दोस्तों यदि आप हिंदु धर्म को मानने वाले हैं तो आपने देखा और सुना होगा कि नारायण बलि और नागबलि विधियों की मदद से मर चुकी आत्माओं को संतुष्ट किया जाता है। वैसे यह दोनों विधियां समान ही होती हैं। और दोनों को एक साथ ही पूरा करना होता है। नारायण बलि और नागबलि विधियों का प्रयोग कर मर चुके लोंगों की अधूरी इच्छा को पूरा किया जाता है। कई बार पितर दोष को दूर करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।
नारायण बलि का मुख्य उदेश्य पितर दोष को दूर करना होता है। और नागबलि का मुख्य उदेश्य नाग हत्या और सुसाइड की स्थिति मे की जाती है। इन दोनों को साथ साथ ही पूरा करना अनिवार्य है।
पितृ दोष मतलब का मतलब भी आपके लिए जान लेना आवश्यक होगा । मतलब कि हमारी पिछली कुछ पिढ़ियों के अंदर कोई इंसान वासना लिए हुए मर जाता है तो हमारी जन्म कुंडली मे पित्र दोष का निर्माण हो जाता है। यदि आपने कुंडली बना रखी है तो आप देख सकते हैं कि शनि-रवि, शनि-राहू, शनि-मंगल, शनि-चंद्र
आदि ग्रह एक ही भाग मे आ जाते हैं तो कुंडली मे पितर दोष हो जाता है।यदि आप इसको नहीं समझ सकते हैं तो आप अपनी कुंडली को किसी अच्छे ज्योतिषी को दिखा सकते हैं। हमारा जन्म हमारे पूर्व जन्म मे किये गए कर्मों के आधार पर होता है।इन्हीं के आधार पर यह तय होता है कि हम कब और किस कुल और किस योनी के अंदर जन्मलेंगे ।इसके अलावा ग्रहों की दशा के अनुसार ही हमारा स्वाभाव होता है।
अब यदि हमारे कुल के अंदर कोई व्यक्ति वासना को लिए हुए मरा जाता है तो वह भूत योनी के अंदर चला जाता है। और उसके बाद उसकी आत्मा की गति नहीं होती है। इंसान का शरीर पंच भूतों से मिलकर बना होता है।जब शरीर नष्ट हो जाता है तो सूक्ष्म शरीर बच जाता है।
यह सूक्ष्म शरीर को हम आम नेत्रों से देख नहीं सकते हैं। लेकिन वह सदा रहता है। आमतौर पर नेचर का यह नियम होता है कि मरने के बाद जीव को दूसरा शरीर मिले लेकिन जब आत्मा के साथ वासनाएं चिपक जाती हैं तो वह शांत नहीं होती है और भटकती रहती है। उस आत्मा का शाप हमे भी लगता है।यदि हम नारायण बलि पूजा नहीं करते हैं तो इसका बुरा असर हमारे कामों पर भी पड़ता है।
यह पूजाएं खास कर जवान लोगों के लिए की जाती हैं जोकि किस कारण वश अपना जीवन पूरा नहीं कर पाए हैं।क्योंकि अधिकतर व्रद्व हो चुके लोगों की कोई इच्छा शेष नहीं रहती है। इस वजह से उनकी गति अपने आप ही हो जाती है।
लेकिन जब कोई जवान मर जाता है तो उसका मन मोह ,माया ,और धन ,व स्त्री के अंदर अटक सकता है। ऐसी स्थिति मे आत्मा बंध जाती है और उसका दूसरा जन्म भी नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति मे यह पूजा की जाती है और आवश्यक भी होती है।
गीता के अंदर एक श्लोक आता है वह इस प्रकार है
संकरो नरकाचैव कुलघ्नानां कुलस्यच ।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ।।
मतलब यह है कि जब महाभारत का युद्व हुआ था तो बहुत सारे वीर इसके अंदर मारे गए थे ।और बहुत से ऐसे थे जिनके पीछे कोई भी नहीं था।ऐसी स्थिति के अंदर उनके श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान की समस्या हुई थी। और यह सब करना बहुत अधिक जरूरी था।यदि ऐसा नहीं किया जाता तो उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती ।इन सब कर्मकांडों की वजह से पितृलोक मे पितरों को अन्न मिलता है। लेकिन यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो फिर वे वापस प्रेतयोनी के अंदर आ जाते हैं।
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बुलाया जाता है मर चुके लोगों की आत्मा को
