गाय का दूध बढ़ाने के उपाय ,cow ka doodh kaise badhaye , गाय का दूध बढ़ाने का घरेलू उपाय , दोस्तों गाय का दूध हमारी सेहत के लिए काफी अच्छा होता है। इस वजह से हम गाय को घर के अंदर पालते हैं। आज से कुछ साल पहले हमारे भारत के अंदर देशी गायों को काफी अधिक पाला जाता था। लेकिन इनकी कम दूध उत्पादन की क्षमता की वजह से अब धीरे धीरे देशी गायों को लोग कम पाल रहे हैं। और अपने यहां पर अधिक दूध उत्पादन वाली गायों को रख रहे हैं।देशी गायों की रोगप्रतिरोधक क्षमता तो अच्छी होती है लेकिन यह दूध कम देती हैं। यही बड़ी समस्या है।
और दूसरी बात यह जल्दी ही दूध देना बंद कर देती हैं। ऐसी स्थिति मे काफी लंबा समय ऐसे ही गुजारना पड़ता है। लेकिन दूसरी किस्म के गायों के साथ यह समस्या नहीं है।नई किस्म की जर्सी जैसी गाय अधिक दूध देती हैं और काफी लंबे समय तक दूध देती हैं।इसके अलावा दूसरी समस्या देशी गायों के साथ यह भी है कि जो लोग दूध को एक बिजनेस के रूप मे ले रहे हैं। उनको देशी गायों से कोई भी फायदा नहीं मिल पाता है। उनको तो अधिक दूध देने वाली गाय की आवश्यकता होती है।
शहर के अंदर तो एक जर्सी और अधिक दूध देने वाली गाय को रखना ही कठिन होता है।क्योंकि गाय काफी महंगी पड़ती है। शहरी लोग यदि खेती नहीं करते हैं तो गाय का चारा और खली ही काफी महंगी पड़ जाती है। ऐसी स्थिति के अंदर दूध खरीदकर पीना बेहतर होता है।
गांव देहात के अंदर सबसे अधिक गाये रखी जाती हैं।क्योंकि गांवों के अंदर अधिकतर लोग खेती करते हैं। ऐसी स्थिति के अंदर उनके पास गायों को डालने के लिए चारा वैगरह काफी आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
और वैसे भी आप जानते हैं कि किसान जब खेत के अंदर काम करता है तो उसे दूध की और दही की बहुत अधिक आवश्यकता होती है । क्योंकि यह सब थकावट दूर करने के लिए भी जरूरी होते हैं। हमारे यहां तो आज भी देशी गायें और जर्सी दोनो ही रखी गई हैं।देशी गाय दूध कम देती है लेकिन इसको पालने के लिए आपको कुछ भी मेहनत नहीं करनी होती है। बारिश हो या बिना बारिश घर के बाहर यह अपने आप ही खेतों के अंदर चर कर आ जाती है। हालांकि समय के साथ देशी गाय की संख्या मे कमी हो रही है।
यदि आप एक गायपालक हैं तो आपको अधिक दूध वाली गाय को ही पालना चाहिए । क्योंकि गाय के खाने के लिए खली वैगरह काफी महंगी आती है। ऐसी स्थिति मे यदि वह अधिक दूध नहीं देगी तो आपको खुद का पैसा खर्च करके उसके लिए खली वैगरह की व्यवस्था करनी होगी । और जो लोग काफी गरीब हैं उनके लिए यह करना संभव भी नहीं है।
दोस्तों वैसे तो गाय के दूध को बढ़ाने के लिए मार्केट के अंदर कई तरह की दवाएं और इंजेक्सन उपलब्ध हैं। इनकी मदद से गाय का दूध तो बढ़ जाता है लेकिन इसके साइड इफेक्ट बहुत अधिक होते हैं। और इनका इफेक्ट इंसानों पर भी पड़ता है।इसलिए यदि आप गाय का दूध बढ़ाने के उपाय खोज रहे हैं तो केवल देशी और नैचुरल तरीकों का प्रयोग करें । इससे आपकी गाय की सेहत को भी नुकसान नहीं होगा और दूध बढ़ जाएगा ।
Table of Contents
1.गाय का दूध बढ़ाने के उपाय गाय की डिवोर्मिंग करवाएं
दोस्तों जैसा कि आपको पता ही होगा कि गाय के पेट के अंदर कीड़े जा सकते हैं। आमतौर पर पशु जमीन से खाना उठाते समय कीड़े उनके पेट के अंदर चले जाते हैं। इसलिए गाय को समय समय पर पेट के कीड़े मारने की दवा हर 6 महिने या डॉक्टर के निर्देशानुसार एक बार देनी चाहिए ।यदि आप गाय को पेट के कीड़े मारने की दवा नहीं देते हैं।भले ही आपकी गाय कितना भी भोजन करें । भोजन का प्रभाव उसके अंदर नहीं दिखेगा और दुबली पतली दिखाई देगी । इसके अलावा स्थितियां और अधिक गम्भीर हो सकती हैं।
जब गाय के पेट मे कीड़े होंगे तो वह भोजन करना कम करदेगी । और ऐसी स्थिति के अंदर दूध का उत्पादन भी कम हो जाएगा ।मार्केट के अंदर आप गाय के लिए डिवोर्मिंग टेबलेट खरीद सकते हैं इसके अलावा इस टेबलेट का सेवन किस प्रकार से करना है। इसके बारे मे भी आपको मेडिकल स्टोर वाले बतादेंगे। गाय की उम्र और वजन के हिसाब से इन टेबलेट को दिया जाता है।
2.cow ka doodh kaise badhaye गेंहू के दलिया से गाय का दूध बढ़ाना
गाय का दूध बढ़ाने का बढ़िया उपाय गेहूं का दिलया है।इसके लिए आपको रोजाना 2 किलो गेंहू लेना है और उनको मोटा मोटा पीस लेना है। उसके बाद एक किलो खली के अंदर मिलाकर यदि आप रोजाना अपनी गाय को देते हैं तो दूध बढ़ जाएगा । लेकिन आपको यह केवल गाय को शाम को ही देना होता है। सुबह नादें ।
3. गाय का दूध बढ़ाने का घरेलू उपाय तारामिरा का प्रयोग
