karva chauth vrat katha करवा चौथ व्रत कथा के बारे मे हम इस लेख के अंदर विस्तार से बात करने वाले हैं।सुहागिन स्त्रियाँ कई दिन पहले ही इस व्रत की तयारिया आरम्भ कर देती है | नयी पोशाक नयी चूड़ियाँ ,
पार्लर मेहँदी आदी पहनकर इस व्रत को बडे चाव के साथ मनाया जाता है । कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है ।
इस व्रत मे गणेश जी का पूजन किया जाता है। इस व्रत मे गेहूँ का करवा भर के पूजन किया जाता है । विवाहित लड़कियों के यहाँ चीनी के करवे पीहर से भेजे जाते है ।
इस व्रत से पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना बडे ही चाव के साथ किया जाता है।
इस व्रत मे पुरे दिन उपवास रखा जाता है ओर श्याम को चंद्रमा को अर्घ्य लबाकर भोजन ग्रहण किया जाता है ।
वर्तमान मे अपने परीवार मे चली आ रही प्रथा के अनुसार महिला इस व्रत को मनाती है पर ज्यादातर महिला चंद्रमा के निकलमे का इंतजार करती है ।
इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार दिया गया है । स्त्री किसी भी धर्म की हो सकती है मगर इस व्रत को सौभाग्यवती स्त्री अपने पति की लम्बी आयु , स्वास्थ्य ,सोभग्य के लिये करती है ।
यह व्रत मुख्यत: 12 से 16 वर्ष तक लगातार किया जाता है । अवधी पुरी हो जाने के बाद इसका उद्यापन किया जाता है पर इस व्रत को सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें तो वे इस व्रत को जीवन भर रख सकती है । इस व्रत के जेसा कोई और सौभाग्यदायक व्रत नही है ।
अत: सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा के लिये इस व्रत का सतत पालन करना आवश्यक है ।
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करवा चौथ व्रत कथा 1
प्राचीनसमय की बात है एक साहुकार के सात बेटे व एक बेटी थी । उनमे आपस मैं बहुत प्रेम था सातो भाई पहले अपनी बहन को खाना खिलाकर स्वयं खाना खाते थे ।
एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई थी । श्याम को जब सातो भाई अपने कार्यो को करकर घर लोटे जब खाना खाने का समय हुआ तब सातो भाई अपनी बहन को खना खने का आग्रह करते है । तब उनकी बहन ने उन्हे बताया की आज उसका करवा चौथ का निर्जल व्रत है ।
और उनकी बहन ने बताया की वह केवल चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य लगाकर खना खा सकती है इसी कारण वह भुख प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को उसकी यह हालत देखी नही जा रही थी इस कारण वह बाहर जाकर पीपल के पेड पर चडकर एक दिपक जलाकर चालनी के ओट मे रख दिया जीससे वह दूर से देखने मे एक चांद की तरह लगता था ।
इसके बाद छोटे भही ने बताया की चांद उग गया है तुम उसे अर्घ्य लगाकर भोजन ग्रहण कर सकती हो । बहन दोडकर छत पर जाती है तथा चांद को अर्घ्य लगाकर भोजन ग्रहण करने लगती है । वह पहला टुकडा अपने मुख मे डालती है तो उसे छीक आ जाती है ,
बादमे दुसरा टुकडा अपले मुख मे डालती है तो उसमे बाल आ जाता है वह यह समझ नही पा रही थी की ऐसा क्यों हो रहा है और जेसे ही वह तीसरा टुकडा अपने मुख मे डालती है तो उसे अपने पति के मरने की सूचना प्राप्त हो जाती है । वह कुछ समझ नही पा रही थी वह बोखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सचाई से अवगत कराती है वह उसे समझाती है की व्रत सही नियम से न होने के कारण एसा हुआ है । सच्चाई जानने के बाद वह निश्चय करती है की वह उन्हैं पुनर्जीवन कराकर रहेगी तब तक उनका अंतिम संसकार नही होने देगी ।
