बुधवार व्रत कथा के बारे मे यहा पर हम जानेगे और इनके नियम के बारे मे बात करेगे
बुधवार के दिन श्री गणेश जी की पूजा की जाती है जो माता पार्वती व भगवान शिव का पुत्र है । असुरी शक्ति को खत्म करने के लिए गणेश जी ने विकट, महोदर, विघ्नेश्वर जैसे आठ अलग-अलग नाम के रुप धरण किया था ।
गणेश जी का हर रुप दोष को दूर करने के लिये माना जाता है। ये दोष है क्रोध, मद, लोभ, ईर्ष्या, मोह, अहंकार और अज्ञान ।गणेश जी ज्योतिष्शास्त्र के अनुसार केतु के रूप में जाने जाते है गणेश जी का वाहन डिंक नामक मूषक को माना जाता है । इनका सिर हाथी का है ।दो लम्बे कान है चार भुजाएं है ।
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बुधवार व्रत कथा Budhwar vrat katha
प्राचीन समय की बात है समतापुर नामक एक नगर था जिसमे मधुसूदन नाम का एक आदमी रहता था । वह बहुत ही धनवान था । उसके पास वाले गाव बलरामपुर नगर मे एक सुंदर और गुणवंती लड़की संगीता रहा करती थी ।
जिसका विवाह मधुसूदन से हो गया था । वहुत समय के बाद एक दिन मधुसूदन अपनी पत्नी को लेने के लिये बुधवार के दिन बलरामपुर गया था ।
मधुसूदन ने अपने सास ससुर से संगीता को विदा करने के लिये कहा पर संगीता के माता पिता ने कहा की बेटे आज के दिन किसी शुभ कार्य को नही करना चाहिए । इस लिए हम आज के दिन संगीता को विदा नही कर सकते तुम कल चले जाना ।
लेकीन मधुसूदन इन बातो पर विश्वास नही करता था । वह कहने लगा की ऐसे शुभ अशुभ कूछ नही होते है आप इसे भेज दो । तब संगीता के माता पिता उसे मधुसूदन के साथ विदा कर दिया था ।
दोनो वहा से रवाना होकर एक बैलगाडी पर बैठ कर जाने लगे । पर कुछ दूर जाने के बाद बैलगाडी का एक पहिआ निकलकरदूर जा गिरा दोनो जमीन पर गीर पडे पर किसी को चोट नही लगी । फिर दो पैदल ही अपने घर की ओर जाने लगे ।
कुछ दूरी पर जाने के बाद संगीता कहती है की है पति देव मुझे प्यास लगी है । तब मधुसूदन उसे एक पैड के निचे बैठा कर जल लाने के लिये चला गया । कुछ समय के बाद मधुसूदन अपनी पत्नी के लिये जल लाया तो वह थक कर हार गया था ।
वह संगीता के पास जैसे ही पहुंचा तो उसने देख की उसकी शक्ल का कोई और ही व्यक्ति उसके पास बैठा था जिसे देखकर वह हैरान हो गया । जब संगीता ने देखा की दोनो की शक्ल एक जैसी ही है तो वह सोचने लगी इनमे से मेरा पति कोनसा है ।
मधुसूदन ने उस व्यक्ति से कहा की तुम कोन हो जो मेरी पत्नी के पास बैठे हो । तब वह व्यक्ति मधुसूदन से कहता है की तुम कोन हो जो मेरे बारे मे ऐसा कह रहे हो यह तो मेरी ही पत्नी संगीता है ।
मधुसूदन ने कहा की यह क्या कह रहे हो तुम यह मेरी पत्नी ही है मेने इसे इसके मायके से विदा करकर लाया हूं । रास्ते मै इसे प्यास लग जाने के कारण मै पानी लाने चला गया था ।
लगता है की तूम अवश्य ही चौर हो । इस पर उस व्यक्ति ने कहा की भई झुठ तो तुम बोल रहें हो । संगीता के लिये जल तो मै लाने के लिये गया था । और अपनी पत्नी को जल लाकर पीला भी दिया था ।
