बृहस्पतिवार व्रत कथा शुक्ल पक्ष में अनुराधा नक्षत्र और गुरुवार के दिन इस व्रत को करना प्रारभ कर देना सबसे उपयुक्त माना जाता है ।Bhraspativar (Guruvar) Vrat Katha सात व्रत करने चाहिए और वे व्रत नियमित होने चाहीए । इस व्रत को करने से पहल आप पुरी तरह से अपने आप को इस व्रत के प्रती आस्था रखकर व्रत करना चाहिए ।
बृहस्पति एक तपस्वी ऋषि थे धनुष बाणइनके हथीयार थे । और ताम्र रंग के इनके रथ थे । एक बार इन्होने देव इंद्र से युद्ध करकर उनसे गायो को छुपाया था ।
जब इंद्र से इन्होने युद्ध किया था तो ये युद्ध मे विजय हो गये थे जिसके कारण जो योद्धा थे वे इनकी पूजा करने लगे थे । यह लोगो की साहयता किया करते थे ।
और संकट मे देखकर अपने आप को रोक नही पाते थे उन्हे संकट से निकाले के लिये दोडे चले जाते थे । इन्हें गृहपुरोहित के नाम से जाना जाता है । वेदोत्तर साहित्य में बृहस्पति देवताओं के पुरोहित के रुप मे जाना जाता है ।
इनके पिता का नाम अंगिरा ऋषि था और माता का नाम सुरूपा था । इनकी दो पत्नीया थी जिनका नाम तारा व शुभा था । तारा के पुत्र का नाम बुध था । इनके दो भाई थे जिनाक नाम संवर्त और उतथ्य था ।
बृहस्पति ने धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और वास्तुशास्त्र पर ग्रंथ लिखे। बृहस्पति को देवताओं के गुरु के रुप मे जाने जाते है ।
ये पीले वस्त्र पहने हुए कमल पर विराजमान है और इनके चार हाथ है । ये अपने चारो हाथो मे दण्ड, रुद्राक्ष माला, पात्र और वरदमुद्रा धरण करे रहते दिखाई गये है । बृहस्पति का सोने महल था । इनके बारे मे ऐसा माना जाता है की इनके वाहन साने के बने हुए थे ।
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बृहस्पतिवार की कथा brihaspativar vrat katha
बहुत समय पहले की बात है एक राजा था जो भारत मै राज्य करता था ।वह राजा रोजाना दान किया करता था । राजा ब्राह्मणों की साहयता किया करता था ।
उनकी रानी चाहती थी की राजा जी न तो ब्राह्मणों की साहयता करे और न ही गरीबो की साहयता करे ।और राजा को साहयता न करने के लिये रोजाना कहती थी ।
राजा एक दिन वन मै शिकार करने के लिये गये थे और रानी महल मे अकेली थी तभी वहा पर भगवान बृहस्पतिदेव साधु का रुप लेकर आये बृहस्पतिदेव रानी से भिक्षा मागी तो रानी ने कहा के मै तो इस दान पून्य से तग आ गयी हू आप अब तो इतनी प्रथना करे की यह सारा धन समाप्त हो जाये तब जाकर कही मुझको आराम मिल सकेगा ।
साधु ने कहा की हे देवी आप तो बडी विचित्र हो आपको धन दोलत की कोई परवा नही है अगर तुम्हारे पास इतना ज्यादा धन दोलत हो गयी हे तो तुम दान करो गरीबो को भोजन कराओ कुआ खुदाओ ।
ब्राह्मणो को भोजन कराओ आदी कार्य है करने के लिये । और इतना ज्यादा धन है तो तुम पाठशाला बनवाओ । यज्ञ होम करवाओ कुवारी कन्या का विवाह करा दो उनको दान दे दो धन को शुभ कार्यों में खर्च करो।
साधु ने कहा की ऐसा करने से तुम्हारे जीवन मे मंगल होगा मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होगी । रानी पर इन सब बातो का काई प्रभाव नही पड रहा था । रानी बोली की महाराज मुझे ऐसे धन की कोई आवश्यकता नही है
