कर्म का सिद्धांत हिंदु धर्म मे चलता है लेकिन हमे नहीं पता कि कर्म कितने प्रकार के होते हैं karam ke prakar होते है ? यदि आप अध्यात्म की तरफ जाना चाहते हैं तो आपको कर्म के बारे मे समझना ।दोस्तों कर्म का नाम तो आपने सुना ही होगा ।लेकिन इस कर्म शब्द को लेकर बहुत बड़ी समस्याएं हैं। आज भी आपको किसी भी वेबसाइट के उपर कर्म की वैज्ञानिका व्याख्या नहीं मिलेगी । सब जगह पर यह लिखा हुआ मिलेगा कि हम कर्म करते हैं , और हमारे लिए कर्म करना जरूरी है।यह बात सच है कि हम कर्म किये बिना नहीं रह सकते हैं।क्योंकि एक जीव को जीवन चलाने के लिए कर्म करने की आवश्यकता होती है।
भगवान क्रष्ण ने कहा था कि मनुष्य कर्म योनी है। और उन्हें कर्म करने का अधिकार है और इसी लिए तो देवता भी इस योनी के लिए तरसते हैं।
अब आप यह सोच सकते हैं कि देवता भला मनुष्य योनी के लिए क्यों तरसेंगे ? तो इसका कारण यह है कि वे खुद के कार्मिक ढांचे मे यहां आकर ही बदलाव कर सकते हैं। आपके पास शरीर है आप कर्मों के अंदर बदलाव कर सकते हैं।
खैर सबसे पहले आपको हम बतादें कि कर्म का मतलब सूचना से होता है। जो आप देख रहे हैं या जो आप सुन रहे हैं या जो सूचना आपके दिमाग तक पहुंच रही है वह कर्म ही है। कर्म एक डेटा होता है। और यह सिग्नल हमारे दिमाग मे सेव होता है। आपको यह बतादें कि जब भगवान क्रष्ण कहते हैं कि संचित कर्म नष्ट नहीं होते हैं तो इसका अर्थ उन सिग्नल से है उस डेटा से है जो आपके विचार हैं या दूसरे कार्य हैं।जब हम मर जाते हैं तो यही सूचनाएं हमारे साथ रहती हैं यही हमारे कर्म हैं। और विज्ञान यह बात सिद्ध कर चुका है कि बोली हूई आवाज कभी नष्ट नहीं होते हैं तो हमारे दिमाग के अंदर पड़ी हुई वही आवाज कैसे नष्ट हो सकती है ?
जब हम मर जाते हैं तो यह कचरा हमारे साथ जुड़ जाता है।यह सारी वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसमे कोई चमत्कार ना समझे । और इसी कचरे को हम फालतू के अंदर तब तक मूर्खों की तरह ढोते रहते हैं जब तक दूसरा शरीर नहीं मिल जाता है। इस दुनिया मे ऐसे बहुत से मूर्ख मौजूद हैं जो इसी कचरों को खुद का होना मानते हैं।लेकिन इस कचरे के अलग होने के बाद जो कुछ बचता है वही आपका असली स्वरूप होता है।जहां पर पाप पुण्य और कुछ भी नहीं होता है। आपकी पहचान वहां पर नष्ट हो जाती है।
तो आपके दिमाग मे जो कुछ पड़ा है वह आपका कर्म ही है।हां यह अलग बात है कि उनमे से कुछ कर्मों का आपको फल मिल चुका होता है और उनमे से कुछ कर्मों का फल नहीं मिला होता है। आप कर्म की वैज्ञानिकता को समझ ही चुके होंगे ।
जो योगी लोग होते हैं उनके कर्म दिव्य होते हैं। मतलब कि वे निष्काम कर्म करते हैं। इस प्रकार के कर्मों का फल हमे नहीं भुगतना पड़ता है। जब हम कहते हैं कि मैं कर रहा हूं तो हम अनजाने मे कर्म बंधन मे फंस जाते हैं जबकि आप एक उर्जा हैं आप कर्म नहीं कर सकते । कर्म प्रक्रति की वजह से होता है।
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कर्म के प्रकार संचय के आधार पर संचित कर्म
संचति कर्म का मतलब है जो आपने संचित कर लिए हैं।आपके पास अनेक प्रकार के संचित कर्म हो चुके हैं। आप जो कुछ भी कर चुके हैं वह आपका संचित कर्म ही है। संचित कर्म बहुत अधिक होते हैं। याद रखना चाहिए कि संचित कर्म प्रारब्ध नहीं है। संचित कर्म मे सिर्फ वेही कर्म आते हैं ,जो आपने इस जन्म मे किये हैं । कुल मिलाकर यदि हम वैज्ञानिक भाषा के अंदर कहें तो वे सारे कार्य संचित कर्म हैं जो आपने किये । जैसे खाना पिना ,रोना ,खैलना।
