आइए mangalvar vrat katha & aarti मंगलवार की व्रत कथा सुनते हैं। भगवान हनुमान जी के बारे मै रामायण मै इनके बारे मे बहुत कुछ देखने को मिलता है । ज्योतिषीयों अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश भगवान हनुमान का जन्म था है ।
हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है और इंहे बलवान और बुद्धिमान माना जाता है । रामायण मे भगवान देवी जानकी के बहुत प्रिय है ।
भगवान हनुमान जी का अवतार भगवान राम की साहयता के लिये हुआ था । जीसमे इनकी बल की गाथाओ के बारे मे जानकारी प्राप्त होती है
भगवान हनुमान वानर राज केसरी तथा अंजना के पुत्र थे । हनुमान जी की माता के बारे मे एसा माना जाता है की वह स्वर्ग की अपसरा थी जन्हें साप के कारण मानव योनि मे जन्म लेना पडा था । ओर भगवान हनुमान जी के बारे मै एसा कहा जाता है की वे गुरु बृहस्पति के पुत्र थे वन राजा केसरी के पुत्र छ थे ।उनके नाम इस प्रकार है हनुमान, मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान । जीनमे से सबसे बढे हनुमान थे ।
इन्हे बजरगबली के नाम से जाना जाता है इन्हे पवन का पुत्र माना जाता है । वायु ने यानी पवन देवता ने हनुमान को पालने मे महत्वपूर्ण भुमिका निभाई थी इस कारण इन्हे इन्ही का पुत्र माना जाता है । हनुमान को मारुती के नाम से भी जाना जाता है । बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि नामो से जाना जाता है ।
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मंगलवार व्रत कथा mangalvar vrat ki katha aur aarti
प्राचीन समय की बात है एक नगर मे एक ब्राह्मण ओर उसकी पत्नी रहती थी । उनके कोई संतान नही थी इस कारण उन्हें किसी ने बताया की अगर वे हनुमान जी का मगलवार का व्रत को सही तरीके से कर हनुमान जी से कामना करे तो उन्हें संतान प्राप्ती हो जायेगी ।
एक बार ब्राह्मण वन मे हनुमान जी की पूजा करने के लिये गये वहा पर ब्राह्मण ने पूजा करके हनुमान जी से पुत्र की कामना की और घर मे उसकी पत्नी मगलवार का व्रत कर रही थी । वह रोजाना भगवान हनुमान जी को भोग लगाकर स्वयं भोजन किया करती थी ।
एक बार ब्राह्मणी ने प्रण लिया की वह अगले मंगलवार को भोजन बनाकर भगवान को भोग लगाएगी ओर बादमे स्वयं अगले मंगलवार को ही भोजन करगी । उसने छ दिन तक कुछ नही खाया और मंगलवार के दिन वह भुख के कारण बेहोस हो गई । प्रभु हनुमान जी उसकी भक्ति और सच्ची निष्ठा को देखकर प्रसन्न होकर उसे एक बालक दिया और कहा की यह तुम्हारी बहुत सेवा करेगा ।
बालक को पाकर ब्राह्मणी खुश हो गयी ओर उस बालक का नाम मंगल रखा । जब ब्राह्मण अपने घर आया तो देखा की उसके घर मे एक बालक खेल रहा है वह अपनी पत्नी के पास गया ओर बोला की यह बालक कोन है ब्राह्मणी ने कहा की यह बालक हमारा है भगवान हनुमान जी मेरे व्रत से प्रसन्न होकर मुझे यह बालक दिया है ।
ब्राह्मणी की बातो पर ब्राह्मण को विश्वास नही हुआ । एक दिन ब्राह्मण ने देखा की बालक अकेला ही खेल रहा है वहा पर कोइ नही था । तब ब्राह्मण ने उस बालक को उठा कर कुवे के अंदर फेक दिया ।
