कोयले से बिजली कैसे बनती है, कोयले से बिजली कैसे उत्पन्न होती है , koyle se bijli kaise banti hai
दोस्तों बिजली का हमारे जीवन के अंदर महत्वपूर्ण स्थान बन चुका है।बिना बिजली कुछ भी नहीं होता है। यदि कुछ समय के लिए ही यदि बिजली चली जाती है तो काफी परेशानी होने लग जाती है।कुछ साल पहले एक समय ऐसा भी था कि बहुत कम लोगों के यहां पर बिजली हुआ करती थी। और हमको याद है कि हमारे घर मे भी बिजली की व्यवस्था नहीं थी तो हम लोग पढ़ने के लिए लाइटेन का इस्तेमाल करते थे । जिसके अंदर जलाने के लिए केरोसनी के तेल का प्रयोग किया जाता था।
इसी तरीके से केरोसनी की चिमनियां बनाई जाती थी जिसकी मदद से रात को उजाला किया जाता था। हालांकि अभी भी कई ऐसे इलाकें हैं जहां पर अंधेरे को दूर करने के लिए यह तरीके प्रयोग मे लाये जाते हैं। हालांकि वर्तमान मे सोलर जैसे एडवांस सिस्टम आ चुके हैं। जिसके अंदर आप एक बैंटरी का प्रयोग करते हुए आसानी से लोड को चला सकते हैं।
आपको बतादें कि बिजली बनाने के कई सारे तरीके होते हैं लेकिन भारत के अंदर परम्परागत तरीके कोयले से बिजली बनाया जाता है। और यह सब थर्मल प्लांट के अंदर किया जाता है। कई बार यह हो हल्ला मचा की कोयले की भारी कमी चल रही है। हालांकि कोयले की भारी कमी के चलते लाइट के अंदर कटौती भी की जाने लगी थी। हालांकि कुछ ऐसे क्षेत्र भी मैंने देखें हैं जिनके यहां पर बहुत ही सीमित मात्रा मे बिजली आती है।
उनको बिजली के लिए सोलर पर निर्भर रहना पड़ता है।वैसे आपको बतादें कि सोलर सिस्टम बहुत ही अच्छा है। इसके अंदर आपको बार बार बिजली के आने जाने की समस्या से छूटकारा मिल जाता है। वैसे आपको बतादें कि भारत के अंदर कोयले की बहुत बड़ी खदानें हैं लेकिन अधिकतर खदानों के साथ समस्या यह है कि उनसे कोयले का उत्पादन ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है।
जब बारिश का मौसम होता है तो कोयले की खदानों के अंदर पानी भर जाता है जिससे कि कोयला बिजली बनाने के लिए उपयोगी नहीं होता है। इसके अलावा कुछ कोयले की खदानों के अंदर से आग लगी पड़ी है। और यह खदाने काफी लंबे समय से जल रही हैं लेकिन इनको सही करने वाला कोई भी नहीं है। ऐसी स्थिति के अंदर आप समझ सकते हैं। कि कोयले की भारी कमी हो जाती है जिससे कि बिजली पैदा करने मे भी समस्याएं होने लग जाती हैं।
एक कोयला आधारित बिजली स्टेशन एक ऐसा स्टेशन होता है जो कि बिजली से कोयला को उत्पन्न करने का काम करता है। दुनिया भर में लगभग 8,500 कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशन हैं जिनकी कुल क्षमता 2,000 गीगावाट से अधिक है, जो दुनिया की बिजली का लगभग एक तिहाई है ।
कोयले से बिजली बनाने के लिए आमतौर पर कोयले को पहले पीसा जाता है और उसके बाद उस पीसे हुए कोयले को बायलर मे जलाया जाता है।और उसके बाद यह कोयला पानी को भाप मे बदल देता है जिससे कि हाई स्पीड टरबाइन को चलाया जाता है। इस प्रकार से कोयलें को तापीय ऊर्जा , यांत्रिक ऊर्जा और अंत में, विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है ।
