‌‌‌यह हैं जमीन के अंदर पानी देखने की 24 ‌‌‌विधियां

‌‌‌इस लेख मे हम बात करेंगे जमीन में पानी देखने के तरीके के बारे मे जब हम कोई नई बोरवेल खादते हैं तो हमारे सामने पहली समस्या यह आती है कि जमीन के नीचे पानी का पता कैसे लगाया जाए ? हालांकि अब इसको समस्या नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि आज बहुत सी वैज्ञानिक और धार्मिक विधियां उपलब्ध हैं। जिनकी मदद से आप जमीन के नीचे पानी का पता आसानी से लगा सकते हैं।

‌‌‌आज भी लोग भले ही कितने ही पढ़े लिख चुके हो लेकिन वे पानी का पता लगाने के लिए प्राचीन विधियों का प्रयोग करते हैं। हालांकि यह कोई गलत नहीं है। प्राचीन विद्वानों ने यह विधियां हमको बताई हैं। बस उन्हीं से सब लोग जमीन के नीचे पानी का पता लगाते आ रहे हैं।

‌‌‌जब हमारे खेत के पास कोई बोरवेल खुदवा रहा था तो वह एक पंड़ित को लेकर आया और उसके बाद पंड़ित ने उसे बताया कि कहां पर पानी जल्दी निकल सकता है और पंड़ित ने उसे यह भी बताया कि पानी कितनी गहराई पर मिलेगा । ‌‌‌और उस पंड़ित की बात सच हुई ।और जमीन के अंदर उसके बताई गहराई मे पानी मिल गया । तो इस तरह की विधियों का सेकड़ौ लोग करते हैं।और आज तक जितने भी कुए और बोरवेल खोदे गए हैं। बस उनमे से कुछ को छोड़ दें तो सारे मे इन्हीं विधियों से पानी का पता लगाया है।

‌‌‌यदि आप भी अपने खेत और घर कहीं पर भी बोरवेल खुदाने की सोच रहे हैं तो जमीन के अंदर पानी का पता लगाने के लिए आपके पास दो तरीके होते हैं। सबसे पहला तरीका होता है कि आप किसी पंड़ित को बुलाएं जो अक्सर इस प्रकार के काम करते हैं।

और दूसरा तरीका यह है कि आप किसी पानी खोज करने वाली संस्था को बुला ‌‌‌सकते हैं। गांवों के अंदर तो अधिकतर लोग पंड़ितों की मदद से ही जमीन के अंदर पानी का पता लगाते हैं। हालांकि आप खुद भी पता लगा सकते हैं। लेकिन यदि एक एक्सपर्ट है तो वह इस काम को और अधिक अच्छे तरीके से करने लग जाएगा ।

‌‌‌इसके अलावा हम आपको यह बताना चाहेंगे कि यदि आप जमीन के नीचे पानी का पता करने की अवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करते हैं तो आपको एक से अधिक विधियों का प्रयेाग करना चाहिए । क्योंकि इससे पानी के सही स्थान पर मिलने की संभावना होती है। और यदि आप वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करते हैं तो ‌‌‌आप किसी एक ही विधि का प्रयोग कर सकते हैं।

‌‌‌कुछ जगहों पर सिक्के की मदद से पानी देखने का दावा किया जाता है।हालांकि इस तरीके के बारे मे यह कहा जाता है कि यह पूरी तरह से फेक है। इसमे तीन सिक्के लिये जाते हैं और दो सिक्कों के बीच मे एक सिक्के को खड़ा कर दिया जाता है। उसके बाद खेत भी घूमा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जहां पर पानी ‌‌‌होता है। वहां पर सिक्का घूमता है। लेकिन असल मे यह फेक है। हम आपको इस तरह की का तरीका यूज मे लेने की सलाह नहीं देंगे ।

Table of Contents

‌‌‌ 1.जमीन के अंदर पानी देखने की विधि एक्सपर्ट को बुलाएं

‌‌‌‌‌‌गुजरात की वॉटर गर्ल का नाम तो आपने सुना ही होगा ‌‌‌। यह एक ऐसी लड़की है जिसकी मदद से लोग अपने खेत मे पानी का पता लगा लेते हैं। एक न्यूज के अनुसार इस लड़की के पेट मे आवाज से पता चलता है कि पानी कहां है। ग्रामिणों के अनुसार जिसको भी टयूबवैल खुदवानी होती है। वह सबसे पहले इसके पास आता है। और उसके बाद इस लड़की को पूरे खेत के अंदर घूमाया जाता है।

