गन्ने की खेती कैसे करें , गन्ना की जैविक खेती कैसे करें , गन्ना की उन्नत खेती कैसे करें , ganne ki kheti kaise ki jaati hai गन्ने का वैज्ञानिक नाम Saccharum officinarum होता है।गन्ना एक तरह की नगदी फसल है जिसकी मदद से चीन और गुड़ का निर्माण होता है।सबसे अधिक गन्ना ब्राजिल के अंदर होता है और भारत का गन्ना उत्पादन के मामले मे दूसरा स्थान है।दोस्तों भारत के अंदर तो प्राचीन काल से ही गन्ने से बने गुड़ का प्रयोग किया जाता है।ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल से ही घर मे आने वाले मेहमान को गुड़ की ढली भेंट कर उसका मुंह मीठा करवाया जाता था।
आज भी जब घर के अंदर शादी वैगरह होती है तो फिर गुड़ को ही बांटा जाता है। यह परम्परा चली आ रही है। जब हम मीठास की बात करते हैं तो गन्ना इसके अंदर आता है। गन्ने से ही चीनी और राब, शक्कर, खांड, बूरा, मिश्री आदि बनाई जाती है।वैसे चीनी आदि को प्राप्त करने के अन्य स्त्रोत हैं।वैसे भारत के अंदर ताड़ से भी गुड़ और शक्कर प्राप्त हो जाती है।
पश्चिम एशिया के देश खजूर की मदद से चीनी को तैयार करते हैं। वहीं बात करें यूरोप की तो यूरोप मे चुकंदर से चीनी को तैयार किया जाता है।इसके अलावा मार्केट के अंदर कृत्रिम चीनी भी उपलब्ध है जोकि सुगर फ्री होती है।जो कि मधुमेह रोगियों के लिए काफी फायदेमंद होती है।राजस्थान में पत्थर के कोल्हुओं का मिलना इस बात का संकेत है कि यहां पर गन्ने की खेती काफी प्राचीन काल से की जाती रही है।
पौधे 2-6 मीटर (6-20 फीट) लंबे होते हैं , जो सुक्रोज में समृद्ध, संयुक्त, रेशेदार डंठल के साथ होते हैं।गन्ने को ब्रॉजिल के अंदर ईंधन के तौर पर भी उगाया जाता है क्योंकि इसकी मदद से ऐथेनॉल का उत्पादन किया जाता है।उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया गया, गन्ना उत्पादन मात्रा के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी फसल है।2017 में 1.8 बिलियन टन गने का उत्पादन हुआ जिसके अंदर अकेले 40 फीसदी ब्राजिल के अंदर ही हुआ था।
गन्ना ऑस्ट्रोनेशियन और पापुआन लोगों की एक प्राचीन फसल थी । इसे ऑस्ट्रोनेशियाई नाविकों के माध्यम से प्रागैतिहासिक काल में पोलिनेशिया , द्वीप मेलानेशिया और मेडागास्कर में पेश किया गया था । और गन्ने को लगभग 1200 साल पहले ऑस्ट्रोनेशियन व्यापारियों ने इसको भारत और चीन के अंदर पेश किया था।व्यापारियों ने चीनी का व्यापार करना शूरू किया जोकि भारत के अंदर काफी महंगा मशाला के तौर पर माना जाता था। उसके बाद कैरेबियन, दक्षिण अमेरिकी, हिंद महासागर के अंदर गन्ने के बागान लगाये जाने लगे ।
गन्ना एक उष्णकटिबंधीय, बारहमासी घास होता है और गन्ना 10 से 13 फीट तक उच्चा जाता है।और इसका व्यास 2 इंच तक होता है।इसका 75 फीसदी हिस्सा पूरा डंठल ही होता है। एक परिपक्व डंठल आमतौर पर 11-16% फाइबर, 12-16% घुलनशील शर्करा, 2-3% नॉनशुगर कार्बोहाइड्रेट और 63-73% पानी से बना होता है।गन्ने के डंठल की औसत उपज 60-70 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। हालांकि यह कभी कभी 180 टन प्रति हैक्टर तक जा सकता है। गन्ना एक नगदी फसल है और इसका प्रयोग पशुओं के चारे के रूप मे भी किया जा सकता है।
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गन्ने की खेती कैसे करें गन्ने की खेती के लिए जलवायु
दोस्तों गन्ने के लिए गर्म जलवायु ही अच्छी मानी जाती है।हालांकि अलग अलग गन्ने कि किस्मों के लिए अलग अलग जलवायु होती है लेकिन कॉमन रूप से गर्म जलवायु अच्छी रहती है। और इसके लिए तापमान लगभग 25 डिग्री के आस पास होना चाहिए । यदि आप गन्ने की खेती करना चाहते हैं तो अपने क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से गन्ने की किस्म का चुनाव करना चाहिए ।
गन्ना की खेती कब की जाती है भूमी का चुनाव
दोस्तों गन्ने की फसल के लिए सही भूमी का चुनाव किया जाना चाहिए ।दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त होती है। इस मिट्टी के अंदर दो बार आड़ी और खड़ी जुताई करनी चाहिए । उसके बाद अक्टूबर माह के अंदर मिट्टी भूर भूरी होने के बाद पाटा चलाने के बाद मिट्टी को समतल करलें । और फरवरी और मार्च के अंदर गन्ने को उगाये और नलियों का अंतर दो फुट तक रखें । गन्ने को उगाने से पहले उच्छी तरह से उपचारित किया जाना चाहिए ।
गन्ने की बुआई का सही समय ganne ki kheti kaise ki jaati hai
दोस्तों गन्ने की बुआई का सही समय अक्टूबर – नवम्बर माह होता है।इसके अलावा बसंत कालिन गन्ना फरवरी मार्च के अंदर उगाया जाता है। ]
गन्ने की बुआई के लिए बिजोउपचार
दोस्तों गन्ने की बुआई के लिए सही तरीके से बिजोउपचार करने की आवश्यकता होती है। ताकि फसल सही तरीके से हो सके । सबसे पहले गन्ने के बीजों को बाविस्टन 100 ग्राम और मेलाथियान 300 मिली और उसके बाद 100 लिटर पानी के अंदर एक घोल मे इनको डालें अच्छी तरह से मिलाएं और फिर बिजों को उपचारित करें । यदि बीज की आत करें तो यह 60 से लेकर 70 किलो प्रति हेक्टर की आवश्यकता होती है आप अपनी जमीन के हिसाब से बीज का चुनाव कर सकते हैं।
गन्ने के लिए कुछ किस्में
दोस्तों गन्ने की कई किस्में आती हैं। और उन किस्मों मे से आपको अपने क्षेत्र के अनुसार सही किस्म का चुनाव करना पड़ता है। यदि आप सही किस्म का चुनाव कर पाते हैं तभी यह आपके लिए कोई फायदा प्रदान कर पाते हैं।
Co 89003
- Co 89003 गन्ना अधिक उपज देने वाला होता है।और Co 7314 और Co 775 के क्रास की मदद से इसको बनाया गया था।
- और इससे अधिक चीनी का उत्पादन होता है। यही कारण है कि अब इसकी खेती पंजाब और हरियाणा के अंदर भी की जाने लगी है।
- Co 89003 गन्ना लाल सड़न रोग के प्रति प्रतिरोधी होता है। हालांकि विल्ट रोग के प्रति अतिसंवेदनशील होता है।विल्ट से बचने के लिए दवा का छिड़काव किया जाना चाहिए ।
- यह काफी नरम होता है। इस वजह से इसको आसानी से चबाया जा सकता है।
Co 05011
- CoS 8436 और Co 89003 के क्रास की मदद से इसको बनाया गया है।यह एक अधिक उपज देने वाली किस्मों के अंदर आती है। यदि आप अधिक उपज चाहते हैं तो यह आपके लिए काफी फायदेमंद हो सकती है।