अगर तुम यहा से नही गये तो मै तुम्हे किसी को बुलाकर पकडा दुगा । इस तरह से करते करते दोनो आपस मै लडते जा रहे थे उनकी आवाज सुनकर वहा पर बहुत सारे लोग एकत्रित हो गये पर वे भिड को भी देखकर नही माने कुछ समय बित गया वहा के नगर के कुछ सेनिक वहा पर आकर उन दोनो को पकड कर अपने राजा के पास ले गये ।
राजा इनकी समसया को नही सुलझा सका और संगीता भी वास्तविक पति को नही समझ सकी । राजा ने कहा जब तक की इन दानो मै से एक नही कह देता की मै इसका पति नही हूं ।इन दोनो को ही कारागार मे बंद कर दो ।
अपने राजा का आदेश मानकर उनके सेनिक उन दोनो को लेजाने वाले ही थे की इतने मे आसमान से आवाज आई की मधुसूदन तुने अपने सासा ससुर की बात नही मानी और अपनी पत्नी को बुधवार के दिन ले जाने की जीद करकर ले आये हो इस कारण भगवान गणेश के प्रकोप के कारण यह हो रहा है ।
मधुसूदन ने भगवान बुधदेव से प्राथना की है देव आप मुझे क्षमा कर दे मुझसे बहुत बढी भूल हो गयी है । आगे से ऐसा कभी भी नही होगा और मै आपका व्रत भी करना शुरु कर दूंगा ।
भगवान गणेश ने मधुसूदन को क्षमा कर दिया । इतने मे वहा से दुसरा आदमी गायब हो गया । राजा ने उन्हे विदा कर दिया ।कुछ समय पैदल चलने के बाद उन्हें वही बैलगाडी मिली जिसका पहिआ टुट गया था ।
और अब उस बैलगाडी का पहिआ सही सलामत जुडा हुआ था । दोनो बैठ कर अपने नगर को पहुंच गये दोनो ही अब से बुधवार का व्रत करने लग गये थे और दोनो पति पत्नी खुशी के साथ पहले की तरह से रहने लग गए ।
इस तरह से वुधवार के व्रत करने से सभी के घर मे खुशी छाई रहती है और सभी मंगल ही मंगल होता है ।
बुधवार व्रत करने विधी
- बुधवार के व्रत करने के दिन शुभह जल्दी उठकर स्नान कर ले ।
- स्नान करने से पहले अपने घर की अच्छी तरह से साफ सफाई कर लेवे ।
- स्नान कर कर भगवान गणेश जी के मंदिर या कोई उपयुक्त स्थान जहा आप पुजा करते है उस स्थान की भी साफ सफाई कर लेवे ।
- एक चौकी लेकर लाल कपडा बिछा देवे और उस पर श्री गणेश जी की प्रतिमा स्थापीत कर देवे ।
- कुम कुम अगरबत्ती से व शुद्ध गाय के घी से गणेश जी का दिया करे ।
- पूजा करते समय गणेश जी के मंत्र का जाप करे । “ॐ गं गणपतये नमः”
- पूजा करने के बाद भगवान गणेश जी की आरती करे ।
- भगवान गणेश जी का भजन करे ।
- भगवान गणेश जी को भोग लगाने के लिये लड्डू को सबसे अच्छा माना जाता है ।
सावधनिया
गणेश जी की पूजा करते समय इन सावधनीयो का उपयुक्त ध्यान रखे तो आपके परीवार के लिये सभी कार्य सरल प्रकार से हो सकते है। पर अगर आप इन सावधानियो का ख्याल न रख सके तो आपको भगवान गणेश जी के क्रोध से गुजरना पड सकता है ।यह सावधनिया है –
- गणेश जी की पूजा करने के लिये तुलसी का उपयोग नही किया जाना चाहीए ।
- गणेश भगवान की पूजा करते समय गिले चावल का प्रयोग नही किया जाता है ।और न ही टूटे हुए चावल का प्रयोग करना चाहीए ।
- गणेश जी की पूजा करते समय फूलो का विशेष ध्यान रखा जाता है क्योकी भगवान गणेश जी को लाल फूल बहुत प्रिय है अत लाल फूलो का ही प्रयोग करना चाहिए ।
- गणेश जी के लिये लाल वस्त्र का उपयोग बहुत अच्छा माना जाता है अत: लाल वस्त्रो का प्रयोग करना चाहिए ।
- गणेश जी के लिये लड्डू का भोग सबसे अच्छा होता है अत: लड्डू का प्रयोग करना चाहिए।
बुधवार व्रत करने के लाभ
