कार्बन डेटिंग का संक्षिप्त विवरण दें ? और कार्बन डेटिंग क्या है ?carbon dating kya hai इसके बारे मे हम विस्तार से बात करेंगे। रेडियोकार्बन डेटिंग जिसको कभी कभी कार्बन 14 डेटिंग के नाम से भी जाना जाता है।रेडियोकार्बन के रेडियोधर्मी समस्थानिक , रेडियोकार्बन के गुणों का उपयोग करके कार्बनिक पदार्थ युक्त वस्तु की आयु निर्धारित की जाती है। यह विधि 1940 के अंत में शिकागो विश्वविद्यालय में विलार्ड लिब्बी ने विकसित की थी।और इनको इस काम के लिए 1960 ई के अंदर नोबल पुरूस्कार दिया गया था। कार्बन डेटिंग इस बात पर आधारित है कि रेडियोकार्बन (14
C ) वायुमंडलीय नाइट्रोजन के साथ ब्रह्मांडीय किरणों की मदद से वायुमंडल मे लगातार निर्मित होता रहता है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के अंदर पौधे इसका प्रयोग करते हैं और 14C को जानवर भी पौधों के माध्यम से हाशिल कर लेते हैं।
और जब जानवर और पौधे की मौत हो जाती है तो वातावरण से कार्बन का आदान प्रदान बंद हो जाता है।उसके बाद (14
C ) की मात्र का कम होना शुरू हो जाता है।जिसको रेडियोधर्मी क्षय कहा जाता है। पौधे या जानवर की हडडी या लकड़ी के टुकड़े के अंदर कार्बन का पता लगाया जाता है। 5,730 वर्ष के अंदर यह आधे से अधिक क्षय हो सकता है। और इस विधि की मदद से 50000 वर्ष पहले की चीजों के बारे मे आसानी से पता लगाया जा सकता है।
कार्बन डेटिंग के अंदर बीटा किरणों की मात्रा को गिना जाता है।क्योंकि यह किरणे निरंतर कार्बन से उत्सर्जित होती ही रहती हैं। कार्बन डेटिंग तकनीक के आ जाने के बाद से ही पुरात्तव के उपर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है। अब पीछे सालों मे हुई घटनाओं की सही तारिख को ज्ञात किया जा सकता है। अंतिम हिम युग की समाप्ति , और विभिन्न क्षेत्रों में नवपाषाण और कांस्य युग के बारे मे कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं।
लिब्बी और जेम्स अर्नोल्ड ने कार्बन डेटिंग का प्रयोग करते हुए डेटा का परीक्षण किया इसके लिए दो मिस्र के राजाओं की कब्र की उम्र का पता लगाया था। Zoser और स्नेफेरु नामक इन राजाओं मे पहले की कब्र को 75 साल पुराना बताया गया तो दूसरे की कब्र को 250 साल पुराना बताया गया । कार्बन डेटिंग की सफलता के बाद आने वाले 11 साल के अंदर ही दुनिया के अंदर कई कार्बन डेटिंग प्रयोगशाला स्थापित की जा चुकी थी।
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कार्बन डेटिंग का संक्षिप्त विवरण कार्बन -14 का भौतिक और रसायनिक विवरण
प्रकृति में, कार्बन दो स्थिर, गैर – विकिरण समस्थानिकों के रूप में मौजूद है carbon-12 (12C), and carbon-13 (13C),इसके अलावा 14C भी मौजूद है।14सी लगातार लोअर स्ट्रैटोस्फियर और ऊपरी ट्रोपोस्फीयर में उत्पादित किया जा रहा है , मुख्य रूप से गेलेक्टिक कॉस्मिक किरणों द्वारा , और कुछ हद तक सौर कॉस्मिक किरणों द्वारा। और उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण के अंदर फैलता है। और समुद्र के अंदर घुल जाता है और प्रकाश संश्लेषण के अंदर मे उपयोग होता है।
