maharana pratap horse chetak story in hindi ,महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी चेतक का इतिहास और चेतक घोड़े की कहानी के बारे मे हम इस लेख मे विस्तार से चर्चा करेंगे ।
महाराणा प्रताप के सबसे पसिद्व घोड़े irani मूल का नाम चेतक था । चेतक घोड़ा गुजरात के चोटीलाके पास भीमोरा का था । और भीमोराके काठी राजपुतके के एक व्यापारी से यह शानदार घोड़ा खरीदा गया था । इतिहासकार यह बताते हैं कि चारण व्यापारी काठीयावाडी नस्ल के 3 अश्व लेकर आया था । जिनके नाम थे। चेतक,त्राटक और अटक इनमे से त्राटक काम आ गया और अटक महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह ने रख लिया और चेतक महाराणा प्रताप खुद ने रखा था ।
1576 ई के अंदर जब हल्दी घाटी का युद्व हुआ तो चेतन घोड़े ने अद्वितिय बुद्विमता और साहस का परिचय दिया और एक बड़े नाले को पार कर दिया । घायल होने के बाद भी महाराणा प्रताप को बचाने मे कामयाब रहा । जिस नाले को चेतक ने पार किया था । वह काफी चौड़ा था । मुगल सेना इस नाले को पार नहीं कर पाई थी । इस लड़ाई के अंदर घायल हो जाने के बाद चेतक की मौत हो गई। जिसका दांह संस्कार प्रताप और उनके भाई ने अपने हाथों से किया था ।चेतक की समाधी आज भी वहां पर बनी हुई है। अपने साहस और वीरता की वजह से चेतक दुनिया मे अमर हो गया ।
Table of Contents
maharana pratap horse chetak story in hindi चेतक की कहानी चेतक घोड़ा कैसे खरीदा गया ?
कहा जाता है कि चेतक घोड़े को एक व्यापारी ने जगल से पकड़ा था । चेतक घोड़ा पहले काफी उदंड स्वभाव का था । उसे उसका मालिक ही कंट्रोल कर सकता था । चेतक घोड़े को किसी प्रकार की रस्सी नहीं बाधी जाती थी । चेतक घोड़े और त्राटक व अटक घोड़े को विशेष प्रशिक्षण देकर तैयार किया गया था ।जब इन सभी घोड़ों को घोड़े के व्यापारी ने पूरी तरह से तैयार कर लिया तो वह तीनों घोड़ों को लेकर महाराणा प्रताप के पास पहुंचा । स्टोरी के अनुसार व्यापारी ने महाराणा से तीनो घोड़े खरीद लेने का आग्रह किया । लेकिन एक अनजान व्यापारी होने के नाते महाराणा ने उससे घोड़े खरीदने के लिए मना कर दिया ।
व्यापारी की बहुत विनती करने के बाद महाराणा प्रताप ने कहा कि मुझे इन घोड़ों के अंदर क्या है ? उसका सबूत चाहिए । उसके बाद प्यापारी ने त्राटक घोड़े पर यह सबूत पेश करके दिखाया । कहा जाता है कि इस घोड़े के चारों और बहुत खतरनाख कांच लगा दिये गए और उसके बाद उसके मालिक प्यापारी ने एक विशेष आवाज निकाली तो त्राटक कांच के उपर कूद पड़ा और उसका अंत हो गया । कहा जाता है कि उसके बाद महाराणा प्रताप ने दोनों घोड़े खरीद लिये थे । चेतक घोड़ा सिर्फ महाराणा प्रताप से नियंत्रित होता था ।
कहा जाता है कि चेतक पर महाराणा प्रताप के अलावा यदि कोई सवारी करता तो वह उसे नीचे गिरा देता था ।उस समय ही इस घोड़े का नाम चेतक रखा गया था। एक बार महाराणा प्रताप अपने चेतक घोड़े को लेकर जंगल मे अकेले ही गए थे । और जब नदी से पानी पी रहे थे तो उन पर एक शेर ने हमला कर दिया । महाराणा प्रताप और शेर के बीच जंग होने लगी ।
