शक्ति संतुलन से क्या समझते हैं – शक्ति संतुलन से क्या समझते हैं बताइए -शक्ति-संतुलन का सिद्धान्त (balance of power theory) यह कहता है कि राष्ट्र तभी सुरक्षित रहेगा जबकि सैनिक शक्ति इस प्रकार से बंटी हुई हो कि कोई अकेला राज्य कुछ ना कर सके । शक्ति संतुलन की अवधारणा लगभग 15 वीं शताब्दी से अंतर्राष्ट्रीय स्तर में प्रचलित है। वैसे इस धारणा की परिभाषा को लेकर विद्धान एक मत नहीं हैं। और इसकी कुछ सरल परिभाषाएं हैं तो कुछ जटिल परिभाषाएं भी मौजूद हैं।
वैसे आपको बतादें कि शक्ति संतुलन कई प्रकार का हो सकता है। यह रो राष्ट्रों से लेकर दो समुदायों के बीच हो सकता है। लेकिन शक्ति संतुलन का सबसे सरल रूप दो राष्ट्रों के बीच शक्ति संतुलन है।
वैसे परमाणु युग के अंदर शांत और सुरक्षा स्थापित करने के लिए और युद्धों से बचने के लिए शक्ति संतुलन का होना आवश्यक होता है।इसमे दो राष्ट्रों के बीच एक राष्ट्र शक्तिशाली नहीं हो और वह अपने से कमजोर राष्ट्र के उपर ताकत का प्रयोग ना कर सके ।
राइट ने अपनी एक बुक के अंदर लिखा है शक्तिसंतुलन का मतलब उन प्रयासों से है जिन्हें अपेक्षित राजनेतिक शक्ति से द्रष्टिगत किया जाता है और मापा जाता है।इसके अलावा शक्ति संतुलन को कभी कभी नीति की संज्ञा भी दी जाती है।
इस प्रकार से शक्ति संतुलन राष्ट्र हितों की प्राप्ति का सबसे अच्छा मार्ग माना गया है।पामर एंड पार्किंस के अनुसार शक्ति संतुलन अंतरर्राष्टि्रय संबंधों का आधारभूत सिद्धांत होता है।यह शांति और सुरक्षा स्थापित करने का बहुमूल्य यंत्र होता है। इसको अंतरर्राष्टि्रय राजनीति के अंदर काफी मान्यता प्रदान की गई है।जोकि राष्ट्रों के बीच शक्ति संतुलन को स्थापित करने के लिए बेहद ही जरूरी होती है।शक्ति संतुलन को प्रत्येक राष्ट्र अपने क्षेत्र के अंदर लगा सकता है।
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शक्ति संतुलन से क्या समझते हैं शक्ति संतुलन का अर्थ the balance of power
वैसे आपको बतादें कि शक्ति संतुलन का मतलब राष्ट्रों के बीच सामान्य शक्ति के वितरण से लिया जाता है।शक्ति संतुलन के संबंध मे विद्धानों ने अनेक परिभाषाएं दी हैं। जिनके बारे मे हम बात करते हैं।
जार्ज स्थवार्जन बर्गट के अनुसार शक्ति संतुलन वह साम्यावस्था या अंतर्राष्ट्रीय संबंध में कुछ मात्रा में स्थिरता या स्थायित्व है, जो राज्यों के बीच मैत्रा-संधियों या अन्य दूसरे साधनों की मदद से प्राप्त किए जा सकते हैं।
According to George Bjergt Bergat, the balance of power is some degree of stability or stability in equilibrium or international relations that can be achieved with the help of treaties or other means between states.
कैसलरे के अनुसार राष्ट्र परिवार के सदस्यों के बीच ऐसी साम्यअवस्था बनाए रखना कि इनमे से कोई भी उतना ताकतवर नहीं हो सके कि वह अपनी इच्छा दूसरों पर ना लाद सके ।
According to Castlere, to maintain such an order among the members of the nation family that none of them could be so powerful that they could not impose their will on others.
