bhakti kitne prakar ki hoti hai इसके बारे मे हम बात करने वाले हैं।दोस्तों हिंदु धर्म के अंदर भक्ति का काफी अधिक महत्व होता है। और यहां पर भक्ति के 9 अलग अलग प्रकारों के बारे मे बताया गया है। और आपको पता ही है कि भक्त बनना काफी आसान होता है। मगर यदि आप योग तप आदि करते हैं , तो यह सब करना हर किसी के बस की बात नहीं होती है। योग तप की मदद से भी आप ईश्वर तक पहुंच सकते हैं। मगर सही मायेने के अंदर कलयुग के अंदर योग तप करना बहुत ही कठिन है। आज पहले की तरह कोई सर्दी गर्मी बरसात को नहीं झेल सकता है। तो भक्ति को कलयुग के अंदर सबसे अच्छा माना गया है।
जैसे कि भक्तियोग के अंदर इंसान ईश्वर तक पहुंचने के लिए भक्ति का सहारा लेता है। आपको बतादें कि भक्ति भावनात्मक होती है। यह आपकी भावनाओं की मदद से ही होती है। और इंसान की भावनाएं काफी अधिक तीव्र होती हैं। इसकी मदद से आप उपर तक जा सकते हैं । यहां पर हम बात करने वाले हैं , कि भक्ति कितने प्रकार की होती है ? इसके बारे मे ।
नवधा भक्ति का वर्णन हमारे शास्त्रों के अंदर आता है प्रहलाद ने प्रभु की नो प्रकार की भक्ति के बारे मे बताया था । इस संबंध मे यह कहा जाता है कि
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
Table of Contents
bhakti kitne prakar ki hoti hai श्रवण भक्ति
श्रवण भक्ति के अंदर क्या होता है , कि वह बस भगवान की कथा को पूरूी ऋदा से सुनता है। उसे भले ही और कुछ नहीं आता है , लेकिन वह भगवान की कथाओं के अंदर इतना अधिक रस लेता है , कि उसको भगवान से काफी अधिक प्रेम हो जाता है। मतलब भगवान की कथाओं से उसे जितना प्रेम होता है , उतना किसी और से नहीं होता है। इसको श्रवण भक्ति के नाम से जानते हैं।
महाभारत के अनुसार परीक्षित अर्जुन के पौत्र अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा जनमेजय के पिता थे। परीक्षित के बारे मे यह कहा जाता है कि उनको सुखदेवजी ने उनको भागवत कथा सुनाई थी । और उसके बाद उनका कल्याण हुआ था । इसलिए तो शास्त्रों के अंदर कहा गया है कि भगवान की लीलाओं का भगवान की कथाओं का जो पूरे प्रेम से सुनता है , उसके आधे पाप तो ऐसे ही कट जाते हैं। यदि आपको और कुछ नहीं आता है , तो आप भगवान की कथाओं को तो कम से कम सुन ही सकते हैं। इससे भी आपका कल्याण हो सकता है।
कीर्तन भक्ति
दोस्तों कीर्तन भी एक प्रकार की भक्ति होती है। सुखदेव जी को कीर्तन करने वाले भक्त के अंदर माना जाता है। हरे कृष्णा हरे रामा वाले इस्कान वालों को आपने देखा होगा । वे भगवान का कीर्तन करते रहते हैं। वे भगवान के नाम का गुणगान करते हैं। उनके भजनों को गाते हैं। यदि आप सिर्फ उम्र भर भगवान के भजन का गान करते हैं। और गान के अंदर आप इतने अधिक मगन हो जाते हैं , कि आप संसार को भूल जाते हैं , तो इसको कीर्तन ही कहा जाता है। यदि आपको भगवान के भजन का गान अच्छा लगता है , तो आप कीर्तन को अपना सकते हैं। यह भी एक अच्छी चीज है।