वह एक वर्ष तक अपने पति के शव के पास बेठी रही उसकी रक्षा करती रही उसपर उगने वाले घासो को वह एकत्रित करती रही जब एक साल बाद फिर करवा चोथ का व्रत आया तो उनकी भाभिया करवा चोथ का व्रत रखती है ।
जब उनकी भाभिया उनसे आशिर्वाद लेने के लिये जाती है तो वह अपनी प्रत्येक भभी को कहती है कि मुझे भी सुहागीन बना दो औद प्रत्यक भाभी दुसरी भाभी से आग्रह करने के लिये कहती है । इसी प्रकार जब छठी भाभी आती है तो वह उससे यही बात दोहराती है तो वह कहती है कि क्योकी छठे भाई के कारण तुम्हारा व्रत टुटा है
अत: उसकी पत्नी मे ही तुम्हारे पति को जीवीत करने की शक्ति है इस लिये वह आये तब उसे पकड लेना ओर जब तक वह तुम्हारे पति को जिन्दा न कर दे तब तक उसे छोढना मत इतना कहकर वह चली जाती है ।
जब सबसे छोटी भाभी आती है तो करवा उसे भी अपने पति को जीवीत करने के लिये कहती है पर वह बात को टालने की कोसीस कारती है । इस लिये करवा उसे पकड लेती है छोटी भाभी उसे मारती है पर करवा उसे नही छोडती है।
अन्त मे उसकी भाभी उसकी तपस्या को देखकर हार मानर अपने हाथ की छोटी अगुली पर थोडा चीरा लगाकर उसमे से रक्त रुपी अमृत करवा के पति के मुख मे डालती है
जिससे उसका पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहते हुए उठ जाता है । इस प्रकार करवा की छोटी भाभी के माध्यम से प्रभु की कृपा से करवा का सुहाग वापस जीवीत हो है । हे श्री गणेश- मां गौरी जीस प्रकार आपने करवा को उसकी तपस्या को देखकर उसके पति को जीवन दान दिया है वैसे ही हमारे सुहाग की रक्षा करना ।
करवा चौथ व्रत कथा 2
एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पहाड पर चले गये । उनकी खबर न मीलने पर द्रोपती बहुत व्याकुल थी इस लिये द्रोपती ने भगवान कृष्ण का ध्यान किया और अपनी चिन्ता उन्हें बताई ।
कृष्ण भगवान ने उन्हें बताया की इस प्रकार का एक प्रशन माता पार्वती ने भगवान शिव से किया था । तब शकरजी ने करवा चौथ का व्रत बताया इस व्रत को करने वाली स्त्रीया अपने पति के प्राणो की रक्षा कर सकती है जिस प्रकार ब्राह्मण की पुत्री ने की थी ।
प्राचीन काल मे एक ब्राह्मण था जिसके चार पुत्र व एक पुत्री थी । एक बार जब पुत्री मायके मे थी तो करवा चोथ का व्रत आया । उसने व्रत को बडी सावधनी से कीया कुछ नही खाया पुरे दिन निर्जला रही थी । पर उसके चारो भाई वहुत परेसान थे कि हमारी बहन निर्जला व्रत कर रही है वह चांद को देखकर ही जल को ग्रहण करगी ओर भोजन भी बादमे खाएगी । भाईयो से रहा नही गया इस कारण वह अपने घर के बाहर मे एक पेड लगा था ।
उसके भाई पेडपर चड गये ओर क बनवटी चांद अपनी बहन को दिखाकर भोजन करा दिया था । जब वह भोजन ग्रहण कर रही थी तो उसे कुछ अच्छा नही लगा पर वह भोतन ग्रहण कर गई । जीससे कुछ समय के बाद उसके पति की मृत्यु हो गई ।
जीससे उसके घर वाले रोने लगे थे । वह समाचार जब उसकी पत्नी के पास पहुचा तो वह विलाप करने लगी । उसी समय वहा से रानी इंद्राणी नीकल रही थी ।
उससे उसका दुख देखा नही गया । ब्राह्मण कन्या ने रानी के पैर पकड लिया ओर इस दुख का कारण पुछा तो रानी इंद्राणीने बताया की तुमने बिना चांद्रमा को देखे व्रत को खोला है इस कारण तुम्हें यह कष्ठ आया है।