आपको बतादें कि कोयले से बनने वाली बिजली की बदौलत हर साल 10 जीटी से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं। जोकि जलवायु के अंदर बदलाव का एक बहुत ही बड़ा कारण माना जाता है।
आपको बतादें कि कोयले से से चलने वाले पॉवर प्लांट मे से आधे से अधिक चीन के अंदर पड़ते हैं। और संयुक्तराष्ट्र ने कहा है कि दुनिया को 2030 तक कोयले से चलने वाले सभी पॉवर प्लांट को बंद कर देना चाहिए ।
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कोयले से बिजली कैसे बनती है खदानों से कोयले को निकालना
एक बड़ा थर्मोइलेक्ट्रिक प्लांट एक बहुत सारा कोयला जला देता है।प्रति वर्ष लगभग 11 मिलियन टन तक कोयले को आसानी से जला दिया जाता है। दोस्तों कोयले को प्रयोग करने से पहले उसको खदानों से निकाला जाता है।खदानों से निकालने के लिए मशीनों और कर्मचारियों की मदद ली जाती है। खदानों से निकाला हुआ कोयला एक रिजर्व के अंदर एकत्रित कर लिया जाता है।
ईंधन प्रसंस्करण koyle se bijli kaise banti hai
कच्चे कोयले को 5 सेमी से कम आकार के टुकड़ों में कुचलकर उपयोग के लिए कोयला तैयार किया जाता है।और उसके बाद कोयले को एक स्टोरेज यार्ड से इन-प्लांट स्टोरेज साइलो में कन्वेयर बेल्ट द्वारा 4,000 टन प्रति घंटे की दर से ले जाया जाता है ।उसके बाद कोयले की नमी को दूर करने के लिए उनको एक भट्टी के अंदर लेकर जाया जाता है। जहां पर कोयले की नमी को दूर किया जाता है।
बॉयलर
बॉयलर एक ऐसा यंत्र होता है जिसके अंदर आग होती है। पीसे हुए कोयले को जरूरत के अनुसार इसके अंदर डाला जाता है। हालांकि यह सारा काम मशीनों की मदद से होता है। लेकिन यदि उत्पादन युनिट छोटी है तो इसको हाथ से भी किया जा सकता है। बॉयलर के अंदर बहुत अधिक ताप होता है। हालांकि बॉयलर के अंदर हर समय ईंधन को डालते रहने की जरूरत नहीं होती है। वरन इसके अंदर ताप वैगरह नापने के सारे सिस्टम लगे होते हैं । तो जरूरत पड़ने पर कोयले को और अधिक मात्रा मे डाल दिया जाता है।
स्टीम का उत्पादन
दोस्तों बॉयलर के अंदर बहुत अधिक तापमान हो जाता है तो बॉयलर के अंदर से एक वॉटर पाइप गुजरता है यह उपर की तरफ हो सकता है। और इसके अंदर पानी होता है। जब यह तापपानी के संपर्क मे आता है तो पानी भाप के अंदर बदल जाता है। आपको बतादें कि इस भाप का प्रेसर बहुत अधिक होता है। यदि आप कभी बॉयलर के पास गए होंगे तो आपको पता होगा कि बॉयलर काफी आवाज करता है और उसके आस पास के पाइप के अंदर से जब स्टीम फलो होता है तो आसानी से किसी को भी पता चल जाता है।
कई बार स्टीम के लिकेज हो जाने की वजह से आप स्टीम का प्रेशर देख सकते हैं। बॉयलर को मैंने काफी नजदिगी से देखा है।
टरबाइन का प्रयोग
दोस्तों कई तरह के टरबाइन होते हैं। लेकिन कॉमनली एक टरबाइन जोकि बॉयलर से जुड़ा होता है। एक स्टीम पाइप टरबाइन से जुड़ा होता है। जब बॉयलर के अंदर स्टीम बनती है तो यह काफी स्पीड से बॉयलर के अंदर बनने वाली स्टीम टरबाइन पर टक्कर मारती है जिससे कि टरबाइन काफी तेजी से घूमने लग जाता है।
इस प्रकार से टरबाइन एक ऐसा यंत्र होता है जोकि गतिज उर्जा को यांत्रिक उर्जा के अंदर बदल देता है। या कहें कि यहां पर यांत्रिक उर्जा पैदा हो जाती है।
जनरेटर