जीसे सभालने मे मेरा जीवन चला जाये और उस धन को दान करने मे मेरा समय बित जाये । अब आप कुछ ऐसा करे की सारा धन समाप्त हो जाये और मै आराम से अपना जीवन व्यतीत कर सकु ।
ऐसा सुनकर साधु ने उत्तर दिया की अगर तुम ऐसा चाहती हो तो ऐसा करो की बृहस्पतिवार को घर को गोबर से लीपना और स्नान करते समय अपने बालो पर साबुन लगाकर धो लेना और राजा से कहना की वह भी अपने बालो को इसी दिन कटाना चालु कर दे दाढी भी बनाने लग जाये ।
ऐसा करने से बृहस्पतिवार मे ही तुम्हारा सारा धन नष्ट होने लग जायेगा । इतना कहकर साधु वहा से चला गया । साधु के सलाह मानकर रानी ने तीन बृहस्पतिवार तो बिता दिये थे पर बादमे उनको खना भी नसीब नही होने लगा था ।
और उनका सरा धन समाप्त हो गया था उनके रहने का महल भी बिक चुका था । तब राजा ने रानी से कहा की तुम यहा रहना मै दुसरे राज्य मै जाता हूं वहा जाकर कुछ काम कर पैसे कमाकर अपना गुजारा करेगे ।
तब राजा प्रदेश चला गया और वहा पर जगल मै जाकर रोजाना लकडी काट कर लाता और शहर मै जाकर बेच देता था । इस तरह से वहा पर राजा दिन रात प्रिश्रम किया करता था ।
और रानी व दासी दोनो को हि खाना कभी प्राप्त होता था और कभी ऐसे ही रहना पडता था । एक दिन रानी व दासी को लगातार सात दिनो तक भुखा रहा पड गया था ।
तब रानी दासी से कहती है की है दासी पास के नगर मे मेरी धनवान बहन रहती है । तुम उसके पास जाओ और उससे कुछ धन ले कर आ जाओ जीससे हमारा कुछ दिन तो पेट भर सकता है ।
दासी रानी की बहन के पास गयी तो उसने देखा की वह वृहस्पतिवार का व्रत कर रही है और कथा सुन रही है । दासी ने अपनी रानी का संदेश उसे दे दिया पर रानी की बहन ने कुछ नही कहा और नही धन दिया ।
दासी रानी के पास आयी और रानी से कहती है की रानी आपकी बहन ने तो हमे कुछ नही दिया और न ही आपके बारे मे जानने के बारे मे पुछा है और आपकी वह बहन है जो आपका ही साथ नही दे रही है ।
इस पर रानी ने कहा की है दासी इसमे उसका क्या दोष है यह तो प्रभु की ही लिला है यह जो चाहते है वही होगा और अच्छे बुरे का पता भी यही विपती मै पता चलता है ।
यह कहकर रानी ने अपने भाग्य को कोशा ।
उधर रानी की बहन सोचने लगी थी की मेरी बहन की दासी आयी थी पर मै तो कथा सुन रही थी इस कारण मै उसके बारे मै कुछ नही जान सकी थी । उसने सोचा की मै अपनी बहन के पास जाती हूं ।
वहा पर जाकर पता चल सकता है की वो किस लिये आयी थी । रानी की बहन रानी के पास आई और बोली मैं वृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी और वहा पर तुम्हारी दासी आयी थी पर मै कथा मे लिन थी इस कारण मै उससे वहा पर कुछ नही पुछ सकी थी क्योकी कथा सुनते समय उठना नही चाहिए ।
वह कहती है की बहन बोलो क्यो आई थी तुम्हारी दासी । तब रानी बोली की बहन मेरे पास खाने के लिये कुछ नही है मै तो सात दिनो से भुखी हूं ।
इतना कहकर वह रोने लग गई थी । इसी लिये मेने दासी को भेजकर तुमसे कुछ सेर लाने को कहा । यह सुनकर रानी की बहन बोली की देखो वृहस्पतिदेव भगवान सबकी मनोकामना पुरी करते है ।
तुम्हारे घर मे ही भोजन पडा होगा और तुमको पता भी नही होगा । रानी को इस बात पर विश्वास नही हुआ की ऐसा भी होगा पर अपनी बहन के कहने पर रानी ने अपनी दासी को कहा की दासी एक बार चलो देख लेते हे की कुछ है क्या ।