कुछ समये के बाद ब्राह्मणी घर पर लोटी और पुछा की मंगल कहा पर है तब मंगल बोला की मा मे आ गया । बालक को देखकर ब्राह्मण सोचने लगा की मेने तो इसे कुवे के अंदर फेक दिया था वह वापस केसे आ गया । वह सारे दिन यही बात सोचता रहा और जब वह सौ गया तो रात को भगवान हनुमान जी उनके सपने में आकर बोले की यह मेरा दिया हुआ बालक ही है यह सुनकर उसकी आखे खुल गयी और वह यह जानकर बहुत खुस हुआ । ब्राह्मण ओर उसकी पत्नी दोनो ही प्रेम भाव से व्रत करने लगे । भगवान हनुमान जी का व्रत करने से कष्ट के साथ साथ सारी मनोकामना पुरी होती है । और घर मे सुखी छाई रहती है ।
मंगलवार व्रत की विधी
मंगलवार दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए ।स्नान करने के बाद लाल रग के वस्त्र धारण कर लेना चाहिए तथा बादमे लाल फूल व सिंदूर व लाल कपडे अपले पास रख ले । पुरी श्र्रदा के साथ हनुमान जी की आरती करे हनुमान चालीसा पड ले ।
हनुमान जी को भोग लगा दे और वस्त्र आदी सामग्री भगवान हनुमान जी को चोढ दे ।हनुमान जी को भोग लगाकर उन्हे जल का सेवन करा दे ।
हनुमान जी को शाम को बेसन के लड्डू ले कर चढा देना चाहिए । और खीर का सेवन भी कराया जाये तो उपयुक्त माना जाता है ।हनुमान जी से अपनी इंच्छा पुरी करने का आग्रह करे और बादमे स्वयं भेजन ग्रहण करे ।
मंगलवार व्रत महत्व
अपने प्रिय देवता के व्रत करकर हम अपनी मनोकामना पुरी करने का आग्रह कर सकते है पर अलग अलग इंच्छा के लिये अलग अलग देवता के व्रत किया जाता है ।
मंगलवार व्रत करने से मनुष्य को सुख का अनुभव होने लगता है ।साथ ही अपने घर मे सभी के प्रती आपका प्रेम बढ जाता है ।और आपको सभी महत्व देने लगते है । मंगलवार का व्रत करकर संतान प्राप्ति की जा सकती है।
मंगलवार के व्रत करने से भगवान भय जेसी समस्या से दुर कर देते है साथ ही आपके चेहरे पर खुसी छाई रहती है ।
इस व्रत को करकर आप धन की प्राप्ति कर सकते है तथा रोगो से मुक्ति मिलती है । और मोह रुपी इस संसार से मुक्ति मिल जाती है । जिन लोगो को मंगल का दोष हो वह मंगलवार व्रत करकर दूर किया जा सकता है ।शनी की दशा से मुक्ति मिलती है ।
मंगलवार व्रत की आरती mangalvar vrat katha
बाल समय रवि भक्ष लियो,
तब तीनहुं लोक भयो अंधियारों |
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ||
देवन आनि करी विनती तब,
छाडि दियो रवि कष्ट निवारो |
को नाहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो || को०
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ||
चौंकि महामुनि शाप दियो,
तब चाहिये कौन विचार विचारो |
कैद्विज रूप लिवास महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो || को०
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो |
जीवत ना बचिहौं हम सों जु,
बिना सुधि लाए इहं पगुधारो |
हेरि थके तट सिंधु सबै तब,
लाय सिया सुधि प्राण उबारो || को०
रावण त्रास दई सिय को तब,
राक्षस सों कहि सोक निवारो |
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाय महा रजनीचर मारो |
चाहत सिय अशोक सों आगिसु,
