गरुड़ पुराणअध्याय 3 garud puran adhyay 3 –गरुड उवाच यममार्गमतिक्रम्य गत्वा पापी यमालये। कीदूशीं यातनां भुङ्क्ते तन्मे कथय केशव॥ गरुडजीने कहा-हे केशव! यममार्गकी यात्रा पूरी करके यमके भवनमें जाकर पापी किस प्रकारको यातनाको भोगता है? वह मुझे बतलाइये॥ श्रीभगवानुवाच आद्यन्तं च प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्व विनतात्मज। कथ्यमानेऽपि नरके त्वं भविष्यसि कम्पितः॥ चत्वारिंशद्योजनानि चतुर्युक्तानि काश्यप । बहुभीतिपुरादग्रे धर्मराजपुरं महत्॥
श्री भगवान् बोले — “हे गरुड! मैं (नरकयातनाको) आदि से अंततः तक कहूँगा, सुनो। मेरे द्वारा नरक का वर्णन किया जाने पर (उसे सुनने मात्र से ही) तुम काँप उठोगे॥ हे कश्यपनंदन! बहुत भयावह पुर के आगे चौबीस योजना में फैला हुआ धर्मराज का विशाल पुर है।”
हाहाकारसमायुक्तं दृष्ट्वा क्रन्दति पातकी । तत्क्रन्दनं समाकर्ण्य यमस्य पुरचारिण:॥ ४॥
गत्वा च तत्र ते सर्वे प्रतीहारं वदन्ति हि। धर्मध्वजः प्रतीहारस्तत्र तिष्ठति सर्वदा॥५॥
स गत्वा चित्रगुप्ताय ब्रूते तस्य शुभाशुभम् । ततस्तं चित्रगुप्तोऽपि धर्मराजं निवेदयेत्॥ ६॥
मतलब उस बुरे पुर को देखने के बाद पापी प्राणी क्रन्दन करता है, और यमराज के गण उसके क्रन्दन को सुनते हैं और उसके विषय में धर्मराज के द्वारपाल के पास जाते हैं। वह फिर चित्रगुप्त से उस प्राणी के कर्मों के बारे में बताता है, जिससे उसे निर्णय लेने में मदद मिलती है। धर्मराज को इस विषय में निवेदन कर दिया जाता है।
नास्तिका ये नरास्ताक्ष्य॑ महापापरताः सदा । तांश्च सर्वान् यथायोग्यं सम्यग्जानाति धर्मराट्॥ ७॥
तथापि चित्रगुप्ताय तेषां पापं स पृच्छति। चित्रगुप्तोऽपि सर्वज्ञः श्रवणान् परिपृच्छति॥ ८॥
श्रवणा ब्रह्मणः पुत्राः स्वर्भूपातालचारिणः। दूरश्रवणविज्ञाना दूरदर्शनचक्षुषः॥ ९॥
धर्मराज और चित्रगुप्त दोनों ही न्याय के देवता होते हैं और वे हर एक प्राणी के कर्मों को देखते हैं। नास्तिक और महापापी प्राणियोंके कर्मोंके विषयमें धर्मराज जानते हैं क्योंकि वे उनके अनुभवों और देखा गया साक्षात्कार के माध्यम से सर्वज्ञ होते हैं।
श्रवण ब्रह्माके पुत्र होते हैं और वे ब्रह्मा के द्वारा सृष्टि के समय सृष्टि के लोगों को सभी श्रुति तथा संस्कृति के ज्ञान को समर्पित किया गया था। वे सर्वज्ञ होते हैं और सभी कर्मोंको देख सकते हैं। उन्होंने विविध लोकों के अनुभवों के माध्यम से साक्षात्कार किया है ताकि वे प्राणियोंके कर्मों को देख सकें।
तेषां पत्यस्तथाभूताः श्रवण्यः पृथगाह्वयाः । स्त्रीणां विचेष्टितं सर्व तां विजानन्ति तत्त्वतः॥ नरैः प्रच्छन्नं प्रत्यक्षं यत्प्रोक्तं च कृतं च यत् । सर्वमावेदयन्त्येव चित्रगुप्ताय ते च ताः॥ चारास्ते धर्मराजस्य मनुष्याणां शुभाशुभम् । मनोवाक्कायजं कर्म सर्वं जानन्ति तत्त्वतः॥
