यहा पर हम गणेश चतुर्थी व्रत कथा ganesh chaturthee vrat katha आरती चालिसा भजन विधी व महत्व के बारे मे पुरी तरह से जानेगे ।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था इसी दिन गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है । जन्मोत्सव चतुर्थी तिथि से लेकर दस दिनो तक और बाद मे चतुर्दशी के दिन गणेश जी की प्रतिमा विसर्जन किया जाता है । इन दश दिनो तब गणेश जी की पूजा धुम धाम से होती है ।
गणेश चतुर्थी को विशेषकर महाराष्ट्र कें लोग बडे चाव के साथ मनाते है भाद्रपद मास के दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है । भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के बाद मे यह त्योहार पूरी जरह से भगवान गणेश के लिए होता है । और सारी सृष्टी पर उनकी पूजा की जाती है ।
गणेश चतुर्थी के दिन से अगले दस दिन तक भगवान गणेश जी की प्रतिमा अपने घर मे स्थापित कर कर पूजा की जाती है । इन दस दिनो मे सभी लोग गणपति बप्पा मोरिया का जाप करते है और अपने घर मे रहकर गणेश के भजन सुना करते है । यह त्योहार विषेश कर महाराष्ट्र मे मनाया जाता है ।
Table of Contents
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
वेसे तो भगवान गणेश जी के जन्म के बारे मे अनेक कथा है जिनसे गणेश जी के जन्म के बारे मे पता चलता है । इन कथाओ से यह तो पता चलता ही है की गणेश जी का जन्म माता पार्वती के द्वारा ही हुआ था । पार्वती ने आपनी शक्तियो से गणेश जी का जन्म किया था । पर जन्म के बारे मे अनेक कथाए है जो है ।
घास से बनाया गया बालक
एक बार की बात है । नर्मदा नदी के तट पर भगवान शिव और माता पार्वती बडे ही आन्नद के साथ बैठे थे । वहा पर माता पार्वती ने शिवजी से कहा की हे नाथ हम इस नदी के तट पर बैठ कर चौपड़ खेलते है । पार्वती की इच्छा देखकर शिवजी ने चौपड़ खेलने के लिए हां कह दि ।
शिव जी इधर उधर देखने लगे शिव को ऐसा देख कर पार्वती ने कहा की हे नाथ आप क्या देख रहे है । शिवजी ने कहा पार्वती हम यहा पर खेल तो रहे है पर हमारी हार जित का कोई साक्षी भी तो होनो चाहिए । भगवान शिव की बात सुनकर माता पार्वती ने भी कुछ समय तो यहा वहा देखा ।
जब कोई नही दिखा तो पार्वती ने घास के तिनके को इखठा करकर एक पुतला बनाकर उसमे प्राण भर दिया । पार्वती ने उससे कहा की बेटा यहा पर हम चौपड़ खेल रहे है तुम हमे यह बताना की हममे से कोन हारा और कोने जिता है । शिव व पार्वती दोनो ने खेलना आरम्भ कर दिया ।
माता पार्वती तिनों बार जित गई जब उस बालक से कहा गया की बताओ हममे से कोन जिता है । तो वह बालक कहता है की यहा पर शिव जी जित गए है और आप हार गई हो । उस बालक की ऐसी बात सुनकर पार्वती ने कहा की यह तुम क्या कह रहे हो तिनो बार मै ही तो जिती हूं तुमने मेरा अपमान किया है अत: मै तुम्हे लगडा होकर किचड मे पडे रहने का श्रापदेती हूं।
बालक ने क्षमा मगते हुए कहा की हे माते मुझसे गलती से निकल गया है आप ही जिती हो कृपा करके आप मुझे इस श्राप से मुक्त होने का मार्ग बताए । तब पार्वती ने कहा की तुम यही पर रहना यहा पर नाग कन्या आएगी । वह गणेश पूजन करती है और उपदेश देती है तुम उनके उपदेश को सुनकर गणेश जी का व्रत करोगे तो तुम इस श्राप से मुक्त हो जाओगे ।
एक वर्ष बित गया तब जाकर वहा पर नागकन्या आई और गणेश जी की पूजा की । उन्हे देखकर उस बालक ने कहा की हे नागकन्या कृपा करके आप मुझे गणेश जी का व्रत करने की विधी बताईए । विधी जानकर बालक ने व्रत करना सुरु कर दिया ।