शुकदेव महाभारत काल के मुनि थे। वे वेदव्यास जी के पुत्र थे। वे बचपने में ही ज्ञान प्राप्ति के लिये वन में चले गये थे। इन्होने ही परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण की कथा सुनायी थी । सुखदेवजी के बारे मे यह कहा जाता है , कि वे कीतर्न करने मे विश्वास रखते थे । इसके अलावा यह भी कहा जाता है , कि वे काफी कम समय के अंदर ही ब्रह्रमलीन हो गए थे । शुकदेव मुनि के बारे मे यह कहा जाता है , कि एक बार भगवान शिव पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे । वहां पर माता पार्वती कथा सुनते हुए सो गईं तो वहां पर एक शुक ने हुंकार भरना शूरू कर दिया । इस बात का पता जब भगवान शिव को चला तो उन्होंने अपने बाण को सुख देव पर चला दिया । जिससे सुख देव कई लोकों के अंदर भागे फिरे । उसके बाद भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम में आया और सूक्ष्मरूप बनाकर उनकी पत्नी के मुख में घुस गया। और बारह वर्ष तक वे गर्भ से बाहर नहीं निकले । उसके बाद भगवान कृष्ण ने उनको आशीर्वाद दिया , तब वे बाहर निकले । और प्यास जी के पुत्र कहलाए ।
स्मरण
स्मरण भी भक्ति का एक प्रकार होता है। जैसे अक्सर आपने कई लोगों को राम राम करते हुए सुना होगा । राम राम यदि आप करते हैं , तो इससे भी आपका कल्याण हो सकता है। राम राम करने की आदत अपने यहां पर कई लोगों के अंदर होती है। प्रभु के नाम का स्मरण आप कभी भी कर सकते हैं। यहां तक की कुछ भी करते हुए नाम का स्मरण किया जा सकता है। और वैसे भी कलयुग के बारे मे तो यहां तक कहा जाता है , कि कलयुग के अंदर तो बस राम नाम का ही आधार होता है। राम नाम आधारा । खैर प्रहलाद का नाम तो आपने सुना ही होगा । प्रहलाद भगवान का स्मरण करता था । उनको कई बार उनके ही पिता ने मारने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं कर पाया । होलिका के साथ पिता ने उसको जलाने की कोशिश की लेकिन होलिका खुद जल गई । इसी तरह से एक लाल खंभे के बांधकर मारने की कोशिश की लेकिन ऐसा भी नहीं हो सका । तो राम नाम का जाप करना फायदेमंद होता है। जिन साधकों को मोक्ष चाहिए । उनको राम नाम का जाप करना चाहिए । नहीं तो आप राम नाम को लिख सकते हैं। एक ऐसा इंसान भी है , जो हर वक्त राम नाम बस कॉपी मे लिखता ही रहता है। यह उसकी आदत हो चुकी है।
अक्सर जब भी आप किसी अच्छे गुरू के पास जाते हैं , तो गुरू हमें यही बताता है , कि आपको राम नाम का जाप करना चाहिए । देवराह बाबा से किसी ने पूछा की कल्याण के लिए क्या करना चाहिए ? तो बाबा ने बताया कि राम नाम का जाप करना चाहिए । उसी से फायदा मिलेगा ।
पाद-सेवन
पाद-सेवन भी एक प्रकार की भक्ति होती है। जिसके अंदर भक्त खुद को भगवान के चरणों के अंदर अर्पण कर देता है। जोकि एक बहुत ही बड़ी बात होती है। नवधा भक्ति के चौथे रूप चरण-सेवा (पाद-सेवन) की आचार्या लक्ष्मीजी हैं । और वे आठों याम भगवान के चरणों के अंदर लीन रहती हैं।कहा जाता है कि भगवान जब जब अवतार लेते हैं , लक्ष्मी जी भी अवतरित होकर उनकी लीला के अंदर सहयोग देती है। जब भगवान दिव्य शरीर धारण करते हैं , तो माता लक्ष्मी भी दिव्य शरीर को धारण करती है। श्रीराम के साथ सीता रूप में और श्रीकृष्ण के साथ रुक्मिणी रूप में भी वह अवतरित होती है।