दोस्तों गाय का दूध बढ़ाने के लिए तारामिरा भी काफी उपयोगी साबित होता है। इसके लिए गाय को 100 ग्राम तारामिरा लेना है। गर्मी के अंदर तारामिरा के अंदर 250 ग्राम शक्कर ले सकते हैं। सर्दी के मौसम मे गुड़ का प्रयोग कर सकते हैं।इन सबको आपस मे अच्छी तरह से मिलाएं और उसके बाद गाय को रोजाना खिलाएं । ऐसा करने से गाय के दूध के अंदर बढ़ोतरी हो जाएगी । यह गाय के दूध को बढ़ाने का अच्छा तरीका है।
4.गाय का दूध बढ़ाने के उपाय सरसों का तेल
दोस्तों 100 ग्राम सरसों का तेल गाय को खली के अंदर डालकर देने से भी गाय का दूध बढ़ जाता है। यह गाय के दूध को बढ़ाने का बहुत ही अच्छा और कारगर तरीका है।
5. गाय का दूध बढ़ाने का घरेलू उपाय सरसों की खली
दोस्तों गाय के लिए खली काफी उपयोगी होती है।वैसे आपको बतादें कि मार्केट के अंदर कई प्रकार की खली मिलती हैं लेकिन सरसों की खली काफी फायदेमंद होती है। सो आप मार्केट से बढ़िया क्वालिटी की सरसों की खली को लेकर आ सकते हैं जो आपके पशुओं के दूध को बढ़ा देती है।
6.cow mineral mixture
cow mineral mixture गाय को देना बहुत अधिक फायदेमंद होता है। क्योंकि इसके अंदर गाय के शरीर के लिए आवश्यक सभी तत्व मौजूद होते हैं। और यह गाय के दूध को बढ़ाने के लिए जाना जाता है। मार्केट के अंदर कई कम्पनियों के cow mineral mixture बिक रहे हैं। आप अपनी आवश्यकता अनुसार खरीद सकते हैं।
इसको यूज करने के कई सारे फायदे हैं जो इस प्रकार से हैं।
- दूध उत्पादन, वसा और एसएनएफ में सुधार करता है।
- खनिज मिश्रण युवा बछड़ों के समग्र विकास का समर्थन करता है।
- गाय और भैंस के स्वास्थ्य में सुधार करता है।
- प्रतिरक्षा में सुधार करता है,
- पाचन में सुधार करता है
- और प्रजनन दर और प्रजनन प्रदर्शन में सुधार करता है।
- कैल्शियम, सल्फर, जस्ता, तांबा, फास्फोरस, आयोडीन, जड़ी बूटी जैसी चीजें इसके अंदर होती हैं।
इसकी मात्रा पशु के वजन के हिसाब से होती है। आप इसके लिए दवा विक्रेता से जानकारी ले सकते हैं। हालांकि कुद लोग mineral mixture को घर पर भी बनाते हैं।
7.गाय का दूध बढ़ाने का घरेलू उपाय गाय को रोजाना नमक देना चाहिए
जिस प्रकार से हमारे लिए सोडियम क्लोराइड जरूरी होता है। उसी प्रकार से गायों के लिए भी यह काफी जरूरी होता है। इसलिए बांट के अंदर नमक मिलाकर देना चाहिए। यह अप्रत्यक्ष तौर पर दूध बढ़ाने मे मदद करता है।
शारीरिक माध्यम में अम्लीय एवं धारीय समानता बनाये रखने के लिए भी नमक की आवश्यकता पड़ती है। इसके अलावा नमक आंत में एमीनों एसिड और शर्करा के अवशोषण के काम आता है। अक्सर आपने देखा होगा कि पशुओं को आहर मे नमक मिलाकर खिलाया जाता है। यह प्रक्रिया काफी लंबे समय से चली आ रही है।
नमक से लार निकलने में सहायता मिलती है और लार से आहार के पचने में प्रोत्साहन मिलता है। यदि गाय को नमक कम मिलता है तो वह आस पास के बेकार की चीजों को खाने लगता है और अपने शरीर के अंदर मौजूद उर्जा का सही तरीके से प्रयोग करने मे सक्षम नहीं हो पाता है।
पशु की स्थिति | HCl |
दूध न देने वाले पशुओं के लिए | 1.67 ग्राम/100 kgw |
दूध देने वाले पशुओं के लिए | 4.22 ग्राम/100 kg |
बढ़ोतरी | 1.56 ग्राम/किलो भार प्रतिदिन बढ़ने वाले जिनका भार 150-600 kg |
गर्भावस्था के लिए | 1.54 ग्राम/दिन, 190-270 दिन के गर्भावस्था के लिये |
वैसे वैज्ञानिकों के अनुसार एक दूध देने वाले पशु को रोजाना 30 ग्राम नमक की आवश्यकता होती है। जबकि एक साधारण पशु को मात्र 13 ग्राम नमक की जरूरत पड़ती है।
8.गाय को मीठा सोड़ा खिलाएं
आप जो गाय को बांटा देते हैं। उसके अंदर मीठा सोड़ा मिलाएं और उसके बाद अपनी गाय को दें। यह आपकी गाय का दूध को बढ़ाने के लिए काफी फायदेमंद होगा ।
9.गाय को हरा चरा खिलाएं
यदि आप गाय के दूध को अधिक बढ़ाना चाहते हैं तो उसे हरा चारा आवश्य खिलाएं । क्योंकि यह काफी पौष्टिक होता है। और इसको खाने के गाय के दूध मे बढ़ोतरी होती है। यदि आप खेती करते हैं। और आपके पास जमीन और पानी है तो आप खेत मे ही हरा चारा उगा सकते हैं और काट कर गायों को खिला सकते हैं। अक्सर ऐसा वे लोग करते हैं जिनके पास काफी गायें होती हैं और दूध का व्यापार करते हैं।
10.गाय का दूध बढ़ाने के लिए खली बनाएं
दोस्तों कुछ लोग यह भी बताते हैं कि खली की बजाय गाय को घर पर बनी खली ही देनी चाहिए । और आटे का प्रयोग नहीं करना चाहिए । क्योंकि जब गाय को कीड़े मारने की दवा दी जाती है तो कीड़े आटे की वजह से छुपकर अपनी जान बचा लेते हैं।
- 4kg तारा
- 9kg सरसो
- 29 kg जौ
- 29 kg गेहु
- 29 kg कपास के बनोले
- 18 kg चने
- 14 kg मुंगी की दाल का छिलका
- 4 kg गुड़
- 2 kg मेथी
- 1 kg सुखे आवले
- 1 kg मीठा सोडा