वैसे देखा जाए तो संचित कर्म के अंदर 3 प्रकार कर्म आते हैं। पहला वे कर्म आते हैं जिनका फल मिल चुका है। लेकिन उनकी सूचना आपके अंदर सेव है। जैसे आपने आम खाया और आपको स्वाद मिल गया तो यह एक कर्म की क्रिया प्रतिक्रिया पूर्ण हूई।
दूसरा संचित कर्म वह होता है जो आपने किया लेकिन अभी तक आपको उसका फल नहीं मिला है। जैसे आपने खेत जोता और आप खेत मे अच्छे अनाज की उम्मीद कर रहे हैं। इस कर्म का आपको फल नहीं मिला है।
तीसरा कर्म वह होता है जो आप करते तो हैं लेकिन उसके फल की चिंता आप नहीं करते हैं। आपको उसके फल से कोई मतलब नहीं होता है। इस प्रकार का कर्म हम बहुत ही कम लोग करते हैं। इन कर्मों को आमतौर पर दिव्य कर्म कह सकते हैं। संचित कर्म मे वे सभी आते हैं जो आप अपने कान ,नाक और मुंह व आंख और स्पर्श से एकत्रित कर रहे हैं।
प्रारब्ध कर्म
प्रारब्ध कर्म को ही भाग्य कहा जाता है।आपको यह पता होना चाहिए कि आप जो इस जीवन मे कर्म कर रहे हैं वे प्रारब्ध कर्म नहीं कहलाते हैं जब तक की जीवन है।प्रारब्ध कर्म का मतलब है वे सूचनाएं जो आपने पूर्व जन्म के अंदर एकत्रित की थी। असल मे प्रारब्ध कर्म मे सूचनाओं की तीव्रता आपके इस जन्म को प्रभावित करती है।
इस संबंध मे आपको समाने भी कई दिलचस्प पहलू समाने आए होंगे ।यदि आपने कभी गौर किया होगा तो कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनके जीवन की दिशा रियल लाइफ मे कुछ अलग ही होती है लेकिन उसके बाद भी वे अलग ही दिशा मे पहुंच जाते हैं।
इस संबंध मे एक व्यक्ति ने लिखा कि उसके घर के अंदर किसी भी इंसान को डांस का शौक नहीं था लेकिन उसे यह शौक बचपन से ही था और आज वह एक अच्छा डांसर है। इसी प्रकार से हमारे घर मे भी लिखने का शौक नहीं था और ना ही इस प्रकार का कोई माहौल था लेकिन उसके बाद भी मैं अपनी इंनियरिंग को किनारे करके लिखने लगा ? इस तरह की सैकड़ों घटनाएं होती हैं।यदि आपने गौर किया हो तो कुछ चीजें हमे अच्छी लगती हैं वे काम अचानक से हमे अच्छे लगते हैं जिनको हमारे पड़ोसी तक ने नहीं किया हो।इसके पीछे का कारण होता है प्रारब्ध कर्म ।
हमारे किसी जन्म के अंदर हम जिस चीज के अधिक शौकिन रहे हो उसका प्रभाव हमारे इस जन्म पर भी पड़ता है। जैसे पिछले जन्म मे हम डांस के शौकिन थे तो इस जन्म मे भी समय आने पर हमे डांस का नशा चढ़ेगा । तो इस प्रकार से इंसान का प्रारब्ध कर्म उसे प्रभावित करता है।
इस संबंध मे कई बुक लिख चुके डॉ ब्रायन वीज ने अपने पूर्व जन्म के बारे मे लिखा था कि वे पहले जन्म के अंदर एक सीजेक फाईटर था जिसको 1942 ई मे मार दिया गया था। और इस प्रकार से उनकी अकाल मौत हो गई थी। और उसके बाद उन्होंने डॉर्थी वीज के पुत्र के रूप मे जन्म लिया था। और पीछले कई जन्म मे वे एक पादरी के रूप मे थे ।और उन्होंने उन माता पिता को चुना जो उनकी वासनाओं की पूर्ति कर सकते थे । खैर यहां पर आप यह देख सकते हैं की प्रारब्ध कर्म की वजह से ही तो डॉ ब्रायन वीज ने जन्म लिया।
आज आप जो कर्म करते हैं आपको उनके फल मिल जाते हैं तो उनके अंदर उतनी तीव्रता नहीं रहती है लेकिन जो कर्म आप करते हैं और आपको उनके फल नहीं मिलते हैं तो उनकी तीव्रता आपके अंदर रहती है और इस तीव्रता की वजह से आपको दुबारा जन्म भी लेना पड़ता है।
