kumbhkaran ko kaise jalaya gaya कुंभकरण को जगाना कोई आसान काम नहीं था कुंभकरण को जगाने के लिए रावण ने कई पैतरे अपनाए थे । तब जाकर कुंभकरण जागे थे
कुंभकरण रावण का भाई था और उसे 6 महिने सोने और 6 महिने जागने का वरदान प्राप्त था। वैसे कुंभ करण दिल से अच्छा था । जब राम और रावण का युद्व हो रहा था उस समय जब रावण ने कुंभकरण को जगाया और इस बारे मे बताया तो कुंभकरण ने इस बात का विरोध भी किया था ।
लेकिन रावण ने उसकी कोई बात नहीं मानी और एक भाई होने की वजह से उसने भी रावण का ही साथ दिया था। एक स्टोरी के अनुसार रावण और कुंभकरण यज्ञ कर रहे थे । और वैसे भी इंद्र कुंभकरण से ईष्या करते थे । जब यज्ञ के अंदर बह्रमाजी प्रकट हुए तो उन्होने कुंभकरण को वरदान मांगने के लिए कहा । वे मांगना तो वे इंद्रासन चाहते थे लेकिन इंद्र के प्रकोप की वजह से उनके मुंह से इंद्रासन की जगह निंद्रासन निकल गया । और ब्रहमाजी तथास्तु कहकर चले गए बाद मे कुंभकरण को अपनी गलती का एहसास हुआ किंतु तब तक देर हो चुकी थी ।
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कुंभकरण को जगाना kumbhkaran ko kaise jalaya gaya
रामायण के अंदर जब राम और रावण का युद्व होता है तब रावण को कुंभकरण की आवश्यकता होती है। लेकिन तब कुंभकरण सो रहा होता है। ऐसी स्थिति के अंदर उसे जगाना अच्छा नहीं होता है और नही उसे जगाना कोई आसान काम था । लेकिन रावण को कुंभकरण की अति आश्यकता थी । सो उसने अपने कई सारे सैनिक लिए और चला गया कुंभकरण को जगाने के लिए । कुंभकरण का शरीर काफी विशाल था ।
और वे छोटे छोटे आदमी उसके सामने बोने नजर आते थे । सबसे पहले रावण ने अपने सैनिकों को बाजे की मदद से कुंभकरण को जगाने के लिए बोला । सैनिकों ने उसके कान के पास जितना सौर मचाना था मचालिया ।लेकिन कुंभकरण को कोई असर नहीं होता देख । रावण ने कुंभकरण कों जगाने के लिए नुकिले तीरों से उसपर वार करने का आदेस दिया । रावण का आदेस पाते ही सैनिक उस पर नुकिले तीरों से वार करने लगे ।
लेकिन कुंभकरण पर कोई असर नहीं हुआ । उसके बाद रावण ने सैनिकों को आदेस दिया कि वे एक लम्बा पत्थर लेकर आएं और कुंभकरण के उपर मारे उसके बाद सैनिकों ने कुंभकरण को जगाने के लिए हर तरीके से वार किये जोर जोर से वार किये किंतु कुंभकरण को कुछ भी असर नहीं होता देख रावण परेशान हो गया ।
उसके बाद रावण ने उसके मुंह पर पानी डालने की आज्ञा दी । सैनिक एक लम्बी सीढ़ी लाए और मटकों की मदद से कुंभकरण के मुंह पर पानी डालने लगे । सैनिकों ने कई घड़े उसके मुंह पर डाले किंतु कोई असर नहीं हुआ । थकहार कर रावण ने फिर कहा
हाथी की चिंघाड से जगाने का प्रयास करो । उसके बाद वहां पर एक हाथी लाया गया और कुंभकरण को जगाने का प्रयास किया गया । किंतु हाथी खुद कुंभकरण के सामने बोना दिख रहा था । वह भी कुंभकरण को जगाने मे कामयाब नहीं हो सका ।
उसके बाद रावण के पास एक ही विकल्प बचा था । उसने अपने सैनिकों को स्वादिष्ट पकवान लाने के लिए कहा । उसके बाद शीघ्र ही पकवान वहां पर लाए गए । और जैसे ही कुंभकरण की नाक के अंदर उन पकवानों की खूसबूगई वैसे ही उसकी आंखे खुल गई और वह उठ बैठकर पकवानों को खाने लगा ।
उसके बाद जैसे ही खाना समाप्त हुआ उनके एक भाई ने बताया की लंका पर बहुत बड़ा संकट आया है। लंका नगरी चारो ओर से घिर चुकी है। सुगी्रव की वानर सेना काफी ताकतवर है। उसके बाद कुंभकरण ने पूछा यह सब क्यों हो रहा है ?
