क्या आप जानते हैं कि मरने के बाद मरने के बाद आत्मा कब तक भटकती है हम सभी लोगों को मौत से डर लगता है। हम अपने शरीर से बहुत अधिक प्यार करते हैं। यदि किसी भी इंसान को यह पता चल जाए कि अब उसकी मौत होने वाली है तो वह अपनी मौत को रोकने का हर संभव प्रयास करेगा ।
लेकिन असल मे हम कभी नहीं मरते हैं। मरता सिर्फ हमारा शरीर है। गीता के अंदर भगवान कहते हैं कि हे अर्जुन शोक किस बात का तुम कभी नहीं मर सकते । मरेगा तो सिर्फ शरीर मरेगा आत्मा तो अजर अमर और अविनाशी है उसका जन्म नहीं होता है। मरता वह है जिसका जन्म होता है।
यह बात केवल गीता के अंदर ही नहीं लिखी है वरन वेद और पुराण इससे भरे पडे हैं। यदि आप हिंदु हैं तो आपको पता होगा कि आत्मा अजर अमर है। और जब इंसान मरता है तो आत्मा उसके शरीर से निकल जाती है।
भले ही वह हमे दिखाई नहीं देती हो लेकिन वह होती हमारे आस पास ही है। वह हमे देख सकती है और बातें भी सुन सकती है लेकिन हम उसे नहीं देख सकते हैं क्योंकि वह अपने सूक्ष्म शरीर मे होती है।
हिंदू धर्म के गरूड पुराण के अनुसार जब इंसान मरता है तो उसकी आत्मा 12 दिन घर के अंदर ही रहती है और जब 12 दिन पूरे हो जाते हैं तो उसके बाद आगे की गति आरम्भ होती है। हिंदु धर्म के अंदर कर्म के सिद्वांत की मान्यता है। जो जीव अपने जीवन के अंदर जैसा कर्म करता है उसी के अनुसार उसकी गति होती है।
मरने के बाद आत्मा कब तक भटकती है? इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले हम यह जान लेते हैं कि आत्मा की गति कितनी प्रकार की होती है? ताकि हम यह निर्धारित कर सकें कि कौनसी आत्मा मरने के बाद भटकती है और कौनसी नहीं ?दोस्तों हिंदु धर्म के अंदर आत्मा की गति को दो प्रकार की माना गया है।
- गति
- अगति
अगति का मतलब यह है कि इंसान को मोक्ष नहीं मिलता है। वरन जीव के रूप मे दुबारा जन्म लेना पड़ता है। अगति के चार प्रकार होते हैं।1.क्षिणोदर्क, 2.भूमोदर्क, 3. अगति और 4.दुर्गति।
- 1.क्षिणोदर्क – इसका मतलब यह है कि आत्मा दुबारा धरती पर आता है और संतों के रूप मे जीवन पाता है।
- 2.भूमोदर्क – इस अगति को पाने वाली आत्मा वापस धरती पर आती है और उसके बाद सुखी और अच्छा जीवन जीती है।
- 3. अगति – इसके अंदर जीव पशु योनी के अंदर चला जाता है।और यहां पर जीव की बहुत बुरी दशा होती है।
- 4.दुर्गति – दुर्गति के अंदर जीव कीड़े बन जाता है।
अब जिन आत्माओं की गति हो जाती है वे निम्न लोक के अंदर चली जाती हैं। जैसे 1.ब्रह्मलोक, 2.देवलोक, 3.पितृलोक और 4.नर्कलोक
इन लोकों के अंदर जाने वाली आत्माएं भटकती नहीं हैं।
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मरने के बाद आत्मा कब तक भटकती है ?marne ke baad aatma kab tak bhatakti hai
दोस्तों इस प्रश्न का सहज ही उत्तर नहीं दिया जा सकता है ।क्योंकि इसका उतर देना कोई सरल काम नहीं है। लेकिन फिर भी हम आपको सबसे पहले यह बतादें कि हर प्रकार की आत्मा भटकती नहीं है। जिन आत्माओं को प्रेत योनी मिलती है एक तो वे आत्माएं भटकती हैं ।
दूसरा यह भी संभव है कि जो आत्माएं गर्भ के लिए प्रतिक्षा करती हैं वे भटकती हैं। हालांकि इस बारे मे ज्यादा बाते उपलब्ध नहीं हैं।
एक प्रेत आत्मा कब तक भटकती है?