श्रवणी नामकी उनकी पृथक्-पृथक् पत्नियाँ भी उसी प्रकारके स्वरूपवाली हैं । और यह आमतौर पर मनुष्य जो छिपककर करता है या फिर जो मनुष्य छुपा कर करता है उसके बारे मे सब श्रवण एवं श्रवणियाँ चित्रगुप्तसे बताते हैं। इस तरह से श्रवण एवं श्रवणियाँ धर्मराज के गुप्तचर के रूप मे जाने जाते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।मतलब यही है कि यह गुप्तचर जो मनुष्यके मानसिक, वाचिक और कायिक-सभी प्रकारके शुभ और अशुभ कमौंको ठीक-ठीक जानते हैं
॥ एवं तेषां शक्तिरस्ति मर्त्यामर्त्याधिकारिणाम् । कथयन्ति नृणां कर्म श्रवणाः सत्यवादिनः॥ ब्रतैदानेश्च सत्योक्त्या यस्तोषयति तान्नरः। भवन्ति तस्य ते सौम्याः स्वर्गमोक्षप्रदायिनः॥ पापिनां पापकर्माणि ज्ञात्वा ते सत्यवादिनः । धर्मराजपुरः प्रोक्ता जायन्ते दुःखदायिनः॥
मनुष्य और देवताओंके अधिकारी वे श्रवण और श्रबणियाँ सत्यवादी हैं। और इनके पास इस तरह की शक्ति होती है जिसकी मदद से वे यमराज को सब कुछ इंसान के कर्मों के बारे मे सत्य बता सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।
व्रत, दान और सत्य वचनसे जो मनुष्य इनको प्रसन्न कर देता है। उसके प्रति यह काफी अच्छा रूख अपना लेते हैं। और पापियों के लिए यह काफी अधिक दुखदाई होते हैं क्योंकि यह सब कुछ पापियों के कर्मों के बारे मे धर्मराज को ऐसे ही बतादेते हैं।
आदित्यचन्द्रावनिलोऽनलश्च द्यौर्भूमिरापो हृदयं यमश्च। अहश्च रात्रिश्च उभे च सन्ध्ये धर्मश्च जानाति नरस्य वृत्तम्॥ धर्मराजश्चित्रगुप्तः श्रवणा भास्करादयः। कायस्थं तत्र पश्यन्ति पापं पुण्यं च सर्वशः॥ एवं सुनिश्चयं कृत्वा पापिनां पातकं यमः। आहूय तन्निजं रूपं दर्शयत्यति भीषणम्॥
सूर्य, चन्द्रमा, वायु, अग्नि, आकाश, भूमि, जल, हृदय, यम, दिन, रात, दोनों संध्याएँ और धर्म इन सब को इंसानों के वृतांत के नाम से जाना जाता है। धर्मराज, चित्रगुप्त, श्रवण और सूर्य आदि मनुष्यके शरीरमें स्थित रहते हैं और यह सभी तरह के पाप और पुण्य को देखने का काम करते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए।
इसके लिए सबसे पहले यम पापियों के बारे मे जानकारी प्राप्त करते हैं और उसके बाद पापियों को काफी भयंकर पीड़ा दी जाती है।
पापिष्ठास्ते प्रपश्यन्ति यमरूपं भयङ्करम्। दण्डहस्तं महाकायं महिषोपरिसंस्थितम्॥ प्रलयाम्बुदनिर्घोषकज्जलाचलसन्निभम् । विद्युत्प्रभायुधैर्भीमं द्वात्रिंशद्भुजसंयुतम्॥ योजनत्रयविस्तारं वापीतुल्यविलोचनम् । दंष्ट्राकरालवदनं रक्ताक्षं दीर्घनासिकम्॥