वह 12 दिन तक गणेश जी का व्रत किया था जिससे गणेश जी प्रसन्न हो गए और उसके सामने आकर कहा बालक मै तुम्हारी इस भग्ति से प्रसन्न हो गया हूं मागो क्या मगना चाहते हो । बालक ने कहा हे भगवान आप मुझमे इतनी शक्ति दे दिजिए की मै कैलाश पर जा सकु और मुझे मेरी माता क्षमा कर दे ।
गणेशजी ने कहा ‘तथास्तु’ और वहा से चले गए । बालक चलता चलता कैलाश पहूंच गया । कैलाश मे जाकर बालक भगवान शिव से क्षमा याचना करता है । भगवान शिव को विश्वास नही हुआ की वह बालक क चलकर यहा पर आया है ।इसी कारण शिवजी ने बालक से कहा की पुत्र तुम यहा केसे आए हो ।
बालक ने कहा की मेने एक वर्ष के बाद 12 दिनो तक भगवान गणेश जी का व्रत किया था इसी कारण आज मै आपके सामने आ सका हूं । शिव ने भी 12 दिनो तब गणेश जी का व्रत किया और 13 वे दिन पार्वती गणेश व शिवजी के सामने आ गई ।
इस तरह से गणेश जी ने आज तक सभी की मनोकामनाए पूरी की है । इसलिए यह कहा जाता है जो भी यह व्रत करता है उसकी मनोकामनाए पूरी हो जाती है ।
गणेश जी की जन्म कथा
एक समय की बात है एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए जा रही थी पर दरवाजे पर खडा होने के लिए वहा पर कोई नही था । शिव जी भी वहा पर नही थे । तब माता पार्वती ने अपनी शक्ति से भगवान गणेश को उत्पन्न किया था । माता पार्वती ने उस बालक क का नाम गणेश रखा ।
पार्वती ने गणेश जी से कहा की पुत्र गणेश जब तक मै स्नान कर कर बाहर नही आ जाती तुम इस दरवाजे पर पहरा दो और किसी को भी अंदर मत आने देना ।गणेश जी ने अपनी माता से कहा की जो अज्ञा माते ऐसा कहकर गणेश जी पहरा देने लग जाते है ।
कुछ समय के बाद वहा पर शिव आए और शिव अंदर जा रहे थे तो गणेश जी ने शिव का रास्ता रोक दिया । जिससे शिव जी ने बच्चे के बचपन को सोचकर पूछा बालक क तुम कोन हो और यहा पर क्या कर रहे हो । तब गणेश ने कहा की हे देव मै तो गणेश हू मै यहा पर माता की आज्ञा का पालन कर रहा हूं ।
गणेश की बाते सुनकर शिव को कुछ समझ मे नही आया और शिव फिर से अंदर जाने लगे तब गणेश ने कहा की आप अंदर नही जा सकते है । शिव ने उस बालक क को लाख समझाया पर वह बालक क कुछ नही सुनता है । वह अपने माता की आज्ञा पर डटा रहा । फिर शिव को अंदर नही जाने देने के कारण शिव के नन्दी उस बालक क से युद्ध करने लग जाते है पर माता की शक्ति भी उस बालक क मे थी इस कारण कोई उसका कुछ नही बिगाड सका ।
जब यह बात भगवान विष्णु को पता चली तो वे गणेश के पास आकर कहते है की हे बालक तुम यहा से हठ जाओ । गणेश ने विष्णु भगवान की बात भी नही सुनी और अपने निर्णय पर डटा रहा वह तो अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहा था । कुछ समय के बाद वह पर ब्रह्मा आ जाते है और गणेश को समझाते है ।
पर गणेश जी ने ब्रह्मा जी की बात भी नही सुनी । भगवान शिव ने गणेश से कहा की हे बालक तुम यहा से चले जाओ वरना अच्छा नही होगा । जब वह नही माना तो शिव जी को क्रोध आ जाता है और शिव जी गणेश के सिर को धड से अलग कर देते है ।
कुछ समय के बाद माता पार्वती गणेश को बुलरती हुई बाहर आई तो उसने देखा की गणेश का सिर व धड अलग पडा था । माता पार्वती विलाप करने लग गई जब वह विलाप कर रही थी तो शिव ने माता पार्वती से पूछा की आप क्यो इस तरह से विलाप कर रही हो । जबाब मे माता पार्वती ने कहा की मेने तो अपनी शक्तियों से गणेश को बनाया था और यहा पर इसका सिर व धड अलग पडा है । पार्वती की बात सुनकर शिव को अपनी गलती का अहसास हुआ ।
