ब्रज की होली या लठ मार होली के बारे मे आपने सुना ही होगा ।यहां पर महिलाएं पुरूषों पर लठ बरसाती हैं। और पुरूष लठों से बचते हुए महिलाओं के रंग लगाते हैं। यहां की ब्रज की होली या लठ मार होली काफी प्रसिद्व है। ब्रज मथुरा के अंदर पड़ता है। रंग बिरंगे कपड़ों के अंदर महिलाएं सजती है और हाथों के अंदर लाठियों पर तेल की मालिस करके रखती हैं। यहां पर महिलाएं नंदग्राम की गोपियां होती हैं और पुरूष को ग्वालों के रूप मे देखा जाता है।
दरसअल नवमी के समय यहां पर राधारानी के बुलावे पर यहां के पुरूष महिलाओं के साथ ब्रज की होली या लठ मार होली खेलने के लिए पहुंचते हैं और दशमी के दिन महिलाओं और पुरूषों के बीच घमासान होता है।
नंदगाव की गोपियां बरसाने के ग्वालों का लठ मार कर स्वागत करती हैं। पुरूषों को इन लाठियों से बचना होता है। यहां के लोगों का मानना है कि यदि किसी को लठ की लग जाती है तो वह उस घाव पर मिटटी लगा लेता है। जिससे वह घाव अपने आप ही ठीक होजाता है।
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लठमार होली का निमंत्रण
यहां पर ग्वाले नंदगांव के अंदर या बरसाने मे यू ही नहीं जाते वरन उनको बकायदा निमंत्रण दिया जाता है। राधारानी की महिलाएं कान्हा से होली खेलने के लिए इत्र गुलाल पुआ आदि हांडी के अंदर लेकर पहुंचती हैं। वहां उनके निमंत्रण को स्वीकार करके समाज के अन्य लोगों को इसबारमे मे बताया जाता है।और सखियों का निमंत्रण मिलने पर वहां के पुरूष उनका काफी अच्छा स्वागत भी करते हैं।
इस मान्यता से जुड़ी है लठमार होली
यह मान्यता है की भगवान कृष्ण अपने सहचरों के साथ होली खेलने के लिए पहुंच जाते थे । और गोपियों को यह पसंद नहीं था क्योंकि कृष्ण उनके साथ ठिठोली भी करते थे । इस वजह से वे उनका लाठी और डंडों से स्वागत करती थी ।और अब इसको एक परम्परा के तौर पर मनाया जाता हैभगवान क्रष्ण यहां पर खास कर राधा से होली खेलने के लिए भी यहां पर आते थे । अब हर साल बरसाना के अंदर यह होली मनाई जाती है। राधा बरसाना की रहने वाली थी ।
कैसे खेली जाती है लठमार होली
यहां पर महिलाएं अपने हाथों के अंदर डंडे लेकर रखती हैं और सारे पुरूष अपने हाथों के अंदर ढाल लेकर रखते हैं। महिलाएं अपने डंडे से पुरूषों को पीटने की कोशिश करती हैं और पुरूष इससे अपना बचाव करते हैं और महिलाओं पर गुलाल वैगरह लगाते हैं। लठमार होली के अंदर कई बार चोटें भी लग जाती हैं।आपको बतादें कि महिलाएं अपने गांव के पुरूषों पर लाठियों से वार नहीं करती हैं ।वरन दूसरे गांव से जो पुरूष पगड़ी बांधे हुए आते हैं उन्हीं पर महिलाएं वार करती हैं।व महिलाएं होली खेलते हुए गीत भी गाती हैं।
लडुओं की होली
लठमार होली से एक दिन पहले यहां पर लडुओं की होली खेली जाती है। यहां पर आमंत्रण की स्वीकारोक्ति के अंदर यह होली खेली जाती है। यहां पर शाम को लोग मंदिरों और छतों पर एकत्रित हो जाते हैं और एक दूसरे को लडुओं की मारते हैं। इसको देखने के लिए देस विदेश के लोग भी आते हैं जो इन लडुओं को प्रसाद के रूप मे खाते हैं। 8 मार्च को व्रंदा वन के ठाकुर बांके बिहारी के मंदिरों के अंदर भी रोज होली खेले जाने लगती है। और भगवान साल के अंदर एक बार आकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। और होली का आनन्द लेते हैं। इस दिन बाजारों के अंदर रोनक छा जाती है। इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
क्यों शूरू हुई लठमार होली
ऐसा माना जाता है कि यह होली महिलाओं के सम्मान का प्रतीक है।भगवान क्रष्ण भी महिलाओं का सम्मान करते थे । और हर विपति से बचाने के लिए वे बरसाना आया करते थे । लठमार होली को नारी सशक्तिकरण का प्रतीक माना जाता है। जिसके चलते नंदगांव के लोग बरसाना आकर यहां की गोपियों को ललकारा जाता है। और गोपियां पुरूषों पर लठों से वार करती हैं।
जेठ और भाभी की होली
मांट नामक एक गांव के अंदर जेठ और भाभी की होली काफी फेमस है। वैसे हमारे यहां पर जेठ के साथ छोटे भाई कि पत्नी बात नहीं करती है।एक पुरानी कथा के अनुसार राधाजी ने बलराम के साथ होली खेली थी । बलराम ने राधा के साथ होली खेलने की इच्छा जाहिर की तो राधा विचलित हो गई। उसके बाद भगवान क्रष्ण नें बताया कि त्रेता युग के अंदर बलराम लक्ष्मण थे और आप सीता के रूप मे थी । इस नाते आप उनकी भाभी हो गई। तो आप होली खेल सकती हैं।