- Co 05011 की औसत गन्ना उपज 82.47 प्रति हेक्टर है।गन्ना से अच्छी चीनी का उत्पादन किया जा सकता है।
- इस किस्म के अंदर फाइबर सामग्री की बात करें तो यह 75 प्रतिशत तक होती है।और यह प्रजाति भी लाल सड़न रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है।
- Co 05011 सीधा और लंबा बढ़ने वाला होता है। यह बेलनाकार होता है। सूर्य के संपर्क मे आने से इसका रंग बैंगनी हो सकता है।इसकी कलियां गोल होती है।
- इस किस्म की खेती हरियाणा ,पंजाब और पश्चिम राजस्थान के अंदर की जाती है।व्यवसायिक द्रष्टि से यह खेती काफी फायदेमंद होती है।
Co 0237
- गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, करनाल में इसको बनाया गया था।
- हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी और मध्य यूपी, उत्तराखंड और राजस्थान के अंदर अब इसकी खेती की जाती है।
- इसके अंदर 12 फीसदी फाइबर होता है। इस गन्ने का गुड़ काफी अच्छा बनता है जोकि खाने मे काफी स्वादिष्ट भी होता है।
- इस गन्ने की उपज प्रति हेक्टर 71.33 तक होती है। और चीनी की उपज प्रति हेक्टर 9 तक होती है।
Co 0239
- गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, करनाल में इसको विकसित किया गया था।
- हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी और मध्य यूपी, उत्तराखंड और राजस्थान के अंदर इसकी खेती की जाती है।
- फाइबर सामग्री लगभग 12.79% होती है।
- इसका गुड़ काफी अच्छा होता है और खाने मे भी स्वादिष्ट होता है।
- इसके अलावा यह गन्ना लाल सड़न के प्रति प्रतिरोधी होता है।
- इसके अंदर भी गन्ने की उपज प्रति हेक्टर 79.23 तक होती है।
Co 0238
- CoLk 8102 x Co 775 के क्रास से इस नस्ल को बनाया गया है। यह एक अधिक उपज देने वाली नस्ल है।इसकी अब कई क्षेत्रों के अंदर खेती की जा रही है।
- यह लंबी और मध्यम आकार वाली किस्म होती है।यह खोखले पीठ से मुक्त होता है।
- गर्मी के महीनों के दौरान पत्ती की नोक का सूखना भी देखा जा सकता है लेकिन यह भी एक समस्या नहीं है।
- यह किस्म भी लाल सड़न प्रजातियों के विरूद्ध प्रतिरोधी होता है।जोकि एक फायदेमंद बात होती है।
- Co 0238 को CoS 8436 के लिए आवश्यक नाइट्रोजन की तुलना में कम नाइट्रोजन की जरूरत होती है जोकि एक अच्छी बात है।
- इस गन्ने की उपज प्रति हेक्टर अधिक होती है यह 81.08 है।
Co0118
- गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, करनाल में क्रॉस Co 8347 x Co 86011 से इसको विकसित किया गया था। और यह उच्च शर्करा वाली एक किस्म है।
- फाइबर सामग्री लगभग 12.78% होती है। और इसका गुड़ हल्का और पीले रंग का होता है।
- इसके अंदर प्रति हेक्टर गन्ने का उत्पादन 78.20 तक होता है।
- एक लंबी, मध्यम मोटी किस्म है, जो ग्रे बैंगनी बेलनाकार होती है। और इसकी कली का आकार अंडाकार होता है।
Co 98014
- Co 98014 किस्म गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, करनाल में क्रॉस Co 8316 x Co 8213 से विकसित किया गया है।
- हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी और मध्य यूपी, उत्तराखंड और राजस्थान राज्य के अंदर इसको खेती के लिए चुना गया है।
- और गर्गी के दिनों मे इसके पत्ती की नोक सूख जाती है। हालांकि यह किसी तरह का नुकसान नहीं करती है।
- फाइबर सामग्री लगभग 14% होती है। और इसका गुड़ भूरे रंग का होने की वजह से बी ग्रेड का होता है।
- यह किस्म कम उपजाउ मिट्टी और जिन स्थानों पर जल भराव होता है उन स्थानों पर यह काफी फायदेमंद होती है।
Co 7314
Co 7314 की उपज की बात करें तो यह 320-360
क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाती है। और इस नस्ल के अंदर कीटों का प्रकोप कम होता है और गुड के लिए यह किस्म काफी उपयोगी होती है।मध्य प्रदेश के लिए यह किस्म काफी उपयोगी होती है। क्योंकि वहां की जलवायु इसके अनुकूल है। यह एक शीघ्र 9 से 10 माह के अंदर पकने वाली फसलों मे आती है।
Co 7314
इस नस्ल की उपज प्रति हेक्टर 320-360 क्विंटल तक होती है।यह नस्ल भी गुड़ के लिए काफी अच्छी है। यह उत्तरी क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी होती है।
Co 671
इस नस्ल की उपज प्रति हेक्टर 320-360 क्विंटल तक होती है।यह नस्ल भी गुड़ के लिए काफी अच्छी है। यह उत्तरी क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी होती है।रेडराट निरोधक होती है यह ।यह भी एक 9 महिने के अंदर पकने वाली फसल होती है।
Co 6304
यह 12 से 14 माह के अंदर पकती है।इसकी उपज 380-400 क्वींटल प्रतिहेक्टर होती है।कीट प्रकोप कम, रेडराट व कंडुवा निरोधक होता है। और यह नस्ल मध्य प्रदेश के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होती है।यदि आप मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं तो यह आपके लिए काफी उपयोगी साबित हो सकती है।
Co 7318
Co 7318 भी 12 14 महिने के अंदर पकने वाली फसल होती है।उज्जैन के अंदर इसकी खेती की जाती है।कीट प्रकोप कम, रेडराट व कंडुवा निरोधक होता है।400-440 क्वींटल प्रति हेक्टर के हिसाब से इसका उत्पादन होता है।
Co 6217
360-400 क्वींटल प्रति हेक्टर यह होती है।12 14 महिने के अंदर पकने वाली फसल होती है।उज्जैन के अंदर इसकी खेती की जाती है।कीट प्रकोप कम, रेडराट व कंडुवा निरोधक होता है
Co 8209
9 -10 माह के अंदर यह पककर तैयार हो जाती है।इसका उत्पादन 360-400 क्वींटल प्रति हेक्टर होता है।उज्जैन के अंदर इसकी खेती की जाती है।कीट प्रकोप कम, रेडराट व कंडुवा निरोधक होता है
Co 7704
9 -10 माह के अंदर यह पककर तैयार हो जाती है।इसका उत्पादन 320-360 क्वींटल प्रति हेक्टर होता है।उज्जैन के अंदर इसकी खेती की जाती है।कीट प्रकोप कम, रेडराट व कंडुवा निरोधक होता है
Co 87008
9 -10 माह के अंदर यह पककर तैयार हो जाती है।इसका उत्पादन 320-360 क्वींटल प्रति हेक्टर होता है।उज्जैन के अंदर इसकी खेती की जाती है।कीट प्रकोप कम, रेडराट व कंडुवा निरोधक होता है
Co 87010
