खेजड़ी का पेड़ किस काम में आता है ,खेजड़ी का पेड़ किस देवता से संबंधित है ,खेजड़ी की जानकारी
खेजड़ी के वृक्ष के बारे मे लगभग हम सभी लोग जानते ही हैं। यह राजस्थान और दूसरे मरूस्थल वाले स्थानों पर उगता है।हमारे यहां पर खेजड़ी का पेड़ बड़ी संख्या मे पाया जाता है। हमारे अकेले के खेत के अंदर लगभग 25 खेजड़ी के वृक्ष हैं।पहले इससे भी अधिक थे लेकिन अब उनको काट दिया गया है। खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम Prosopis cineraria होता है।भागों पश्चिमी एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप , अफगानिस्तान, बहरीन, ईरान, भारत, ओमान, पाकिस्तान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन मे भी यह पेड़ पाया जाता है। इंडोनेशिया और दक्षिण पूर्व ऐशिया के अंदर इसकी प्रजाति पाई जाती है।
यह संयुक्त अरब अमीरात का राष्ट्रीय वृक्ष है , जहाँ इसे गफ़ के नाम से जाना जाता है।संयुक्त अरब अमीरात मे तो वहां के नागरिकों को इस पेड़ को बगीचे के अंदर लगाने को कहा गया है।
खेजड़ी के पेड़ को अलग अलग नामों से पुकारा जाता है।छोंकरा उत्तर प्रदेश मे, जंड पंजाबी मे, कांडी सिंध मे, वण्णि तमिल मे, शमी, सुमरी गुजराती मे पुकारा जाता है। और कांड़ी खेजड़ी का एक व्यापारिक नाम भी है।
खेजड़ी का वृक्ष जेठ या गर्मी के महिने के अंदर हरा भरा रहता है। जब तपती धूप के अंदर कहीं पर भी रेगिस्तान मे छाया नहीं होती है तो यही छाया देता है। रेगिस्तान मे जीव और जंतु इसी पेड़ के नीचे शरण लेते हैं। इस पेड़ के पत्ते छोटे होते हैं और इनको लूंग कहा जाता है
जिसका प्रयोग पशुओं के चारे के रूप मे किया जाता है।बकरी लूंग को खाती है और यह बाजारों मे महंगा बिकता है। गांव के लोग इस लूंग को एकत्रित करते हैं और उसके बाद बेचते हैं। खेजड़ी के वृक्ष को फल भी लगते हैं। इसके फल को सांगरी कहते हैं। इस सांगरी की सब्जी बनाई जाती है।और यह काफी महंगे दामों के अंदर बिकती है। सांगरी के सूखने के बाद यह खोखा बन जाता है। जिसको खाया जा सकता है यह स्वादिष्ट होता है।
इस पेड़ की लकड़ी भी काफी मजबूत होती है।आमतौर पर गांवों मे इसकी लकड़ी को काटा जाता है और एकत्रित करके सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। उसके बाद घरों के अंदर इसी लकड़ी की मदद से रोटी और सब्जी बनाई जाती है। 1899 ई के अंदर जब भयंकर अकाल पड़ा था तो मेरी दादी बताती है कि लोगों ने खेजड़ी के तने के छिलके को खाया था। और वैसे इस पेड़ के खेत मे होना भी अच्छा माना जाता है क्योंकि इसके कचरे से जमीन को खाद मिलती है और वहां पर अनाज की पैदावार भी अच्छी होती है।
खेजड़ी की ऊँचाई 3-5 मीटर (9.8–16.4 फीट) होती है।, जिनमें से प्रत्येक में एक से तीन पिन्ने पर सात से चौदह पत्ते होते हैं। शाखाओं को इंटर्नोड के साथ कांटा जाता है। फूल छोटे और मलाईदार पीले होते हैं, और फली में बीज के बाद होते हैं। यह पेड़ अधिकतर वहां पर होता है जा प्रति वर्ष 15 सेमी से कम वर्षा होती है। अत्यधिक क्षारीय वातावरण को भी यह सहन कर सकता है।
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खेजड़ी का पेड़ किस देवता से संबंधित है