पाद सेवन के अंदर यही होता है। इसके अंदर क्या है कि भक्त भगवान के चरणों की सेवा करना चाहता है। उसे संसार से कोई मतलब नहीं होता है। वह चाहता है कि उसे बस भगवान के चरणों मे एक बार सेवा करने का मौका मिल जाए तो उसका भी बेड़ापार हो जाए । हालांकि भगवान के चरणों की सेवा करने का सौभाग्य आसानी से प्राप्त नहीं होता है। यह सब प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती है।
बहुत सारे ऐसे भक्त गण हुए हैं , जोकि भगवान के चरणों की सेवा मे सदा ही लीन रहते हैं। वे भगवान की सेवा करना अपना धर्म समझते हैं। उनको भले ही और कुछ नहीं आता हो । मगर उनको सेवा करनी जरूर आती है। आपको सभी चीजों के अंदर परांगत होने की जरूरत नहीं है। बस आपको किसी एक चीज के अंदर परांगत होने की जरूरत है।
अर्चन भक्ति
दोस्तों अर्चन भी एक प्रकार की भक्ति होती है। यह भी नवधा भक्ति के एक प्रकार के तौर पर देखी जाती है। अर्चन के अंदर शास्त्रों के अंदर वर्णित पवित्र सामग्री से भगवान की पूजा पाठ करना । अर्चन भक्ति करने वाला साधक सुबह और शाम बस भगवान की पूजा पाठ के अंदर ही लगा रहता है। वह खुद को इस तरह का बना लेता है , जोकि बस पूजा ही करता रहता है। उसे अन्य किसी कार्य से मतलब नहीं होता है। वह आता है , और भगवान को फल फुल आदि को आर्पित करता है , और पूरे भाव से अच्छी तरह से पूजा पाठ करता रहता है। अर्चन करने वाले कई लोग आपने देखें होंगे । वे कभी भी अपने पूजा पाठ को मिस नहीं करते हैं। रोजाना पूजा पाठ करने मे लगे रहते हैं। उनका उदेश्य कोई धन हाशिल करना नहीं होता है। बस उनको यह सब करने मे आनन्द आता है। तो करते रहते हैं।
हालांकि अर्चन भक्ति हो या फिर किसी और प्रकार की भक्ति हो । उसके अंदर भी आपको मन लगाना होता है। यदि आप भक्ति दिखावे के लिए कर रहे हैं , तो फिर यह काम नहीं करेगा । और इसको करने का कोई खास प्रकार से फायदा आपको नहीं मिलेगा ।
वंदन भक्ति
वंदन भक्ति भी एक प्रकार की भक्ति होती है। वंदन का मतलब प्रार्थना से होता है। आप भगवान से प्रार्थना करते हैं। शरीर के आठ अंगों (साष्टांग-नमस्कार) के साथ पृथ्वी को स्पर्श करते हुए, विश्वास और श्रद्धा के साथ, भगवान के एक रूप के सामने विनम्र साष्टांग प्रणाम । और सभी प्राणियों को ईश्वर का एक ही रूप जानकर उसके अंदर लीन हो जाना ही है।इसके अंदर भक्त हर वस्तु को भगवान का रूप मानता है , और वह उनके सामने इस तरह से झुकता है , जैसे कि वह भगवान के सामने झुक रहा है।कुत्ते, गधे, चांडाल और गाय आदि को भी इंसान को प्रणाम करना चाहिए । और कहना चाहिए कि सब कुछ मैं ही हूं । और मेरे अलावा कुछ भी नहीं है।
अक्रूर ने इस प्रकार की वंदना भक्ति का अभियास किया इस तरह की भक्ति के बारे मे महाभारत के अंदर बताया गया है।अक्रूर तुरंत रथ से नीचे कूद गए और बलराम और श्रीकृष्ण के चरणों में खंभे की तरह गिर पड़े। तो आप वंदन भक्ति के बारे मे अच्छी तरह से समझ ही चुके हैं।
दास्य भक्ति
दास्य भक्ति भी एक प्रकार की भक्ति होती है। जिसके अंदर भक्त क्या करता है , कि भगवान का दास बनना स्वीकार कर लेता है। हनुमानजी के बारे मे यह कहा जाता है , कि वे रामजी के दास थे । मतलब उन्होंने खुद को रामजी के दास के रूप मे माना और उसके बाद भक्ति की ।इसके अंदर भगवान को मन से अपना स्वामी माना जाता है , और खुद उनका दास बन जाते हैं।
