कजरी वन कहां पर पड़ता है – kajari van kahan per hai कजरी वन (Kajri Van) उत्तर प्रदेश राज्य के बागपत जिले में स्थित है। इसे कजरौली वन या कजरौवा वन के नाम से भी जाना जाता है।
वैसे आपको बतादें कि कावड़ियों का नाम तो आपने सुना ही होगा । असल मे कावड़िये भोलेनाथ के भगत होते हैं और यह दूर दूर से जल लेकर जाते हैं और भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के उपर जलभिषेक करते हैं। कावड़ यात्रा भारत में हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध त्योहार है जो श्रावण मास के दूसरे सप्ताह में मनाया जाता है। इस त्योहार में लाखों श्रद्धालु भक्त हरिद्वार, गंगोत्री और यमुनोत्री आदि स्थानों से जल लेकर जाते हं।
असल मे यह सब भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। अब आप भला यह पूछेंगे कि कजरी वन से कावड़ियों का क्या संबंध तो आपको बतादें कि भगवान पशुराम के बारे मे यह कहा जाता है कि वे एक प्रकार के कावड़िये थे । और पहला जल्अभिषेक उन्होंने ही किया था और उनसे ही यह कावड़ यात्रा शूरू हुई थी।
परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि कजरी वन में अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहते थे । और कहा जाता है कि वहीं का एक बलशाली राजा हुआ करता था । उसका नाम सहस्त्रबहु था । एक बार उसका परशुराम के पिता के आश्रम मे आना हुआ । और ऋषि ने राजा के सभी सेनिकों की अच्छी तरह से सेवा की लेकिन बाद मे राजा को यह पता चला कि जमदग्नि के पास एक इस तरह की कामधेनु गाय है जिससे यदि आप कुछ भी मांगते हैं तो वह आपको देदेती है। तो राजा ने लालच मे आकर जमदग्नि से वह कामधेनु मांगी । लेकिन जमदग्नि ने उसको देने से मना कर दिया ।
जिसकी वजह से राजा काफी अधिक क्रोधित हो गया । उसके बाद राजा ने जमदग्नि की हत्या करदी और उसके बाद वह कामधेनू लेकर चला गया । उसके बाद जब इसकी जानकारी परशुराम को मिली तो वह काफी अधिक क्रोधित हो गया तो फिर परशुराम ने सहस्त्रबहु को मार दिया और अपने पिता की मौत का बदला लेलिया । फिर अपने पिता को फिर से जीवित कर लिया ।
उसके बाद पिता ने कहा कि परशुराम को प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव की पूजा करें । उसके बाद परशुराम ने कजरी वन के अंदर शिवलिंग की स्थापना की और वहां पर जलअभिषेक किया । इस तरह से दोस्तों अब वहां पर जलाभिषेक करने के लिए कावड़ यात्रा की जाती है।
गांव के लोग मानते हैं सत्य को
दोस्तों आपको बतादें कि कजरी वन के पास या वहीं पर पुरामहादेव गांव (Pura Mahadev Village) है और वहां पर आज भी लोग मानते हैं कि कामधेनु गाय होती है और वह स्वर्ग के अंदर निवास करती है। जिसकी वजह से वहां पर गायों की पूजा की जाती है। और सब तरह से वहां पर गांव के लोग दूध और दही से सम्पन्न रहते हैं।
यह कामधेनु गाय समुद्र मंथन के दौरान बंद हुए 14 रत्नों में से एक थी।और आपको यह भी बतादें कि सैंकड़ों किलोमीटर से चलकर शिवभगत इसी गांव मे आते हैं और वहां पर शिवलिंग पर जल को चढ़ाने का काम करते हैं और अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए आते हैं।
जब राक्षसी राजा उठाकर ले गया था परशुराम की मां को kajari van kahan per hai
कहा जाता है कि सहस्त्राबहु राजा जब कामधेनु गाय को लेकर गया था तो वह परशुराम की मां को भी उठाकर ले गया । उसके बाद कुछ समय रखने के बाद फिर से सहस्त्राबहु ने उसको छोड़ दिया लेकिन परशुराम के पिता ने उसको नहीं स्वीकारा और अपने पुत्रों से कहा कि उसका वध करदे लेकिन बाकि पुत्र तो ऐसा नहीं करसके लेकिन परशुराम ने प्रतीज्ञा की तो उसे अपनी मां का वध करना पड़ा ।
उसके बाद जब परशुराम ने अपनी माता का वध कर दिया तो उनको बहुत अधिक पछतावा हुआ तो उन्होंने भगवान शिव की आराधना की और फिर से अपनी माता को जीवित कर लिया । इस तरह से इस कहानी की वहां पर बहुत अधिक मान्यता है ।
लंडोरा की रानी रानी ने बनाया था मंदिर
दोस्तों कहा जाता है कि परशुराम जब धरती पर थे तो उसको काफी अधिक साल बीत चुके हैं। और इसकी वजह से वहां जो शिवलिंग था वह जमीन के अंदर दब चुका था । और कहा जाता है कि एक बार लंडोरा की रानी यहां पर घूमने के लिए आई तो हाथी टीले के पास आकर रूक गया लेकिन वह आगे नहीं बढ़ा उसको आगे बढ़ाने के लिए काफी कुछ किया गया लेकिन वह टस का मस नहीं हुआ ।
उसके बाद यह कहा जाता है कि रानी ने वहां पर खुदाई करवाई तो वहां पर एक प्राचीन शिवलिंग मिला और उसके बाद उस शिवलिंग की आज भी पूजा की जाती है। और यहां पर आज एक सुंदर मंदिर का निर्माण कर दिया गया है।
आपको बतादें कि लंडोरा की रानी भारत के राजस्थान राज्य के बीकानेर जिले में स्थित लंडोरा गाँव से जुड़ी हुई एक प्रसिद्ध कहानी है।और कहा जाता है कि रानी के कोई पुत्र नहीं थे जो होते थे वे मर जाते थे हालांकि बाद मे किसी संत की कृपा से रानी की समस्या का हल निकला । उसने भगवान शिव की पूजा की थी।
वन की शिवरात्रि पर यहां पर लाखों कांवड़ियां श्रद्धालु मंदिर में पहुंचकर भगवान शिव पर गंगाजल से जलाभिषेक करते हैं। और यहां पर सुबह तीन बजे से ही भगतों की लाइन लग जाती है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । दोस्तों भगवान शिव की पूजा करने से भगत गण मनोवांछित फल को प्राप्त करने का काम करते हैं। यदि आप भी भगवान शिव के भगत हैं तो आपको इसके बारे मे पता होना होगा और आप इस बात को समझ सकते हैं।
दोस्तों भगवान शिव की पूजा से जिस प्रकार से परशुराम की माता को जीवनदान मिला है। उसी प्रकार से भगत गण इस बात को मानते हैं कि उनकी पूजा करने से हम सभी का कल्याण हो सकता है और इसकी वजह से पूजा करना काफी अधिक जरूरी हो जाता है।
कजरी वन कहां पर पड़ता है ? उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेखपसंद आया होगा । यदि आपका कोई सवाल है तो आप हमें यहां पर बता सकते हैं। और हम आपके सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे ।
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