यदि आपने नारायण बलि करवाते वक्त देखा होगा तो पंड़ित कई प्रकार का सामान वहां पर रखते हैं। जैसे मिठाई लगभग हर तरह की मिठाई। और कपड़े वैगरह । फलफ्रूट मतलब बहुत सारी चीजे रखते हैं। यह सब चीजे वहां पर इस वजह से रखी जाती हैं ताकि मर चुकी आत्मा कार के अंदर आ सके और उसकी जो अधूरी इच्छा को पूरा किया जा सके । जब तक वह आत्मा कार के अंदर नहीं आती है पंड़त आहूती देते रहते हैं। नारायण बलि और नागबलि को करने के लिए एक सि द्व पंड़त की आवश्यकता होती है।
किन कारणों की वजह से की जाती है नागबलि और नारायण बलि
दोस्तों इन दोनों विधियों को सम्पन्न करने के पीछे कई कारण होते हैं। और खास कर लोग अपने पूर्र्वजों की आत्मा की शांति के लिए इन विधियों का प्रयोग करते हैं। इनको सम्पन्न करने के लिए काफी समय लग सकता है। तब तक आहूति देनी होती है। जब तक आत्मा कार के अंदर नहीं आ जाती हो ।
प्रेतयोनि से होने वाली पीड़ा की वजह से
कई बार हमारा कोई प्रियजन मौत के बाद प्रेत योनी के अंदर अटक जाता है। और जैसा कि आप सभी जानते हैं कि प्रेत योनी के अंदर इंसान की आत्मा को बहुत अधिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। उस पीड़ा को दूर करने के लिए उस आत्मा की नारायण बलि और नागबलि करवाई जाती है।
काल की मौत मरने की वजह से
यदि किसी व्यक्ति की मौत पानी के अंदर डूबने आ सुसाइड की वजह से आग मे जलने की वजह से हुई हो तो ऐसे व्यक्ति की आत्मा को शांति नहीं मिलती है। इस वजह से उनकी आत्मा को शांति देने के लिए नागबलि और नारायण बलि की साधना की जाती है।
प्रेतशाप और जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए
नागबलि और नारायण बलि किसी प्रेत के शाप के प्रभाव को कम करने के लिए भी की जाती है। यदि कोई मरी हुई आत्मा का दुष्ट प्रभाव हमारे घर के उपर पड़ रहा है तो यह उसे कम करने मे काफी मदद गार हैं। इसके अलावा यदि हमारा कोई प्रियजन किसी योनी के के अंदर अटक गए हैं तो उनकी सदगति के लिए भी ऐसा किया जाता है।
- शाप का पता इंसान को उसके सपनों से भी चलता है।जैसे सपने मे नाग को देखना
- खुद को पानी के अंदर डूबते हुए देखना
- सपने मे ईमारत को गिरते देखना
- किसी रोगी या विधवा स्त्री को देखना आदि
संतान प्राप्त करने के लिए
यदि किसी व्यक्ति को संतान नहीं हो रही है तो भी कुछ लोग नागबलि और नारायणबलि करवाते हैं। जिससे उनकी इच्छा पूर्ण हो सकती है।l
सभी तरह की समस्याओं के समाधान के लिए
भत पिशाच बाधा, व्यापार में असफल, कई परिवार के सदस्यों में अन्य लोगों के, शैक्षिक बाधा, शादी की समस्याओं, दुर्घटना में मृत्यु, अनावश्यक व्यय, , परिवार स्वास्थ्य समस्याएं, पैसे की बर्बादी जैसी सभी तरह की समस्याओं को खत्म करने के लिए भी यह पूजा की जाती है।
नाग हत्या के दोष का निवारण करना
यदि किसी व्यक्ति ने जाने अनजाने के अंदर नाग हत्या करदी हो तो उसका शाप उसे लग जाता है। जिसकी वजह से उसकी लाइफ के अंदर बहुत सारी परेशानियां आती हैं। इन सब परेशानियों का निवारण करने के लिए नागबलि और नारायण बलि की जाती है।
कौन कर सकता है ?
जिन जाताकों के माता पिता जीवित होते हैं वो यह कर्म कर सकते हैं। इसके अलावा संतान प्राप्ति के लिए पत्नी भी यह कर्म कर सकती है। एक गर्भवति महिला 5 महिने के बाद यह पूजा के अंदर नहीं बैठ सकती है। माता पिता की मौत के एक साल तक यह कर्म नहीं किये जा सकते हैं।
सिद्व तांत्रिक ही करते हैं यह पूजा
वैसे यह एक पूजा कम और यज्ञ की तरह अधिक होती है। खास कर इसके अंदर मर चुके लोगों की आत्मा की संतुष्टि करने के लिए उन आत्माओं को बुलाया जाता है। मंत्रों को जपकर उनका आहवान किया जाता है। पहलें तो वह आत्माएं वहां पर आने मे आनाकानी करती हैं। लेकिन बाद मे उनको आना पड़ता है और फिर उनको संतुष्ट करने वाले कर्म किये जाते हैं।कुल मिलाकर यह पूजा काफी डेंजरस होती है। हर कोई पंड़त के बस की बात नहीं होती है। हर मर चुकी आत्माओं को कंट्रोल करने की ।
नारायण बलि के बाद भी प्रेत योनि से निकलना आवश्यक नहीं ?