दासी ने अंदर जाकर देखा तो उसे एक घड़ा बेझर का भरा मील गया और उसे यह देखकर विश्वास नही हुआ । पहल वह हर एक बर्तन को देखा था पर उस समय यहा पर कुछ नही था ।
वह बाहर जाकर रानी को यह बात बताती है । दासी के कहने पर रानी को भी विश्वास नही हुआ । और वह सोचने लगी की जब भोजन न हो तो व्रत किया जाता है क्यो न बहन से व्रत के बारे मे पुछ लिया जाये वह इस बारे मै अपनी दसी को पुछती है और कहती है की हम भी व्रत कर लिया करगे दासी ने कहा की आप सही कह रही है ।
तब रानी ने अपनी बहन से वृहस्पतिवार व्रत के बारे पुछा तो उसकी बहन ने बताया की वृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान की पुजा केले के पेड की जडो मे करने पर भगवान गुरू खुश होकर सारा जीवन सुख के साथ जीने के लिये धन दोलत जेसी आवश्यकता की पुर्ती करते है।
और यह कहते हुए रानी की बहन ने व्रत के बारे बताया और वहा से चली गई । रानी और दासी दोनो ने यह व्रत करने के बारे मे पुरी तरह से तयार हो गयी और जब सात दिन के बाद वृहस्पतिवार आया तो वे सही विधी से भगवान विष्णु की पूजा करती है और केले के पेड की जड मे दाल आदी समाग्री को चोढ देती है ।
वे पूजा तो कर ली पर खाने के लिये पिला भोजन नही था । इस कारण रानी और दासी बडी दुखी हो गई । उन्होने वृहस्पतिदेव भगवान का व्रत किया था इस कारण वृहस्पतिदेव बहुत ही प्रसन्न थे । और वे उन्हे साधरण रुप मे पीला भेजन लाकर दासी को दे दिया और कहा की यह भोजन तुम्हारे लिये और तुम्हारी रानी के लिये है ।
वे इतना कहकर वहा से चले गये । दासी भोजन पाकर बहुत ही खुश हो गई ओर जल्दी से रानी के पास जाकर रानी से बोली की रानी चलो भोजन कर लेते है इस पर रानी ने कहा की जाओ तुम ही कर लो क्योकी रानी को मालुम नही था की भोजन है हमारे पास ।
तब दासी ने कहा की एक आदमी आया था ।वह दो थाल मे भोजन हमारे लिये देकर गया है रानी ये सुनकर बहुत ही खुश हो गई और दोनो ही भगवान गुरु को प्रणाम करकर भोजन करना प्रारभ कर दिया । उसके बाद रानी और दासी दोनो ही हर सपताह को वृहस्पतिवार व्रत करती गई ।
और ऐसे करते करते उनके पास धन मे बढोतरी हाने लगी थी । पर धन हो जाने पर रानी पहले की तरह आलयस्य करने लग यई थी इस कारण दासी ने रानी से कहा की रानी जी आपने पहले भी धन को सई तरह से रखा नही था। और अब कितने कष्टो के बाद हमारे पास धन वापस आ गया है तो तुम इसे मेलने के लिये आलस्य कर रही हो । बडी ही मुसीबत के बाद धन आया है अब तुम दान करो प्याउ बनाओ भुखे को खना खीलाना चाहिए ।
और यज्ञ कराओ दासी की यह सब बातो को सुनकर रानी ने भुखे को भाजन कराने लगी । यज्ञ कराने लगी इसी तरह से वह अन्य कार्य कराने लगी और उसकी छवी सभी और फेलने लग गई ।
ऐसे करते करते उनका समय बितता गया और एक दिन रानी और दासी सोचने लगी की राजा वहा पर किस दशा मे होगे कितने दिन बित गये है उनकी कोई खबर नही है तब दासी ने रानी से कहा की बृहस्पति देव से प्राथना करे तो राजा जल्दी ही वापस आ जायेगे ।
रानी ने बृहस्पति देव से प्राथना की और रात को बृहस्पति देव ने राजा के स्वपन में कहा की राजा तुम यहा पर क्या कर रहे हो वहा पर तुम्हारी पत्नी तुम्हे याद कर रही है ।
