सुदर्शन चक्र के बारे मे तो आप जानते ही होंगे । वह चक्र जो भगवान श्रीकृष्ण ने धारण किया था । इस लेख के अंदर हम आपको सुदर्शन चक्र के इतिहास के बारे मे बताने वाले हैं। सुदर्शन चक्र की मदद से भगवान श्रीकृष्ण ने अनेक असुरों का वध किया था । इस चक्र को विष्णु ने गढ़वाल के श्रीनगर स्थित कमलेश्वर शिवालय से तपस्या करके प्राप्त किया था ।सुदर्शन चक्र एक ऐसा अस्त्र है जो अपने लक्ष्य तक पहुंचकर वापस आ जाता है।
इस लेख के अंदर हम आपको सुदर्शन चक्र के इतिहास , सुदर्शन चक्र के रहस्य के बारें मे विस्तार से जानेंगे ।
सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के पास एक अमोंघ अस्त्र था । जो उनके कृष्ण अवतार के अंदर भी उनके साथ था । कहा जाता है कि सुदर्शन चक्र की मदद से कृष्ण ने अनेक असुरों का वध कर दिया था । यह असुरों का वध करने के लिए और देवताओं की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने धारण किया था ।
कैसे प्राप्त हुआ था भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र
सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु को कैसे प्राप्त हुआ । इस संबंध मे अनेक कथाएं प्रचलित हैं। यहां पर हम उन कथाओं का विस्तार से वर्णन कर रहे हैं।
कहा जाता है की प्राचीन समय के अंदर जब राक्षसों का अत्याचार दैवताओं पर बहुत अधिक बढ़ गया तो सारे देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और राक्षसों से बचाने का आग्रह करने लगे । तब भगवान विष्णु के पास भी ऐसा कोई अस्त्र नहीं था कि वे राक्षसों का वध कर सकें । इस वजह से भगवान विष्णु कैलाश पर्वत पर जाकर 1000 नामों से शिव की स्तुति करने लगे । उसके बाद वे हर नाम के साथ एक पुष्प शिव को अर्पित करने लगे ।उसके बाद भगवान शिव ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए विष्णु के लाए 1000 पुष्प मे से एक पुष्प को छुपा दिया । भगवान शिव की माया की वजह से विष्णु को पता नहीं चल सका । वे एक पुष्प को ढुंढने लगे । उसके बाद उन्होंने भगवान शिव को अपना एक नैत्र अर्पित किया । तब भगवान शिव
प्रसन्न हुए और विष्णु को वरदान मांगने को कहा । तब विष्णु ने ऐसा अमोघ शस्त्र देने की प्राथना की जिसकी मदद से राक्षसों का संहार किया जा सके । फिर भगवान शिव ने सुदर्शन चक्र उनको दिया था ।
किससे बनाया था सुदर्शन चक्र
भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से अनेक दुष्टों का वध किया था । कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा की बेटी का विवाह भगवान सूर्य से हुआ था । सूर्य के अधिक ताप की वजह से वह अपना वैवाहिक जीवन नहीं जी पा रही थी । तब भगवान शिव ने सूर्य का ताप लेकर सुदर्शन चक्र को और पुष्पक विमान को भी बनाया था ।
भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्राप्त होने के संदर्भ मे एक अन्य कथा का भी उल्लेख मिलता है।वीतमन्यु नामक ब्राहामण रहते थे । उनकी पत्नी का नाम धर्मशीला था ।वे सदाचारी महिला थी ।उनके पुत्र का नाम उपमन्यु था । वे लोग इतने गरीब थे कि उनके पास अपने पुत्र को पिलाने के लिएदूध तक नहीं था ।वह अपने पुत्र को चावल का धोवन दूध के रूप मे पिलाती थी । एक दिन वह अपने माता पिता के साथ किसी भोज पर गया । जहां पर उसने दूध से बनी हुई खीर खाई तब उसे दूध के स्वाद के बारे मे पता चल गया ।उसके बाद अगले दिन बालक ने असली दूध की मांग की और चावल के धोवन को पीने से इनकार कर दिया ।
उसके बाद धर्मशीला ने बताया कि तुम विरूपाक्ष की सेवा करो । उसकी माता ने आगे बताया कि
श्रीदामा प्राचीन समय के एक महान असुर राजा थे । उसका प्रताप इतना तेज था कि उसने अपनी ताकत से तीनों लोको को अपने वश मे क लिया और विष्णु की कुर्सी को छिनने का प्रयास करने लगा । इस वजह से विष्णु भगवान भी भयभीत हो गए । और कैलाश पर्वत पर जाकर एक पैर की उंगली पर खड़े होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे।
1000 साल तक तपस्या करने के बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया । जिसकी मदद से भगवान विष्णु राक्षसों का संहार कर सके ।
सुदर्शन चक्र की कुछ खास बातें
इस अस्त्र की खास बात यह थी कि यह हवा के प्रचंड वैग की तरह तेजी से घूम सकता था । और यह अपने दुश्मन को परमाणु बम की तरह भस्म कर सकता है।
यह चांदी की शिलाओं से निर्मित है। इसके चारो ओर त्रिशूल लगे हुए हैं। इसमे अत्यंत विषैले विष होते हैं। इस अस्त्र को बनाने की विधि को गुप्त रखा गया है। ताकि कोई इस विधि से ऐसा अस्त्र नहीं बना सके ।
इस चक्र को फेंका नहीं जाता है। वरन इच्छा शक्ति से इसको दूश्मन के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है।
एक बार यह उंगली से निकले के बाद यह दुश्मन का नाश करके ही वापस आता है।
सुदर्शन चक्र के अंदर 108 दांत होते हैं। यह 8 किमी की यात्रा करने मे सक्षम होता है।
यह दुश्मन का तब तक पीछा करता है। जबतक की वह आत्मसंपर्ण नहीं कर देता । आत्मसर्पण करने के बाद भगवान विष्णु खुद उसे बचाने आते हैं।