प्रलय कालीन मेघ के समान आवाज वाले, काजल के पर्वतके समान, बिजली को प्रभावा ले, आयुधोंके कारण भयंकर, बत्तीस भुजाओं वाले, तीन योजनके लम्बे-चौड़े विस्तारवाले, बावली के समान गोल नेत्रवाले, बड़ी-बड़ी दाढ़ोंके कारण भयंकर मुखवाले, लाल-लाल आँखों बाले और लम्बी नाक वाले हैं॥और पापी यम के इस भयंकर रूप को देखकर काफी अधिक परेशान हो जाते हैं।
मृत्युज्चरादिभिर्युक्तश्चित्रगुप्तोऽपि भीषणः । सर्वे दूताश्च गर्जन्ति यमतुल्यास्तदन्तिके॥ तं दृष्ट्वा भयभीतस्तु हा हेति वदते खलः । अदत्तदानः पापात्मा कम्पते क्रन्दते पुनः ततो वदति तान्सर्वान् क्रन्दमानांश्च पापिनः। शोचन्तः स्वानि कर्माणि चित्रगुप्तो यमाज्ञया॥
मृत्यु और ज्वर से पीड़ित पापी लोगों के पास जब यमदूत आते हैं तो उसके बाद पापी लोग यमदूत को देखकर काफी अधिक डरने लग जाते हैं।और दान ना करने वाला पापी कांपता है और बार बार विलाप करता है।उसके बाद चित्रगुप्त पापी प्राणियों के बारे मे यमराज से कहता है
भो भोः पापा दुराचारा अहङ्कारप्रदूषिताः। किमर्थमजितं पापं युष्माभिरविवेकिभिः कामक्रोधाद्युत्पन्नं सङ्गमेन च पापिनाम् । तत्पापं दुःखदं मूढाः किमर्थ चरितं जनाः॥ कृतवन्तः पुरा यूयं पापान्यत्यन्तहर्षिताः। तथैव यातना भोग्याः किमिदानीं पराङ्मुखाः॥
अरे पापियो! दुराचारियो! अहंकारसे दूषितो! तुम अविवेकियोंने क्यों पाप कमाया है ?॥ कामसे,
क्रोध से और पापियों की संगति से तुमने जो पाप किया है वह दुख देने वाला है। हे मूर्खों तुमने यह सब पाप कर्म क्यों किया था।हे मूर्खों तुमने यह पाप कर्म क्यों किया है। हे मूर्खों जिस प्रकार से तुमने हर्ष पूर्वक पाप कर्म किया है उसी प्रकार से तुमको इसका दंड भी भोगना चाहिए ।
कृतानि यानि पापानि युष्माभिः सुबहून्यपि । तानि पापानि दुःखस्य कारणं न वयं जनाः॥ मूर्खेऽपि पण्डिते वापि दरिद्रे वा श्रियान्विते । सबले निर्बले वापि समवर्ती यमः स्मृतः॥ चित्रगुप्तस्येति वाक्यं श्रुत्वा ते पापिनस्तदा । शोचन्तः स्वानि कर्माणि तूष्णीं तिष्ठन्ति निश्चलाः॥
तुम लोगों ने जो बहुत से पाप किये हैं वे पाप की तुम्हारे दुख का सबसे बड़ा कारण है। इसके अंदर हम लोग कुछ नहीं कर सकते हैं। मूर्ख हो या पण्डित, दरिद्र हो या धनवान् और सबल हो या निर्बल-यमराज सभीसे समान व्यवहार करनेवाले कहे गये हैं।इस कथन को सुनने के बाद पापी लोग आसानी से और चुपचाप बैठ जाते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।
धर्मराजोऽपि तान् दृष्ट्वा चोरवन्निश्चलान् स्थितान्। आज्ञापयति पापानां शास्ति चैव यथोचितम्॥ ततस्ते निर्दया दूतास्ताडयित्वा वदन्ति च। गच्छ पापिन् महाघोरान् नरकानतिभीषणान्॥ यमाज्ञाकारिणो दूताः प्रचण्डचण्डकादयः। एकपाशेन तान् बद्ध्वा नयन्ति नरकान् प्रति॥
