हाड़ा रानी का सरदार चूड़ावत से विवाह हुआ था । उनकी शादी को महज एक सप्ताह ही हुआ था ।सुबह का समय था हाड़ा रानी सजधज कर सरदार को जगाने उनके कक्ष के अंदर आई और हाड़ा सरदार को नींद से जगाते हुए बोली की एक दूत आया हुआ है आपके लिए पत्र लेकर आया है। और कह रहा है कि इस पत्र को सरदार तक पहुंचाना अत्यंत आवश्यक है।
सरदार ने हाड़ा रानी को अंदर जाने को कहा और दूत को बुलाया और बोले कि क्यों आना हुआ । पहले तो दूत सोचने लगा की सरदार चूड़ावत का विवाह हुए एक सप्ताह भी नहीं हुआ है। यदि सरदार को युद्व के अंदर कुछ हो गया तो रानी का क्या होगा वह तो जीते जी ही मर जाएगी । किंतु वह कुछ नहीं कर सकता है। सब उपर वाले की मर्जी से हो रहा है। पति पत्नी ने अभी एक दूसरे को ठीक से देखा भी नहीं कितना दुखदाई होगा इनका बिछोह सोचकर वह सिहर उठा । उसके बाद बोला कि संकट का समय है और आपकी सहायता की अति शिघ्र आवश्यकता है।
वह युद्व के लिए प्रस्थान के लिए कहने आया था और अंत मे दुखी मन के साथ राणा राज सिंह का पत्र सरदार के हाथों के अंदर थमा दिया ।
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उस पत्र के अंदर क्या संदेश था
अविलम्ब अपनी सैना की टुकड़ी लेकर औरंगजेब की सहायता के लिए आगे बढ़ रही सेना को रोको ।उसे कुछ समय के लिए उलझाए रखो। तब तक मैं अपने सारे काम को निपटा लेता हूं। हालांकि यह काफी खतरनाक हैं किंतु मुझे तुम पर भरोसा है तुम यह सब कर सकते हो । राणा राज सिंह ने मुगलों से मेवाड के सारे क्षेत्र मुक्त करालिये थे और यह राणा चूड़ावत के लिए परीक्षा की घड़ी थी एक और उसकी छोटी सी सेना और दूसरी और मुगलों की विशाल सेना का उसे सामना करना था ।
अब शासन की बागडोर औरंगजेब के हाथों के अंदर आगई थी और राणा चारूमती के विवाह से दोनों के बीच द्ववेष पैदा हो गया । एक और घटना घटी औरंगजेब ने कहा कि या तो इस्लाम कबूल करो या हिंदुओं को दंड भरना होगा । उसने जजिया कर लगाया था जोकि हिंदुओं के विरूद्व था । राणा राज सिंह ने इसका विरोध किया और कई और राजाओं ने इससे मानने मे आनाकानी की थी ।
युद्व के लिये निकल पड़े हाड़ा
हाड़ा ने बिना किसी समय गवाएं अपने सैनिकों को युद्व के स्थान की और कूच करने को कहा और खुद भी अपनी पत्नी से विदाई लेने गये । पत्नी उनको अचानक युद्व के वेश के अंदर देखकर चकित रह गई और बोली आप अचानक कहां जा रहे हैं तब डाड़ा सरदार बोले मुझे युद्व के लिए जाना है हंसते हंसते विदा करो पता नहीं फिर कभी मिलन होगा या नहीं । हाड़ा सरदार का मन संश्सय से भरा हुआ था । एक और कर्तव्य तो दूसरी और पत्नी उनका मन बिल्कुल अस्थिर था । विदाई लेते समय उनका गला भर आया । पति के चेहरे को देखकर रानी को यह समझते हुए देर नहीं लगी कि उनके पति
का मन अटक गया है। और निराश मन विजय से दूर ले जाता है। उसके बाद उनकी पत्नी अंदर गई और पूजा का थाल लाई और आरती उतारी और बोली हमारा और आपका जन्म जन्मान्तर का साथ है। मैं धान्य हो गई जोकि मुझे आप जैसा वीर पति मिला और फिर बोली आप जाएं।
रानी की अंतिम निशानी
हाड़ा सरदार चला तो गया किंतु उसे रह रह कर रानी की याद आती रही फिर आधे रस्ते जाने के बाद उसने अपने सैनिकों को भेजा कि वे रानी की कोई निशानी लेकर आएं सैनिक चले गए । उसके बाद रानी ने सोचा की मेरे पति के मुख के सामने मेरा ही चेहरा घूमता रहा तो वो युद्व कभी नहीं जीत पाएंगे
फिर रानी संदेसवाहक से बोली की मैं तुमको अपनी अंतिम निशानी देती हूं और इस निशानी को थाल के अंदर सजाकर और ढककर अपने सेना पति को देदेना ।और वह खुद अंदर गई और तलवार से अपना सर काट कर अलग कर दिया । संदेशवाहक ने सर को उठाया और सरदार के पास उनको थाल सौंप दिया । उसके साथ एक पत्र भी था ।
क्या लिखा था रानी ने
रानी ने लिखा था कि प्रिये मैं तुमको अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूं अब मैं स्वर्ग के अंदर मुम्हारी बाट जोह रही हूं । अब हमारा मिलन वहीं होगा ।
उसके बाद सरदार ने थाल को देखा तो उसके अंदर रानी का कटा हुआ सर था । सरदार के मुख से निकला रानी तूनें अपने संदेही पति को इतनी बड़ी सजा देती ठीक है मैं तुमसे मिलने आ रहा हूं बहुत जल्द उसके बाद हाड़ा सरदार का सब चीजों से मोह भंग हो गया और वो अकेले ही अप्रितम सौर्य के साथ मुगल सेना से तब तक लड़ते रहे जबतक कि मुगल सैना भाग नहीं खड़ी हुई ।उन्होंने इस युद्व के अंदर अपनी विरता का ऐसा प्रदर्शन किया कि उसकी मिशाल मिलना काफी कठिन है।
This post was last modified on January 30, 2023