निषध देस के अंदर विरसेन के पुत्र का नाम नल था। वे बहुत सुंदर और हर गुणों से युक्त थे ।और सभी प्रकार की विधाओं के अंदर भी पूर्ण थे । उन्हें जुआ खेलने का भी शौक था। उन्हीं के समकालिन विदभग देस के अंदर भीमक नामक राजा रहते थे । वे भी नल के समान ही सभी गुणों से परिपूर्ण थे ।उन्होंने एक साधु से आशीर्वाद प्राप्त कर तीन पुत्र दम दान्त और दमम और एक कन्या जिसका नाम दमयंती था। वह काफी सुंदर थी। उसकी बड़ी बड़ी आंखे थी । उसके समान दूसरी संदर क्नया पूरे राज्य के अंदर नहीं थी।
राजा नल ने दमयंती की सुंदरता के अनेक किस्से सुन रखे थे ।एक दिन राजा नल के बाग के अंदर कुछ हंस आए तो एक को राजा ने पकड़ लिया तब हंस ने राजा से कहा कि आप हमे छोड़ दिजिए हम दमयंती के सामने आपके गुणों का बखान करेंगे । तो वह जरूर आप से शादी कर लेगी ।
जब हंस दमयंती के पास गये तो वह उनको पकड़ने के लिए दौड़ पड़ी तब एक हंस बोला की निधष देस का राजा नल बहुत अधिक सुंदर है। उसका रूप भी काम देव जैसा है। यदि तुम उसकी पत्नी बन जाओगी । तो तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा।
मनुष्यों मे उसके समान सुंदरता वाला और कोई नहीं है। जैसे तुम स्ति्रयों मे रत्न हो वैसे ही वह पुरूषों के अंदर भूषण है। तुम दोनों की जोड़ी बहुत सुंदर लगेगी । तब दमयंती ने कहा कि तुम नल से भी यही कहना । हंस ने राजा नल को दमयंती की बात सुनाई तो दंमयती भी राजा नल से प्रेम करने लगी ।
वह राजा नल से इतना अधिक प्रेम करने लगी की सारे दिन रात उसी के चिंतन के अंदर डूबी रहती । खाना पीना समय पर नहीं खाने से वह काफी कमजोर हो गई। जब उनकी सहेलियों ने देखा तो यह बात दमयंती के पिता को बताई । तब पिता ने उसका विवाह करने का सोची।
दमयंती के पिता ने स्वयंवर के लिए सभी राजाओं को आमंत्रित किया । देवता भी अपने रथ के साथ स्वयंवर के अंदर शामिल होने के लिए पहुंचने लगे । इंद्र भी अपने वाहनों के साथ वहां पर पहुंचे । राजा नल को संदेस मिला तो वे भी वहां पर पहुंचे । किंतु रास्ते मे ही इंद्र ने अपने वाहन को उनके आगे खड़ा कर
दिया और बोले राजा नल आप बहुत सत्यव्रती हैं। आप हम लोगों के दूत बन जाएं और दमयंती के पास जाकर बोले की इंद्र वरूण अग्रि आप से विवाह करने आए हैं आपको जो पसंद आए आप उसे चुन सकती हैं। किंतु नल ने कहा देवराज वहां पर आपलोगों का और मेरे जाने का एक ही प्रयोजन है।
इसलिए आप मुझे वहां पर दूत बनाकर न भेजे। जिसकी भला किसी स्ति्री को पत्नी के रूप मे पाने की इच्छा हो वह उसे कदापी नहीं छोड़ सकता। तब देवताओं ने कहा नल तुम पहले प्रतिज्ञा कर चुके हो अब तुमको वहां जाना चाहिए तब नल बोले नहीं मे वहां पर नहीं जा सकता । वहां वैसे भी कड़ा पहरा है।
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नल गए देवताओं का दूत बनकार
देवताओं की आज्ञा मानने के बाद राजा नल देवताओं का संदेस लेकर दमयंती के पास पहुंचे । नल का रूप देखकर दमयंती की सारी सहेलिय मंत्र मुग्ध हो गई । नल को देखते ही दमयंती बोली कि तुम महल मे कैसे आ गए। यदि किसी द्वार पालक ने पकड़ लिया तो मेरे पिता आपको कठोर दंड़ देंगे।
में देवताओं के प्रभाव से यहां पर आया हूं । देवता तुम से विवाह करना चाहते हैं। यह संदेश तुमको देने आया हूं। आगे तुम्हारी जो इच्छा है। तब दमयंती बोली की स्वामी मे पहले की आपके चरणों की दासी बन चुकी हूं। जबसे हंसों ने आपके बारे मे बताया है। हमेशा ही आपके खयालों के अंदर खोई रहती हूं।