शिव ने अपनी अनजाने से हुई गलती के बारे मे माता पार्वती से कहा तो पाता पार्वती भगवान शिव को कहती है की आपने मेरे पुत्र का वध कर दिया है । आप तो भगवान हो आप तो कुछ भी कर सकते हो ।
अब आप इसे पुन: जीवन दान नही दे देते है जब तक मै आपसे बात नही करुगी इतना कहकर माता पार्वती शिव जी से बात करना बंद कर देती है । जब शिव को अहसास हुआ की यह हमारा पुत्र ही है तो वह पछताने लगे ।
और भगवान भ्रह्मा से विनती की की आप इसे जीवन दान देने की कृपा करने । तो भ्रह्मदेव ने कहा की कोई भी प्राणी जो उत्तर दिशा में सिर करके सो रहा हो तो उसका सिर काटकर ले आओ ।
तब भगवान शिव ने अपने गणों को आदेश दिया और शिवजी के गण अपने कार्य पर चल पडे । वहुत समय बित जाने के बाद उन्हे एक हाथी दिखा जो उत्तर दिशा की तरफ सिर करके सो रहा था ।
तो गणो ने उस हाथी का सिर काट कर ले आते है और भगवान शिव को कहते है की प्रभु बहुत समय बित जाने के बाद इस प्राणी का ही सिर मिला है ।
तब शिव जी ने उस सिर को बालक के सिर की जगह पर रख दिया । और भगवाप ब्रह्मा ने उस सिर को बालक के धड से जोड दिया था । इस तरह से भगवान गणेश जी का जन्म हुआ और इसी कारण उनका सिर हाथी का है ।
मेल से बने भगवान गणेश
यह भी माना जाता है की एक बार भगवान शिव जी स्नान करने के लिए गए हुए थे तब माता पार्वती ने अपने तन का सारा मेल निकाला और एक बालक का रुप देकर उसमे प्राण भर दिया । माता पार्वती ने एक मुगदल लाकर उस बालक को दे दिया था ।
और कहा की तुम उस दरवाजे पर पहरा दो और जब तक मै आकर नही कह देती तब तक तुम किसी को भी अंदर मत आने देना । तब तक मै स्नान कर लेती हूं । कुछ समय के बाद वहा पर शिव जी आ गए और वे अंदर जा रहे थे तो गणेश ने उन्हे रोक लिया ।
शिव जी को अंदर नही जाने देने के कारण शिव आपना अपमान समझ कर उस बालक को समझाते है पर वह नही माना तो शिव जी ने उसके सिर को काट दिया । शिवजी अंदर जाकर बैठ गए और शिवजी अभी भी कुछ क्रोध लिए हुए थे । तब माता पार्वती स्नान कर कर आती है और भगवान शिव को भोजन करने के लिए कहती है ।
माता पार्वती ने दो थाल मे भोजन लाकर रख दिया । जब शिव ने देखा की दो थालो मे भोजन है तो वे कहने लगे की पार्वती दो थाल मे किस लिए भोजन रखा है क्या कोई आया है या फिर कोई आने वाला है । शिव की बात सुनकर माता पार्वती ने कहा की आपने देखा नही क्या बाहर मेरा पुत्र गणेश है यह एक थाल उसके लिए ही है ।
शिव आश्चर्यचकित हो गए और कहा की तुम्हारा पुत्र बाहर पहरा दे रहा है । शिव की बात सुन कर माता पार्वती ने कहा की हां नाथ वह बाहर पहरा दे रहा है क्या वह वहा पर नही है । शिव को यह पता चलकर बहुत दुख: हुआ और सोचने लगे की मेने अपने ही पुत्र को ही मार दिया ।
फिर शिव ने पार्वती से कहा की बाहर एक बालक तो था पर वह मुझे अंदर नही आने दे रहा था इस कारण मेने सोचा की वह मेरा अपमान कर रहा है इस लिए मेने उसे मार दिया । पार्वती यह सुनकर विलाप करने लग जाती है । भगवान शिव ने अपनी गलती को सुधारने व पार्वती को प्रसन्न करने के लिए उस बालक को जिवन दान दिया ।