माग्रेथो के अनुसार प्रत्येक राष्ट्र यथाशक्ति को बनाए रखने के लिए या परिवर्तित करने के लिए दूसरे राष्ट्रों की अपेक्षा अधिक शक्ति को बनाने की आकांक्षा रखता है।इसके परिणाम स्वरूप जिस ढांचे की आवश्यकता होती है वह शक्ति संतुलन है।
According to Magretho, each nation aspires to create more power than other nations to maintain or transform power. As a result, the framework that is needed is the balance of power.
क्लाड के अनुसार शक्ति संतुलन एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंदर छोटे राष्ट्र बिना किसी बड़े राष्ट्र के हस्तेक्षप के अपने राष्ट्र का संचालन करते हैं।इस प्रकार से यह विक्रेंद्रित अवस्था होती है जिसके अंदर शक्ति निर्णायक हाथों मे होती हैं।
According to Claude, the balance of power is a system in which small nations operate their nation without interference from a larger nation. Thus it is a decentralized state in which power is in decisive hands.
सिडनी फे के अनुसार शक्ति संतुलन वह व्यवस्था है जिसके अंदर प्रत्येक राज्य का विश्वास बनाए रखने का प्रयत्न किया जाता है।यदि राज्य आक्रमण का प्रयत्न करते हैं तो उन्हें अजेय दूसरे राष्ट्रों के समूह का प्रतिरोध करना होगा।
According to Sidney Fay, the balance of power is the system within which each state seeks to maintain its trust. If states attempt aggression, they must resist a group of invincible other nations.
इस प्रकार से अलग अलग विद्धान इसको कई तरीकों से देखते हैं कोई इसको शक्ति के वितरण से देखता है तो कोई इसको संतुलन की वजह से देखता है।इसके अलावा इसको युद्ध की अस्थिरता के रूप मे देखता है।
इस प्रकार से पार्किंस ने शक्ति संतुलन की कुछ विशेषताओं के बारे मे बताया यह कुछ इस प्रकार से हैं
- राष्ट्रों के बीच सदैव शक्ति संतुलन सदैव बना नहीं रह सकता है।
- शक्ति संतुलन को प्राप्त करने के लिए दोनों राष्ट्रों को प्रयास करना होता है। क्योंकि यह ऐसे ही स्थापित नहीं हो पाता है।
- शक्ति संतुलन के बिगड़ जाने से युद्ध का आरम्भ हो जाता है।
- शक्ति संतुलन की नीति गतिशील और परिवर्तनशील होती है।
- शक्ति संतुलन प्रजातांत्रिक और तानाशाही दोनों ही प्रकार के राष्ट्रों के लिए उपयोगी होता है।
- शक्ति संतुलन के अंदर बड़े देश खिलाड़ी होते हैं लेकिन छोटे देश देखते रहते हैं। लेकिन यदि छोटे देश आपस मे मिल जाएं तो वे इस खेल मे अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
शक्ति संतुलन के स्वरूप शक्ति संतुलन से क्या समझते हैं बताइए
दोस्तों शक्ति संतुलन के अने स्वरूप होते हैं। जिनके बारे मे भी आपको जानकारी होनी चाहिए ।
सरल शक्ति संतुलन शक्ति संतुलन से क्या समझते हैं उत्तर
दो समान शक्ति रखने वाले विरोधी गुटों के बीच शक्ति संतुलन होता है तो यह सरल शक्ति संतुलन कहलाता है।द्धितिय विश्व युद्ध के अंदर सोवियत संघ और अमेरिका के अंदर इसी प्रकार का शक्ति संतुलन हुआ था।
बहुमुखी शक्ति संतुलन
दोस्तों इसके अंदर बहुत से राष्ट्र होते हैं और उनके मध्यम शक्ति संतुलन होता है।लेकिन जब ताकत प्राप्त करने के लिए संघर्ष होता है तो फिर यह किसी भी ताकतवर गुट के अंदर शामिल हो सकते हैं।
