इस लेख मे हम बात करने वाले हैं। जलोढ़ मिट्टी की दो विशेषताएं या जलोढ़ मिट्टी की तीन दो विशेषताएं पर अलूवियम या मृदा जल के द्धारा बहाई गई मृदा होती है।यह एक तरह से भुरी भुरी रेत होती है। और इसके काण आपस मे मिलकर कोई कठोर संरचना नहीं बनाते हैं। इसके अंदर बालू और बजरी के महिन चरण होते हैं। जलोढ़क का अर्थ होता है जल के द्धारा बहाकर लाई गई रेत । जैसा कि हमने आपको बताया कि यह नदियों के द्धारा बहाकर लाई गई रेत होती है।इसकी वजह से काफी उपजाउ भी होती है।भारत के अंदर 8 लाख वर्ग कीमी के अंदर यह रेत फैली हुई है।
उत्तरी मैदान के अंदर नदियों के द्धारा बहाकर लाई गई रेत को कांप का काछरी रेत के नाम से जाना जाता है।यह रेत देश की 40 प्रतिशत भू भाग पर पाई जाती है।गंगा यमुना और सतलज नदियों की मदद से इस रेत का निर्माण हुआ है। जलोढ रेत मुख्य रूप से तटिये मैदानों के अंदर अधिक मिलती है।यह मुख्य रूप से कावेरी ,क्रष्णा और महानदी व गोदावरी नदी के डेल्टा के अंदर पाई जाती है।
यह रेत आमतौर पर नदियों के किनारे पाई जाती है जहां पर यह बाढ़ से जमा हो जाती है।आमतौर पर जहां पर नदियों का पानी नहीं पहुंच पाता है और पहले नदी के द्धारा जो मिटटी बहाकर लाई गई थी उसको बांगर मिट्टी के नाम से जाना जाता है।इसके अलावा नविन नदी के पानी के द्धारा जो मिट्टी बहाकर लाई जाती है उसे खादर मिट्टी के नाम से जाना जाता है। नवीन जलोढ़ मिट्टी अधिक उपजाउ होती है। भारत के अंदर 50 प्रतिशत से अधिक उत्पादन इसी मिट्टी के अंदर होता है।इसके अंदर चूना फास्फोरस और पोटाश मुख्य रूप से पाये जाते हैं।जलोढ़ रेत के अंदर गन्ना ,तम्बाखू ,जूट और तिलहन मुख्य रूप से उगाये जाते हैं।
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जलोढ़ मिट्टी की विशेषता इसका निर्माण नदियों के द्धवारा जल बहाव से होता है
जलोढ़ जलोढ़ मिट्टी का निर्माण नदी के पानी से होता है। आमतौर पर नदी के पानी के साथ कई प्रकार की तलछट बहुती है यही नदी के किनारे एकत्रित हो जाती है और कालांतर मे जलोढ़ मिट्टी का रूप ले लेती है। इसके अलावा जिन इलाकों के अंदर बाढ़ आती रहती है। वहां पर भी जलोढ़ मिट्टी का निर्माण हो जाता है। कुछ स्थानों पर निरंतर जलोढ मिट्टी बनती रहती है तो कुछ स्थानों पर पहले की बनी हुई जलोढ़ मिट्टी है।
जलोढ़ मिट्टी मे पोटाश और चूना प्रचूर मात्रा मे होता है
पोटाश और चूना जलोढ़ मिटटी के अंदर होने की वजह से इसकी क्षमता अधिक होती है। और यह अनाज की पैदावार को बढ़ाने का काम भी करती है।और जिन रेत के अंदर पोटाश नहीं होता है। किसान उसको उपजाउ बनाने के लिए अलग से पोटास डालते हैं। पोटास आमतौर पर सफेदर होता है और पानी के अंदर घुलता नहीं है।
जलोढ़ मिट्टी सबसे अधिक उपजाउ होती है