राजा प्रात: काल उठा और जंगल चला गया वहा पर जाते समये सोचा की ऐसा क्या हो गया है की उसे राजपाठ छोडकर यहा पर इस तरह से भटकना पड रहा है ।
मुझे जगल मे आकर लकडहारा बनना पड गया है अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा और वह उदास होकर वही पर बैठ गया ।
इतने मे वहा पर वृहस्पतिदेव साधु के वेष में आकर बोले, हे लकड़हारे तुम कोन हो और यहा पर किस के बारे सोच रहे हो मुझे बताओ मै तुम्हार साहयता कर दुगा ।यह सुन राजा के नेत्रों में जल भर आया राजा ने अपनी कहानी उस साधु को सुनाई ।
साधू ने राजा से कहा की तुम्हारी पत्नी ने वृहस्पतिदेव के नियमो को तोडकर अपराध किया है जिसकी सजा उसे और तुम्हे दोनो को मिल गई है । अब तुम चिंतन मत करो वृहस्पतिदेव अब तुम्हे पहले से ज्यादा धन देगे ।
अब तो तुम्हारी पत्नी वृहस्पतिदेव का व्रत करने लग गई है अब तुम भी वृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले के वृक्ष की जड़ में पूजन करना सब कुछ जल्दी ही ठिक हो जायेगा ।
इस पर राजा ने कहा की आप कह तो सच रहे है पर मेरे पास तो इतने भी पैसे नही बचते हे की मे कुछ ज्यादा अच्छा खा सकु और फिर मुझे कोनसी कहानी सुननी है यह मै नही जानता हूं ।
कल रात्री को मेने स्वपन मे मेरी पत्नी को देखा था और मै उसका हाल तक नही जान सकता हूं । साधु ने कहा की वृहस्पतिवार के दिन तुम रोज लकडिया लेकर जाना और तुम्हें रोजाना से दुगना तुम्हे पैसे मिल जायेगे ।जिससे इस विधी का सामान भी आ जायेगा और पेट भर के भोजन भी कर सकोगे । और रही कहानी की बात तो वह इस प्रकार है ।
बृहस्पतिवार व्रत कथा Bhraspativar कथा
एक ब्राह्मण था उसे कोई भी संतान नही थी वह ब्राह्मण रोजाना प्रातकाल जल्दी उठकर पूजा करता था ।पर उसकी पत्नी न तो पूजा करती थी और नही स्वेरे जल्दी उठती थी ।
भगवान की कृपा से ब्राहमण के घर एक कन्या का जन्म हुआ था वह बडी होने लगी और रोजाना ही जल्दी उठकर भगवान विष्णु की पूजा करती और दिन रात भगवान का जाप करती थी ।
वह कन्या वृहस्पतिवार का व्रत करने मे रुची लेने लग गयी थी वह आपनी मुठ्ठी मे कुछ जौ के दाने ले जाया करती थी । वह उस जौ के दाने को मार्ग मे डालकर विधलय जाती थी ।
वह वापस आकर उन जो को चुग कर एकत्रित कर लेती और वे जौ के दाने देखते देखते ही सोने के बन जाते थे । एक दिन उसकी मा ने देख लिया की उसकी पुत्री के पास सोने जौ है और वह उनको सूप मे धो कर साफ कर रही थी ।
उसकी मा ने कहा की बेटी सोने के जो को साफ करने के लिये सोने का सुप भी तो चाहिए है। दुसरे दिन वह गुरुवार का व्रत रख लेती है और भगवान से प्राथना करती है की है देव आप मुझे कल से सोने का सूप देना जिससे मै उन जौ को साफ कर सकु ।
अगले दिन वह बालिका विधालय गयी और रास्ते मे हमेसा की तरह जो को बिछा दिया और वह वापस आते समय उन जौ को चुगने लगी तो उसे वहा पर सौने का सुप भी मिल गया तो वह बालिका बहुत खुश हो गई ।
वह और ज्यादा मन लगाकर भगवान वृहस्पतिदेव का व्रत करने लग गई । जब उसकी मा ने देखा की उसके पास सुप आ गया है तो वह दग रह गई ।