उसके बाद धर्म राज भी उन चोर की भांति निश्चल बैठे उन पापियों को देखने के बाद उनको दंड देने की आज्ञा प्रदान करने का काम करते हैं।उसके बाद वे निर्दय दूत पापियों को पीटते हुए कहते हैं ऐ पापियों तुमको अब घोर नर्क के अंदर जाना होगा ।उसके बाद उन पापी को पाशे के अंदर बांधकर घोर नर्क के अंदर लेकर जाया जाता है।
तत्र वृक्षो महानेको ज्वलदग्निसमप्रभः। पञ्चयोजनविस्तीर्ण एकयोजनमुच्छ्तिः तद्वृक्षे शृङ्कलैर्बदध्वाऽधोमुखं ताडयन्ति ते । रुदन्ति ज्वलितास्तत्र तेषां त्राता न विद्यते॥ तस्मिन्नेव शाल्मलीवृक्षे लम्बन्तेऽनेकपापिनः। क्षुत्पिपासापरिश्रान्ता यमदूतैश्च ताडिताः॥ क्षमध्वं भोऽपराधं मे कृताञ्जलिपुटा इति। विज्ञापयन्ति तान् दूतान् पापिष्ठास्ते निराश्रयाः॥
उसके बाद आगे कहा गया है कि वहां पर जलती हुई आग के समान एक पेड़ होता है ।वह पांच यौजन के अंदर फैला हुआ है और एक योजन उंचा होता है। उसके बाद पापियों को उस पेड़ के नीचे सांकलों से बांधा जाता है और उसके बाद उनको पीटा जाता है। हाँ जलते हुए वे रोते हैं, (पर वहाँ) उनका कोई रक्षक नहीं होता है। और पीटे जाने और भूख व प्यास की वजह से वे काफी दर्द सहते हैं । और यमदूतों से क्षमा आदि को मांगने का काम करते हैं इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।
पुनः पुनश्च ते तूतैईन्यन्ते लौहयष्टिभिः। मुद्गरैस्तोमरैः कुन्तैर्गदाभिर्मुसलैभृशम्॥ ताडनाच्चैव निश्चेष्टा मूच्छिताश्च भवन्ति ते। तथा निश्चेष्टितान् दृष्ट्वा किङ्करास्ते वदन्ति हि॥
भो भोः पापा दुराचाराः किमर्थ दुष्टचेष्टितम् । सुलभानि न दत्तानि जलान्यन्नान्यपि क्वचित्॥ ४०॥
बार-बार लोहेकी लाठियों, मुद्गरों, भालों, बर्छियों, गदाओं और मूसलोंसे उन दूतोंके द्वारा वे अत्यधिक मारे जाते हैं और इसकी वजह से पापी बेहोश हो जाते हैं। फिर यम के दूत कहते हैं ऐ दुराचारियों तुम पापियों ने सदा सुलभ होने वाले अन्न और जल का दान क्यों नहीं दिया ।
ग्रासाद्धमपि नो दत्तं न श्ववायसयोर्बलिम् । नमस्कृता नातिथयो न कृतं पितृतर्पणम्॥ यमस्य चित्रगुप्तस्य न कृतं ध्यानमुत्तमम् । न जप्तश्च तयोर्मन्त्रो न भवेद्येन यातना॥ नापि किञ्चित्कृतं तीर्थं पूजिता नैव देवताः। गृहाश्रमस्थितेनापि हन्तकारोऽपि नोदधृतः॥
(तुमलोगोंने) आधा ग्रास भी कभी किसीको नहीं दिया और न ही कुत्ते तथा कौए के लिये बलि ही दी । और अतिथियों को नमस्कार नहीं किया पितरों का तर्पण नहीं किया ।यमराज तथा चित्रगुप्तका उत्तम ध्यान भी नहीं किया और उनके मंत्रों का जाप भी नहीं किया जिससे कि तुम्हें यातना नहीं होती ।
