आइए जानते हैं कैलाश पर्वत का रहस्य kailash parvat ka rahasya के बारे मे -कैलाश पर्वत तिब्बत के अंदर स्थित है जिसकी ऊंचाई 6638 मीटर है कहा जाता है कि भगवान शिव किस पर्वत पर निवास करते हैं और प्राचीन काल के अंदर कई ऋषि मुनियों ने पर तपस्या की है
कहा जाता है कि शंकराचार्य ने भी इसके आसपास अपना शरीर त्याग किया था
लेकिन इसका एक रहस्य अभी तक समझ के बाहर है काफी लोगों ने इस पर चढ़ने की कोशिश की है लेकिन अभी तक कोई भी सफल नहीं हो सका
1936 के अंदर रूस के एक कर्मचारी ने इस पर चढ़ने की कोशिश की तब उन्होंने
पाया की उनको भ्रम हो रहा है यह कभी इस पर चढ़ते और कभी उतर जाते इस वजह वह वापस लौट आए
उसके बाद एक और व्यक्ति ने इस पर चढ़ने की कोशिश की तो उसने पाया कि उसकी धड़कन कम अधिक हो रही है बताया जा रहा है कि वहां पर किसी अनजान वजहो से दिशा भ्रम होता है इसी वजह से पर्वतरोही ऊपर चलने में कामयाब नहीं होते और वहां दिशा सूचक यंत्र भी काम नहीं करता
कैलाश पर्वत के आसपास अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने बताया कि यहां पर एकअलौकिक ताकत का प्रवाह होता है
हालांकि अभी तक किसी को यह पता नहीं है कि कैलाश पर्वत पर चढ़ते वक्त दिशा भ्रम क्यों होता है इसी दिशा भ्रम की वजह से कई यात्री कैलाश पर्वत पर करने की इच्छा जाहिर नहीं करते जबकि माउंट एवरेस्ट कैलाश पर्वत से अधिक ऊंचा होने के बाद भी बहुत यात्री इस पर चढ़ चुके हैं
कहने को यह भी कहा जा रहा है ग्यारहवीं सदी के अंदर एक तिब्बती व्यक्ति पर चढ़ने में सफल हुआ था उसका नाम मिलारेपा था
शिव के पर्वत से जुड़े अनेक रहस्य है जिन पर अभी भी वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं लेकिन ऋषि मुनियों का मानना है कि भगवान की लीला को समझना इंसान के बस की बात नहीं है वैज्ञानिकों द्वारा किए गए रिसर्च के अनुसार दुनिया मे axis मूड नामक अवधि होती है यह आकाश और पृथ्वी का केंद्र बिंदु है जहां रहस्यमई शक्तियों का प्रवाह होता है कह जाता है
यहां पर गर्मियों के दिनों मे मर्द अंग आवाज भी सुनाई देती है और यदि कोई मानसरोवर के अंदर डुबकी लगा लेता है तो सुबह दूसरी लोक में पहुंच जाता है
कैशाल पर्वत पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षसताल झील हैं। यहीं से तीन नदियां निकलती हैं ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज , इन नदियों का हिंदु धर्म के अंदर बहुत अधिक महत्व है।अनेक पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने यहीं पर निर्वाण प्राप्त किया था।जैन धर्म में इस स्थान का बहुत महत्व है। इसी पर्वत पर श्री भरत स्वामी ने रत्नों के 72 जिनालय बनवाये थे।
कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है।ल्हा चू और झोंग चू के बीच ही कैलाश पर्वत है जो सदैव बर्फ से ढका रहता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई इसकी 108 परिक्रमा कर लेता है तो उसे सदैव जन्म मरण के चक्कर से मुक्ति मिल जाती है।