जटिल शक्ति संतुलन
इस स्थिति के अंदर दो राष्ट्रों के बीच शक्ति संतुलन होता है। जिसको जटिल शक्ति संतुलन कहते हैं। इसके अंदर कई सारी चीजों पर कार्य होता है। यह सामान्य शक्ति संतुलन से अलग होता है।
शक्ति संतुलन का इतिहास
शक्ति संतुलन का इतिहास बहुत पुराना है। इसका आरम्भ 15 वीं शताब्दी से ही माना गाया है।शक्ति संतुलन के अंदर दो राष्ट्रों के बीच एक तीसरा राष्ट्र होता है जो दोनों से अलग होता है और प्रतिस्पर्धा को सीमित करने का प्रयास करता है। शक्ति संतुलन की अवधारणा प्राचीन भारतिय शासक कौटिल्य नी दी थी। और उन्होंने इसका प्रयोग भी किया था।इस प्रकार से शक्ति संतुलन यह करने की कोशिश करता है कि एक राष्ट्र को इतना शक्तिशाली नहीं बनने देता कि वह अपने ही पड़ोसी को नष्ट करने का प्रयास करें ।
सन 1713 ई के अंदर यूट्रेक्स संधि से पौलेंड का विभाजन हुआ था और जिससे कि 1722 तक शक्ति संतुलन की अवधारणा के बारे मे जाना जाता है।1640 से 1914 को शक्ति संतुलन के समय के नाम से जाना जाता है।
ई के अंदर फेस्ट फालिया संधि इसी प्रकार से 1815 ई के अंदर वियाना समझौता हुआ था। सन 1911 को वर्साय संधि भी हुई थी। यह सब शक्ति संतुलन के रूप मे जानी जाती हैं।आपको पता होना चाहिए कि शक्ति संतुलन करने वाले राष्ट्र इस बात का दावा नहीं करते हैं कि वे शक्ति संतुलन कर रहे हैं। वे बस इसका अनुसरण करते हैं। और वे बस संधि पर टिके रहते हैं। कारण यह है कि कोई भी खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहता है।
द्धितिय विश्व युद्ध के अंदर शीत युद्ध के अवधारणा की वजह से राष्ट्रों के प्रभाव पर अंकुश लग गया ।और शक्ति संतुलन को बनाए रखने के लिए सैन्य संगठनों का निर्माण होने लग गया ।
शक्ति संतुलन की कुछ मान्यताएं
- प्रत्येक राज्य अपने अधिकारों को बनाए रखने के लिए अपने राज्य के सर्वोतम संसाधनों का प्रयोग करता है भले ही इसके लिए उसे दूसरे राज्यों से युद्ध ही क्यों ना करना पड़े ।
- यदि किसी राष्ट्र को अपने हितों को किसी भी प्रकार का खतरा होता है तो वह इसके लिए ठोस कदम उठाता है। और इसके लिए भले ही उसे कुछ कड़ा कदम उठाना पड़े ।
- कोई भी राष्ट्र सामने वाले राष्ट्र पर तब तक आक्रमण नहीं कर सकता है जब तक वह सामने वाले राष्ट्र की शक्ति से अपनी तुलना नहीं कर लेता है।
- राष्ट्र अलग अलग राष्ट्र की ताकतों का मूल्यांकन कर सकता है। और उसके बाद अपनी ताकतों को बढ़ा सकता है।
- शक्ति स़िद्धांत को मानते हुए राजनिज्ञ को उचित विदेश नीति बनानी चाहिए ।
- शक्ति संतुलन की वजह से अधिक शक्तिशाली राष्ट्र कमजोर पर आक्रमण नहीं कर पाता है । यदि वह ऐसा करता है तो अन्य कमजोर राष्ट्र एक साथ आते हैं जिससे उसके लिए बड़ा खतरा हो जाता है।
- शक्ति सम्बन्धित तथ्यों की बुद्धिपूर्ण सूक्ष्म विवेचना के द्वारा ही राजनीतिक विदेश नीति संबंधी निर्णय लेते हैं ।
शक्ति संतुलन की विशेषताएं
- शक्ति संतुलन का मतलब होता है राष्ट्रों के बीच संतुलन को बनाए रखना ।क्योंकि शक्ति सदैव परिवर्तनशील होती है। इस वजह से शक्ति संतुलन को बनाने की जरूरत पड़ती है।
- शक्ति संतुलन कोई मूर्त तत्व नहीं है। वरन इसको बनाए रखने के लिए राज्यों को प्रयास करना होता है।यह कोई वरदान नहीं है। वरन मानव द्धारा निरंतर हस्तक्षेप करने की नीति है।