यह देख उनका चेतक घोड़ा अपने पैरों से शेर के उपर तेजी से वार करने लगा ।घोड़े के टॉपों से हुए वार को शेर सहन नहीं कर सका और वहीं पर मर गया । महाराणा प्रताप भी इस लड़ाई के अंदर घायल हो गए थे ।इस लड़ाई के अंदर महाराणा बेहोश हो गए थे । उसके बाद जब महाराणा का होश मे लाया गया तो महाराणा प्रताप ने पूछा कि चेतक कैसा है। महाराणा के सिपाहियों ने कहा कि वह ठीक है लेकिन उसने खाना पीना छोड़ दिया है।उसके बाद खुद महाराणा प्रताप चेतक के पास गए और बोले चेतक तुमने तो अभी ही खाना पीना छोड़ दिया है। अभी तो हमको बहुत सी लड़ाइयां लड़नी हैं।
चेतक का इतिहास चेतक और महाराणा प्रताप का पीछा
इतिहास कार बताते हैं। कि अकबर के विरूद्व लड़ने के बाद महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक घायल हो गया था । घायल अवस्था के अंदर ही उसने महाराणा प्रताप को बचाया था । जैसे ही महाराणा प्रताप को पता चला कि अब उनका घोड़ा चेतक बुरी तरह से घायल हो चुका है।
तो उन्होंने युद्व भूमी को छोड़ा उचित समझा और उसके बाद झालाराव मानसिंह ने भी महाराणा प्रताप को हल्दी घाटे से निकले को कहा । जब प्रताप हल्दी घाटी से निकले तो दो मुगल सैनिकों ने उनको देख लिया । वे प्रताप को मारकर अकबर से ईनाम लेना चाहते थे । इस वजह से प्रताप के पीछे पीछे हो लिए ।
महाराणा प्रताप युद्व से भागना नहीं चाहते थे । लेकिन उनके पास इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था ।
चेतक का इतिहास चेतक और नदी
जब महाराणा प्रताप को पता चला की दो मुगल सैनिक उनका पीछा कर रहे हैं तो वे सावधान हो गया । उसके बाद उन्हें अब अपने घोड़े पर भी अधिक विश्वास नहीं रह गया था । बीच के अंदर एक नदी थी । चेतक ने जैसे तैसे नदी को तो पार करवा दिया । लेकिन उसके शरीर से लगातार खून बह रहा था और वह महान घोड़ा बुरी तरह से घायल हो चुका था ।
महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह
जब महाराणा प्रताप ने देखा कि दो मुगल सैनिक अभी भी उनका पीछा कर रहे हैं। तो उनको लगा की लगता है। उनके भाई से कोई गलती हो गई है। अब प्रताप भी इस हालत के अंदर नहीं थे कि उनको मौत के घाट उतार सके । इसके अलावा घोड़ा चेतक भी बुरी तरह से घायल हो चुका था और अब ज्यादा दूर नहीं चल सकता था ।हालांकि आपको बतादें कि प्रताप के भाई ने कभी अकबर के सामने सर झुकाया था।उसके बाद शक्ति सिंह को लगा की यदि वह आज अपने भाई के प्राणों की रक्षा नहीं कर पाया तो उसे भगवान कभी भी माफ नहीं करेगा । उसके बाद उसने तेजी से अपने घोड़े को मुगल सैनिकों के पीछे लगा दिया । और भाले की मदद से दोनों को मौत के घाट उतार दिया ।
चेतक का इतिहास चेतक की विरता हल्दी घाटी के दौरान
चेतक महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा था ।जलाल उद-दीन मुहम्मद अकबर क वजह से महाराणा प्रताप के पिता को चितौड़ गढ़ छोड़कर भागना पड़ा था । इस वजह से भी प्रताप और अकबर के बीच दुश्मनी थी ।जब हल्दी घाटी का युद्व शूरू हुआ तो प्रताप ने देखा कि अकबर की सैना काफी बड़ी है। लेकिन उसके बाद भी महाराणा प्रताप पीछे नहीं हटे । एक एक सैनिक को मारते काटते रण भूमी के अंदर अपनी विरता का पदर्शन कर रहे थे ।
लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनका पक्ष कमजोर पड़ रहा है तो उसने हाथी पर बैठे कप्तान मानसिंह पह हमला करने का मन बनाया और उसकी और अपने घोड़े चेतक को दौड़ादिया ।मानसिंह तो राणा के एक वार के अंदर वहीं ढेर हो गया । लेकिन जब चेतक ने अपने पैर हाथी के माथे पर रखे थे तो उसका एक पैर हाथी की सुंड के पास रखी तलवार से कट गया । और ऐसी स्थिति के अंदर महाराणा को मैदान छोड़कर जाने का निर्णय लेना पड़ा । तीन पैर होने के बाद भी दुश्मनों की बीच फंसा चेतक खून से लहूलूहान होने के बाद भी दुश्मनों के बीच से निकलकर प्रताप को बचाया था ।
चेतक का इतिहास चेतक के विषय मे
भले ही चेतक एक घोड़ा था । लेकिन उसने महाराणा को इस अवस्था के अंदर नदी पार करवाकर सुरक्षित बचाया था । एक तरफ महाराणा और उनके भाई शक्ति सिंह का मिलन हो रहा था । जो काफी खुशी की बात थी । दूसरी और उनका प्रिय घोड़ा चेतक जमीन पर पसरा पड़ा था। उसके चेहरे पर अब संतोषा था कि अब उसके स्वामी को कोई कष्ट नहीं पहुंचा सकेगा । एक तरफ दो मुगलों के शव पड़े हुए थे ।
चेतक का अंतिम संदेश
चेतक भूमी पर पड़ा हुआ मानो संदेश दे रहा था दोनों भाई मिलकर रहना एक दूसरे का रक्षक बनना भकक्षक नहीं भारत भूमी के लिए अपना र्स्वस्व न्यौछावर कर देना मैरा अंतिम प्रमाण ।
चेतक का इतिहास चेतक के बाद
चेतक को महाराणा प्रताप ने अंतिम प्रणाम किया और उनके भाई ने उन्हें अपना घोड़ा देदिया और खुद उन दो मरे हुए मुगल सैनिकों के घोड़े को ले लिया । उसके बाद महाराणा प्रताप तेजी से अरावली पर्वतमाला की और चले गए । और शक्ति सिंह मुगलों की ओर चला गया । समय बहुत कम था और शत्रू से सावधान रहने की भी आवश्यकता थी । इस वजह से महाराणा प्रताप भी जल्दी से एक सुरक्षित जगह पर पहुंच जाना चाहतें थे ।
चेतक घोड़े की वीरता आज भी प्रसिद्व है
आपको बता दें कि चेतक भले ही यह दुनिया छोड़कर चला गया हों । लेकिन उसकी विरता का आज भी बखान किया जाता है। 1990 के दशक और 1980 दशक के अंदर चेतक नाम एक स्कूटर और एक स्वदेशी हैलिकाप्टर का भी रखा गया था ।कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है। कि वास्तव मे चेतक घोड़ा महाराणा प्रताप की तरह ही एक महान घोड़ा था । भले ही प्रताप के भाई ने एक बार महाराणा प्रताप का साथ छोड़दिया हो । लेकिन चेतक ने अपने अंतिम दम तक प्रताप का साथ दिया । जबतक उसके शरीर के अंदर जान बाकी थी । इस महान घोड़े को सत सत नम ।
चेतक घोड़े की कुछ खास बातें
चेतक घोड़ा वास्तव मे बहुत खास घोड़ा था । लेकिन मुगल इतिहास कारों ने इतिहास के अंदर बहुत सी बातों को छुपा लिया था । इतिहास को कभी भी स्वतंत्र ढंग से नहीं लिखा गया था । अकबर के दरबार मे रहकर कोई इतिहासकार अकबर की बुरियां और महाराणा प्रताप जैसे महान वीर की की वीरता का बखान कैसे कर सकता था ।इस वजह से बहुत सी बाते छिपी ही रह गई।