कैलाश-मानसरोवर जाने के अनेक मार्ग मौजूद हैं किंतु उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट, धारचूला, खेत, गर्ब्यांग,कालापानी, लिपूलेख, खिंड, तकलाकोट होकर जाने वाला मार्ग का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है क्योंकि यह काफी आसान है।यह भाग 544 किमी लंबा सरलकोट तक 70 किमी तक उंचाई है और आगे ढलान पड़ती है।यहीं पर अनेक आश्रम बने हुए हैं जहां पर यात्रियों को आराम करने की सुविधा है। तकलाकोट तिब्बत का पहला गांव है जहां पर हर साल बड़ा बाजार लगता है और लाखों लोग यहां पर आते हैं।
तकलाकोट से 40 किमी पर मंधाता पर्वत स्थित गुर्लला का दर्रा पड़ता है।यह दर्रा समाप्त होने के बाद तीर्थपुरी नामक स्थान आता है। यहीं पर गर्मपानी के झरने मौजूद हैं। इसके अलावा चूनखड़ी के टीले भी यहां पर देखने को मिलते हैं।कहा जाता है कि भस्मासुर ने यहीं पर तप भी किया था।इसके निकट ही गौरीकुंड है और यहां पर अनेक लामाओं के मठ बने हुए हैं।
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कैलाश पर्वत का रहस्य कैलास पर्वत पर महान योगियों का वास माना जाता है
दोस्तों ऐसे अनेक संत और योगी हुए हैं जिन्होंने कैलाश पर्वत पर जाकर तपस्या की है। इसी तरह का एक अनुभव एक योगी ने अपनी एक किताब के अंदर बताया कि जब वे सुक्ष्म शरीर को छोड़कर बाहर निकले तो कैलाश पर्वत पर उनको एक महान योगी मिले थे । जिससे उन्होंने बात भी की थी। यह एक कैलास पर्वत का रहस्य है कि आज भी यहां पर योगी अपने सूक्ष्म शरीर के अंदर मौजूद हो सकते हैं।
कैलाश पर्वत हिमालय के केद्र मे है
कैलाश पर्वत हिमालय के केद्र मे है । इसके एक और उत्तरी धुव्र मौजूद है तो दूसरी और दक्षिण धुव्र मौजूद है।इस प्रकार से कैलाश पर्वत बीच के अंदर आ जाता है ,जो इसका एक फैक्ट है।
कैलाश पर्वत का रहस्य सुनाई देती है ओम और डमरू की आवाज
कैलाश पर्वत पर जाने वाले लोगों ने यह दावा किया है कि यहां पर ओम की ध्वनी सुनाई देती है। हालांकि इस ध्वनी का रहस्य क्या है ? इस बारे मे कोई कुछ नहीं जान पाया है। लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार हवा जब बर्फ से टकराती है तो यह ध्वनी पैदा होती है। लेकिन योग के अनुसार ओम एक प्रकार का नाद है जो हमेशा गुंजता ही रहता है ।आपके अंदर भी ओम की ध्वनी हमेशा गुंजती है जिसको आप ध्यान के अंदर गहराई मे उतरकर सुन सकते हैं।
4 नदियां यहीं से निकलती हैं
आपको बतादें कि सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलज, और घाघरा यह सभी नदियां यहीं से निकलती हैं।कैलास मानसरोवर एक बड़ी झील है जो मीठे पानी की है। इसके अलावा यहां पर एक राक्षस झील भी है जो खारे पानी की सबसे बड़ी झीलों के अंदर आती है।
कैलाश पर्वत के पास हुआ करती थी कुबरे नगरी
वैसे तो कैलाश पर्वत का महत्व भगवान शिव की वजह से है।शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण के अंदर इस बारे मे उल्लेख मिलता है लेकिन ऐसा बना जाता है कि कैलाश पर्वत के पास ही कुबेर नगरी हुआ करती थी लेकिन अब इसके बारे मे कोई भी साक्ष्य मौजूद नहीं है।