- जब शक्ति के संतुलन की स्थिति के अंदर असंतुलन पैदा हो जाता है तो उसके बाद युद्ध होने की संभावना बढ़ जाती है। और युद्ध के बाद एक नए तरह के शक्ति संतुलन का विकास होता है। उसके बाद पुराने शक्तिशाली राष्ट्र कमजोर हो जाते हैं और कमजोर राष्ट्र शक्तिशाली राष्ट्र के रूप मे उभरते हैं। जब द्धितिय विश्व युद्ध हुआ तो जर्मनी और इटली की पराजय के बाद अमेरिका का नई शक्तिशाली राष्ट्र के रूप मे उभरना ।
- शक्ति संतुलन के अंदर बड़े बड़े राष्ट्र ही खिलाड़ी होते हैं लेकिन छोटे राष्ट्र आपस मे मिल जाते हैं तो यह बदलाव की भूमिका को निभा सकते हैं।
- इतिहासकार के लिए शक्ति संतुलन वस्तुनिष्ठ होता है लेकिन एक राजनीतिज्ञ के लिए यह व्यक्तिनिष्ठ होता है।
- शक्ति संतुलन यत्थास्थिति को बनाए रखने की नीति होती है लेकिन असल मे यह गतिशील और परिवर्तनशील नीति होती है।
- वैसे यह शांति को स्थापित करने का मंत्र है लेकिन शांति को स्थापित करना इतना आसान नहीं होता है।
- इसके सही संचालन के लिए संचालक की आवश्यकता होती है जो आपको इस युग मे नहीं मिलेगा ।
- यह कोई दैवी वरदान नहीं है, अपितु यह मानव के सतत हस्तक्षेप का परिणाम है।
शक्ति संतुलन को स्थापित करने के साधन
विद्धानों का मत है कि शक्ति संतुलन भारी पलड़े के अंदर से वजन कम करके कर सकते हैं या हल्के पलडे पर वजन बढ़ाकर कर सकते हैं।राज्य शक्ति संतुलन की नीति का पालन किसी ना किसी रूप मे अवश्य ही करते हैं।
हस्तक्षेप
हस्तक्षेप की मदद से एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के अंदर शांति स्थापित करने का प्रयास करता है।इस स्थिति के अंदर शक्तिशाली राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के अंदर अपनी इच्छा अनुसार नितियों को बनाने का कार्य करता है।हस्तेक्षप एक कमजोर राष्ट्र के अंदर ही किया जा सकता है। एक शक्तिशाली राष्ट्र अपने समान शक्तिशाली राष्ट्र के अंदर हस्तेक्षप नहीं कर सकता है। अपने से कमजोर राष्ट्र के अंदर हस्तक्षेप कर सकता है।
द्धितीय विश्व युद्ध के अंदर ब्रेटेन ने यूनान और जॉर्डन के अंदर हस्तक्षेप किया ।अमेरिका ने क्यूबा लेबनान आदि के अंदर हस्तक्षेप किया और वहां पर शांति को स्थापित करने का प्रयास किया ।
कई बार शक्तिशाली राष्ट्र छोटे राष्ट्र के बीच बंटवारा भी करते हैं।यूट्रेक्ट की संधि के बाद 1713 में स्पेन की भूमि को बोर्बोन व हेप्सबर्ग के बीच बांट दिया गया। इसी प्रकार पोलैण्ड को तीन बार ( 1772 , 1793 व 1795 ) में इस प्रकार विभाजित किया गया।
क्षतिपूर्ति का शक्ति संतुलन
दोस्तों शक्ति संतुलन क्षतिपूर्ति के आधार पर भी किया जा सकता है।जब एक देश किसी दूसरे देश पर अधिकार करके संकट उत्पन्न कर देता है। ऐसी स्थिति के अंदर प्रभावित राष्ट की क्षतिपूर्ति की जाती है और शक्ति संतुलन को बनाए रखने का प्रयास किया जाता है।पौलेंड का 1772 और 1793 ई के अंदर इसी प्रकार से बंटवारा किया गया था ताकि शक्तिसंतुलन को बनाये रखा जा सके ।
से 1914 ई के बाद युद्ध के बाद केवल भूमी ही मुआवजे के रूप मे नहीं दी जाती थी। वरन इसके अलावा भी नुकसान का आंकलन करके क्षतिपूर्ति की जाती थी।इसी प्रकार से 21 वीं शताब्दी के अंदर अब कोई भी राष्ट्र दूसरे को तब तक लाभ देने के लिए तैयार नहीं होता है जब तक की उसे खुद लाभ ना मिल जाए।