जब पार्वती ने देखा की उस बालक का सिर तो हाथी का हो गया है । पार्वती ने अपने पति शिव से कहा मेरे बालक को हाथी का सिर किस कारण लगाया है । तब भगवान शिव ने कहा की उसके सिर के अनेक टुकडे हो गए थे जिन्हे जोडना नामुनकीन था और रक्त बहुत बह गया था ।
इस कारण नजदीक हाथी खडा था और मेने उसका सिर लगा दिया । माता पार्वती को बहुत अच्छा लगा की उसका पुत्र जीवित हो गया और फिर पार्वती ने शिव व गणेश को कहा की चलो अब भोजन कर लो । शिव व माता पार्वती ने गणेश को बडे प्रेम के साथ भोजन कराया और स्वयं ने भी किया ।
यह माना जाता है कि गणेश के जीवन की यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी हुई थी इसी कारण इसी दिन को गणेश जी का जन्म दिन माना जाता है ।
गणेश चतुर्थी व्रत की विधी
- गणेश चतुर्थी व्रत के दिन सबसे पहले स्नान कर कर गणेश का ध्यान करना चाहिए ।
- इस दिन भगवान गणेश को भोग लगाने के लिए लडडु का प्रयोग करना चाहिए ।
- भगवान गणेश की पूजा कुमकुम धुप व दिया जलाकर कि जाती है ।
- इस दिन पूजा करने के बाद गणेश चालिसा का पाठकरना चहिए ।
- गणेश जी की आरती करे आरती के बाद मे गणेश जी के भजन करे तो अच्छा रहता है । गणेश जी का रुप दो रुप से बना हुआ है। अत: वह इस संसार मे बडे ही काम करने के लिए आये थे ।
- गणेश जी को भाग लगाकर सभी को प्रसाद बाट दिजिए ।
- बादमें अपने से बडो का आर्शिवाद लेना चाहिए ।
- इस व्रत को दुसरे दिन खोला जाता है । जब रात्री हाने लग जाए तो एक बार फिर से भगवान गणेश की पूजा करे ।
- दूसरे दिन सुबह उठकर स्नान करके गणेश जी के लिए भोजन तयार कर के उनको भोग लगाकर अपना व्रत खोले ।
महत्व
- गणेश चतुथी व्रत करने का सबसे बडा फल यह होता है की जिन लागो के संतान नही होती है । वह यह व्रत करके भगवान गणेश जी से पुत्र प्राप्ति का व्रर माग सकते है जो अवश्य पुरा होता है ।
- अगर कोई यह व्रत पूरी श्रद्धा के साथ करे तो वह रोग से भी दुर हो जाता है ।
- इस व्रत से बच्चो को भी फायदा मिलता है । वे अपना मन पढाई मे लगाने लगते है ।
- इस व्रत को करने से नोकर भी जल्दी मिलने की आशा रहती है ।
- दोपहर मे अगर गणेश जी की पूजा की जाए तो वह सबसे अच्छी मानी जाती है ।
- इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है ।
- यह व्रत करने से घर मे प्रेम भाव बना रहता है ।
- गणेश जी कृपा से ही तो लोग धनवान बन जाते है ।
- गणेश जी की पूजा किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले की जाने वाली पूजा से वह कार्य भी अवश्य पूरी तरह से सही होता है ।
- गणेश जी का यह व्रत करने से सभी दोषो दुर हो जाते है ।
- गणेश जी की पूजा करके व यह व्रत करके चंद्र दोष को दुर किया जाता है ।
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय…
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…
सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
गणेश चालीसा
जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥
ऋद्धि सिद्धि तव चंवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक क स्वरूप ह्वै॥
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥
सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक क देखन चाहत नाहीं॥
गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥
कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक क देखन कह्यऊ॥
पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक क शिर उड़ि गयो आकाशा॥