दोस्तों प्लांट के अंदर टरबाइन के साथ एक शक्तिशाली जनरेटर जुड़ होता है। और यह जनरेटर जैसे जैसे टरबाइन घूमता है वैसे वैसे घूमता है। जिससे कि डीसी करंट पैदा होता है।जनरेटर का सिद्धांत वही कॉमन जनरेटर वाला होता है।जैसे कि यदि आप एक रॉड को चुंबकिय ध्रुवों के बीच घूमाएंगे तो करंट पैदा होगा । यहां जनरेटर को टरबाइन घुमाता है जबकि एक आम जनरेटर को घूमाने के लिए प्रेट्रोल या डिजल का प्रयोग किया जाता है।
कोयले से बिजली कैसे बनती है अल्टरनेटर
दोस्तों अल्टरनेटर एक ऐसा यंत्र होता है जोकि डीसी करंट को ऐसी के अंदर बदलता है। डीसी का मतलब डायरेक्ट करंट होता है। अल्टरनेटर के पास जब करंट पहुंचता है तो यह एसी के अंदर उनको बदल देता है और आगे की पॉवर लाइनों को सप्लाई कर देता है।
वैसे डीसी करंट की यदि हम बात करें तो इसके अंदर संपर्कों पर अधिक ट्रेफिक ड्रोप होता है। जिसकी वजह से डीसी करंट का सप्लाई के अंदर प्रयोग नहीं किया जाता है।यदि आपने डीसी करंट का प्रयोग किया है तो आपको पता होगा कि इसके अंदर ड्रोप अधिक होता है।
ट्रांसफॉरमर
दोस्तों ट्रांसफॉरमर भी इस पॉवर सप्लाई लाइन का एक अहम हिस्सा है। ट्रांसफॉरमर का प्रयोग वोल्टेज को कम या अधिक करने के लिए किया जाता है। ट्रांसफॉरमर की मदद से वोल्टेज को आवश्यकता अनुसार सप्लाई किया जाता है। जैसे कि घरेलू लाइन के लिए 220 वोल्ट होता है तो इंडस्ट्री के लिए 440 वोल्ट की सप्लाई की जाती है।
कंडेनसर का प्रयोग
दोस्तों कंडेनसर का नाम तो आपने सुना ही होगा । कंडेनसर के अंदर टरबाइन से टकराने वाला गर्म पानी आता है। कंडेनसर का एक हिस्सा कुलिंग टॉवर से जुड़ा होता है कम दबाव वाले टरबाइन से निकास भाप खोल में प्रवेश करती है। भाप को ठंडा किया जाता है और कंडेनसर की नलियों के ऊपर से बहकर पानी आता है।
इसके अलावा स्टीम इजेक्टर का भी इसके अंदर प्रयोग होता है जोकि पानी के उपर से लगातार हवा और गैसों को हटाते रहते हैं। जिससे कि वैक्यूम बना रहता है। कंडेनसर ट्यूब इष्टतम गर्मी हस्तांतरण और संक्षारण प्रतिरोध के लिए पीतल या स्टेनलेस स्टील से बने होते हैं। कंडेनसर का एक हिस्सा कुलिंग टॉवर से जुड़ा होता है। कुलिंग टॉवर से कंडेनसर से बनने वाली गैंसों को बाहर निकाला जाता है। इसके अलावा कंडेंसर के एक हिस्से से कुलिंग टॉवर से पानी लिया जाता है जिसको बाद मे बॉयलर मे इसकी मदद से ही स्टीम का उत्पादन किया जाता है।
कोयले से बिजली कैसे बनती है Cooling tower
कूलिंग टावर्स आकार में छोटे रूफ-टॉप यूनिट्स से लेकर बहुत बड़े हाइपरबोलॉइड स्ट्रक्चर्स में भिन्न होते हैं, जो 200 मीटर लंबा और 100 मीटर (330 फीट) व्यास तक हो सकता है, या आयताकार संरचनाएं जो कर सकती हैं 40 मीटर से अधिक लंबा और 80 मीटर लंबा हो
औद्योगिक कूलिंग टावर्स पानी की गर्मी को दूर करते हैं। यहां पर पानी का तापमान 70 डिग्री फ़ारेनहाइट से 100 डिग्री फ़ारेनहाइट तक होता है। कूलिंग टावरों का उपयोग आमतौर पर उत्पादों और मशीनरी को ठंडा करने के लिए किया जाता है। और सभी कुलिंग टॉवर वाष्पीकरण के सिद्धांत पर काम करते हैं।