तारामीरा सरसौ, जौ, गेहु, कपास के बिनोले, चने छिलका ओर मीठा सोडा आदि को पीस लेना हैं और उसके बाद उसे पका कर देना होता है। मेथी और आवला कौ बारीक पीसकर गुड डाल कर तीनो को छाछ में 12 घंटे भिगोकर सरबत बना लें और उसके बाद रोजाना गाय को शाम को दें । यह आपकी गाय के लिए काफी फायदेमंद होगी ।
11.गाय का दूध बढ़ाने के उपाय चॉकलेट
इंसानों के लिए चॉकलेट का नाम तो आपने सुना ही होगा । वहीं गायों के लिए भी एक ऐसी चॉकलेट आ चुकी है जो दूध बढ़ाने का कार्य करती है।बरेली के भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) ने एक ऐसी ही चॉकलेट विकसित की है। इस चॉकलेट को यूरिया मोलासिस मिनिरल ब्लॉक के नाम से जाना जाता है। कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, जिंक, कॉपर जैसे तत्व इसके अंदर मौजूद होते हैं। और इसको केवल जुगाली करने वाले पुश खा सकते हैं। इसके सेवन करने से पशु को भूख अच्छी लगती है और पेट अच्छा रहता है।
12,गाय के दूध को बढ़ाने के लिए संतुलित आहार
दोस्तों गाय के लिए संतुलित आहार बनाने के कई तरीके हैं। यहां पर हम एक और तरीका बता रहे हैं जिसकी मदद से आप अपनी गाय के लिए संतुलित आहार बना सकते हैं।
- मक्का, जौ, गेंहू, बाजरा दानों मे से कोई भी एक दाना आप ले सकते हैं। यह 35 प्रतिशत होना चाहिए ।
- आप चाहें तो तीनों को मिलाकर 35 प्रतिशत कर सकते हैं या फिर किसी एक को कर सकते हैं।
- सरसों की खल, मूंगफली की खल, बिनौला की खल, अलसी की खल आदि कि खल मे से कोई भी एक खल ले सकते हैं जो 32 प्रतिशत होनी चाहिए ।
- गेंहू का चोकर, चना की चूरी, दालों की चूरी, राइस ब्रेन आदि मे से कोई एक या सभी को मिक्स कर 35 किलो ले सकते हैं।
- खनीज लवण की मात्रा 2 किलों
- नमक की मात्रा 1 किलो लें ।
इन सभी को अच्छी तरह से मिक्स कर सकते हैं। और उसके बाद किसी पात्र के अंदर भरकर रख सकते हैं। फिर आवश्यकता अनुसार पशु को दे सकते हैं।
13.गाय को भरपूर पानी पिलायें
दोस्तों गाय को पानी दिन के अंदर तीन बार तो कम से कम पिलायें । यदि आप गाय को बाड़े के अंदर ऐसे ही खुला रखते हैं तो वहीं पर आप एक होद बना सकते हैं। जिसके अंदर पशु आवश्यकता अनुसार पानी पी सके । क्योंकि शरीर के अंदर पानी की कमी भी पशु के दूध को कम कर देती है।इसलिए पशु को समय समय पर पानी पीलाते रहें ।
14.गाय कहीं बीमार तो नहीं है
दोस्तों गाय के दूध के कम होने का कारण गाय की बीमारी भी होती हैं।कुछ गायें ऐसी होती हैं कि उनकी बीमारी दिखती नहीं है लेकिन यह काफी बीमार होती है। हाल ही के अंदर एक पशुपालक ने बताया कि उनकी गाय काफी लंबे समय से कम दूध दे रही थी। और उन्होंने सारे साधन ट्राई किये लेकिन सफलता नहीं मिली ।ऐसी स्थिति के अंदर बाद मे पता चला कि गाय के मुंह के नीचे गांठ हो गई है। और उसका उपचार करवाना होगा। उसकी वजह से गाय अधिक भोजन का सेवन नहीं कर रही थी। ऐसी स्थिति के अंदर वह कैसे दूध अधिक दे सकती थी। आप अपनी गाय को अच्छी तरह से देखेंकि उसे किसी भी प्रकार की समस्या तो नहीं है।यदि गाय को कोई बीमारी हो गई है तो उसका ईलाज आपको करवाना होगा तभी उसका दूध बढ़ेगा ।
15.गाय को नजर लगना दूर करना
कई बार क्या होता है कि इंसान की सूक्ष्म मानसिक तरंगों का असर गाय के उपर पड़ जाता है। इसी को नजर लगना कहते हैं। असल मे हर इंसान की नजर नहीं लगती है । वरन कुछ इंसान की ही नजर लग जाती है।यदि गाय को नजर लग गई है तो उसको पहचानने के लक्षण यह हैं कि आप देखें कि वह दूध सही से नहीं दे रही है जबकि उसके थनों के अंदर दूध है। या फिर दूध की जगह पर खून आ रहा है। इस प्रकार की समस्याएं आपको दिखाई देती हैं तो संभव है कि गाय को नजर लग गई हो ।
गाय की नजर को दूर करने का सरल तरीका यही है कि आप किसी तांत्रिक के पास जाएं और अपनी गाय के लिए ताबीज करवाकर लें आएं । उसके बाद उसे गाय के गले के अंदर बांध दें। बस यही आपके लिए काफी फायदेमंद होगा। उसके बाद नजर नहीं लगेगी ।
16.गाय का दूध बढ़ाने का तरीका
दोस्तों गाय का दूध बढ़ाने का यह भी एक अच्छा तरीका है।इसके लिए गेहूं का दलिया लेना है। उसके अंदर पानी डालें और आग मे इसको पका लें । फिर दलिया मे शक्कर डालें फिर दलिया के अंदर 100 ग्राम सरसों का तेल डालें । फिर रोजाना पशु को 50 ग्राम तारामिरा डालें।इसके अलावा पशु को मीठा सोड़ा आप दे सकते हैं। यह पशु के पाचन मे मदद करता है। और इसको रात के समय पशु को देना होता है। इसको देने के बाद पशु को पानी या चारा नहीं देना चाहिए ।
17.गाय की अधिक दूध देने वाली नस्ल को पालें