आपको बतादें कि गोगाजी का निवास स्थान खेजड़ी के नीचे माना जाता है। और इनके मंदिर को खेजड़ी के नीचे बनाया जाता है। इनको हिंदु मुस्लिम समान रूप से पूजते हैं। गोगाजी का जन्म गुरूगोरख नाथ के आर्शीर्वाद से हुआ था। गोगाजी का जन्म चूरू के ददरेवा के अंदर हुआ था।और इनके माता पिता जेवरसिंह और माता बाछल देवी 1103 ई के अंदर मोहम्मद गजनवी से गायों की रक्षा करते हुए शहीद हुए थे ।
साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व
खेजड़ी के वृक्ष का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व भी है। राजस्थानी भाषा के साहित्यकार कन्हैयालाल सैठिया ने एक मींझर नामक कविता लिखी थी। इस कविता के अंदर खेजड़ी के वृक्ष का सुंदर चित्ररण मिलता है।यह काफी प्रसिद्ध कविता रही है।दशहरे के दिन भी खेजड़ी की पूजा करने की परम्परा है।
रावण दहन के दिन खेजड़ी के पत्तों को लूट कर लाने की परम्परा है।इनको सोने का प्रतीक माना जाता है। इतना ही नहीं पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाया गया था इस बात का उल्लेख मिलता है। पूजा के अंदर भी खेजड़ी के वृक्ष को पवित्र माना जाता है और इसकी लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।
खेजड़ी के वृक्ष को 1943 में राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था।
खेजड़ली आंदोलन या चिपको आंदोलन
दोस्तों खेजड़ी आंदोलन को चिपको आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। जब खेजड़ी का नाम आता है तो इस आंदोलन का नाम आए बिना नहीं रह सकता है। वैसे तो खेजड़ली आंदोलन के बारे मे हम सभी ने बचपन मे किताबों मे पढ़ा है कि किस तरह से लोगों ने खेजड़ी के लिए अपने जान को न्यौछावर कर दिया था। यह एक बेहद ही दर्दनाक घटना रही है।
खेजड़ली आंदोलन की शूरूआत खेजड़ली गांव के अंदर ही हुई थी जोकि जोधपुर मे पड़ता है। अमृता देवी नामक एक महिला ने इस आंदोलन को पर्यावरण को बचाने के लिए सन 1730 ई के अंदर चलाया था।इस आंदोलन को चिपको आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। चिपको आंदोलन का अर्थ ही चिपकना होता है। अमृता देवी की 3 पुत्री पेड़ो के जाकर लिपट गई तो राजा के सैनिकों ने उनको भी पेड़ के साथ काट डाला था। सैनिकों ने इसके लिए कोई भी दया नहीं दिखाई थी।
जंगल से पेड़ो को क्यों काटा गया था ?
ऐसा कहा जाता है कि 1730 में मारवाड़ में एक शासक हुआ जिसका नाम अजीत सिंह था। उसको अपना किला बनाना था और चूने को पकाने के लिए बड़ी मात्रा मे पेड़ की आवश्यकता थी। इसलिए उसने अपने मंत्री मंत्री भंडारी गिरधरदास को खेजड़ी के पेड़ों को काटने का आदेश दिया था।
जब राजा के सैनिक आज्ञा पाकर खेजड़ली गांव पहुंचे और पेड़ों की तेजी से कटाई करने लगे तो भंडारी गिरधरदास ने अपने सैनिकों को बड़े बड़े खेजड़ी के पेड़ को काटने का आदेश दिया तो उसी गांव की एक महिला किसान जिसका नाम अमृता देवी था ने सैनिकों को ऐसा करने से रोकने की कोशिश की । लेकिन सैनिक नहीं माने तो अमृता देवी खुद पेड़ों के लिपट गई उसके बाद उनकी 3 पुत्री भी वहां पर आ गई वे भी पेड़ों के लिपट गई लेकिन सैनिकों ने पेड़ों के साथ उनको भी काट डाला ।