दै प्रभु मुद्रिका सोक नवारो || को०
बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावण मारो |
लै गृह वैद्य सुखेन समेत,
तबै गिरि द्रोंन सु-बीर उपारो |
आनि संजीवनि हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्राण उबारो || को०
रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फांस सवै सिर डारो |
श्री रघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो |
आन खगेश तबै हनुमान जु,
बन्धन काटि सुत्रास निवारो || को०
बंधु समेत जबै अहिरावण,
लै रघुनाथ पाताल सिधारो |
देविहि पूजि भली विधि सों बलि,
देऊं सबै मिलि मंत्र विचारो |
जाय सहाय भयो तबही,
अहिरावणसैन्य समेत संहारो || को०
काज किए बड़ देवन के तुम,
वीर महाप्रभु देखि विचारो |
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो |
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ||
श्री हनुमान चालीसा
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
मंगलवार व्रत के भजन
सुग्रीव बोले वानरों तत्काल तुम जाओ
श्री जानकी मैया का पता मिल कर तुम लगाओ
होकर निराश तुम जो मेरे पास आओगे
ये सुनलो कान खोल कर सब मारे जाओगे
ये हुकुम सुनकर चल पड़ी सुग्रीव की पल्टन
सब खोज डाले एक एक जंगल पहाड़ वन
माँ अंजनी के लाल को सब मिलकर पुकारे
हम सब शरण है आपकी अब लाज बचाओ
उठो हे महावीर ना अब देर लगाओ
श्री जानकी मैया का पता जाकर लगाओ
ये सुनकर गरज कर उठे
जब वीर वर हनुमान
थर्रा गयी जमी और
काँप गया आसमान
वीरो के भी शिरोमणि
बलवान जब चले
हनुमान जब चले
वीरो के भी शिरोमणि
बलवान जब चले
हनुमान जब चले
वीरो के भी शिरोमणि
बलवान जब चले
श्री रामजी का करते
ध्यान जब चले
रावण का तोड़ने को
अभिमान जब चले
धर कर विराट रूप
बन तूफ़ान जब चले
लंका दहाड़े हुए हनुमान जब चले
वीरो के भी शिरोमणि
बलवान जब चले
हनुमान जब चले
माता को खोजने चले जब
अंजनी कुमार
सब वानरों के दल में
मची जय जय कार
मारी छलांग और समुन्द्र हुए पार
आकाश दोल उठा
और हिल गया संसार
विकराल गदा वो हाथ में तान जब चले
बलवां जब चले
लंका को फूक डाले
अंजनी के लाल
दुश्मन को चबा डाले
वो बनके महाकाल
लंका को बनाकर के
शमशान जब चले
वीरो के भी शिरोमणि जब चले
लंका दहाड़ते हुए
हनुमान जब चले
बलवान जब चले
वीरो के भी शिरोमणि जब चले
बलवान जब चले
हनुमान जब चले
हनुमान का सूर्य को फल समझना
हनुमान जी के बालय अवस्था की बात है एक दिन हनुमान जी की माता जी उन्हे आश्रम मे अकेला छोडकर चली जाती है । भगवान हनुमान जी बहुत छोटे थे उन्हे पता नही था की फल कहा लगते है उन्हें बस इतना पता था की सेव लाल रग का होता है । और जब हनुमान जी को भुख लगती है तो वे उगते हुए सूर्य को खाने के लिये पवन की गति से भी तेज उडकर उसे पकडने के लिये के चल पडे ।
सूर्य की तेज अग्नि उनका कुछ न बिगाड सकी । वे जल्दी से सूर्य के पास पहुचना चाहते थे । जब हनुमान जी सूर्य को पकडने वाले थे तभी राहु सूर्य को ग्रहण लगाने वाला था जब राहु ने सूर्य को पडने वाले थे तो वहा पर हनुमान को देखकर भयभीत होंकर इंद्र के पास जा पहुंचा और उनसे कहा की देव आपने आज के दिन ही सूर्य को ग्रहण लगाने के लिये मुझे कहा था ।पर वहा पर तो एक ओर राहु है जो सूर्य को खाने के लिये चला आ रहा है ।