इस संबंध मे हम सुक्ष्म जगत के अनुभवों की बात करे तो वह भी यही कहते हैं।मैंने कई प्रेत आत्माओं के अनुभवों को जाना तो पता चलता कि उनको वे कर्म अधिक परेशान करते हैं जो संचित हो चुके हैं और तीव्र हैं। जैसे कि कुछ प्रेतों ने बताया कि वे एक लड़की को पसंद करते हैं इस वजह से उन्होंने इस लड़की को अपनी पत्नी बनाकर रखा हुआ है। इस प्रकार के प्रेतों की वासनाएं या कर्म का ढांचा कमजोर होता है तो उसके बाद वे अपनी वासनाओं की पूर्ति के लिए शरीर धारण कर लेते हैं। तो आप समझ सकते हैं कि प्रारब्ध कर्म किस तरह से काम करता है।
इस संबंध मे आपको जॉर्ज नामक एक व्यक्ति के प्रारब्ध कर्म की घटना बताना चाहता हूं ।जॉर्ज बहुत ही घटिया इंसान था और अपने पत्नी और बच्चों के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार करता था।एक दिन उसको एक मनोवैज्ञानिक के पास लाया गया । उसे जब एक पीछले जन्म मे लेकर जाया गया तो उसने देखा कि वह एक सराय का प्रबंधक है।और एक जर्मन नागरिक है। और वह एक कमरे के अंदर लेटा हुआ है जो दूसरी मंजिल पर बना हुआ है। अब वह 70 साल का बूढ़ा हो चुका है। कुछ समय पहले वह जवान था लेकिन अब उसका शरीर कमजोर हो चुका है और कपड़े गंदे हो चुके हैं। पहले मैं बहुत अधिक शक्तिशाली व्यक्ति हुआ करता था लेकिन अब बहुत कमजोर हो चुका हूं । मेरी पंसलिया पतली हो चुकी हैं और अब उठने तक की शक्ति नहीं बची है।
मेरे घर वाले मेरे आस पास ही मौजूद हैं ।मैं उनके साथ बहुत ही बुरा व्यवहार करता हूं और मैंने लगातार उनका अपमान किया है। मैं काफी अधिक शराब पीता हूं ।मैंने इस जीवन के अंदर कई गलत काम किये । मैं शराब पीकर अनेक महिलाओं के साथ संबंध बनाए और जब भी गुस्सा आता अपने पत्नी और बच्चों की पिटाई करता था।
उस समय मुझे हार्ट अटैक भी आया था लेकिन मेरी पत्नी और बच्चो ने मेरा पुरा साथ दिया लेकिन अभी भी मैं उनको मारना चाह रहा था। जार्ज के इस जन्म मे उसकी पत्नी उस जन्म मे उसकी पुत्र थी। और इस जन्म की पुत्री उसकी पत्नी थी।
आपको यह बतादें कि इस प्रकार के परिवर्तन बहुत ही आम होते हैं।ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक ही परिवार के लोग एक साथ ही जन्म लेने की कोशिश करते हैं।
जार्ज स्वयं अपनी देखभाल नहीं कर सकता था और उसका शरीर पूरी तरह से जर्जर हो चुका था। लेकिन उसके परिवार के लोग बिना किसी शिकायत के उसकी सेवा कर रहे थे । तो अंत मे उसने हार मान ली और जार्ज की मौत हो गई।
यह जार्ज का इस जन्म का पूर्व जन्म था।उसके बाद उसे एक और पूर्व जन्म के अंदर लेकर जाया गया । उसने देखा कि वह एक 17 साल का सैनिक था और प्रथम विश्व युद्ध मे फ्रांस की तरफ से लड़ रहा था। तो बम धमाके के अंदर उसका एक हाथ उड़ गया । इस समय वह काफी तेजी से चिल्लाने लगा कुछ ही समय मे उसने देखा कि उसका शरीर जमीन पर पड़ा हुआ है और वह हवा के अंदर तैर रहा है।इस अवस्था मे उसने अपने जीवन को भी देखा जिसमे वह एक 10 साल का बालक था और उसके माता पिता उसे बहुत अधिक प्यार करते थे ।और उसकी एक छोटी बहन भी थी और उसके खेत मे कई घोड़े भी थे ।
उसके बाद जार्ज के एक अन्य जन्म को भी देखा गया । इस जन्म मे वह जापान मे था और एक समलैंगिक पुरूष था। यह बाद 19 वीं शताब्दी के उतरार्ध की है। जार्ज ने कहा कि वह एक ऐसे युवक से प्रेम कर बैठा था जो समलैंगिक नहीं था और उम्र मे भी छोटा था।पहले तो जार्ज ने उसे पाने का प्रयास किया लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे छल से पाने का प्रयास किया उस लड़के को शराब पिलाई गई और उसके बाद बेहोशी मे उसके साथ संबंध बनाए गए ।
