Life के अंदर सब कुछ पाना इतना आसान नहीं होता है। और तब तो और भी hard बन जाता है जब अपने ही पीछे पड़ जाते हैं। hindi के अंदर एक कहावत है कि जब बाड़ की खेत को खाने लगे तो खेत बेचारा क्या करेगा ? उसका तो अंत होना निश्चित है। लेकिन जब खेत के अंदर बाड़ को पीछे धकेलने की ताकत है तो फिर उस खेत को कोई नहीं खा सकता । अशोक कपूर जी की story भी कुछ ऐसी है। उनके अपनों ने ही उनको zero पर लाकर खड़ा कर दिया । लेकिन अपने दमों पर उन्होंने साबित कर दिया की वे सबसे बड़ें हीरो हैं। तो दोस्तो आइए जानते हैं उनकी success story के बारे मे ।
अशोक एक उधोगपति family से पले बढ़े थे । उनके परिवार का 1889 मे ज्वैलरी का business था ।वे सोना कायो स्टेरिंग के मालिक भी हैं। सब कुछ सही चलता रहा । लेकिन जब सन 1993 के अंदर परिवार के बंटवारे की बात आई तो दोनों भाइयों के अंदर बिजनेस का बंटवारा भी हुआ और बिजनेस के महत्वपूर्ण हिस्से उनके भाई के हिस्से के अंदर आ गए । जिसकी वजह से अशोक काफी परेशान रहने लगे । वे दिन रात यही सोच रहे थे कि कैसे वे अपने खोए हुए बिजनेस को दुबारा अपने दमों पर खड़ा कर सकते हैं। उनकी रातों की नींद हराम हो गई।
पहले अशोक ने काफी लोगों के आगे मदद के लिए बोला लेकिन कहते हैं विपरित स्थितियों के अंदर कोई भी मदद नहीं करता है। उसके बाद कहीं से कोई मदद आते न देख अशोक ने अपने अनुभवों के आधार पर ही खुद की कम्पनी start की
सन 1994 के अंदर उन्होंने क्रष्णा मारूती लिमिटेड नामक कम्पनी र्स्टाट की । इस कम्पनी को मारूती सुजुकी को कार की सीट supply करनी थी । अशोक और उनके कर्मचारियों ने इस काम को पूरे जोश के साथ किया और धीरे धीरे उनको इसके good result भी मिलने लगे थे ।
उस समय बाजार भी उछाल पर था और इस मौके का फायदा अशोक को भी मिला देखते ही देखते उनकी कम्पनी कई और कम्पनियों को माल की supply करने लगी । जिससे उनको benefit भी मिलने लगा ।
आई अनेक समस्याएं
जिंदगी मे सफल होना इतना आसान भी नहीं होता है। सफलता पाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है कुर्बानी देनी पड़ती है। पहली साल 18 दिन लम्बी लेबर हड़ताल का भी उन्हें सामना करना पड़ा । वे 18 दिन लगातार कम्पनी मे दिन काटे । उनका मकसद था कि किसी तरह से मजदूर हड़ताल समाप्त हो जाए लेकिन हड़ताल को समाप्त करना आसान काम नहीं था । दूसरा सबसे बड़ा झटका उन्हें तब लगा जब 11 लाख की car सीट पैमाने से बाहर होने की वजह से reject हो गई।
लेकिन तब भी अशोक ने हार नहीं मानी और निरंतर अपने product की quality के अंदर improve करते रहे । वह दिन भी आ गया जब उनकी कम्पनी को quality के मामले मे एक नम्बर पर रखा गया और अशोक को सम्मानित किया गया । अब उनकी कम्पनी के अंदर कर्मचारियों की संख्या भी अधिक बढ़ चुकी थी ।
2005 के अंदर उन्हे मार्क ओटो नाम की कम्पनी को खरीद लिया और उसे संत क्रष्ण हनुमान मेटल्स का नाम दिया गया ।
इसके अलावा वे समाज कल्याण के कार्यों से भी जुड़े हुए हैं। उन्होंने अपने गांव नरसिंहगपुर के अंदर एक अस्पताल और अनाथआलय वैगरह का निर्माण कर रहे हैं।
दोस्तों हम आपको हर success story के अंत मे उसके सारांश को जरूर बताते हैं। और यह भी बताते हैं कि स्टोरी से क्या सीख मिलती है।
दोस्तों सोचो यदि अशोक कपूर उस वक्त जब उनके पास कुछ नहीं था तब यह मान बैठते कि उनकी किस्मत ही खराब है। और कोई भी प्रयास नहीं करते तो क्या वे आज सफल हो पाते ? लेकिन हारना उसे नहीं कहते जो हारकर भी प्रयास करता है। बल्कि हारना वह है जो हारने के बाद प्रयास करना ही बंद करदे ।
This post was last modified on May 4, 2024