दोस्तों आपकी गाय कितना दूध देगी । यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप कौनसी नस्ल आप रखते हैं। गाय की कुछ ऐसी नस्ले होती हैं जोकि कम दूध देती हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपकी गाय भी अच्छी मात्रा मे दूध दे तो आपके पास भी अधिक दूध देने वाली नस्ले होनी चाहिए । आइए जानते हैं भारत के अंदर प्रचलित अधिक दूध देने वाली नस्लों के बारे मे ।
Gir Cow
गिर भारत में उत्पन्न होने वाली प्रमुख ज़ेबू नस्लों में से एक है। और इस नस्ल का प्रयोग लाल संधि और साहीवाल के अंदर सुधार के लिए किया जाता है।ब्राजील और अन्य दक्षिण अमेरिकी देशों में गिर का उपयोग किया जाता है। गिर गाय की सबसे खास बात यह है कि यह रोग प्रतिरोधी होती है।यह गर्मतापमान के अंदर आसानी से रह सकती है।इस गाय को अपने दूध उत्पादक गुणों के कारण जाना जाता है।गिर का गोल और गुंबददार माथा होता है।लंबे पेंडुलस कान और सींग जो बाहर और पीछे सर्पिल होते हैं। यह पीले से सफेद रंग की हो सकती है।
गायों का औसत वजन 385 किलोग्राम और ऊंचाई 130 सेमी होती है। और जन्म के समय इनके बछड़ों का जन्म 20 किलो के आस पास होता है। दूध की उपज 1590 किलोग्राम प्रति स्तनपान है, जिसमें भारत में 4.5% वसा पर 3182 किलोग्राम का उत्पादन दर्ज किया गया है।सन 2003 ई की गणना के अनुसार 915 000, की आबादी केवल गुजरात के अंदर थी।
यदि आप देशी नस्ल की गाय को रखना चाहते हैं तो आपके लिए गिर से अच्छी कोई दूसरी नहीं हो सकती है।भोडाली, देसन, गुजराती, काठियावाड़ी, सॉर्टी और सूरती आदि नामों से गिर को ही जाना जाता है।
गुजरात के अमरेली, भावनगर, जूनागढ़ और राजकोट जिले के अंदर यह आसानी से देखने को मिल जाती है।इस नस्ल के भैल काफी सख्त होते हैं और काफी भार को खींचने की क्षमता रखते हैं।यह सभी प्रकार की मिट्टी मे चल सकते हैं।
गिर नस्ल काफी प्रसिद्ध नस्ल है।यह नस्ल विदेशों के अंदर भी काफी प्रसिद्ध है। यह विभिन्न उष्णकटिबंधीय रोगों के लिए प्रतिरोधी है जिसके कारण इसको ब्राजील, अमेरिका, वेनेजुएला और मैक्सिको जैसे देशों द्वारा आयात भी किया गया है।गिर गाय के गुंबद के आकार का सिर और लंबे कान होते हैं।
- गिर नस्ल उच्च गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन करता है। साथ ही दूध में ए-2 बीटा कैसिइन प्रोटीन मौजूद होता है।
- इनका गायों की सबसे बड़ी खास बात यह होती है कि इनको अधिक देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है।
- गिर गायों की औसत आयु 12 से 20 वर्ष तक होती है।
- गिर गायों की प्रजनन दर भी अधिक होती हैं। वे अपने जीवन काल के अंदर औसतन 10 बच्चे पैदा करती हैं।
- नस्ल के पालन के लिए कृत्रिम गर्भाधान को नहीं बल्कि प्राकृतिक संभोग तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है।
- गिर के लिए आवास बनाया जाता है वह कंक्रीट का बना सकते हैं। और उसकी उंचाई 18 फीट होनी चाहिए। जिस स्थान पर पशुओं को बांधा जाता है उसे साफ सुथरा रखना चाहिए ।
- मच्छरों और परजिवियों को पनपने से रोकने के लिए प्रयास करना चाहिए ।
- गिर गायों को ज्वार, बाजरा का भूसा, सूखा चारा, कपास के बीज का केक, सोया भूसी, गुड़ आदि के साथ खिलाया जाना है।लेकिन अधिक मात्रा मे भोजन नहीं खिलाना चाहिए । वरना काफी नुकसान हो सकता है।गाजर, सहजन और सब्जियों को भी गिर गाय को खिला सकते हैं लेकिन भोजन को सूखी जगहों पर संग्रहि किया जाना चाहिए ।और गाय के पास पानी की उचित व्यवस्था होना भी जरूरी होता है।
- शुद्ध गिर गाय के दूध में कैल्शियम, फास्फोरस, समृद्ध वसा, पोटेशियम होता है । जो रक्तचाप को बनाए रखने मे मदद करता है। इसके अलावा गिर गाय के दूध के अंदर खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने की भी क्षमता होती है जो हर्ट रोग से बचाने का कार्य करता है।
- ये गायें रोजाना 12 से 25 लीटर दूध देती हैं। अन्य नस्लों की तुलना में गिर गाय हल्का दूध देती है।
- गिर गाय के दूध का उपयोग कैंसर से लड़ने में किया जाता है। दूध में विटामिन सी और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में प्रोटीन के साथ होता है
- गुजरात में केवल 15 हजार से अधिक गिर गाय ही बची हैं। 1960 में इनकी संख्या लाखों में थी
Sahiwal cow
साहीवाल को भारत की सबसे अच्छी दुधारू पशु नस्ल में से एक माना जाता है। इस गाय का नाम पाकिस्तान के पंजाब के साहीवाल कस्बे से लिया गया है। इस गाय को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे कि “लम्बी बार”, “लोला”, “मोंटगोमेरी”, “मुल्तानी” और “तेली”।
