दोस्तों जो इंसान जिंदगी के अंदर कुछ कर दिखाना चाहता है। उसके सामने चाहे कोई भी मुश्बित क्योंना आएं । वह अपने काम से कभी हार नहीं मानता है। और निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करता जाता है। वह इंसान हो सकता है 1000 बार असफल हो जाए । लेकिन एक दिन सफल हो ही जाता है। सही है जो लोग मरते दम तक प्रयास नहीं छोड़ते हैं वेही इस दुनिया के अंदर अपने सपनों को हकिकत के अंदर बदलता हुआ देखते हैं।
आज हम आपको क्रष्ण मोहन सिंह की प्रेरणादायी स्टोरी आपको सुनाने वाले हैं। मोहन सिंह का जन्म 3 फरवरी 1966 को रांची के एक मिडियम फैमेली के अंदर हुआ था । उनके पिता जर्नादन प्रसाद हैवी इंजिनियर नामक एक सरकारी कम्पनी के अंदर एक कर्मचारी थे ।उनके छ भाई बहन थे । और उनके पिता की तनख्वाह इतनी नहीं थी कि पूरा परिवार का खर्चा इससे निकल सके । उनके पिता इसके लिए काफी पसीना बहाया करते थे ।
वे बताते हैं कि उन्होंने सरकारी विश्वविधालय से अपनी पढ़ाई पूरी कि और रांची विश्विधालय से स्नातक किया । उनके घर की स्थिति इतनी खराब भी कि उनके पिता के पास स्कूल की ड्रेस खरीदने तक के लिए पैसे नहीं होते थे । लेकिन उन्होंने गरीबी मे रहकर ही पढ़ाई पूरी करली
Table of Contents
भाई के साथ शूरू किया टिकट क्लैक्टर का काम
उसके बाद घर की आर्थिक मदद के लिए उन्होंने काम की खोज की लेकिन कोई काम नहीं मिला तो उनका बड़ा भाई पवन कुमार टिकट बुकिंग का काम किया करते थे । तो मोहन भी उनके साथ ही काम करने लगे थे । उन्हें पर टिकट बुकिंग पर पैसा मिलता था । जिससे उनके परिवार को आर्थिक मदद होती थी ।
अपनी कमाई बढ़ाने का विचार
दोनों भाइयों ने 6 साल तक यह काम किया । तब तक उनको इस काम के बारे मे काफी अनुभव हो चुका था । और उन्होंने अपने पास 3 लाख रूपये भी जमा कर लिये थे । जो उनको आगे चलकर बहुत कामके साबित हुए । उसके बाद दोनों भाइयों ने अपनी कमाई बढ़ाने के का विचार किया ।
इसके लिए उन्होंने एक बस खरीदने की सोची लेकिन इसके लिए उनके पास पैसा नहीं था । लेकिन उन्हें तो काम करना था । सो उन्होंने कुछ पैसा ब्याज पर लिया और एक बस खरीद कर पहली बस सेवा रांची से पटना के लिए शूरू की ।
1994 के अंदर उन्होंने दूसरी बस भी खरीद ली ।क्योंकि उन्होंने अपने सारा पैसा समय पर चुकता कर दिया था । जिसकी वजह से बिल्डर उनको लोन देने के लिए आसानी से तैयार भी हो गए । 1997 तक उनके पास 3 बसें हो चुकी थी । और कम्पनी का टर्नओवर 12 लाख हो चुका था ।निरंतर कर्ज लेकर और समय पर चुकाकर उन्होंने 2003 तक अपने पास बसों की संख्या 10 करली थी ।उसके बाद कम्पनी का टर्नओवर 80 लाख तक पहुंच चुका था ।और 2015 तक आते आते उन्होंने 13 बसें करली और उनकी कमाई और अधिक बढ़कर 10 करोड़ तक पहुंच गई। वे बताते हैं कि पूरानी बसों को वे बदलते रहते थे क्योंकि पूरानी बसों का खर्चा अधिक आता है और फायदा कम होता है।
मोहन सिंह एक करोड़पति इंसान ही नहीं हैं। वरन एक अच्छे इंसान भी हैं। वे जरूरत मंद लोगों की मदद भी करते हैं। और मजदूरों के हितों की रक्षा मे भी काम करते हैं। व गरीबों को आर्थिक सहायता देते हैं।
सीख
जिंदगी मे जो है उससे अधिक पाने की सोचो
दोस्तों मोहन जी के पास पहले कुछ नहीं था फिर उन्हें एक बस पाने की सोची उसके बाद 2 सरी बस के बारे मे सोचा उसके बाद तीसरी के बारे मे मतलब उन्हें सोचना कभी बंद नहीं किया । तो पहली सीख है करोड़पति बनना है तो आगे बढ़ना बंद मत करो ।
अंत तक प्रयास करते रहो
आपको क्या लगता है कि मोहन सिंह जी तुरन्त ही करोड़पति बन गए ? हर इंसान मोहन सिंह की तरह ही होता है। लेकिन वह जल्दी से करोड़पति बन जाना चाहता है। लेकिन हमेशा एक बात याद रखो हर काम को पूरा होने मे वक्त लगता है।
आगे बढ़ने के लिए अपने सिस्टम मे सुधार करते रहो
मोहन सिंह जी का पूरानी बसों का बदला एक सिस्टम सुधार ही तो है। मतलब आपके बिजनेस के अंदर जो चीर्जें बेवजह आपका खर्चा बढ़ा देती हैं। उनके खर्चे को किसी तरह कम किया जाना चाहिए।