- ज्योतिषो के अनुसार इस व्रत को करने से सर्व सुख की प्राप्ति होती है ।साथ ही इस व्रत को करने से बुद्धी की वृदी होती है ।
- बुधवार के व्रत करने से आपके घर मे शुख शांति छाई रहती है ।
- इस व्रत को करने से रोगो से छूटकारा मिलता है ।
- इस व्रत को करने से आपकी पडाई करने मे मन लगता है ।
- बुधवार के व्रत करने से धन की प्राप्ति होती है । और आपका मन मे अहंकार समाप्त हो जाता है ।
- इस व्रत को करने से जीवन मे सब मगल ही मंगल होता है ।
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय…
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
श्री गणेश चालीसा
जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥
ऋद्धि सिद्धि तव चंवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥
सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥
गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥
कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥
पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज शिर लाए॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
गणेश जी के भजन
अरे गणराज पधारो आज, भक्ति का पहना दो अब ताज।
अरे हमें तो श्री चरणों का होवे दर्शन लाभ।। अरे गणराज…
जिसने तुमको प्रथम मनाया, श्री चरणों में शीश झुकाया।
उसका तुमने मान बढ़ाया, रखी भक्तजनों की लाज।। अरे गणराज…
दो बुद्धि हम कदम बढ़ाएं, ऊंच-नीच का भेद हटाएं।
निरंतर तेरे गुण गावें, बजा-बजा निज साज।। अरे गणराज…
अंधकार अज्ञान हटाओ, दुखीजनों को धैर्य बंधाओ।
रामदरश हमको करवाओ, करो पूर्ण सब काज।। अरे गणराज…
गणेश बनने की कथा
एक समय की बात है गणेश जी के पिता गणों के साथ भ्रमण करने के लिये गये थे पार्वती वहा पर अकेली रह गयी तो पार्वती अपने शरीर का मेल इकठ्ठा कर के एक मुरत बनाकर दरवाजे पर उसे बैठाकर उसमे प्राण डाल दिये थे ।
बादमे माता पार्वजी स्नान करने के लिये चली गयी और उस मुरत वाले बालक से कहा की पुत्र जो भी यहा से अंदर आना चाहे तो तुम उसे यह कह देना की माता अभी स्नान कर रही है आप अंदर नही जा सकते हो और उसे अंदर नही आने देना है । वह बालक वहा पर बैठ गया और कहा की माता आप स्नान करने के लिये चली जाइये यहा कोई नही आयेगा और आ गया तो मै उसे रोक लुगा ।
जब शिव जी वहा पर आये तो देख की वहा पर एक बालक बैठा हुआ है उन्होने सोचा की वह बालक कोन हो सकता है ।और यह सोचते हुए जब शिवजी अंदर जाना चाहे तो उस बालक ने भगवान शिव को अंदर जाने से रोक दिया था ।
तब शिव जी ने कहा की हट जाओ बालक वरना अछा नही होगा ।पर वह बालक नही माना उस बालक ने कहा की अभी आप अंदर नही जा सकते हो अभी माता स्नान कर रही है आप कुछ देर बाद मे अंदर जाने का कष्ट करे अभी माता का आदेश है की जो भी कोई आये उसे अंदर नही आने देना है ।
पर शिव जी ने उसकी बातो पर विश्वास नही किया और कहा की बालक तुम यहा से चले जाओ वरना अच्छा नही होगा ।उस बालक को समझाने के लिये वहा पर भगवान विष्णु आये पर उस बालक ने उनकी भी एक नही सुनी ।विष्णु और उस बालक के बिच मे कुछ समय के लिये बाते चलती रही पर वह बालक अपनी बात पर डटा रहा ।