कोई तीर्थ यात्रा नहीं कि और कोई भी गृहस्थाश्रममें मे रहते हुए तुमने किसी तरह का कोई भी फायदेमंद कार्य नहीं किया आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सही होगा ।
शुश्रषिताश्च नो सन्तो भुङ्छष्व पापफलं स्वयम् । यतस्त्वं धर्महीनोऽसि ततः संताड्यसे भूशम्॥ क्षमापराधं कुरुते भगवान् हरिरीश्वरः। वयं तु सापराधानां दण्डदा हि तदाज्ञया॥ एवमुक्त्वा च ते दूता निर्दयं ताडयन्ति तान्। ज्वलदङ्कारसदूशाः पतितास्ताडनादधः॥
तुमने संतों की सेवा नहीं की तुम धर्म हीन हो । इसलिए तुमको अधिक पीटा जा रहा है।अपने पापों के फल को भोगो ।भगवान हरि ही तुमको क्षमा करने मे समर्थ हैं और तुमको उनकी आज्ञा से ही पीटा जा रहा है। हम तो बस एक दूत हैं।अधिक पीटे जाने के बाद अंगारों के समान पापी नीचे गिरने लग जाते हैं। उनसे पीटे जानेके कारण वे जलते हुए अंगारके समान नीचे गिर जाते हैं॥
पतनात्तस्य पत्रैश्च गात्रच्छेदो भवेत्ततः। तानधः पतिताञ्शवानो भक्षयन्ति रुदन्ति ते रुदन्तस्ते ततो दूतैर्मुखमापूर्य रेणुभिः। निबद्ध विविधैः पाशै्हन्यन्ते केऽपि मुद्गरैः पापिनः केऽपि भिद्यन्ते क्रकचैः काष्ठवदद्विधा । क्षिण्वा चाऽन्ये धरापृष्ठे कुठारैः खण्डशः कृताः॥
गिरनेसे उस (शाल्मली) वृक्षके पत्तोंसे उनका शरीर कट जाता है । और उसके बाद नीचे गिरे हुए कुछ पापियों को कुत्ते खाते हैं जब वे राते हैं तो उनके मुख के अंदर रेत को भर दिया जाता है।कुछ पापियोंको विविध पाशोंसे बाँधकर मुदगरोंसे पीटते हैं और कुछ पापियों को कुल्हाड़ी से काट दिया जाता है। इस तरह से आप समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सही होगा ।
अर्ध खात्वा5वटे केचिद्धिद्यन्ते मूध्नि सायकेः । अपरे यन्त्रमध्यस्थाः पीड्यन्ते चेक्षुदण्डवत्॥ केचित् प्रज्वलमानैस्तु साङ्घारैः परितो भृशम् । उल्मुकेर्वेष्टयित्वा च ध्मायन्ते लौहपिण्डवत्॥ केचिदघृतमये पाके तैलपाके तथाऽपरे। कटाहे क्षिप्तवटवत्प्रक्षिप्यन्ते यतस्ततः
कुछको गड्ढे में आधा गाड़कर सिर में बाणॉं से भेदन किया जाता है। इसके अलावा कुछ को यंत्र के अंदर डालने के बाद गन्ने की भांति पीसा जाता है।इसके अलावा कुछ को अंगारों से भरे बर्तन के अंदर ढक दिया जाता है और उसके बाद उनके नीचे आग लगाई जाती है। कुछ को घीके खौलते हुए कड़ाहे में, कुछ को तेल के कड़ाहे में तले जाते हुए बड़ेकी भाँति इधर-उधर चलाया जाता है
केचिन्मत्तगजेन्द्राणां क्षिप्यन्ते पुरतः पथ्ि। बद्ध्वा हस्तौ च पादौ च क्रियन्ते केऽप्यधोमुखाः॥ क्षिप्यन्ते केऽपि कूपेषु पात्यन्ते केऽपि पर्वतात्। निमग्नाः कृमिकुण्डेषु तुद्यन्ते कृमिभिः परे॥ चज्रतुण्डैर्महाकाकैर्गुधेरामिषगृध्नुभिः । निष्कृष्यन्ते शिरोदेशे नेत्रे वास्ये च चञ्चुभिः ॥