इन नस्ल के प्रजनन पथ पंजाब के फिरोजपुर और अमृतसर जिले और राजस्थान के श्री गंगानगर जिले हैं। पंजाब में फिरोजपुर जिले के फाजिल्का और अबोहर हैं। जहां पर यह शुद्ध नस्ल के रूप मे उपलब्ध है।इन गायों का रंग भूरा और लाल होता है।अच्छी तरह विकसित होने पर यह छोटे सींग के होते हैं।साहिवाल गायों की औसत दुग्ध उपज 2325 किलो ग्राम है। लैक्टेशन उपज 1600 से 2750 किलोग्राम तक होती है।ऑस्ट्रेलिया के अंदर भी इस नस्ल को आयात किया गया था।
साहीवाल की उत्पत्ति शुष्क पंजाब क्षेत्र में हुई जो मध्य पंजाब के साथ स्थित है। उन्हें एक बार “चारवाहा” नामक पेशेवर चरवाहों द्वारा बड़े झुंड में रखा गया था। क्षेत्र में सिंचाई प्रणाली की शुरुआत के साथ, उन्हें क्षेत्र के किसानों द्वारा कम संख्या में रखा जाने लगा था। यह काफी शांत जानवर होने की वजह से और अधिक गर्मी के सहन करने की वजह से इस गाय को अफ्रीका और कैरिबियन में निर्यात किया गया है।हीवाल नस्ल 1950 के दशक की शुरुआत में न्यू गिनी के रास्ते ऑस्ट्रेलिया पहुंची थी। यहां पर इसने दो ऑस्ट्रेलियाई उष्णकटिबंधीय डेयरी नस्लों, ऑस्ट्रेलियाई मिल्किंग ज़ेबू और ऑस्ट्रेलियाई फ्राइज़ियन साहीवाल के विकास में काफी अच्छी भूमिका निभाई थी ।साहीवाल मवेशियों का अब मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया में गोमांस उत्पादन के लिए भी यहां पर इस नस्ल का प्रयोग होता है। केन्या , जमैका , गुयाना , बुरुंडी , सोमालिया , सिएरा लियोन , नाइजीरिया और अफ्रीका के कई पारिस्थितिक क्षेत्रों में भी इस नस्ल का अच्छा विकास हुआ है।
5 सितंबर सन 2019 के अंदर एक छपी खबर के अनुसार एक किसान की इस नस्ल की गाय को 2 लाख के अंदर बेचा था।पंजाब के मुक्तसर जिले और तहसील के राहुरियांवाली गांव के 72 एकड़ के किसान हायर कहते हैं, – इस नस्ल के लिए उन्होंने (एनडीडीबी) पहले यहां अधिकतम 1.50 लाख रुपये दिए थे।
गुरबचन सिंह हेयर ने बताया कि उन्होंने यह गाय 10 साल पहले साहीवाल को 40000 के अंदर खरीदी थी।इस गाय ने एक रानी नाम के बछड़े को जन्म दिया हालांकि इस रानी की मां की मौत एक विशेष प्रकार के थन रोग की वजह से हो गई । अब रानी 5 वी बार गर्भवति है।
- इंटरनेशनल लाइवस्टॉक रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, केन्या में वर्तमान साहीवाल मवेशी 1939 और 1963 के बीच आयात किए गए लगभग 60 बैल और 12 गायों के वंशज हैं।
- आपको बतादें कि केन्या की 80 प्रतिशम भूमी शुष्क है। और यहां पर सूखा पड़ता रहता है।साहीवाल नस्ल इस वातावरण के अनुकूल है। यह काफी दूध देती हैं जिसको केन्या के लोग बेचते भी हैं। वहां की देशी गायें आधा लिटर से अधिक दूध नहीं देती हैं।
- प्रसिद्ध मसाई जातीय समूह प्रति परिवार ज़ेबू और बोरान नामक लगभग 3,000 देशी मवेशियों का पालन-पोषण करते थे । लेकिन अब देशी गायों की नस्लों को कम करके उसकी जगह साहीवाल गायों ने लेली है। यह उनके लिए काफी अच्छी साबित हो रही हैं।
- साहीवाल गायों की वजह से यहां पर रहने वाले लोगों के जीवन के अंदर बड़ा बदलाव आया है।मसाई जनजाति मे एक पुरूष के कई पत्नी होती हैं लेकि अब ऐसा नहीं हो रहा है। अधिक दूध को बेचकर यह लोग काफी पैसा कमा रहे हैं और इसकी मदद से यह अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल के अंदर भेज रहे हैं।
- मसाई मूख्य रूप से दूध और मांस पर निर्भर रहते हैं। साहीवाल से इनको अधिक मांस प्राप्त होता है। जो इनके लिए काफी अच्छा है।
- साहिवाल केन्या की जलवायु के लिए अनुकूलित हो गए हैं। यह आसानी से खुले के अंदर चर लेती हैं और अच्छा दूध देती हैं।
- नारोक शहर से 50 किमी दक्षिण में ओलोलोंगा गांव में दो परिवार के पास 200 से अधिक साहीवाल गायें हैं जिसकी मदद से वे अच्छा पैसा कमा रहे हैं और उनका जीवन स्तर काफी उंचा उठ गया है।
- केन्या मे साहीवाल कुल मान्यता प्राप्त नस्लों का लगभग पांच प्रतिशत है।
- अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान के अनुसार, केन्या में साहीवाल मवेशियों की संख्या 1986 में 2,500 थी। अगले तीस वर्षों में इसकी संख्या बढ़कर कई हजार से अधिक होने का अनुमान है।
- होल्स्टीन, फ्रिसियन, जर्सी, ग्वेर्नसे जैसी गायों को भी यहां पर पालने का प्रयास किया गया लेकिन यह सक्सेस नहीं हो पाई क्योंकि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है और वातावरण के भी अनुकूल नहीं हैं।
- 1980 के दशक की शुरुआत में, केन्याई चरवाहे साहिवाल को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे । कारण यह था कि यह अपनी देशी नस्लों को काफी अधिक पसंद करते थे । उनका मानना था कि नए नस्लें आ जाने के बाद देशी समाप्त हो जाएंगी ।