कैलाश पर्वत की आक्रति पिरामिड के समान है
कैलाश पर्वत की आक्रति पिरामिड के समान होती है। जिसके बारे मे रामायण मे भी उल्लेख मिलता है। कैलाश को धरती का केंद्र बिंदु भी कहा जाता है। यही वह स्थान है जहां पर आकाश धरती से मिल जाता है। और यहां पर अलौकिक power का वास होता है।
आसमान मे लाइट चमकना
कैलाश पर्वत पर 7 अलग अलग प्रकार की लाइटे चमकती रहती है। इन लाइटों के बारे मे अभी भी रहस्य बना हुआ है। हालांकि नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार चुम्बकीय बल की वजह से ऐसा हो रहा है।
कस्तूरी मृग
कस्तूरी मृग भी रहता है यहां पर पाया जाता है। यह उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया मे पाया जाता है। कस्तूरी मृग की नाभी के अंदर कस्तूरी होती है। आपको बतादें कि कस्तूरी एक बहुत ही सुगंधित पदार्थ होता है। और इसका प्रयोग कई प्रकार की औषधियों को बनाने मे किया जाता है। कस्तूरी मृग की संख्या शिकार की वजह से तेजी से कम हो रही है।
कैलाश पर्वत का रहस्य येति मानव
कैलाश पर्वत पर येति का भी होने का जिक्र किया जाता है। येति एक ऐसा जीव होता है जो इंसानों की तरह ही चलता है और उसके पूरे शरीर पर बाल होते हैं। हालांकि अभी तक कोई भी वैज्ञानिक येति के होने की पुष्टि नहीं कर सका है। हालांकि इस संबंध मे वैज्ञानिकों ने अनेक प्रयास भी किये लेकिन कोई भी सबूत नहीं मिले हैं।लेकिन समय समय पर हिमालय के अंदर येति होने का अनेक लोगों ने दावा किया है। अब यह खोज का विषय है कि येति हिमालय के अंदर है या नहीं ?
कैलाश पर्वत पर कोई नहीं चढ़ सकता है
वैसे तो अब सरकार ने कैलाश पर्वत पर चढ़ने पर प्रतिबंध लगा रहा है।लेकिन इसके बारे मे यह कहा जाता है कि यहां पर कोई भी नहीं चढ़ सकता है। क्योंकि उपर चढ़ने पर दिशा भ्रम होने लग जाता है ऐसी स्थिति मे कैलाश पर्वत पर चढ़ना अपनी मौत को बुलावा देना है। लेकिन परंतु 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की थी। हालांकि उसने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया था। फिर भी आज भी यह एक रहस्य बना है ।
ऐसा नहीं है कि कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने की कोशिश नहीं की गई है लेकिन जानकारों का कहना है कि जब उन्होंने इस पर चढ़ने का प्रयास किया तो भयंकर बर्फबारी ने रस्ता रोक दिया था। इसके अलावा एक अन्य पर्वतरोही ने लिखा कि उसके लिए इस पर चढ़ना काफी असहज है।
कैलाश पर्वत के संबंध मे योगियों के विचार
जब पहले जैन तीर्थंकर ऋषैभदेव कैलाश पर्वत आए तो उनका उदेश्य था कि सारा ज्ञान समेट कर दुनिया को एक नया रस्ता दिखाएंगे । लेकिन कैलाश पर्वत पर आने के बाद उनको लगा की यहीं सब कुछ है।और उसके बाद उन्होंने इसी पर्वत के अंदर विलीन होने का फैसला कर लिया । एक बार जब आप इस पर्वत के संपर्क मे आते हैं तो आपको एक अलग ही प्रकार का एहसास होता है उसके बाद आप अपने छोटे मोटे लक्ष्यों को छोड़ देते हैं।यहां पर आकर कोई इंसान मौत की कामना नहीं करता है वरन ज्ञान प्राप्त कर सदा सदा के लिए अमर हो जाता है।