‌‌‌जहां पर भी पानी होता है ।लड़की का पेट आश्चर्यजनक रूप से आवाज करने लग जाता है। और उसके बाद किसान इसी जगह पर टयूबवेल लगवा लेते हैं। रमीला नामक इस लड़की के माता पिता इस वजह से काफी परेशान हैं । वे उसे डॉक्टर के पास लेकर भी गए लेकिन डॉक्टरों ने उसकी सारी जांचे की लेकिन बाद मे उन्होंने कहा कि लड़की को कोई परेशानी नहीं है। उसके अंदर से सब कुछ ठीक है। यह बस एक कुदरत का करीश्मा मात्र है।

‌‌‌इसके अलावा भी कुछ लोग आपके आस पास होते हैं।जोकि जमीन के उपर देखकर पानी का पता लगा सकते हैं। क्योंकि उनको इसके बारे मे अच्छी जानकारी होती है । आप उनको बुला सकते हैं।

‌‌‌2. जमीन में पानी देखने की विधि कुल्हड का तरीका

दोस्तों इस तरीके के अंदर आप चार कुल्हड बाजार से खरीद लाएं ।और उसके बाद आपको इनको खेत के अंदर वहां वहां पर रखदेना है । जहां पर आप बोरवेल खुदवाना चाहते हैं। ध्यानदें इनको पानी से भरकर रखना है।उसके बाद इनके पास धूप दीप करना है। यह काम पूर्णिमा को करने के बाद ‌‌‌आप दूसरे दिन सुबह कुल्हड को चैक कर सकते हैं।

जिस कुल्हड के अंदर पानी पुरा भरा हुआ है। इसका मतलब यह है कि वहां पर पानी है और जिसमे आधा भरा हुआ पानी रहे । इसका मतलब यह है कि वहां पर पानी नीचे है। इस तरह से आप पता लगा सकते हैं।

‌‌‌3.नीम गिलोई

‌‌‌नीम गिलोई एक प्रकार की बेल होती है जो पेड़ के उपर चढ़ती है। इसका अधितर प्रयोग आयूर्वेद के अंदर किया जाता है।इसके जड़ के टुकड़े की मदद से पानी देखा जा सकता है। ऐसा लोगों का मानना है। तो इसके लिए आपको सबसे पहले किसी नीम गिलाई की जड़ को लाना होगा ।उसके बाद उसको अपने सिर के उपर बालों मे सही ढंग ‌‌‌रखना होगा ताकि वह नीचे ना गिरे ।‌‌‌उसके बाद आपको उसी दिशा मे चलना होगा जिस दिशा मे सूरज उगा हुआ है।‌‌‌यदि यह जड़ी बूटी आपको चढ़ जाती है तो आपको पानी दिखाई देगा ।

‌‌‌इस जड़ी बूटी की खास बात यह बताई जाती है कि यह हर इंसान के उपर काम नहीं करती है। वरन जिस इंसान को यह चढ़ जाती है। उसे जमीन से भाप निकलती दिखाई देती है और जहां पर अधिक भाप निकलती है वहां पर पानी होता है। जानकार बताते हैं कि यह 80 प्रतिशत मामलो मे सही होता है। 

‌‌‌4.अंडे की मदद से

दोस्तों अंडे की मदद से भी पानी का पता लगाया जा सकता है।‌‌‌प्राप्त जानकारी के अनुसार मुर्गी या उसी तरह का कोई अंडा लिया जाता है । और उसके बाद कुछ मंत्रों का जप करते हुए ।उस अंडे को हथेली पर रख कर आराम से पूरे खेत के अंदर घूमा जाता है। यदि जमीन के नीचे जहां पर भी पानी होगा । वहां पर वह अंड़ा अपने आप ही खड़ा होने लगेगा ।‌‌‌इस विधि का क्या वैज्ञानिक आधार है ? और यह कितनी सही है। इस बारे मे कुछ कहा नहीं जा सकता है।