राहु की बात सुनकर इंद्र देखने के लिये चल पडे और जब राहु ने हनुमान जी को सूर्य को खाने के लिये रोकने लगे तो हनुमान जी ने सूर्य को छोड कर राहू को मारने के लिये चल पडे । राहु हार कर इंद्र को साहयता के लिये बुलाता है ।
इंद्र हनुमान से कहते है की बालक तुम सूर्य को क्यो खाना चाहते हो तुम यहा से चले जाओ वरना तुम्हारे लिये अच्छा नही होगा । पर भगवान हनुमान जी ने इंद्र की एक बात नही सुनी वह जल्दी से जल्दी अपनी भुख मिटाना चाहते थे
जब इंद्र की बातो का हनुमान पर कोई प्रभाव नही पडता हुआ दिखा तो इंद्र ने वज्रायुध हनुमान पर प्रहार कर दिया जिससे उनकी बायीं ठुड्डी टुट कर गिर गयी ओर हनुमान जी एक पहाड पर गिर गए । हनुमान जी की यह दसा देखकर वायु देव ने पहले उसे सुरक्षित स्थान पर ले जाते है
और बाद मे पुरे संसार से अपनी गति को रोक लेते है । जिससे पुरे संसार के प्राणी को स्वास लेने मे तकलीफ होने लगी और धीरे धीरे संसार के प्राणी मरने लगे । ब्रह्मा जी को यह ज्ञात हुआ की वायुदेव ने अपनी गति को रोक लिया है और संसार के प्राणी मरने लगे है ।
ब्रह्मा जी वायुदेव के पास पहुचे और तभी इंद्र और समस्थ देवगण वहा पर पहुचे । ब्रह्मा जी ने वायुदेव के ऐसा करने का कारण पूछा तो वे ब्रह्मा जी से कहते है की इंद्र ने मेरे पुत्र को वज्रायुध से प्रहार किया है । और हनुमान मूच्रि्छतअवस्था मे यहा पर पडे है । यह सुनकर इंद्र वायुदेव से क्षमा याचना करते है और वायु को चलाने के लिये कहते है ।
पर पवन देव को अपने पुत्र हनुमान की चिन्ता थी । तभी ब्रह्मा जी ने हनुमान जी को जीवन दान देया और पवन पुत्र हनुमान को वरदान दिया की कोई भी शस्त्र इसके शरीर को हानी नही पहुचा सकता है । इंद्र ने कहा की इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा । सूर्य देव ने कहा की इसकी मेरी ज्वाला कभी भी हानि नही पहुंचा सकती है।
मेरा तेज इसे शतांश प्रदान करेंगा । वरुण देव ने कहा की मेरे से और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा । यमदेव ने अवध्य और निरोग रहने का वरदान दिया । और इस प्रकार हनुमान जी को वरदान दिये गये और पवन देव ने वायु को चलाने का कार्य प्रारम्भ कर दिया । जिससे संसार के सभी प्राणी का जीवन वापस चलने लगा।
हनुमान के दवा्रा पुल का निर्माण
जिस समय श्री राम लका मे युद्ध करने के लिये जा रहे थे तो बीच मे एक लम्बी नदी पडती थी जिसे पार करकर उनको जाना था इस करण राम ने समुद्र देवता से आग्रह करते है की आप हमे उस और जाने का रस्ता प्रदान करने कृपा करे ।
तो समुद्र देवता कहते है की अपकी सेना मे नल और नील ऐसे है जीन को पुल निर्माण करने मे पूर्ण दक्षता हाशिल है वे आपकी सेना को उस ओर ले जाने मे आपकी बहुत बडी साहयता कर सकते है । तब श्री राम ने नल ओर निल को बुलाया ओर कहा की है नल और नील आप सेतुबंध बनाने मे हमारी साहयता करे ।
