सन्यासी बनने के लिए क्या करना पड़ता है बहुत से लोगों को लगता है , कि संयासी बनना बहुत ही आसान होता है। मगर सच माने तो संयासी बनना सबसे कठिन काम करना होता है। यह एक अलग बात है कि संयासी बनने की प्रक्रियाएं अलग अलग मतों मे अलग अलग हो सकती हैं। लेकिन सभी लगभग एक ही चीजों को फोलो करते हैं। सिर्फ भगवा पहन लेने से ही कोई सन्यासी नहीं बन जाता है। यदि आप भगवा पहन लेते हैं , तो ऐसा करने से आप कभी भी संयासी नहीं बन सकते हैं। यदि आपको संयासी बनना है , तो फिर काफी अधिक मेहनत करनी होगी । तब जाकर आप बन पाएंगे । याद रखे संयासी बाहर से नहीं होता है। संयासी अंदर से होता है। और जो लोग अंदर से संयासी होते हैं। वे ही असली संयासी होते हैं। बाहर से संयासी होना तो बस दिखावा करना ही होता है।
यदि आप संयासी के बस कपड़े पहन लेते हैं। और बाकी कुछ नहीं करते हैं , तो आप बस दिखावा कर रहे हैं। इसके अलावा आप कुछ भी नहीं कर रहे हैं। इस तरह से संयासी नहीं बना जाता है। तो आपको चीजों को समझना होगा । इस लेख के अंदर हम आपको बताने वाले हैं कि संयासी बनने के लिए एक इंसान को क्या क्या करना पड़ता है। और किन कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इसके बारे मे हम बात करने वाले हैं।
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गुरू की खोज करना जरूरी है
आप खुद ही संयासी नहीं बन सकते हैं। आपको सबसे पहले एक गुरू की खोज करनी चाहिए । और गुरू फ्राड नहीं होना चाहिए । जैसा कि आजकल हो रहा है। आजकल गुरू घंटाल बैठे हुए हैं , तो यदि आप इस तरह के इंसान को गुरू बना लेते हैं , तो फिर समस्या होना तय है। आपका बेड़ा पार कभी होगा ही नहीं । जब आपके गुरू का ही बेड़ा पार नहीं होगा , तो फिर आपका बेड़ा पार कैसे हो सकता है ? वैसे भी आपको पता ही है कि आज के समय के अंदर एक सही गुरू को खोजना बहुत ही कठिन कार्य हो चुका है। मगर यदि आपको संयासी बनना है , तो फिर एक गुरू की तो कम से कम खोज करनी ही होगी । इसके अंदर कोई भी शक नहीं है।
गुरू से मंत्र दीक्षा लेनी होती है
एक संयासी बनने के लिए आपको मंत्र दीक्षा लेनी होती है। मतलब मंत्र की मदद से आपको गुरू दीक्षा देते हैं। संभव है कि वे आपको एक मंत्र दें और उसको जपने के लिए कहें । अलग अलग गुरू की संयास की विधि अलग अलग हो सकती है। कुछ गुरू आपको किसी तरह का मंत्र नहीं देंगे तो कुछ आपको केवल मंत्र देंगे । हालांकि कुछ गुरू इस तरह के होते हैं , जोकि आपको साधना की विधि के बारे मे बताएंगे । इसके अलावा कुछ भी नहीं । कहा जाता है , कि अपने परम तक पहुंचने के कई सारे तरीके होते हैं। और आप उन तरीके मे से कोई भी तरीका यूज कर सकते हैं , जोकि आपको सूट करता है। हर इंसान को एक ही तरीका सूट नहीं करता है।
अपने परिवार का त्याग करना पड़ता है
दोस्तों आप हो सकता है कि अपनी पत्नी और बच्चों को जान से ज्यादा प्यार करते हैं। लेकिन आपको इन सब चीजों का त्याग करना पड़ेगा । यह एक बहुत ही जरूरी प्रक्रिया है। आपको खुद के उपर ही ध्यान देना होगा । आपको इन सब चीजों को छोड़ना होगा । यदि आप इन सब चीजों को नहीं छोड़ पाते हैं , तो फिर समस्या होगी । और आप एक संयासी नहीं बन पाएंगे । संयासी का मतलब ही यही होता है कि वह सब कुछ छोड़ देता है। आपके मन मे अपने परिवार के प्रति किसी भी तरह का अपनापन नहीं होना चाहिए। यदि अपनापन होता है , तो फिर आपको और अधिक परीक्षा लेने की जरूरत हो सकती है। बहुत से लोग कई बार तो संयासी बन जाते हैं। काफी सालों तक संयासी बने रहते हैं। मगर बाद मे शादी कर लेते हैं। तो इस तरह की चीजें भी संयास लेने के बाद हो सकती हैं। आपको इसके बारे मे भी पता होना चाहिए ।