दो शक्तिशाली राष्ट्रों के मध्य एक राष्ट्र शांति को स्थापित करने मे महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। उसे मध्यवर्ती राज्य के नाम से जाना जाता है।विद्धवानों के अनुसार मध्यवर्ती राज्य कमजोर होता है लेकिन दोनों राष्ट्रों के लिए काफी उपयोगी होता है।
और दोनों ताकते उस मध्यवर्ती राज्य को अपने क्षेत्र के अंदर लाने का प्रयास करती हैं। ऐसी स्थिति के अंदर टकराव का कारण बनता है। लेकिन यदि उस राज्य को अलग कर दिया जाए तो यह टकराव को कम कर सकता है।जैसे प्रथम विश्व युद्ध के समय जर्मनी और रूस के बीच पौलेंड एक मध्यवर्ती राज्य था। इसी प्रकार से भारत और चीन के बीच नेपाल इसी तरह का राज्य है।
शस्त्रीकरण
शस्त्रीकरण का मतलब होता है बढ़ते परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध को लगाना ।इसके अलावा इसके अंदर उन सभी प्रयासों को शामिल किया जाता है जोकि युद्ध की संभावना को कम करने का प्रयास करते हैं।आपने भी देखा है कि हर देश चाहता है कि उसके पास अधिक से अधिक परमाणु हथियार हों ।
ऐसी स्थिति के अंदर यदि युद्ध होता है तो इसका काफी भयंकर नुकसान होता है। शस्त्रीकरण के अंदर हथियारों के उत्पादन को कम किया जाता है जिससे कि यदि युद्ध होता भी है तो फिर अधिक नुकसान होने की संभावना कम हो जाती है।
फूट डालों और राज करों
यह शक्ति संतुलन की बहुत ही पुरानी नीति है।फूट डालों और राज करों की नीति को अंग्रेजों ने भारत के अंदर सफलता पूर्वक प्रयोग किया । और अंग्रेज ही इसी निति को सबसे पहले प्रयोग मे लाये थे । इस नीति का प्रयोग आज भी भारत के हिंदुओं पर होता है। जिसकी मदद से नेता अपनी कुर्सी को बचाने मे सफल होते हैं।
इस प्रकार की निति का प्रयोग ऐसे स्थानों पर होता है।अनेक भाषा और सांस्क्रति वाले लोग रहते हैं। भारत के अंदर एक जाति दूसरी जाति से खुद को बेहतर मानती है। अंगेजों ने इसी मूर्खता का फायदा उठाया और दो जातियों को आपस मे लड़वाया और उनको कमजोर किया ।
और उसके बाद भारत के शासन पर कब्जा कर लिया ।आज भारत की यही स्थिति है। भारत की अनेक जातियां आपस मे लड़ती हैं। भले ही अंग्रेज चले गए हों लेकिन बदला कुछ खास नहीं है। छूआछूत जैसी प्रथाएं भी इसी निति का हिस्सा रह चुकी हैं।
मैत्री संधियां
इस तरीके के अंदर कई छोटे राष्ट्र एक शक्तिशाली राष्ट्र के साथ मैत्री संधियां कर लेते हैं।यह शक्ति संतुलन तभी अधिक अच्छे तरीके से काम करता है जब राष्ट्रों की संख्या अधिक हो और उनको अपने मित्र राष्ट्र का चुनाव करने पर छूट प्रदान की गई हो ।18 वीं शताब्दी को शक्ति संतुलन का स्वर्ण युग कहा जाता है।वर्तमान मे दो महाशक्यिों के बीच शक्ति का धुव्री करण हो जाने के बाद शक्ति संतुलन की भूमिका कम हो चुकी है।भारत रूस मैत्री संधी 1971 इसी का एक उदाहरण है।
मैत्री संधि का सबसे बड़ा उदाहरण है भारत और चीन । चीन अक्सर उन देशों के साथ संबंध सुधारने की कोशिश करता है जोकि भारत के आस पास हैं और भारत के दुश्मन हैं। इसके प्रति उत्तर में भारत भी ताइवान जैसे छोटे देशों को हथियार सप्लाई देता है क्योंकि यह चाइना के दुश्मन हैं।
शक्ति संतुलन का मुख्य उदेश्य क्या है ?