‌‌‌5. जमीन में पानी देखने के तरीके तांबे की 2 छड़ का प्रयोग Dowsing techniques

किसी भी उपकरण को सार्वभौमिक स्वीकृति नहीं मिली है। साहित्य में पहली बार वर्णित पारंपरिक dowsing डिवाइस आड़ू, विलो, हेज़ेल या विच धुंध, एल से बना कांटा छड़ी है। अन्य उपकरणों का संचालन और गैर-अनुषंगी दोनों सामग्रियों से किया जाता है जैसे: धातु के तार, लकड़ी, प्लास्टिक, आदि। सामग्री डॉजर की पसंद के आधार पर विभिन्न आकृतियों में गढ़ी जाती है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस तरह की सामग्री का उपयोग किया जाता है।

‌‌‌इस तरीके के अंदर तांबे की दो L आकार की छड़ों का प्रयेाग किया जाता है।‌‌‌इसकी लंबाई 14 इंच और मोटाई 8 एमएम होती है। L की लंबाई 8 इंच होती है।‌‌‌इन दोनों तांबे की बनी छड़ को हाथ के अंदर इस प्रकार से लिया जाता है कि यह दोनो अलग अलग रहें । फिर पूरे खेत का भ्रमण किया जाता है।जहां पर भी पानी होता है ।वहां पर यह छड़ एक दूसरे की ओर आकर्षित हो जाती हैं और चिपकने लगती हैं। यह भूमी मे पानी देखने का एक अति प्राचीन तरीका है।

‌‌‌आमतौर पर यह माना जाता है कि यह तांबे की छड़े जमीन के अंदर से निकलने वाली तरंगों के आधार पर काम करती हैं। जहां पर जमीन के नीचे पानी होता है। वहां पर यह काफी प्रभावी ढं से काम करती हैं।

‌‌‌ऐसा माना जाता है कि इस तरीके से जो अनुमान लगाये जाते हैं वे 80 प्रतिशत तक सही होते हैं।

‌‌‌धरती के अंदर कई प्रकार के बल पाए जाते हैं। जिसमे से (ए) गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र। (b) चुंबकीय क्षेत्र। (c) विद्युत क्षेत्र। 6

(d) रेडियोधर्मी क्षेत्र। (e) भूकंपीय क्षेत्र। (१) भूतापीय क्षेत्र। (छ) भू-रासायनिक क्षेत्र यह सब एक डाउजर को प्रभावित कर सकती हैं। और ऐसा माना जाता है कि पानी भी उन छड़ों ‌‌‌को प्रभावित कर सकता है।

‌‌‌6.कोयले का प्रयोग

‌‌‌इस तरीके के अंदर आपको कुछ कोयले का उपयोग करते हुए जमीन के नीचे पानी का पता लगाना होता है।इसमे आपको खेत के अंदर कुछ खास जगहों पर शाम को किसी कागज के उपर  कुछ कोयले रखदेने होते हैं।

‌‌‌उसके बाद दूसरे दिन सुबह आकर आप हर जगह पर रखे हुए कोयलों को चेक करते हैं। जिस जगह पर रखे हुए कोयलों के अंदर सबसे अधिक नमी होती है। वहां पर पानी की संभावना अधिक होती है।

‌‌‌यदि इस विधि की बारे मे बात करें तो मुझे यह पूरी तरह से अव्यवहारिक लग रही है। लेकिन यदि आप ऐसे ही चेक कर रहे हैं तो इसको प्रयोग लेने मे कोई बुराई नहीं है।बाद मे आप दूसरी कई विधियों का प्रयेाग भी कर सकते हैं ताकि आपको विश्वास हो जाएगी कि क्या सही है? और क्या गलत है?

‌‌‌7.मटके का प्रयेाग

‌‌‌जमीन के अंदर पानी का पता करने का यह भी एक काफी अच्छा तरीका है।इसमे कुछ मटकों का प्रयोग किया जाता है।‌‌‌इसमे आप आठ दस मटके कोरे हों ,को ला सकते हैं और उसके बाद उन मटकों को शाम को या दिन मे पानी से भरकर अलग अलग जगह पर रेत मे गाड़ देना है।आप इसके उपर एक निशानी रख सकते हैं ताकि आपको पता चल सके कि आपने मटके कहां पर गाड़े थे ।

‌‌‌अब दूसरे दिन सुबह आपको आना है और जितनी भी जगह पर आपने मटकों को गाड़ा है। उनको खोद कर निकाल लेना है। फिर देखना है कि किस मटके के अंदर कितना पानी है। यदि किसी मटके के अंदर अधिक पानी है तो वहां पर पानी होने की संभावना रहती है।