अपने परिवार को यदि आप नहीं छोड़ सकते हैं , तो फिर आप कभी भी संयासी नहीं बन सकते हैं। हालांकि जरूरी नहीं है कि आप अपने परिवार की देखभाल को छोड़ें आप इसको जारी रख सकते हैं। आपको मोह को छोड़ना पड़ता है।
सच बोलने की आदत विकसित करनी पड़ती है
जब आप संयास की तरफ जाते हैं , तो आपको सच बोलने की आदत को धीरे धीरे अपनाना पड़ता है। यह एक दिन मे कुछ भी नहीं होता है। आपको सब कुछ धीरे धीरे करना पड़ता है। और इन सब चीजों के अंदर काफी अधिक समय लगता है। यदि आप यह सोच रहे हैं कि आप एक ही दिन मे ही झूठ बोलने की आदत को हटा दें , तो यह आपके लिए संभव नहीं होगा । आपको काफी अधिक प्रयास करना होगा । तभी आप कर सकते हैं। और एक जो सन्यासी होता है। उसको झूठ बोलने जैसी आदतें होती हैं , वे शौभा नहीं देती हैं।
एक समय भोजन करना पड़ता है
सन्यासी कहते हैं कि वे खाने के लिए नहीं जी रहे हैं। वे जीने के लिए खा रहे हैं। उनको भोजन के स्वाद आदि से किसी भी तरह का कोई मतलब नहीं होता है। बस जो मिला खा लेते हैं और यदि नहीं मिला तो पड़े रहते हैं। उनको बस अपने जीवन को उपर उठाना होता है। इसलिए वे खाने की चिंता नहीं करते हैं। एक बाबा यमुना किनारे रहते थे । उन्होंने बताया कि उनको खाने की कोई चिंता नहीं है। बस वे तपस्या करते हैं। और कभी कभी मंदिर से खाना आ जाता है , तो वे खा लेते हैं। और भगवान उनको दर्शन देते हैं। मतलब यही है कि एक सन्यासी को स्वाद आदि से मतलब नहीं होता है। बस एक समय खाना खाने वाले वे होते हैं। भोजन को जितना जरूरत है उतना ही खाते हैं। हमारी तरह ठूंस ठूंस कर वे भोजन का सेवन नहीं करते हैं।
जमीन पर सोना
दोस्तों यदि आप सन्यासी बन जाते हैं , तो उसके बाद आपको कभी भी मखमली बेड आदि के उपर नहीं सोना चाहिए । वरन आपको जमीन पर ही सोना पड़ता है। जमीन पर सोना ही सही होता है। क्योंकि संयासी को यह पता होता है। कि मरने के बाद उसके पास मखमली बेड आदि नहीं आने वाले हैं। उसको हमेशा नेचर के साथ ही रहना पड़ेगा । इसलिए वह खुद को ऐसे माहौल के अंदर ढालने का प्रयास करता है , जोकि रियल माहौल होता है। वह खुद को इस तरह के माहौल मे रखना पसंद करता है । उसको बाद मे परेशानी ना होग । हालांकि आजकल संयासी भी फाइव स्टार होटल के अंदर आपको भोजन करते हुए मिल जाएंगे । तो इस तरह के संयासी रियल नहीं होते हैं।
भगवान के नाम का जाप करना
देखिए संयासी कोई एक प्रकार का नहीं होता है। जोकि कर्म योगी होते हैं , वे कर्म की साधना करते हैं। और भक्ति योगी अलग ही प्रकार की संयासी होते हैं। भक्तियोगी बस भगवान के नाम का जाप करते रहते हैं। वे हमेशा उसी के अंदर लगे रहते हैं। कहा जाता है कि वे भगवान के नाम के अंदर इतने अधिक मशगूल हो जाते हैं , कि उनको यह पता ही नहीं होता है , कि वे क्या कर रहे हैं ? बस उसके बाद उनको भोजन पानी आदि की चिंता नहीं रहती है। कहने का मतलब यही है कि यह संयासी भगवान के नाम के सहारे इस संसार को पार करने का प्रयास करते हैं। हालांकि यह रस्ता भी आसान नहीं है मगर यदि प्रयास करते हैं , तो सब कुछ संभव हो सकता है। मीरा का नाम तो आपने सुना ही होगा । मीरा एक भक्तियोगी संयासी थी। वह हमेशा भगवान के भजनों का गान करती रहती थी। और भगवान ने ही उनकी नैया को पार लगा दिया । हालांकि कर्म योगी और भक्ति योगी के अंदर काफी जमीन आसमान का अंतर होता है। इनके अंदर काफी विवाद भी हो सकता है। मगर इनके रस्ते अंत मे एक ही जगह पर जाकर मिल जाते हैं।
घंटो बैठकर साधना करना