एक दिन राजा के पुत्र राजकुमार ने उस बालिका को जौ को साफ करते हुए देखा तो वह उसके रुप और काम से उसके मोह मे पड गया ।
राजकुमार ने महल मे आकर कुछ नही खाया और उदास होकर बेठ गया था । राजा को इसकी सुचना मिली की उसका पुत्र कुछ नही खा रहा है तो राजा उपने पुत्र के पास आया और बोला की पुत्र तुम खाना क्यो नही खा रहे हो हमे बताओ । तुम चाहते हो वेसा ही होगा ।
अपनी पिता की बातो को सुनकर राजकुमार बोला की पिताजी हमे किसी ने कुछ नही कहा, हमे किसी बात से दुख नही है बल्की हमे एक कन्या पसन्द आ गई है और हम उनसे विवाह करना चाहते है ।
राजा के पुत्र ने उस कन्या के बारे मे सब कुछ बताया ।कुछ दिनो के बाद राजा ने उन दोनो का विवाह करा दिया था । कन्या के विवाह के कुछ दिनो के बाद ब्राह्मण के घर मे फिर से गरीबी आ गई ।
ब्राहमण अपनी पुत्री से मिलने के लिये राज द्रबार गये ।वे अपनी पुत्री से मिले उनकी ऐसी दसा को देखकर उनकी पुत्री बहुत दुखी हो गयी । पुत्री ने कहा की पिताजी मा केसी है और अन्त मे अपने पिता को धन देकर वहा से विदा कर दिया ।
पर धन कितने दिन तक रुक सकता है कुछ दिनो के बात वही हाल हो गया जिससे ब्राहमण ने आपनी पत्नी को साथ लेकर अपनी पुत्री के पास गया । उसकी पुत्री ने अपनी माता से कहा की माता मै तुम्हे गरीबी दुर करने का उपाय बाताती हूं ।
पुत्री ने कह की मा तुम ऐसा करना की सुबह जल्दी उठा करो और स्नान करकर भगवान विष्णु की पूजा करना ।और बृहस्पतिवार का व्रत करो जीससे गरीबी दूर हो जायेगी ।
ब्राह्मणी ने अपनी पुत्री की बात नही मानी वह सुबह जल्दी तो उठती पर अपनी पुत्री की पुत्री को झुटा खने के लिये ।ऐसा करते समय एक बार उसकी पुत्री ने देख लिया तो वह अपनी माता पर गुस्सा करने लगी थी ।
पुत्री ने सोचा की इसे सही रास्ते पर लाना ही होगा इस कारण वह अपनी माँ को एक कोठरी में बंद कर दिया था ।और उसे सुबह जल्दी ही बाहर निकालकर पूजा पाठ कराने लग गई दो तिन दिनो मे उसकी अकल ठिकाने पर आ गई और वह रोजाना ही दो बार पूजा करने लग गई ।
व्रत करने लग गई । इस तरह से वह मृत्यु के बाद मे स्वर्ग मे गई और जितने दिनो धरती पर रही सुख शांति के साथ रही ।
राजा को इस तरह की कहानी साधु ने बताई । साधु कहानी कहने के बाद वहा से चला गया और राजा ने यह तय किया की मै वृहस्पतिवार का व्रत करुगा । कुछ दिन बित जाने के बाद वृहस्पतिवार के दिन राजा ने व्रत तो रखा था ही राजा ने उस दिन साधु के कहे अनुसार लकडिया काट कर शहर बेचने के लिये चला गया ।
राजा ने शहर जाकर उन लकडियो को बेचा तो उसे ओर दिन की तुलना मे दूगना धन प्राप्त हो गया । तब राजा ने उस धन से दाल चने केले आदी खरीद कर ले आया । वह पूरी श्रदा के साथ वृहस्पतिवार का व्रत किया पर जब वह अगला व्रत नही कर सका तो भगवान नाराज हो गए ।
उस दिन उसी नगर के राजा ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया ।और अपने पूरे राज्य मे घोषणा करवा दि की आज के दिन किसी के घर के अन्दर चुल्हा नही जल सकेगा आज के दिन सभी महल आकर भोजन करेगे और जिस किसी ने हमारी बात नही मानी तो उसे फासी दे दि जायेगी ।