- साहिवाल की अधिक रोगप्रतिरोधक क्षमता और अधिक सूखा सहन करने की क्षमता की वजह से यह काफी अच्छी है। यह 18 साल तक प्रजनन कर सकती है ।मांस उत्पादन मे भी साहिवाल काफी अच्छी है।
- केन्या के अंदर जितना दूध उत्पादन होता है। उसके 10 फिसदी दूध उत्पादन केवल साहीवाल गायों की वजह से होता है।
- साहिवाल जैसी गाय पिछड़े इलाकें और शुष्क इलाकेां के अंदर काफी अच्छी तरह से सूट होती है। कारण यह है कि यह गाय इसी प्रकार के वातावरण के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है।
Red Sindhi
लाल सिंधी मवेशी सभी ज़ेबू डेयरी नस्लों में सबसे लोकप्रिय हैं । नस्ल पाकिस्तान के सिंध प्रांत में उत्पन्न हुई थी। इस नस्ल को कई जगहों पर रखा जाता है जैसे कि पाकिस्तान , भारत , बांग्लादेश , श्रीलंका आदि ।इस नस्ल को भी दूध उत्पादन के लिए पाला जाता है।गर्मी सहनशीलता, टिक प्रतिरोध, रोग प्रतिरोध, उच्च तापमान पर प्रजनन क्षमता जैसी खास बातें इसके अंदर होती हैं।
भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका आदि जगहों पर यह देखने को मिलती है।लाल सिंधी का रंग गहरे लाल भूरे से लेकर पीले लाल तक होता है, लेकिन आमतौर पर गहरा लाल होता है।इनके बैल गायों की तुलना मे काफी गहरे रंग के होते हैं।
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के अंदर इस गाय का प्रयोग अच्छे दूध उत्पादन और मांस के लिए किया जाता है। इसके क्रास से दूसरे अधिक मांस और दूध उत्पादन करने वाले बछड़े पैदा किये जाते हैं।20वीं सदी के मध्य में कुछ लाल सिंधी गायों को ब्राजील में आयात किया गया था।यह नस्ल प्रतिस्थन पान 1840 से 2600 किलोग्राम तक दूध देती है।
Rathi cow
यह भारत की एक स्वदेशी नस्ल है जिसकी उत्पति राजस्थान के बीकानेर , गंगानगर और हनुमानगढ़ जिले के अंदर हुई थी।इस गाय के बेल का प्रयोग रथ को जोड़ने मे किया जाता था। इसके अलावा गाय की मदद से दूध प्राप्त किया जाता था।रथ की सफेद त्वचा काले या भूरे रंग के धब्बों के साथ होती है जबकि राठी आमतौर पर भूरे रंग की होती है।
यह भारत के गर्म क्षेत्रों के लिए अच्छी तरह से अनुकूल है। कर्नाटक में बेल्लारी, गुलबर्गा, दावणगेरे, सनोदूर और कई अन्य स्थान इस नस्ल के लिए काफी उपयोगी हैं।
माना जाता है कि साहीवाल, लाल सिंधी, थारपारकर और धन्नी नस्लों के साहीवाल रक्त के मिश्रण से राठी मवेशियों का विकास हुआ है।
इस गाय का संबंध राठी नाम की जनजाति से जुड़ा हुआ है।यह नस्ल किसानों के लिए आजीविका का स्त्रोत मानी गई है।जानवर पूरे शरीर पर सफेद धब्बों के साथ भूरे रंग के होते हैं, लेकिन सफेद धब्बों वाले पूरी तरह से भूरे या काले कोट वाले होते हैं।दुग्ध उत्पादन 1062 से 2810 किलोग्राम तक होता है। चयनित गायों ने किसान ने लगभग 4800 किलोग्राम उत्पादन देखा गया है।
सर्द सर्दी, शुष्क मानसून, धूल भरी आंधी और चिलचिलाती गर्मी के अंदर भी यह आसानी से रह सकती हैं। और प्रतिरोधी होने की वजह से रोग कम होते हैं। कुल मिलाकर यह राजस्थान के लिए बहुत अधिक उपयुक्त है।
Ongole cow
यह नस्ल भारत के आंध्रप्रदेश के प्रकाशम जिले से निकली है।ओंगोल मे इसकी उत्पति होने की वजह से इसका नाम भी इसी स्थान के नाम पर रख दिया गया ।यह काफी आक्रमक होते हैं। इनकी ताकत और आक्रामकता के कारण मैक्सिको और पूर्वी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में सांडों की लड़ाई में इस्तेमाल किया जाता है
आंध्र प्रदेश में पारंपरिक सांडों की लड़ाई में भी भाग लेते हैं।इनके बेल को काफी अधिक पसंद किया जाता है और उसको पाला जाता है।
ओंगोल मवेशी अपने बैलों के लिए प्रसिद्ध हैं। परंपरागत रूप से, ओंगोल नस्ल स्थानीय किसानों द्वारा उठाया गया है।ओंगोल बैल अमेरिका , नीदरलैंड , मलेशिया , ब्राजील , अर्जेंटीना , कोलंबिया , मैक्सिको , पराग्वे , इंडोनेशिया , वेस्ट इंडीज , ऑस्ट्रेलिया , फिजी , मॉरीशस , भारत-चीन और फिलीपींस तक आपको देखने को मिलते हैं।
ब्राजील में ओंगोल ऑफ-ब्रीड की आबादी नेलोर के नाम से जानी जाती है।
इस नस्ल की सबसे खास बात यह होती है कि यह उष्णकटिबंधीय गर्मी को सहन कर सकती है। और काफी रोगप्रतिरोधी होती है।ओंगोल काफी भारी नस्ल होती है। इसका वजन लगभग आधा टन होता है।इनकी ऊंचाई 1.7 मीटर होती है और इनके शरीर की लंबाई 1.6 मीटर और परिधि 2 मीटर होती है।
ओंगोल गाय मादा का वजन 432 से 455 किलो तक होता है। दूध की उपज 600 किग्रा से 2518 किग्रा है। स्तनपान की अवधि 279 दिन की होती है। इसका दूध काफी पौष्टिक होता है।जिससे काफी सुडौल बछड़े हो जाते हैं।
1932-1958 के बीच जब सिंचाई के स्त्रोतों की काफी कमी थी तो किसानों ने ओंगोल गायों को पाला और उनके दूध व घी को बेचा । जिससे उनको अच्छी आय हुई ।और अपने खाने योग्य फसलों को भी किसानों ने इस आय की मदद से उगाया ।