जैसाकि हमने आपको बताया की जलोढ़ मिट्टी सबसे अधिक उपजाउ होती है। इसके पीछे का कारण यह है की नदी अपने साथ अनेक प्रकार के खनीज वैगरह लेकर चलती है। और जब कई बार बाढ़ की वजह से नदी अपने किनारे तोड़ देती है जो यह खनीज पानी के साथ मैदानी इलाके मे आते हैं।इसी से वहां की मिट्टी अधिक उपजाउ हो जाती है।इसके अंदर गन्ना ,तम्बाखू ,जूट और तिलहन की खेती की जाती है।
जैसा कि हमने आपको बताया जलोढ़ मिट्टी का प्रयोग इंसान लंबे समय तक अच्छे उत्पादन के लिए करता आया है। और यही कारण है की पहली मानव सभ्यता नदी के किनारे विकसत हुई थी।नाइल, यांग जी और पीली नदी, टाइग्रिस और यूफ्रेट्स जैसे जल मार्ग जलोढ़ रेत के कारक रहे हैं।और यदि बात करें मिस्र की तो वहां पर आज भी अधिकांश खेती नदी के किनारे ही की जाती है।इसके अलावा नदी की बाढ़ वाले स्थानों पर पशुओं के लिए अच्छा चारा पैदा होता है। और नदी के किनारे ही अंगूर की खेती की जा सकती है। इसके अलावा चावल की खेती भी बहुत सी जगहों पर नदी के किनारे ही की जाती है।
जलोढ मिट्टी नदी के किनारों पर पाई जाती है
सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र इन तीन नदियों के द्धारा जलोढ़ मिट्टी लाई जाती है।पूर्वी तटीय मैदानों में यह मिट्टी कृष्णा, गोदावरी, कावेरी और महानदी के डेल्टा में प्रमुख रूप से पाई जाती है|यह मिट्टी सतलज, गंगा, यमुना, घाघरा,गंडक, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों द्वारा लाई जाती है।
जलोढ मिट्टी दानेदार होती है
दोस्तों एक जलोढ मिट्टी की विशेषता यह है कि यह दानेदार होती है।क्योंकि यह नदी की कांप होती है जिसको अलग अलग जगहों से बहाकर लाया जाता है। यह गहरे भूरे या घूसर रंग की मिट्टी होती है। इसके अलावा इसके साथ थोड़े कंकड भी होते हैं जो नदी के पानी के द्धारा बहाकर लाये जाते हैं।
जलोढ मिट्टी पर जलवायु का प्रभाव
नदी जलोढ़ मिट्टी के निर्माण मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।बाढ़ की स्थिति के अंदर तलछट जमा हो जाती है। जलोढ़ मिट्टी वर्षा से प्रभावित होती है। और गिले क्षेत्रों के अंदर रेत अम्लिय हो जाती है।क्षारीय मिट्टी शुष्क क्षेत्रों में बनती है। और जब कम वर्षा होती है तो भूजल जमीन के और गहराई के अंदर चला जाता है।
जलोढ़ स्तर वाली मिट्टी
नदी के किनारे से थोड़ा दूर ऐसा क्षेत्र होता है जहां पर हर साल बाढ़ नहीं आती है।लेकिन कई बार बाढ़ आने के दौरान तलछट इन भागों के अंदर जमा हो जाती है।यह कई परतों के साथ हो सकती है।टर्फ मिट्टी के विपरीत जलोढ़-स्तरित मिट्टी, कृषि के लिए अधिक उपयुक्त रहती है।जलोढ़ स्तरित मिट्टी में तीस से चालीस सेंटीमीटर मोटी परत हो सकती है।
जलोढ़ मैदानी मिट्टी
जलोढ़ मैदानी मिट्टी आमतौर पर मैदानी इलाकों के अंदर पाई जाने वाली मिट्टी को कहा जाता है।जब नदियों का पानी मैदानी इलाकों के अंदर जाता है तो पानी के सुखने के साथ ही पानी के साथ मिले खनीज मैदानी इलाकों मे जमा हो जाते हैं और वहां पर एक पतली परत का निर्माण होता है। यह तलछट वनस्पति और मैदानों मे उगने वाले घास के लिए बहुत अधिक उपयोगी साबित होती है। और मैदानी इलाकों मे इससे अच्छी पैदावार होती है।
