आपने खोजी कुत्तों के बारे मे सुना होगा और देखा भी होगा । जब कहीं पर क्राईम होता है तो िक्रमिनल को तलाश करने मे खोजी कुत्तों का प्रयोग किया जाता है। यह कुत्ते कोई सामान्य कुत्ते नहीं होते हैं। इनको काम पर लगाने से पहले पूरी तरह से प्रशिक्षित किया जाता है। भारत के सीमा पास के ईलाकों के अंदर इस तरह के खोजी कुत्ते काफी उपयोगी होते हैं। क्योंकि वहां पर हर तरफ बम दबे होते हैं यह खोजी कुत्ते सूंघ कर बमों का पता लगा सकते हैं।
कुत्तों की गंध सूंघने की क्षमता हमारे से 50 गुना अधिक होती है। इसी लिये यह गंध के आधार पर अपराधी को पकड़वाने मे मदद करते हैं। एक कुत्ते के प्रशिक्षण के अंदर अमेरिका मे 8000 डॉलर का खर्च आता है।
कैसे दिया जाता है प्रशिक्षण
कुत्तों की खास नस्ल जैसे जर्मन शेफर्ड लेब्राडोर बुलडॉग बीगर्ल आदि नस्लों का प्रयोग किया जाता है। इन नस्लों के अंदर सीखने की क्षमता अधिक होती है। कुत्ते को बम की गंध पहचानने के लिये पहले असली विस्फोटों का प्रयोग किया जाता था किंतु अब नकली विस्फोटों का प्रयोग कुत्तों को प्रशिक्षण देने के लिये किया जाता है। कुत्तों को विस्फोटक पदार्थों को सुंघाया जाता है। और फिर उसी तरह के गंध वाले पदार्थों को तलास करना भी सिखाया जाता है।
यदि कुत्ता सही तरह से गंध को तलास कर पदार्थ की सही पहचान कर लेता है तो उसे पुरस्कार भी दिया जाता है। यदि वह अपने मकसद के अंदर कामयाब नहीं होता है । तो उसे दंड भी मिलता है। इस तरह के प्रशिक्षण के साथ ही कुतों को और भी बहुत कुछ समझाया जाता है। सेना के प्रयोग मे आने वाले कुत्ते काफी अच्छी तरह से प्रशिक्षित किये हुए होते हैं।
कैसे काम करते हैं यह कुत्ते
खोजी कुत्तों को जब अपराधी से जुड़ी कोई गंध सूंघाई जाती है। तो वह उस गंध के आधार पर अपराधी की पहचान करता है। जैसे एक कुत्ते को एक कपड़ा सूंघाया गया । वह कपड़े की गंध के आधार पर अपराधी की तलाश करने लग जाएगा । उस कपड़े मे जो गंध थी ।उसी तरह की गंध यदि किसी व्यक्ति की गंध उससे मिल जाती है तो खोजी कुत्ता भौंकने लग जाता है। इसी तरह से वह गंध के आधार पर यह तय करता है कि विस्फोटक पदार्थ कहां पर छिपे हुए हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि सेना को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती और वह कुत्ते की सूचना के आधार पर बम को डिफयूज कर देती है।