फसल पैटर्न में इस बदलाव के साथ, क्षेत्र के गांवों से शहरों तक व्यापार के चैनलों में तेजी से सुधार हुआ। ओंगोल्स दक्षिण भारत में डेयरी क्षमता के साथ दूध को बाजारों के अंदर बेचा जाने लगा ।
Deoni cow
देवनी मसौदा मवेशियों की एक भारतीय गाय की नस्ल है। इसका नाम महाराष्ट्र राज्य के लातूर जिले में देवनी के तालुक के नाम पर रखा गया है, और मुख्य रूप से महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद और परभणी जिलों में देखने को मिलती है। इसके अलावा यह कर्नाटक के अंदर भी देखने को मिलती है।
गिर, डांगी और स्थानीय गायों की मदद से इसको उत्पन्न किया गया है।नस्ल को “सुरती”, “डोंगरपति”, “डोंगरी”, “वनेरा”, “वाघ्यद”, “बालंक्य” और “शेवेरा” के नाम से भी पहचाना जाता है।यह नस्ल देखने मे काले और सफेद रंग की हो सकती हैं। इसक तीन प्रकार के उपभेद होते हैं।
बालंक्य (पूर्ण सफेद), वानेरा (आंशिक काले चेहरे के साथ पूर्ण सफेद) और वाघ्यद (काले और सफेद धब्बेदार)।इनके सिंग छोटे होते हैं जोकि बाहर निकले होते हैं।
कान झुके हुए होते हैं और माथा उभरा हुआ होता है।देवनी की प्रति स्तनपान औसत दूध उपज 868 किलोग्राम होता है। आपको बतादें कि इनके बैल काफी सुडौल होते हैं। और इनके बैलों का इस्तेमाल बोझा को ढोने मे किया जाता है।
इन गायों की त्वचा ढीली और मध्यम मोटाई की होती है। ओसलाप भारी होता है और म्यान आमतौर पर लटकता हुआ होता है।इनके बाल काफी मुलायम होते हैं।गायों के थन काफी विकसित होते हैं।खुर अच्छी तरह से बने और सुडौल और काले रंग के होते हैं।इनका शरीर काफी मजबूत होता है।
Kankrej cow
यह एक भारतिय नस्ल है। और इसकी उत्पति राजस्थान के अंदर हुई है।इसे बन्नई, नगर, तालाबदा, वाघियार, वागड़, वागेद, वधियार, वाधिर, वाधीर और वाडिया जैसे नामों से भी इसको जाना जाता है।पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अंदर भी यह देखने को मिलती है।
इस गाय को दौहरे उदेश्य के लिए रखा जाता है।एक तो इससे दूध प्राप्त किया जाता है। दूसरा इसके बैलों को काम मे लिया जाता है।1870 के अंदर कुछ बैल को ब्राजिल के अंदर भी निर्यात किया गया जिसकी मदद से गुजेरा को बनाया गया ।1977 के अंदर भारत मे इनकी आबादी 465 000 थी। इसके बाद गणना नहीं हुई । वहीं पाकिस्तान के अंदर इनकी आबादी 273 000 थी।
दुसरे नाम | कंकराज 215बनाईनगरतालाबदावाघियारीवागड़ोछेड़ावधियारीवाधियारीवाधिरीवाडियाल |
उद्गम देश | भारतपाकिस्तान |
वितरण | गुजरात , भारतराजस्थान , भारतथारपारकर जिला , सिंध , पाकिस्तान |
प्रयोग करें | दूध, मसौदा |
लक्षण | |
वजन | पुरुष: औसत 531 किग्रा महिला: औसत 431 किग्रा |
कोट | ग्रे, सिल्वर से डार्क |
हॉर्न की स्थिति | दोनों लिंगों में सींग वाले |
ब्राजील में गुजरात के नाम से मशहूर कांकरेज को उस देश में बड़ी संख्या में शुद्ध नस्ल के रूप में रखा गया है। यह नस्ल बुखार , गर्भपात ,संक्रमण , के प्रति बहुत अधिक प्रतिरोधी होने की वजह से यह नस्ल काफी अधिक लोकप्रिय हो गई है। इस नस्ल के अंदर कुबड़ काफी गहरे रंग का होता है।और नर के अंदर मादा की तुलना मे कुबड़ काफी अच्छी तरह से विकसित होता है।इनका माथा चौड़ा होता है । इस नस्ल के कान काफी लटके हुए होते हैं।और सींग काफी लंबे होते हैं। यह गाय औसतन 1738 किलो ग्राम और अधिकतम 1800 किलो दूध देती है।
Tharparkar cattle
पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अंदर इसको उत्पन्न किया गया था।यह एक दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल है जो दूध देने और ड्राफ्ट क्षमता दोनों के लिए जानी जाती है। इसकी त्वचा सफेद और घूसर रंग की होती है।
इस नस्ल का नाम एक जिले के नाम पर रखा गया है।इस जिले में रेत के टीलों के बड़े हिस्से हैं, और पर्याप्त चराई मानसून की बारिश जुलाई से सितंबर के बीच होती है। यह शुष्क मौसम के रूप मे पूरी तरह से अनुकूलित है।
इन जानवरों का लंबा पतला चेहरा, थोड़ा उत्तल माथा, मध्यम आकार के सींग होते हैं।पूंछ का फड़कना काला होता है। उनके पास एक अच्छी तरह से विकसित, दृढ़ कूबड़। और इनके काफी मजबूत पैर होते हैं। वयस्क नर और मादा का वजन क्रमशः 400-500 और 300-380 किलोग्राम तक होता है।
Hariana cattle
यह उत्तरभारत हरियाणा की नस्ल है।यह 10 से 15 लीटर तक दूध देती है।शुद्ध नस्ल 50 लिटर तक दूध दे सकती है लेकिन यह रोगों के प्रति प्रतिरोधी नहीं है। सींग छोटे होते हैं और चेहरा संकरा और लंबा होता है। गायें काफी अच्छी दूध देने वाली होती हैं, और बैल काम में अच्छे होते हैं। । हरियाणा और पूर्वी पंजाब में पाई जाने वाली हरियाना नस्ल, ज़ेबू ( बॉस इंडिकस ) की 75 ज्ञात नस्लों में से एक है ।
