अस्मद् का शब्द रूप संस्कृत में , asmad ka shabd roop .अस्मद् शब्द के अर्थ की जब हम बात करते हैं तो इसका मतलब होता है मैं हम आप लोग ।दोस्तों नीचे अस्मद् के शब्द रूप के बारे मे बताया गया है। आप देख सकते हैं। यदि आपको कोई सवाल है तो आप हमें बता सकते हैं। हम आपको सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे।
अस्मद का शब्द रूप asmad ka shabd roop in sanskrit
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | अहम् | आवाम् | वयम् |
द्वितीया | माम् | आवाम् | अस्मान् |
तृतीया | मया | आवाभ्याम् | अस्माभिः |
चतुर्थी | मह्यम् | आवाभ्याम् | अस्मभ्यम् |
पंचमी | मत् | आवाभ्याम् | अस्मत् |
षष्ठी | मम | आवयोः | अस्माकम् |
सप्तमी | मयि | आवयोः | अस्मासु |
अस्मद शब्द रूप हिंदी मे मतलब
विभक्ति | एकवचन 1 | द्विवचन 2 | बहुवचन 3 |
प्रथमा | अहम् (मैं) | आवाम् (हम दो) | वयम् (हम सब) |
द्वितीया | माम् (मुझ को) | आवाम् (हम दोनों को) | अस्मान् (हम सब को) |
तृतीया | मया (मैंने/मेरे द्वारा) | आवाभ्याम् (हम दोनों ने) | अस्माभिः (हम सब ने) |
चतुर्थी | मह्यम् (मेरे लिए) | आवाभ्याम् (हम दोनों के लिए) | अस्मभ्यम् (हम सब के लिए) |
पंचमी | मत् (मुझ से) | आवाभ्याम् (हम दोनों से) | अस्मत् (हम सब से) |
षष्ठी | मम (मेरा) | आवयोः (हम दोनों का) | अस्माकम् (हम सब का) |
सप्तमी | मयि (मुझ में ) | आवयोः (हम दोनों से ) | अस्मासु (हम सब ) |
मैं की कहानी के बारे मे हम आपको बता देते हैं। दोस्तों मैं शब्द आमतौर पर अहंकार का सूचक होता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और अहंकार किसी भी तरह का क्यों ना हो वह इंसान की बुरी गति ही करता है आप इस बात को समझ सकते हैं। इसलिए तो सदा ही यह कहा गया है कि इंसान को अहंकार का परित्याग करना चाहिए। तभी कुछ फायदेमंद हो सकता है।
प्राचीन काल की बात है सहदेव नामक एक राजा अपने राज्य के अंदर शासन करता था। वह एक अच्छा राजा नहीं था और प्रजा पर तरह तरह के अत्याचार करता था। और प्रजा भी उससे परेशान थी। लेकिन क्योंकि वह राजा था तो उसके खिलाफ किसी के अंदर बोलने की हिम्मत नहीं थी । और कई बार राज्य के लोगों ने उस राजा को हटाने के लिए विद्रोह भी किया लेकिन उसने विद्रोह को कुचल दिया। वह एकदम से अयाश किस्म का इंसान था। और उसकी सबसे बड़ी खास बात यह थी कि वह हमेशा ही नशे के अंदर रहता था। यदि उसे राज्य की कोई भी स्त्री पसंद आ जाती थी तो वह उसे उठा लेता था ।
इस तरह से उसके हरम के अंदर कई हजार महिलाएं मौजूद थी। एक बार की बात है राजा शिकार खेलने के लिए जंगल के अंदर गया और उसके बाद वहां पर एक कुटिया के अंदर बहुत ही सुंदर कन्या को उसने देखा और राजा के मन मे काम के भाव जगे और उसने उस कन्या से विवाह करने की इच्छा जाहिर की वह कन्या के पास गया और बोला …….मे सहदेव नरेश हूं और आपसे विवाह करना चाहता हूं । लेकिन कन्या ने कहा कि वह अपने पिता की अनुमति के बिना विवाह नहीं कर सकती है तो राजा ने पूछा की उसका पिता कौन है तो कन्या ने बताया कि उसका पिता एक साधु है और वह पास के गांव के अंदर भिक्षा मांगने के लिए गए हैं ।
लेकिन राजा ने कहा कि वह उसको सारी खुशियां दे सकता है लेकिन कन्या राजा से विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुई तो राजा ने उस कन्या को जबरदस्ती वहां से उठा लिया । और जब वह साधु भिक्षा मांग कर आया तो उसे वह कन्या वहां पर नहीं मिली जोकि उसकी बेटी थी। किसी से उसको यह पता चला कि राजा उसकी कन्या को उठा कर ले गया है तो वह साधु राजमहल के अंदर गया और कन्या को राजा को छोड़ देने के लिए कहा लेकिन राजा नहीं माना और बोला ………… हम आपकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं इसके बदले मे आप जो चाहें मांग सकते हैं ?