और इंद्राणी ने उसे कहा की तुम अगर वर्ष भर यह व्रत को ठिक से कर पायी तो तेरा पति जीवीत हो जायेगा इतना कहकर वह वहा से चलह गई । ब्राह्मण कन्या ने वर्ष भर का व्रत ठिक तरह से करने से उसका पति जीवित हो गया । द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन ठिक तरह से घर वापस लोट आये । इस लिये सभी विवाहित स्त्री को यह व्रत करना चाहिए।
करवा चौथ व्रत कथा 3
प्रचीन समय की बात है करवा नाम की एक धोबिन थी । अपने बूढे पति के साथ वह तुंगभद्रा नाम की नदि के कीनारे एक गाव ने रहा करती थी । वे दोनो रोजाना कपडे धोने के लिये नदी के किनारे जाया करते थे । एक दिन वक दोनो नदी के किनार कपडे धो रहें थे तब अचानक नदी से एक मगरमच्छ आया और धोबी के पेर को पकड कर यमलोक की ओर लेजाने लगा ।
धोबी बडा दुर्बल था इस कारण वह कुछ नही कह सका बलकी करवा करवा कहता रह गया । पति की पुकार सुनकर धोबिन उस मगरतच्छ के पास पहुचकर उसे धागो से बाधने लगी ओर बाद मे उसे बाधकर यमराज के पास ने जाने लगी । जब वह यमराज के पास पहुच गयी तो वह यमराज से अपने पति को बचाने की गुहार लगाने लगी ।
जब यमराज आये तो वह यमराज से कहा कि इस मगरमच्छ ने मेरे पति का बहुत बुरी तरह से पैर पकड लिया इस कारण आप इसे दण्ड के तोर पर नरक मे भेज दिजीए। करवा की बात को सुनकर यमराज बोले अभी मगरमच्छ की आयु शेष बची हुई है अभी इसे मे केसे दण्ड दु केसे इसे यमलोक मे भेज सकता हु मै एसा नहि कर सकता हुं ।
ऐसा सुनकर करवा बोली अगर आप मेरे पति को जीवन दान नही दे सकते हो तो मे आपको शाप दे दुगी । एसा सुनकर यमराम घबराकर मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया ओर करवा के पति को जीवन दान दे दिया । यमराज करवा की बात से घबराये इस लिये थे क्योकि करवा अभी कुछ दिन पहले करवा चैथ का व्रत आया था उसे बडी सावधनी के साथ सभी नियम का पालन करती हुई पुरा किया था।
तब से आज तक कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत को करने का विधान बन गया ओर सभी इस व्रत को करने लगे जिससे अपने पति के प्राणो की रक्षा हो सके ओर अपने पति की लंबी उमर की कातना करती है ।
करवा चौथ व्रत कथा 4
बहुत पुराने समय से प्रचलीत कथा है एक बडे गाव मे एक बुढीया व उसका एक पुत्र रहा करते थे । वह हर बार अपने पुत्र के लिये करवा चौथ का व्रत किया करती थी । हर बार व्रत के दिन वह दुकानदार से थोडा सा गुड ओर घी लेकर आ जाती थी और चार लड़्डू बनाकर रख देती थी
जब पुजा का समय होता था तो वह बुडिया एक लड़्डू अपने प्रीय पुत्र को दे देती और एक से पुजा करती थी एक हथकार को दे दिया करती थी बचा एक चांद को देखकर उसे भोग लगाकर स्वयं खा लिया करती थी ।
एक बार उस बुडिया का पुत्र ताइ से मीलने के लिये उसके घर गया था तो ताइ उस दिन वैसाखी चौथ का व्रत रखा था तो वह ताइ से कहने लगा की मरी मा तो बारह माह चौथ का व्रत करती है ।
ताइ ने उसे बताया की तुम्हारी मा तेरी कमायी खाने के लिये यह व्रत करती है । अगर तुम घर से बाहर कमाने के लिये चला जाओगे तो वह कुछ व्रत नही रखेगी उसे भी एसा ही लगा। घर आकर वह अपनी माता से कहता है कि मै परदेस जाना चाहता हु यहा पर तो मेरी कमाई तु एसे ही उडा देती है ।
