गरुड़ पुराण अध्याय 1 or गरुड़ पुराण अध्याय प्रथम के अंदर इंसान की मौत और किसी प्रकार से यमदूत उसके प्राण निकालते हैं उस बारे मे लिखा हुआ मिलता है। यदि आपको इस बारे मे थोड़ी भी जानकारी है तो आप यह जानते होंगे कि जब इंसान मरता है तो भंयकर यमके दूत इंसान के प्राण का हरण करने आते हैं। जिसके अनेक प्रूफ भी उपलब्ध हैं। हालांकि बहुत से लोगों को यह भी लग सकता है कि यह सब काल्पिनक है। लेकिन वो नहीं जानते हैं कि यह काल्पनिक है । क्योंकि चीजों को समझने की क्षमता सीमित होना कोई काल्पनिकता नहीं है। तो आइए जानते हैं कि गरुड़ पुराण अध्याय 1 के अंदर क्या दिया हुआ है।
धर्म ही जिसका सुद्रढ है और वेद जिसका तना है,जो प्राण रूपी शाखाओं से सम्रद्व है ,यज्ञ जिसका पुष्प है,मोक्ष जिसका फल है,ऐसे भगवान की जय हो ।।
सभी मुनी लोगों ने यज्ञ आदि को सम्पन्न करने के बाद भगवान से पूछ …. हे भगवान आपने सुख देने वाले मार्ग का वर्णन किया है। अब हम दुख देने वाले यममार्ग के बारे मे सुनना चाहते हैं।आप सांसारिक दुखों और आप इस लोक व परलोक के क्लेशों का यथावत वर्णन करने मे सक्षम हैं।
उसके बाद सूतजी बोले … तो सुनो मुनिवर मैं अत्यंत दुर्गम यममार्ग का वर्णन करता हूं । जो पुण्यात्माओं के लिए सुखद है तो बुरे लोगों के लिए बहुत अधिक दुखद है।
कदाचित् सुखमासीनं वैकुण्ठं श्रीहरिं गुरुम् । विनयावनतो भूत्वा पप्रच्छ विनतासुतः ॥ किसी समय वैकुण्ठमें सुखपूर्वक विराजमान परम गुरु श्रीहरिसे विनतापुत्र गरुडजीने विनयसे झुककर पूछा-॥ गरुड उवाच भक्तिमार्ग बहुविधः कथितो भवता मम । तथा च कथिता देव भक्तानां गतिरुत्तमा ॥ अधुना श्रोतुमिच्छामि यममार्ग भयंकरम् । त्वद्भक्तिविमुखानां च तत्रैव गमनं श्रुतम्॥ ॥ सुगमं भगवन्नाम जिह्वा च वशवर्तिनी । तथापि नरकं यान्ति धिग् धिगस्तु नराधमान्॥ ११॥ अतो मे भगवन् ब्रूहि पापिनां या गतिर्भवेत् । यममार्गस्य दुःखानि यथा ते प्राप्नुवन्ति हि॥ ॥
उसके बाद गरूड जी कहते हैं ………. हे भगवान आपने भक्ति मार्ग के बारे मे वर्णन किया है। और इसमे होने वाली गति का भी वर्णन किया है।अब हम भंयकर यममार्ग के बारे मे जानना चाहते हैं। हमने सुना है कि जो इंसान भगवान की भक्ति से विमुख हो जाते हैं उनकी दुर्गति होती है। और जो लोग भगवान का नाम नहीं लेते हैं। उनकी मरने के बाद गति नहीं होती है और ऐसे पापी लोग बार बार जन्म लेते हैं और बार बार मरते हैं। हे भगवान यममार्ग मे जो दुख प्राप्त होते हैं आप उनके बारे मे हमसे कहें ।
उसके बाद भगवान कहते हैं कि … हे मुनिवर सुनों मैं अब यममार्ग के बारे मे वर्णन कर्ता हूं जिसमे पापी लोग अथाह पिड़ा भोगते हैं और यह सुनना भी बहुत भयावह है।
ये हि पापरतास्ताक्ष्य॑ दयाधर्मविवर्जिताः । दुष्टसङ्गाश्च सच्छास्त्रसत्संगतिपराङ्मुखाः॥ १४॥
आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः । आसुरं भावमापन्ना दैवीसम्पद्विवर्जिताः॥ १५॥