जब उस बालक ने विष्णु की भी बात नही मानी तो भगवान शिव को घूस्सा आने लगा था । पर वह अपने घूस्सा पर नियंत्रण कर रहे थे ।बादमे कुछ समय के बाद वहा पर भगवान भ्रह्मा आये और उस बालक को समझाया पर उस बालक ने उनकी भी बात को नही मानी वह अपने निर्णय पर कायम रहा।
जब उस बालक ने भ्रह्मा की बातो को नही माना तो शिवजी का घूस्सा और बढ गया और उन्होने उस बालक का सिर धड से अलग कर दिया ।
जब माता पार्वती स्नान करके बाहर आयी तो देख की उस बालक का सिर कटा हुआ पडा है यह देखकर माता पार्वती विलाप करने लगी । और शिव जी से कहा की यह आपने क्या कर डाला आपने अपने पुत्र को ही मार डाला है और कहा की मैने बडे मन भाव से इसकी उत्पती की थी आपने इसे मार डाला है।
अब आप इसे पुन: जीवन दान नही दे देते है जब तक मै आपसे बात नही करुगी इतना कहकर माता पार्वती शिव जी से बात करना बंद कर दिया था । जब शिव को अहसास हुआ की यह हमारा पुत्र ही है तो वह पछताने लगे ।
और भगवान भ्रह्मा से विनती की की आप इसे जीवन दान देने की कृपा करने । तो भ्रह्मदेव ने कहा की कोई भी प्राणी जो उत्तर दिशा में सिर करके सो रहा हो तो उसका सिर काटकर ले आओ ।
तब भगवान शिव ने अपने गणों को आदेश दिया और शिवजी के गण अपने कार्य पर चल पडे । वहुत समय बित जाने के बाद उन्हे एक हाथी दिखा जो उत्तर दिशा की तरफ सिर करके सो रहा था ।
तो गणो ने उस हाथी का सिर काट कर ले आते है और भगवान शिव को कहते है की प्रभु बहुम समय बित जाने के बाद इस प्राणी का ही सिर मिला है ।
तब शिव जी ने उस सिर को उस बालक के सिर की जगह पर रख दिया । और भगवाप ब्रह्मा ने उस सिर को उस बालक के धड से जोड दिया था और इस बालक का नाम गणेश रखा गया ।
गणेश जी की पहले पूजा करने की कथा
एक बार एक सभा मै सभी देवता विराजमान हुए थे तो उस सभा मै सभी ने कहा की हम देवो मै एसा कोन सा देवता है जिसकी पूजा इस संसार मे सबसे पहले की जानी चाहिए ।
तब सभी को लगा की मै सबसे अच्छा देव हूं अत: मेरी पूजा सबसे पहले होनी चाहीए । पर सभी मै से उपयुक्त को चुनना था । इस लिये नारद ने देवो के देव महादेव से कहा की आप इस समस्या का निवारण करे देव ।
तब भगवान शिव ने कहा की इस का निर्णय एक प्रतियोगिता के द्वारा किया जायेगा की सबसे पहले किसकी पूजा होनी चाहिए । शिवजी ने कहा सभी को आपने वाहन पर बैठ कर इस पृथ्वी की परिक्रमा करनी होगी और जो भी सबसे पहले इस कार्य को करकर आयेगा उसकी पूजा पहले की जायेगी ।
सभी इस बात को मान गये और कहा की हमे आपकी बात अच्छी लगी है ऐसा ही होगा और जो पहले आयेगा उसकी पूजा पहले की जायेगी ।
सभी देवता अपने वाहन पर सवार होकर चले गये पर गणेश जी वहा पर रहकर अपने वाहन पर सवार होकर अपने माता पिता की सात बार परिक्रमा कर ली और हाथ जोडकर उनके सामने खडे हो गये थे।
बाकी देवता मे से पृथ्वी का चक्र सबसे पहले कार्तिकेय लगाकर आया और बादमे सभी देवता एक एक करकर आ गये थे । कार्तिकेय ने कहा की सबसे पहले मै आया हु अत: सबसे पहले इस पृथ्वी पर मेरी पूजा होनी चाहीए ।
इस पर शिव जी ने कहा की विनायक ने तुमसे पहले पृथ्वी का चक्र लगा लिया है ।इस पर कार्तिकेय ने कहा की यह केसे हो सकता है यह तो यहा से गया भी नही था ।