दोस्तों हर इंसान मरने के बाद प्रेत नहीं बनता है। वरन कुछ इंसान ऐसे होते हैं जो मरने के बाद प्रेत बन जाते हैं। अधिकतर वे इंसान मरने के बाद प्रेत बनते हैं जिनकी कोई प्रबल इच्छा रह जाती है और उनके कर्म भी पापी होते हैं।
बहुत सी जगह पर आपको यह लिखा हुआ भी मिल जाएगा कि जो लोग आत्महत्या करते हैं या एक्सीडेंट के अंदर मरते हैं वे प्रेत बन जाते हैं या जिनको कोई मार देता है वे प्रेत बन जाते हैं। लेकिन असल मे ऐसा नहीं होता है। किसी जीव का प्रेत बनना उसके कर्मों पर निर्भर करता है। यदि कोई जीव अच्छे कर्म करता है तो वह प्रेत नहीं बन पाता है वरन उसे देवगण मिल जाता है।
हिंदु धर्म के अंदर आप जिन्हें पितर कहते हैं वे देवगण के अंदर आ जाते हैं। उसके बाद उन्हें भटकना नहीं पड़ता है। आपको पता होना चाहिए कि देवगण बुरी आत्माओं की तरह नहीं होते हैं वे किसी की बुराई नहीं करते हैं।
वे देवलोक के अंदर रहते हैं और समय समय पर अपने घर पर भी आते हैं।लेकिन जो जीव अपने जीवन के अंदर कुकर्म करते हैं वे मरने के बाद प्रेत बन जाते हैं और धरती को ही अपना निवास स्थान बनाते हैं यहीं पर भटकते रहते हैं।
इस तरह के प्रेत अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए भटकते हैं।और किसी मनुष्य के शरीर के अंदर प्रवेश करके अपनी इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं। हालांकि ऐसा करने के बाद भी वे शांत नहीं होते हैं। सुक्ष्म शरीर के अंदर वे त्रप्त नहीं हो पाते हैं।
भूत प्रेत की आत्मा कब तक धरती पर भटकती है इसका कोई निश्चित समय नहीं होता है। जहां तक हमे पता है कि यह तब तक भटकती है। जब तक कि इसका समय पूरा नहीं हो जाता है।समय कितना होता है ? यह किसी प्रकार से तय होता है ? सब कुछ अज्ञात है। लेकिन इतना माना जाता है कि प्रेत आत्मा 1000 सालों तक भी भटकती रह सकती है।
आत्मा के भटकते रहने का समय दो चीजों पर निर्भर करता है जिसकी हम आगे चर्चा करेंगे । सबसे पहले हम आपको बतादें कि प्रेत योनी एक प्रकार की भोग योनी है ।जिसके अंदर आत्मा को केवल अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। वह इसमे कोई कर्म नहीं करती है। जैसा कि गीता के अंदर कहा है कि केवल मनुष्य ही एक कर्म योनी है।
नीचे हम कुछ रियल घटनाओं का जिक्र करना उचित समझते हैं। जिससे आपको यह पता चल सके की मरने के बाद आत्मा लगभग कितनी साल तक भटक सकती है। हालांकि यह कोई सही तरीका नहीं है जानने का लेकिन जितना हम जानते हैं और सुनते हैं उतना तो आपको भी जान लेना चाहिए
30 साल से भटक रही आत्मा
यह घटना है हिमाचल प्रदेश की जो पंजाब केसरी के अंदर आई थी। अखबार वालो ने लिखा कि यह किस्सा मनाली लेह मार्ग से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि यहां पर एक व्यक्ति की मौत सन 1989 के आस पास हुई थी और उसी की आत्मा भटक रही है।