अनेकचित्तविश्रान्ता मोहजालसमावृताः । प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ॥ १६॥
ये नरा ज्ञानशीलाश्च ते यान्ति परमां गतिम् । पापशीला नरा यान्ति दुःखेन यमयातनाम्॥ १७॥
पापिनामैहिकं दुःखं यथा भवति तच्छुणु । ततस्ते मरणं प्राप्य यथा गच्छन्ति यातनाम्॥ १८॥
जो प्राणी सदा पाप कर्म करते हैं , दया और धर्म का उनको कोई मतलब नहीं होता , दुष्ट लोगों की संगति मे रहते हैं,सतशास्त्र और सतसंग से विमुख हैं ,धन और मान से चूर हैं ,असूरी ताकतों को प्राप्त हैं।जिनका चित विषयों मे अटा हुआ है ,जो मोह जाल के अंदर फंसे हुए हैं ।और कामनाओं को भोगने मे लगे हैं ऐसे व्यक्ति नरक के अंदर गिरते हैं।पापियों को नरक मे यातनाएं दी जाती हैं और जो लोग अच्छे होते हैं उनको अच्छी गति मिलती है।
सुकृतं दुष्कृतं वाऽपि भुक्त्वा पूर्वं यथार्जितम् । कर्मयोगात् तदा तस्य कश्चिद् व्याधिः प्रजायते॥ १९॥
आधिव्याधिसमायुक्तं जीविताशासमुत्सुकम्। कालो बलीयानहिवदज्ञातः प्रतिपद्यते॥ २०॥
तत्राप्यजातनिर्वेदो म्रियमाणः स्वयम्भृतैः । जरयोपात्तवैरूप्यो मरणाभिमुखो गृहे॥ २१॥
आस्तेऽवमत्योपन्यस्तं गृहपाल इवाहरन् । आमयाव्यप्रदीप्ताग्निरल्पाहारोऽल्पचेष्टितः॥ २२॥
वायुनोत्क्रमतोत्तारः कफसंरुद्धनाडिकः । कासश्वासकृतायासः कण्ठे घुरघुरायते॥ २३॥
पुण्य और पापों के फलो को पूर्व मे भोगकर ,कर्म संबंध से उसे कोई शारीरिक या मानसिक रोग हो जाता है।मानसिक और शारीरिक रोग से युक्त और जीवन धारण करने की आशा के साथ । उस व्यक्ति की जानकारी के बिना ही सर्प की भांति बलवान काल उसके पास पहुंचता है ।
गरुड़ पुराण अध्याय 1 मे भगवान व्यक्ति की आशक्ति वर्णन करते हैं
मौत समीप हो जाने के बाद भी उसे वैराग्य नहीं होता है। उसने जिनका भरण पोषण किया था उन्हीं के द्वारा उसका भरण पोषण होता है।विक्रत शरीर वाला वह इंसान घर के अंदर अवमानना पूर्वक दी हुई वस्तुओं को कुत्ते की भांति खाता है।वह रोगी हो जाता है और उसकी आहार व सभी चेष्टाएं कम हो जाती हैं। प्राणवायु के बाहर निकलते ही आंखे झपकनी बंद हो जाती हैं। और नाड़ी भी रूक जाती है। इसके अलावा व्यक्ति के कंठ से शब्द निकलने बंद हो जाते हैं।
शयानः परिशोचद्भिः परिवीतः स्वबन्धुभिः । वाच्यमानोऽपि न ब्रूते कालपाशवशंगतः॥ २४॥ एवं कुटुम्बभरणे व्यापृतात्माऽजितेन्द्रियः। म्रियते रुदतां स्वानामुरुवेदनयास्तधीः॥ २५॥ तस्मिन्नन्तक्षणे ताक्ष्यं दैवी दूष्टिः प्रजायते। एकीभूतं जगत्सर्वं न किंचिद्क्तुमीहते॥ २६॥ विकलेन्द्रियसंघाते चैतन्ये जडतां गते। प्रचलन्ति ततः प्राणा याम्यैर्निकटवर्तिभिः॥ २७॥ स्वस्थानाच्चलिते श्वासे कल्पाख्यो ह्यातुरक्षणः । शतवृश्चिकदंष्ट्रस्य या पीडा साऽनुभूयते॥ २८॥ फेनमुद्गिरते सोऽथ मुखं लालाकुलं भवेत् । अधोद्वारेण गच्छन्ति पापिनां प्राणवायवः॥ २९ ॥