उसकी माता ने उसे बहुत समझाया पर वह नही माना तो उसकी माता ने उसे करवा माता की आखे दी और कहा की यह तेरे मुसीबत मे काम आयेगी ।वह माता की आखे लेकर चला गया । घुमते हुए वह एक नगर मे पहुचा वहा पर एक बुढी मा रोते हुए रासते मे जा रही थी वह उस बुढी मा से रोने का कारण पुछा तो बुढी मा ने बताया की इस गाव की पहाडी पर एक राक्षस रहता है वह पहले गाव के लोगो को मार देता था ।
अब राजा हर घर से एक एक करकर उसके पास भेजता है । आज मेरे बेटे की बारी है इस कारण मे रो रही हु । तब वह लडका उस बुडी मा के इस तरह से रोने को सह नही पाया और उससे बोला तेरे बैटे की जगह पर मे उस राक्षस के पास चला जाता हु । तुम इस तरह से विलाप मत करो ।
इस कारण वह बुडिया उसे खिर पुरी बनाकर अच्छे से पेट भर देती है वह लडका खाना खाकर सो जाता है । रात को राजा के सेनीक उस बुडीया के घर आये तो बुडिया ने उस लडके को आपने पुत्र की जगह पर भेज दिया ।
वह उस राक्षस के पास गया और माता चौथ की आखे उस राक्षस के ओर पहक कर बोला अगर मेरी मा आपका व्रत को सही नियम से करती है तो आप इस आवे को मेरी बली लिये बिना ही पका दो । आवा झट से पक गया आवे से सोने चांदि के बर्तन निकलने लगे । अंदर से वह लडका बोता राजा जी बर्तन धीरे से निकालना मुझे लग न जाये । राजा ने अपने सेनीको से उसे बाहर सही सलामत निकलवाया और राजा ने उससे कहा कि तुम जीवित केसे बच गये ।
तब राजा को वह लडका कहता है कि मेरी मां करवा चौथ का व्रत मेरे लिये करती है इस कारण मे आज जीवित बच गया । मगर राजा को उसकी बातसो पर विसवास नही आया । राजा ने एक चांदी की सुराही मगवाई ओर बोला तुम इस सुराही से निकल जाओ तो मे तुमहारी बातो पर विसवास कर लुगा । लडका माता से प्रथना करकर बोला
मैं भवरा बनकर इस सुराही से निकल जाउ ।
लडका भवरा बनकर उस सुराही के अंदर से निकल गया । इस कारण राजा बहुत प्रसन्न होकर अपनी पुत्री की उसके साथ शादी कर दी ओर पुरे गाव को माता चौथ का व्रत काने के लिये कहा ।
लडके को अपनी मा की याद आइ तो वह से राजा कहा की मै मेरी मा के पास जाना चहाता हु । राजा ने रथ घोडा हाथी और बहुत सारा धन देकर उनको विदा किया । वह लडका अपने नगर की ओर चल पडा ओर चार दिन से अपने नगर मै पहुचकर पंसारी की दुकान पर उसका इंतजार करता है क्योकी उस दिन चौथ थी इस लिये लडके ने सोचा की आज उसकी मां यहा जरुर आयेगी ।
कुछ समय बित जाने के बाद उसकी मां आयी उसे अब दिखना कम हो गया था इस कारण उसकी मां को साफ नही दिख रहा था । लडके ने जानबुझकर अपनी मा की लकडी से अपना पैर लगा दिया ओर बोला कोन है जो मेरे पैर के दी है ।
मां ने कहा की भैया तुम मुझे कीतनी ही गालिया काढ दो पर मेरे बेटे को कुछ मत कहना इतना सुनकर बेटा रोता हुआ अपनी मां के पैर मे जा गिरा ओर कहने लगा की मुझे माफ कर दो मां मै तेरा बेटा ही हु । मा ने अपने पुत्र को गले से लगा लिया ओर रोने लगी और उससे कहा था की कितने दिनो के बाद तु वापस आया है ।
नगर वालो को विश्वास नही हुआ की यह उसका पुत्र ही है । मा ने चौथ माता को याद करते हुए कहा की है मां अगर मेरे व्रत सही हुए है तो मेरे स्तन एक बार भर ताये और उसकी धरा मेरे पुत्र के मुख मे जाये । उसके स्तनो से दुग्ध की धारा निकलकर उसके पुत्र के मुख मे जाने लगी सभी लोग चोक उठे और माता की जये बोलने लगें ओर सभी चौथ का व्रत करने लगे ।
करवा चौथ का व्रत करने की विधि
प्रात काल सूर्योदय के पहले उठकर स्नान कर लें।
फिर अच्छे से साफ सुथरे कपडे पहन कर पूजा करने के लिये अलग अलग प्रकार की मिठाइया एक जगह पर रख ले ।