‌‌‌यह विधि एक वैज्ञानिक तरीके से काम करती है। क्योंकि यदि नीचे पानी उपर होगा तो जमीन के अंदर मटके का पानी बहुत कम जाएगा । लेकिन यदि जमीन के अंदर पानी काफी नीचे होगा तो मटके का पानी तेजी से जमीन सोख लेगी ।‌‌‌हालांकि आपको सिर्फ एक इसी विधि पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए ।

‌‌‌8.दीये जलाने का तरीका

दोस्तों इस तरीके का भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। लेकिन यदि आप यह प्रयोग करना चाहें तो कर सकते हैं। इसके लिए आपको सबसे पहले आपको कुछ उन स्थानों को सलेक्ट करना होगा जहां आपको लगता है कि पानी हो सकता है।उसके बाद आपको वहां पर दिया जलाना होगा । सभी दियों मे तेल डालकर ‌‌‌आप जला सकते हैं।

ध्यान दें दीया केवल तभी जलाना जब हवा बंद हो जाए ।उसके बाद आप देखेंगे कि जो दिया सबसे बाद तक जलता है। वहां पर पानी की संभावना बहुत अधिक होती है। हालांकि इसके कारणों के बारे मे कोई जानकारी नहीं है।

‌‌‌9. Y आकार की लकड़ी का प्रयोग Dowsing techniques

इस तरीके से भी कुछ लोग जमीन के नीचे पानी की तलास करते हैं। इस तरीके के अंदर एक Y आकार की नीम के पेड़ की लकड़ी ली जाती है। और उसके बाद ‌‌‌इस लकड़े के दोनो डंडों को दोनो हाथों के अंदर पकड़ लिया जाता है और एक डंडे को आगे की ओर कर लिया जाता है। उसके बाद पूरे खेत के अंदर चक्कर लगाया जाता है। जहां कहीं पर भी पानी होता है। लकड़ी का बना Y उल्टा होने लगता है।

‌‌‌यह विधि किस तरह से काम करती है। इस बारे मे कुछ कहा नहीं जा सकता है। लेकिन कुछ लोग इस विधि का भी प्रयोग करते हैं। हालांकि यह एक वैकल्पिक विधि ही है। जो अपनी संतुष्टि के लिए की जा सकती है।

‌‌‌10. जमीन के अंदर पानी देखने का सरल तरीका प्लास्टि ‌‌‌क के बर्तन का प्रयोग

इस तरीके के अंदर आपको एक प्लास्टिक का कोई बर्तन लेना है और उसके बाद इस बर्तन के अंदर पानी भरना होगा और उसे हथेली के उपर लेकर अपने पूरे खेत के अंदर घूमना होगा । माना  जाता है कि जिस जगह पर पानी होता है। उस जगह पर प्लास्टिक का बर्तन सबसे अधिक हिलता है।‌‌‌इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। इसमे कुछ कहा नहीं जा सकता है। लेकिन कुछ लोग इस तरीके का भी प्रयोग करते हैं। लेकिन यह अधिक विश्वसनिय तरीका नहीं है।

‌‌‌11. जमीन में पानी देखने की विधि इंजेक्सन शीशी प्रयोग

‌‌‌कुछ लोग जमीन के अंदर पानी की तलास करने का यह तरीका भी प्रयोग मे लेते हैं। इसमे इंजेक्सन की छोटी शीशी का प्रयोग किया जाता है। इसमे पानी भरने के बाद इसके एक छोटा सा धागा बांध दिया जाता है।‌‌‌फिर इस धागे को पकड़ कर पूरे खेत के अंदर घूमा जाता है। जहां कहीं पर भी पानी होता है। वहां पर यह शीशी घूमने लग जाती है।‌‌‌शीशी का पानी होने से घूमने का क्या कनेक्सन इस बारे मे कुछ कहा नहीं जा सकता है। और वैसे भी यह तरीका उतना विश्वसनिय नहीं है। लेकिन बहुत से लोग मकान वैगरह बनवाते समय ऐसा करते हैं।

12.पलाश के पत्ते का प्रयोग

इस विधि के अंदर आपको कुछ पलाश के पत्ते ले आने हैं। और उसके बाद इन पत्तों को खेत के अलग अलग जगह पर रख देना है। जहां पर आपको लगता है कि यहां पर पानी हो सकता है। इन पत्तों के उपर कुछ रेते के ढेले रख दें । ‌‌‌आप इनको शाम को रख सकते हैं।उसके बाद सुबह आकर आपको देखना है कि किस रेत के ढेले पर पानी की बूंदे हैं। यह पानी की बूंदे आपको बताती हैं कि पानी कहां पर है। हालांकि यह तरीका भी कोयले वाले तरीके से अलग नहीं है।‌‌‌किंतु कुछ लोग इस तरीके का भी प्रयोग करते हैं।