इस कारण पूरे गाव के लोग राजा के महल मे चले गये थे । लकड़हारा वहा समय पर नही पूंछ सका था वह कुछ समय के बाद वहा पर पहूंचा तो राजा ने उस लकड़हारा को भोजन कराना सुरु किया । रानी वहा पर आयी तो रानी ने देखा की उसका हार जहा पर था वहा से गायब हो गया हे ।
रानी ने लकड़हारा को देखकर यह सोचा की इसी ने हि हार को चुरा लिया है । लकडहार को रानी ने जेल के अंदर बन्द कर दिया । लकड़हारा जैल के अंदर बैठे बैठे सोचने लग गया की यह क्या हो रहा है मेने तो कुछ किया भी नही फिर भी मुझे यहा पर बन्द कर दिया ।
कुछ समय के बाद वहा पर वृहस्पति देव साधु के रुप मे आये । वह उससे बोले की अरे मुर्ख यह तुने क्या कर दिया है वृहस्पति देवता की कथा करना भूल गया है यह इसी करण यह हुआ है क्योकी तूने भूल कर दि तो कष्ट तो उठाने ही पडेगे ही ।
साधु ने कहा की अब तु ऐसा करना की जैल के अंदर तुझे कुछ पैसे प्राप्त हो जायेगे तू उन से ही आगे कथा सुनकर पूजा करना । अगले ही वृहस्पतिवार के दिन लकड़हारा को चार पैसे प्राप्त हुए वह राजा ने जैल के अंदर ही पूजा का समान मगाया और अपनी पूजा पूरी की वह वृहस्पतिवार का व्रत रखा ।
जब उसने वृहस्पतिवार का व्रत रखा तो भगवान खुश ने होकर उस नगर के राजा के रात मै स्वपन मे आकर कहा की राजन तुमसे बहुत ही बडी भूल हो गई है । रानी का हार उसी जगह पर है जहा उसने रखा था उसी खूंटी पर लटका रहा है । भगवान ने कहा वह लकडहारा नही है वह एक राजा है तुम उसे छोड देना ।
जब राजा ने शुभह उठकर देखा की रानी का हार खूंटी पर लटका हुआ है तो राजा ने तूरन्त ही उस लकडहार को बुलाया और उसे माफी मागते हुए कहा की आप स्नान कर लो और अपने नगर को लोट चलो ।
लकडहार ने स्नान करकर राजा ने उसे वस्त्र दिये थे वह पहन कर वह अपने नगर की ओर चला लगा तो उसने देखा की वहा पर अनेक बाग मंदिर विधालय नदीयो का पानी धरमसाला आदी देख कर राजा को विश्वास नही हुए की याहा पर यह सब हो गया है ।
तो राजा ने गाव के कुछ लोगो से पूछा तो उन्होने कहा की यह सब रानी व उनकी दासी के है यह सुनकर राजा को घुस्सा आया राजा ने सोचा की रानी के पास पैसे कहा से आ गया ।
राजा के आने की खबर रानी के पास पहूंची तो रानी ने अपनी दासी से कहा की दासी तुम ऐसा करो की बाहर खडी हो जाओ । राजा हमे ऐसा देख कर न पहचान सके तो वे वापस चले जायेगे ।
जब राजा आये तो दासी ने उन्हे अंदर महल मे लेकर आ गई । राजा की आखे लाल थी वह रानी से पुछने लगे की यह धन तुम्हारे पास वापस केसे आ गया है जब मै गया था तो हमारे पास कुछ भी नही था । रानी ने कहा की राजा जी मेने और दासी दोनो ने बृहस्पति देव की पूजा की और उनका व्रत किया था ।
ऐसे कहते कहते रानी ने राजा को पूरी बातो को बताया रानी की बातो को सुनकर राजा ने सोचा की भगवान बृहस्पति के कारण वापस सारा धन आया है तो अब से मै रोजाना ही बृहस्पति देव की कथा सुनगा ।
राजा हमेसा ही चने व दाले को अपने साथ रखने लग गया था और दिन मै तिन बार कथा सुनने लगा । एक बार राजा को अपनी बहन की याद आई तो वह अपने घोडे पर सवार होकर चल पडा । रास्ते मे जाते जाते उसकी कथा का समय हो गया राजा को कुछ लोग मरे हुऐ को ले जाते हुए दिखे तो वह सोचा की अब इन्हे ही कथा सुनने के लिये कहना पडेगा ।