बाष्पीकरणीय शीतलन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो हवा में वाष्पित होने वाले पानी को ठंडा करती है।उदाहरण के तौर पर जब कंडेनसर से निकलने वाला पानी हवा के संपर्क मे आता है तो अपने आप ही उसकी गर्मी बाहर निकलने लग जाती है और वह ठंडा हो जाता है। यदि हम इसके सिद्धांत की बात करें तो जब हम गर्म पानी से स्नान करके बाहर निकलते हैं तो देखते हैं कि हमें ठंड लगने लग जाती है। यह ठंड तब लगती है जब हमारे शरीर की गर्मी बाहर निकलती है। यही सिद्धांत कुलिंग टॉवर के अंदर काम करता है।
पानी के निरंतर प्रवाह को ठंडा करने के लिए कूलिंग टॉवर बाष्पीकरणीय शीतलन के इसी सिद्धांत का उपयोग करते हैं।
कूलिंग टावर के अंदर काफी बड़े बॉक्स होते हैं। जिनको कि वाष्पिकरण को अधिकतम करने के लिए डिजाइन किये जाते हैं।पीवीसी प्लास्टिक शीट जैसी सामग्री का इनके अंदर प्रयोग किया जाता है।यह कुलिंग टॉवर के अंदर भरती है। इसको कूलिंग फील के नाम से जाना जाता है। अधिकांश कूलिंग टॉवर कूलिंग टॉवर के माध्यम से एयर ड्राफ्ट या एयरफ्लो बनाने के लिए एक विद्युत पंखे की मोटर का उपयोग करते हैं। और इस प्रकार के कूलिंग टॉवर को फोर्स ड्राफ्ट के नाम से भी जाना जाता है।
काउंटर-फ्लो बनाम क्रॉस-फ्लो कूलिंग टावर्स दो अलग अलग प्रकार के कूलिंग टॉवर होते हैं। क्रॉस फ्लो कूलिंग टावर्स के अंदर हवा और पानी का बहाव एक दूसरे के विपरित दिशा के अंदर होता है।
रिजर्व टैंक
दोस्तों रिजर्व टैंक आमतौर पर एक पानी का टैंक होता है। जिसके अंदर पानी को स्टोर किया जाता है। रिजर्व टैंक आमतौर पर बहुत बड़े टैंक होते हैं।यह टैंक नदी से जुड़े होते हैं। और नदी के अंदर से इनके अंदर पानी को एकत्रित कर लिया जाता है।इसके लिए एक पंप का प्रयोग किया जाता है। उसके बाद इस पानी को कूलिंग टॉवर के अंदर पहुंचाया जाता है।
दोस्तों रिजर्व टैंक की बनावट कई चीजों पर निर्भर करती है। पहली चीज तो यह है कि कुछ जगह ऐसी होती हैं जहां पर साल भर पानी की सप्लाई उपलब्ध नहीं होती है। ऐसी स्थिति के अंदर वर्षा के मोसम मे रिजर्व टैंक को पूरी तरह से भरा जाता है और जब पानी की सप्लाई कम हो जाती है तो फिर इस रिजर्व टैंक से पानी का प्रयोग किया जाता है। हालांकि जिन इलाकों के अंदर पानी की सप्लाई हमेशा बनी रहती है तो उन इलाकों के अंदर रिजर्व टैंक को अधिक बड़ा नहीं बनाया जाता है।
पानी का स्त्रोत
दोस्तों स्टोरेज टैंक के अंदर पानी को स्टोर करने के लिए एक नदी से जुड़ा होता है। हालांकि कोयले से बिजली को बनाने वाले प्लांट अधिकतर केस के अंदर पानी के स्त्रोत के आस पास ही बनाएं जाते हैं। ताकि पानी की किसी तरह से कमी नहीं पड़ जाए ।
इस तरह से सबसे पहले कोयला पानी को गर्म करता है और उसके बाद भाप बनती है और फिर उस भाप से टरबाइन चलाया जाता है जिससे बिजली बनती है। वैसे आपको बतादें कि मार्केट के अंदर छोटे टरबाइन भी आते हैं जिनको किसी जल धारा से यदि आप चलाते हैं तो उनकी मदद से बिजली पैदा की जा सकती है। लेकिन इन सबसे अच्छा बिजली पैदा करने का सिस्टम सोलर ही है।
टरबाइन के प्रकार