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कार्बन डेटिंग का सिद्धांत carbon dating kya hai
अपने जीवन के दौरान एक पौधा या जानवर वातावरण से कार्बन का आदान प्रदान करता रहता है। और अपने प्रवेश को संतुलन के अंदर रखता है।इसलिए Carbon-14 का अनुपात वायुमंडल या समुद्र के साथ समान होगा । और जब पौधा या वह जीव मर जाता है तो उसके बाद वह कार्बन 14 लेना बंद कर देता है या उसका आदान प्रदान नहीं करता है। लेकिन Carbon-14 का क्षय उपर पौधे या पशु से जारी रहेगा । और यह क्षय एक ज्ञात दर तक ही होता है। रेडियोकार्बन के अनुपात का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है कि किसी दिए गए नमूने को कार्बन का आदान-प्रदान किए हुए कितना समय हो गया है।
रेडियोधर्मी समस्थानिक के क्षय को नियंत्रित करने वाला समीकरण है
- N 0 मूल नमूने में समस्थानिक के परमाणुओं की संख्या है
- N समय t के बाद बचे परमाणुओं की संख्या है
- λ एक स्थिर है जो विशेष आइसोटोप पर निर्भर करता है
रेडियोधर्मी समस्थानिक का आधा-जीवन के बारे मे सबसे पहले पता किया जाता है। या यह पहले से ही लिखा हुआ मौजूद है। जैसे कार्बन 14 का आधा जीवन 5,730 ± 40 वर्ष माना गया है।इसका अर्थ यह है कि 40 वर्ष बाद केवल आधा कार्बन ही रहेगा और 11,460 वर्षों के बाद एक तिमाही रहेगी; 17,190 वर्षों के बाद एक आठवां हिस्सा बचेगा ।
इसके अलावा गणना के अंदर वातावरण के अंदर कार्बन 14 की स्थति को देखा जाता है और मान को सही किया जाता है। इसके अलावा एक मध्यवर्ती मान का भी इसमे प्रयोग किया जाता है।
रेडियोकार्बन डेटिंग से उम्र का पता लगाने के लिए पदार्थ के आधे जीवन काल के बारे मे भी पहले ही पता होना चाहिए । इस संबंध मे लिब्बी के 1949 के अंदर अपने पेपर के अंदर कार्बन के आधे जीवन को 5720, 47 वर्ष माना था लेकिन उसके बाद इसको संशोधित किया गया और 5568 ± 30 years कर दिया गया था।यह 1960 के दशक के प्रारंभ में 5,730 years 40 सालमें फिर से संशोधित किया गया था।तो इस प्रकार से कार्बन डेटिंग तकनीक के अंदर पदार्थ की उम्र का पता लगाने के लिए कार्बन के आधे जीवन का प्रयोग किया जाता है। इससे आसानी से पदार्थ की उम्र का पता लगाया जा सकता है।
कार्बन एक्सचेंज
कार्बन पूरे वायुमंडल, जीवमंडल और महासागरों में होता है। जिसको कार्बन भंडार के नाम से भी जाना जाता है।कार्बन एक्सचेंज के अलग अलग तत्व कार्बन को स्टोर करते हैं। जलाशयों में कुल कार्बन का लगभग 1.9% होता है। और यदि किसी जलाशय के अंदर कार्बन कम है तो इसका अर्थ यह हो सकता है कि कार्बन सड़ चुका है या कार्बन को प्राप्त किया जा रहा है।
सतह महासागर के अंदर वायुमंडल से कार्बन मिलने के लिए लगभग 1 वर्ष का समय लग जाता है।समुद्री जीवन की रेडियोकार्बन आयु लगभग 400 वर्ष है।कार्बन डेटिंग के लिए नमूने
कार्बन डेटिंग करने के लिए सबसे पहले जिस पदार्थ की आयु ज्ञात करनी है उसके उपर से अंवाछिंत पदार्थों को हटाना जरूरी होता है। क्षार और एसिड वॉश का उपयोग ह्यूमिक एसिड को हटाने के लिये किया जाता है । इस प्रकार से नमूने को तैयार किया जाता है।