राजा ने उन को कहा की भाई रुको तुम मेरी वृहस्पतिवार की कथा सुन लो यह सुनकर कुछ लोग बोले लो केसा जमाना आ गया है हमारा आदमी मरा गया है और इनको अपनी कथा की पडी है । पर कुछ लोगो ने कहा की चलो भाई हम तुम्हारी कथा सुन लेगे कहो ।
राजा ने दाल को निकाला और अपनी कथा को कहना सुरु कर दिया उसकी कथा को सुनकर मुर्दा भी जीवित हो गया था । राजा कथा पुरी कर कर वहा से रवाना हो गया था उसे रात होने लगी थी पर उसकी बहन का नगर नही आया था । राजा ने देखा की उसकी कथा का समय हो गया है पर कहे किसे सुनने वाला कोई भी नही है ।
कुछ दूर और गया तो उसे एक किसान मिला जो खेत मे हल चलाकर खेत को जोत रहा था । राजा ने कहा की भाई क्या तुम मेरी कथा सुनोगे तो वह किसान बोला की तेरी कथा सुनने को मेरे पास समय नही है मै काम कर रहा हु । अगर तेरी कथा सुनने बेठ गया तो यह खेत कोन जोत देगा ।
यह सुनकर राजा वहा से चलने लगा इतने मे वह बैल जो खेत को जोत रहा था वह गिर गया और उस आदमी के पेट मे बहूत जोरका दर्द होने लगा । उस आदमी की माता वहा पर आयी तो देखा की उसका पुत्र जमीन पर लेटा हुआ है ।
तो वह बुडिया अपे पुत्र से कहती है की पुत्र क्या हुआ पुत्र ने सारी बात अपनी माता को कही तो माता ने सोचा की उस घुडसवार की कहानी नही सुनने के कारण यह सब हुआ है ।वह उस घुडसवार के पास गई और बोली की मै तुम्हारी कथा सुनूगी पर मेरे खेते मै चलकर सुनूगी ।
राजा ने उस बुडिया की बात को मान कर उसके खेत मे जाकर कथा कही जिससे वह बैल व उसका पुत्र पूरी तरह से ठिक हो गया था । राजा अपनी बहन के पास पहूंचा तो बहन ने राजा की खुब सेवा की । राजा ने रात को आराम किया और जब वह शुभह उठा तो राजा ने देखा की सभी लोग भोजन कर रहे है ।
राजा ने अपनी बहन को कहा की बहन क्या कोई ऐसा नही बचा है जिसने अभी तक भोजन नही किया है । राजा की बहन कहती है की यहा पर कोई ऐसा मिल पाना बहुत ही मुसकील है फिर भी मै गाव मे देख कर आती हूं की कोई ऐसा है या नही । राजा की बहन ने पुरे गाव मे देखा पर वहा पर उसे ऐसा कोई नही मिल सका जिसने अभी तक भोजन नही किया है ।
फिर वह एक कुम्हार के घर पर गई उसे मालुम पडा की उसका लडका बिमार होने के कारण उसके घर मे किसी ने भी भोजन नही किया है । राजा की बहन राजा को उसके घर ले कर गई ।राजा ने उस कुम्हार से कहा की है क्या तुम मेरी बृहस्तीवार की कथा सुन लोगे । वह कुम्हार कथा सुनने के लिये तयार हो गया ।
राजा ने अपनी कथा सुनानी शुरु कर दी और जेसे ही कथा पुरी होई उस कुम्हार का लडका बिलकुल ठिक हो गया था । बहुत समय बित गया और एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा की बहन अब मुझे आज्ञा दो मे अपने नगर जाना चाहती हूं ।
राजा ने अपनी बहन से साथ जाने के लिये कहा तो बहन ने अपनी सास से पुछा की मा जी क्या अगर आपकी आज्ञा हो तो मे अपने भाई के साथ जाना चाहती हू तब सास ने कहा की चली जा पर तुम अपने पुत्र को साथ नही ले जा सकती हो । तेरे भाही के कोई भी पुत्र नही होता है ।
राजा की बहन ने कहा की भाई मै तो चलने के लिये तयार हूं पर कोई पुत्र हमारे साथ नही आयेगा । यह सुनकर राजा के मन को ठेस पहूची राजा ने कहा की बहन जब तुम्हारे पुत्र साथ नही जा रहे है तो तुम जाकर क्या करोगी ।