दोस्तों टरबाइन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। eaction and impulse टरबाइन ।वैसे इन टरबाइन के अंदर भी कई सारे प्रकार होते हैं। और आवश्यकता के अनुसार टरबाइनों का प्रयोग किया जाता है।बिजली उत्पादन के लिए अलग अलग पॉवर प्लांटों के अंदर अलग अलग तरह के टरबाइन का प्रयोग किया जाता है।आइए इस लेख के अंदर हम कुछ टरबाइन के बारे मे जान लेते हैं।
REACTION TURBINE
एक प्रतिक्रिया टरबाइन दबाव और चलती पानी की संयुक्त ताकतों से बिजली उत्पन्न करती है। और इस टरबाइन को सीधे पानी मे रखा जाता है। पानी ब्लैड के उपर से बह सकता है।रिएक्शन टर्बाइन आमतौर पर निचले सिर और उच्च प्रवाह वाली साइटों के लिए उपयोग किए जाते हैं।अमेरिका के अंदर प्रयोग किये जाने वाले टरबाइन के अंदर यह सबसे आम प्रकारों मे आता है।
Propeller Turbine
Propeller Turbine के अंदर तीन से छ ब्लैंडे होती हैं। और इसके अंदर पानी लगातार सभी ब्लैडों से संपर्क मे रहता है।पाइप के माध्यम से, दबाव स्थिर रहता है।यदि ऐसा नहीं होता है तो टरबाइन संतुलन से बाहर हो जाता है।
- बल्ब टर्बाइन : टर्बाइन और जनरेटर एक सीलबंद इकाई है जिसे सीधे पानी की धारा में रखा जाता है।
- स्ट्राफ्लो : जनरेटर सीधे टर्बाइन की परिधि से जुड़ा होता है।
- ट्यूब टर्बाइन : पेनस्टॉक रनर के ठीक पहले या बाद में झुकता है, जिससे जनरेटर से सीधा कनेक्शन हो जाता है।
कपलान टर्बाइन
कपलान टर्बाइन के अंदर दोनो ब्लेडें व विकेट गेट समायोज्य होता है। इस टरबाइन को ऑस्ट्रिया के आविष्कारक विक्टर कपलान ने 1919 में विकसित किया था ।
फ्रांसिस टर्बाइन
फ्रांसिस टर्बाइन एक पहली ऐसी टरबाइन थी जिसका आविष्कार ब्रिटिश-अमेरिकी इंजीनियर जेम्स फ्रांसिस ने 1849 में किया था।इसके अंदर एक फिक्स ब्लैड वाला रनर होता है।रनर के उपर और उसके चारों ओर पानी डाला जाता है जिससे कि टरबाइन घूमने लग जाता है।स्क्रॉल केस, विकेट गेट और एक ड्राफ्ट ट्यूब आदि इस टरबाइन के मुख्य हिस्से होते हैं।फ्रांसिस टर्बाइन क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों ओरिएंटेशन में अच्छी तरह से काम करते हैं।
Kinetic Turbine
काइनेटिक ऊर्जा टर्बाइन, जिन्हें फ्री-फ्लो टर्बाइन भी कहा जाता है। यह बहते पानी मे मौजूद गतिज उर्जा से बिजली पैदा करते हैं। नदियों, मानव निर्मित चैनलों, ज्वारीय जल या महासागरीय धाराओं के अंदर इस टरबाइन को स्थापित किया जा सकता है।हालांकि मानव निर्मित चैनलों, नदी तलों या पाइपों के माध्यम से पानी के मोड़ की आवश्यकता नहीं होती है,
आवेग टर्बाइन IMPULSE TURBINE
आवेग टरबाइन रनर को चलाने के लिए पानी के वेग का प्रयोग करता है।एक पानी की धारा धावक पर प्रत्येक बाल्टी से टकराती है। टरबाइन के नीचे की तरफ कोई सक्शन नहीं होने से, रनर से टकराने के बाद टरबाइन हाउसिंग के नीचे से पानी बह जाता है।मुख्य रूप से दो तरह के यह टरबाइन होते हैं। आवेग टर्बाइन पेल्टन और क्रॉस-फ्लो टर्बाइन हैं।
पेल्टन टर्बाइन का आविष्कार अमेरिकी आविष्कारक लेस्टर एलन पेल्टन ने 1870 ई के अंदर किया था।इसके व्हील के अंदर एक से अधिक मुक्त जेट होते हैं।पेल्टन टरबाइन उंचे हेड और कम वेग के लिए प्रयोग किये जाते हैं। इनके अंदर ड्राफट टयूब की आवश्यकता नहीं होती है।
Cross-Flow Turbine