किसी पापी को हाथी के सामने फेंक दिया जाता है और किसी को हाथ और पैर बांधने के बाद उल्टा लटकाया जाता है।इसके अलावा किसी को कुंए मे फेंका जाता और किसी को पर्वत से गिराया जाता है।इसके अलावा किसी को कीड़ों से युक्त कुंड के अंदर डूबो दिया जाता है।
कुछ (पापी) वज्रके समान चोंचवाले बड़े- बड़े कौओं, गीधों और मांसभोजी पक्षियांद्वारा शिरोदेशमें, नेत्रमें और मुखमें चोचोंसे आघात करके नोंचे जाते हैं
ऋणां वै प््रार्थयन्त्यन्ये देहि देहि धनं मम। यमलोके मया दृष्टो धनं मे भक्षितं त्वया॥
एवं विवदमानानां पापिनां नरकालये। छित्त्वा संदंशकैदूंता मांसखण्डान् ददन्ति च॥
एवं संताड्य तान् दूताः संकृष्य यमशासनात्। तामिस्त्रादिषु घोरेषु क्षिपन्ति नरकेषु च॥
कुछ दूसरे पापियों से ऋणको वापस करनेकी प्रार्थना करते हुए कहते हैं-‘मेरा धन दो, मेरा धन दो। यमलोक में मैंने तुम्हें देख लिया है, मेरा धन तुम्हीं ने लिया है’॥ नरकमें इस प्रकार विवाद करते हैं। और उसके बाद यमदूत संडासियों से उनका मांस नोचते हैं और तामसी आदि घोर नर्क मे उनको फेंक दिया जाता है।
नरका दुःखबहुलास्तत्र वृक्षसमीपतः। तेष्वस्ति यन्महददुःखं तद्वाचामप्यगोचरम्॥
चतुरशीतिलक्षाण नरकाः सन्ति खेचर । तेषां मध्ये घोरतमा धौरेयास्त्वेकविंशतिः॥
उस वृक्षके समीप में ही बहुत दु:खों से परिपूर्ण नरक हैं ,जिसके अंदर प्राप्त करने वाले दुख का वर्णन मुखों से नहीं किया जा सकता है।आकाशचारिन् गरुड! नरकोंकी संख्या चौरासी लाख है, उनमेंसे अत्यन्त भयंकर और प्रमुख नरकों की संख्या इक्कीस है
तामिस्त्रो लोहशंकुश्च महारौरवशाल्मली। रौरवः कुड्मलः कालसूत्रकः पू्तिमृत्तिक
संघातो लोहितोदश्च सविषः संप्रतापनः । महानिरयकाकोलौ सञ्जीवनमहापथौ॥ अवीचिरन्थतामिस्त्रः कुम्भीपाकस्तथैव च । सम्प्रतापननामैकस्तपनस्त्वेकविंशतिः ॥ नानापीडामयाः सर्वे नानाभेदैः प्रकल्पिताः । नानापापविपाकाश्च किङ्करौधैरधिष्ठिताः॥ तामिस्र, लोहशंकु, महारौरव, शाल्मली, रौरव, कुड्मल, कालसूत्रक, पृ्तिमृत्तिक, संघात, लोहितोद, सविष, संप्रतापन, महानिरय, काकोल, संजीवन, महापथ, अवीचि, अन्धतामिस्र, कुम्भीपाक, सम्प्रतापन तथा तपन ये इक्कोस नरक हैं
ये सभी अनेक प्रकारकी यातना ओंसे परिपूर्ण होने के कारण अनेक भेदोंसे परिकल्पित हैं। अनेक प्रकारके पापोंका फल इनमें प्राप्त होता है और ये यमके दूतोंसे अधिष्ठित हैं
एतेषु पतिता मूढाः पापिष्ठा धर्मवर्जिताः। यत्र भुञ्जन्ति कल्पान्तः तास्ता नरकयातनाः॥ यास्तामिस्त्रान्धतामिस्त्ररौरवाद्याश्च यातनाः । भूङ्कते नरो वा नारी वा मिथः सङ्गेन निर्मिताः एवं कुटुम्बं बिभ्राण उदरम्भर एव वा। विसृज्येहोभयं प्रेत्यभुङ्क्ते तत्फलमीदूशम्॥