इस घटना की वजह से वह जवान काफी शर्मिंदा हो गया और उस समय समलैंगिकता काफी निर्दय माना जाता था ।उसके बाद उस युवक ने जार्ज से बदला लेने का प्रयास किया और अगली बार जब वह जार्ज से मिला तो एक चाकू जार्ज के सिने मे उतार दिया। जार्ज दुबला पतला होने की वजह से इसका वार सहन नहीं कर पाय और मर गया ।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इसी वजह से जार्ज को हार्ट अटैक आया था। खैर उसके हर्ट की समस्या इसी वजह से थी। तो चाकू का लगना जार्ज का एक प्रारब्ध कर्म बन चुका था।यदि हम रियल आत्माओं के जगत को देखें तो जो लोग सुसाइड करके मर जाते हैं तो उसके सूक्ष्म शरीर को कई बार नुकसान होता है और वे बोंल नहीं पाते हैं। उनकी आत्माएं बाद मे गूंगी पैदा होती हैं।
मुझे लगता है कि आप प्रराब्ध कर्म को समझ चुके होंगे ।आज से पूर्व जितने भी जन्म हमने लिये हैं वे सारे प्रारब्ध कर्म के रूप मे हमारे अंदर पड़े हैं और हम चाहे तो उनको देख सकते हैं लेकिन इसके लिए आपको समाधी तक पहुंचना होगा ।
क्रियमाण कर्म
क्रियमाण कर्म का मतलब है जो हो रहा है।क्रियमाण कर्म के अंदर वह सारे कर्म शामिल होते हैं जो अब हो रहे हैं। जैसे आपका पढ़ना आपका खेलना या रोना या कुछ और करना । हर्ट का धड़कना भी इसी के अंदर आता है क्रियमाण कर्म वर्तमान का हिस्सा है और वह भी अभी का हिस्सा होता है।
हमने आपको 3 प्रकार के कर्म उपर बताए यह काल के अनुसार थे । पहले हम क्रियमाण कर्म करते हैं। उसके बाद इस कर्म को संचित कर्म कहा जाने लगता है और मौत के बाद यही कर्म प्रारब्ध बन जाता है।प्रारब्ध का अर्थ है जिसमे अनन्त जन्मों की सूचना संग्रहित है।
कुछ लोग यह बात नहीं मानते हैं की पूर्व जन्म जैसा कुछ होता है। उन्हें इस बात पर भी यकीन नहीं होता है कि वे कभी जानवर थे । खैर इस प्रकार के लोग कभी पूर्व जन्म के वैज्ञानिक रिसर्च को खोजने का प्रयास नहीं करते । बस मन मे जैसा ठीक लगा वैसा मान लिया तो इस प्रकार के लौगों को हमे यकीन दिलाने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए ।
वैसे जहां तक मुझे पता चला है कि जीवन के विकास चरण मे पहले कुछ ऐसे जीव बने जिनके अंदर मैं नहीं था और मैं का भी विकास बाद के जीवों के अंदर हुआ तो यह कहा जा सकता है कि जीव की उत्पति का आधार कर्म नहीं है। जीव की उत्पति का आधार शायद घनीभूत उर्जा स्वरूप हो सकता है ।लेकिन यहां पर एक विरोधाभास यह भी हो सकता है कि फिर मनुष्य को 84 लाख योनियां पार करने की क्या आवश्यकता थी ?
इस प्रश्न का उत्तर यह हो सकता है। उर्जा को बड़े शरीर के अंदर प्रवेश करने के लिए वैसे ही संस्कारों की आवश्यकता होगी । जब कि कुछ खास जीवों मे प्रवेश करने के लिए संस्कारों की आवश्यकता ही ना हो । हालांकि इस संबंध मे कोई सही से नहीं बता सकता है।हां इतना हम कह सकते हैं कि मनुष्य एक विकास प्रक्रिया से बना है। और जब मनुष्य विकास प्रक्रिया का हिस्सा है तो उसका सूक्ष्म शरीर भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है । संचित कर्म से ही विकास पूर्ण रूप से होता रहा है।
कर्म के प्रकार कामनाओं के आधार पर
इससे पहले हमने काल के अनुसार कर्म को बांटा था जिससे हमे यह पता चलता है कि काल का कर्म पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है। तो अब हम यह जानेंगे कि वासनाओं के आधार पर कर्म कितने प्रकार के होते हैं और वासनाएं किस प्रकार पुर्न्जन्म का कारण बनती हैं ?