- परीक्षण से पहले केवल लकड़ी के नमूने को सेल्यूलोज घटक में रखना आम है, लेकिन चूंकि यह नमूना के आयतन को उसके मूल आकार के 20% तक कम कर सकता है, इसलिए पूरी लकड़ी का परीक्षण किया जाता है।
- हड्डी की उम्र का भी परीक्षण किया जा सकता है।हड्डी के अंदर हाइड्रॉक्सीप्रोलाइन होता है जो विश्वसनिय संकेतक माना जाता है।
- जली हुई हड्डी का परीक्षण इस बात पर निर्भर करता है किस प्रकार से हड्डी को जलाया गया था।इस प्रकार के नमूने भी परीक्षण करने योग्य होते हैं।
- हाथीदांत, कागज, वस्त्र, बीज और अनाज, मिट्टी की ईंटों के भीतर से पुआल, और मिट्टी के बर्तनों में खाद्य अवशेष की आयु का पता कार्बन डेटिंग की मदद से लगाया जा सकता है।
- मिट्टी के अंदर भी कार्बनिक पदार्थ होते हैं लेकिन प्रदूषण की वजह से मिट्टी का परीक्षण करना सही नहीं होता है तो कार्बन मूल के टुकड़ों पर परीक्षण करना सही परीणाम देता है।
- पीट के तीन प्रमुख घटक ह्यूमिक एसिड, ह्यूमिन और फुल्विक एसिड होते हैं और यह विश्वसनिय जानकारी प्रदान करते हैं।और यह क्षार के अंदर अघुलनशील होते हैं।
- सूखे पीट के साथ एक विशेष कठिनाई रूटलेट्स को हटाने की है।
परीक्षण किये जाने वाले नमूने और आकार
परीक्षण किये जाने वाले नमूने को थर्मल प्रसार किया जाता है। जिसके अंदर लगभग 1 महिने तक का समय लग सकता है।एक बार जब नमूने से संदूषण को हटा दिया जाता है तो मापने के लिए आवश्यक विधि का प्रयोग किया जाता है।परीक्षण तकनीक दो प्रकार की होती हैं।
पहली परीक्षण तकनीक के अंदर डिटेक्टर जो रेडियोधर्मिता को रिकॉर्ड करते हैं, जिन्हें बीटा काउंटर और एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमीटर के रूप में जाना जाता है। बीटा काउंटरों के लिए, कम से कम 10 ग्राम (0.35 औंस) वजन का एक नमूना होना चाहिए ।त्वरक द्रव्यमान स्पेक्ट्रोमेट्री तरीके के अंदर 0.5 miligram के टुकड़े का प्रयोग किया जा सकता है।
बीटा काउंटिंग तरीका
लिब्बी ने पहला रेडियोकार्बन डेटिंग प्रयोगों का प्रदर्शन किया, जिसे मापने का एकमात्र तरीका है 14C के परमाणु के अंदर कार्बन के क्षय का पता लगाया था।प्रति नमूना समय प्रति मास क्षय की घटनाओं की संख्या । इस विधि को बीटा काउंटिंग के नाम से जाना जाता है।बीटा काउंटिंग बहुत ही जल्दी की जा सकती है और इसको बहुत ही छोटें नमूनों पर आसानी से परीक्षण किया जा सकता है।
नमूने से निकलने वाले बीटा किरणों की गिनती
लिब्बी ने अपना पहला बीटा काउंटर बनाया था जिसको अब गीगर काउंटर के नाम से जाना जाता है। आधुनिक गीगर काउंटर एक ऐसी मशीन होती है जो कि यह एक Geiger-Müller ट्यूब में उत्पादित आयनीकरण प्रभाव का उपयोग करके अल्फ़ा कणों , बीटा कणों और गामा किरणों जैसे आयनीकरण विकिरण का पता लगाता है।
लिब्बी ने इस यंत्र को बनाने के लिए एक सिलैंडर का प्रयोग किया था और इस सिलेंडर को काउंटर में इस तरह से डाला गया था जिससे सैंपल और तार के बीच कोई सामग्री न हो।
त्वरक मास स्पेक्ट्रोमेट्री
इस विधि के अंदर आयनों को एक त्वरक में इंजेक्ट किया जाता है । आयनों को त्वरित और एक स्ट्रिपर के माध्यम से पारित किया जाता है, जो कई इलेक्ट्रॉनों को निकालता है ताकि आयन सकारात्मक चार्ज हो जाएं उसके बाद अब इन आयनों मे 1 से 4 धन आवेश हो सकते हैं। इसके बाद इनको एक चुंबक के माध्यम से पार किया जाता है।