कीट प्रकोप कम होता है। और लाल सड़न व कडुवा रोग नहीं होता है।और यह उज्जेन के अंदर उगाया जाता है। इसी क्षेत्र के लिए यह बहुत अधिक उपयुक्त है।9 -10 माह के अंदर यह पककर तैयार हो जाती है।इसका उत्पादन 320-360 क्वींटल प्रति हेक्टर होता है
गन्ने की बुआई
दोस्तों गन्ने की बुआई नानी विधि से की जाती है। इसके अंदर हल से 90 सेमी पर कूड बनाये जाते हैं। और उसके अंदर दो से अधिक आंख वाले टुकड़े डाले जाते हैं। इस प्रयोग के अंदर 45 सेमी चौड़ी नाली का प्रयोग किया जाता है।कार्बेंन्डाजिम-2 ग्राम प्रति लीटर के घोल में आपको 20 मिनट ढककर रखना होगा उसके बाद इनको आप उपयोग मे ले सकते हैं।
उसके बाद या तो आप सिंचाई कर सकते हैं । इसके अलावा गन्ने के पास मे आप प्याज और लहसून दूसरी फसल उगा सकते हैं। जिससे कि गन्ने को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा और आपको मुनाफा भी अधिक हो जाएगा । कई लोग इसी तरह से करते भी हैं।
वसंत ऋतु में गरेडों की मेड़ों के दोनों ओर मूंग, उड़द भी आप लगा सकते हैं। यह भी आपके लिए काफी फायदेमंद होता है।
गन्ने को दी जाने वाली खाद
दोस्तों गन्ने को कई तरह की खाद आप दे सकते हैं।जोकि आपके लिए काफी फायदेमंद होती है जैसे कि 650 किलो यूरिया ,80 किलो स्फुर और 90 किलो पोटाश आपको प्रतिहेक्टर के हिसाब से देना होगा । इसके अलावा आप यूरिया के स्थान पर गोबर की खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं जोकि काफी फायदेमंद होता है। बाकी स्फुर और पोटाश को गन्ना बोने से पहले भी देना चाहिए ।और गन्ने के उपर हल्की मिट्टी चढ़ाते समय भी खाद को देना चाहिए ।
गन्ना फसल के लिये लगभग 50 कुन्टल गोबर खाद का प्रयोग बुआई के अंदर कर सकते हैं। गोबर की खाद का प्रयोग करने का कई सारे फायदे होते हैं जैसे कि गोबर की खाद जमीन के अंदर हवा और पानी मे संतुलन बनाए रखने का काम करती है। और मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ जाती है।
खरपतवार का नियंत्रण और गन्ने की निराई गुड़ाई
गन्ने की फसल के अंदर अच्छी तरह से नमी को बनाए रखने के लिए खरपतवार का नियंत्रण आवश्यक होता है। यदि खेत के अंदर बहुत अधिक खरपतवार होंगे तो वे मिट्टी की सारी नमी को सोख जाएंगे । और इससे गन्ने की फसल को अधिक नुकसान होगा ।
खरपतवार को नियंत्रित करने के दो तरीके हैं। एक तो आप कुर्पी आदि की मदद से खरपतवार को काट सकते हैं। लेकिन इस तरीके के अंदर समय बहुत अधिक लगता है। तो आपको चाहिए कि आप रासायनिक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं।खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए ।
खरपतवारों के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रति एकड़ 325 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें ।और इसक प्रयोग करने से पहले यह देख लें कि खेत मे नमी है या नहीं । क्योंकि बिना नमी की स्थिति मे यह काम नहीं करेंगे ।
सूखी पतियों को बिछाना
दोस्तों शर्दी के अंदर जो गन्ना बोया जाता है उसके अंदर सूखी पतियों को बिछाना जरूरी नहीं होता है। लेकिन ग्रीष्म ऋतु मे यदि आप चाहे तो सूखी पतियों को बिछा सकते हैं यदि आपके पास पानी की कमी है । गन्ने की सूखी पतियों को बिछाने से यह जमीन के अंदर नमी को बनाए रख पाती है।मैलाथियान 5 प्रतिशत को 25 किलो प्रति हेक्टर के हिसाब से छिड़काव भी करें ।वैसे सुखी पतियों को बिछाने के कई सारे फायदे होते हैं। यही पतियां बाद मे जब सड़ जाती हैं तो इनकी ही खाद बन जाती है।
गन्ने पर मिट्टी चढ़ाना
गन्ने की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना काफी आवश्यक होता है। यह गन्ने के विकास के लिए बहुत ही जरूरी होता है। इसके अलावा यह वर्षाकाल मे गन्ने को गिरने से बचाने के लिए भी उपयोगी होता है। गन्ने पर कई बार मिट्टी चढ़ाई जाती है।अक्टूबर – नवम्बर में बोई गई फसल को प्रथम मिट्टी फरवरी – मार्च में तथा अंतिम मिट्टी मई माह के अंदर चढ़ाया जाता है।
इसके अलावा गन्ने की पतियों को भी तीन बार बांधा जाता है। इसको बंधाई कहते हैं। पहली बंधाई 100 सेमी उंचाई पर होती है और उसके बाद दूसरी बंधाई 50 सेमी उंचाई पर की जाती है।
गन्ने के फसल की सिंचाई
दोस्तों गन्ने की फसल की सिंचाई सही ढंग से किया जाना आवश्यक होता है नहीं तो पैदावार पर काफी बुरा असर पड़ता है।इसलिए गन्ना उतनी ही जमीन पर उगायें जितना पानी आप उसे दे सकते हैं।गन्ने की फसल को 1500 से 1750 मिलीटर पानी की आवश्यकता गन्ने की फसल को होती है। और 15 से 20 दिन मे एक बार सिंचाई की जाती है।यदि आप गन्ने की फसल की सिंचाई कम करना चाहते हैं तो फिर आपको चाहिए कि आप गन्ने की सूखी पतियों को जमीन पर बिछाएं ।
गन्ने की फसल मे उर्वरक
दोस्तों गन्ने की फसल मे उर्वरक को सही तरीके से प्रयोग किया जाना चाहिए । यदि आप सही तरीके से उर्वरक का प्रयोग नहीं करते हैं तो इससे गन्ने के उत्पादन मे कमी आती है।
- सबसे पहले आपको मिट्टी का परीक्षण किया जाना चाहिए । और इससे आपको यह पता चल जाएगा कि आपके खेत की मिट्टी के अंदर कौनसे पोषक तत्वों की कमी है।
- नाइट्रोजन गन्ने के अंदर आवश्यक पोषक तत्वों के अंदर आता है।बेहतर उपज के लिए नाइट्रोजन 150 से 180 कि०ग्रा०/हेक्टर के हिसाब से डाला जाता है। बाकि आप पोटाश और फास्फोरस की कुछ मात्रा को बुआई से पहले डाल सकते हैं। और फिर बुआई के बाद प्रयोग कर सकते हैं।
- गन्ने की फसल के लिए भी हरी खाद काफी फायदेमंद होती है। यदि आप गन्ने के लिए हरी खाद का प्रयोग करते हैं तो इससे अधिकांश पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है।और हरी खाद को आप पहले ही गोबर और सड़ी गली पतियों से तैयार कर सकते हैं।
- इसके अलावा गन्ने के खेत मे कच्चे गोबर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे दिमक लग सकता है।
- प्रति एकड़ भूमि में 24 से 32 किलोग्राम फास्फोरस और 16 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करना चाहिए ।
गन्ने की पेंड़ी फसल
दोस्तों गन्ने की पेंडी फसल पर भी आपको ध्यान देना चाहिए ।यदि इसी पेडी फसल की भी सही तरीके से देखभाल की जाए तो इससे भी अच्छी उपज को प्राप्त किया जा सकता है।गन्ने की पेड़ी से काफी फायदा हो सकता है। जैसे कि आपको पता होगा कि गन्ने के बीज टुकड़ों से ही प्राप्त होते हैं और 3 बार गन्ने की पेडी फसल को प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि इससे अधिक पेड़ी फसल को लेना लाभदायक नहीं होता है।