इस घटना को जिसने भी सुना सारे गांव के लोग दौड़ आए और आस पास के खेजड़ी के वृक्ष से वे लिपट गई और उसके बाद सैनिकों ने उनको भी काटा डाला । इस प्रकार से लगभग 363 लोगों ने खेजड़ी की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया । जितने भी लोगों ने खेजड़ी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया वे विश्नोई समाज के लोग थे । इनके यहां पर वृक्षों को पूजनिय माना जाता है।
वर्तमान मे खेजड़ली गांव जोधपुर मे है।और यहां के लोग आप भी इस बलिदान को नहीं भूले हैं।विश्नोई समाज समाज ने पर्यावरण संरक्षण और जंगली जानवरों की सुरक्षा का भार अपने सर पर उठा लिया है।विश्नोई समाज के पूर्वजों के बलिदान की कहानी आज भी गूंज रही है।
आपको बतादें कि जौधपुर की तरफ के ईलाके मे किसी भी प्रकार का शिकार नहीं किया जाता है। और खेजड़ी को काटना तो गुनाह माना जाता है। यदि कोई गलती कर भी देता है तो उसे भारी नुकसान होता है।
अनाज बरसने वाली खेजड़ी
खेजड़ी के पेड़ तो आपने बहुत सारे देखेंहोंगे लेकिन क्या आपने कोई ऐसी खेजड़ी देखी है जिससे की अनाज बरसता हो ? आपका जवाब होगा नहीं ? लेकिन हकीकत मे ऐसी खेजड़ी मौजूद है।
कूदरत के करिश्मे के आगे सारे वैज्ञानिक फैल हो जाते हैं। राजस्थान के चूरू के एक गांव खांसोली मे एक इसी प्रकार का पेड़ है जिससे अनाज की वर्षा होती है और यह एक भारी खेजड़ी है जिसको कई सालों से काटा नहीं गया है। यह पेड़ काफी पुराना है। और लगभग 200 साल का है। सुना है कि इस पेड़ से पहले चीन और कई सारा अनाज बरसता था। उसके बाद इसको बेचना शूरू कर दिया तो बरसना कम हो गया । दूर दूर के लोग इसको देखने के लिए आज भी आते हैं।
अब इस पेड़ से बाजरा ,ग्वार ,तिल ,मूंग ,मोठ आदि के दाने भी बरसते हैं।और सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है कि इस खेजड़ी के पेड़ से जो कुछ भी बरसता है वही खेतों के अंदर होता है।
इसको तो हम हर साल देखते ही हैं। जैसे खेजड़ी से मूंग अधिक बरसा तो इसका अर्थ यह हो गया कि अबकि बार मूंग अधिक होगा । यदि बाजरा अधिक बरसता है तो इसका अर्थ यह है कि बाजरा अधिक होगा । पेड़ से अनाज तब बरसता है जब खेत को जोतने का कुछ ही समय रहता है। फिर किसान इसी के आधार पर खेती की बुआई कर देते हैं।
अब इस पेड़ के नीचे बरसने वाले अनाज को खाया नहीं जाता है। वरन उसको एकत्रित किया जाता है और जानवरों को डाल दिया जाता है। बेचना सही नहीं माना जाता है। जब अनाज बरसने का समय होता है तो पेड़ के नीचे तिरपाल वैगरह बिछा दिया जाता है। और उसके उपर दाने अपने आप ही गिरते रहते हैं।
हालांकि इस पेड़ से अनाज बरसने का रहस्य कोई भी नहीं सुलझा पाया है। बहुत से लोग इसको चमत्कार नहीं मानते हैं लेकिन जो भी हो किसानों को इससे एक आइडिया मिल जाता है कि कौनसा अनाज इस बार अधिक होगा ।
नष्ट हो रहे हैं तेजी से खेजड़ी के पेड़
सबसे बड़ी बात यह है कि एक खेजड़ी के वृक्ष को लगाना बहुत ही कठिन कार्य है। क्योंकि यह तेजी से बड़ा नहीं होता है। और इसको कई जानवर और पशु भी खा जाते हैं। यदि हम पीछले 30 सालों का डेटा लें तो पता चला है कि खेजड़ी के पेड़ की संख्या मे तेजी से कमी आ रही है। पहले हमारे खेत मे भी बहुत सारे खेजड़ी हुआ करते थे लेकिन अब बहुत कम रह गए हैं और नया पेड़ बहुत ही मुश्किल से होता है।