नल ओर नील यह कार्य पाकर प्रसन्न हुए ओर कहा की इस कार्य को हमे मिला है यह हमारा सौभाग्य है । नल ओर नील अपने कार्य मे जुट गये । परतु अन्होने देख की पत्थर पानी मे डूब रहे है । तो वे इस समस्या को हनुमान को बताते है वन राजा केसरी के पुत्र हनुमान ने पत्थर पर सच्चे मन से लिख जये श्री राम और नल ओेर निल को कहा की अब इसे समुद्र मे रख दो तो वे देखते है की पत्थर पानी मे तैरने लगा ।
और इसी प्रकार वानर भालू हनुमान जी को पत्थर लाकर देते गये और हनुमान जी उनपर श्री राम नाम लिखते चले जा रहे थे । जब सभी ने देखा की पत्थर तैरने लगे है तो वे सारे चौक उठे पर हनुमान जी को ऐसा कुछ नही हुआ क्युकी उन्है अपने प्रभू श्री राम पर पुरा विश्वास था । जिससे वे श्री राम नाम लिखते गए और सभी पत्थर तैरते रहे । सेतुबंध का कार्य जल्दी चल रहा था ।
जब श्री राम को यह ज्ञात हुआ की हनुमान जी ने पत्थर पर आपका नाम लिखकर नल ओर नील को दे रहै है और पत्थर समुद्र मै तेरने लगे है तो राम को भी इस बात पर विश्वास नही हुआ । दिन बितते गये ओर रात हो गयी सभी सौ गए मगर राम को नींद न आयी । वे चुपचाप उठे और सेनिको से छुपकर नदी के किनार जा पहुंचे उन्होने देख की वहा पर कोई नही था चारो ओर शांति छाई हुइ थी ।
तब श्री राम ने एक पत्थर लिया ओर उसे समुद्र मे फेका वह तुरंत समुद्र मे डुब गया । वे सोचने लगे की पत्थर पानी मे केसे डूब गया फिर सोचा की इसपर अपना नाम लिखकर समुद्र मे गिराता हूं । जब उन्होने ऐसा किया तो वे देखते है की वह समुद्र मे नही डूबा उन्हे कुछ समझ मे नही आया ।
राम की यह क्रिया हनुमान जी चुपकर देख रहे थे और जब हनुमान ने राम को आश्चर्य देखा तो वे राम के पास गये । श्री राम के पास जाकर हनुमान बोले है प्रभु आप यह क्या कर रहे है तो राम जी बोले की हनुमान यह सब केसे हो रहा है ।
तो हनुमान जी बोले की प्रभु आपके नाम मे इतनी शक्ति है जितनी आप मे नही है । यह तो आपने भी करकर देख लिया है । हनुमान बोले की प्रभू जिसे आपने छोड दिया वह तो डुबेगा ही पर जिसे आपके नाम का भी सहारा मिल जाए वह तैरता रह जायेगा ।
तब श्री राम बोले की कहना तुम्हारा उपयुक्त है भविष्य मे केवल नाम ही होगा जिसके कारण भगतजन संसार से तैर जाएगे । फिर राम बोले चलो अब विश्राम कर लेना चाहिए ।
मंगलवार व्रत कथा 2
बहुत समय पहले की बात है एक बार अस्सी हजार मुनी एकत्रित होकर पुराणो के ज्ञाता श्री सेतु जी से पूछने लगे कि हैं मूनी आप हमे ऐसी कथा सुनाइऐ जिसे कर कर पुत्र प्राप्ति की जा सके और मनुष्य को भय जेसी समष्या से आसानी से निपटा जा सके ।
क्योकी कलयुग मे कष्ट बहुत है वे सभी उसी से बाहर निकलने मे अपना जीवन व्यतित कर देते है इस कारण मनुष्स इश्वर मे अपना ध्यान नही लगा सकते है ।
तब श्री सेतू जी कहते है कि है मुनियों आपने लोक कल्याण के लिय बहुत ही अच्छी बात पुछी है । एक बार युधिष्ठिर ने भी श्री कृष्ण से यह बात पुछी थी । तब श्री कृष्ण ने जो युधिष्ठिर से जो कहते है मै आपको वह बात बताता हू ।
