एक बार एक व्यक्ति स्वामी विवेका नन्द के पास आया और किसी अन्य व्यक्ति की बुराई करने लगा । और उसे बुरा इंसान तक कह दिया । उसकी बातें काफी देर सुनने के बाद विवेकानन्द बोले । क्या आप जो कह रहे हैं वो सच है। वह व्यक्ति बोला …. हां यह सो आने सच है। वह इंसान बहुत बुरा है। उसके कुछ दिन बाद स्वामी उस व्यक्ति के घर गए । तो उसने स्वामी का काफी स्वागत किया और काफी बढ़िया बातें कि उनको पता चला कि यह व्यक्ति काफी दानी भी है। दूसरे दिन स्वामी भला बुरा कहने वाले व्यक्ति के पास गए और उसे एक सिक्का देते हुए बोले इसे उपर की तरफ देखो और बताओ सिक्का असली है या नकली है। तब वह व्यक्ति बोला सिक्के के एक तरफ देखकर यह तय नहीं किया जा सकता कि वह असली है या नकली । तब स्वामी विवेका नन्द बोले तो तुमने उस व्यक्ति के दूसरे पहलू को बिना देखे यह कैसे तय कर लिया कि वह व्यक्ति बुरा है। हर इंसान के अंदर बुराइयां होती हैं।
उस के अंदर अच्छाइयां भी हैं। तुम्हारा द्रष्टीकोण गलत है। तुम सभी की समस्या है कि जिसको तुम बुरा मानते हो उसके संबंध मे हर अच्छाई को नहीं मानते हैं। और जिस को अच्छा मानते हैं। उसकी बुराइयों को स्वीकार नहीं करते । यदि तुम एक बुद्विमान इंसान हो तो अपनी भावनाओं को एकतरफ रखकर संसार को देखो।
सही भी है। हर इंसान के अंदर बुराइयां और अच्छाइया होती हैं। जिसको हमे मान लेना चाहिए ।
This post was last modified on November 4, 2018