दोस्तों बहुत से लोगों को यह भ्रम हो सकता है कि इन पूजा को करवाने के बाद म्रत इंसान प्रेत योनि से अपने आप ही निकल जाता है। लेकिन असल मे ऐसा नहीं है। बहुत बार यह पूजा भी असफल हो जाती है।जो पंडे या पूजारी इस पूजा को करते हैं वे जानते हैं कि यह असफल हो चुकी है लेकिन उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता है वे अपना पैसा लेकर चलते बनते हैं।
ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं जिसमे यह पूजा असफल हो गई थी। और उसके बाद घरवालों को कई बार पूजा करवानी पड़ी ।मेरी बुआ का एक लड़का खत्म हुआ था तो नारायण बलि पूजा करवाई गई । लेकिन उससे पहले उसका दादा भी प्रेत योनी के अंदर था। दोनों के लिए यह करवाई गई थी। लेकिन उसका दादा अभी भी भटक रहा है। मतलब उसके लिए यह पूजा सफल नहीं हो सकी ।
इसी तरीके की एक अन्य घटना के अंदर घरवालों ने अपने मर चुके बेटे को आगे कि गति देने के लिए यह पूजा करवाई थी लेकिन पहली दफा के अंदर यह असफल हो गई और उनके 15 हजार रूपये भी लग गए। उसके बाद फिर पूजा करवाई लेकिन फिर भी असफल हो गई और पैसे लग गए ।उसके बाद उन लोगों ने फिर नारायण बलि और नाग बलि पूजा करवाई उसके बाद वह सही हुई ।
कैसे पता करें नारायण बलि और नागबलि पूजा असफल हो गई।
वैसे तो आपको यह बताने की आवश्यकता नहीं है।वैसे तो अधिकतर लोग मर चुकी लोगों की अधूरी इच्छा को संतुष्ट करने के लिए नागबलि पूजा करते हैं। और जो लोग भूत प्रेत योनि के अंदर चले जाते हैं और उनका कर्म का ढांच तीव्र होता है तो वे आपको बार बार एहसास दिलाते हैं। नारायण बलि पूजा करने के बाद उस आत्मा की प्रेत योनी से मुक्ति हो जाती है। वह अब आपको नजर नहीं आएगी ।और आपके कार्यों पर बुरा असर नहीं डालेगी । लेकिन पूजा हो जाने के बाद भी यदि ऐसा हो रहा है तो इसका मतलब यह है कि पूजा असफल हो गई। और आपको इसको दूबारा करवाने की आवश्यकता है।
प्रेत शक्ति और पूजा की असफलता
दोस्तों ऐसा माना जाता है कि जो आत्मा बहुत अधिक पापी होती है वह उतनी ही अधिक ताकतवर भी होती है। यदि कोई आत्मा बहुत अधिक ताकतवर है तो उसकी इच्छा नारायणबलि के अंदर कई पूर्ण नहीं हो पाती है। बहुत बार ऐसा हो जाता है।
ऐसी स्थिति के अंदर पूजा का कोई लाभ नहीं होता है।यदि प्रेत आत्मा संतुष्ट नहीं होती है तो वह वहीं पर भटकती रहती है। हालांकि इस पूजा के अंदर प्रेतआत्मा की कुछ खास इच्छाओं को ही पूरा किया जा सकता है। सभी इच्छाओं को पूरा नहीं किया जा सकता है।जो आत्मा को प्रेत योनी से निकालने के लिए काफी होती हैं।
नारायण बलि और नागबलि का खर्च कितना आता है
वैसे तो इसका खर्च अलग अलग राज्य और जगह के हिसाब से अलग अलग हो सकता है। हमारे यहां पर बात करें तो इसका खर्च 15 हजार से लेकर 25 हजार तक आता है। आप अपने पास के पंड़ितों से बात कर सकते हैं। वे इसको बारे मे आपको पूरी विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे ।
नारायण बलि और नागबलि के अंदर प्रयुक्त होने वाली सामग्री
वैसे तो इसके बारे मे आपको पंडित अधिक अच्छी तरह से बता सकते हैं।और यह सामग्री केवल पंड़ित से ही मंगवानी चाहिए । इसमे लगभग 5000 रूपये के आस पास खर्च हो ही जाता है। बर्तन, छोटी प्लेटें, तांबे के बर्तन, पाली, 3 ब्राह्मण, कपास आसन । दरभा और रेशम, देवताओं की मूर्तियाँ, यज्ञ के लिए आवश्यक सामग्री, मक्खन, चावल, पलाश की लकड़ियाँ, । सूखे गोबर केक, तिल, जौ, फूल, फूलों की माला, दूध, घी, दही, शहद और चीनी का मिश्रण। पूजा के लिए सामग्री, पत्तों से बनी प्लेटें। अनुष्ठान के लिए गेहूं का आटा।