यहां पर आयनों की अलग अलग धाराओं के रूप मे उभरते हैं और एक कण डिटेक्टर आयनों की संख्या के बारे मे पता लगाता है।AMS का उपयोग, द्रव्यमान स्पेक्ट्रोमेट्री के सरल रूपों के विपरीत, कार्बन समस्थानिकों को अन्य परमाणुओं या अणुओं से अलग करने के लिए आवश्यक होता है।इस प्रकार से AMS नमूने में तीन अलग-अलग कार्बन समस्थानिकों के अनुपात को निर्धारित करता है।
कार्बन डेटिंग के अंदर त्रुटि
ऐसा नहीं है कि कार्बन डेटिंग पद्धति से पूरी तरह से सही उम्र का पता नहीं चलता है।इस तरीके के अंदर 80 साल या उससे अधिक समय का अंतर आ सकता है। यह कई चीजों पर निर्भर करता है।रेडियोकार्बन डेटिंग 50000 साल पुराने नमूनों की उम्र का पता लगा सकता है। और कई मामलों मे तकनीकें 60,000 तक और कुछ मामलों में वर्तमान से 75,000 साल पहले तक माप संभव हो सकता है।1970 में ब्रिटिश संग्रहालय रेडियोकार्बन प्रयोगशाला द्वारा चलाए गए एक प्रयोग द्वारा प्रदर्शित किया गया था, जिसमें छह महीने के लिए एक ही नमूने पर साप्ताहिक माप लिया गया था। जिसके अंदर परिणाम व्यापक रूप से भिन्न आए थे ।पहले माप के अंदर 4250 से 4390 साल और दूसरे माप के अंदर 4520 to about 4690 साल आए थे । इसका अर्थ यह है कि कार्बन डेटिंग विधि पूरी तरह से सटीक नहीं होती है।
कार्बन डेटिंग विधि से वस्तुओं की उम्र का निर्धारण कार्य संबंध की मदद से
रेडियोकार्बन डेटिंग आमतौर पर सीधे ही वस्तु के नमूने लेकर जांच ली जाती है लेकिन कई बार ऐसा करना संभव नहीं होता है।जैसे एक धातु की कब्र है तो उसकी उम्र का पता इस विधि से नहीं लग सकता है लेकिन यदि कब्र के अंदर लकड़ी वैगरह है या मिट्टी है तो उसका पता कार्बन डेटिंग से लग सकता है।ऐसी स्थिति के अंदर कब्र के अंदर की लकड़ी की उम्र का पता लगाया जाता है।जिससे यह आसानी से पता चल सकता है कि कब्र को कब रखा गया होगा ।जब पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त बहुत पुरानी सामग्री को डेटिंग करते समय प्रदूषण की विशेष चिंता होती है और नमूना चयन और तैयारी में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है।।
प्लेस्टोसीन एक भूवैज्ञानिक युग के बारे में 26 लाख साल पहले शुरू हुआ है और वर्तमान युग 11,700 साल पहले शूरू हुआ था।विस्कॉन्सिन में, एक जीवाश्म वन की खोज की थी और बाद के अनुसंधान ने निर्धारित किया कि जंगल का विनाश उस क्षेत्र में प्लेस्टोसीन के अंत से पहले बर्फ के अंतिम दक्षिणवर्ती आंदोलन वाल्डर्स आइस रीडवेंस के कारण हुआ था।
स्कैंडिनेविया के अंदर पेड़ों के अवशेषों का पता लगाया गया है जिसकी जो 24,000 से 19,000 साल पुराने थे ।
1947 में, मृत सागर के पास की गुफाओं में स्क्रॉल की खोज की गई थी , जो हिब्रू और अरामी में लिखी हुई थी। इनकी उम्र लगभग 200 साल बताई जा रही है। अन्य डेटिंग तकनीकों में थर्मोल्यूमिनेशन , ऑप्टिकली स्टिम्युलेटेड ल्यूमिनेसेंस , इलेक्ट्रॉन स्पिन अनुनाद और विखंडन ट्रैक डेटिंग आदि आती हैं।
थर्मोल्यूमिनिसेंस डेटिंग विधि
