ram setu ka rahasya kya hai के बारे मे हम बात करें गे ।राम सेतु के बारे मे हम सभी जानते होंगे । रामसेतु के रहस्य को सुलझाने के लिए बहुत दावे किये जाते रहे हैं। लेकिन वैज्ञानिक रहस्यमय राम सेतु के रहस्य को आज तक नहीं सुलझा पाएं हैं।
राम सेतु को हनुमान की वानर सेना ने बनाया था । ऐसा रामायण के अंदर उल्लेख मिलता है। रामायण के अनुसार जब भगवान राम को यह पता चल गया था कि सीता रावण की कैद के अंदर है तो उन्होंने लंका पर चढाई करने की सोची ।
लेकिन बीच मे काफी लम्बा समुद्र था । जिसको पार करना वानर सेना के लिए एक चुनौती था । उसके बाद हनुमान ने वानर सेना से कहा कि वह भगवान राम का नाम लिखकर पत्थर को पानी के अंदर फेंके तो वह तैरने लगेगा । और वानर सेना ने ऐसा ही किया । और पांच दिन के अंदर राम सेतु बनकर तैयार हो गया । जिसके रस्ते जाकर वानर सेना ने रावण पर आक्रमण कर उसको परास्त कर सीता को छूटा लिया । बताया जाता है कि यह सेतु 30 मील लम्बा है। राम सेतु ब्रिज का इस्तेमाल आज से लगभग 7000 से 10000 साल पहले यात्रा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। राम सेतु को अंतराष्टिय स्तर पर एडेम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है।
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रामायण के अनुसार राम सेतु को बनाने के लिए विशाल ताकत वाले बंदरों का प्रयोग हुआ था । यह बंदर चटटानों को उखाडकर राम सेतु को बनाया था । एक एक पत्थर को जोड़ कर 30 मील लम्बे राम सेतु को बनाया गया था।
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राम सेतु से जुड़ी पौराणिक कथा ram setu ka rahasya kya hai
धार्मिक मान्यता के अनुसार जब राजा रावण सीता का हरण करके लंक के अंदर ले गया था । तब हनुमान को सीता को तलासने के लिए भेजा गया था । हनुमान ने आकर बताया की सीता माता अशोक वाटिका के अंदर है। तब राम ने वानरों की सहायता से नदी के अंदर पुल बनवाया था जो समुद्र के अंदर यह राम सेतु मात्र 5 दिन के अंदर ही वानर सैना ने कैसे बनाया होगा । इस बारे मे कोई नहीं जानता है। लेकिन इस संबंध के अंदर रामायण मे एक कहानी का उल्लेख मिलता है। जिसका उल्लेख हम यहां पर भी कर रहे हैं।
रावण ने सीता का हरण तो कर लिया और उसका पता हनुमान ने लगा लिया था । लेकिन वे सीता को अपने साथ नहीं लेकर आए क्योंकि वहां पर सीता के अलावा और भी बहुत सारे बंधी थे ।तब राम ने फैसला किया कि वे एक बड़ी सेना लेकर जाएंगे और सब को बंधन से मुक्त करवाएंगे । लेकिन कैसे ? सामने एक विशाल समुद्र था ।
उसके बाद राम ने समुद्र देवता की पूजा आरम्भ की लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी जब समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए तो राम ने समुद्र देवता को सूखा देने के लिए अपना धनूष बाण उठा लिया । उसके बाद समुद्र देवता डरकर प्रकट हुए और बोले आप नदी के अंदर पुल बनाएं मैं सारे वजन को सम्भल लूंगा । इस काम मे नल और नील आपकी मदद करेंगे । उस पुल से गुजरकर आपकी वानर सेना लंक तक पहुंच सकेगी । और उसके बाद पुल बनाने की योजनाए की और नल और नील की देख रेख में वानर सेना ने पुल बनाना शूरू कर दिया ।
5 दिन के अंदर यह पुल तैयार हुआ । नल और नील जानते थे कि किस पत्थर को पानी मे डालने से वह डूबेगा नहीं ।वे एक अच्छे आर्किटेक्चर थे ।यह पुल भारत के रामेश्वरम से लंका के मन्नवार द्विप से जुड़ता है। और पुल से होकर राम और उनकी वानर सेना लंका पहुंची राम और रावण के बीच भयंकर युद्व हुआ । वे अपनी पत्नी और अन्य बंधियों को छूटाने मे सफल रहे ।
राम सेतु फेक्टस
राम सेतु ने आर्किटेक्ट्स नील और नाला की देखरेख में 10 लाख वनारों (बंदर) के निर्माण के लिए 5 दिन का समय लिया। आयु और संरचना राम सेतु 1.7 मिलियन वर्ष पुराने हैं। यह माना जाता है कि राम सेतु चूना पत्थर शॉल की एक श्रृंखला से बना है यह 30 किमी लंबी और 3 किमी चौड़ी है। यह भारत के पाम्बान द्वीप के धनुशकोड़ी टिप से शुरू होता है और श्रीलंका के मन्नार द्वीप में समाप्त होता है।
तैरते हुए पत्थरों का रहस्य