……..नहीं आप मुझे अपनी कन्या ही दें । हम आप जैसे नीच इंसान से अपनी कन्या का विवाह नहीे करवा सकते हैं।
इतना सुनने के बाद राजा के अहं को चोट लगी और वह बोला ………अरे नीच साधु तेरी इतनी हिम्मत की तू राजा का अपमान कर रहा है। सेनिकों इसको बंदी बना लो । और उसके बाद सेनिकों ने साधु को बंधी बना लिया । उसके बाद साधु बोला ………अरे नीचे तुझसे क्या डरना हम तो अमर हैं और तेरे जैसा पापी हमारा कुछ नहीं बिगाड सकता है । तेरे कुल का विनाश होगा आज मैं तुझे कहता हूं । और उसके बाद राजा ने हंसते हुए कहा ………बहुत देखे हैं तेरे जैसे कुछ नहीं होने वाला । सेनिकों इस साधु को जेल के अंदर डाल दो । और उसके बाद साधु को जेल के अंदर डाल दिया गया और उसके बाद राजा की शादी की तैयारियां होने लग गई ।
उधर जब साधु के गुरू को यह पता चला कि उसका शिष्य संकट के अंदर है तो वह भी राजा के महल मे चला आया और राजा से बोला ……..हे राजन तुमने हमारे शिष्य के साथ बहुत अधिक गलत किया है उसकी कन्या को और उसको इसी वक्त छोड़ दो नहीं तो अनर्थ हो जाएगा ।
………..क्यों छोड़दें तू कौन होता है राजा को आदेश देने वाला । राजा गुस्से से बोला था।
……….हम कहते हैं उसको छोड़ दो नहीं तो अनर्थ हो जाएगा । लेकिन राजा उसकी बात पर हंसने लगा तो साधु बोला ……हे नीच राजा तूने एक साधु को बंदी बनाकर सभी साधुओं का अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देता हूं। कि तू इसी वक्त अंधा हो जाए । और उसके बाद राजा अंधा हो गया । और उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया और उसके बाद उसने अपने सेनिकों को आदेश दिया कि साधु को मार दिया जाए लेकिन उसी क्षण साधु गायब हो चुका था सेनिक कुछ नहीं कर सके आवाज आई ……….अरे मूर्ख राजा तू हमारी शक्ति को नहीं जानता है जल्दी ही आज के दो दिन बाद तेरा पतन हो जाएगा और जेल के अंदर तूने जितनी भी पराई स्त्री को बंदी बना कर रखा गया है वे भी मुक्त हो जाएंगी । और उसके दूसरे ही दिन जब पड़ोसी के राजा को यह पता चला कि दूसरा राज्य का राजा अंधा हो चुका है तो उसके बाद उसने उस राज्य के उपर आक्रमण कर दिया और राजा अंधा होने की वजह से कुछ भी नहीं कर सका । और राजा को बंदी बनाकर जेल मे डाल दिया गया । और जिनते भी लोग जेल के अंदर बंद थे उनको छोड़ दिया गया । और उसके बाद उस राज्य के राजा को मौत की सजा सुनाई गई ।
इस तरह से क्रूर राज का अंत हो गया । दोस्तों इस कहानी से यही सीख मिलती है कि हमें किसी का भी अपने अंह के चक्कर मे अपमान नहीं करना चाहिए । इस दुनिया के अंदर कोई भी छोटा नहीं होता है आप इस बात को समझ सकते हैं।
और यदि आप बुरे कर्म करते हैं तो उसका फल भी आपको बुरा मिलता है ।