जलोढ़ मिट्टी आमतौर पर पानी की गुणवकता मे सुधार करती है। यह पानी के साथ बहने वाले बेकार के तत्वों को हटा देती है।बाढ़ की वजह से सतह पर नई तलछट जमा करती है, जलोढ़ मिट्टी एक अद्वितीय स्तरित रूप हो सकती है। गोल बजरी कणों के मिश्रित आकारों के साथ, गहरे और हल्के रंग वैकल्पिक होते हैं।
1982 में रॉकी माउंटेन नेशनल पार्क में मे बना एक बांध टूट गया था जिसकी वजह से 200 गैलन मिलयन पानी मैदानी इलाकों के अंदर घुस गया और अपने साथ अनेक प्रकार के कंकड़ पत्थर और रेत लेकर आया था।
हालांकि अब मानव के द्धारा पैदा किये गए कचरे की वजह से जलोढ रेत का स्वरूप बदल गया है। आजकल बाढ़ के साथ अनेक प्रकार का बेकार का कचरा भी साथ आता है। जैसे उधोगों से निकलने वाला कचरा ,इसके अलावा प्लास्टिक भी आता है जो मैदान और नदी के किनारे पर जमा हो जाता है जो रेत को अनउपजाउ भी बना सकता है।
जलोढ़ मिट्टी के प्रकार
दोस्तों जलोढ़ मिट्टी को मुख्य रूप से 3 भागों के अंदर बांटा जाता है। उर्वरकता के आधार पर जलोढ मिटटी का वर्गिकरण हम कर रहे हैं।
खादर मिट्टी
बांगर मिट्टी बाढ़ के मैदानों तक ही होती है। यह नदी के द्धारा बहाकर लाए गए महीन रेत के कणों से बनती है।यह मिट्टी रबी की फसल के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होती है।
अतिनूतन जलोढ़ मिट्टी
ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी जैसी नदियों के डेल्टा के अंदर यह रेत मिलती है इसके कण बहुत बारिक होते हैं।यह दलदली होती है।चूना ,फास्फोरस और मैग्नििशियम जैसे तत्व इसके अंदर मौजूद होते हैं। इसमे मरे हुए जानवरों के जीवांशम होते हैं। इस रेत के अंदर कपास और जूट की खेती करना बहुत अधिक उपयोगी साबित होता है।
बांगर मिट्टी
नदियों के द्धारा बहाकर लाई गई अधिक उंचाई की रेत को बांगर मिट्टी के नाम से जाना जाता है।यह पुरानी जलोढ़ मिट्टी कहलाती है।अब यह रेत नदी के पानी से अधिक उंचाई पर होने की वजह से यह कल्लर रेत बन गई है। इस प्रकार की रेत पंजाब और हरियाणा जैसे इलाकों के अंदर पाई जाती है।
जलोढ़ मिट्टी के अंदर होने वाली फसलें लिस्ट
ज्वार, मटर, लोबिया, काबुली चना तंबाकू, कपास, चावल, गेहूं, बाजरा, काला चना, हरा चना, सोयाबीन, मूंगफली, सरसों, तिल, जूट, मक्का, तिलहन फसलें, सब्ज़ियों और फलों की खेती आप इस रेत मे कर सकते हैं।
जलोढ़ मिट्टी की विशेषता लेख के अंदर हमने जलोढ़ रेत के अलग अलग प्रकार के बारे मे जाना । इसके अलावा यह भी जाना कि किस प्रकार से यह रेत उपयोगी साबित होती है ? और कौन कौनसी फैसले जलोढ़ रेत के अंदर उगती है । उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा ।