agarwal ka gotra kya hai , agrawal ke 18 gotra ke naam दोस्तों जब हम अग्रवाल की बात करते हैं तो अग्रवाल भारत के कई क्षेत्रों के अंदर देखने को मिलते हैं।उत्तरी, मध्य और पश्चिमी भारत में मुख्य रूप से राजस्थान , हरियाणा , पंजाब , चंडीगढ़ , हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड राज्यों में पाया जाता है। , दिल्ली , छत्तीसगढ़ , गुजरात और उत्तर प्रदेश. अग्रवाल समुदाय के सदस्य अब पंजाब और सिंध के पाकिस्तानी प्रांतों में भी पाए जाते हैं
हालांकि जब भारत का विभाजन हुआ था तो यह भारत के अंदर ही आ गए थे ।अग्रवाल आमतौर पर बनिया समुदाय से आते हैं।वैस अग्रवाल भारत के अंदर एक प्रतिभाशाली और धनी समुदाय के रूप मे जाना जाता है। और बड़े बड़े पदों पर इनका दबदबा रहा है।
कहा जाता है कि भारत के अंदर जब इस्लामिक शासन आया था तो कुछ अग्रवाल बिकानेर भी चले गए थे । और कुछ मुस्लमान बन गए थे जोकि अभी भी अपने नाम के आगे अग्रवाल लगाते हैं।बाद में, मुगल शासन के दौरान, और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी प्रशासन के दौरान, कुछ अग्रवाल बिहार और कलकत्ता चले गए , जो मारवाड़ी के प्रमुख घटक बन गए
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agarwal ka gotra kya hai agrawal ke 18 gotra ke naam
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की अग्रवालों की उत्पति (1871) के अनुसार अग्रसेन समाज के महान पूर्वजों ने 17 बलिदान किये और 18 वें को अधूरा छोड़ दिया था।भारतेंदु ने यह भी उल्लेख किया है कि अग्रसेन की 17 रानियाँ और एक कनिष्ठ रानी थी । हालांकि इस प्रकार की कोई जानकारी नहीं मिलती है कि गोत्र का संबंध रानियों से किस प्रकार से रहा होगा ? इस प्रकार से यह भी माना जाता है कि गोयन गोत्र के एक लड़के और लड़की ने एक दूसरे से गलती से विवाह कर लिया जिसकी वजह से आधे गोत्र का निर्माण हुआ हालांकि इसके अंदर कितनी सच्चाई है पता नहीं ?
अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन ने साढ़े 17 गोत्रों को हटाकर एक नई सूची तैयार की है उसके अनुसार अब 18 गोत्र हैं।
- बंसल
- गोयल
- Kucchal
- रद्द करना
- बिंदल
- Dharan
- सिंघल
- Jindal
- मित्तल
- देखना
- टाइल
- गर्ग
- Bhandal
- नांगल
- मंगल
- पर
- Madhukul
- सहायता
महाराज अग्रसेन और उनके बारे मे जानकारी
दोस्तों आपको यह बतादें कि अग्रवाल अग्रसेन से जुड़े हुए हैं । तो आइए हम आपको महाराज अग्रसेन के बारे मे कुछ जानकारी प्रदान करते हैं। जिससे कि आपको अग्रवाल के इतिहास को समझने मे कुछ हद तक मदद मिल सकेगी।
महाराजा अग्रसेन व्यापारियों के शहर अग्रोहा के एक महान भारतीय राजा थे और उनका जन्म एक क्षेत्रिय कुल के अंदर हुआ था वे बड़े धार्मिक और योग पुरूष हुआ करते थे ।धार्मिक मान्यतानुसार इनका जन्म सूर्यवंशीय महाराजा वल्लभ सेन के अन्तिमकाल और कलियुग के प्रारम्भ में आज से 5143 वर्ष पूर्व हुआ था।
और यह माना जाता है कि वे बचपने मे ही अपने राज्य के अंदर सबसे लोकप्रिय राजाओं मे से एक थे । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और आप इस बात को समझ सकते हैं वे धार्मिक, शांति दूत, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले, करुणानिधि इसके अलावा वे स्नेह और प्रेम रखने वाले इंसान थे ।
ये बल्लभ गढ़ और आगरा के राजा बल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र, शूरसेन के बड़े भाई थे।महाराजा अग्रसेन भगवान राम के पुत्र कुश के 34 वीं पीढ़ी के हैं। और यह कहा जाता है कि 15 वर्ष की आयु के अंदर उन्होंने पांडवों के पक्ष मे युद्ध भी किया था। और भगवान कृष्णा ने कहा था कि अग्रसेन एक युग पुरूष होंगे।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र के वृत्तांत के अनुसार, महाराजा अग्रसेन एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। और उनका जो जन्म है वह द्धापर युग के अंतिम चरणों के अंदर हुआ था । और एक तरह से वे भगवान कृष्णा के समकालीन थे । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।
वह सूर्यवंशी राजा थे और उनके 18 पुत्र थे ।अग्रसेन ने राजा नागराज कुमुद की बेटी माधवी के स्वयंवर में भाग लिया और यह कहा जाता है कि राजा इंद्र ने इस स्वयंवर के अंदर भाग लिया था लेकिन माधवी ने राजा अग्रसेन को चुन लिया था। इसकी वजह से इंद्रदेव काफी अधिक क्रोधिक हो गए थे ।
प्रतापनगर के अंदर उसके बाद से ही बारिश होना बंद हो चुकी थी। जिसकी वजह से वहां के लोगों को काफी अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।
जहां अग्रसेन सूर्यवंशी थे वहीं माधवी नागवंश की कन्या थीं। इस तरह से यह जो विवाह था वह दो अलग अलग संस्कृतियों का मेल था । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और आप इस बात को समझ सकते हैं। इसके बारे म आपको पता होना चाहिए ।
इंद्रदेव से टकराव का होना
जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया था कि माधवी को इंद्र पसंद करते थे और वे उससे विवाह करना चाहते थे लेकिन माधवी ने राजा अग्रसेन को पसंद किया तो इससे इंद्र क्रोधित हो गए और उसके बाद वर्षा को बंद कर दिया इसकी वजह से अग्रसेन ने इंद्र के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया क्योंकि वे धर्म युद्ध लड़ रहे थे । इसकी वजह से उनका पलड़ा भारी था। और अंत मे नारद ने दोनों के बीच सुलह करवादी थी।
महाराज अग्रसेन का तपस्या करना
दोस्तों महाराज अग्रसेन ने अपने प्रजा-जनों की खुशहाली के लिए काशी नगरी जा शिवजी की घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से भगवान खुश हो गए और उनको आशीर्वाद दिया कि उनके यहां पर किसी चीज की कमी नहीं होगी और उनकी जो प्रजा है वह काफी अधिक खुशहाल हो जाएगी आप इस बात को सम झ सकते हैं।
अग्रोदक गणराज्य की स्थापना
महाराज अग्रसेन ने अपनी रानी माधवी के साथ सारे भारतवर्ष का भ्रमण किया । और कहा जाता है कि एक बार जब वे अपनी पत्नी के साथ घूम रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक शेरनी को जोकि एक बच्चे को जन्म दे रही थी तो जब बच्चा जन्म हुआ तो उसने देखा कि एक हाथी सामने है और बच्चे ने इसे अपनी मां के उपर संकट समझ कर तत्काल हाथी के उपर छलांग लगादी । और उसके बाद महाराज अग्रसेन ने यह समझा कि यह एक तरह से ईश्वरिय संकेत है और उसके बाद क्या था वहां पर कई ज्ञानी लोगों से परामर्श किया गया और एक नए राज्य की स्थापना की गई ।
इसका नाम अग्रेयगण या अग्रोदय आज यह हरियाणा के हिसार मे पड़ता है और इसको अग्रवाल समाज 5 वें धाम के रूप मे पूजते हैं।वर्तमान में अग्रोहा विकास ट्रस्ट ने बहुत सुंदर मन्दिर, धर्मशालाएं आदि बनाकर यहां आने वाले अग्रवाल समाज के लोगो के लिए सुविधायें जुटा दी है।
समाजवाद के अग्रदूत थे राजा अग्रसेन
दोस्तों आपको यह पता होना चाहिए कि राजा अग्रसेन एक महान राजा थे और वे धर्म के मार्ग पर चलने वाले राजा थे।असल मे इतिहास के अंदर इस तरह के राजा कुछ गिने चुके ही होते हैं।यहां पर एक नियम था कि इनके राज्य के अंदर यदि कोई बाहर से आकर आता था तो उनको सभी परिवार एक ईंट और एक सिक्का देते थे ताकि उसे अपने घर को बसाने मे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती थी। तो इस तरह से आप समझ सकते हैं। कि अग्रवाल राजा काफी प्रतिभाशाली थे और इनके राज्य के अंदर अलग अलग जगहों से व्यापारी व्यापार करने के लिए आते थे ।
राजा अग्रसेन के 18 यज्ञ
माता महालक्ष्मी की कृपा से महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य को 18 गणराज्यो में विभाजित कर एक विशाल राज्य का निर्माण किया था, जो इनके नाम पर अग्रेय गणराज्य या अग्रोदय कहलाया।
प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ॠषि बने, सबसे बड़े राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। इसी प्रकार दूसरा यज्ञ गोभिल ॠषि ने करवाया और द्वितीय गणाधिपति को गोयल गोत्र दिया। तीसरा यज्ञ गौतम ॠषि ने गोइन गोत्र धारण करवाया, चौथे में वत्स ॠषि ने बंसल गोत्र, पाँचवे में कौशिक ॠषि ने कंसल गोत्र, छठे शांडिल्य ॠषि ने सिंघल गोत्र, सातवे में मंगल ॠषि ने मंगल गोत्र, आठवें में जैमिन ने जिंदल गोत्र, नवें में तांड्य ॠषि ने तिंगल गोत्र, दसवें में और्व ॠषि ने ऐरन गोत्र, ग्यारवें में धौम्य ॠषि ने धारण गोत्र, बारहवें में मुदगल ॠषि ने मन्दल गोत्र, तेरहवें में वसिष्ठ ॠषि ने बिंदल गोत्र, चौदहवें में मैत्रेय ॠषि ने मित्तल गोत्र, पंद्रहवें कश्यप ॠषि ने कुच्छल गोत्र दिया। 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे।
और उसके बाद जब 18 वें यज्ञ के अंदर पशु बलि दी जा रही थी तो महाराज अग्रसेन ने देखा की पशु कांप रहा था तो उसने पशु बलि को देने से इंकार कर दिया और उन्होंने कहा कि अपने फायदे के लिए किसी पशु को मारना पाप माना जाता है लेकिन अठारवें यज्ञ में नगेन्द्र ॠषि ने पशु बलि को अनिवार्य माना पर ऐसा नहीं होने की वजह से यह गोत्र अधुरा रह गया । इस वजह से इसको अधूरे गोत्र के रूप मे जाना जाता है इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और आप इस बात को समझ सकते हैं।
आग्रेय गणराज्य का पतन
सरस्वती नदी के सूखने एवं बादशाह सिकंदर के आक्रमण के बाद अधिकांश वीर वीरगति को प्राप्त हो चुके थे और उसके बाद यह भारत के विभिन्न जगहों पर बस गए और बाद मे तराजू का काम करने लगे । लोग वाणिज्य व्यवसाय से जुड़े हुवे हैं और इनकी गणना विश्व के सफलतम उद्यमी समुदायों में होती है
अग्रसेन की बावली
नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के के अंदर पड़ती है और यह एक तरह से कुएं नुमा संरचना है और इसके अंदर 105 सीढ़ियां बनी हुई हैं।और इसका निर्माण महाराज अग्रसेन ने 14 वीं शताब्दी के अंदर करवाया था इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत भारत सरकार द्वारा संरक्षित हैं।
और आपको बतादें कि सन 2012 ई के अंदर इस बावड़ी के नाम एक डाक टिकट भी जारी किया गया था। और यह 60 मीटर लंबी और 15 मीटर उंची है।यह बस अब दिल्ली की काफी पुरानी बावड़ी है जोकि अभी गिनी चुनी है जोकि सही हालत के अंदर मौजूद है। बावड़ी की स्थापत्य शैली उत्तरकालीन तुग़लक़ तथा लोदी काल (13वी-16वी ईस्वी) से मेल खाती है
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