हमारे घर के सामने एक छोटा खेजड़ी का पौधा है जिसको 20 साल हो चुके हैं लेकिन अभी भी वह छोटा ही पड़ा है। नर्सरी के अंदर भी खेजड़ी की पौध को तैयार नहीं किया जाता है।यही कारण है कि यह पेड़ तेजी से विलुप्त होता जा रहा है। यदि इसी प्रकार से खेजड़ी के पेड नष्ट होते रहे तो फिर आने वाले समय मे पर्यावरण के लिए एक गम्भीर खतरा पैदा हो जाएगा ।
खेजड़ी के उपयोग
खेजड़ी यह लेग्यूमेंनेसी कुल के संबधित फलीदार पेड़ है।और इसके कई सारे प्रयोग हो सकते हैं। और खेत के अंदर एक खेजड़ी होने के अपने फायदे होते हैं
खेजड़ी की फली का प्रयोग सब्जी बनाने मे
खेजड़ी पर सांगरी लगती हैं जिसके नाम से लगभग सभी लोग परिचित हैं।यह काफी महंगी होती हैं और इसका प्रयोग सब्जी बनाने मे किया जाता है। यह सांगरी जब सूख जाती हैं तो इनको जानवरों को भी डाला जा सकता है। और इंसान भी खाते हैं।
खेजड़ी के लूंग का प्रयोग पशुओं के चारे के रूपमे
खेजड़ी पर हरा लूंग लगता है। जिसका प्रयोग पशुओं के चारे के रूप मे किया जाता है। आमतौर पर सर्दी आने से पहले खेजड़ी को छांग लिया जाता है और इससे लूंग को एकत्रित कर लिया जाता है। उसके बाद लूंग को पशुओं को खिलाया जाता है। इससे दूध अच्छा होता है।
जलाने के लिए लकड़ी प्राप्त होती है
खेजड़ी से जलाने के लिए लकड़ी भी प्राप्त होती है। रेगिस्तानी इलाकों के अंदर यही वृक्ष है जो लकड़ी देता है। गांवों के अंदर लकड़ी का बड़ा स्त्रोत इन्हीं से प्राप्त होता है। हम खुद भी खेजड़ी की लकड़ी का प्रयोग करते हैं। खेजड़ी से लकड़ी को प्राप्त करने के लिए इनको छांग लिया जाता है। और फिर लकड़ी को धूप मे सूखाया जाता है।
भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है
खेत के अंदर एक खेजड़ी का पेड़ होना बहुत ही उपयोगी होता है। यह भूमि की उर्वरक शक्ति को बढ़ाने का कार्य करता है।इस पेड़ की पतियां नीचे गिरती हैं । जिससे जमीन उपजाउ बनती है। यही कारण है कि खेत के अंदर खेजड़ी के नीचे अनाज अच्छा लगता है। और दूसरी जगहों पर उड़ जाता है। खेजड़ी के नीचे जमीन भी कठोर हो जाती है जिसकी वजह से अनाज आसानी से उड़ नहीं सकता है। और यदि आपके खेत मे अधिक खेजड़ी के वृक्ष होंगे तो अनाज भी अच्छा लगेगा ।
गर्मी मे छाया के रूप मे प्रयोग
खेजड़ी का प्रयोग गर्मी मे छाया के रूप मे किया जाता है।जब गर्मी बहुत अधिक होती है तो रेगिस्तानी इलाकों के अंदर छाया प्रदान करने के लिए मात्र खेजड़ी ही होता है।लू से बचने के लिए किसान और दूसरे जानवर भी खेजड़ी के नीचे आराम करते हैं।
वर्तमान मे जितने भी खेजड़ी के पेड़ लगे हुए हैं।वे अपने आप ही लगे हुए हैं।यह जब छोटे होते हैं तो किसान इनकी सुरक्षा करते हैं और इनके चारो ओर बाड़ कर देते हैं ताकि कोई पशु इनको नुकसान ना पहुंचाए ।और जब यह थोड़ा बड़ा होता है तो इसकी कुछ शाखाओं को छांग दिया जाता है । उपर की तरफ एक शाखा छोड़ दी जाती है।
ताकि यह उपर की तरफ आसानी से बढ़ता रहे ।हर वर्ष नवंबर-दिसम्बर के अंदर बड़े खेजड़ी के पेड़ों की छंगाई की जाती है। और कई जगहों पर खेजड़ी के पेड़ों की छंगाई नहीं की जाती है। वरन वहां पर पेड़ों के लूंग को हाथों से तोड़ा जाता है और उसके बाद उसे बकरियों को खिला दिया जाता है।हरा लूंग खाने की वजह से बकरियों मे दूध उत्पादन मे बढ़ोतरी होती है।और खेजड़ी का सांगरी उत्पादन भी प्रभावित नहीं होता है।इसके विपरित यदि आप सारी खेजड़ी की छंगाई कर देते हैं तो फिर सांगरी नहीं आती है।