चिंतामगन और स्वजनों से घिरा हुआ और सोया हुआ वह व्यक्ति काल के वशीभूत होने के कारण बुलाने पर भी नहीं बोल पाता है।कुटुंब के भरण पोषण मे लगा हुआ वह व्यक्ति अंत मे रोते बिलखते बंधे बांधुओं के बीच चेतना शून्य हो जाता है। मतलब मर जाता है। उस क्षण प्राणी को दिव्य द्रष्टि प्राप्त हो जाती है और उसके बाद वह व्यक्ति लोक और परलोक को देखने लग जाता है। लेकिन कुछ भी कहना नहीं चाहता है।
जैसे ही यमदूत पास आते हैं इंद्रिया विकल हो जाती हैं और चेतना खत्म हो जाती है।प्राणवायु के अपने स्थान से चले जाने पर यह एक क्षण भर की कल्पना के समान होता है।उस समय उस व्यक्ति को 100 बिंछुओं के डंक मारने जैसी पीड़ा होती है। और उस व्यक्ति का मुख लार से भर जाता है। पापी जनों की प्राणवायु गुदा मार्ग से बाहर निकालते हैं।
गरुड़ पुराण अध्याय 1 मे भगवान यमदूत के स्वरूप का वर्णन करते हैं
यमदूतौ तदा प्राप्तौ भीमौ सरभसेक्षणौ। पाशदण्डधरौ नग्नौ दन्तैः कटकटायितौ॥ ३०॥ ऊर्ध्वकेशौ काककृष्णौ वक्रतुण्डौ नखायुधौ । स दृष्ट्वा त्रस्तहृदयः सकृन्मूत्रं विमुञ्चति॥ ३१॥ अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषो हाहा कुर्वन् कलेवरात्। तदैव गृह्यते दूतैर्याम्यैः पश्यन् स्वकं गृहम्॥ ३२॥ यातनादेहमावृत्य पाशैर्बद्ध्वा गले बलात्। नयतो दीर्घमध्वानं दण्ड्यं राजभटा यथा॥ ३३॥ तस्यैवं नीयमानस्य दूताः संतर्जयन्ति च। प्रवदन्ति भयं तीव्रं नरकाणां पुनः पुनः॥ ३४॥
हाथों मे तलवार धारण किये ,नग्न दांतों को कटकटाते हुए ,क्रोधपूर्ण नेत्रों वाले यम के दूत कौवे के समान काले होते हैं ,उनके केश उपर की ओर उठे होते हैं ,वे टेढे मुख वाले होते हैं। उनके भयंकर रूप को देखकर मरणासन्न प्राणी मल और मुत्र का त्याग कर देता है। अपने भौतिक शरीर को छोड़कर हाय हाय करता हुआ इंसान यमके दूतों के द्वारा गले मे पास बांध कर खींचा जाता है। इस दौरान यमके दूत उसे डराते हैं और नरक की यातनाओं का वर्णन करते हैं। जिससे वह बुरी तरह से भयभीत हो जाता है।
एवं वाचस्तदा शृण्वन् बन्धूनां रुदितं तथा । उच्चैहाहिति विलपंस्ताड्यते यमकिङ्करेः॥ तयोनिर्भिन्नहृदयस्तर्जनैर्जातवेपथुः । पथि श्वभिर्भक्ष्यमाण आर्तोऽघं स्वमनुस्मरन्॥ ्षुत्तुट्परीतोऽर्कदवानलानिलैः संतप्यमानः पथि तप्तबालुके। कृच्छेण पृष्ठे कशया च ताडितश्चलत्यशक्तोऽपि निराश्रमोदके॥ तत्र तत्र पतञ्छान्तो मूच्छितः पुनरुत्थितः। यथा पापीयसा नीतस्तमसा यमसादनम्॥
इस प्रकार से बंधु बांधवों की वाणी सुनते हुए वह जीव जोर जोर से विलाप करता है।और उस जीव को यम दूतों के द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। यमदूतों की प्रताड़ना से उसका हर्ट विदिर्ण हो जाता है और भय से कांपने लगता है।रस्ते मे उसे कुत्ते काटते हैं और अपने पापों का स्मरण करते हुए वह यममार्ग पर चलता है। भूख और प्यास से पीड़ित वह जीव वायु के झोंको के द्वारा सताया जाता है।उसके पीठ पर यमदूत कोड़े बरसाते हैं और चलने मे असमर्थ जगह पर भी उसे चलाया जाता है। वह थक हारकर गिरता है लेकिन उसके बाद भी उसको यातनाएं दी जाती हैं। और यम दूत उसे अंधकारमय स्थानों पर ले जाते हैं।