मूल क्रॉस-फ्लो टर्बाइन को 1900 की शुरुआत में ऑस्ट्रियाई इंजीनियर एंथनी मिशेल द्वारा डिजाइन किया गया था। लेकिन बाद मे इसके अंदर हंगेरियन इंजीनियर, डोनाट बंकी ने इसमें सुधार किया, और जर्मन इंजीनियर फ्रिट्ज ओस्बर्गर द्वारा इसे और भी बेहतर बनाया गया।
यह टरबाइन देखने मे घूमावदार ड्रम का आकार का होता है और क्रॉस-फ्लो टर्बाइन ब्लेड के माध्यम से पानी को दो बार बहने देता है।इसके अंदर पहले पानी ब्लेड के अंदर से बाहर की ओर बहता है और दूसरी बार अंदर से पीछे की ओर बहता है।क्रॉस-फ्लो टर्बाइन को पेल्टन की तुलना में बड़े जल प्रवाह और निचले सिर को समायोजित करने के लिए विकसित किया गया था।
कोयला प्रदूषण
दोस्तों आपको पता होगा की आज भी भारत के अंदर बिजली पैदा करने के लिए कोयले आधारित पॉवर प्लांट का प्रयोग किया जाता है। आपको पता होगा कि पीछले दिनों न्यूज आई थी कि अमुक युनिट के पास सिर्फ इतने दिन का कोयला बचा है।यह सभी यूनिट कोयले को स्टोर करके रखती है।क्योंकि यदि समय पर कोयला नहीं पहुंच पाएगा तो यूनिट बंद हो सकती है इसलिए स्टोरेज प्लांट बनाए जाते हैं। लेकिन कोयला पॉवर प्लांट सस्ता होने के साथ ही सबसे अधिक प्रदूषण देने वाला होता है।
कोयले के जलने से सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड निकलती हैं जोकि हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायी होते हैं।
अमल वर्षा होना
दोस्तों आपने अम्ल वर्षा का नाम तो सुना ही होगा ।जब अम्ल वर्षा होती है तो यह पौधों और ईमारतों को नुकसान पहुंचाती है। नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOX) और सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) जैसे तत्वों के वातावरण मे अधिक होने से अम्ल वर्षा होती है।कोल प्लांट से निकलने वाली जहरीली गैंसे निरंतर वायुमंड को दुषित करती रहती हैं जिसके परिणाम स्वरूप अम्ल वर्षा का कारण बन जाती हैं।आपको यह बतादें कि अम्ल वर्षा दो तरह की होती है। एक गीली अम्ल वर्षा और दूसरी सूखी अम्ल वर्षा ।इन सबके अंदर उधोगों से निकलने वाली गैंसे भी शामिल होते हैं। और वाहनों का प्रदूषण भी शामिल होता है।
जब किसी स्थान पर अमल वर्षा होती है तो वनस्पति से लेकर सभी तरह के जीवों के लिए भी यह एक तरह से खतरा होता है।
वैसे आपको बतादें कि कोल प्लांट से उतना अधिक प्रदूषण से नहीं फैलता है जितना की नीजी वाहनों से फैलता है। यदि सरकार चाहे तो प्रदूषण को रोक सकती है। और सभी दुपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिकल मे कन्वर्ट करने पर जोर दे सकती है।अम्ल वर्षा के बहुत सारे नुकसान होते हैं। जिनके बारे मे भी आपको एक नजर डाल लेनी चाहिए ।
- जब अम्ल वर्षा होती है तो उसका जल नदियों और झीलों के अंदर चला जाता है जिससे कि उनका जल भी दूषित हो जाता है और जितने भी जीव इसके अंदर रह रहे हैं उनकी मौत होने लग जाती है। उनके रहने योग्य पानी नहीं बच पाता है।
- और जब यह अम्ल वर्षा फसल पर होती है तो इसकी वजह से फसल को फायदा होने की बजाय नुकसान होने लग जाता है।और फसल मरने लग जाती है।
- जब अम्ल वर्षा होती है तो यह जंगलों को भी प्रभावित करती है।अम्ल वर्षा की वजह से जंगलों की वृद्धि रूक जाती है और उसके बाद इनका विस्तार बहुत ही कम हो जाता है।