इसके अंदर भक्त पूजा, अर्चना, किसी मंदिर की सेवा, ईश्वर का कीर्तन अथवा वंदन आदि करता है। वह सब इसी बात को मान कर की जाती है , कि वह खुद भगवान का तुच्छ सेवक ही है।असल मे दास्य भाव का होना बहुत ही जरूरी होता है। बिना दास्य भाव के हमारे अहं का नास नहीं होगा । और कल्याण के लिए अहं का नास होना काफी अधिक जरूरी होता है। ऋष्यमूक पर्वत पर भगवान राम और हनुमानजी की जब पहली भेंट हुई । और उसके बाद रामजी की सेवा के अंदर हनुमानजी ने अपने देह को अर्पण कर दिया । उसके बाद हनुमानजी को राम जी ने अपने ह्रदय के अंदर स्थान दिया ।वह अपने प्रभु के लिए अपने प्राणों को अर्पण करने के लिए तैयार थे ।राम जी की सेवा के आगे उनको मोक्ष की इच्छा भी तुच्छ लगती थी।
अशोकवाटिका के अंदर जब हनुमानजी को बंदी बनाकर लंका के राजा के सामने लाया गया , तो उन्होंने खुद कहा कि ‘मैं त्रिलोकी पति प्रभु श्रीरामचंद्र का दास और सेवक हुनमान हूं और रावण के पास श्रीराम का दूत बनकर आया हूं ।’
एक जगह पर हनुमानजी ने कहा था
न मे समा रावणकोट्योऽधमाः ।
रामस्य दासोऽहम् अपारविक्रमः ।।
कि करोड़ों रावण मिलकर भी मेरी बराबरी नहीं कर सकते । इसलिए नहीं कि मैं बजरंगबली हूं । वरन इसलिए कि मैं प्रभु राम का सेवक हूं ।
सख्य भक्ति क्या होती है
इसको हम सखा भक्ति के तौर पर भी देख सकते हैं। इस भक्ति के अंदर इंसान खुद को भगवान का सखा समझता है। और उसी आधार पर भक्ति करता है। हालांकि यह भक्ति मेरी नजर मे उतनी अधिक प्रभावशाली नहीं है। इसके अंदर भक्त भगवान से कुछ भी नहीं छिपाता है। वैसे छिपाने से काई फायदा नहीं होता है। क्योंकि भगवान को सब कुछ पता ही होता है। और भक्त भगवान मोक्ष की कामना करता है।
भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अर्जुन की भक्ति सख्यभक्ति का उदाहरण आप ले सकते हैं। और सुदामा की भक्ति भी सखा भक्ति के तौर पर आप देख सकते हैं।अर्जुन ने एक जगह पर कहा कि आपकी कृपा के बाद मुझे किसी की चिंता नहीं है। अब मैं सभी को जीत लूंगा । और सही भी है , जिसके साथ भगवान हो उसको कौन हरा सकता है।
सुदामा के बारे मे हम अच्छी तरह जानते हैं कि वे बहुत गरीब थे । वे कई बार भगवान से मिलते थे । लेकिन बिना कुछ मांगे ही लौट आते थे । यह उनकी सखा भक्ति ही है। बाद मे भगवान खुद उनकी मदद करते हैं।
आत्मनिवेदन भक्ति
हिन्दू, बौद्ध, जैन इत्यादि धर्मो के भक्ति मार्ग का एक प्रकार है। इसके अंदर व्यक्ति के जीवन के सामने आने वाली परेशानियां दुखों को दूर करने के लिए भक्त भगवान से प्रार्थना करता है। भक्त भगवान के साथ एकरुप हो जाता है । दैत्यराज बलि की भक्ति इसका एक उदाहरण है। भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद के पुत्र बलि का नाम तो आपने सुना ही होगा । उन्होंने अपनी शक्ति से स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया था । और उसके बाद सारे देवता भगवान विष्णू के पास पहुंचे थे । और उसके बाद भगवान विष्णू ने वामन अवतार लिया था । और बलि के अंदर अपने पिता की तरह दया और दान के संस्कार मौजूद थे । तब राजा बलि से भगवान ने तीन पैर भूमी मांगी । और इस तरह से भगवान ने अपने तीन पैर से सारी धरती को नाप लिया ।