त्रिभि्मुहूतैद्वाभ्यां वा नीयते तत्र मानवः। प्रदर्शयन्ति दूतास्ता घोरा नरकयातनाः॥ ४०॥
मुहूर्तमात्रात् त्वरितं यमं वीक्ष्य भयं पुमान्। यमाज्ञया समं दूतैः पुनरायाति खेचरः॥ ४१ ॥
आगम्य वासनाबद्धो देहमिच्छन् यमानुगैः। धृतः पाशेन रुदति क्षुत्तृड्भ्यां परिपीडितः॥ ४२॥
दो या तीन मुहूर्त मे वह जीव यमनगरी पहुंच जाता है। वहां पर उसको नरक के अंदर दी जाने वाली यातनाओं को दिखाया जाता है।उसके बाद यम की आज्ञा से वह मनुष्य यम के साथ दुबारा मनुष्य लोक के अंदर आता है।और यहां पर आकर वह वापस देह मे प्रवेश करने की इच्छा रखता है। लेकिन यमदूत उसे पास मे बांधे रखते हैं। जिससे जीव भूख और प्यास से तड़पता है।
गरुड़ पुराण अध्याय 1 मे पिंडदान के बारे मे बताते हैं
भुङ्क्ते पिण्डं सुतैर्दत्तं दानं चातुरकालिकम्। तथापि नास्तिकस्ता्ष्य तृप्तिं याति न पातकी॥ ४३॥
पापिनां नोपतिष्ठन्ति दानं श्राद्धं जलाञ्जलिः । अतः क्षुद्व्याकुला यान्ति पिण्डदानभुजोऽपि ते॥ ४४॥
भवन्ति प्रेतरूपास्ते पिण्डदानविवर्जिताः। आकल्पं निर्जनारण्ये भ्रमन्ति बहुदुःखिताः॥ ४५॥
वह आतुर काल के अंदर पुत्रों के दुवारा दिये गए पिंडदान को प्राप्त करता है।उसके बाद भी उसे त्रप्ती नहीं मिलती है। पापी लोगों के पास यह दान भी नहीं ठहरता है। इस प्रकार से पापी लोग आतुर होकर यममार्ग मे चलते हैं।
और जिनका पिंडदान नहीं होता है वे कल्प पर्यांत प्रेत बनकर निर्जन वन मे भ्रमण करते रहते हैं।और बहुत दुखी रहते हैं।
नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि । अभुक्त्वा यातनां जन्तुर्मानुष्यं लभते न हि॥ अतो दद्यात् सुतः पिण्डान् दिनेषु दशसु द्विज । प्रत्यहं ते विभाज्यन्ते चतुभागैः खगोत्तम॥ भागद्वयं तु देहस्य पुष्टिदं भूतपञ्चके । तृतीयं यमदूतानां चतुर्थं सोपजीवति॥ अहोरात्रैशच नवभिः प्रेतः पिण्डमवाप्नुयात्। जन्तुर्निष्पन्नदेहश्च दशमे बलमाप्नुयात्॥ दग्धे देहे पुनर्देहः पिण्डैरुत्पद्यते खग। हस्तामात्रः पुमान् येन पथि भुंक्ते शुभाशुभम्॥
सैंकड़ों कल्प वर्ष बीत जाने के बाद भी बिना भोगे कर्मफलों का नाश नहीं होते है। और अपने कर्मफलों को भोगे बिना जीव को इंसान का जीवन नहीं मिल पाता है।इसलिए पुत्रों को चाहिए कि 10 दिन तक पिंडदान करे ।पिंडदान चार भागों के अंदर बंटे होते हैं। दो भाग तो प्रेत के देह की पुष्टि के लिए होते हैं।तीसरा भाग यमदूतों को मिलता है और चौथे भाग से जीव को आहार मिलता है।