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज शिर लाए॥
बालक क के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
गणेश जी के भजन
अरे गणराज पधारो आज, भक्ति का पहना दो अब ताज।
अरे हमें तो श्री चरणों का होवे दर्शन लाभ।। अरे गणराज…
जिसने तुमको प्रथम मनाया, श्री चरणों में शीश झुकाया।
उसका तुमने मान बढ़ाया, रखी भक्तजनों की लाज।। अरे गणराज…
दो बुद्धि हम कदम बढ़ाएं, ऊंच-नीच का भेद हटाएं।
निरंतर तेरे गुण गावें, बजा-बजा निज साज।। अरे गणराज…
अंधकार अज्ञान हटाओ, दुखीजनों को धैर्य बंधाओ।
रामदरश हमको करवाओ, करो पूर्ण सब काज।। अरे गणराज…
10 दिनो तक क्यो मनाया जाता है यह त्योहार
एक बार की बात है वेदव्यास जी भगवान गणेश जी को महाभारत की कथा सुना रहे थे जब कथा सुनानी सुरु करी तो वे कथा सुनाते रहे मगर वे कथा मे इतने घुल गए की वे अपने नेत्र बंद कर कर कथा इस दिन तक सुनाई । इस कारण से भगवान गणेश जी का तापमान बहुत अधी बढ गया ।
जब वेदव्यास ने अपने नेत्र खोले तो वे देखते है की गणेश का तापमान बहुत अधीक बढ गया है इस लिए गणेश को निकट स्थित कुंड के पास ले जाकर स्नान कराया । इस कारण ही आज गणेश की पूजा 10 दिनो तक की जाती है और यही कारण है की उनकी प्रतिमा को पानी मे विसर्जीत की जाती है । इन दश दिनो मे गणेश के भजन किये जते है । गणेश जी की कृपा से इन दश दिनो मे सभी का उदार हो जाता है । वे अपने कार्य को करने मे सफलता पाते है और मन लगने लगता है ।
गणेशजी ने चंद्र को दिया श्राप
एक बार की बात है भगवान गणेश व उसका वाहन दोनो खेल रहे थे और चंद्र उन दोनो को देख रहा था । चंद्र को गणेश के रुप को देखकर हसी आ गई । गणेश को हसने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी ।
गणेश ने देखा कि चंद्रदेव उन पर हंस रहे है जिससे गणेश जी ने चंद्रदेव को हसने का कारण पुछा चंद्रदेव अभी भी हसते हुए कह रह रहे थे की हे गणेश मुझको तो आपको देखकर हंसी आ रही है आपका सिर हाथी का है और आपका शरीर मनुष्य का है आप इस तरह से बडे विचित्र लग रहे हो चंद्रदेव ने यह कहकर हंसना सुरु कर दिया ।
गणेश को चंद्रदेव के हंसने के कारण क्रोध आ गया और गणेश जी ने चंद्रदेव को श्राप दे दिया की हें चंद्र तुमको अपने आप पर बहुत घमण्ड है जब तेरी यह रोशनी ही नही रहेगी तो तेरा घमण्ड टुटेगा इतना कह कर गणेश जी ने श्राप दे दिया की तेरा यह रुप नही रहेगा ।
गणेश जी का श्राप लग जाने के कारण चंद्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और कहा की हें गणेश जी आप मुझे क्षमा कर दे मेने आपका अपनाम उडाकर अच्छा नही किया है कृपा करके आप अपना श्राप वापस ले ले वरना मेरा तो यहा पर कोई अथित्व ही नही रहेगा और यह संसार बिना रोशनी के रहेगा ।
गणेश जी ने चंद्रदेव का पच्यात्याप देखकर कहा हें चंद्रदेव मै अपना श्राप वापस तो नही ले सकाता हू पर इसका प्रभाव कम कर सकता हूं । तुम्हारा प्रकाश कृष्ण पक्ष मे तो कम हाने लगेगा और शुक्ल पक्ष मे बढने लगेगा । गणेश जी के क्षमा कर देने के कारण ही तो कभी चंद्र की रोसनी घटती है और कभी बडती है ।
पूर्णिमा तिथि पर चंद्र आपना पुरा प्राकाश फैलाकर इस संसार को रात मे भी रोस्नी दे देता है । गणेश जी का व्रत करने के बाद मे चंद्र दर्शन करना है ऐसा व्रर दिया था । गणेश ने चंद्रदेव को यह भी कहा तुम्हे देखकर लोग अपने आप पर घमण्ड नही करेगे उनको तुमसे उनको प्रेरण मिलेगी ।
