प्राचीन समय की बात है वन के अंदर एक साधु कुटिया बनाकर रहता था। एक दिन जब साधु ध्यान के अंदर था तो उसके मन मे यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि इस शहर के अंदर सबसे अधिक सुखी व्यक्ति कौन है। अपनी जिज्ञासा का समाधान करने वह निकल पड़ा ।
शहर के कुछ लोगों से साधु ने पूछा कि शहर के अंदर सबसे अधिक सुखी व्यक्ति कौन है तो लोगो ने उसे रामदास नामक सेठ का नाम बता दिया । वह सेठ के पास गया और बोला कि क्या आप सबसे सुखी व्यक्ति हैं। सेठ परेशान होकर बोला कि मैं कोई सुखी व्यक्ति नहीं हुई मेरे दिमाग मे तो हमेशा कर्ज की टेंशन रहती कई लोगों ने कर्ज लेलिया और मेरे पैसे डूब गए । मेरे से सुखी तो मेरे से बड़ा सेठ धनपतराय है। साधु वहां से चलकर धनपतराय के पास गया और बोला …….सेठ सुना है आप शहर के सबसे सुखी व्यक्ति हैं । तब धनपतराय परेशान होकर बोला ….. मैं काहे का सुखी हूं पीछले दिनों बिजनेस मे करोड़ों का नुकसान हो गया।
मेरे से सुखी तो मैरा नौकर है जो रोज मजे से रहता है बढ़िया खाना खाता है। साधु नौकर के पास गया और पूछा तुम्हारे सुख का राज क्या है नौकर बोला … मे सुखी नहीं हूं इस दुनिया मैं मेरा कोई नहीं है अकेले ही जिंदगी काट रहा हूं । बहुत दुखी हूं । मेरे से सुखी तो एक बुढ़िया है जो अकेली कुटिया के अंदर रहती है। साधु उसके पास गया और बोला
…. माई सुना है आप सबसे सुखी हैं । बुढिया ने साधु की तरफ देखा और बोली … हां मै सबसे सुखी हूं ।
सच्चा सुख वही हाशिल करता है जिसे ना तो कोई चीज पाने की इच्छा हो और ना ही किसी चीजे के खोने का गम हो । जो अपने आप मे संतुष्ट है वही सच्चा सुखी इंसान
है।