13. पानी चेक करने का उपाय नारियल का प्रयोग

‌‌‌खेत मे नारियल की मदद से पानी की खोज कई करते हैं और इस तरीके को कुछ ज्यादा ही अधिक विश्वसनिय माना जाता है।‌‌‌वैसे तो इस विधि को कई तरीकों से किया जाता है। इसके अंदर एक चोकी होती है और उसके उपर एक नारियल रखा जाता है। नारियल को चोकी के उपर रखने से पहले चोकी का शुद्वि करण किया जाता है और उसके बाद कुछ मंत्र जाप भी किये जाते हैं।

‌‌‌नारियल के उपर धागा बांधा जाता है।उसके बाद अगरबति जलाई जाती है। नारियल को अगरबति का धुंआ दिया जाता है। फिर एक इंसान को चोकी के उपर पड़े नारियल के उपर बैठा दिया जाता है।

 और दूसरा इंसान इन अगरबती को लेकर पूरे खेत के अंदर घूमता है।‌‌‌और जहां पर पानी होता है। नारियल अपने आप ही घुमने लगता है।इस तरीके कोई कई न्यूज चैनल वाले भी आजमा चुके हैं। हालांकि उनके अनुसार यह काफी सही है। लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक आधार तो नहीं है।

‌‌‌इसी तरह के एक दूसरे तरीके के अंदर हाथ के उपर एक नारियल रखा जाता है। और उसके बाद उस नारियल को पूरे खेत के अंदर घूमाया जाता है। यदि कहीं पर नारियल सीधा होने लगे तो ऐसा माना जाता है कि वहां पर पानी है।

‌‌‌अब तक हमने आपको जो जमीन के अंदर पानी देखने की विधि  के बारे मे बताया है। वे सभी अवैज्ञानिक हैं। मतलब इन पर कोई भरोशा नहीं किया जा सकता है। लेकिन अब हम आपको कुछ ऐसी वैज्ञानिका विधियों के बारे मे भी नीचे बता रहे हैं। जिनकी मदद से जमीन के नीचे पानी का पता लगाया जाता है।

‌‌‌14. पानी चेक करने का तरीका जमीन के अंदर करंट प्रवाह करके पानी का पता लगाना

‌‌‌भू जल का पता लगाने का सबसे आम तरीका होता है। जमीन का प्रतिरोध चैक करना ।जैसा कि आपको पता ही है कि सूखी जमीन बिजली के मार्ग मे अधिक प्रतिरोध पैदा करेगी। ‌‌‌जबकि गीली जमीन का प्रतिरोध कम होगा । ऐसी स्थिति के अंदर वहां से होकर करंट अधिक बहेगी ।

भूजल का पता लगाने के लिए महंगे उपकरणों का प्रयेाग किया जाता है। लेकिन इसके काम करने का तरीका काफी सरल है।इस तरीके के अंदर ग्राउंड के अंदर दो इलेक्ट्रोड को लगाया जाता है और इसके अंदर करंट फलो को चैक किया जाता है। और उसके बाद ओम के नियम की मदद से प्रतिरोध को भी ‌‌‌चैक ‌‌‌जाता है।

‌‌‌जैसा कि हमने आपको बताया जिस जगह पर पानी होगा वहां पर करंट का मान अलग होगा और जिस जगह पर पानी नहीं होगा वहां पर करंट का मान अलग होगा । जैसे कि आपने दो जगह पर चैक किया एक जगह पर करंट का मान कम है और दूसरी जगह पर अधिक है । ‌‌‌करंट अधिक बहने का मतलब यह है कि वहां का प्रतिरोध कम है और वहां पानी है। यह तरीका इसी सिद्वात पर काम करता है।

15.Earth’s magnetic field

पृथ्वी पर एक प्रकार का चुम्बकिय क्षेत्र विधयमान होता है। जोकि 50,000 गामा (0.5 गॉस) है।हालांकि यह हर जगह पर अलग अलग हो सकता है।चुंबकीय शोर स्तर लगभग 10-30 सेकंड की अवधि में गामा के कुछ दसवें हिस्से में लगभग भिन्न होता है।

