वैसे आपको बतादें कि माली का स्त्रीलिंग mali ka striling kya hai शब्द मालन होता है। वैसे मालन एक महिला का नाम होता है। हमारे यहां पर मालन उस महिला को कहा जाता है जोकि शहर के अंदर गाजर वैगरह या सब्जी वैगरह को बेचा जाता है। हालांकि वर्तमान मे जाति आधारित व्यवस्था उतनी अच्छी तरह से काम नहीं करती है।इसका कारण यह है कि लोग अपने पसंद के अनुसार व्यवासाय को चुन रहे हैं इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए। इसलिए जो महिला सब्जी वैगरह बेच रही है उसको मालन कहा जाए जरूरी नहीं है। क्योंकि वह किसी और जाति की हो सकती है। लेकिन माली का स्त्रीलिंग मालन होता है।
माली माली हिंदुओं की एक व्यावसायिक जाति से ताल्लुक रखते हैं जो परंपरागत रूप से फूलवाला और माली के रूप में कार्यरत थे। फूलवाला के रूप में काम करने के कारण उन्हें फूल माली के नाम से भी जाना जाता है। माली उत्तर भारत, पूर्वी भारत और नेपाल और महाराष्ट्र में तराई क्षेत्र में पाया जा सकता है।
एक मानवविज्ञानी इरावती कर्वे ने बताया कि कैसे मराठा जाति की उत्पत्ति कुनबी से हुई जिन्होंने “मराठा” शब्द का उपयोग करना शुरू किया। कर्वे कहते हैं कि यह सच है कि मराठा, कुनबी और माली तीन प्राथमिक समुदाय हैं जो महाराष्ट्र में खेती करते हैं।
अंतर यह है कि मराठा और कुनबी “सूखे किसान” थे, जबकि माली साल भर खेती करते थे। वे महाराष्ट्र के माली काश्तकारों का एक समूह हैं जो बागवानी के क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं। जाति पश्चिमी महाराष्ट्र के पांच जिलों और विदर्भ क्षेत्र के भीतर एक जिले में स्थित है।
फलों के साथ-साथ फूलों और सब्जियों की खेती से अपना जीवन यापन करने का पारंपरिक तरीका। भोजन के प्रकार के आधार पर विभिन्न उप-जातियां हैं, विशेष उप-समूह खेती कर रहा था, उदाहरण के लिए, फूल माली फूलवाले थे। जबकि जीरे माली ने जीरा और जीरा उगाया,
और हलदे माली ने हलाद (हल्दी) और अन्य की खेती की। 20वीं शताब्दी में माली ने गन्ना जैसी नकदी फसलों की खेती के लिए सिंचाई का उपयोग करने वाले और किसान-स्वामित्व वाली चीनी मिलों की स्थापना में सबसे पहले देखा। इसके परिणामस्वरूप बाद में सदी में अन्य समुदायों द्वारा पश्चिमी महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती की गई और साथ ही पूरे महाराष्ट्र के साथ-साथ भारत के अन्य क्षेत्रों में कई चीनी मिलों की स्थापना की गई।
19वीं सदी के समाज सुधारक, ज्योतिराव फुले माली समुदाय से थे। उनके प्रयास विभिन्न क्षेत्रों में फैले, जिनमें जाति और अस्पृश्यता का उन्मूलन, जाति व्यवस्था और साथ ही महिलाओं की मुक्ति शामिल थी। वह और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले महिलाओं की शिक्षा और भारत के दलितों के अग्रदूत थे। वे भारत में लड़कियों के लिए एक संस्था शुरू करने वाले पहले मूल भारतीयों में से एक थे। उन्होंने गर्भवती हिंदू ब्राह्मण विधवाओं के लिए उनके परिवार के सदस्यों के कारण हटाई गई एक संस्था भी स्थापित की।
1873 में फुले ने अन्य अनुयायियों के साथ मिलकर सत्यशोधक समाज (सत्य के साधकों का समाज) की स्थापना की ताकि निचली जातियों के लोगों के लिए समानता सुनिश्चित की जा सके। माली के अन्य जैसे ज्ञानोबा नारायण लोखंडे और सासाने समाज के सबसे प्रमुख सदस्यों और समर्थकों में से थे। 12 लोखंडे को भारत में ट्रेड यूनियनवाद के संस्थापक के रूप में जाना जाता है
मालिस के भीतर कई अंतर्विवाहित समूह हैं। कई अलग-अलग माली समूह समान सांस्कृतिक, जातीय, सामाजिक स्थिति या इतिहास को साझा करते हैं। कम से कम एक समूह भी है जो राजस्थान से राजपूत माली का है, जो राजपूतों का एक हिस्सा है और मारवाड़ के लिए 1891 की राज्य जनगणना रिपोर्ट की राजपूत उप-श्रेणी में शामिल था ।
वैसे भारत के अंदर अलग ललग तरह की जातियां आई थी। और यह जो माली जाति होती है वह अब माली के काम तक ही सीमित नहीं रह गई है। प्राचीन काल के अंदर इस तरह की व्यवस्था हुआ करती थी कि जो इंसान बाडी वैगरह का काम जैसे सब्जी उगाना आदि करता था उसको माली के नाम से जाना जाता था।
मतलब यही है कि पहले इंसान को उसके कर्म के अनुसारी ही पहचाना जाता था हालांकि अब समय काफी बदल चुका है तो तो अब कर्म से इंसान की उतनी पहचान नहीं रह गई है। आजकल पहचानने के लिए बस एक चीज है और उसका नाम है पैसा ।।
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This post was last modified on October 14, 2022