खेजड़ी के कलिकायन के बारे मे जानकारी
प्राकृतिक चयन की मदद से उगने वाले बीजों के अंदर विविधता होती है। और इनसे सांगरी का उत्पादन भी बहुत ही कम होता है। आप देखते होंगे कि बहुत ही कम खेजड़ी सांगरी का उत्पादन करती हैं।केवल 15 से 20 प्रतिशत खेजड़ी ही सांगरी का उत्पादन कर पाती हैं। बाकि खेजड़ी को तो किसान लूंग और जलाने के लिए लकड़ी के लिए प्रयोग करते हैं।
कलिकायन एक प्रकार की विधि होती है। जिसकी मदद से खेजड़ी के पेड़ों की सांगरी उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जाता है। जो खेजड़ी सांगरी का उत्पादन नहीं करती हैं उसके उपर इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
कलिकायन विधि के अंदर प्राकृतिक तरीके से उगी हुई खेजड़ी को देखा जाता है जिसका सांगरी उत्पादन बहुत अधिक होता है। फिर उसी की कलिका का प्रयोग किया जाता है।यदि हम पौधे का उचित रखरखाव करते हैं तो पौधे के तीन साल बाद ही सांगरी का उत्पादन शूरू हो जाता है।
कलिकायन विधि एक कायिक प्रवर्धन विधि होती है। इस पौधे की यदि आप सही तरीके से देखभाल करते हैं तो उसके बाद आप इससे अच्छे गुणवकता के लूंग और सांगरी भी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा इसकी कटाई छंटाई भी बहुत आसान होती है।
कलिकायन विधि का क्या अर्थ होता है और यह किस प्रकार से काम करती है? और अब आइए हम जानते हैं कि इस विधि की मदद से आप किस प्रकार से बगीचा लगा सकते हैं। इसकी कई विधियों को नीचे दिया जा रहा है।
खेजड़ी की पौध को पौधशाला मे तैयार करना
यदि आप खेजड़ी की पौध तैयार कर बेचना चाहते हैं तो यह तरीका आपके लिए अधिक कारगर हो सकता है।इस तरीके मे सबसे पहले खेजड़ी के बीजों को तैयार किया जाता है। इसके लिए सूखी खेजड़ी की फलियों को चुना जाता है।
उनके अंदर से बीज को निकाल दिया जाता है और पोलिथीन की थैलियों के अंदर गोबर और चिकनी मिट्टी को डाला जाता है और उसके अंदर दो बीज को लगा दिया जाता है। और बुआई को जुलाई मे किया जाता है। पौधे की बुआई के बाद उसकी अच्छे तरीके से सिंचाई और दूसरी क्रियाएं की जाती हैं।
इसके एक वर्ष बाद जून माह के अंदर पौधे के तने की मोटाई 5 से 8 एमएम हो जाती है। उसके बाद कलिका लेकर कलिकायन कर दिया जाता है। और फिर इसके एक माह के बाद कलिका फूट जाती है। फिर इसको किसी जगह पर स्थानांतरिक कर दिया जाता है। या फिर खेतों के अंदर उचित दूरी पर लगा दिया जाता है।
इस विधि से कोई भी खेजड़ी की पौध को तैयार कर सकता है।और उसके बाद अपने खेत के अंदर खेजड़ी को लगा सकता है। खेत मे खेजड़ी का होना बहुत अधिक फायदे मंद होता है।
खेजड़ी विकसित करने की सरल विधि
खेजड़ी के पेड़ को तैयार करने की यह सबसे सरल विधि है। और इसका प्रयोग भी आसानी से किया जा सकता है।इसमे करना यह है कि सबसे पहले कुछ उत्तम सांगरी वाले खेजड़ी के पौधे का चयन करें । बारिश के मौसम मे प्राकृतिक तरीके से लगे हुए पौधे का चयन करलें जो उस पेड़ के आस पास आसानी से मिल जाएंगे ।