गन्ने की फसल की कटाई
दोस्तों गन्ने की फसल की कटाई को सही तरीके से किया जाना चाहिए । और गन्ने को जमीन से सटाकर काटना चाहिए नहीं तो बाद मे नए गन्ने को सम्भालना मुश्किल हो जाएगा ।इसके अलावा उंचाई से काटने पर कीट लगने की संभावना भी अधिक हो जाती है।
गन्ने के अंदर लगने वाले कीट
दोस्तों गन्ने मे कई तरह के कीट लग सकते हैं उसकी रोकथाम करना जरूरी होता है। तो सबसे पहले आपको यह पता होना चाहिए कि गन्ने के अंदर कौन कौनसे कीट होते हैं जो लग सकते हैं ? इनके लक्षणों के आधार पर आप इनको आसानी से पहचान पाएंगे ।
तना छेदक (काईलो इन्फसकेटेलस)
यह इल्ली मुलायम तने को छेद करने के बाद इसके अंदर प्रवेश कर जाती है।वसंतकालीन और गर्मी के की बुआई मे इसका प्रकोप अधिक होता है।और इसके प्रभाव से पोई सूख जाती है। और इसके प्रकोप से गन्ने की उपज पर भी काफी बुरा असर पड़ता है।विकसित इल्ली 20-25 मि.मि तक लंबी होती है। और इसका रंग मटमैला होता है।और इसके उपर बैंगनी रंग की धारियां होती हैं।
- कार्बोफ्यूरान 3क्र को गन्ने की जड़ों मे डाल देना चाहिए जिससे कि आसानी से यह इल्ली नष्ट हो जाएगी ।
- इसके अलावा इस रोग से ग्रस्ति पौधों के काट कर निकाल दें। और दूसरा कल्ला आने के बाद सही आएगा।
- अण्डों के परजीवी ट्राईकोग्रामा किलोनिस को भी छोड़ा जा सकता है जोकि गन्ने को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और इल्ली के अंडों को नष्ट कर देंगे ।
दीमक (टरमाइट)
दीमक एक भूमी मे रहने वाला कीट होता है। यह कीट शुष्क जलवायु के अंदर रहता है और जहां पर सिंचाई की कमी होती है वहां पर यह अपना प्रभाव अधिक रखता है।सबसे पहले यह कीट गन्ने के अंकुरण को प्रभावित करता है।और उसके बाद यह मिट्टी की नली जैसी बनाता है और गन्ने को नष्ट करने लग जाता है। यह कीट आप दूसरी चीजों पर भी लगा हुआ देख सकते हैं और आपने देखा भी होगा । यह दीमक गन्ने को 50 फीसदी तक नुकसान पहुंचाता है।कार्य के मामले मे यह चिंटी जैसा होता है।लेकिन इसका रंग सफेद होता है।
क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी 5 लीटर प्रति हेक्टेयर के अंदर पौधे के पास डालें और उसके बाद सींचाई करें जिससे कि यह कीट आसानी से मर जाएगा या इसका प्रकोप कम हो जाएगा ।
व्हाईट ग्रब (कुंडल कीट)
कुंडल कीट को सफेद लट या फिर सफेद कीट के नाम से भी जानते हैं । इसकी वजह से फसल चौपट हो जाती है। और कभी कभी तो यह पूरी फसल को ही नष्ट कर डालता है।और कहीं कहीं पर इस कीट का प्रकोप हर साल नजर आ ही जाता है।
व्हाइट ग्रब गन्ने की फसल पर काफी नजर आता है। इसकी दो अवस्थाएं होती हैं। पहली आवस्था मे यह एक लार्वा होता है और दूसरी आवस्था मे पंख वाला कीट ।यह गन्ने की जड़ों को खा लेता है जिससे गन्ने का पौधा मर जाता है। और एडल्ट कीट गर्मी मे जमीन के अंदर छिपे होते हैं जैसे ही बारिश होती है वे जमीन से बाहर आ जाते हैं और उसके बाद निशेषच क्रिया को पूरा करते हैं।और फिर यह वापस जमीन के अंदर चले जाते हैं। और जमीन मे ही अंडे देते हैं। अंडों से लार्वा निकलता है।
1 मादा करीब 10-20 अंडे देती है. अंडों से 7 से 13 दिनों के बाद लार्वा निकलता है यह गन्ने की जड़ को खाना शूरू कर देता है। और यदि गन्ने के पौधे को उखाड़कर देखते हैं तो यह आसानी से नजर आ जाते हैं। गन्ने की जड़ खाने से पौधा सूखने लग जाता है और पीला पड़ जाता है। और इस कीट का प्रकोप खेत मे कच्ची गोबर की खाद डालने से भी होता है।
- दीमक ने जहां पर बिल बना रखें हैं उनको तलासें और बॉंबी के अंदर सल्फास डालकर रानी दीमक को नष्ट करने की कोशिश करें ।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत 400 मिली प्रति हेक्टेयर 1770 लीटर पानी में मिलाकर जमीन पर डालें। इससे फायदा होगा।
- इसके अलावा घूमते हुए कीटों को नष्ट करने के लिए एक घड़े के अंदर मक्का डालें और पूरे खेत के अंदर रखें। इसकी सड़न से दिमक आएंगी और जब अंदर काफी दिमक हो जाएं तो उनको जला दें। घड़े को गर्म करने से यह सारी नष्ट हो जाती हैं।
- गन्ने की फसल के आस पास नीम और जामुन आदि के पेड़ पर दीमक होती हैं। तो कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए ।
- खेत मे गहरी जुताई करने छोड़ने से भी जमीन के अंदर के कीट नष्ट हो जाते हैं।
- और कीट प्रतिरोधी फसल का इस्तेमाल करने से भी फायदा होता है।
चूसक कीट
चूसक कीट को पपडी कीट के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधे के उपर पपड़ी की तरह चिपका रहता है। और यह पौधे के उपर चिपकर उसका रस चूस लेता है जिससे कि पौधे को काफी भयंकर नुकसान होता है।यह पुरानी फसल मे अधिक होता है। और वर्षा होने पर यह अधिक फैल जाता है।
- इस कीट से बचने के लिए कीट मुक्त बीज का प्रयोग करें ।
- बीजोपचार के घोल में 1 मिली प्रति लीटर पानी के मेलाथियान का प्रयोग करना चाहिए ।
- क्लोरोपायरीफॉस 2 मि.ली./ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- गोमूत्र और नीम की पतियों के घोल को भी पौधों के उपर छिड़कने से काफी लाभ होता है।
सफेद मक्खी
दोस्तों यह सफेद रंग की होती है और पौधे का रस चूसती है।इस कीट के आगे चोंच जैसा होता है।इससे प्रभावित पौधों के पत्तों पर काले और पिल्ले धब्बे जैसे दिखाई देने लग जाते हैं। यह कीट एक तरह का पीले रंग का पदार्थ छोड़ता है।जिसके बाद फफूंद का विकास होता है जिससे कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है। और इस कीट का प्रकोप खास कर उन स्थानों पर होता है जहां पर जल निकासी की व्यवस्था सही तरीके से नहीं होती है।
- क्राईसोपर्ला के 2500 अण्डे जोकि बाजार मे उपलब्ध हैं पौधें की पतियों के उपर छोड़ दें।
- जल निकासी सही करें व नत्रजन की कमी न होने दें।
- पतियों के नीचे की तरफ इमिडाक्लोप्रिड 200 मिली. प्रति हेक्टेयर छिड़कें।
- इस रोग से ग्रस्ति यदि कुछ पौधे हो तो उनकी पतियों को नष्ट करदें ।
मिली बग कीट