कैलाश पर्वत को खास कर वे लोग अधिक महत्व देते हैं ,जोकि अध्यात्मक से जुड़े हैं क्योंकि यह उनके लिए सीखने का बहुत ही अच्छा स्थान है। हालांकि अब लोग उतने अधिक सक्रिय नहीं दिखाई देते हैं लेकिन फिर भी कुछ समूह इस पर अभी भी काम कर रहे हैं।
हिंदु धर्म के अंदर कैलाश पर्वत का इसलिए भी अधिक महत्व है क्योंकि हम लोग इसको शिव का निवास स्थान के रूप मे इसको देखते हैं। हालांकि शिव यहां पर नहीं हैं लेकिन उनका ज्ञान आज भी यहां पर मौजूद है। उन्होंने अपने ज्ञान को यहीं पर संरक्षित किया था। यहीं पर उन्होंने सप्तऋषि को ज्ञान दिया था।
सदगुरू के अनुसार शिव के पास जो ज्ञान था उन्होंने उसको एक उर्जा के रूप मे कैलाश के अंदर संरक्षित कर दिया ।अगस्त्यमुनि, नयनमार जैसे योगियों ने भी अपने ज्ञान को यहीं पर संरक्षित कर दिया । यदि किसी के अंदर क्षमता है तो वह वहां पर जाकर इस ज्ञान को हाशिल कर सकता है। आमतौर पर होता यह है कि जब एक इंसान कोई ज्ञान हाशिल कर लेता है तो उस ज्ञान को दूसरों तक भेजना बहुत ही कठिन होता है।योग गुरूओं के अंदर जितनी क्षमताएं और ज्ञान था वे उसको स्थानान्तरित नहीं कर सके । कारण यह था कि उनको योग्य व्यक्ति ही नहीं मिला । और एक योग्य व्यक्ति को तैयार करना बहुत अधिक कठिन कार्य है।
कैलास मानसरोवर की यात्रा
कैलास मानसरोवर की यात्रा करने के लिए हर साल लाखों भगत जाते हैं और माता पार्वती और भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं।जैसा कि हमने आपको बताया कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने के दो रस्ते हैं। एक रस्ता तो भारत के उतराखंड से होकर जाता है लेकिन यहां से यात्रा करना बहुत अधिक कठिन होती है।उसके बाद एक अन्य रस्ता है जो नेपाल की राजधानी काठमांडू से होकर जाता है यह काफी आसान है।
कैलाश मानसरोवर की यात्रा का पहला दिन
आपको कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने के लिए सबसे पहले दिल्ली जाना होगा उसके बाद यहां पर आपका हेल्थचेकअप होगा उसके बाद आप काडमांडू जाएंगे यहां पर पशुपतिनाथ के दर्शन कर आगे की यात्रा के लिए निकलना होगा ।
यात्रा का दूसरा दिन
यात्रा के दूसरे दिन काठमांडू से यात्रा होती है। यहां पर आपके पासपार्ट और दूसरे कागजों की जांच चीनी अधिकारी करते हैं।उसके बाद आप आगे बढ़ते हैं तो पहला पड़ाव नायलम नामक स्थान आता है।यह तिब्बत के अंदर पड़ता है। यहां पर आप कुछ समय के लिए आराम कर सकते हैं।
यात्रा का तीसरा दिन
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उसके बाद अगले दिन आपको लगभग 250 किलोमीटर तक यात्रा करनी होती है। हालांकि इसके लिए आपको पैदल नहीं चलना होता है। गाड़ी की व्यवस्था होती है। और चारो ओर सन्नाटा होता है। अंधेरा होने के बाद आप सागा नामक एक स्थान पर पहुंचते हैं।
यात्रा का चोथा दिन