इन पौधों को दिसम्बर-जनवरी में जमीन की सतह से इस प्रकार कांट लेना चाहिए कि इनकी जड़ों को किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए । उसके बाद इनको किसी सही स्थान पर लगादें । लगाने से पहले वहां पर उचित खाद वैगरह भी डालें ।मार्च-अप्रैल मे इस पौधे के अंदर बड़ी शाखाएं निकलने लगेंगे और उसके बाद बेकार की शाखाओं को हटा दें और कुछ शाखाएं ही रहने दें ।जब शाखाएं 5-8 मि.मी व्यास की हो जाएं तो फिर कलिकायन करने के योग्य हो जाती हैं।
अब इसके उपर के भाग को एक फुट तक काट देना है।और इसके उपर जो कांटे वैगरह लगे हुए हैं उनको हटा देना चाहिए साफ करने के बाद ,खेजड़ी के पेड़ पर इस कलिका को लगाया जा सकता है।और इसको प्लास्टिक की टेप से बांध दिया जाता है।इस प्रकार से एक माह के बाद उसी कलिका से अंकुर फुटने लग जाते हैं और फिर एक नया खेजड़ी का पेड़ तैयार हो जाता है।
स्वस्थानिक कलिकायन से बगीचे का विकास करना
इस विधि के अंदर बिजू पौधों को सीधे ही खेत के अंदर लगाया जाता है। 6x 8 मीटर आकार के गड्डों को खोद दिया जाता है और उसके बाद उनको कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दिया जाता है।फिर हर गड्डे के अंदर 10 किलो गोबर की खाद को डालें और थोड़ी मिट्टी भी डालदें ।
मई-जून के अंदर खेजड़ी की पकी फलियों के बीजों को निकाल कर रख लेना है।उसके बाद जुलाई के अंदर वर्षा होने के बाद 3 से 4 बीजों को एक इंच पर बुआई करें । यदि वर्षा नहीं होती है तो सींचाई भी करनी पड़ सकती है।उसके बाद एक गड्डे मे एक ही पौधे को रखें और बाकी को निकालदें ।यदि आप सीधी बुआई खेत मे करते हैं तो बाद मे पौधे की जड़े जमीन के अंदर गहराई तक चली जाती हैं और यह जमीन के नीचे से पानी का प्रयोग कर सकता है।
अगली वर्षा ऋतु आने तक खेत के अंदर पौधों की निराई गुडाई अच्छे तरीके से करनी चाहिए । उसके बाद कलिकायन करलें ।इस प्रकार से आप मात्र दो साल के अंदर ही खेजड़ी का एक बड़ा बगीचा तैयार कर सकते हैं। जिसके अंदर अन्य अनाज का उत्पादन भी अपने आप बढ़ जाएगा । खेत मे अधिक खेजड़ी का होना खाद और भूमी के उपजाउ पन को बढ़ाने का काम करता है।
खेजड़ी के पौधों का रखरखाव
कलिकायन का प्रयोग करने के बाद एक मजबूत खेजड़ी का पेड़ विकसित करने के लिए इनका निरंतर ध्यान रखना बेहद ही जरूरी होता है।सबसे पहले कलिकायन की शाखाओं के अलावा अन्य शाखाओं को भी निकलने देना चाहिए ।इस प्रकार से 4 वर्ष तक शाखाओं को इसी प्रकार से बढ़ने देना चाहिए । 4 वर्ष बाद यह एक पेड़ का रूप आसानी से लेलेंगी । आमतौर पर खेजड़ी के पेड़ की छंगाई नवंबर दिसंबर मे की जा सकती है लेकिन ऐसा करने का नुकसान यह है कि मार्च अप्रैल मे सांगरी आपको नहीं मिलेगी ।
छगाई नवंबर-दिसंबर की बजाय मई-जून के अंदर करना बहुत अधिक सार्थक होता है। क्योंकि ऐसी स्थिति मे नवंबर-दिसंबर मे नई शाखाएं पक जाती हैं और आप सांगरी भी प्राप्त कर सकते हैं। और यदि आप रेगिस्तानी इलाके के अंदर रहते हैं तो सांगरी और लूंग आपके लिए बड़ा फायदेमंद हो सकता है।आपके लिए खेजड़ी के पौधे बहुत अधिक फायदेमंद हो सकते हैं।
खेत मे खेजड़ी का बगीचा लगाने के क्या क्या फायदे हैं ?