इस अल्पकालिक चुंबकीय क्षेत्र के उतार-चढ़ाव के अलावा, एक धीमा उतार-चढ़ाव भी होता है, जिसकी अवधि 5 से 30 मिनट तक की हो सकती है।इस दौरान गामा के उत्सर्जन की उम्मीद होती है।

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के स्थिरीकरण पर पानी भी प्रभाव डालता है।क्षेत्र के चुंबकीय भिन्नता के लिए भूजल की उपस्थिति की संभावना का आकलन करने के लिए क्षेत्र के क्रम में उनके योगदान का ज्ञान महत्वपूर्ण है। आमतौर पर धरती के चुम्बकिये क्षेत्र के अंदर परिवर्तन कई वहजों से हो सकता है जैसे

  • चुंबकीय अमानवीयता, (2) प्रवाह-काटने की क्षमता, (3) स्ट्रीमिंग क्षमता, और (4) पानी की चुंबकीय संवेदनशीलता

‌‌‌इन सब वजहों से हर जगह पर चुम्बकिय क्षेत्र अलग अलग हो जाता है।

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र पर पानी से संबंधित सबसे बड़ा गड़बड़ी जलभृत और आस-पास के नॉनक्वाइफर सामग्री के बीच पारगम्यता के अंतर से उत्पन्न हुई थी। फ्लक्स-कटिंग क्षमता और चुंबकीय संवेदनशीलता द्वारा उत्पादित प्रभाव इतने छोटे थे कि व्यावहारिक रूप से नगण्य थे, जबकि स्ट्रीमिंग क्षमता द्वारा उत्पादित प्रभाव, हालांकि छोटे, आधुनिक उपकरणों द्वारा मापा जा सकता है।

Earth’s magnetic field विधि का प्रयोग अधिकतर भू वैज्ञानिक करते हैं ।

16. जमीन में पानी देखने की विधि संरचनात्मक तरीके

जमीन के नीचे पानी का स्त्रोत पता करने के संरचनात्मक तरीके भी होते हैं। जिनका प्रयेाग आमतौर पर एक भूवेज्ञानिक कर सकता है। जमीन के नीचे अधिक पानी के कुछ संकेत हो सकते हैं। जो वे एकत्रित करके पता लगा सकते हैं कि कहां पर पानी हो सकता है।पहाड़ियों, घाटी की ढलानों और स्थानीय स्कार्पियों के आधार पर या उसके आस-पास होने वाले स्प्रिंग्स पहाड़ी इलाकों पर भूजल घटना के संकेतक हैं। डाइक का स्थान और उनके विश्लेषण करके भू जल का पता लगाया जा सकता है।

‌‌‌17.अन्य पानी के स्त्रोतों का विश्लेषण

उपसतह भूविज्ञान, संरचनाओं, टपका क्षेत्रों, पानी के स्तर में उतार-चढ़ाव और खुले कुओं की भू पर्यावरणिय सैटिंग । यह एक विधि है जिसके अंदर पहले से खुदाए गए कुओं के आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है। और उसके बाद यह तय किया जाता है कि कितनी फुट पर पानी ‌‌‌मौजूद हो सकता है? ‌‌‌इस विधि के अंदर अलग अलग क्षेत्रों की जांच भी की जाती है।यह तरीका वैज्ञानिक होता है। लेकिन सटीकता इसकी उतनी नहीं होती है।

18.मिट्टी और सूक्ष्म जैविक तरीके Soil and Micro-Biological Methods

‌‌‌जमीन के उपर मौजूद वनस्पति भी जमीन के अंदर पानी का स्तर पता लगाने मे काफी सहायक होती हैं।क्योंकि जहां पर पानी उपर होता है वहां वनस्पति के पनपने की संभावना काफी अधिक होती है।

एक सीधी रेखा पर बड़े पेड़ों के संरेखण, दीमक के टीले गहरी जड़ें विरासत वाले पेड़ उथले गहराई पर भूजल की घटना को इंगित कर सकते हैं।हेलोफाइट्स की उपस्थिति, घुलनशील लवण के लिए एक उच्च सहिष्णुता वाले पौधे, और जमीन के उपर बनी सफेद परत यह इंगित करती है कि अंदर खारा पानी है। ज़ेरोफाइट्स जैसे पौधे तो हमे यह बताते हैं कि यहां पर पानी काफी गहराई पर है। क्योंकि यह कम पानी के अंदर होते हैं ।