अब आपको सागा से प्रयाग पहुंचना होता है इसके लिए आपको 270 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है।इस सफर के अंदर आपको कम से कम 11 घंटे लग जाते हैं।तब प्रयाग पहुंचते हैं। यहीं पर आराम किया जाता है।
यात्रा का पांचवा दिन
पांचवे दिन आप कैलाश मानसरोवर झील तक पहुंच जाएंगे । यह झील देखने मे बहुत अधिक सुंदर है और यह झील लगभग 80 किलोमीटर के अंदर फैली हुई है जो काफी विशाल है।ऐसा माना जाता है कि मानसरोवर झील के अंदर भगवान विष्णु शेषनाग पर आराम करते हैं और उनके साथ मे देवी लक्ष्मी भी मौजूद है।
उसके बाद बहुत से लोगों के मन मे कैलाश की परिक्रमा करने की इच्छा होने लगती है। यहीं पर बेस कैंप भी मौजूद है। कैलाश पर्वत की परिक्रमा करना भी आसान नहीं होती है। क्योंकि यह 54 किलोमीटर है। यदि आप चाहें तो परिक्रमा पैदल ही कर सकते हैं या फिर घोड़े पर बैठ कर भी ऐसा कर सकते हैं। हालांकि कैलाश पर्वत की परिक्रमा करने मे भी काफी अच्छा लगता है क्योंकि यहां का वातावरण ही बहुत अधिक अदभुत होता है।
कैलाश पर्वत का छठा दिन
यहां पर आपको 19800 फिट की उंचाई पर जाना होगा । यहां पर आक्सिजन कम हो जाती है। तो जिन लोगों को सांस लेने मे समस्या होती है उनके लिए ऑक्सिजन सिलैंडरों की व्यवस्था होती है। मानसरोवर से तारचेन के लिए जाना होगा जो 40 किलोमीटर दूर है।
यहां का एहसास बहुत ही अच्छा होगा और यहां पर आप को ठंडी हवाएं लगेंगी और वातावरण बहुत अधिक मनमोहक होगा ।आपकी यात्रा बहुत अधिक सुखद होगी । यहीं पर आप गौरी कुंड के दर्शन करेंगे कहा जाता है कि माता पार्वति ने यहीं पर स्नान किया था। इस कुंड के जल के स्पर्श मात्र से ही सारे कष्ट नष्ट हो जाते हैं।
प्राचीन काल के अंदर अनेक संत लोग कैलाश पर साधना करते थे । इसका कारण यह है कि यहां पर एक अदभुत प्रकार की उर्जा मौजूद है। एक बार यदि आप ध्यान के अंदर बैठ जाते हैं तो उसके बाद आपकी आंखे नहीं खुलती हैं। इस प्रकार की शांति महसूस होती है कि वैसी शांति आपने आज तक कहीं पर भी महसूस नहीं की होगी ।
रूसी वैज्ञानिक ने माना कैलाश का रहस्य
कैलाश एक रहस्यमय पर्वत है। अब इस बात को वैज्ञानिक भी स्वीकार करने लगे हैं।एक रूसी वैज्ञानिक के अनुसार कैलाश पर्वत वास्तव में एक प्राचीन मानव निर्मित पिरामिड है, जो अनेक छोटे-छोटे पिरामिडों से घिरा हुआ है और यह गीजा पिरामिड जैसा ही है। उनके अनुसार यहां पर कई तरह की रहस्यमय चीजें होती रहती हैं।
- रूसी डॉक्टर एर्नस्ट मुल्दाशिफ ने लिखा कि साइबेरियाई पर्वतरोही जब कैलाश पर्वत पर चढ़ रहा था तो वह अचानक से बी बुढ़ा दिखाई देने लगा और बाद मे उसकी मौत हो गई। यह एकदम से अजीब है ।
- शम्बाला नामक एक रहस्यम नगरी के बारे मे भी यहीं पर है हिंदु लोग कपापा के नाम से इसको बुलाते हैं। माना जाता है कि यहां पर कई तपस्वी और संत महात्मा रहते हैं।
- मुल्दाशिफ़ ने रात के समय पत्थरों के गिरने की आवाज भी सुनी । उनके अनुसार ऐसा लग रहा था कि इस पर्वत के अंदर कोई रहता है हालांकि इस बारे मे कुछ भी सही सही पता नहीं चल पाया है।