तब शिव जी ने कहा की गणेश ने अपने माता पिता के चक्र लगाकर यह प्रमाणित कर दिया है की इस ब्रह्माड से बढकर माता पिता होते है और इस ने माता पिता के ऐक बार नही सात बार चक्र लगाये है ।
यह बात सुनकर सभी देवमा बोले की हा माता पिता ब्रह्माड से बढकर होते है। अत: पूजा करने का अधीकार गणेश जी को ही मिलेगा । इस कारण गणेश जी की इस संसार मै सबसे पहले पूजा की जाती है ।
बुधवार व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है एक बडा गाव था उस गाव मै एक घर के अंदर एक बूडी औरत व उसका पति रहा करते थे । उस औरत के सात बेटे थे जिनमे से छ: बेटो का विवाह हो चुका था ।
सात बेटो मे से एक विदेश के अंदर कमाने के लिये गया हुआ था व बाकी बेटे वही पर आस पास काम करकर अपने घर को चलाते थे । वह बुडिया हर सप्ताह बुधवार का व्रत करती थी और हर बुधवार के दिन कुछ न कुछ दान किया करती थी ।
वह बुधवार का व्रत बहुत सावधनी व पुरे नियम के साथ किया करती थी । व्रत करते करते बहुत समय बित गया और उसके व्रत व उसके दान करने के कारण उनकी बहुएं बहूत परेशान हो गयी थी ।
इस कारण उसकी बहुएं सभी साथ होकर उसे उस घर से निकालने के बारे मे सोचने लगी थी ।और एक दिन उसकी बहूओ ने अपनी सास व ससुर को घर से निकाल दिया था ।
बुडिया व उसका पति दोनो ही वहा से चले गये और चलते चलते एक नगर मे पहूंचे वहा पर पहुंचे तो रात हो चुकी थी । दोनो ने सोचा की अब रात भर यही पर आराम करना होगा । इस कारण वे दोनो पास मै ही एक पीपल का पेड था वहा पर जाकर आराम करने के लिये रुक गये थे ।
कुछ समय बित जाने के बाद बुडिया के पति को भुक लगी इस कारण वह बुडिया को कहता है की मुझे भुक लगी है कही से रोटी का इंतजाम करना होगा । तो बुडिया को एक घर दिखा ।
बुडिया ने अपने पति को कहा चलो वहा पर चलकर पता लगाते है वहा पर कोई होगा जो हमारी सहायता कर देगा ।इतना कहकर दोनो वहा से उस हवेली की और चल पडे वहा जाकर दोनो ने देखा की हवेली के ताला लगा हुआ था ।
और साथ मै उसके पास चाबी का गुच्छा रखा था । दोनो ने बहुत देर तक सोचा की अंदर जाना चाहिए की नही । बादमे दोनो ने ताला खोला तो ताला खूल गया था ।
दोनो अंदर गये और हवेली के अंदर दरवाजे के पास ही लाइट जलाने का बोर्ड लगा था उन्होने लाइट जलाइ तो देखा की हवेली बहुत चमक रही थी और उसके अंदर बहुत बडा होल था । एक खाना खाने की डाइनीग टेबल थी । और बहुत सारे कमरे थे ।
दोनो यह देखकर हेरान हो गये थे की इतना बडा घर है । दोनो ने सोचा की भगवान गणेश जी ने हमे यह घर रहने के लिये दिया है ।
बुडिया ने देखा की वहा उस घर मे भगवान गणेश जी का मंदिर है वह वहा पर गयी और भगवान को धन्यवाद कहा । तो भगवान गनेश जी ने कहा की हे बुडिया मै तेरे इस व्रत करने से प्रसन्न हो गया हूं इस कारण मेने तुम्हे यह घर रहने के लिये देता हूं ।
इतना कहकर वे वहा से चले गये । दोनो पति पत्नी ने खाना खाकर सो गये और कुछ दिन बित जाने के बाद बुडिया ने सोचा की भगवान गणेश ने हमे सब कुछ दे दिया है बस एक गाय और होती तो अच्छा रहता ।