कहा जाता है कि एक बार ट्रक यहां से गुजर रहा था तो बर्फ बारी के अंदर वह ट्रक फंस गया । ट्रक का ड्राइवर तो ट्रक से किसी तरह से निकल गया लेकिन वह कंडक्टर को यहां से नहीं निकाल पाय । उसने कंडक्टर को निकालने का प्रयास किया था। उसके बाद वह यहां से 40 किलोमिटर दूर गांव के अंदर मदद मागने के
के लिए गया था।और जब वह वापस लौटा तो तब तक कंडक्टर मर चुका था। जाहिर है कि वह इंसान काफी दर्दनाक अवस्था के अंदर मरा होगा । ऐसी स्थिति मे उसकी आत्मा भटकना स्वाभाविक ही है।
बताया जाता है कि उस कंडक्टर की बॉडी को वहीं पर जला दिया गया था। तब से उसकी आत्मा यहां पर भटक रही है।कहा जाता है कि उस युवक की आत्मा यहां से गुजरने वाले लोगों से मिनिरल वॉटर और सिगरेट की मांग करती है और यदि कोई उसकी मांग को पूरा नहीं करता है तो उसको खुद हादसे का शिकार होना पड़ता है।
जब मैंने अखबार की फोटो के उपर इस आत्मा के मंदिर को देखा तो यहां पर बहुत सारी वॉटर बोतल पड़ी हुई थी। इसका मतलब यह है कि हर राहगिर उसे पानी की बोतल देता है।
दाहं संस्कार होने से कुछ नहीं होता है। इसके अलावा भी बहुत से कर्म कांड हिंदु धर्म के अंदर बताये गए हैं । जिनको करके म्रत आत्मा को संतुष्ट किया जा सकता है और उसे आगे का रस्ता दिखाया जा सकता है।
300 साल से भटक रही है ब्राउन लेडी की आत्मा
इंग्लैंड के नोरफ्लॉक में स्थित रेहम हॉल को एक भुताहा प्लैस माना जाता है। इसके बारे मे यह कहा जाता है कि यहां पर ब्राउन लेड़ी की आत्मा भटकती है। ब्राउन लेडी का पुरा नाम लेडी डोरोथी वालपोल था। जिसके बारे मे यह कहा जाता है कि ब्राउन लेड़ी किसी दूसरे पुरूष से प्रेम करती थी। लेकिन उनकी शादी चार्ल्स टाउनशेंड से करदी गई थी और वह उसे पसंद नहीं था।
चार्ल्स टाउनशेंड को एक बार यह पता चल गया कि ब्राउन लेडी अपने पूर्व प्रेमी से मिलती है।उसके बाद चार्ल्स टाउनशेंड ने उसे कमरे मे बंद कर दिया था । जहां पर उसकी मौत हो गई।
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि लेड़ी ब्राउन की मौत बीमारी की वजह से हुई।
यजुर्वेद के अनुसार आत्मा प्रेत बनकर अनंतकाल तक भटकती है
यदि हम युजर्वेद की माने तो जो आत्माएं प्रेतयोनी के अंदर चली जाती हैं।वे काफी लंबे समय तक भटकती रहती है। हालांकि इसमे समय नहीं दिया गया है। आमतौर पर प्रेत बनी आत्मा तब तक लोगों को परेशान करती है जब तक कि उसके कर्मबंधन तीव्र होते हैं।जब उसके कर्मबंधन कमजोर हो जाते हैं ।उसके बाद वह लोगों को परेशान करना कम कर देती है। इसके विपरित पितरों मे भी यही होता है वे कर्मबंधन तीव्र होने की वजह से जल्दी अच्छे कार्य को कर पाते हैं। लेकिन समय के साथ उनकी शक्ति भी खत्म होने लग जाती है।
उचित गर्भ नहीं मिलने की वजह से भी भटकती है आत्मा
यह बात कई जगहों पर लिखी और सुनी जा चुकी है कि इस दुनिया के अंदर लाखों करोड़ों आत्माएं उचित गर्भ के लिए प्रतिक्षा करती हैं। उचित गर्भ मिलना भी आसान काम नहीं होता है।ऐसी स्थिति के अंदर आत्मा को भटकना पड़ता है।यह इंतजार कई बार हजारों सालों का भी हो सकता है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमे सभी आत्माएं आती हैं जो देवलोक के अंदर होती हैं उनको भी दुबारा जन्म लेने के लिए इंतजार करना पड़ता है।