दोस्तों शक्ति संतुलन का प्रमुख उदेश्य राष्ट्रों के बीच शांति और सुरक्षा को बनाए रखना होता है ताकि वे खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।
- शक्ति संतुलन राष्ट्रों को सर्वशक्तिमान होने से रोकता है।
- यह युद्धों को रोकता है और संतुलन को स्थापित करता है।
- यह राष्ट्रों के मध्य स्थिरता को बनाए रख पाता है।
यदि शक्ति को सभी राष्ट्रों के बीच समान रूप से वितरित किया जाए तो कोई भी राष्ट्र अधिक ताकतवर नहीं हो सकता है और सभी के बीच शक्ति संतुलन भी समान रूप से ही रहेगा ।
शक्ति संतुलन का मूल्यांकन
शक्ति संतुलन के सिद्धांत को अंतर्राष्टि्रय राजनिति का संचालक मानते हैं। क्योंकि यह राज्य की स्वतंत्रता को बनाए रखने का कार्य करते हैं।राज्यों के बीच कार्य शांति को स्थापित करने का कार्य करता है।
अंतराष्टि्रय व्यवस्था के रूप मे शक्ति संतुलन काफी सफल रहा है।इसकी वजह से एक राष्ट्र इतना अधिक शक्तिशाली नहीं हो पाया कि वह दूसरे की स्वतंत्रता को समाप्त कर सके ।असल मे शक्ति संतुलन की वजह से अनेक युद्धों को रोका गया है और शक्ति संतुलन के टूटने की वजह से ही युद्ध होते हैं।
यदि शक्ति संतुलन नहीं होता है तो एक राज्य काफी आक्रमक होकर आक्रमण कर सकता है और दूसरे राज्य इस बारे मे कुछ नहीं बोलेंगे । लेकिन असल मे शक्ति संतुलन होने की स्थिति मे यदि एक राज्य दूसरे पर आक्रमण करता है तो दूसरे मित्र राज्यों की तरफ से भी इसका विरोध किया जाएगा ।
1815 से 1914 के बीच काफी शक्ति संतुलन रहा ।लेकिन वर्तमान मे सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत ,पाकिस्तान आदि ने परमाणु परिक्षण किया और शक्तिशाली बन गए । लेकिन कोई भी देश परमाणु हथियार का प्रयोग नहीं कर सकता है। क्योंकि यदि एक देश परमाणु हथियार का प्रयोग करता है तो दूसरा देश भी पीछे नहीं हटेगा । और उसके बाद एक देश के मित्र राष्ट्र पर हमला होता है तो फिर दूसरे मित्र राष्ट्र भी चुप नहीं रहने वाले होते हैं। ऐसी स्थिति मे एक बड़ा परमाणु युद्ध हो सकता है जोकि मानव सभ्यता के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकते हैं।
इस प्रकार से शक्ति संतुलन के सिद्धांत के अंदर युद्धों को रोका जाता है और राज्योंकि स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है।भले ही आप संतुलन को नैतिक मानते हैं या अनैतिक लेकिन इसका अस्तित्व हर युग के अंदर रहेगा ।
- शक्ति संतुलन के लिए किसी राष्ट्र की सही शक्ति का आंकलन करना बहुत ही आवश्यक होता है लेकिन इसका सही सही आंकलन करना काफी मुश्किल है।
- शक्ति संतुलन की वजह से राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ी है।
- शक्ति संतुलन का सिद्धांत केवल बड़े राष्ट्रों के लिए उपयुक्त है।छोटे शक्तियों के लिए यह सिद्धांत उपयुक्त नहीं है इससे केवल बड़े राष्ट्रों को लाभ मिलेगा ।
- यह सिद्धान्त सामान्यतया स्थिरता हेतु बनाया गया है, परन्तु इसमे संलिप्त राज्य हमेशा अस्थिर रहेंगे
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This post was last modified on May 19, 2021