यदि आप रेगिस्तानी इलाके के अंदर रहते हैं तो आपको पता ही होगा कि यहां पर रोजगार के साधन बहुत ही कम है। रेगिस्तानी इलाके मे सूखा अधिक पड़ता है। और अक्सर खेतों के अंदर बहुत अधिक पानी नहीं होता है। आजकल सौलर सिस्टम चल रहा है लेकिन उससे भी पानी की आपूर्ति नहीं हो पाती है।
लेकिन खेजड़ी का बगीचा एक ऐसा उपाय है जिसकी मदद से अच्छा खासा पैसा कमाया जा सकता है।तो आइए जानते हैं खेत के अंदर खेजड़ी का बगीचा लगाने के क्या क्या फायदे हो सकते हैं।
सांगरी को बेच कर अच्छा पैसा कमाया जा सकता है
यदि आप बाजार के अंदर सूखी सांगरी की कीमत पूछेंगे तो यह 500 या 400 रूपये किलो मिलेंगी । इसी प्रकार से बाजार मे सांगरी की नोर्मल कीमत 200 रूपये तक होती है। यदि आपके बगीचे के अंदर एक साल के अंदर 500 किलो सांगरी उतर जाती है जोकि नोर्मल है तो आप 40 हजार रूपये आसानी से कमा सकते हैं।और इसके लिए आपको किसी भी तरह की अधिक मेहनत भी नहीं करनी होगी ।
लूंग के उत्पादन मे मुनाफा
आपको पता होना चाहिए की लूंग हमारे यहां पर 35 से 45 रूपये किलो तक बिकता है। और लूंग का प्रयोग बकरियों के लिए चारे के रूप मे किया जाता है। यदि आप खेजड़ी का आप बगीचा लगाते हैं तो एक बगीचे के अंदर आप आसानी से 1000 किलो लूंग का उत्पादन कर सकते हैं। यह कम से कम है। कुल मिलाकर आप इससे आय कमा सकते हैं जो 200 रूपये दिन वाली नौकरी से बहुत ही अच्छा होता है।
अन्य फसलों का उत्पादन
जिस खेत के अंदर अधिक खेजड़ी के पेड़ होंगे उस खेत मे जमीन भी अधिक उपजाउ होगी । इसके पीछे का कारण यह है कि खेजड़ी के पेड़ की पतियां जमीन को उपजाउ बना देती हैं। तो यदि आप वहीं पर कोई दूसरी फसल लेना चाहते हैं तो इससे भी आप अच्छा खासा पैसा कमा सकते हैं। क्योंकि अधिक उपजाउ जमीन के अंदर दूसरी फसले भी बहुत अधिक उपज देती हैं।
बहुत ही कम पानी की आवश्यकता
खेजड़ी के पेड़ को एक बार लगने के बाद पानी की आवश्यकता ही नहीं होती है। इसकी जड़े जमीन के अंदर काफी गहराई तक होती हैं। जो जमीन के नीचे से पानी को सोख लेता है। हालांकि एक बार जब आप खेजड़ी के पौधे को लगाते हैं तो उसे पानी की जरूरत होती है। कम पानी की जरूरत होने की वजह से आपका इसके अंदर खर्चा कम होता है ।
कुल मिलाकर उपर जो लाभ दिये गए हैं।वे मोटे मोटे लाभ हैं और यदि हम अन्य लाभ की बात करें तो यह बहुत सारे हैं। यदि आप अपने खेत मे खेजड़ी के पेड़ लगाते हैं तो यह आपके खेत को ही नया लुक देगा । इतना ही नहीं यदि बात करें पर्यावरण की तो खेजड़ी का पेड़ अच्छा है। गर्मी के अंदर जब काफी तेजी से लू चलती है तो रेगिस्तान मे यही पेड़ पशु पक्षियों को ठंडी छाया प्रदान करता है।