तब राजा नल ने दमयंती से कहा कि जब बड़े बड़े देवता तुमसे विवाह करना चाहते हैं तो तुम मुझ जैसे मनुष्य से विवाह करने पर क्यों तुली हुई हो मैं तो उन देवताओं के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हूं। तुम मुझे छोड़ो और देवताओं मे से किसी का वरण करलो।
नल की बात सुनकर दमयंती घबराकर बोली मैं आपको वचन देती हूं की मैं आपको ही पति के रूप मे वरण करूंगी । लेकिन मैं यहां पर देवताओं का दूत बनकर आया हूं सो अपने स्वार्थ की बात नहीं करना चाहता । मैं तुम से विवाह तभी करूंगा जब वह धर्म के विरूद्व नहीं होगा ।
तब दमयंती बोली इसका एक ही उपाय है। स्वयंवर के अंदर आपको ही आना होगा । और तब मैं आपको वरण कर लूंगी ।
उसके बाद नल चले गए। और देवताओं से बोले की दमयंती को काफी समझाया फिर भी वह मुझ से ही विवाह करने पर अड़ी हुई है।
दमयंती ने कैसे पहचाना असली नल को
जब स्वयंवर का समय आया तो सभी राजा अपने जगह पर बैठे थे । दमयंति ने चारों और नजर दौड़ाई तो उसे राजा नल के जैसे पांच लोग दिखाई दिये । लेकिन दमयंती के पास राजा नल को पहचानने की कोई शक्ति नहीं थी। तब दमयंती ने देवताओं को उनके असली रूप के अंदर आने का आग्रह किया और वह बोली की वह राजा नल से ही प्रेम करती है। तब देवता अपने असली रूप मे आ गये । और दमयंती ने राजा नल को अपना पति चुन लिया।
राजा नल का बुरा वक्त
जब दमयंती के स्वयंवर से लौट कर राजा इंद्र और अन्य देवता अपने लोको के अंदर जा रहे थे तब उनको मार्ग मे कलयुग और द्वापर मिले । तब इंद्र ने पूछा की वे कहां जा रहे हैं तब कलयुग बोला कि वे दमयंती के स्वयंवर मे जा रहे हैं। तब इंद्र बोले दमयंती का स्वयंवर कब का पूरा हो चुका है। उसने राजा इंद्र को पति चुन लिया है। इस बात से कलयुग को क्रोध आ गया। और वे बोले आखिर देवताओं के होते हुए दमयंती ने एक इंसान को पति के रूप मे कैसे चुना । तब इंद्र बोले यह सब हमारी आज्ञा से ही हुआ है।
तब कलयुग ने कहा मैं अपने क्रोध को शांत नहीं कर सकता । इसलिए मैं राजा नल से बदला लूंगा और वह द्वापर से बोला तुम मेरा साथ देना ।तुम जुए के पासों के अंदर प्रवेश कर जाना ।
बारह वर्षों तक वे प्रतिक्षा करते रहे की नल के अंदर को दोष दिखे । फिर एक दिन राजा नल लघुशंका से मुक्त हो कर बिना पैर धोए ही संध्या वंदन मे बैठ गये तब कलयुग उनके शरीर मे प्रवेश कर गये।
जुए मे नल बर्बाद हुए
कलयुग दुसरा रूप धारण करके पुष्कर के पास गया और बोला कि तुम राजा नल के साथ जुआ खेलो और सारा राज्य प्राप्त करलो इस काम मे मैं तुम्हारी सहायता करूंगा । और द्वापर भी पासे के रूप मे साथ हो लिया। जब नल से पुष्कर ने पासे खेले को कहा तो नल तैयार हो गए ।
उस समय नल के शरीर मे कलयुग घुसा हुआ था । वो जोभी पासे फेंकते वे सारे उल्टे पड़े जा रहे थे । राजा की हालत देख मंत्रियों ने भी उसे रोकना चाहा ।किंतु वे नहीं माने तब दमयंती ने भी उन्हें रोकना चाहा पर उनपर कोई असर नहीं हुआ तब दमयंती ने अपने सेवक को आदेस दिया की रथ जोड़ लो और उसमे सारा धन भरकर
कुंडिनगर ले चलो । सेवको ने ऐसा ही किया। और अब तक राजा नल सबकुछ जुए के अंदर हार चुके थे।
जुए मे सबकुछ हारने के बाद राजा की हालत