थर्मोल्यूमिनिसेंस डेटिंग विधि कार्बन डेटिंग विधि की तरह ही एक विधि है जिसका प्रयोग मिट्टी के बर्तनों के की उम्र का पता लगाने के लिए होता है। कार्बन डेटिंग विधि जैविक चीजों की उम्र का पता लगाती है।
इस विधि की मदद से ही भारत के अंदर मल्हार के गुलाब सिंह ठाकुर के घर मिले मिट्टी के बर्तनों की आयु 1340 वर्ष, पेंड्रा से मिले बर्तनों की आयु 1330 तो रतनपुर से मिली ईंट की उम्र 290 वर्ष आंकी गई है।मिट्टी में यूरेनियम, थोरियम व पोटेशियम होते हैं। इनकी वजह से मिट्टी के अंदर रहने वाले बर्तन रेडियोएक्टीव होते रहते हैं।वैज्ञानिक मिट्टी के बर्तन लेते हैं और उसके बाद उनसे क्वार्ट्ज, कैल्साइट और फेल्सपर जैसे पदार्थों को अलग कर देते हैं।
इस विधि के अंदर मुक्त प्रकाश की तीव्रता को ज्ञात किया जाता है। और उसके बाद मिट्टी लेकर इसके अंदर यूरेनियम, थोरियम व पोटेशियम की मात्रा ज्ञात की जाती है और फिर इससे बर्तन की आयु की गणना की जाती है।
ओडिशा के अंदर प्राचीन बस्ती की खोज और कार्बन डेटिंग
ओडिशा के अंदर एक प्राचीन बस्ती मिली है।ओडिशा के कटक ज़िले के जालारपुर गाँव में लगभग 3,600 साल पहले की ग्रामीण बस्ती का पता चला है।
- खुदाई के दौरान यहां पर प्राचीन कलाकृतियों, चारकोल एवं अनाज आदि मिले हैं जिन पर कार्बन डेटिंग विधि का प्रयोग किया गया है।
- सूर्य पूजा की परम्परा यहां पर पहले हुआ करती थी।
- खुदाई के अंदर मिले अवशेष ताम्रपाषाण सभ्यता के बारे मे बताते हैं। खुदाई मे कई चीजे मिली हैं जैसे बरतन के ढेर ,पॉलिश किये गए औजार ,हड्डियों से बने औज़ार, अर्द्ध-कीमती पत्थरों की माला और जीवजंतुओं की हडियां भी मिली हैं।
कार्बन डेटिंग विधि जैविक चीजों की आयु को निर्धारण करने मे सबसे उपयोगी है
जब से कार्बन डेटिंग विधि का विकास किया गया है । तब से पुरातत्व के क्षेत्र के अंदर क्रांति आ चुकी है। आज वैज्ञानिक हजारों साल पुराने नर कंकाल की रूप रेखा को समझ सकते हैं। समय समय पर मिलने वाले कंकालों की स्थिति को भी वैज्ञानिक जांच सकते हैं।लंदन क्रॉसरेल परियोजना की खुदाई के दौरान पुरातत्वविदों को सामूहिक रूप से दफ़न किए गए लोगों के नर कंकाल मिले हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इन कंकालों के अंदर उन लोगों के कंकाल हो सकते हैं जो प्लेग महामारी के दौरान मर गए थे ।
खुदाई के दौरान मिले कंकाल के दाँतों से प्लेग के बैक्टीरिया येरसिनिया परसिस्ट के डीएनए को भी देखा गया है।1348 से साल 1350 ई के बीच इन कब्रों के अंदर मुर्दों को दफनाया गया था।हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे 660 साल पहले आई बीमारी के बारे मे और बेहतर तरीके से जाना जा सकता है।
इसी प्रकार ओडिशा से 3 से 4 हजार साल पुराने नर कंकाल मिले हैं।जिनकी उम्र का पता कार्बन डेटिंग से लगाया गया है। ओड़ीशा के जाटनी कस्बा के पास हरिराजपुर ग्राम पंचायत के बाहरी इलाके के बंग गांव के पास असुराबिंधा में 13 मार्च 2014 को खुदाई के दौरान यह कंकाल मिलें हैं।इन नर कंकाल के अंदर एक 30 से 35 साल की महिला का नर कंकाल था और एक बच्चे का नर कंकाल है।यह दोनों नर कंकाल 4 फीट की दूर पर मिले हैं।
नर कंकल और रूपकूंड झील व कार्बन डेटिंग