दोस्तों अब भारत के अंदर भी मिली बग कीट अधिक देखने को मिला है।यह कीट काफी छोटा और अंडाकार होता है। रूई के समान होता है।यह गन्ने की पौधे और पतियों को मोम के समान एक अन्य पदार्थ से ढक लेता है।यह अपने मुख से पौधे के आवश्यक तत्वों को चूस लेता है जिससे पौधा मरने लग जाता है और उसे पोषण नहीं मिल पाता है।इसके अलावा यह कीट एक चिपचिपे पर्दाथ के रूप मे मल त्याग करता है जोकि चिंटियो को भी आकर्षित करता है।
इसके अलावा इस पदार्थ से काला फंफदी का विकास हो जाता है जिससे कि पौधे की प्रकाश संसलेषण की क्रिया बाधित हो जाती है।जिससे कि पौधे की पतियां सूख जाती हैं और पौधा पीला पड़ने लग जाता है।
इस रोग से ग्रस्ति होने के बाद पौधे की गुणवकता काफी खराब हो जाती है। और बेचने पर भी इसके अच्छे दाम नहीं मिल पाते हैं।
मिलीबग एक ऐसा कीट होता है जोकि सर्वभक्षी होता है। यह खरपतवार तक को नहीं छोड़ता है।आम ,पपीता केला नारियल अमरूद आदि सभी के उपर इसका प्रकोप होता है।
मिलीबग का सबसे अधिक प्रकोप अगस्त से नवंबर माह के बीच होता है।जब सर्दी का मौसम होता है तो मिलीबग पौधे की जड़ों मे छुपे रहते हैं।और मादा पौधे की छाल और पतियों और टहनियों पर देती हैं।और यह अंडे सफेद मोम जैसी संरचना से ढके रहते हैं।
और मिलबग का विकास चिंटियों के साथ भी होता है। चिंटिया इनके मधुरस के आस पास होने की वजह से दूसरे प्राकृति शिकारी इनके पास नहीं आ पाते हैं और इनके जीवन की रक्षा हो जाती है।
यदि हम बात करें मिली बग के नियंत्रण की तो इनके उपर सीधे कीटनाशकों का प्रभाव कम होता है क्योंकि इनके अंडे एक सफेद मधुरस से ढके होते हैं।
- खेत से सभी तरह के खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिए ।
- जुलाई से सिंतबर के मध्य क्लोरपायरिफास 50 ग्राम पर पौधे के अंदर छिड़के जिससे कि अंडे नष्ट हो जाएंगे ।
- जिन पौधों को यह रोग लग गया है उनको नष्ट कर देना चाहिए ।
- अंडों को नष्ट करने के लिए सिंचाई की जा सकती है।
- जिस पौधे पर मिलबग का प्रकोप हो हिलाना नहीं चाहिए । वरना अंडे इधर उधर बिखर सकते हैं।
- इसके अलावा फसल काटने के बाद खेत मे गहरी जुताई करना चाहिए ।
इसके अलावा मिलीबग को नियंत्रित करने के लिए इनके नैचुरल शत्रुओं का प्रयोग किया जाना चाहिए । जिससे कि यह कभी भी भी अधिक संख्या मे उपर नहीं उठ पाएंगे ।
इसके अंदर एनागाइनस कमाली ,एनागाइनस स्यूडोकोक्सी गेनू सोडिया इंडिका आदि का प्रयोग किया जा सकता है।इन कीटों की मादाए मिलीबग के शरीर के उपर अंडे देना शूरू कर देती हैं और जब अंडे फूट जाते हैं तो इनसे निकलने वाले कीट मिलीबग को ही खाना शूरू कर देते हैं।
वर्टिसिलियम लेकेनी को 5 ग्राम लीटर पानी के अंदर घोल कर पौधों के उपर इसका छिड़काव कर सकते हैं।
मिली बग को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक चीजों का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके अंदर सिंचाई के साथ क्लोरपायरफीस को एक लिटर प्रति हेक्टर के साथ छिड़काव कर सकते हैं।इसके अलावा डाईक्लोरवास को भी खेतों मे आप डिटर्जेंट मिलाकर प्रयोग मे ले सकते हैं।
शीर्ष तनाछेदक
यह कीट गन्ने के उपर से प्रवेश करने की वजह से इसको शीर्ष तनाछेदक के नाम से भी जाना जाता है।यह उपर की तरफ से खुली पतियों के अंदर प्रवेश कर जाता है और उसके बाद गोफ को नुकसान पहुंचाता है।
यह कीट गन्ने की फसल को 50 फीसदी तक नुकसान पहुंचा सकती है। मादा 300 से 400 अंडे देती है। और लगभग 7 दिन बाद मादा के अंडों से सूंडिया निकलती हैं जोकि गन्ने के अंदर प्रवेश कर जाती हैं।
यह पौधे को अंदर से खा कर अंदर से खोखला कर देता है।और यह सूडियां 3 सप्ताह तक फसल को नुकसान पहुंचाती हैं उसके बाद यह कृमिकोष की अवस्था मे चली जाती हैं फिर एक व्यस्क कीट बाहर निकलता है।
जैविक उपचार हेतु ट्राइकोग्रामा 50000 वयस्क प्रति हेक्ट के हिसाब से छोड़ सकते हैं। यह 15 से 20 दिन मे छोड़ते रहें।
400 लीटर पानी में 150 मिलीलीटर कोराजन 20 ई.सी मिला कर छिड़काव करें।
जड़ छेदक
जड़ छेदक कीट की खास बात यह होती है कि यह पौधे की जड़ों के अंदर से प्रवेश करता है और उसको नीचे से नष्ट करता जाता है।इससे प्रभावित पौधे की पतियां सूखने लग जाती हैं और इसके लक्षण बाहर से नहीं दिखाई देते हैं।इसकी इल्ली का रंग सफेद, सिर का रंग भूरा व पीठ पर कोई धारी नहीं होती है।इसके प्रकोप जिस पौधे मे हो जाता है उसके अंदर कल्ले नहीं फूटते हैं।
बुवाई के बाद और बुवाई के एक महीने के बाद दानेदार कार्बोफुरन 3% 33 किग्रा / हेक्टेयर में लागू करें या रोपण के 30, 90 व 150 दिनों के बाद फोरेट दानेदार कीटनाशक 10 किग्रा / हेक्टेयर का छिड़काव करें जिससे कि यह कीट नष्ट हो जाएगा
ट्राईकोग्रामा परजीवी कीट 3 लाख प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छोड़ सकते हैं। यह एक जैविक नियंत्रण है।
तना छेदक
तना छेदक का प्रकोप वर्षा के समय मे अधिक होता है। यह गन्ने को काफी नुकसान पहुंचाती हैं।पतियों के अंडे से निकलकर यह गन्ने के अंदर प्रवेश कर जाती हैं। पोरियों के छोटे छेद से यह बाहर निकलती हैं।
इस रोग से ग्रस्ति पौधे सूखने लग जाती है।और इससे की पौधे की गुणवकता मे कमी आती है।
कोटेशियाफेलियस इस इल्ली को नष्ट कर देता है। 500 प्रति हेक्टर के हिसाब से इसको छोड़ा जाना चाहिए ।
स्पर्श कीटनाशी क्लोरोपायरीफॉस/ क्विनालफॉस आदि का छिड़काव करें । और गन्ने को नीचे गिरने से बचाना चाहिए ।
सफेद ऊनी माहू
कम और मध्यम संक्रमण पौधों के लिए हानिकारक नहीं है।यह सिर्फ एक गन्ने पर ही प्रकोप नहीं करता है वरन 50 तरह के पौधों पर इसका प्रकोप हो सकता है।इस कीट के प्रकोप से पौधे की पतियां मूड जाती हैं और पौधे का विकास रूक जाता है।और पौधे की शक्ति के अंदर गिरावट देखने को मिलती है।
माहू के मधुरस से चिंटिया आकर्षित हो सकती हैं और माहू को विषाणू भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रसारित करते हैं।
माहू एक छोटे लंबे और मुलायम कीड़े होते हैं।इनके शरीर का आकार प्रतियों पर निर्भर करता है। यह आधा एम एम से लेकर 2 एमएम तक होता है।इनके शरीर के रंग की बात करें तो यह पीला ,भूरा और काला हो सकता है।