गणेश जी की पहले पूजा करने की कथा
एक बार की बात है देवलोक मे सभी देव एकत्रित्र होकर बात करने लगे की हम सभी देव अपना कार्य सही तरह से करते है और हममे से सभी देव बलवान है । इस संसार मे चाहे जिसकी भी पूजा हो उससे पहले भी किसी की पूजा होनी चाहिए । उसके बाद मे ही किसी और की पूजा होगी ऐसा कोन होगा उसके बारे मे बात करने के लिए यहा पर आए है ।
यह बात सुनकर सभी ने सोचा की बात तो अच्छी है पर हममे से सबसे पहले किसकी पूजा होगी इसका फैसला कैसे करेगे । उस सभा मै इंद्रदेव के साथ साथ गणेश व उसका भाई कार्तिकेय भी थे । सभी को इस बारे मे कोई निर्णय नही मिला तो अंत मे इंद्र ने कहा की हम सबको इस समस्या को लेकर देवो के देव महादेव के पास जाना चाहिए वह ही हमारी इस समस्या को सुलझा सकते है ।
सभी देवो को इंद्र का सुझाव अच्छा लगा तो सभी कैलाश की और रवाना हो गए । साथ मे गणेश जी भी कैलाश की और जाने लगे । कैलाश पहुच कर नारद जी बोले हे देवो के देव महादेव कैलाश अधीकारी शिव जी आखे खोले । शिव जी ध्यान मे मगन थे ।
शिव ने नारद की वाणी सुनकर आखे खोली इतने मे वहा पर माता पार्वती भी आ गई । सभी देवो ने शिव व माता पार्वती को प्रणाम करते हुए कहा की हें देव हम चहाते है की हममे से जिसकी भी पूजा पृथ्वी पर हो हम चाहते है कि उससे पहले हममे से किसी एक की पूजा पहले की जाए और बाद मे उसकी की ।
महादेव ने कहा आपकी समस्या का मै निवारण करता हूं । शिव जी ने कहा की सभी अपने वाहन पर सवार होकर इस पृथ्वी का एक चक्र लगाकर आओ । जो भी पहले चक्र लगाकर आएगा उसकी ही पूजा सबसे पहले की जाएगी।
सभी बोले हमे यह सुझाव पसंद आया जो भी पहले चक्र लगा लेगा उसकी पूजा पहले की जाएगी । सभी अपने वाहन पर स्वार होकर पृथ्वी का चक्र लगाने के लिए रवाना हो गए । पर गणेश जी को पता था की मेरा वाहन इनसे पहले चक्र नही लगा सकता है ।
गणेश ने कुछ समय तो सोचा फिर अपने वाहन पर बैठ कर शिव और पार्वती के की सात बार परिक्रमा कर लि और अपने माता पिता के सामने हाथ जोडके खडा हो गया । सभी देवो मे से सबसे पहले कार्तिकेय आया और बाद मे एक एक करकर सभी आ गए तो कार्तिकेय ने शिव से कहा की हे पिताश्री सबसे पहले मे आया हूं ।
सभी देवता को भी यही लगा की सबसे पहले कार्तिकेय आया है । पर गणेश जी भी वहा पर खडे थें । पृथ्वी का चक्र तो पहले गणेश ने लगाया है और एक बार नही सात बार लगाया है । यह बात शिव ने कही थी । सभी देवता को विश्वास नही हुआ कि गणेश ने पहले चक्र लगाय है और वह भी सात बार।
तब कार्तिकेय ने कहा की यह केसे हो सकता है जो यहा से गया ही नही वह चक्र केसे लगा सकता है । तभी शिव ने कहा जो अपने माता पिता की पूजा कर लेता है उसे किसी और की पूजा करने की जरुरत नही होती और गणेश ने अपने माता पिता के सात बार चक्र लगया है और माता पिता इस ब्रह्माड से भी बडकर है ।
इतना सुनकर सभी देव बोले की हा माता पिता को इस ब्रह्माण्ड से बडकर माना जाता है और फिर गणेश ने शिव और माता पार्वती के चक्र लगाया है । जिनकें कारण ही तो पृथ्वी निर्माण हुआ । अत: गणेश की ही पूजा सबसे पहले की जाएगी ।
सभी देवो की बात सुनकर कार्तिकेय और क्या बोल सकता था वह चुप चाप सभी देवो की बात मान ली और सभी देवो ने गणेश की पूजा की । तभी से आज तक गणेश जी की पहले पूजा की जाती है ।
This post was last modified on November 10, 2020