तब उसे बताया गया कि राजा रावण ने अयोध्श्या के राजा राम की पत्नी को हर लिया है। इसी वजह से राम ने लंका पर आक्रमण कर दिया है। तब कुंभकरण बोले यह सब रावण ने बहुत गलत कर दिया है। उसे समझाया क्यों नहीं गया । यह हम सब के विनाश का कारण बनेंगा।
उसके बाद कुंभकरण राजा रावण से मिला । रावण ने उसको बताया कि राम ने उसे शस्त्र विहिन करके उसका अपमान किया और उसकी सैना के अनेक राक्षसों को मार डाला गया । व कि वह निहथ्य शत्रू पर कोई वार नहीं करता । अब तुम जाओ और अपने भाई के अपमान का बदला लो । हम सभी की आस तुम पर ही टिकी हुई है।
उसके बाद कुंभकरण ने रावण को समझाने की कोशिश की और कहा कि तुमने सीता का हरण करके बहुत गलत काम किया है राम भगवान का अवतार है। और उसके साथ लड़कर हम जीत भी नहीं सकते । और महाराज आपने सीता को लाकर अपने विनाश को बुलावा दिया है। सीता साक्षात देवी लक्ष्मी का ही रूप है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कुंभकरण परम विद्वान भी था । जिसे बहुत सी बातों के बारे मे पता था ।
कुंभकरण को वरदान की कहानी
एक बार कुंभकरण तपस्या में लगे थे और वर्षों तक भगवान ब्रह्मा की भक्ति की ओर अपना मन लगाया था। इस समय ब्रह्मा उनके सामने प्रकट हुए और उनसे वरदान मांगने का अनुरोध किया।
कुंभकरण ने ब्रह्मा से अत्यंत शक्तिशाली होने का वरदान मांगा था। ब्रह्मा ने उन्हें उसके विरुद्ध चेतावनी दी, क्योंकि ऐसा शक्तिशाली होना उनके लिए कठिनाईयों का कारण बन सकता है। लेकिन कुंभकरण ने अपनी इच्छा पर अड़े रहकर वह वरदान ग्रहण कर लिया।
कुंभकरण अब अत्यंत शक्तिशाली हो गए थे, लेकिन उन्हें उनके वरदान के दुरुपयोग का पता नहीं चला। राक्षसों के राजा रावण ने उनका उपयोग करने का फायदा उठाया और उन्हें सोते रखकर उनके समक्ष राम और लक्ष्मण को ले गया।
कुंभकरण का वध कैसे हुआ ?
राम ने उन्हें जंगल में लड़ाई में हरा दिया था। लेकिन रावण के सेनापति इंद्रजित ने कुंभकरण को जीवित करने के लिए उसको अश्वत्थ वृक्ष के नीचे ले जाकर उसकी नाभि काट दी थी।
जब राम के समक्ष कुंभकरण खड़ा हुआ, उन्होंने उसे पहचान लिया और उसे युद्ध करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन इस बार राम ने उन्हें उनके समझौते का संबोधन करते हुए कहा कि उन्होंने उनके बारे में अपनी भूमिका के अनुसार न्याय किया है और वह उनके विरोध में नहीं है। राम ने उन्हें धन्यवाद दिया और उन्हें सम्मान दिया।
कुंभकरण अब जानते थे कि उन्होंने गलती कर दी थी और उनका समय समाप्त हो गया था। उन्होंने राम से क्षमा मांगी और उन्हें स्वर्ग में जाने की अनुमति दी। इस तरह, कुंभकरण के वध का अंत हुआ और उनके पापों की क्षमा हुई।
जब इंद्र ने की थी कुंभकरण की बुद्धिभ्रष्ट
दोस्तों आपको बतादें कि कुंभकरण एक प्रकार का तपस्वी इंसान था । और इसके अनुसार जब कुंभकरण ने तपस्या करके ब्रह्रमा को प्रसन्न किया तो उसके बाद इंद्र को यह डर था कि कुंभकरण कहीं इंद्रासन ना मांग ले तो उसके बाद इंद्र ने उसकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया । उसके बाद क्या था कुंभकरण ने इंद्रासन की जगह पर निंद्रासन मांग लिया । उसके बाद से ही कुंभकरण 6 महिने सोता था और 6 महिने जागता था। वैसे देखा जाए तो राजा कुंभकरण का जीवन काफी अधिक जटिल था । वह राम से भी युद्ध नहीं करना चाहता था।
उसने अपने भाई रावण को यह संमझाया था कि वह राम से युद्ध ना करें । क्योंकि कुंभकरण यह जानता था कि यदि वह राम से युद्ध करेगा तो उसका ही नुकसान होगा । लेकिन उसके बाद भी रावण कहां मानने वाला था ?