लड्डू व पीले फुलो की माला से गनेश जी को भोग लगाये।
भगवान शिव को बैलपत्र अर्पित करे ।
श्रीकृष्ण भगवान को मखन और मिश्री पेडे के भोग लगाना उत्तम माना जाता है ।
उनके सामने अलग अलग दिपक जालाये ।
पूजा पूरी होने के बाद करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए ।
कथा सुनने के बाद करवा चौथ पर गनेश जी के भजन करने चाहीए ।
जो मिठाइयो का भोग लगाया था उनमे से कुछ मिठाइयो को आस पास मे बांट देना चाहिए ।
अपने से बडो का आशिर्वाद लेना चाहिए ।
श्याम को जब चांद्रमा निकल जाये तो उसे भोग लगाकर अपने पति की लम्बी आयु की कामना करनी चाहिए ।
चंद्रमा को भोग लगाकर हि स्वयं भोजन करना चाहिए ।
जब चंद्रमा को भोग लगाने के बाद पति की लम्बी आयु की कामना करते समये यह मंत्र बोलना चाहिए ।
‘नमस्त्यै शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभा। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।’
कथा सुनने का तरीका
एक थाली के अंद्रर करवा रख ले और उस पर 13 बिंदीयां कर दे । एक छोटे बर्तन के अंदर पानी रख ले । गेहु या चावल के 13 गीनकर दाने ले और बाद मे करवा चौथ की कहानी सुन ले । कहानी सुनने के बाद अपनी सास के पैर को छुकर आशिर्वाद ले । 13 गेहु के दाने व बर्तन मे पानी लिया था उसे अलग रख दे । जो गेहु के दाने व पानी अलग रख दिया था उसका उपयोग चंद्रमा की पुजा करते समये करे ।
जब चंद्रमा निकल जाये तो एक चलनी की ओट से पहले चंद्रमा को देखे ओर बादमे अपने पति का मुख देखे । बादमे अपने पति को भी भोजन खिलाये और स्वयं भी खा ले ।
करवा चौथ की आरती
ऊँ जय करवा मइया, माता जय करवा मइया ।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया ।।
ऊँ जय करवा मइया।
सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी।
यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी ।।
ऊँ जय करवा मइया।
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती।
दीर्घायु पति होवे , दुख सारे हरती ।।
ऊँ जय करवा मइया।
होए सुहागिन नारी, सुख सम्पत्ति पावे।
गणपति जी बड़े दयालु, विघ्न सभी नाशे।।
ऊँ जय करवा मइया।
करवा मइया की आरती, व्रत कर जो गावे।
व्रत हो जाता पूरन, सब विधि सुख पावे।।
ऊँ जय करवा मइया।
चंद्रमा पुजन मंत्र
‘ॐ शिवायै नमः’ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः’
करवा चौथ व्रत के फायदे
- करवा चौथ के व्रत करने के अनेक फायदे होते हैं।ऐसा माना जाता है कि यह व्रत करने से पति की उम्र लंबी होती है। हालांकि इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य नहीं है। परन्तु प्राचीन काल के अंदर महिला का पति ही उसका सर्वा सर्व माना जाता था। इस वजह से यह पम्परा चल रही है।
- ऐसा माना जाता है कि करवा चौथ का व्रत करने से पति के जीवन के अंदर आने वाली समस्याएं दूर होती हैं।
- इतना ही नहीं जो महिलाएं व्रत करती हैं उनके स्वास्थ्य को भी फायदा मिलता है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक दिन व्रत करने से हमारे पाचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर के अंदर जो कचरा मौजूद होता है। वह साफ भी हो जाता है।
- करवा चौथ के व्रत के दिन गणेश शिव और पार्वती की पूजा की जाती है।भगवान गणेश को सुख और सम्रद्वि देने वाला माना गया है।