- अम्ल वर्षा काफी घातक होती है। इस वजह से यह ईमारतों को काफी नुकसान पहुंचा सकती है।अम्ल वर्षा की वजह से ताजमहल को काफी नुकसान हुआ है।
- त्वचा पर दाने निकलना, खुजली, बालों का झड़ना और श्वास रोग और फेफड़ों की समस्याएं जन्म लेती हैं।
- इसके अलावा हम जो पानी पीते हैं उसके अंदर भी अम्ल वर्षा का जल मिल जाता है जिसकी वजह से यह पानी को दूषित कर देती हैं। और उसके बाद पानी पीने योग्य नहीं रहता है।
जल प्रदूषण
दोस्तों कोल पॉवर प्लांट से निकलने वाले कचरे से जल प्रद्रूषण भी होता है।जो कचरा इन पॉवर प्लांट से निकलता है वह पानी के स्त्रोतों के अंदर चला जाता है जिसकी वजह से पानी दूषित हो जाता है।
कोयले की राख के भंडारण तालाबों या लैंडफिल से भूजल में रिसने वाली भारी धातु जैसे प्रदूषक , संभवतः दशकों या सदियों तक पानी को प्रदूषित करते हैं। इन धातुओं के अंदर आर्सेनिक , सीसा , पारा , सेलेनियम , क्रोमियम और कैडमियम शामिल हैं ।
कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों से बड़ी मात्रा मे पारा उत्सर्जित होता है। जिससे कि वायुमंडल के अंदर बड़ी मात्रा मे पारा आ जाता है।और जल के दूषित होने की वजह से मछली और दूसरे जानवर मरने लग जाते हैं।
आमतौर पर कायले के जलने से निकलने वाली राख को बाहर डाल दिया जाता है जोकि पानी के स्त्रोतों के अंदर चली जाती है। जिससे कि पानी दूषित हो जाता है।
कोयला आधारित पावर स्टेशन list
N | कोयला आधारित (एनटीपीसी के स्वामित्व में) | राज्य | क्षमता (मेगावाट) |
1. | सिंगरौली | Uttar Pradesh | 2,000 |
2. | टोकरी | छत्तीसगढ | 2,600 |
3. | रामगुंडम | तेलंगाना | 2,600 |
4. | फरक्का | पश्चिम बंगाल | 2,100 |
5. | Vindhyachal | Madhya Pradesh | 4,760 |
6. | Rihand | Uttar Pradesh | 3,000 |
7. | Kahalgaon | बिहार | 2,340 |
8. | दादरी | Uttar Pradesh | 1,820 |
9. | तालचेर कनिहा | ओडिशा | 3,000 |
10. | फिरोज गांधी, ऊंचाहारी | Uttar Pradesh | 1,550 |
1 1। | सिम्हाद्री | आंध्र प्रदेश | 2,000 |
12. | संकेत | Uttar Pradesh | 1,760 |
13. | प्रकृति | छत्तीसगढ | 2,980 |
14. | मौदा | महाराष्ट्र | 2,320 |
15. | Barh | बिहार | 1980 |
16. | बोंगईगांव | असम | 750 |
17. | कुडगी | कर्नाटक | 2400 |
18. | सोलापुर | महाराष्ट्र | 1320 |
19. | लारास | छत्तीसगढ | 1600 |
20. | Barauni | बिहार | 720 |
21. | Gadarwara | Madhya Pradesh | 1600 |
22. | Khargone | Madhya Pradesh | 1320 |
23. | दार्लीपाली | उड़ीसा | 1600 |
कुल | 48,120 |
कोयला आधारित संयुक्त उद्यम/सहायक कंपनियां
श्री नहीं। | कोयला आधारित (संयुक्त उद्यम/सहायक कंपनियों के स्वामित्व में) | राज्य | कमीशन क्षमता |
1. | दुर्गापुरी | पश्चिम बंगाल | 120 |
2 | राउरकेला | ओडिशा | 120 |
3 | Bhilai | छत्तीसगढ | 574 |
4 | कांत | बिहार | 610 |
5 | IGSTPP, Jhajjar | हरियाणा | 1500 |
6 | Vallur | तमिलनाडु | 1500 |
7 | Nabinagar-BRBCL | बिहार | 750 |
8. | टेबल | Uttar Pradesh | 1320 |
9. | Nabinagar-NPGC | बिहार | 1320 |
कुल | 7,814 |