खेजड़ी के पेड़ पर सांगरी की जगह गिरडू का लगना
वैसे तो लगभग हर खेजड़ी के पेड़ को गिरडू की समस्या होती है। लेकिन आपको बतादें कि कुछ ऐसे पेड़ भी होते हैं जिनके कभी भी सांगरी नहीं लगती है वरन गिरडू ही लगते हैं। गिरडू एक प्रकार की संरचना होती है। जो एक गांठ जैसी होती है। अधिकतर पूराने खेजड़ी के पेड़ों पर गिरडू ही लगते हैं।
और कई बार यह गिरडू बहुत अधिक मात्रा मे निकलते हैं।सांगरी को बेचने वाले मजूदर बताते हैं कि कई साल गिरडू इतने अधिक होते हैं कि उनको 2 किलो सांगरी एकत्रित करने के लिए काफी मेहनत करनी होती है। जबकि कई बार वे रोजाना 10 किलो तक सांगरी को बाजार मे बेच आते हैं। आमतौर पर कई बार सांगरी की मांग के अनुसार पूर्ति नहीं होने की वजह से इसके भाव 1000 किलो तक पहुंच जाते हैं। और गांवों के अंदर रहने वाले जो लोग हैं वे बस उतनी ही सांगरी को एकत्रित कर पाते हैं जितनी कि उनके घरों मे सब्जी बन सके ।
हमारे यहां पर भी बहुत ही कम खेजड़ी पर सांगरी लगती हैं। और ऐसी स्थिति के अंदर बस घर के अंदर सब्जी बने उतनी ही सांगरी मिलती हैं। खेजड़ी को छांगने की वजह से सांगरी मिलना और ही मुश्किल हो जाता है। और बाजार मे तो सांगरी की उपलब्धता बहुत ही कम होती है।
खेजड़ी से जैविक खाद
जैविक खेती के अंदर किसान खेजड़ी के पत्तों से जैविक खाद और किनटाशक तैयार कर रहे हैं। कई किसान अपनी भूमी से लाखों खेजड़ी के पौधे तैयार कर चुके हैं।किसानों के अनुसार यदि आप खेजड़ी के पेड़ के नीचे सब्जी वैगरह की खेती करते हैं तो अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
जैविक खाद को बनाने के लिए जमीनमें 30 फीट लंबा, पांच फीट चौड़ा तीन फीट गहरे गड्ढे को खोदे ,उसके बाद उसके अंदर खेजड़ी के पत्ते और फल फूल को इसके अंदर डालें व गोबर भी डालदें । उसके बाद 6 इंच मोटी परत बिछाएं और फिर इसी परत पर 100 लीटर पानी में 5 किलो गोबर डाल उसका तरल घोल बनाने के बाद गड्ढे में जमा परत पर छिड़क डालें । फिर इसके उपर 50 किलो बारिकी रेत बिछाएं और गड्डे पर पानी छिड़क दें ।
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खेजड़ी की पतियों से कीटनाशक भी आसानी से बनाया जा सकता है।इसके लिए खेजड़ी की पतियां लें और नीम की एक किलो पतियों के अंदर 10 लीटर गोमूत्र के अंदर मिट्टी के बर्तन मे ढककर रखदें । उसके 20 दिन बाद आप छान कर इसका प्रयोग कर सकते हैं।