सकाम कर्म
सकाम कर्म का मतलब होता है जो आप कामनाओं की प्राप्ति के लिए कर रहे हैं।जब आप किसी चीज को पाने के लिए कोई कर्म करते हैं तो उसे हम सकाम कर्म के नाम से जानते हैं। जैसे बहुत से लोग गरीबों की मदद करते हैं और यह कहते हैं कि उनको अगले जन्म मे कुछ अच्छा मिल जाएगा । यह कर्म सकाम कर्म होगा, सकाम कर्म का मुख्य उदेश्य होता है ।अपनी कामनाओं को पूरा करना । बहुत से लोग सकाम कर्म के जाल मे ही फंसे रहते हैं और मोक्ष के मार्ग तक नहीं पहुंच पाते हैं।
जो कर्म धन , पुत्र , यश पाने के लिए किये जाते हैं उनको सकाम कर्म के नाम से जाना जाता है। सकाम कर्म भी तीन प्रकार के होते हैं। और उनके हिसाब से ही उनका फल भी होता है।
इस संबंध मे हम आपको एक दिलचस्प कहानी सुनाते हैं।प्राचीन काल की बात है एक बार दो कुत्ते थे और उनको बहुत अधिक भूख लगी थी तो दोनो कुत्ते ने अलग अलग घर के अंदर प्रवेश किया और एक कुत्ते ने दूध जूठा कर दिया तो घर के मालिक ने उसे सारा दूध रख दिया और सोचा अब जूठा कर ही दिया है तो कुत्ते को मारने का कोई फायदा नहीं होगा । जबकि दूसरा कोई खड़ूस इंसान था उसने लठ से कुत्ते को मारा और कुत्ते की टांग टूट गई।बेचारा कुत्ता तड़प तड़प कर मर गया ।कुछ दिनों बाद दोनों घरों के अंदर एक एक बेटा पैदा हुआ । एक घर का बेटा तो अपने घरवालों को काफी खुशियां दे रहा था तो दूसरा बेटा पैदा होते ही बीमार हो गया ।
और घरवाले उसके उपर पैसा लगा रहे थे लेकिन वह ठीक ही नहीं हो रहा था तो अंत मे घर वाले पैसा लगाते हुए काफी थक गए तो वह लड़का बोला कि वह वही कुत्ता है जिसकी आपने टांग तोड़ी थी तो मैंने आपसे अपना बदला पुरा कर लिया है। अब मैं जा रहा हूं ।यह हकीकत है कि हमे किसी से बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए । वरना उसी बदले को पुरा करने के लिए हमे जन्म भी लेना पड़ सकता है।
karam ke prakar अच्छे सकाम कर्म
अच्छे सकाम कर्म वे होते हैं जो भला करने के लिए होते हैं। जैसे किसी का भला करने से अपना भला होगा । यह सकाम कर्म होगा । दया करना परोपकार करना यह सारे अपने फायदे के लिए जो करता है वह सकाम कर्म कहलाता है।और इनको अच्छे सकाम कर्म के नाम से जाना जाता है।आपको यह पता होना चाहिए कि अच्छे सकाम कर्म से स्वर्ग तो आपको मिल सकता है जहां पर आप अधिक सुख भोग सकते हैं लेकिन अपने कर्म का प्रभाव नष्ट होते ही आपको वापस धरती पर आना होता है। एक तरह से सकाम कर्म व्यर्थ हैं।
बुरे सकाम कर्म
बुरे सकाम कर्म वे होते हैं जो अपने फायदे के लिए बुरे काम होते हैं।जैसे आप अधिक पैसे के लिए चोरी कर रहे हैं तो यह बुरे सकाम कर्म के नाम से जाने जाएंगे । खैर इन बुरे सकाम कर्म का फल भी आपको बुरा ही मिलेगा ।बुरे सकाम कर्म करने की वजह से इनका फल भी बुरा ही भुगतना पड़ता है। बुरे कर्मों की वजह से वासनाएं भी बुरी ही हो जाती है और जिसकी वजह से यह भी हो सकता है कि अगला जन्म पशु का लेना पड़े ।खैर बुरे सकाम कर्म से कोई मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता है।
मिक्स सकाम कर्म
वैसे आपको बतादें कि बहुत से लोग इसी कैटेगरी के अंदर आते हैं।वे ना तो अपने जीवन के अंदर अधिक अच्छे कर्म करते हैं और ना ही अधिक बुरे कर्म करते हैं। वे अपने जीवन के अंदर अधिक अच्छे कर्म भी नहीं करते हैं तो इस प्रकार के लोगों को सुख और दुख दोनो ही भोगने होते हैं।अपने बुरे कर्मों की वजह से दुख मिलता है तो अपने अच्छे कर्मों की वजह से सुख भी मिलता है।अपने कर्म फलों को भोगने के बाद कर्म का ढांचा खाली हो जाता है और उनको फिर इसी धरती पर जन्म लेना होता है।
निष्काम कर्म