कोयले की कमी के कारण
दोस्तों आपको पता ही होगा कि बिजली पैदा करने के लिए कोयले का उत्पादन बहुत ही जरूरी होता है। बिना कोयले के बिजली पैदा की जा सकती है लेकिन इसके अंदर दूसरे तरीकों का प्रयोग किया जाता है। हालांकि भारत मे अभी भी कोयले का प्रयोग बिजली उत्पादन मे अधिक किया जा रहा है। पीछले दिनों आपने यह भी सुना होगा कि देश के अंदर बहुत अधिक कोयले की कमी आ रही है। इस वजह से राजस्थान और दूसरे भारत के कई राज्यों के अंदर बिजली संकट पैदा हो गया है। और आपको तो पता ही है कि उसके बाद एक सरकार दूसरी पाटी पर आरोप प्रत्यारोप करने लग जाती हैं।
असल मे ऐसा नहीं है कि भारत मे अभी कोयले की कमी है। लेकिन 2021 का प्रोडक्शन 2019-20 की तुलना में 6 फीसदी ज्यादा कोयले का प्रोडेक्सन हुआ था।और सन 2021 मे कोयले का डिस्पेच भी अधिक हो रहा है। कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) ने इस साल कोयले का अधिक उत्पादन किया लेकिन कुछ कारण हैं जिसकी वजह से बिजली संकट पैदा हो गया तो आइए उन कारणों पर भी चर्चा कर लेते हैं।
अधिक बिजली की मांग होना
दोस्तों बिजली की कमी होने का कारण यह है भी है कि भारत तेजी से विकास कर रहा है। जैसे जैसे लोग आर्थिक रूप से काफी मजबूत होते जा रहे हैं उनकी जरूरते भी बढ़ती जा रही हैं। जिसकी वजह से बिजली की अधिक मांग हो रही है। अधिक मांग को पूरा करने के लिए अधिक कोयले का उत्पादन जरूरी है। जिसकी वजह से भी कोयले की कमी आई है।
पॉवर प्लांट मे कोयले का स्टॉक ना रखना
दोस्तों हर पॉवर प्लांट के पास कोयले का स्टोक होता है ताकि अमरजेंशी के अंदर उसको इस्तेमाल किया जा सके । और इसके लिए बिजली कंपनी को भुगतान करना पड़ता है। अक्सर यह दिखाया जाता है कि बिजली कंपनियां घाटे मे ही चलती हैं। जिसकी वजह से वे कोल उत्पादन कंपनी को ठीक तरह से भुगतान नहीं कर पाती हैं तो कोल खरीद नहीं पाती हैं जिसकी वजह से स्टोरेज संभव नहीं हो पाता है। और ऐसी स्थिति के अंदर जब कोयले की सप्लाई रूक जाती है तो वे अधिक समय तक बिजली का उत्पादन नहीं कर पाती हैं क्योंकि स्टॉक खत्म हो जाता है।
बारिश से कोयले का उत्पादन
दोस्तों बारिश होने की वजह से भी कायले का उत्पादन प्रभावित होता है। बारिश होने की वजह से कोयले की खदानों मे पानी भर जाता है जिसकी वजह से कोयले को नहीं निकाला जा सकता है। उस स्थति को सही होने मे काफी समय लग सकता है। जिससे कोयले का उत्पादन प्रभावित होता है। और जिन यूनिट के पास कुछ दिनों का कोयला शेष रहता है उनको बंद करना पड़ता है। इस तरह से उत्पादन प्रभावित होता है।
विदेशी कोयले का भाव बढ़ना
दोस्तों फिल्हाल विदेशी कोयले के भाव मे तेजी आने से सभी कोयला उपयोगकर्ता देशी कोयले पर निर्भर रहने लगें जिससे कि मांग काफी तेजी से बढ़ी लेकिन उसकी तुलना मे उत्पादन सही तरीके से नहीं हो पाया तो इससे बिजली उत्पादन प्रभावित होने लगा । क्योंकि बिजली उत्पादन के लिए काफी अधिक मात्रा मे कोयला चाहिए जिससे कि मिल नहीं पा रहा था और काफी समस्याएं होने लगी ।
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This post was last modified on November 12, 2021