एक समय की बात है की श्री कृष्ण पाण्डवो की सभा मे बेठे थे श्री कृष्ण पाण्डवो को उपदेस दे रहे थे । तब युधिष्ठि ने श्री कृष्ण से पुछा की है प्रभु कोई ऐसी कथा सुनाइये जिसे कर कर मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाये और उनको पुत्र प्राप्त हो ।
श्री कृष्ण बोले हे युधिष्ठिर आपको मे एक ऐसी ही कथा सुनाता हु कुण्डलपुर नामक नगर मे एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम नन्दा था । उसके पास धन दोलत की कोई केमी नही थी पर वह बहुत दुखी रहता था क्योकी उसकी पत्नी सुनन्दा के कोई संतान नही थी। सुनन्दा श्री हनुमान जी की भग्ति करती थी ।
वह हर मंगलवार का व्रत करके हनुमान जी को भोजन लगाकर स्वयं भोजन करती थी । एक दिन वह मंगलवार का व्रत तो रख लेती है पर काम की अधीकता के कारण वे भुल जाती है ।और रात को याद आता है की वे मंगलवार का व्रत रख रखा है मगर न तो वेहनुमान जी को भोग लगाया है और न ही स्वयं ने खाना खाया है ।
वह सोचती है की अब तो वे अगले मंगलवार तक कूछ नही खयेगी और अगले मंगलवार को ही हनुमान जी को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करगी । सुनन्दा रोजाना भोजन बनाकर अपने पति को खिला देती और स्वयं भोजन नही करती बल्कि प्रति दिन और रात को हनुमान हनुमान नाम को जपते रहती थी ।
इस प्रकार चलते चलते 6 दिन अराम से बित गये पर पर 7 वे दिन प्रात: ही वह बेहोस होकर गीर गयी । घर पर कोई नही था इस कारण किसी को पता नही चला की वह बेहोस होकर गिर गयी है । इस भग्ति को हनुमान जी ने देखकर बहुत खूसी हुई । वे सुनन्दा के पास आये और बोले की हे सुनन्दा मे तुम्हारी भग्ति को देखर बहुत अधिक खुस हुआ हूं मांगो तुम्हे क्या वरदान चाहिए ।
सुनन्दा ने कहा की है देव हमारे पास यु तो सब कुछ है पर संतान की कमी है अगर आप हमे संतान प्राप्ति का आशिर्वाद दे दिजीये । हनुमान जी ने कहा की देवी सुनन्दा मे तुम्हारी भग्ति से बहुत खुश हु इस कारण मै तुम्हे यह वरदान देता हु की तुम्हरे घर मे एक कन्या का जन्म होगा ।
उस कन्या के पास प्रतिदिन सोना आयेगा इतना कहकर हनुमान जी वहा से चले गये । सुनन्दा यह खुशखबरी अपने पति को देने के लिये गयी । नन्दा यह समाचार सुनकर खुश हुआ पर साथ दुखी भी था की उसके घर मे कन्या का जन्म होगा पर वह सोने के बारे मे सोचकर ज्यादा खुश था ।
श्री हनुमान जी की कृपा से सुनन्दा के घर मे दस माह के बाद एक सुन्दर कन्या ने जन्म लिया । और उस कन्या का दस दिन बाद नामकरण किया गया और इस कन्या का नाम रत्नावली रखा गया ।
रत्नावली का अष्टांग बहुत सारा सोना देता था जिसके कारण सुनन्दा और नन्दा बहुत अधीक धनवान हो गये थे । सोना पाकर सुनन्दा को घमण्ड होने लगा था । अब रत्नावली की आयु 10 वर्ष हो गई थी । सुनन्दा अपनी पुत्री का विवाह करने के बारे मे सोचने लगी । इस कारण वह अपने पति से बात करती है ।
तो नन्दा नही मानता है वह कहता है अभी रत्नावली की आयु केवल दस वर्ष है अभी वह बहुत छोटी है अभी विवाह करना अछा नही है । और बादमे मेने तो सोहला वर्ष की कन्या का ही विवाह करया है तो अब अपन पुत्री का विवाह इतना जल्दि केसे कर सकता हु ।