राम सेतु को अजीबो गरीब पत्थरों से बनाया गया था । यह कुछ ऐसे पत्थर थे जोकि पानी के उपर तैर सकते थे । रामेश्वरम के अंदर तूफान के अंदर अभी भी कुछ ऐसे पत्थर मिले हैं जोकि पानी के उपर तैर रहे थे । हालांकि कई वैज्ञानिक इस बात का दावा करते हैं कि राम सेतु अपनें आप ही बना है लेकिन उनके पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह सब अपने आप कैसे हुआ । वहीं कुछ वैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि राम सेतु मानव के द्वारा बनाया गया है।
यह तथ्य साबित करते हैं कि राम सेतु इंसान ने ही बनाया है
नास के वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं कि राम सेतु इंसानों ने बनाया था । सन 1448 ई से पहले राम सेतु पूरी तरह से चलने योग्य था । इससे कोई भी समुद्र के उस पार जा सकता था । लेकिन 1448 के अंदर आए तूफान की वजह से यह पुल टूट गया और अब यह समुद्र के स्तर के अंदर समा गया है। नासा ने उपग्रह से राम सेतु की तस्वीर भी ली थी। जोकि पानी के अंदर साफ दिखता है।
राम सेतु कोई चमत्कार नहीं है
यदि वैज्ञानिकों की माने तो राम सेतु के पत्थर कोई चमत्कार नहीं हैं। लंका के अंदर कुछ ऐसे पत्थर हैं जोकि पानी के उपर तैर सकतें हैं। राम सेतु को इन्हीं पत्थरों से बनाया गया है। यह पत्थर काफी हल्के होने की वजह से पानी पर तैर लेते हैं। पुमिस नामक पत्थर भी एक ऐसा ही पत्थर है जोकि पानी पर तैर सकता है।
क्या है पुमिस पत्थरों का रहस्य
यह पत्थर ज्वालामुखी की वजह से बनते हैं। यह ज्वालामुखी से निकले वाला कठोर फोम होता है। जोकि पहले काफी गर्म होता है और बाद मे ठंडा हो जाता है। यह पत्थर पानी के उपर तैर सकता है। राम सेतु का निर्माण इन्हीं पत्थरों की मदद से किया गया है।
कहां से आए रहस्य मय पत्थर
नासा ने यह दावा किया है कि इस प्रकार के पत्थर कहीं दूर से लाये गए हैं। क्योंकि लंका के अंदर कोई भी ज्वालामुखी नहीं है। और वहां की चटटानों के अंदर भी इस प्रकार के गुण नहीं पाए जाते हैं जोकि इस पत्थर से थोड़ा भी मेल खाती हों। और ऐसा कोई सबूत भी नहीं है कि पीछले लाख सालों के अंदर रामेश्वरम के आस पास ज्वालामुखी होने का दावा करता है।
रामेश्वरम के अंदर कुछ ऐसे पत्थर भी मौजूद हैं जोकि पुमिस पत्थर के जैसे दिखते हैं लेकिन उनकी संरचना पुमिस पत्थर के समान नहीं है और यह पानी पर तैर नहीं सकते ।
बहुत से इतिहासकार नहीं मानते कि राम सेतु राम ने बनाया है
अनेक ऐसे इतिहासकार हैं जोकि इस बात को नहीं मानते कि राम सेतु राम ने बनाया है। लेकिन वैज्ञानिक पुल के अंदर प्रयोग किये जाने वाले इतने सारे पत्थरों की अवधारणों को समझा पाने मे असमर्थ हैं।
राम सेतु के पत्थरों के रहस्य आज भी बरकरार
राम सेतु बनाने मे प्रयोग लिये गए पत्थर वास्तव मे तैरते कैसे हैं। इस बात को आज तक कोई भी वैज्ञानिक समझा पाने मे असमर्थ रहा है। कहां से यह पत्थर आए थे । और कैसे इतना लम्बा पुल तैयार किया गया था । और दूसरी बात यह विशेष पत्थर सिर्फ पुल के अंदर ही क्यों मिलते हैं रामेश्वरम के आस पास यह पत्थर और कहीं क्यों नहीं मिलते । हालांकि कुछ वैज्ञानिक दावा करते हैं कि यह पत्थर अपने विशेष गुणों की वजह से पानी के अंदर तैरते हैं। लेकिन वे यह समझा पाने मे असमर्थ हैं कि अब वे पानी के अंदर कैसे डुबे हुए हैं।
क्यों डूब गया अब राम सेतु
अब आई एक नई थ्योरी के अनुसार राम सेतु के पत्थरों के अंदर कुछ छिद्र होते हैं और उन छिद्रों के अंदर हवा भरी रहती है। लेकिन धीरे धीरे जब हवा के स्थान पर इन छिद्रों के अंदर पानी भर जाता है तो पत्थर डूब जाता है। हालांकि क्या पत्थर को डूबने मे 7000 हजार साल लग जाते क्योंकि यह सेतु 7000 से 10000 साल पुराना है।
भले ही विज्ञान अपने आप को काफी विकसित मानता हो लेकिन अभी भी विज्ञान उतना विकसित नहीं हुआ कि दुनिया के हर रहस्य को समझ सके । भले ही हम ना माने की गोड नहीं होता । लेकिन दुनिया के अंदर हर काम नियमों से होना इस बात का सबूत है कि गोड होता है। और वो भी ऐसे नियमों से जोकि वास्तव मे ही सही बनाए गए हैं। जरा सोचो कि जो नियम सही हैं वे उल्टे भी हो सकते थे । लेकिन आपको नेचर के अंदर ऐसा कहीं नहीं मिलेगा । ऐसा क्यों हैं इस बात का जवाब दुनिया कि कोई विज्ञान नहीं दे सकता ।