19.गुरुत्वाकर्षण विधि

ग्रेविमीटर विशिष्ट स्थानों पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का मापक यंत्र है। यह उपकरण गुरुत्वाकर्षण के निरंतर नीचे त्वरण को मापने के सिद्धांत पर काम करता है। यह दो प्रकार का होता है पूर्ण और सापेक्ष। हालांकि इनका प्रयोग जमीन के नीचे पानी का पता लगाने के लिए बहुत कम ही किया जाता है। तलछटी इलाकों में भूजल को नापने के लिए ग्रेवेटीमिटर का प्रयोग किया जा सकता है।

20.भूकंपीय विधि

भूकंपीय विधि के माध्यम से भी जमीन के नीचे पानी का पता लगाया जा सकता है।यह दो प्रकार की होती है। इसमे भूकंपीय अपवर्तन और परावर्तन विधियां। भूकंपी अपवर्तन विधि में पृथ्वी की सतह पर एक छोटे का प्रयोग किया जाता है और आवश्यक चीजों को नापा जाता है।

परिणामी ध्वनि, और वेव को मापा जाता है।यह वेव जमीन के अंदर तक जाती हैं और जहां पर वेव के अंदर परिवर्तन होता है तो वैज्ञानिकों को पता चल जाता है कि अंदर किसी प्रकार का ढांचा है। भूकंपीय लहर का यात्रा समय उस पर निर्भर करता है जिसके माध्यम से वह गुजर रहा है।इन सब आधारों को देखकर वैज्ञानिक आसानी से यह पता लगा लेते हैं कि नीचे के जमीन की संरचना किस प्रकार की हो सकती है। और यह वेव जब पानी से गुजरती है तो भी वैज्ञानिकों को पता चल जाता है।

21.भूकंपीय वेगों की मदद से

जिन लोगों को भूकंपीय वेगों की समझ होती है। वे इनके माध्यम से भी जमीन के नीचे पानी का पता लगा सकते हैं।वेग जलोढ़ या बेडरॉक की प्रकृति की पहचान करने में मदद करते हैं। मोटे जलोढ़ इलाके में, भूकंपीय वेग असंतृप्त से संतृप्त क्षेत्रों तक स्पष्ट रूप से बढ़ जाता है। भूकंपीय विधि में पानी की गहराई का भी पता लगाया जा सकता है। जहां भूगर्भीय स्थिति समान होने पर भूकंपीय वेगों के परिवर्तन और संरचना से जमीन के नीचे पानी होने के संकेत मिल जाते हैं।

22.आइसोटोप विधि

‌‌‌यह विधि काफी उपयोगी मानी जाती है। इसका उपयोग जमीन के नीचे जल प्रवाह का पता लगाने और उसकी आयु का पता लगाने के लिए यह विधि काफी उपयोगी होती है। हम जानते हैं कि जब जमीन के नीचे पानी होता है तो उपर की चटाने नम हो जाती हैं।

‌‌‌यह नम सतह का विश्लेषण कर सकती है।सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले आइसोटोप ट्रिटियम, ड्यूटेरियम, ऑक्सीजन 18 और कार्बन 14. हैं।

23.भूभौतिकीय लॉगिंग तरीका

बोरहोल जियोफिजिकल लॉगिंग एक प्रक्रिया है जिसमें भूगर्भिक संरचनाओं के बारे में पता लगाने के लिए वैज्ञानिक एक कुए के माध्यम से जमीन के अंदर प्रवेश करते हैं।प्राप्त आंकड़ों का उपयोग जमीन के अंदर जल के स्तर का पता लगाने के लिए किया जाता है। गिंग तकनीक दो प्रकार की होती है-

 पहला प्राकृतिक स्रोत का उपयोग और दूसरा उत्तेजित नियंत्रित स्रोत का उपयोग। जियोफिजिकल लॉगिंग तकनीक विभिन्न उपसतह संरचनाओं में कुछ भौतिक मापदंडों के माप का उपयोग करती है। ‌‌‌इसमे कई गुणों जैसे विद्युत चालकता, चुंबकीय संवेदनशीलता, रेडियोधर्मिता और वेग आदि का पता लगाया जाता है।

24.Photogeology

Photogeology एक ऐसा तरीका है जो जमीन के नीचे पानी का पता लगाने मे मदद कर सकता है।यह धरती की भौतिक विशेषताओं , चटानों ,वनस्पतियों ,खनीज और जल संसाधनों के विश्लेषण के लिए काफी उपयोगी है। ‌‌‌विमान या उपग्रह से ली जाने वाली तस्वीरे भूजल के बारे मे जानकारी प्रदान कर सकती हैं। चट्टान और मिट्टी के प्रकारों के बीच अंतर कर सकती है और उनकी पारगम्यता और क्षेत्र वितरण का संकेत कर सकती है। भूजल के पुनर भरण और अच्छे व खराब भू जल का संकेत दे सकती है।

25.रिमोट सेंसिंग तरीके

रिमोट सेंसिंग तरीके धरती के संपर्क मे आए बिना जमीन के नीचे पानी का पता लगा सकती हैं। यह काफी उपयोगी उपकरण होते हैं। ‌‌‌यह उपकरण emitted energy को रिकोर्ड करती हैं

 और इनका विश्लेषण करती हैं।वर्तमान मे इन डिवाइस का प्रयोग काफी तेजी से बढ़ रहा है।रिमोट सेंसिंग डिवाइस लगभग हर प्रकार का डेटा प्रदान करता है जो धरती से संबंधित हैं। जिसकी मदद से  खनिज अन्वेषण, जल संसाधन मूल्यांकन, पर्यावरण निगरानी और भूजल ‌‌‌के लिए उपयुक्त है। Remote sensing techniques की मदद से भूजल के संभावित स्त्रोतों और भूजल के पुनर भरण के बारे मे भी जानकारी हाशिल की जा सकती है।

जमीन के अंदर पानी देखने की विधि तो बहुत सारी और एक से बढ़कर एक वैज्ञानिक विधियां भी मौजूद हैं। लेकिन इसमे परेशानी यह है कि वैज्ञानिक विधियां काफी अधिक महंगी होती हैं। जिनको हर कोई अफोर्ड नहीं कर सकता है। और यही वजह है कि लोग आज भी वैज्ञानिक विधियों के बजाय परम्परागत विधियों की मदद से ‌‌‌जमीन के नीचे पानी का पता लगाते हैं। हालांकि इसमे काफी सफलता मिलती भी है।

‌‌‌जमीन के अंदर पानी देखने के लिए कौनसे तरीके का उपयोग करें

दोस्तों यदि आप जमीन के अंदर पानी देखने के बारे मे सोच रहे हैं तो आपको तंत्र मंत्र की मदद लेनी चाहिए । आपका काम फ्री के अंदर हो जाता है। मिडिया के बातों को ना सुनें । हर धर्म के अंदर तंत्र मंत्र का प्रयोग किया जाता है। आपको बतादें कि ‌‌‌ यह मिडया वाले वे लोग होते हैं जिनको तंत्र का त तक पता नहीं होता है और उसके बाद यह आपको बताने आ जाते हैं कि अंधविश्वास क्या होता है ? यदि किसी ड्राइवर को गाडी के बारे मे पता ही नहीं है और वह आपको ज्ञान देता है तो वह मूर्ख से कुछ अधिक नहीं हो सकता है। ‌‌‌इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । यदि आप समाजिक विज्ञान को विज्ञान से समझनें की कोशिश करेंगे तो असफल हो जाएंगे । तो हर चीज को विज्ञान की द्रष्टि से नहीं समझा जा सकता है। आप इस बात को अच्छी तरह से अपने दिमाग के अंदर बैठा लें । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

‌‌‌यदि कोई मिडिया वाला चिल्ला रहा है तो उसको इस तरह के ऐजेंडा चलाने के पैसे मिलते हैं। आपको इसके बारे मे पता होना चाहिए । जो तंत्र मंत्र का ज्ञान रखता है यदि आप उससे इन सब चीजों के बारे मे पूछेंगे तो वह आपको सही बताएगा । जो डॉक्टर है ही नहीं और आप उसको दवा के बारे मे पूछ रहे हैं तो आप तो ‌‌‌ आप तो मूर्ख हैं ही और बताने वाला आपसे भी बड़ा मूर्ख है। तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं आपको क्या कहना चाहता हूं । आप किसी मौलवी के पास जा सकते हैं वह भी आपको सब कुछ सही सही बतादेगा ।

‌‌‌उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे विचार पसंद आएग होंगे । यदि आपका कोई सवाल है तो आप हमें बता सकते है। हम आपके सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे ।

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This post was last modified on January 16, 2023

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