सबसे अच्छे कर्मों मे आते हैं निष्काम कर्म ।योगी लोग निष्काम कर्म ही करते हैं। निष्काम कर्म का मतलब होता है । कर्म करते जाना और फल की इच्छा ना करना । योगी कर्म तो करते हैं लेकिन उसके फल की इच्छा नहीं करते हैं। यदि उनको उनके कर्म का बुरा फल मिलता है तो भी वे ईश्वर को दोष नहीं दते हैं।इसका कारण यह है कि वे जानते हैं जो मिलना है वह मिलेगा ही और जो नहीं मिलना होगा वह नहीं मिलेगा । यदि वे कामना करेंगे तो फिर नए कर्मबंधन मे फंस जाएंगे। जब हम यह सोचते हैं कि कर्म हम करते हैं या मैं करता हूं तो हम कर्मबंधन मैं फंस जाते हैं ।जब भगवान क्रष्ण कहते हैं कि मैं देखने वाला हूं मैं कर्ता नहीं हूं तो इसका अर्थ यही है कि वे कोई कर्म नहीं करते हैं जो कर रहा है वह परमात्मा कर रहा है।इस तरह से हम कर्ता के बंधन से मुक्त हो जाते हैं और मोक्ष की ओर गमन करते हैं। निष्काम कर्म पर हम आपको एक कहानी सुनाते हैं।
मीरा के बारे मे हम सभी जानते हैं। मीरा एक राजघराने की औरत थी ।जब उनके पति के मौत हो गई तो उनकी मां ने कह दिया कि अब तो क्रष्ण ही उनके पति हैं तो उन्होंने क्रष्ण को ही अपना पति मान लिया और वह अपने क्रष्ण के प्रेम मे इतनी अधिक डूब गई कि उसे खुद की कोई भी सुध नहीं थी। वह हमेशा साधुओं के साथ रहती और क्रष्ण का भजन करती ।चूंकि मीरा राजघराने की रहने वाली थी तो इस तरह से उसका मंदिर के अंदर रहना और क्रष्ण के आगे डांस करना राणा को अच्छा नहीं लगा तो उसने मीरा को विष दिया लेकिन मीरा ने बिना किसी की परवाह किये उस विष को पी लिया । लेकिन उनकी मौत नहीं हुई ।क्योंकि क्रष्ण उनके पीछे थे ।
यह सिर्फ कहानी नहीं है निष्काम कर्म की सच्चाई है। मीरा ने सब कुछ क्रष्ण पर डाल दिया । बस उनको लगता था कि मैं कुछ नहीं कर रही हूं । सब कुछ क्रष्ण ही कर रहे हैं। सब उन्हीं की मर्जी से हो रहा है तो यह जहर भी उन्हीं की मर्जी से दिया जा रहा है। यही तो सच्ची भगती है।
कामना की तीव्रता के आधार पर कर्म के प्रकार
अब तक हमने कर्म के दो प्रकारों के बारे मे जाना ।वैसे आपको यह बतादें कि कर्मों का अलग अलग प्रकार उनको अलग अलग संदर्भ मे समझने के लिए किया गया है तो यहां पर हम अलग प्रकार के कर्म ,अकर्म और विकर्म के बारे मे बात करने वाले हैं।
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः ।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मण गतिः
कर्म के तत्व को जानना चाहिए ,विकर्म के तत्व को जानना चाहिए और विकर्म के तत्व को भी जानना चाहिए ।।
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते॥
इस श्लोक मे भगवान कहते हैं कि न मुझे कर्म फल लिप्त करते हैं ना मुझे कर्म फल की लालसा है।जो मुझे इस प्रकार से जान लेता है वह कर्मबंधन को प्राप्त नहीं होता है।
भगवान कहते हैं कि जब हम किसी कर्म को जिस भावना से करते हैं वह उसी प्रकार का बन जाता है।यदि हम बुरे विचारों को लेकर कर्म करते हैं तो वह एक बुरा कर्म बन जाता है और उसे यदि हम अच्छे विचारों को लेकर करते हैं तो वह अच्छा कर्म बन जाता है।और जब हम कर्म को समर्पित भाव से करते हैं तो इस प्रकार के कर्म किसी भी प्रकार के बंधन के कारण नहीं होते हैं।और हमे मोक्ष की ओर लेकर जाते हैं।
आगे बताया गया है कि जिस प्रकार से सूर्य प्रकाशित होता है तो वह अपने प्रकाश को गंदे और साफ दोनों तालाबों को समान रूप से वितरित करता है वह उसके अंदर भेद नहीं करता है। इसी प्रकार से अंदर परमात्मा हम सबको समान रूप से प्रकाशित करता है। वह किसी भी चीज मे कोई भेद नहीं करता है।
जिस प्रकार से सूर्य का प्रकाश गंदगी के उपर पड़ने पर भी गंदा नहीं होता है उसकी प्रकार से हमे यहां पर कर्म करते हुए भी खुद को अलग रखना है। यही भगवान क्रष्ण के जीवन का बहुत ही बड़ा संदेश है।
असल मे हम कर्म को करने का तरीका नहीं जानते हैं तो ऐसी स्थिति के अंदर हम कर्मबंधन के अंदर फंस जाते हैं और कर्म बंधन मे और अधिक फंसते ही चले जाते हैं। एक वासना के वशीभूत कर्म करते हैं तो फिर यह एक बड़ा जाल तैयार हो जाता है। कुछ लोग अपनी आदतों से मजबूर होते हैं और खुद को असहाय महसूस करते हैं ।वे इन आदतों से छूटकारा तो पाना चाहते हैं लेकिन पूरे मन से प्रयास नहीं करते हैं जिसकी वजह से वे कर्म के मकड़जाल मे फंस ते ही चले जाते हैं और कर्म का परिणाम दुर्गति ही होता है।
कर्म क्या है ?