इस नरक के अंदर गिरे हुए । पानी अधर्मी और अधर्मी नीच जीव कई काल तक नरक की सजाओं को भोगने का काम करते हैं।और यहां पर स्त्री और पुरूष समान रूप से फलों का भोग करते हैं और कुटुंब का भरण पोषण करने वाला या अपना पेट भरने वाला जीव भी अनेक तरह की सजाओं को भोगता है।
एकः प्रपद्यते ध्वान्तं हित्वेदं स्वकलेवरम् । कुशलेतरपाथेयो भूतद्रोहेण यद्भृतम्॥ दैवेनासादितं तस्य शमले निरये पुमान्। भुङ्क्ते कुटुम्बपोषस्य हृतद्रव्य इवातुरः॥
आगे गरूड पुराण के अंदर कहा गया है कि प्राणियों के द्रोह करके भरपोषण किये गए अपने शरीर को यहीं पर छोड़कर पापी नरक के अंदर जाते हैं।इस तरह के पापी नरक के अंदर खूब सजा को भोगने का काम करते है।
केवलेन ह्यधर्मेण कुटुम्बभरणोत्सुकः। याति जीवोऽन्धतामिस्त्रं चरमं तमसः पदम्॥ अधस्तान्नरलोकस्य यावतीर्यातनादयः । क्रमशः समनुक्रम्य पुनरत्रा व्रजेच्छुचिः॥ इति गरुडपुराणे सारोद्धारे यमयातनानिरूपणं नाम तृतीयोऽध्यायः ॥
बुरे तरीके से अपने कुटुंब का भरण पोषण करने वाला व्यक्ति अंधकारको पराकाष्ठा अन्धतामिस्र नामक नरकमें जाता है और वहां पर जितनी भी प्रकार की यातनाएं होती हैं उनका भोग करता है और उसके बाद फिर से धरती पर जन्म लेता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।
गरूड पुराण के 4 वें अध्याय के बारे मे हम आपको बताने वाले हैं तो आइए जानते हैं इसके बारे मे विस्तार से
कैर्गच्छन्ति महामार्गे वैतरण्यां पतन्ति कैः। कैः पापैर्नरके यान्ति तन्मे कथय केशव॥
गरुडजीने कहा–हे केशव! किन पापों के कारण मनुष्य यमलोक के महामार्ग मे जाते हैं और किन पापों के कारण मनुष्य वैतरणी नदी मे गिरते हैं और किन पापों की वजह से मनुष्य नर्क के अंदर जाते हैं इसके बारे मे बताएं
श्रीभगवानुवाच सदैवाकर्मनिरताः शुभकर्मपराङ्मुखाः । नरकान्नरकं यान्ति दुःखाहुुःरख्रं भयाद्भयम्॥
धर्मराजपुरे यान्ति त्रिभिद्वारैस्तु धार्मिकाः । पापास्तु दक्षिणद्वारमार्गेणैव व्रजन्ति तत्॥
श्रीभगवान् बोले सदा पाप कर्म मे लगे प्राणी और शुभ कर्म से विमुख प्राणाली । एक दुख से दूसरे दुख को और एक भय से दूसरे भय को प्राप्त होते हैं।
धार्मिक जन धर्मराजपुर में तीन दिशाओंमें स्थित द्वारों से जाते हैं और पापी पुरुष दक्षिण-द्वारके मार्ग से ही वहां पर आते हैं इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।
अस्मिन्नेव महादुःखे मार्गे वैतरणी नदी। तत्र ये पापिनो यान्ति तानहं कथयामि ते॥
ब्रह्मघ्नाश्च सुरापाश्च गोघ्ना वा बालघातकाः । स्त्रीघाती गर्भपाती च ये च प्रच्छन्नपापिनः॥
ये हरन्ति गुरोर्द्र॑व्यं देवद्रव्यं द्विजस्य वा।स्त्रीद्रव्यहारिणो ये च बालद्रव्यहराश्च ये॥
ये ऋणां न प्रयच्छन्ति ये वै न्यासापहारकाः। विश्वासघातका ये च सविषान्नेन मारकाः॥