इस बात का प्रमाण भी मौजूद है । हरियाणा के पलवल के वीरसिंह ने बताया कि उसका पुर्न्जन्म पूरे 9 साल बाद हुआ है। जब मिडिया वालों ने उससे पूछा कि वह इन 9 सालों के अंदर क्या करता रहा तो उसने बताया कि हम कई आत्माएं एक पेड़ पर रहती थी और वहीं पर कुछ खाती थी।हमने जन्म लेने की बहुत कोशिश की लेकिन उचित गर्भ नहीं मिल पाया ।
कुछ जानकार लोग यह बताते हैं कि कुछ खास प्रकार की आत्माओं को गर्भ मिलने मे बहुत अधिक समय लगता है। इसकी वजह वे आत्माएं खुद होती हैं। जैसे यदि कोई बहुत ही पुण्य आत्मा है तो उसे गर्भ मिलने मे समस्या आती है। अधिकतर उन आत्माओं को गर्भ आसानी से मिल जाता है जो ना तो अधिक पुण्यवान हैं और ना ही अधिक पापी हैं।
इस तरह से देखा जाए तो यह एक नियम की भांति काम करता है।जिसको बदला नहीं जा सकता है। जिस तरह से हमारे धरती पर बहुत तरह के नियम फिक्स होते हैं।उसी तरह से यह नियम भी फिक्स होता है।
कुछ लोगों की आत्मा भूत प्रेत बनकर भटकती क्यों है?
दोस्तों भूत का मतलब होता है भूत काल और जीवन सदा वर्तमान होता है।जब कोई आत्मा अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाती है तो भूत बन जाती है। बहुत से लोग कहते हैं कि इसमे भी भगवान का रोल होता है। लेकिन हम अपने को खुद भूत बनने देते हैं।
आप हिंदू धर्म के किसी भी ग्रंथ को उठाकर देखलिजिए आपको कहीं पर भी यह लिखा हुआ नहीं मिलेगा ,जिसमे भगवान यह कहते हों कि मैं आत्मा को भूत बनाता हूं । असल मे गीता के अंदर भगवान कहते हैं कि इंसान को मोक्ष सिर्फ इसलिए नहीं मिल पाता क्योंकि वह खुद को कर्म के बंधन मे बांध लेता है।आपको यह जान लेना चाहिए कि यह सारा संसार आपके लिए है लेकिन आप यानी आत्मा संसार के लिए नहीं है। वह इस संसार की होकर नहीं रह सकती है।
केवल अच्छे इंसान होने का मतलब यह नहीं है कि वह भूत नहीं बनेगा । कुछ लोग मरने से पहले बहुत सारी इच्छाओं के साथ मरते हैं वे इच्छाएं आत्मा के साथ चिपकी रहती हैं।बस वे ही इच्छाएं उसको भूत बनाती हैं और भटकने को विवश करती हैं। इस संबंध मे मैं आपको एक रियल घटना सुनाता हूं ।
आज से लगभग 70 साल पहले की बात है।हमारे परिवार की एक महिला था। उसका नाम तो पता नहीं है। मेरी दादी जो अब इस दुनिया मे नहीं है । वह बताया करती थी कि उस महिला का पति बेकार इंसान था । जिससे तंग आकर उस महिला ने कुए के अंदर कूद कर सुसाइड कर लिया था।
और उसके साथ उसका एक बच्चा भी था । वे दोनो ही मर गए थे । हालांकि वह महिला बहुत ही अच्छी थी । लेकिन मरने के बाद वह प्रेत बन गई ।और बाद मे कई लोगों ने उसे देखे जाने का दावा किया ।
भले ही वह महिला अच्छी थी लेकिन असल मे वह जीना चाहती थी। वह मरना नहीं चाहती थी। मतलब की उसकी अनेक प्रबल इच्छाएं उसकी आत्मा के साथ रह गई। अब वह उन्हीं इच्छाओं को पूरा करने के लिए भटकने लगी ।
