सब्जी बेचकर बना दिया अस्पताल ग्रेट लेडी स्टोरी

जिंदगी के अंदर कुछ इंसान ही ऐसे होते हैं जोकि वास्तव मे इंसान कहलाने के हकदार होते हैं। जबकि 90 प्रतिशत लोग सिर्फ और सिर्फ अपने बारे मे ही सोच के साथ जन्म लेते हैं। और उसी सोच के साथ मर जाते हैं। यानि वे अपनी जिंदगी के अंदर सिर्फ अपने ‌‌‌लिये ही जीते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी जिंदगी को दूसरों के लिए दूसरों के भले के लिए सौंप देते हैं। सच माने तो ऐसे लोग ही महान होते हैं। आज हम आपको एक ऐसी महिला की स्टोरी बताने जा रहे हैं। जिसने सब्जी बेच कर अस्पताल बनवाया ताकि वहां पर गरीब बच्चों का ईलाज हो सके ।

‌‌‌कोलकता की रहने वाली 75 साल की  सुभाषिनी मिस्त्री ने गरीबों के लिए अपने ही पैसों से अस्पताल खोल दिया । एक और जहां पर डॉक्टर मरीजों को लूट रहे हैं। और अस्पतालों के अंदर धांधली चल रही है वहीं यह कहानी इस बात को साबित करती है कि इंसानियत आज भी मरी नहीं है।

‌‌‌सुभाषिनी ने बताया की बंगाल के अंदर जब 1943 के अंदर भयंकर अकाल पड़ा था । तब उनके पिता के 14 बच्चे थे । उस समय उनके पास खाने को कुछ भी नहीं था और उनके पिता के पास एक जमीन का छोटा सा टुकड़ा था । अकाल की वजह से उसमे अनाज पैदा नहीं हुआ और 14 बच्चों मे से 7 बच्चे उस अकाल के अंदर मारे गए ।

‌‌‌घर की खराब हालत को देखते हुए उनकी शादी चंद्र नामक एक मजदूर से करदी गई । उनसे उनको 4 बच्चे भी पैदा हुए दुर्भाग्य ने उनका यहां पर भी पीछा किया और 1971 के अंदरउनके पति  की मौत डॉक्टरों का सही ईलाज नहीं मिलने की वजह से हो गई।

‌‌‌बेसहारा और अकेली पड़चुकी सुभाषिनी के सामने अब चार बच्चों के पेट भरने की समस्या भी आ खड़ी हुई। लेकिन उसने हार नहीं मानी और निर्णय लिया की उसके साथ जो हुआ है। वह किसी और के साथ नहीं होने देगी । वह खुद के दम पर अस्पताल बनवाएगी । ‌‌‌हालांकि उनको अपना सपना पूरा करना आसान नहीं दिख रहा था । लेकिन उन्होने बस ठान लिया था ।

‌‌‌सुभाषिनी के चार बच्चों के अंदर एक बड़ा बच्चा पढ़ने मे काफी होशियार था । उसे उसने कोलकता के एक आश्रम के अंदर भेज दिया और खुद अपने बच्चों को पालने के लिए बर्तन मांजना झाडू पोचा करना । जूते पालिस करना आदि सब काम किये ।फिर कुछ समय बाद वे धापा गांव आई और वहां पर सब्݆िजयां उगाने का काम करने ‌‌‌लगी । सब्݆िजयों से उनको अच्छी कमाई होने लगी । तो अपनी कमाई का वे कुछ पैसा अपने बच्चों पर खर्च कर देती और कुछ पैसा बचाकर रख लेती । लेकिन खुद के लिए बहुत की कम पैसे खर्च करती ।

‌‌‌1992 के अंदर सुभाषिनी ने अपने गांव हंसपुकुर के अंदर कुछ पैसों के अंदर जमीन खरीदी और एक छोटा सा असस्पताल बना दिया । और स्पीकर की मदद से मरीजों का फ्रि के अंदर ईलाज करने की घोषणा की । उनकी इस पहल से कुछ डॉक्टर फ्रि के अंदर मरीजों का ईलाज करने को तैयार हो गए ।

‌‌‌बारिश के मौसम के अंदर इस अस्पताल का बुरा हाल होगया और पानी भर जाने की वजह से मरीजों का सड़क पर ही ईलाज किया गया । उसके कुछ समय बाद सुभाषीनी के बेटे ने एक सासद के आगे अस्पताल के उपर पक्की छत गिराने के लिए बोला । उसके काफी समय बाद अस्पताल की छत भी पक्की बना दी गई और  ‌‌‌अब यह अस्पताल 2 मंजिला हो चुका है। इस अस्पताल की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसके अंदर मरीजों का फ्रि मे ईलाज होता है। डॉक्टर भी आकर अपना धर्म निभाते हैं। कहा जाता है। कि इंसान सब कुछ कर सकता है। बस उसके अंदर कुछ करने का जज्बा होना चाहिए ।

This post was last modified on May 4, 2024

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