यह कीड़े पंखहीन से लेकर पंख वाले भी हो सकते हैं।यह छोटी पतियों की निचली सतह पर भोजन करते हैं।और पौधे के मुलायम उत्तकों को नष्ट कर देते हैं।गर्मी की शूरूआत होने पर इन कीटी की संख्या स्वाभाविक रूप से कम हो जाती है।
यदि हम इस कीट के जैविक नियंत्रण की बात करें तो पानी का छिड़काव करके भी हटाया जा सकता है। इसके अलावा नीम के तेल को 3 मिली को एक लिटर पानी मे मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।
थिआमेथोक्साम 25% डब्लूजी 12 ग्राम / पंप या ड्रिप के माध्यम से थिआमेथोक्साम 25% डब्ल्यूजी 500 ग्राम / एकड़ डालें
- खेत मे कीटनाशकों के प्रयोग को नियंत्रित करना जरूरी है ताकि फायदेमंद कीड़ों को नुकसान ना हो ।
- खेत के आस पास दूसरे पौंधों की संख्या को अधिक मात्रा मे रखने से भी फायदा होता है।
- संभव हो तो पौधों के चारों और जाल गलगाएं ।
- पिछली फसलों के पौधों के मलबे को हटा देना चाहिए ।
- संक्रमित पौधे को हटा देना चाहिए ।
चूहों का नियंत्रण करना
दोस्तों गन्ने की फसल के चूहे बहुत ही बड़े दूश्मन होते हैं। यदि आपके खेत के अंदर चूहे बहुत अधिक हो गए हैं तो फिर इनका इलाज करना बेहद ही जरूरी हो जाता है। वरना यह गन्ने की फसल को नीचे से कुतर कर नुकसान पहुंचाते हैं।
चूहों की रोकथाम के लिए सांप ,नेवले और उल्लू को ना मारें
अधिक चूहे होने की स्थिति मे सल्फास को चूहों के बिलो मे डालकर उनका मुंह बद करदें ।
इसके अलावा जिंक फास्फाईड का प्रयोग भी किया जा सकता है। चूहों को मारने के लिए ।
गन्ने के फायदे और नुकसान
गन्ने का जूस का सेवन तो आपने किया ही होगा ।गन्ने का जूस काफी फायदेमंद चीज होती है। यह गर्मी के दिनों मे ना केवल आपकी प्यास को बुझाता है वरन शरीर के अंदर ठंडक भी प्रदान करता है। और आजकल तो मार्केट के अंदर गन्ने का जूस काफी खूब बिकता है।
हमारे यहां पर कम से कम 20 रूपये के अंदर गन्ने का एक गिलास मिल जाता है। और गर्मियों मे गन्ने का एक गिलास पिलिया तो फिर काफी अच्छा एहसास होता है।
गन्ना काफी फायदेमंद होता है।इससे कई चीजें तो बनती ही हैं। इसके अलावा यह आपके शरीर को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है और बीमारियों से बचाने का काम करता है। गन्ना दांतों के लिए फायदेमंद तो होता ही है। इसके अलावा यह कैंसर को रोकने का काम भी करता है।
गन्ने मे पाये जाने वाले कुछ पोषक तत्व इस प्रकार से हैं।
Nutritional value per 100 grams | |
Energy | 242 kJ (58 kcal) |
Carbohydrates | 13.11 g |
Sugars | 12.85 g |
Dietary fiber | 0.56 g |
Fat | 0.40 |
Protein | 0.16 g |
Vitamins | Quantity %DV† |
Vitamin B6 | 31% 0.40 mg |
Folate (B9) | 11% 44.53 μg |
Vitamin C | 8% 6.73 mg |
Minerals | Quantity %DV† |
Calcium | 2% 18 mg |
Iron | 9% 1.12 mg |
Magnesium | 4% 13.03 mg |
Phosphorus | 3% 22.08 mg |
Potassium | 3% 150 mg |
Sodium | 0% 1.16 mg |
Zinc | 1% 0.14 mg |
ऊर्जा के लिए गन्ने के फायदे
जैसा कि दोस्तों आपको पता होगा कि शरीर को काम करने के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है और उर्जा कार्बोहाइड्रेट्स से मिलती है। गन्ना कार्बोहाइड्रेट्स का अच्छा स्त्रोत होता है। यदि आपको अधिक उर्जा की जरूरत है तो आपके लिए गन्ना काफी फायदेमंद हो सकता है।
यदि आप सुबह सुबह जिम जाते हैं या घूमने के लिए जाते हैं तो आने के बाद गन्ने का जूस पी सकते हैं। यह आपकी सेहत के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। हालांकि गन्ने का जूस का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए ।क्योंकि इसका अधिक सेवन नुकसान पहुंचाता है।
पीलिया के अंदर गन्ने के फायदे
दोस्तों यदि किसी को पीलिया की समस्या है तो उसके अंदर गन्ना काफी फायदेमंद हो सकता है।पीलिया तब होता है जब लिवर के अंदर समस्या आ जाती है। बिलीरुबिन के अधिक बढ़ने से होता है। हालांकि यदि आप किसी डॉक्टर की दवा का प्रयोग कर रहे हैं तो गन्ने के जूस का सेवन करने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें ।और उसके बाद ही गन्ने का सेवन करें। हालांकि यूनानी लोग यह मानते हैं कि गन्ने का जूस पीलिया से राहत प्रदान करता है।
कैंसर से बचाने मे गन्ने के फायदे
दोस्तों कैंसर से बचाने मे भी गन्ना काफी फायदेमंद होता है। गन्ने के अंदर एंटीऑक्सीडेंट गुण पाये जाते हैं जोकि कई तरह की कैंसर कोशिकाओं को रोकने मे काफी मदद करता है। वैसे कैंसर के बारे मे आप सभी अच्छी तरह से जानते ही होंगे कि कैंसर जब पहली स्टेज मे होती है तो उसको आसानी से रोका जा सकता है। लेकिन यदि पहली स्टेज से आगे बढ़ जाती है तो फिर इसको रोकना काफी कठिन होता है। वैसे आपको बतादें कि इसका किसी के पास कोई ईलाज नहीं है।
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है गन्ना
दोस्तों गन्ना शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम भी करता है। और आपको तो पता ही है कि रोग प्रतिरोधक क्षमता का शरीर मे होना बहुत ही आवश्यक होता है। यदि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाएगी तो फिर शरीर पर अनेक रोग हमला करेंगे । लेकिन यदि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होगी तो आप कम बीमार पड़ेंगे।
हेपाटोप्रोटेक्टिव और एंटीऑक्सीडेंट जैसे गुण गन्ने के अंदर होते हैं जोकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है।
बुखार के अंदर गन्ने के फायदे
दोस्तों बुखार के अंदर भी गन्ने के काफी फायदे होते हैं।यदि आपको बुखार आता है तो इसका मतलब यह है कि आपका शरीर किसी ना किसी बीमारी से लड़ने की कोशिश कर रहा होता है। यदि आपको बुखार है तो ठंडे गन्ने का रस नहीं पीना चाहिए ।हां गन्ने का रस पी सकते हैं। यह बुखार के अंदर आपके शरीर को एक तरह से उर्जा प्रदान करता है। जब शरीर को सबसे अधिक उर्जा की आवश्यकता होती है। वैसे भी बुखार के अंदर खाना पीना तो होता नहीं है।
लेकिन आपको यह बता दें कि बुखार के अंदर ठंडा गन्ने का जूस भूलकर भी नहीं पीना चाहिए । यदि आप ठंडा गन्ने का जूस पी लेते हैं तो आपकी समस्याएं कम होने की बजाय और अधिक बढ़ सकती है। यदि आप चाहें तो डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं।
गले की समस्याओं को कम करता है
दोस्तों गन्ने के जूस का एक फायदा यह है कि यह गले की समस्यओं को कम करने का काम भी करता है।यदि आपको गले के अंदर दर्द की समस्या है तो आप गन्ने के रस का सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा जुकाम वैगरह के अंदर यदि गला खराब हो जाता है तो भी गन्ने का जूस काफी फायदेमंद होता है। हालांकि अधिक ठंडा गन्ने का जूस ना पीयें नहीं तो फायदे की बजाय नुकसान हो जाएगा ।
यूवी किरणों से प्रोटेक्सन मे
दोस्तों जैसा कि आपको पता ही होगा कि मानव गतिविधियों की वजह से ओजोन परत के अंदर छेद तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि सूर्य की यूवी किरण सीधी धरती पर आरही हैं।त्वचा पर जब इन किरणों का प्रभाव होता है तो रोग उत्पन्न होते हैं। और इंसान समय से पहले ही बुढ़ा दिखने लग जाता है। गन्ने के जूस के अंदर एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जिसकी वजह से यह यूवी किरणों से प्रोटेक्सन करने का कार्य करता है।
मुंहासों के लिए गन्ने के फायदे
दोस्तों कुछ लोगों को मुंहासें बहुत अधिक परेशान करते हैं।और इन मुंहासों की वजह से चेहरे का सारा रूप ही बिगड़ जाता है।गन्ने के जूस के अंदर अल्फा हाइड्रॉक्सी एसिड जैसे तत्व होते हैं जोकि मुंहासों को दूर करने मे काफी उपयोगी साबित होते हैं।
गन्ने को चेहरे पर प्रयोग करने से पहले आपको कुछ गन्ने का रस लेना है और उसके अंदर मुल्लतानी मिट्टी को मिलाएं । उसके बाद उसका एक घोल बना लें । और इस घोल को अपने चेहरे पर लगालें ।लगभग 20 मिनट के बाद आपको अपना चेहरा धो लेना चाहिए । और यह प्रयोग सप्ताह मे कम से कम दो बार करना चाहिए ।
नाखुन के लिए गन्ने के फायदे
दोस्तों खूबसूरत नाखुन सबकी पहली पसंद होते हैं। यदि आप अपने नाखुन को खूबसूरत बनाना चाहते हैं तो आपको कैल्शियम और जरूरी मिनिरल की आवश्यकता होगी ।गन्ने के अंदर वे आवश्यक होते हैं जोकि आपके नाखुनों को खूबसूरत बनाने का काम करते हैं।
यूरिन की समस्याओं को दूर करता है गन्ना
दोस्तों कुछ लोगों को यूरिन की समस्याएं होती हैं।जैसे कि मूत्र का त्याग करते समय जलन और असहजता महसूस होती है।ऐसा मूत्र मार्ग के अंदर होने वाले संक्रमण की वजह से होता है। इसके लिए गन्ने का रस पीना चाहिए । यह काफी फायदेमंद चीज होती है।
घाव भरने मे गन्ने के फायदे
दोस्तों गन्ने के रस मे खास गुण होते हैं जोकि घाव भरने मे काफी उपयोगी भूमिका निभाते हैं।एंटीमाइक्रोबियल गुण गन्ने के अंदर होते हैं जोकि घाव भरने मे काफी उपयोगी साबित होते हैं। हालांकि आपको डॉक्टर की सलाह एक बार अवश्य ही लेनी चाहिए ।
कब्ज से राहत देता है गन्ना
दोस्तों कुछ लोगों को कब्ज की बहुत ही अधिक समस्या होती है। यदि आपको भी कब्ज की समस्या है तो गन्ने का रस इसके अंदर काफी फायदे मंद हो सकता है। और यह आपकी कब्ज को आसानी से दूर कर सकता है।इसके लिए आप गन्ने के रस का सेवन दिन मे दो बार करें ।ऐसा करने से कब्ज की परेशानी हल हो सकती है। कब्ज को दूर करने के लिए अधिक पानी को पीना चाहिए ।
भूख बढ़ाने के लिए गन्ने का प्रयोग
दोस्तों कुछ लोगों को भूख नहीं लगती है।और भूख नहीं लगने की वजह से शरीर काफी कमजोर होता चला जाता है। यदि आपको भी इसी तरह की समस्या है तो गन्ने का रस आपके लिए काफी फायदेमंद हो सकता है।गन्ने का रस आपकी भूख को बढ़ाने का काम करता है। इसके लिए गन्ने के रस को गर्म करें और एक उफान आने के बाद इसको किसी शीशी के अंदर बंद करके एक सप्ताह तक प्रयोग करें। इसकी खाने से भूख बढ़ जाती है ।यह एक बहुत ही साधारण उपाय है जोकि भूख की समस्या को आसानी से हल कर सकता है।
हिचकी को दूर करने मे गन्ने के फायदे
दोस्तों हिचकी वैसे तो किसी भी तरह की समस्या पैदा नहीं करती है लेकिन कई बार हिचकी भी काफी समस्या पैदा करने लग जाती है।जैसे कि हम किसी सर्वाजनिक स्थान पर गए होते हैं तो हिचकी आना काफी बुरा अनुभव होता है। इसको रोकने के लिए 20 मिली गन्ने के रस का सेवन करें ।जिससे कि हिचकी अपने आप ही रूक जाएगी । कुल मिलाकर यह आपकी हिचकी को रोकने का एक बेहतरीन उपाय हो सकता है।
वीर्य के अंदर बढ़ोतरी के लिए गन्ने का प्रयोग
दोस्तों वीर्य के अंदर बढ़ोतरी के लिए गन्ने के रस का प्रयोग किया जाना चाहिए ।2-4 ग्राम आंवला चूर्ण के साथ, गुड़ का सेवन करना चाहिए ।ऐसा करने से विर्य के अंदर काफी फायदा मिलता है।
यदि आपको यह समस्या है तेा घरेलू नुस्खें का प्रयोग कर सकते हैं। यह सबसे अधिक फायदेमंद चीज होती है।
आंखों की रोशनी मे गन्ने के फायदे
दोस्तों आजकल आप देख रहे हैं कि छोटे छोटे बच्चों की आंखों की रोशनी भी जा रही है और उनको चश्मा लग रही हैं।यदि आपको भी आंखों की समस्या है तो इसके अंदर गन्ने का रस काफी फायदेमंद होता है।गन्ने के रस को आप पी सकते हैं।इसके अलावा आप मिसरी के टुकड़े को जल मे घिंस कर आंखों पर लगाने से भी काफी आराम मिलता है।
सर्दी और जुकाम व खांसी के अंदर गन्ने के फायदे
दोस्तों सर्दी और जुकाम सबसे आम बीमारियां होती है। जिसकी वजह से हम काफी परेशान होते हैं। गन्ना इनके अंदर काफी फायदेमंद हो सकता है।10 ग्राम गुड़, 40 ग्राम दही, तथा 3 ग्राम मरिच चूर्ण आदि को मिलाएं और उसके बाद इसका सेवन सुबह शाम करें । ऐसा करने से आपको खांसी और जुकाम से काफी राहत मिलेगी ।
पेट फूलने की समस्या
दोस्तों पेट कई कारणों से फूलता है।यदि आपको भी पेट फूलने की समस्या है तो आप गन्ने के रस का सेवन कर सकते हैं। इसके सेवन करने का तरीका यह है कि आप सबसे पहले गन्ने के रस को गर्म करें और उसके बाद इसको ठंडा करके सेवन करें । इससे कि पेट फूलने की समस्या से आराम मिल जाएगा ।
गन्ने का सेवन पेट दर्द मे आराम देता है
दोस्तों यदि आपको पेट दर्द हो रहा है तो इसके अंदर गन्ना काफी फायदा दे सकता है।इसके लिए 5 लीटर गन्ने के रस को किसी बर्तन मे रखें और इसके उपर कपड़ा बांध कर इसको रखदें। उसके बाद एक सप्ताह तक रखें रहने दें ।उसके बाद 20 मिली रस के अंदर सेंधा नमक मिलाएं और फिर इसको गर्म करें फिर ठंडा करके इसका सेवन करेंगे तो पेट दर्द से राहत मिल सकती है।