एक दिन राजा नल के पास बहुत से पक्षी बैठे हए थे । जिनके पंख सोने के थे नल ने सोचा की किसी एक को पकड़ लू तो धन मिलेगा । उन्होंने । अपना पहना हुआ वस्त्र एक पक्षी पर डाला लेकिन पक्षी उसे ले उड गया। और बोला हम पक्षी नहीं जुए के पासे हैं। अब तेरे पास पहनने के लिए भी कुछ नहीं है।
उस समय राजा नल के पास पहनने के लिए वस्त्र नहीं था। बिछाने के लिए चटाई नहीं थी। भूख प्यास से शरीर बेजान हो रहा था। उनकी पत्नी भी उनके साथ सब दुख झेल रही थी। उनकी पत्नी उनके पास ही सो रही थी। वे अब पत्नी को छोड़ने का निश्चय कर चुके थे। वे जानते थे कि दमयंती उनसे
सच्चा प्रेम करती है। यदि वे इस छोड़ देते हैं तो कम से कम वह तो सुखी रहेगी । उसके बाद उन्होंने अपने पत्नी के शरीर से एक कपड़े का टुकड़ा फाड़ा और अपने शरीर के लपेट कर सोती हुई दमयंती को छोड़कर चले गये ।
जब राजा का मन शांत हुआ तो सोचने लगे कि अब तक दमयंती पर्दे के अंदर रहती थी। आज वह उसे अकेली वन के अंदर छोड़ आया है। वह इस भंयकर वन मे उसके बिना कैसे रहेगी । मैं तुम्हे छोड़कर आ चुका हू सभी देवता तुम्हारी रक्षा करें।
जब दमयंती की आंख खुली तो देखा कि नल वहां पर नहीं है तो वह नल नल चिल्लाने लगी । एक अजगर उसे निगले ही वाला था कि वह बचाओ बचाओ चिल्लाई । तब एक व्याध ने उसकी पुकार सुनली और अजगर को मारक दमयंती को बचा लिया । उसे भोजन भी दिया।
जब दमयंती शांत हुई तो व्याध ने पूछा तुम कौन हो और इस भयंकर वन मे क्या कर रही हो। इस प्रकार वह दमयंती पर मोहित होगया और उसके दिल मे बसने की कोशिश करने लगा। जब वह किसी प्रकार से नहीं माना तो दमयंती ने उसे शाप देदिया। वह बोली मैंने राजा नल से प्रेम किया है। मैं सदा उसी से प्रेम करती रहूंगी ।
इतना कहते ही व्याध मरके गिर गया। तब दमयंती भंयकर वन मे जा पहुंची । उसे वहां पर कई तपस्वी नजर आए। वह वहां पर गई तो तपस्वी ने उनका आदर सत्कार किया और पूछा कि वह यहां पर क्या कर रही है। तब दमयंती ने सारी कहानी बताई । तपस्वी ने आशीर्वाद देते हुए कहा की जल्दी ही तुम्हारी मनोकामना पूरी हो
जाएगी और ऐसा कहकर तपस्वी वहां से गायब हो गये ।
सांप ने डसा राजा को
जब राजा नल दमयंती को छोड़कर वन मे गए थे तब वन मे आग लगी थी। तब वहां पर उन्हें आवाज आई की मुझे बचाओ तब नल ने देखा की एक सांप पड़ा हुआ है। सांप ने राजा से कहा कि आप ही मेरी रक्षा कर सकते हैं। मैंने नारद के साथ धोखा किया था तब मुझे शाप मिला है कि तुम्हें केवल नल ही बचा सकता है। नल ने उसे उठाया और दो चार कदम चलने के बाद छोड़ दिया किंतु सर्प ने नल को डस लिया। और बोला । अब तुम हर विधाओं के अंदर निपूर्ण होओगे । और तम्हारे पर किसी भी प्रकार का विष का असर नहीं होगा । अंदर बैठे कलयूग को अब बहुत कष्ट होने लगा। और सर्प ने नल को दो विशेष वस्त्र भी दिये थे ।
इस तरह से दोनो मिले
अब राजा नल बाहुक के रूप मे रहने लगे थे दमयंती को शक हो चुका था कि यही राजा नल है। दमयंती ने अपनी सहेलियों को बाहुक के बारे मे जानकारी लेने भेजा ।तब उसकी सहेलियों ने बताया कि उसने जल आग पर भी विजय प्राप्त करली है। तब दमयंती को विश्वास हो जाता है कि यही राजा नल है
और उसने अपनी माता को आकर बताया । तब दमयंती ने उसे अपने महल के अंदर बुलाया और कई बातें पूछी और बोली की मैंने आज तक मन से किसी पर पुरूष का स्मरण नहीं किया। तब राजा नल अपने असली वेश के अंदर आ गये । उनका बहुत अधिक स्वागत हुआ। और उन्हें बहुत धन देकर विदा किया गया।
This post was last modified on January 30, 2023