यहां पर कर्म के बारे मे यह कहा गया है कि कर्म जीवन की वह प्रक्रिया है जिसको हमे करना चाहिए कर्म को स्वधर्म के नाम से भी जाना जाता है।जैसे खाना खाना एक कर्म है और यह जीवन चलाने के लिए आवश्यक है। कर्म के बिना जीवन मे कुछ भी संभव नहीं हो पाता है।
विकर्म क्या है ?
विकर्म के बारे मे अब हम बात करते हैं ।वैसे विकर्म को नितिशास्त्र से जोड़ा गया है। विकर्म का मतलब यह है कि जो कर्म समाज के लिए सही नहीं है। या उससे सामाजिक ढांचे को चोट पहुंचती है । उसे हम विकर्म की संज्ञा देते हैं।
जैसे यदि कोई किसी का रेप कर देता है तो यह विकर्म कहलाता है क्योंकि रेप करना नैतिक रूप से गलत होता है। विकर्म अलग अलग जगह पर अलग अलग हो सकते हैं जैसे कुछ समाज के अंदर वैश्या को कानूनी और सामाजिक मान्यता है तो कुछ जगह नहीं है। इसी प्रकार एक बड़ा व्यक्ति किसी महिला के साथ चिपक नहीं सकता लेकिन यदि किसी अनजान महिला के साथ कोई छोटा बच्चा चिपक जाता है तो समाज की नजरों मे यह गलत नहीं होता है तो यह विकर्म नहीं है।
यदि आप अलग अलग धर्मों के अंदर देखेंगे तो कुछ चीजें करना विकर्म माना जाएगा । जैसे जैन मुनि रात को करवट नहीं बदलते हैं और मुंह पर कपड़ा बांधते हैं तो ऐसा नहीं करना विकर्म होगा लेकिन किसी दूसरे धर्म के लोगों पर यह बात लागू नहीं होगी । इसी प्रकार के अंदर इस्लाम मे नवाज ना पढ़ना विकर्म है लेकिन हिंदुओं के लिए रोज पूजा करने की आवश्यकता नहीं है।
अकर्म क्या है
कुछ जगहों पर एक विरोधाभास मिलता है।कि हर क्रिया कर्म नहीं है। कर्म वह होता है जिसके साथ हमारा संकल्प जुड़ जाता है। खैर वैसे देखें तो यही कर्म हमारे दूसरे जन्म का कारण होता है। अकर्म मे हम अपनी क्रिया के साथ कोई भी इच्छा या संकल्प नहीं जोड़ते हैं। बस यही अकर्म है। अकर्म किसी बंधन का कारण नहीं होता है। यह हमारे मोक्ष का कारण बनता है।जैसे किसान जब खेत को जातता है तो यह वह अपना कर्तव्य समझता है। वह फल की इच्छा से यदि ऐसा नहीं करता है तो वह अकर्म हो जाएगा ।मतलब उसने कोई कर्म नहीं किया है। खैर जो योगी लोग होते हैं वे सदा अकर्म करते हैं। वे कर्म को ईश्वर की इच्छा मानकर करते हैं और उसके फल को ही ईश्वर को ही समर्पित कर देते हैं।
कर्म क्या है ? और अकर्म क्या है इसका फैसला करना इतना आसान नहीं होता है लेकिन जो पुरूष इसका फैसला कर लेते हैं।वे सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।आगे कहा गया है कि जो इंसान कर्म मे अकर्म और अकर्म मे कर्म देखता है वही बुद्धिमान कहा जाता है।
आपको पता होगा कि जो विचार और भाव हमारे मन मे हैं वे किसी एक ही काल के नहीं हैं।वरन अनन्त काल के भाव और विचार हमारे मन मे मौजूद हैं।और यह सारी चीजें आपस मे एक उलझे हुए धागे की तरह हो चुकी हैं। एक ज्ञानी पुरूष इन्हीं उलझी हुई चीजों का सहारा लेते हुए । इन्हीं चीजों के पार चला जाता है।आगे क्रष्ण कहते हैं कि कर्म की गति बहुत अधिक विचित्र है क्योंकि ज्ञान और मोक्ष कर्म से मिलते हैं अकर्म से नहीं ।
आपको अकर्म को बेहतर ढंग से समझने की आवश्यकता है।अकर्म के अंदर कर्म तो होता रहता है या क्रिया तो होती ही रहती है लेकिन उसके अंदर कोई संकल्प नहीं होता है। जैसे आप किसी को कुछ दे रहे हो तो उसे वापस लेने की इच्छा नहीं रखते । मन मे यह सोचते हो कि यदि मिल गया तो ठीक है नहीं मिला तो भी ठीक है।मतलब आप दोनो दशाओं के अंदर समान ही हो और अकर्म मे यही होता है। एक स्टूडेंढ पढ़ता जाता है लेकिन वह इसके परिणाम की इच्छा नहीं करता है। बस पढ़ना अपना कर्त्तव्य मात्र मानता है।