यह कहकर राजा अकेले ही अपने नगर के लिये रवाना हो गये । राजा नगर जाकर अपनी पत्नी को सारी बातो को विस्तार से बताया और कहा की हमारे कोई संतान न होने के कारण कोई हमारे घर नही आना चाहता है ।
राजा ऐसा कहकर दुखी हो गया तब रानी ने कहा की वृहस्पतिदेव ने हमे यह सब दे दिया है तो पुत्र भी अवश्य दे देगे । राजा को रात मे स्वप्न आया की उसकी पत्नी गर्भवती है ।और यह सब बृहस्तीदेव की ही कृपा है ।
राजा सुबह उठकर अपनी पत्नी को इस स्वप्न के बारे मे बताता है । नो माह के बाद रानी के पेट से पुत्र का जन्म हुआ । तब राजा ने अपनी पत्नी से कहा की तुम जब मैरी बहन आये तब उसे कुछ मत कहना रानी ने कहा की है महाराज जैसा आप कहे वेसा ही होगा ।
जब रानी की बहन बधाई देने के लिये आयी तो वह कहती है की भाई अगर मेने उस दिन आपको कुछ नही कहती तो आपके यहा पर इस पुत्र का जन्म नही होता ।
राजा कि बहन ने कहा की भाई बृहस्पतिदेव सबकी कामनाएं पुरी करते है जैसे आपने अपने पुत्र न होने के बारे मै कहा की बृहस्पतिदेव हमे पुत्र भी दे देगे और आज आपके पुत्र हो गया है ।
बृहस्पतिदेव कथा सुनने वालो की व कथा कहने वाला की दोनो की मनोकामनाएं पुरी कते है बृहस्पतिदेव महान है ।और इस तरह से राजा को सारे सुख प्राप्त हुए अब राजा रानी अपना जीवन खुशी के साथ बिताने लगे ।
गुरूवार व्रत करने की विधी
- सबसे पहल प्रात: जल्दी उठकर अपने घर को साफ कर ले ।
- अपने पूजा घर को अच्छी तरह से साफ करकर जल से धो दे तो उपयुक्त रहता है ।
- बादमे स्वयं स्नान कर कर पीले वस्त्र धारण कर लेवे ।
- इस व्रत को करने के लिये दाल केले गुड अपने पूजा घर मे ले जाकर रख दे ।
- इस व्रत मे केले के पेड की भी पुजा कर सकतें है ।
- भगवान को ध्यान करना चाहीए और पूजा करने के बाद यह मंत्र दोहराए धर्मशास्तार्थतत्वज्ञ ज्ञानविज्ञानपारग। विविधार्तिहराचिन्त्य देवाचार्य नमोऽस्तु ते॥
- इस के बाद आरती सुने और भजन सुनने चाहिए ।
बृहस्पतिवार व्रत से लाभ
बृहस्पतिवार व्रत करने से पुत्र प्राप्ति होती है । घर मे सुख सांति छाई रहती है । धन की प्राप्ति के लिये यह व्रत किया जा है । बृहस्पतिवार का व्रत करने से सभी ओर शांति छाई हुई रही है ।इस व्रत की कथा सुनने वाले को भी लाभ प्राप्त होता है । कई लोग मन को सांत करने के लिये भी इस व्रत को करते है।
बृहस्पतिवार के दिन पूजा करने मात्र भगवान प्रसन्न हो जाते है । इस व्रत को करते समय नियमो का विषेश ध्यान रखा जाता है वरना भगवान को क्रोध आ सकता है ।
बृहस्पतिदेव आरती
जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊ कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगत पिता जगदीश्वर तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।
तन, मन, धन अर्पणकर जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।
दीन दयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारी।
विषय विकार मिटाओ संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो सो निश्चय फल पावे ।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।