रूपकुंड झील काफी मसहूर झील रही है और इसको कंकाल झील के नाम से भी जाना जाता है।यह झील अधिकतर समय बर्फ से ढकी रहती है और इसकी यात्रा करना भी काफी मजेदार हो सकता है।यात्री ट्रेकर और रोमांच प्रेमी सड़क मार्ग से लोहाजंग या वाँण से रूपकुंड झील की यात्रा कर सकते हैं।यह झील उतराखंड़ राज्य के चमेली जिले के अंदर स्थित एक झील है 5029 मीटर की उंचाई पर पड़ती है। यह पूरी तरह से सुनसान है।यहां पर 500 से अधिक नर कंकाल मिलते हैं जिसकी वजह से यह बहुत अधिक प्रसिद्ध हो चुकी है।वैज्ञानिकों के अनुसार इन लोगों की मौत भूस्कंलन या महामारी या फिर बर्फबारी की वजह से हुई है।1960 ई के अंदर हुई कार्बन डेटिंग से यह पता चलता है कि इन लोगों की मौता 12 शताब्दी से लेकर 15 वीं शताब्दी के बीच हुई थी।
सन 1942 ई के अंदर रूपकूंड झील के अंदर पड़े हुए 500 नर कंकालों की खोज की गई थी कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार यह 1100 साल पुराने हैं।यह झील ग्लैशियर और पहाड़ों से ढकी रहती है। सर्दी के अंदर यहां पर बर्फ जम जाती है और कुछ भी दिखाई नहीं देता है। लेकिन गर्मी आते ही नर कंकाल का खौफनाक मंजर नजर आने लगता है।
लंदन के क्वीन मेरी विश्वविद्यालय और पूना विश्विद्यालय के द्धारा किये गए प्रयोगों से पता चला कि इन लोगों की मौत रसायनिक अस्त्र से हुई थी।ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड ने सबसे पहले इस झील के बारे मे सबको बताया था।
इसी प्रकार एक अन्य तथ्य यह है कि द्धितिय विश्व युद्ध के समय कुछ जापानी सैनिक भारत के अंदर घुसबैठ करने की कोशिश कर रहे थे जो बाद मे यहां पर फंस गए हालांकि ब्रिटिश सरकार ने इसकी जांच भी करवाई थी लेकिन यह आशंका पूरी तरह से गलत साबित हो गई है।
इन मानव हड़ियों के उपर फैक्चर का अध्ययन कर वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे की इन लोगों की मौत औले के गिरने की वजह से हुई है। ओले एक गेंद के जितने बड़े थे । और हिमालय के अंदर छिपने का स्थान नहीं होने की वजह यह मारे गए ।
इन सबके अलावा अनुमान यह भी लगाया गया कि यह 1841 की बात है जब जनरल जोरावर तिब्बत युद्ध के बाद वापस लौट रहे थे तब उनकी टुकड़ी रस्ता भटक गई और हिमालय के अंदर फंस गई । उसके बाद मौसम खराब हो गया और भयंकर ओलों की चपेट मे आने से यह मारे गए ।
सीमित हो रही है कार्बन डेटिंग
पृथ्वी के वातावरण में जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण ग्रीनहाउस गैसे तेजी से बढ़ रही हैं।इस वजह से कार्बन डेटिंग क्षमता के अंदर कमी आ रही है।वैज्ञानिकों के अनुसार इससे कार्बन डेटिंग परीक्षण प्रभावित हो रहा है। सन 2050 तक कार्बन डेटिंग के मान के अंदर बहुत अधिक बदलाव हो जाएगा । और यह सही मान दिखाना बंद कर देगी । हालांकि वैज्ञानिक अब इस पर रिसर्च कर रहे हैं और परिणामको को अधिक सटीक बनाए रखने का प्रयास कर रही हैं।
कार्बन डेटिंग का संक्षिप्त विवरण लेख के अंदर हमने कार्बन डेटिंग के बारे मे विस्तार से जाना उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा ।यदि इस बारे मे आपका कोई सवाल हो तो आप हमे नीचे कमेंट करके बता सकते हैं।