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अकर्म को समझने के लिए हम आपको यहां पर एक सुंदर सी कहानी बताने जा रहे हैं। प्राचीन काल की बात है एक ग्रहस्थ ने अपने घर के पास एक बहुत ही सुंदर सा बगीचा लगाया और उसके उपर वह बहुत अधिक मेहनत करता था। एक दिन उस बगीचे के अंदर पता नहीं कैसे एक गाय आकर घुस गई और बगीचे को उजाड़ दिया । जब अपने बगीचे के अंदर गाय को चरते हुए देखा तो ग्रहस्थ डंडे से उस गाय को पीटा जिससे उसकी मौत हो गई।उसके बाद वह व्यक्ति डर गया कि गौ हत्या का पाप लग गया । अब गाय की आत्मा उसके सामने आकर खड़ी हो गई और बोली की चलिए अपने किये का दंड भुगतने के लिए तैयार हो जाएं ।तब उस व्यक्ति ने कहा मैंने यह काम नहीं किया है । यह काम तो मेरे हाथों ने किया है और हाथों के देवता इंद्र हैं उनके पास जाओ ।तो गाय देवता इंद्र के पास गई और अपनी पूरी कहानी सुनाई तो इंद्र ने गाय को न्याय का भरोशा देते हुए एक ब्रहा्रमण का वेश धारण किया और उस व्यक्ति के घर मे जा पहुंचे ।
उसके बाद इंद्र उस व्यक्ति कें बगीचे मे गए और बोले इस बगीचे को किसने लगाया है बहुत सुंदर है । तब वह व्यक्ति बोला … हमने लगाया है
……लगता है इसको कोई जानवर आकर खा गया था। इंद्र ने कहा
…….. हां एक दुष्ट गाय आई और सारे बगीचे को उजाड़ दिया ।और हमने गाय को मार दिया ।
उसके बाद इंद्र ने कहा ……. जब बगीचे की बात आती है तो आप बोलते हैं कि आपने लगाया है और जब बुरे कर्म की बात आती तो अपना बोझ इंद्र पर डाल देते हैं।उसके बाद उसको नरक के अंदर ले जाया गया ।
यही दशा आज हर इंसान की है। वह जो भी अच्छा काम करता है उसका श्रेय तो खुद ले लेता है और बुरे काम का श्रेय भगवान पर डाल देता है।अकर्म का मतलब यही है कि आप ना तो अच्छा करते हैं और ना ही बुरा करते हैं सब उसकी प्रेरणा से अपने आप ही हो रहा है। उसमे हम कुछ नहीं करते हैं।
कर्म की गति के बारे मे आगे यह लिखा गया है कि कर्म की गति बहुत ही गहन है इसको बड़े बड़े ज्ञानी लोग भी नहीं समझ पाए । अर्जुन को जब भगवान उपदेश दे रहे थे तो अर्जुन कह रहे थे कि वे इस युद्ध करने के पाप को नहीं करना चाहते हैं लेकिन यही तो उनके कर्म की गति थी । सब कुछ अपने आप ही हो रहा था।
आगे भगवान बताते हैं कि कर्मों की गति बहुत ही विचत्र है और इसके रहस्य को कोई भी नहीं समझ सकता है।आज इस संसार के अंदर आप जो विषमताएं देख रहे हैं वह कर्मों की गति के कारण ही तो है। इस संसार मे कोई अमीर है कोई गरीब है कोई सुखी है कोई दुखी है। सब कर्मों की माया है।
आप यह देखते हैं कि एक दुष्ट इंसान अकूत धन संपदा का स्वामी होता है जबकि कोई अच्छा इंसान दर दर की ठोकरे खाने को मजबूर होता है। यह सब उसके कर्मों की ही तो गति होती है।
बहुत से लोग दूसरों के सुख को देख देख कर दुखी होते हैं तो इस संबंध मे आपको एक दिलचस्प कहानी सुनाते हैं। एक बार एक संत थे । वे अपने दुख से काफी दुखी थे तो भगवान से प्रार्थना की कि वह उनके दुख लेलें और बदलने मे किसी दूसरे के दुख को उन्हें देदे । संत जब सोये तो उन्होंने सपने मे यह देखा कि सब लोग गठरी को उनके यहां पर रखकर जा रहे हैं और दूसरी हल्की दुख की गठरी को लेकर जा रहे हैं। संत ने भी अपनी गठरी रखी और दूसरी गठरी को देखने लगा। लेकिन उनको कोई भी गठरी हल्की नहीं लगी ।
उसके बाद संत के दिमाग मे आया और उसके बाद वापस उन्होंने अपनी गठरी उठाली ।यह कहानी यह बताती है कि इस संसार के अंदर दूसरों के सुख को देखकर दुखी नहीं होना चाहिए क्योंकि क्या पता अगले पल कौनसा दुख आकर उनको जकड़ ले ।
कर्म कितने प्रकार के होते हैं karam ke prakar ? लेख के अंदर हमने कर्म के प्रकार के बारे मे विस्तार से जाना । हमे यकीन है कि आपको यह सब पसंद आया होगा । यदि आपको पसंद आया है तो कमेंट करके हमें बताएं ।