नागबलि क्या है और इसकी जानकारी
नागबलि का संबंध नागों से है। और वैसे भी मनुष्य का संबंध नाग योनी से ही रहा है।जब कोई इंसान बहुत अधिक धन एकत्रित कर लेता है और उसकी इसमे आसक्ति हो जाती है। और इस तरह का इंसान मरता है तो वह मरने के बाद नाग बनकर इस धन के चारो और रहने लगता है।वह इस धन की सुरक्षा करता है।
और यदि कोई इस तरह के नाग की हत्या कर देता है तो शाप मिलता है।ऐसी स्थिति के अंदर पुत्र प्राप्ति के अंदर बाधा होती है।इस विधि मे नाग की प्रतीमा बनाकर पूजा की जाती है।और दान दिया जाता है।जिससे नाग दोष दूर होता है और पुत्र प्राप्ति होती है।
नारायण बलि और नागबलि की विधि
यह विधि सभी जाति और सम्प्रदाय के लोग कर सकते हैं।जिनके माता पिता जीवित हैं वे भी इस कर्म को सम्पन्न करवा सकते हैं। इनको कुंवारा ब्राहा्रमण करवा सकता है। बेहतर होगा यह पति पत्नी दोनों एक साथ मिलकर करें । लेकिन यदि पत्नी जीवित नहीं होतो कुल के कल्याण के लिए पति अकेला भी कर सकता है।आप जिस उदेश्य के लिए यह पूजा कर रहे हैं आपको इस बारे मे पंडित को पहले ही बता देना चाहिए ।क्योंकि पंड़ित उसी के अनुसार इनके समय को निश्चित करता है।जैसे कि यदि नारायण बलि और नागबलि संतान प्राप्ति के लिए की जा रही है तो यह सावन के अंदर अच्छी रहती हैं। अधिकतर पंड़ित इन विधियों को रविवार ,सोमवार गुरूवार को आरम्भ करना अच्छा समझते हैं।
नारायण बलि और नागबलि करने का तरीका हर जगह पर थोड़ा अलग अलग हो सकता है। सबसे पहले गोदावरी नदी के अंदर स्नान करने का विधान है। हालांकि यह सब लोगों के लिए जरूरी नहीं है।जिनके पिता मर चुके होते हैं उनको मुंडन करवाना होता है। उसके बाद शरीर को अच्छी प्रकार से शुद्व करना होता है।
उसके बाद शरीर पर नय कपड़े पहन कर मंदिर को जाना होता है। यहां पर त्रयंबकेश्वर मंदिर जाने का प्रावधान है। हालांकि ऐसा करना संभव नहीं है और आवश्यक भी नहीं है।उसके बाद मंदिर के पूर्व द्वारा से वहां पर पहुंचा जाता है और मन ही मन भगवान से अपने काम को सिद्व करने की प्रार्थना की जाती है। गोदावरी संगम के उपर एक धर्मशाला बनी हुई है। बहुत से लोग यहां पर कर्मकांड करने के लिए आते हैं। यहां पर सारी व्यवस्था होती है। नागबलि करने से पहले नेत्रों को धोया जाता है और इसको करने का संकल्प लिया जाता है।
उसके बाद कर्म शूरू किया जाता है। और पांच कलश स्थापित किये जाते हैं और उनके उपर पांच मूर्ति स्थापित की जाती हैं।इसमे ,यम ,रूद्र,विष्णु ,बहा्र और प्रेत ।उसके बाद पांचों देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और अग्नी के अंदर आहूती दी जाती है।इसके लिए आटे और चावल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
उसके बाद चावल के उपर कपास से बनी बति का सुलगा दिया जाता है।उसके बाद पति या दोनों इसका पूजन करते हैं। और फिर यदि आप इसको घर के अंदर कर रहे हैं तो चावल को कोओं के लिए रखा जाता है।