Krishna Valley
कृष्णा घाटी एक भारतीय है नस्ल का मसौदा पशु । इसकी उत्पत्ति कृष्णा , घटप्रभा और मालाप्रभा नदियों द्वारा बहाए गए क्षेत्रों में हुई थी । यह एक आधुनिक नस्ल है जिसको 1880 के अंदर हैदराबाद राज्य मे प्रतिबंधित किया गया था। गोंटी नामक एक स्थानीय नस्ल को गिर , कांकरेज और ओंगोल के साथ क्रॉस- ब्रेड किया गया था। जिसके अंदर कृष्णा नदी और दूसरी नदियों के मैदानों की जतुाई करने की क्षमता का विकास किया गया था। सन 1994 ई के अंदर इस गाय की आबादी 650 000 थी लेकिन सन 2012 के अंदर मात्र 1000 रह गई । बागलकोट , बेलगाम और बीजापुर जिलों में । इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में एक नस्ल संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया था।
कृष्णा घाटी भारी मसौदा काम के लिए, कृषि भूमि की जुताई और कपास और गन्ना जैसी फसलों के परिवहन के लिए पैदा हुई थी लेकिन वर्तमान मे इनका प्रयोग तेजी से कम हो रहा है। मशीनों ने जुताई का स्थान लेलिया है तो इनकी संख्या कम हो गई।
Hallikar
यह गाय कर्नाटक के अंदर पैदा हुई थी। और सका नाम हल्लीकर समुदाय से लिया गया है जो परंपरागत रूप से अपने पशु पालन के लिए जाना जाता है।लंबे, ऊर्ध्वाधर और पिछड़े झुकने वाले सींग, पुरुषों में बड़े कूबड़, मध्यम से लंबी ऊंचाई और शरीर के मध्यम आकार, और सफेद से भूरे और काले रंग के रंग इस नस्ल की विशेषताओं के अंदर आते हैं।डाक विभाग ने सन 2000 ई के अंदर इस नस्ल के नाम पर डाक टिकट भी जारी किया था।
Amritmahal
मैसूर में कर्नाटक भारत मे उत्पन्न यह एक नस्ल है।वैसे आपको बतादें कि यह नस्ल दूध देने मे काफी उपयोगी नहीं होती है। लेकिन इनके सींग काफी बड़े होते हैं। और इनका इस्तेमाल युद्धों के अंदर भी किया गया था।अमृत महल मूल रूप से हल्लीकर समुदाय द्वारा पाला गया था जो परंपरागत रूप से पशु पालन और पशुपालन के लिए जाना जाता है।।
हैदर अली ने इन गायों का नाम अमृत महल कर दिया था। इन गायों की मदद से 100 मील की दूरी टिप्पु सुल्तान ने तय की थी।अंग्रेजों ने इनको महीने में पूरे दक्षिण भारत में मार्च करने के लिए इस्तेमाल किया। फिर उन्हें ड्यूक ऑफ वेलिंगटन द्वारा सेना में उपयोग के लिए अपनाया गया ।1867 में मैसूर महाराजा के पास 4000 से अधिक गायें थी और 200 से अधिक बैल इस नस्ल के ही थे ।
Khillari
यह प्रजाति कर्नाटक के सतारा , कोल्हापुर और सांगली में क्षेत्रों महाराष्ट्र और बीजापुर , धारवाड़ और बेलगाम जिलों के अंदर देखने को मिलती है।कृषक इसका प्रयोग करते थे लेकिन इसकी दूध उत्पादन क्षमता अच्छी नहीं होती है।
महाराष्ट्र राज्य के हिलिकर नस्ल के कारण इस नस्ल की उत्पति हुई है।ज्यादातर खिलारी बैल मूल रूप से दक्षिण महाराष्ट्र के सतारा जिले के अंदर देखने को मिलते हैं।
खिलारी साढें पांच फिट लंबा होता है। इसका वजन वजन 350 से 450 किलोग्राम तक होता है। ख़िलारियों का एक लंबा संकीर्ण सिर होता है जिसमें लंबे सींग होते हैं जो पीछे की ओर घूमते हैं और फिर एक विशिष्ट धनुष में ऊपर की ओर होते हैं,और एक अच्छे बिंदु पर टैप होते हैं।
दक्षिणी महाराष्ट्र और सोलापुर, सांगली और सतारा जिलों में, खिलारी गायों को पाला जाता है। किसान इनको अपने घरों के अंदर पालते हैं। और सतपुड़ा पर्वतमाला में थिलारिस नामक प्रजनकों की मदद से प्रजनन करवाया जाता है।यदि आप अधिक दूध वाली गायों के रूप मे इनको देख रहे हैं तो आपको निराश होना पड़ेगा ।
विदेशी गाय की अधिक दूध देने वाली नस्ल भी आप पाल सकते हैं लेकिन यह उतनी अधिक सक्सेस नहीं होती हैं। कारण यह है कि इनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर होती है और गर्मी को भी यह सहन नहीं कर पाती हैं।
यदि आप अधिक दूध की गाय पालने के बारे मे विचार कर रहे हैं तो गिर नस्ल की गाय को आप चुन सकते हैं।यह गाय 50 से 80 लीटर तक दूध देती है। इतने दूध को निकालने के लिए 3 व्यक्तियों की जरूरत होती है। यह गाय वातावरण मे भी काफी अनुकूल है। और गुजरात के अंदर यह काफी अधिक मात्रा मे पाली जाती है। यह गिर जंगलों के अंदर पाई जाने की वजह से इसको गिर गाय के नाम से जाना जाता है।
दूसरी गाय आप साहिवाल चुन सकते हैं। यह देशी नस्ल की गाय है जोकि रोजाना 20 से 30 लीटर तक दूध देती है। और भारत के वातावरण के लिए पूरी तरह से अनुकूल है।
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वाकई कमाल का लेख.. बहुत ही सुन्दर आर्टिकल लिखे हो सर