- यह सही है कि भारत के दक्षिण में धनुषकोटि और श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पम्बन के मध्य समुद्र में एक पट्टी जैसा भू-भाग है, जिसे रामसेतु या राम का पुल के नाम से जाना जाता है। इस पुल जैसे भू-भाग को नासा ने उपग्रह से खींचे गए चित्रों के माध्यम से दुनिया को दिखाया था। इससे पहले भी रामसेतु के बारे में धर्मिक और मानसिक तौर पर अनेक रूपांतर और विवाद हुए हैं।
- इस चौड़ी पट्टी का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। महाभारत में बताया गया है कि भगवान राम ने अपनी सेना के साथ यहां समुद्र पार किया था। उन्होंने अपने शक्तिशाली धनुष से समुद्र का पार करके लंका पर रावण को मार गिराया था। रामसेतु के बारे में भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व है और इसे हिंदू धर्म में एक तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है।
- दिसंबर 1917 में साइंस चैनल पर एक अमेरिकी टीवी शो से यह पता चलता है कि रात सेतु के पुल को इंसानों ने ही बनाया है।भारत और श्रीलंका के बीच 50 किलोमीटर लंबी एक रेखा चट्टानों से बनी है और ये चट्टानें सात हजार साल पुरानी हैं जबकि जिस बालू पर ये चट्टानें टिकी हैं, वह चार हजार साल पुरानी होने का अनुमान लगाया गया है जिससे यह पता चलता है कि यह पुल इंसानों ने ही बनाया है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।
- इसके अलावा आपको बतादें कि राम सेतु पुल को कुछ लोग आदम पुल के नाम से जानते हैं तो कुछ लोग एडम ब्रीज के नाम से भी इसको जानते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । कहा जाता है कि आदम इस पुल से होकर गुजरे थे ।
- 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था। और बाद मे यह तूफानों की वजह से काफी अधिक टूट गया और अब यह पानी के अंदर डूब चुका है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।
- वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता को रावण से छूटाने के लिए राम ने एक पुल को बनाया था । और इसको बनाने के लिए विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील ने अपना योगदान दिया था । जिसके उपर से बाद मे राम की सेना रावण पर आक्रमण करने के लिए गई थी।
- नल सेतु नाम इस पुल का रखा गया था। और इस पुल को बनाने के लिए ज्वालामुखी के पत्थरों का प्रयोग किया गया था । क्योंकि जो ज्वालामुखी के पत्थर होते हैं वे आसानी से पानी के अंदर तैर सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और यह पानी मे डूबते नहीं हैं।
- वाल्मीक रामायण के अंदर इस बात का वर्णन मिलता है कि पुल को बनाने के लिए कुछ वानर बड़े बड़े पत्थर लेकर आ रहे थे तो कुछ सूत का प्रयोग कर रहे थे । मतलब पुल को सीधा करने के लिए सूत का इस्तेमाल हो रहा था । मतलब सारी आधुनिक तकनीक का प्रयोग इस पुल को बनाने मे किया जा रहा था।
- धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। यह वही स्थान है जंहा से पुल का निर्माण शूरू हुआ और यह वह स्थान था जंहा से आसानी से पुल का निर्माण कर लंका तक पहुंचा जा सकता था । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।
- धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्थलीय सीमा है, जंहा पर समुद्र की गहराई काफी कम है। और यही कारण है कि वहां पर आसानी से पुल का निर्माण किया जा सकता था। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।
- आपको बतादें कि जब भगवान श्री राम लंका जा रहे थे तो उनको जाने के लिए पुल की जरूरत थी और पुल से गुजरने के बाद ही उनकी सेना लंका जा सकती थी। इसकी वजह से 1400 किलो मीटर का यह पुल बनाया गया था। इस पुल को 5 दिन के अंदर बनाकर तैयार कर दिया गया था।
- दोस्तों राम सेतु के बारे मे आप अच्छी तरह से जानते हैं। लेकिन रात सेतु की कार्बन डेटिंग से यह पता चलता है कि उसकी उम्र 7000 साल पुरानी है। और यही रामायण की उम्र थी। जिससे कि यह पता चलता है कि राम सेतु का निर्माण राम ने ही करवाया था।
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