इस स्थिति के अंदर एक बात ध्यान रखना चाहिए कि यदि चावल की बलि को काक स्पर्श कर लेते हैं तो इसका मतलब यह है कि मरी हुई आत्मा संतुष्ट हो चुकी है। लेकिन यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो इसका मतलब यह है कि आत्मा संतुष्ट नहीं हुई । ऐसी स्थिति के अंदर दुबारा भगवान से प्रार्थना की जानी चाहिए।
इस कार्य पुर्ण हो जाने के बाद पुतला विधान किया जाता है। इसके अंदर आटे का का पूतला बनाया जाता है और उसके बाद ऐसा माना जाता है कि यह जीवात्मा का शरीर है।उसे नारायण नाम के कश्यप गोत्र से संबोधित किया जाता है। उसके बाद पुतले के पैर को दक्षिण दिशा के अंदर रखकर पूतले को मंत्र सहित आग दी जाती है। इस तरह से मौत के बाद से 10 वें दिन तक का कर्म पूर्ण हो जाता है और फिर जो कुछ भी बचता है उसे गंगा के अंदर बहा दिया जाता है।
नारायण और नागबलि विधि का दूसरा दिन
अब दूसरे दिन पुतले दहन की जगह पर जाकर राख को गंगा मे डाला जाता है। और फिर स्नान आदि कार्य संम्पन्न किये जाते हैं। उसके बाद नय वस्त्र को धारण किये जाते हैं।और भगवान को प्रमाण करके कार्य पूर्ण का वरदान मांग जाता है। फिर 11 वे दिन का कर्म करके बारह मांस के पूरे क्ष्ाद किये जाते हैं। अब पिंडों की पूजा की जाती है। इन सब कार्यों के पूर्ण हो जाने के बाद प्रेत आत्मा प्रेत से मुक्त हो जाती है और उसकी सदगति हो जाती है।
यहां पर प्रायश्चित संकल्प भी लिया जाता है।यदि इस जन्म मे किसी नाग की हत्या की हो या पूर्व जन्म मे नाग की हत्या की हो तो विधि पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा करके बलि प्रदान की जाती है।
नारायण और नागबलि विधि का तीसरा दिन
यह अंतिम दिन होता है।इसमे सबसे पहले नाग दहन की जगह जाकर राख को गंगा के अंदर विर्सजन किया जाता है और स्नान कर खुद को पवित्र किया जाता है।और फिर आवश्यक पूजा को सम्पन्न किया जाता है। फिर मंदिर जाकर अपने भगवान से कार्य पूर्ण करने की प्रार्थना की जाती है।उसके बाद पंड़ितों को भोजन करवाएं और उनको स्वर्ण नाग का दान देवें । बस फिर उनको दक्षिणा देदें । अब सभी कार्य सम्पन हो जाते हैं।
नारायण बलि पूजन सामग्री लिस्ट
यदि हम इस विधि के पूजन सामग्री की बात करें , तो यह अलग अलग हो सकती है। जिसके अंदर कि श्रीफल, धूप, फूल पान के पत्ते, सुपारी, हवन सामग्री, देसी घी, मिष्ठान, गंगाजल, कलावा, हवन के लिए लकड़ी (आम की लकड़ी), आम के पत्ते, अक्षत, रोली, जनेऊ, कपूर, शहद, चीनी, हल्दी, आदि होती है। हालांकि जिस किसी से आप यह पूजा करवा रहे हैं , आप उससे पर्ची पर इस सामग्री को लिखवाकर लेकर आएं । या फिर आप यह कर सकते हैं। कि उसको पहले ही सामग्री का पैसा देदें । क्योंकि आपको पूरी जानकारी नहीं है , कि तंत्र के अंदर किसी तरह की चीजें कहां पर मिलती हैं। और असल मे जो लोग इस तरह के कार्य करते हैं , उनको यह पता होता है , कि कौनसी समाग्री कहां पर मिलेगी ।
नारायल बलि पूजा किससे करवाएं
इस पूजा को करवाने के लिए आपको कई सारे पंडित मिल जाएंगे । आप उनसे पूजा करवा सकते हैं। इसके बारे मे आप पता कर सकते हैं। आपके आस पास इस तरह के बहुत सारे लोग हैं , जोकि इस पूजा को करवा चुके हैं। उनसे आप संपर्क कर सकते हैं। और पूजा करने वाले से पूछ सकते हैं। इसके अलावा पैसा वैगरह की बात कर सकते हैं। इससे आपको चीजों के बारे मे पता करने मे आसानी हो जाएगी ।