chetak horse ने महाराणा प्रताप की जान बचाने के लिए घायल अवस्था के अंदर ही 21 फीट तक की चौड़ी नदी को jump लगाकर पार किया था । रेगिस्तानी नस्ल घोड़े की तरह यह एक पतला शरीर था। इसका उच्च माथे बहुत लंबे चेहरे और शानदार चमकदार आंखों के साथ संयुक्त अभिव्यक्तिपूर्ण था।चेतक घोड़े के आकर्षक और घूमावदार कान थे ।इसकी मोर की आकार की गर्दन थी । और छाती काफी व्यापक थी ।आपको बतादें कि चेतक होर्स एक नीले रंग का घोड़ा था । इसी वजह से महाराणा प्रताप को ब्लू हॉर्स के राइडर के नाम से भी जाना जाता है। चेतक घोड़े के मुंह के आगे हाथि का सूंड लगाया जाता था । क्योंकि वह किसी हाथी से कम भी नहीं था ।
चेतक आक्रमक और अहंकारी और नियंत्रण के अंदर मुश्किल था । चेतक होर्स केवल प्रताप के द्वारा नियंत्रित किया जाता था । चेतक की विरता हल्दी घाटी के युद्व के अंदर प्रकट हुई थी ।
चेतक घोड़े के वंशज की करोड़ो के अंदर कीमत
महाराष्ट्र के सारंगखेड़ा के अंदर एक मेला लगता है। उसके अंदर चेतक घोड़े की एक वंशज भी आई हुई थी । यदि हम इस घोड़ी की की कीमत की बात करें तो इसकी कीमत 2 करोड़ रूपये है। इस घोड़ी को पद्ना कहा जाता है। कई लोग इसको खरीदना चाहते हैं। लेकिन इसका मालिक इसको बेचने के मुड मे नहीं है। कहा जाता है कि इस घोड़ी की खुराक भी सामान्य घोड़ों से अलग है। यह कांजू किसमिश वैगरह खाती है।
Chetak Smarak
जहां पर चेतक घोड़े ने वीरगति को प्राप्त किया था । वहां पर एक स्मारक बना हुआ है।सन 2003 के अंदर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसको राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया था ।चेतक स्मारक बलिका के गांव में राजसमंद के झील जिले में अरवली पहाड़ियों में स्थित है।
चेतक पर कविता
लेखक श्यामनारायण पाण्डेय ने चेतक की वीरता को बखान करते हुए एक कविता लिखी थी । इसके अलावा चेतक की विरता का बखान कई कविताओं और किस्सों के अंदर किया गया है।
रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड जाता था।
गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था।
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं।
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में।
बढते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
बिकराल बज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया।
भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग।
चेतक का इतिहास और चेतक की कहानी व चेतक पर लिखी कविता आपको कैसी लगी नीचे कमेंट करके बताएं ।
चेतने और महाराणा प्रताप आज भी अमर हैं