इसके अलावा पेट दर्द की समस्या के लिए अजवाइन के साथ गुड़ का सेवन भी किया जा सकता है जोकि काफी फायदेमंद होता है।
नाक मे खून बहने से रोकता है
दोस्तों कई बार मामूली चोट लगने या किसी अन्य वजह से नाक के अंदर से खून निकलने लग जाता है। इसके लिए गन्ने का रस काफी फायदेमंद हो सकता है।इसके लिए गन्ने के रस को नाक मे डालने से नाक के अंदर से खून निकलना बंद हो जाता है।
घेंघा रोग
घेंघा रोग एक प्रकारी की बीमारी होती है। जिसके अंदर गला सूज जाता है और यह आयोडिन की कमी से होता है।यह रोग खास कर उन क्षेत्रों मे अधिक होता है जहां पर पानी मे आयोडिन नहीं होता है।यदि किसी को घेंघा रोग की समस्या है तो 2 से 4 ग्राम हरड चूर्ण का सेवन कर सकते हैं। और इसके बाद इसके उपर गन्ने का रस सेवन करना चाहिए यह काफी लाभकारी सिद्ध होता है।
स्तनों के अंदर दूध बढ़ाता है
जो महिलाएं मां बनी हैं उनको अपने शिशु के लिए दूध की बहुत अधिक आवश्यकता होती है।यदि कोई स्तन पान कराने वाली माताएं दूध की कमी महसूस करती हैं तो उनको गन्ने की 5 से 10 ग्राम जड़ को पीस कर उनका काढ़ा बना लेना चाहिए और उसके बाद इसका सेवन करना चाहिए । इसका सेवन काफी लाभदायक होता है।
ल्यूकोरिया रोग के अंदर गन्ने के फायदे
ल्यूकोरिया रोग स्ति्रयों के अंदर होने वाली बीमारी होती है। जिससे कि उनके अंदर सफेद पानी निकलता है। इन्फेक्शन होने पर स्राव पीले, हल्के नीले या हल्के लाल रंग का, और बहुत चिपचिपा एवं बदबूदार होता है।
यह किसी दूसरे रोग के लक्षण भी हो सकते हैं।और इस रोग से ग्रस्ति महिलाएं काफी कमजोर हो जाती हैं और इस रोग का समय पर ईलाज करना जरूरी होता है। इसके अंदर आपको एक ऐसी गुड़ की खाली बोरी लेनी है।जिसके अंदर कम से कम 1 साल तक गुड़ भरा हुआ हो उसके बाद इसकी भस्म बना लें और इसका सेवन रोजाना 1 ग्राम करें । यह काफी फायदेमंद साबित होगा ।
थकान को दूर करता है गन्ना
दोस्तों जैसा कि हमने आपको उपर बताया कि गन्ना आपको बहुत ही जल्दी उर्जा प्रदान करने का काम करता है। यदि आपको अधिक उर्जा चाहिए तो आप गन्ने के रस का सेवन कर सकते हैं। यह आपकी काम की थकान को मिटाता है और दिमाग को शांत करने का काम करता है।
पेचिश मे गन्ने के फायदे
दोस्तों पेचिश के अंदर भी गन्ने का रस काफी फायदेमंद होता है।पेचिश रोगी के अंदर खून के साथ मल आने की समस्या होती है।प्रवाहिका, पाचन तंत्र का रोग है जिसमें गम्भीर अतिसार (डायरिया) की शिकायत होती है और मल में रक्त एवं श्लेष्मा (mucus) आता है।
पेचिश का उपचार करने के लिए 20 से 40 मिली गन्ने के रस के अंदर अनार के रस को मिलाएं और उसके बाद इसका सेवन करें । जिससे कि आपको काफी लाभ होगा ।
पेचिश के सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं
- बार-बार मलत्याग
- मल में खून और म्यूकस आना
- कभी-कभी खून की उल्टी
- पेट में ऐंठन
- मल त्याग साफ नही होना
खूनी बवासीर में गन्ना का प्रयोग
दोस्तों बवासीर एक ऐसा रोग होता है जिसके अंदर मल के साथ खून आता है। आमतौर पर यह रोग अधिक मिर्च और तैलिय पदार्थ के खाने से होता है। आपको अधिक मिर्च और मैलिय पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए । हालांकि आप दूध और दही का सेवन कर सकते हैं। यह किसी भी तरह से आपके लिए हानिकारक नहीं हैं।इसके लिए गन्ना के रस मे मिट्टी को गिली करें और उसके बाद मस्सों पर लगाएं । इससे काफी फायदा मिलेगा ।
किडनी दर्द को दूर करता है
दोस्तों यदि किसी वजह से किडनी के अंदर दर्द होता है तो 11 ग्राम गुड़, और 500 मिग्रा बुझा हुआ चूना को मिलाकर एक गोली बनाएं और उसके बाद इसका सेवन करें । यदि दर्द अधिक हो रहा है तो दूसरी गोली का सेवन भी कर सकते हैं। यह किडनी दर्द के लिए काफी फायदेमंद होती है।
हर्ट के लिए गन्ने के फायदे
दोस्तों हर्ट के लिए भी गन्ना काफी फायदेमंद होता है। यदि आप गुड़ का सेवन करते हैं तो यह आपके लिए काफी फायदेमंद हो सकता है।हालांकि आप सीधे ही गन्ने का रस पी सकते हैं। यह भी काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।
विश्व मे गन्ने का उत्पादन
2018 में गन्ने का वैश्विक उत्पादन 1.91 बिलियन टन था,जिसके अंदर 39 फीसदी गन्ने का उत्पादन केवल ब्राजिल के अंदर होता था। उसके बाद 20 फीसदी गन्ने का उत्पादन भारत मे होता है बाकि चीन और दूसरे देशों के अंदर होता है।
2018 में गन्ना उत्पादन | |
देशों | उत्पादन (मिलियन टन ) |
ब्राज़िल | 746.8 |
भारत | 376.9 |
चीन | 108.1 |
थाईलैंड | 104.4 |
पाकिस्तान | 67.2 |
मेक्सिको | 56.8 |
कोलंबिया | 36.2 |
ग्वाटेमाला | 35.5 |
ऑस्ट्रेलिया | 33.5 |
संयुक्त राज्य अमेरिका | 31.3 |
दुनिया | 1,907 |
गन्ने की खोई
दोस्तों गन्ने से चीनी वैगरह के उत्पादन के बाद गन्ने का जो कचरा बच जाता है उसे खोई के नाम से जाना जाता है। प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष लगभग 55 टन शुष्क पदार्थ का उत्पादन होता है।इसको ईंधन के रूप मे काम मे लिया जा सकता है। और कागज बनाने मे इसका प्रयोग भी किया जा सकता है।गन्ना की खोई ब्राजिल और भारत व चीन के अंदर एक प्रचुर मात्रा मे उर्जा का स्त्रोत साबित हो सकती है।ब्राजील के अंदर गन्ना खोई 20 फीसदी उर्जा जरूरतों को पूरा कर सकती है।
गन्ने की खोई से बिजली का उत्पादन
दोस्तों गन्ने की खोई से बिजली का उत्पादन किया जा सकता है।कई देशों के अंदर जिवाश्म ईंधन की भारी कमी के चलते खोई से बिजली उत्पादन किया जाता है।खोई का प्रयोग भाप को बनाने के लिए किया जाता है।प्रति टन खोई में 100 kWh से अधिक बिजली का उत्पादन करती हैं। प्रति वर्ष एक अरब टन से अधिक गन्ने की कुल विश्व फसल के साथ, खोई से वैश्विक ऊर्जा क्षमता 100,000 GWh से अधिक है।प्रौद्योगिकी संयंत्रों को प्रति टन खोई से बिजली उत्पादन करने के लिए डिजाइन किया जा रहा है।
गन्ने से रस निकालने के बाद इसकी खोई का भी काफी बेहतर उपयोग किया जा रहा है जोकि गन्ने व्यवसायियों के लिए काफी बेहतर बात होगी ।
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