नौ रात दिन तक पिंडदान करने से प्रेत का शरीर बन जाता है और दसवें दिन पिंडदान करने से बल की प्राप्ति होती है।देह के जल जाने के बाद पिंडदान से दुबारा एक देह प्राप्त होती है। जिसकी वजह से प्रेत यममार्ग के अंदर यातना भोगता हुआ चलता है। बाद मे जीव इस देह को भी छोड देता है।
प्रथमे$हनि य: पिण्डस्तेन मूर्धा प्रजायते । ग्रीवास्कन्धौ द्वितीयेन तृतीयाद्धुदयं भवेत्॥ चतुर्थेन भवेत् पृष्ठं पञ्चमान्नाभिरिव च। षष्ठे च सप्तमे चैव कटी गुह्यं प्रजायते॥ ऊरूश्चाष्टमे चैव जान्वङ्घी नवमे तथा। नवभिर्देहमासाद्य दशमेऽह्नि क्षुधा तृषा॥ पिण्डजं देहमाश्रित्य क्षुधाविष्टस्तृषार्दितः। एकादशं द्वादशं च प्रेतो भुङ्क्ते दिनद्ठयम्॥ त्रयोदशेऽहनि प्रेतो यन्त्रितो यमकिङ्करैः । तस्मिन् मार्गे व्रजत्येको गृहीत इव मर्कटः॥ षडशीतिसहस्त्राणि योजनानां प्रमाणतः । यममार्गस्य विस्तारो विना वैतरणीं खग॥
- पहले दिन पिंडदान से प्रेत का शरीर बनता है।
- दूसरे पिंडदान से गर्दन बनती है।
- तीसरे पिंडदान से हर्ट बनता है।
- चौथे पिंडदान से पीठ
- पांचवे से नाभी बनती है।
- छटे और सातवें से कमर और गुदा पैदा होते हैं।
- आठवें पिंडदान से जांघे
- नोवे से घूटने पैदा होते हैं।
इस प्रकार से जीव की 10 वें पिंडदान से भूख और प्यास जाग्रत हो जाती है। वह क्रमश 11 वें और 12 वें दिन भोजन करता है। और उसके बाद उसे यमदूत खींचते हुए यम मार्ग पर ले जाते हैं।
अहन्यहनि वै प्रेतो योजनानां शतद्ूयम्। चत्वारिंशत् तथा सप्त दिवारात्रेण गच्छति॥ ५७॥ अतीत्य क्रमशो मार्गे पुराणीमानि घोडश। प्रयाति धर्मराजस्य भवनं पातकी जनः॥ ५८॥ सौम्यं सौरिपुरं नगेन्द्रभवनं गन्धर्वशैलागमौ क्रौञ्चं क्रूरपुरं विचित्रभवनं बह्वापदं दुःखदम्। नानाक्रन्दपुरं सुतप्तभवनं रौद्रं पयोवर्षणं शीताढ्यं बहुभीति धर्मभवनं याम्यं पुरं चाग्रतः॥ ५९॥ याम्यपाशैर्धृतः पापी हाहेति प्ररुदन् पथि। स्वगृहं तु परित्यज्य पुरं याम्यमनुव्रजेत्॥ ६०॥ इति गरुडपुराणे सारोद्धारे पापिनामैहिकामुष्पिकदु: खनिरूपणं नाम प्रथमोऽध्यायः ॥१॥
वह प्रेत दिन रात 247 योजन चलता है।इस दौरान वह मार्ग मे आने वाले वह 16 पुरों को पार करके यमराज के यहां पर पहुंचता है।उन 16 पुर के नाम कुछ इस प्रकार से हैं। सोम्यपूर ,सौरिपुर ,नगेंद्रभवन ,गंधर्वपुर ,शैलागम ,क्रौएंचपुर ,क्रूरपूर ,विचित्रभवन,ब्रहापदपुर ,दुखदपुर ,नानाक्रंदपुर ,सुप्तभवन ,रौद्रपुर ,पयोवर्षणपुर ,शीतायढयपुर ,बहुभीति पुर को पार करने के बाद जीव यमलोक जाता है।
गरुड़ पुराण अध्याय 1 के अंदर जीव का प्राण किसी प्रकार से निकलता है ? और वह 12 दिन किस प्रकार से घर मे रहता है ।इस बारे मे वर्णन किया गया है। गरूड पुरणा के अध्याय 1 मे लिखा सच जान पड़ता है। क्योंकि बहुत बार आपने भी नोटिश किया होगा कि जब कोई मौत के नजदीग होता है तो उसे अजीब सा डर लगने लग जाता है। जबकि कुछ लोग यह भी बोलते हैं कि उन्हें अन्य अपने मरे हुए प्रियजनों को देखा है।
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