हमे नहीं पता की वह कितने साल भटकी । लेकिन हम इतना जानते हैं कि यदि हम मरने के बाद भूत बनते हैं और भटकते हैं तो इसमे हमारी गलती होती है। हमे आत्मज्ञान नहीं होता है।अब यदि कोई भूत बनकर अपनी इच्छाओं को पूरा करने की सोच रहा है तो यह संभव नहीं है। यदि कोई भूत मिठाई की मांग करता है तो भले ही आप उसे देदे लेकिन वह उसे त्रप्त नहीं हो सकता । और सबसे बड़ी बात यह है कि वह अपनी इच्छाओं को बदल नहीं सकता है।
एक भूत इंसान की तरह नहीं सोच सकता ।उसके अंदर सिर्फ वे ही बाते होती हैं जो उसने अपने इंसानी जीवन के अंदर रिकोर्ड की हैं। अब यदि वह उनको मिटाना चाहे तो यह नहीं होगा ।लेकिन इंसान ऐसा कर सकता है। वह अपनी मान्यताओं और धारणाओं को बदल सकता है। यदि आप अपने जीवन के अंदर कुछ भी बुरा सोचते हैं तो आपकी आत्मा वह रिकोर्ड करती है। और यदि अच्छा सोचते हैं तो वह भी रिकोर्ड करती है।
क्या आपने कभी सुना है कि कोई 80 साल का बूढ़ा मरने के बाद भटक रहा है। हालांकि यह कुछ केस मे हो सकता है। लेकिन बहुत ही कम ऐसा होता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि अधिकतर लोग जो बूढ़े हो जाते हैं उनके अंदर किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं होती है जिससे की उनको भटकना पड़े ।उनकी आगे की ओर गति हो जाती है।
इस तरह से तड़पती हैं भटकती हुए आत्माएं
जैसा कि हिंदु धर्म की अनेक किताबों के अंदर यह स्पष्ट किया जा चुका है कि आप यानी आत्मा इस शरीर के लिए नहीं है। वरन यह शरीर आत्मा के लिए है। आत्मा इस शरीर के अंदर बंधी नहीं रह सकती है। उसका शरीर से अलग भी अस्तित्व है।
असल मे आत्म ज्ञान नहीं होने की वजह से बहुत से लोग अपनी आत्मा को मोह प्रेम और माया के अंदर बांध लेते हैं। वे इस दुनिया से जाना ही नहीं चाहते हैं। यही वजह है कि मरते वक्त भी वे अपनी स्त्री , अपने धन के बारे मे सोचते हैं कि मरने के बाद उनकी स्त्री का क्या होगा ? उनके धन का क्या होगा ?
बस यही चीजें आत्मा को इसी संसार के अंदर प्रेत बनकर भटकने को मजबूर कर देती हैं। वह एक आत्मा होने की वजह से इंसान की तरह कर्म नहीं कर सकती । लेकिन उसके अंदर आग लगी रहती है। यदि किसी के शरीर के अंदर आग लग जाए तो वह उसे बहुत ही जल्दी बुझा देना चाहता है।उसे आग से बहुत अधिक दर्द होता है। आत्मा जो भूत बन जाती हैं उनके साथ भी ऐसा ही होता है। उनकी अधूरी इच्छाएं इसी आग की तरह होती हैं । जिनको पूरा करने के लिए वे दिनरात बैचेन होती हैं। वे इसके लिए बहुत कुछ करती हैं लेकिन उसके बाद भी उनकी आग बुझती नहीं है।
वे मर भी नहीं सकती हैं क्योंकि वे पहले ही मर चुकी हैं। यदि किसी प्यासे इंसान को पानी ना मिले तो उसकी दशा कैसी होती है। उसी तरह की दशा भूत प्रेत बनकर भटकती हुई आत्माओं की होती है।
यदि आपका कोई प्रिजन मर चुका है और आपको लगता है कि अभी उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली है तो फिर आपको उनकी आत्मा की शांति के लिए नागबलि और नरायण बलि करवानी चाहिए । यह आपका कर्तव्य बनता है।