यह बात सुनकर सुनन्दा बोली लगता है आपको तो अपनी पुत्री पर घमण्ड हो गया है । शात्रो मे लिख है की माता पिता और बडा भाई रजस्वल कन्या को देखते है तो वे नरक मे जायेगे ।
इस पर नन्दा बोला की अच्छि बात है मै कल ही इस काम के लिये किसी को लगा देता हुं और अगले दिन ही ब्राह्मण नन्दा ने अपने एक दुत को बुलाकर कहा की मेरी कन्या के जैसे सुंदर वर की तलास मै लग जाओ ।
नन्दा के दुत ने पम्पई नगर मे एक अच्छा गुणवान सुंदर लडके को देखा जिसका नाम सोमेश्र्वर था ।लडके के बारे मे नन्दा के दुत ने अपने मालीक को बताया ब्राह्मण नन्दा को वह लडका बहुत अच्छा लगा और नन्दा ने अपनी पुत्री का विवाह उससे करा दिया ।
ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह तो कर दिया था पर वह मन से खुश न था । वह सोचने लगा की अब वह रत्नावली से जो सोना प्राप्त होता था ।वह अब उसे नही मिल सकेगा मेने तो इसका विवाह करके बहुत बडी भूल कर दी है ।
अब तो कुछ ऐसा करना पडेगा की रत्नावली अपने ससुराल न जा सके । इस बात को वह सोचते हुए एक क्रूर निर्णय लिया था । उसने सोचा की रत्नावली के पति का वध कर दिया जाये तो रत्नावली अपने ससुराल नही जा सकती है ।
ब्राहमण नन्दा ने अपने दुत से कहा की जब सोमेश्र्वर और रत्नावली अपने ससुराल जाये तो तुम सोमेश्र्वर का वध कर देना । अपने मालिक की आज्ञा पाकर उसका दुत सोमेश्र्वर का मार्ग मे ही वध कर दिया था ।
नन्दा को पता नही था की वह क्या कर रहा है वह तो लोभ मे फसता जा रहा था ।वह सही गलत का फरक भुल गया था । समाचार पाकर नन्दा ने कुछ लोगो को इखठ्ठा कर वहा उस जगह पर जा पहुचा जहा पर सोमश्र्वर का वध कराया गया था ।
वहा पर जाकर अपनी पुत्री से नन्दा कहता है की रोओ मत पुत्री जो हो चुका उसपर हमारा क्या बस चल सकता है ।नन्दा कहता है की पुत्री अब तुम वहा पर जाकर क्या करोगी वापस घर चलो ।
तब रत्नावली कहती है की पिताजी अपने पति के साथ न होने पर मै जीवित होकर क्या करुगी मै अपने पति के साथ जल कर सक्ति बनकर अपने सास ससुर और अपने माता पिता की सेवा करुगी ।
ब्राहमण नन्दा आपनी पुत्री के कटु वचन सुनकर सोचने लगा कि मेने तो व्यथ मे ही अपने दामाद का पाप सर पर ले लिया पुत्री भी अब मरना चाहती है । इस तरह से दामाद व पुत्री के साथ सोना भी चला जायेगा ।
सामेश्र्वर की चिंता बनाई गई और रत्नावली अपने पति का सर अपनी गोद मे रखकर चिता पर बेठ गयी । जब चिंता मे अग्नि लगाई गई तो वहा पर मंगलदेव आये और रत्नावली से कहा की पुत्री मै तुम्हारे पति भग्ति से प्रसन्न हूं मागो तुम्हे क्या वरदान चाहिए ।
तब रत्नावली ने कहा की है देव आप मेरे पति को जीवन दान दे दे । तब मंगल देव ने कहा की तुम्हारा पति जीवित हो जायेगा और मागो तुम्हे कुछ चाहिए है क्या ।
तब रत्नावली बोली की है देव आप मुझे ऐसा वरदान दे की जो भी आपकी पुजा करे और जो भी मंगलवार का व्रत करे तो उसे कभी भी अग्नि सर्प से कोई खतरा न हो और भय न रहे ।
मंगलदेव तथास्तु कहकर वहा से चले जाते है । इस प्रकार मंगलवार के व्रत करने से आपको भय नही रहेगा और आप पर मंगलदेव की कृपा हमेसा बनी रहेगी ।