दोषग्राही गुणाश्लाधी गुणवत्सु समत्सराः। नीचानुरागिणो मूढाः सत्सङ्गतिपराङ्मुखाः॥
तीर्थसज्जनसत्कर्मगुरुदेवविनिन्दकाः । पुराणवेदमीमांसान्यायवेदान्तदूषकाः ॥
हर्षिता दुःखितं दृष्ट्वा हर्षिते दुःखदायकाः । दुष्टवाक्यस्य वक्तारो दुष्टचित्ताश्च ये सदा॥
और इस दक्षिण मार्ग के अंदर वैतरणी नदी है। इस ओर जो जो महापानी पुरूष जाते हैं उनके बारे मे मैं तुम्हें बताता हूं ।
ब्राह्मणों की हत्या करने वाले , सुरापान करने वाले गोघाती बालहत्यारे और स्त्री की हत्या करने वाले ,गर्भपात करने वाले गुप्त रूप से पाप करने वाले ,गुरू का धन हरण करने वाले ,स्त्रीद्रव्यहारी, बालद्रव्यहारी हैं।
जो ऋण लेकर उसे न लौटानेवाले ,विश्वासघात करने वाले ,धरोहरका का अपहरण करने वाले विषदेकर मार डालने वाले ,दूसरों के देाषों को ग्रहण करने वाले ,गुणों की प्रसंसा ना करने वाले ,गुणवानों से ईर्ष्या रखने वाले ,नीचों की संगति करने वाले ,
मूढ और अच्छी संगति से दूर रहने वाले ।
जो तीर्थो, सज्जनों, सत्क्मो, गुरुजनों और देवताओं की निंदा करने वाले ,पुराण, वेद, मीमांसा, न्याय और वेदान्त को दूषित करने वाले , दुखी इंसान को देखकर प्रसन्न होने वाले ।बुरा बोलने वाले और दूषित चित वाले ।
न शृण्वन्ति हितं वाक्यं शास्त्रवार्ता कदापि न । आत्मसम्भाविताः स्तब्धा मूढाः पण्डितमानिनः ॥
एते चान्ये च बहवः पापिष्ठा धर्मवर्जिताः। गच्छन्ति यममार्गे हि रोदमाना दिवानिशम्॥
यमदूतैस्ताड्यमाना यान्ति वैतरणीं प्रति। तस्यां पतन्ति ये पापास्तानहं कथयामि ते॥
जो हितकर वाक्य और शास्त्री वचन को कभी नहीं सुनने वाले ,अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझने वाले ,घमंडी और मूर्ख और अपने आप को विद्धान समझने वाले और मूर्ख इंसान रात दिन रोते हुए यममार्ग के अंदर चलते हैं।
और इनको यमदूतों के द्धारा काफी अधिक पीटा जाता है और यम मार्ग के अंदर खूब रोते और चिखते रहते हैं।
मातरं येऽवमन्यन्ते पितरं गुरुमेव च । आचार्य चापि पूज्यं च तस्यां मञ्जन्ति ते नराः॥
पतिव्रतां साधुशीलां कुलीनां विनयान्विताम् । स्त्रियं त्यजन्ति ये द्वेषाद्वैतरण्यां पतन्ति ते॥
सतां गुणसहस्त्रेषु दोषानारोपयन्ति ये । तेष्ववज्ञां च कुर्वन्ति वैतरण्यां पतन्ति ते॥
जो माता, पिता, गुरु, आचार्य तथा पूज्यजनों को अपमानित करते हैं और वे वैतरणी नदी के अंदर डूब जाते हैं।जो पुरुष पतिव्रता, सच्चरित्र, उत्तम कुलमें उत्पन्न, विनयसे युक्त स्त्री को छोड़ देते हैं वे वैतरणी नदी के अंदर पड़ते हैं। जो सत्पुरूषों के अंदर दोषारोपण करते हैं वे भी वैतरणी नदी के अंदर पड़ते हैं।
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