ज्ञानी लोग कहा करते हैं कि इंसान को खुद के अंदर पूर्णता देखनी चाहिए । जिसका मतलब यह है कि हमारे अंदर या हमारी आत्मा मे ही सब कुछ समाया हुआ है। हमारी कमी यही है कि हम बाहर कुछ देखने की कोशिश करते हैं। और इसी वजह से फंस जाते हैं।
एक श्लोक के अंदर यह कहा गया है कि जो सब प्राणियों को आत्मा मे और आत्मा को प्राणियों मे तो उसके लिए किसी के दुख दर्द और बीमारी को देखना कठिन हो जाएगा । क्योंकि ना आत्मा को आग जला सकती है ना उसे कोई तलवार काट सकती है। ना उसे हवा सूखा सकती है।
कहने का मतलब यह है कि हर इंसान को दूसरे इंसान के अंदर उस परमतत्व का आभास करना चाहिए जोकि सबके अंदर काम कर रहा है। वह बस एक ही है । यह जानकर दूसरे इंसान को खुद से अलग नहीं समझना चाहिए । आपको हर इंसान से उतना ही प्यार करना चाहिए जितना की आप अपने आप से करते हो ।
लेकिन असल मे बहुत ही महान योगी लोग इस प्रकार की धारणा रखते हैं। दुनिया के अंदर आपको 98 प्रतिशत लोग ऐसे मिलेंगे जिनके मन मे बुरे भाव और विचार होंगे । यह बुराई ही आत्मा को भटकने के लिए मजबूर करती है।
बहुत से लोग जो भूत प्रेत को अंधविश्वास केवल इसलिए मानते हैं क्योंकि उनको लगता है कि यह फालतू बाते हैं। लेकिन असल मे जब वे मरते हैं तो उनके शरीर से आत्मा निकलती है। जिसे देखकर उनको यह भी समझ नहीं आता है कि यह क्या हो रहा है? ऐसे लोग खुद को केवल शरीर के रूप मे ही मानते हैं।ऐसी स्थिति के अंदर उनको अपने आप मे सुधार करने का मौका भी नहीं मिल पाता है।और उनके हाथों से जीवन छिन जाता है।
यदि हम नहीं चाहते हैं कि मरने के बाद हमारी आत्मा को भी भटकना पड़े तो खुद को एक अच्छा इंसान बनाइए किसी का बुरा ना तो सोचिए और ना ही करिए।
जब हम चिपक जाते हैं संसार से
यदि आपने धर्म ग्रंथ पढ़े हैं तो आपको पता होगा कि बहुत से लोग खुद को राम समझते हैं कोई खुद को काला समझता है कोई खुद को स्त्री समझता है। बेसक उनका समझना वैसे गलत नहीं है। लेकिन हर इंसान को खुद को और शरीर को प्रथक रखना चाहिए ।
जब कोई इंसान जो खुद को रमेश समझता है तो मरने के बाद भी वह खुद को वही समझेगा । लेकिन असल मे आत्मा का कोई नाम नहीं होता है। नाम शरीर का होता है। आत्मा का कोई लिंग नहीं होता है। लिंग तो शरीर का होता है।
और जब ऐसे लोगो मे से कुछ की गति नहीं होती है या वे अपने कर्मों की वजह से प्रेत योनी मे चले जाते हैं तो उसके बाद वे खुद को इसी रूप मे और इसी तरह से रखते हैं। जैसे कि वे वही हों ।
हालांकि प्रेत बने इंसान को उसके घरवाले भी त्याग देते हैं । क्योंकि मरने के बाद सब रिश्ते खत्म हो जाते हैं। लेकिन प्रेत आत्मा ऐसा नहीं कर पाती है।और वह भटकती रहती है , उसे बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं। कई बार तो ऐसा होता है कि जिस परिवार के लिए इंसान गलत काम करता है। वही परिवार उसके मरने के बाद उसकी शांति के लिए कोई कदम उठाने को तैयार नहीं होता ।
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This post was last modified on December 14, 2019