यह सोचते हुए वह सोने के लिये चली गयी । और रात को बुडिया को एक गाय की अवाज सुनाई दि तो वह अपने पति से कहती है की यहा आस पास कोई गाय नही है ।
फिर भी मुझे गाय के बोलने की आवाज सुनाई दे रही है । तब उसके पति ने कहा की सुनाई तो मुझे भी दे रही है । तब दोनो हवेली से बाहर आये तो देखा की गाय उनके घर के सामने खडी है ओर उसका बछडा दुध पी रहा है
तब बुडिया ने अपने पति से कहा की भगवान गणेश जी ने ही हमे यह गाय दि है मै शुभह तो सोच रही थी की हमारे पास सब कुछ हो गया है पर गाय की कमी है इस कारण भगवान गणेश जी ने मेरी मन की पुकार सुनकर हमे गाय दि है ।
दोनो वहा पर खुश रह रहे थे । और उनके बेटो भहुओ को खना तक नशीब नही हो रहा था। उनका घर बिक चुका था इस कारण उन्होंने सोचा की अब इस गाव मे हमे नही रहना चाहिए ।
ऐसा सोचकर वे वहा से चल पडे चलते चलते उसी नगर मे पहूंचे जहा पर उनके माता पिता रहते थे । वे उस नगर मे पहुंचे तो रात हो चुकी थी । वहा पर उसी पीपल के पेड के निचे आराम करने के लिये रुक गये थे जिसके निचे उनके माता पिता रुके थे ।
रात को वहा पर ही उन्हे निन्द आ गयी थी और जब शुभह हुई तो उनके साथ छोटे बच्चे थे वे अपने माता पिता से कहते है की मां हमे भुक लग गयी है कुछ खाने को चाहिए। तब उनमे से छोटे भाई ने कहा की मै वह सामने जो हवेली दिख रही है उसमे से कुछ खाने के लिये लाता हूं ।
वह उस हवेली मे गया और दरवाजा खटखटाया तो उसकी मां ने दरवाजा खोला उसकी मा नें अपने पुत्र को पहचान लिया था । पर उसके बेटे ने अपनी मा को नही पहचान सका और कहा की माताजी कल से बच्चे भुखे है कुछ खाने के लिये मिल सकता है क्या ।
उसकी मा ने कहा की हा जरुर पर तुम्हारे साथ जो भी है उन्हे बुलाकर यहा ले आओ । वह अपने बडे भाई और भाभीयो को जाकर कहता है की वहा पर एक बुडिया रहती है जिसने कहा है की तुम्हारे साथ जो कोई है उसे यहा पर ले आओ और भोजन कर लो ।
कांच के बर्तन टूटना शुभ अशुभ संकेत और कांच का वास्तुशास्त्र
इतना सुनकर उसकी बहुए जल्दी से वहा पहुच गयी । साथ मे उनेके पति व बेटे भी चले गये । जब वहा पर वे पहुंचे तो उस बुडिया ने उनसे कहा की पहले वे स्नान कर लो । तो उनके बेटे व भहूओ ने कहा की हमारे पास पहरने के लिये कुछ नही है हम स्नान करके क्या पहने ।
तो वह बूडिया बोली तुम कपडो के बारे मे मत सोचो वे मै दे दूगी ।उसने उन्हे कपडे लाकर दिये तो वे स्नान करकर आये । तब बुडिया ने एक जगह पर सबको बैठाकर खना परोसा तो बुडिया के सबसे छोटे बेटे ने कहा की माता जी अपको देखकर मुझे मेरी मा की याद आ गयी ।
तब बुडिया ने कहा की बेटे अब कहा है तेरी मा तब वह बोला की मेरी मा इस दुनिया मे नही है वह मर चुकी है । तब उस बुडिया ने कहा की तेरी मा मरी नही है मै ही तेरी मा हूं ।
तेरी भाईयो व भाभीयो ने तो मुझे घर से निकाल दिया था पर मेने भगवान गणेश जी के बुधवार के व्रत किये थे इस कारण आज इस जगह पर सुख शांति के साथ रह रही हूं ।
इतना सुनकर उसकी भहुओ ने कहा की माता जी हमे क्षमा कर दे । तब बुडिया ने कहा की मेने तो तुम्हे कबका क्षमा कर दिया था । और इस प्रकार भगवान गणेश जी का व्रत करने से सभी अच्छा होता है ।
This post was last modified on February 14, 2021