दोस्तों यह सच है कि जो लोग अपने इतिहास को भूल जाते हैं , वे कभी भी जिंदा नहीं रह सकते हैं। दौ कोड़ी के लोग जिनको लगता है कि वे विदेशों से समर्थन प्राप्त करके यहां पर राजा बन जाएंगे । लेकिन एक ना एक दिन उनका अंत होना ही है। जो अपने देश का नहीं हो सकता है , अपनी मात्र भूमि के जो नहीं हो सकते हैं। वे किसी के नहीं हो सकते हैं। महाराणा प्रताप उम्र भर मुगलों से लड़ते रहे । और अकबर यह सोचता रहा है कि महाराणा उसके आगे सर झुकाए । लेकिन ऐसा कभी हो नहीं सका । बेसक महाराणा अकबर के मुकाबले सेना के मामले मे काफी कमजोर थे । लेकिन अकबर कभी भी उनको हरा नहीं पाए । और भले ही हल्दीघाटी मे अकबर की जीत हुई । लेकिन इसके अंदर भी अकबर को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था ।बाकि चेतक को हमेशा ही याद किया जाता रहेगा । जिसने अपने मालिक की वफादारी के लिए अपनी जान तक को न्यौछावर कर दिया था । आज भी लोग चेतक की समाधी पर फूल चढ़ाने के लिए जाते हैं।
duniya ka sabse bada kabristan Wadi-us-Salaam
औरतों को शनि देव की पूजा नहीं करनी चाहिए 7 कारण
मोर के पंख के 23 फायदे mor pankh ke fayde in hindi
उल्लू को मारने के 8 नुकसान ullu ko marne se kya hota hai
भूत कैसे दिखते हैं दिखाइए bhoot kaise dekhte hain
चीन में लोग क्या क्या खाते हैं china food list
सपने मे मूली देखने के 15 मतलब sapne mein muli dekhna
साइबर अपराध से बचाव के उपाय type of cyber crime in hindi
Refurbished Meaning in Hindi Refurbished प्रोडेक्ट कैसे खरीदे
गाना कैसे लिखना है ,गाना लिखने का तरीका song writing tips
बजरंग बाण सिद्ध करने की विधि और इसके फायदे
गन्ने की खेती कैसे करें ? गन्ने की खेती का वैज्ञानिक तरीका
चेतक घोड़ा महाराणा प्रताप को कोई अरबी व्यापारी ने नही बल्कि गुजरात के एक दांती गोत्र के चारण व्यापारी ने दिया था चारण व्यापारी तीन घोड़े ले आए थे चेतक ,त्राटक,अटक पहले महाराणा प्रताप ने उसका साहस देखना चाहा इसलिए राणा प्रताप ने चारण व्यापारी से कहा कि आप पहले इन घोड़ों में कितना साहसही ये दिखाए इसलिए चारण व्यापारी ने कहा कि में चारण हु मेरे (एक बहुत स्वाभीमानि , महान और साहसी जाति है)घोड़े मेरे हाथो पले हुए हे वो बहुत साहसी अगर आप इनका शौर्य देखना चाहते हो तो आप कुछ भी करा सकते हो इस पर महाराणा ने अटक के पैरो तक एक गड्डे में उसमे मिट्टी और कंकड़ भरे महाराणा प्रताप उसका को साहस देखना चाहते थे इसलिए उन्होंने कहा कि अगर घोड़ा इस बड़े गड्ढे से छलांग लगा कर उप्पर आए तो मानू तब बारिश चालू हो गई उससे मिट्टी और कंकड़ जम गए राणा प्रताप को यह पता नही था फिर उन्होंने चारण व्यापारी से कहा कि आप अब इस घोड़े को छलांग लगाने को कहे तब चारण व्यापारी ने जोर से एक बार कहा अटक आजा तब उसने इतनी ताकत दिखाई की अटक गड्डे से तो बाहर आ गया लेकिन उसके पैर कट गए फिर भी वो गड्डे से १० फिट दूर तक छलांग लगाई ये देखकर जब हक्का बक्का हो गए उसके बाद अटक की मृत्यु हो गई चारण व्यापारी को बहुत दुख हुआ इसके साथ ही राणा प्रताप को भी बहुत दुख हुआ फिर उन्होंने चारण व्यापारी से वो दोनो घोड़े खरीद लिए प्रताप ने अटक की छतरी भी बनाई और चारण व्यापारी से खुश होकर उन्होंने जागीर में दो गांव भी दिए :गढ़वाड़ा और भनोल नामक दो गांव जागीर में दिए घोड़े से इतने प्रेरित हुए की चेटक को खुद रख दिया और त्राटक को अपने छोटे भाई शक्ति सिंह को दे दिया ।