दोस्तों संयासी बन जाने के बाद सिर्फ इतना ही नहीं करना पड़ता है कि घर छोड़ दिया और कहीं पर बैठ गए मांग कर खाने लगे । असल मे उसके बाद आपको घंटों बैठकर साधना करनी पड़ती है। और इस साधना के अंदर अलग अलग संयासी की अलग अलग साधनाएं हो सकती हैं। जिसमे कि एक सन्यासी राम नाम का जाप कर सकता है। या फिर वह अन्य कोई साधना कर सकता है। जोकि उसके गुरू के द्धारा बताई जाती है। और आपको यह बतादें कि यह सब साधनाएं इतनी आसान नहीं होती हैं। इस संसार के रोग शौक आपके लाखों वर्षों से छिपके हुए हैं। यदि आपको कोई इनको अचानक से छोड़ने को कहे , तो क्या आप उनको छोड़ पाएंगे ? शायद आप ऐसा नहीं कर पाएंगे । तो इसके अंदर बहुत समय लगता है।
बुरा देखने और सुनने से दूरी बनाना
दोस्तों एक सन्यासी की खास बात यह होती है कि वह ना तो किसी का बुरा करता है। और ना ही बुरा देखता है । और ना ही बुरा सुनता है। वह बुरा देखने और सुनने से दूरी बना लेता है। जिस इंसान को बुरा सुनने और देखने मे रस आता है। अभी भी वह संयासी नहीं बन पाया है। आप इस बात को समझ सकते हैं । सन्यासी को अच्छाई और बुराई खास कर बाहर की , तो उससे कोई मतलब नहीं होता है। बस वह इसलिए इनसे दूरी बना लेना चाहता है , ताकि यह बुराई उसके अंदर कुछ बेकार सा असर ना कर पाए ।
जैसे कि एक कहावत है , ना कि जब आप बुरी चीजों के पास बैठते हैं , तो कहीं ना कहीं आपके मन मे भी बुराई का असर पड़ता है।
ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है
दोस्तों एक सन्यासी के लिए सबसे बड़ा योग तो ब्रह्मचर्य ही होता है। यदि आप ब्रह्मचर्य का पालन करने मे सफल होते हैं। तो उसके बाद आप सब कुछ करने मे सफल हो जाते हैं। ब्रह्मचर्य एक संयासी के लिए सबसे बड़ी चीज होती है। यदि आप ब्रह्मचर्य का पालन करने मे असफल होते हैं , तो फिर आपको प्रयास करना होगा। जब आप एक बार ब्रह्मचर्य को साधने मे सफल हो जाते हैं , तो उसके बाद आप सफलता की तरफ ही तरफ जाते हैं। तो यदि आप ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे हैं , तो हो सकता है कि पहले इस मार्ग के अंदर कुछ बाधाएं आएं । लेकिन जब धीरे धीरे आप प्रयास करेंगे , तो आपकी बाधाएं हल हो जाएंगी । याद रखें ब्रह्मचर्य का मतलब सिर्फ रिलेशन बनाना ही नहीं होता है। यदि आप किसी स्त्री के बारे मे सोचते भी हैं , तो उसकी वजह से भी ब्रह्मचर्य खंडित हो सकता है।
असुरक्षित स्थानों पर निवास करना पड़ता है
अक्सर आपने देखा होगा कि सन्यासी असुरक्षित स्थानों पर निवास करते हैं। इसकी वजह होती है कि एक तो दुर्गम स्थानों पर कोई आता जाता नहीं है। जिसकी वजह से वे कठोर साधना को करने मे सक्षम हो जाते हैं। और दूसरा हर इंसान के मन मे भय होता है। उसको किसी ना किसी चीज का डर रहता है। यदि वे अकेले रहेंगे तो उनको कुछ हो जाएगा । वैगरह वैगरह तो ऐसी स्थिति के अंदर उनको अपने मन के अंदर के डर को निकालना होता है। अब वे शरीर के लिए नहीं जी रहे हैं। वरन अपने कल्याण के लिए जी रहे हैं। और जब तक मन के अंदर डर जैसी चीजें होती हैं। तब तक आगे का रस्ता साफ नहीं हो सकता है।
हिंसा से दूरी बनाकर रखना होता है
दोस्तों हम लोग ग्रहस्थी हैं और हिंसा करते रहते हैं। लेकिन यदि बात करें एक सन्यासी की तो एक सन्यासी को हिंसा करना जरा भी शौभा नहीं देता है। एक सन्यासी किसी भी छोटे से छोटे जीवन को भी नहीं मारता है। यही उसी खास बात होती है। और यदि हम हिंसा करने लग जाते हैं , तो कहीं ना कहीं हमारे मन के अंदर बुरी चीजें घर कर जाती हैं। और हम अच्छाई की तरफ से अलग होकर बुराई की तरफ जाने लग जाते हैं। तो यह थी कुछ खास चीजें जोकि एक सन्यासी बनने वाले इंसान को करनी पड़ती हैं। उम्मीद करते हैं कि आपको लेख पसंद आया होगा । यदि आपके मन के अंदर इससे जुड़ा कोई सवाल है , तो आप हमें बता सकते हैं। हम आपके सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे।