई सारे श्राप
दोस्तों यदि हम कर्ण की बात करें तो आपको बतादें कि कर्ण को अपने जीवन कें अंदर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । कर्ण को अपने जीवन काल के अंदर कई तरह के श्राप भी मिले ।
एक बार की बात है गुरु परशुराम कर्ण की जंघा पर सिर रखकर विश्राम कर रहे थे । तो वहां पर किसी तरह का कोई बिच्छू आया और उसके बाद वह कर्ण को काटने लगा । लेकिन क्योंकि कर्ण नहीं चाहता था कि उसके गुरू की नींद टूटे तो उसके बाद जब गुरू जागे तो फिर काफी अधिक खून उन्होंने देखा ।
उसके बाद उनको गुरू ने कहा कि इतनी अधिक सहनशीलता को किसी क्षत्रिय के अंदर नहीं हो सकती है। और उसके बाद कर्ण को उनके गुरू ने शाप दिया कि उनकी दी हुई शिक्षा कर्ण को तब याद नहीं आएगी जब इसकी उसे जरूरत होगी ।
कर्ण की इसके अंदर कोई गलती नहीं थी और जो कर्ण था वह अपने गुरू से इतना ही बोला कि यदि कोई और शिष्य होता तो इस दौरान वह भी यही करता । उसके बाद गुरू को अपने श्राप पर काफी अधिक पछतावा हुआ और वे अपने श्राप को तो वापस नहीं ले सकते थे लेकिन कर्ण को एक विजय धनुष प्रदान किया और कहा कि यह धनूष उसकी मदद करेगा ।
और अन्य लोक कथाओं के अंदर यह का जाता है कि वह बिच्छू कोई और नहीं इंद्र ही बनकर आया था । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और आप इस बात को समझ सकते हैं।
परशुरामजी के आश्रम से जाने के पश्चात, कर्ण कुछ दिन तक यूं ही भटकता रहा । और उसके बाद कर्ण ने शब्दवेदी विधा को सीखा और उसके बाद एक दिन कर्ण वन के अंदर भटक रहा था तो उसके बाद उसने किसी जानवर को वनीय पशु समझा और शब्द बेदी बाण को चला दिया । जिससे कि एक गाय का बछड़ा मारा गया और उसके बाद गाय के मालिक ने कर्ण को श्राप दिया कि । जिस प्रकार से उसकी गाय का बछड़ा मरा है उसी प्रकार वह असहाय स्थिति के अंदर एक दिन मरेगा । और अंत मे कर्ण असहाय स्थिति के अंदर ही मरा था । आप इस बात को समझ सकते हैं।
इसके अलावा एक अन्य लोक कथा का भी उल्लेख मिलता है। इस लोक कथा के अनुसार एक बार कर्ण ने एक स्त्री को देखा जोकि एक स्थान पर बैठी रो रही थी तो कर्ण ने उसे रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि वह अपने घर घी लेकर जा रही थी तो उसके बाद वह घी जमीन पर गिर गया और उसकी वजह से उसकी सौतेली मां उसे बहुत अधिक पीटेगी । तो कर्ण ने उसे कहा कि वह उसे दूसरा घी लाकर देगा । लेकिन लड़की ने कहा कि वह दूसरा घी नहीं लेगी । और यही धी चाहिए । उसके बाद कर्ण ने नीचे पड़े घी को उठाया और मूठी के अंदर पिंचा तो उसे एक महिला के रोने की आवाज आई तो कर्ण ने अपनी मूठी के अंदर देखा तो यह धरती माता थी । धरती माता ने कर्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार से उसने उसे मूठी के अंदर बंद कर दिया है। एक दिन जब वह युद्ध के अंदर होगा तो वह भी उसका रथ का पहिया इस प्रकार से पकड़लेगी कि वह हिल नहीं सकेगा ।
और इस तरह से कर्ण को बहुत सारे श्राप मिले जिसकी वजह से ही कर्ण युद्ध के अंदर मारा गया । यदि कर्ण को इतने सारे श्राप नहीं मिले होते तो उसके बाद कर्ण युद्ध के अंदर नहीं मारा जाता । आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सही होगा ।
1.] कर्ण की माता कुंति और पिता सूर्य थे । उनका पालन एक रथ चलाने वाले ने किया था । इसी वजह से वे सूत पुत्र कहलाए । और उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जिनके वे अधिकारी थे।
[2.] द्रोपदी कर्ण को काफी पसंद करती थी। और कर्ण भी द्रोपदी को काफी पसंद करते थे । द्रोपदी कर्ण की तस्वीर भी अपने पास रखती थी। लेकिन स्वयंवर मे द्रोपदी ने कर्ण को इसलिए नहीं चुना क्योंकि वह सूत पुत्र था । इस वजह से द्रोपदी ने उसे ठुकरा दिया और तब कर्ण पांडुओं से काफी नाराज थे ।
[ 3] कुंति ने अविवाहित अवस्था के अंदर कर्ण को जन्म दिया था । समाज के डर से कर्ण को कुंति ने स्वीकार नहीं किया था ।
[ 4] कर्ण ने अपने पालहारों की इच्छाएं पूरी करने के लिए दो विवाह किए थे । एक सूत पूत्री रोशाली से किया था । और उनकी दूसरी पत्नी सुप्रिया थी । उनकी दोनों पत्नियों से उन्हें 9 पुत्र थे ।
[ 5] कर्ण के सभी पुत्र महाभारत के युद्व मे शामिल हुए थे जिनमेसे 8 वीर गति को प्राप्त हो गए थे ।
[ 6] कर्ण की मौत होने पर उनकी एक पत्नी रोशाली उन्हीं के साथ सति हो गई थी ।
[ 7] कर्ण की मौत के बाद जब पांडुओं को पता चला की कर्ण उनका ही सगा भाई है तब कर्ण के एक मात्र जीवित बचे बेटे
[ 8] कर्ण जब मौत कि सैया पर थे तब उन्होंने भगवान को अपने दांत देकर एक बार फिर अपनी दान वीरता का परिचय दिया था । तब भगवान ने कहा कि वह कोई भी वरदान मांग सकता है। तब कर्ण ने तीन वरदान मांगे थे । पहला था कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर हो जहां कोई पाप नहीं हुआ हो । और दूसरा भगवान अबकी बार
आप जन्म ले तो मेरे राज्य मे जन्म लें और मैं अगले जन्म से सूत पुत्र नहीं होना चाहता । तब भगवान ने उनका दाहसंस्कार अपने हाथ पर किया था क्योंकि धरती पर पाप रहित कोई जगह थी ही नहीं ।
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