निर्गुण और सगुण भक्ति में यह हैं 14 सबसे बड़े अंतर

दोस्तों आपने यह दो वर्ड बहुत बार सुने होंगे और और आपको पता भी होगा कि निर्गुण और सगुण भक्ति में अंतर क्या है। इस लेख के अंदर हम निर्गुण और सगुण भक्ति धारा में अंतर स्पष्ट  करेंगे । दोस्तों वैसे तो निर्गुण का मतलब होता है जो निराकार है। जिसको कोई आकार नहीं है। ‌‌‌जैसा कि आपने सुना होगा कि कबीर कहा करते थे की भगवान निराकार है और उसका कोई आकार नहीं है। मतलब कि हम उसे किसी इंसान की शक्ल नहीं दे सकते हैं । क्योंकि उसकी कोई शक्ल ही नहीं है और प्रभु सब जगह पर व्याप्त है।

‌‌‌जबकि सूरदास सगुण भक्ति के कवि थे और उनका मानना था कि ईश्वर साकार है। वह भी इंसानी शरीर के जैसा हो सकता है। इसी लिए तो सूरदास ने क्रष्ण को भगवान मानकर उनकी पूजा की थी।

‌‌‌हम सभी लोग अपने घर के अंदर एक पूजा स्थल बनाकर रखे हैं। यदि आप भी घर के अंदर एक पूजा स्थल बनाकर रखे हो और वहां पर भगवानों की फोटो लगाये हो और सुबह शाम उनके आगे अगरबती जलाते हो तो आप सुगुण भक्ति कर रहे हो । लेकिन जो लोग निर्गुण भक्ति करते हैं या वे इसमे विश्वास रखते हैं। ‌‌‌वे भगवान को किसी एक रूप के अंदर होने की कल्पना नहीं करते हैं। उनका मानना होता है कि भगवान सब जगह पर व्याप्त होते हैं।

Table of Contents

‌‌‌1. निर्गुण और सगुण भक्ति में अंतर  निर्गुण भक्ति मे ईश्वर का कोई आकार नहीं होता पर सगुण भक्ति मे ईश्वर का एक आकार होता है

‌‌‌निर्गुण भक्ति जो इंसान करता है। वह यह मानता है कि ईश्वर का कोई आकार नहीं होता है। ईश्वर निराकर है। और उसको एक निश्चित आकार नहीं दिया जा सकता । इस वजह से निर्गुण भक्ति करने वाले लोग किसी भी देवता और देवी को नहीं मानते हैं। इस संबंध मे सबसे बड़ा उदाहरण कबीर दास जी का जो एक निर्गुण ‌‌‌भक्ति के सबसे बड़े अनुयायी थे । इसके अलावा आज भी बहुत से लोग निर्गुण भक्ति मे विश्वास करते हैं।

सगुण भक्ति के अंदर ईश्वर को एक आकार दिया जाता है। जैसे राम की फोटो लगाकर उसके आगे अगरबती करना एक तरह की सगुण भक्ति ही कहलाती है। यदि आप मंदिर जाते हैं तो यह सगुण भक्ति का उदाहरण होगा । ‌‌‌बहुत से लोग यह विश्वास करते हैं कि ईश्वर साकार है । हालांकि यह कहा नहीं जा सकता है कि ईश्वर का कोई आकार है या नहीं ? लेकिन बहुत हद तक यह बात सच जान पड़ती है कि ईश्वर का कोई आकार नहीं है।

‌‌‌2.सगुण भक्ति के अनुसार ईश्वर का शरीर होता है लेकिन निर्गुण भक्ति के अनुसार ऐसा कुछ नहीं होता

दोस्तों जो लोग सगुण भक्ति करते हैं वे किसी ना किसी शरीर धारी इंसान को ईश्वर मानते हैं और उसी की पूजा करते हैं। जैसे राम ,क्रष्ण ,शिव इन सभी का एक समय मे शरीर था।‌‌‌लेकिन निर्गुण भक्ति मे ईश्वर का कोई भी शरीर नहीं होता है। वह सर्व व्यापक होता है। यह सम्पूर्ण सष्ट्री मे वह विराजमान रहता है। क्योंकि उसका कोई आकार नहीं होता है तो शरीर  की बात करना ही बेकार है।

‌‌‌3.निर्गुण मार्ग के अनुसार ईश्वर अमर है और जन्म म्रत्यु से परे है लेकिन सगुण भक्ति के अनुसार ईश्वर की जन्म म्रत्यु होती है

‌‌‌निर्गुण भक्ति के अंदर यह माना जाता है कि ईश्वर का ना तो जन्म होता है और ना ही मौत होती है। वह इन सब चीजों से परे है। लेकिन सगुण भक्ति के अंदर ईश्वर देवताओं को माना जाता है और जिनका जन्म और म्रत्यू होती है। आप किसी की भी पूजा करते हो और फोटो को सामने रखकर तो इसका मतलब है कि वह ईश्वर ‌‌‌एक समय मे शरीर धारी था। ‌‌‌वेदों के अंदर भी यह लिखा गया है कि ईश्वर निराकार है और उसका कोई स्वरूप नहीं है। वह जन्म म्रत्यु से परे है।

‌‌‌4.निर्गुण भक्ति के अनुसार ईश्वर सिर्फ एक है लेकिन सगुण भक्ति के अनुसार ईश्वर एक है किंतु उसके नाम अनेक हैं

‌‌‌वेदों एक एक श्लोक के अनुसार

न द्वितीयो न तृतीयश्चतुर्थो नाप्युच्यते न पञ्चमो न षष्ठ: सप्तमो नाप्युच्यते। नाष्टमो न नवमो दशमो नाप्युच्यते स एष एक एक वृदेक एव।

दोस्तों जो लोग निर्गुण भक्ति को मानते हैं उनके अनुसार ईश्वर सिर्फ एक होता है और उसका कोई भी नाम नहीं होता है। लेकिन सगुण लोग यह कहते हैं कि ईश्वर एक ही होता है लेकिन उसके ‌‌‌नाम अनेक होते हैं। यही वजह है कि हिंदु धर्म के अंदर विभिन्न देवी देवताओं को ईश्वर का रूप मानकर पूजा जाता है। हालांकि वेदों की बात माने तो ईश्वर देवताओं का भी देवता है । सारे देवता उसके अधीन हैं और वह किसी के अधीन नहीं है।

‌‌‌5.निर्गुण मार्ग के अनुसार ईश्वर सर्वव्यापक है लेकिन सगुण मार्ग के अनुसार वह शरीर धारी है

ॐ।। यो भूतं च भव्य च सर्व यश्चाधितिष्ठति।। स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम:।।

‌‌‌अर्थाथ जो भूत और भविष्य के अंदर सब तरफ व्यापक है उस ईश्वर को प्रणाम

दोस्तों निर्गुण भक्ति करने वाले यह मान्यता रखते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापक है। क्योंकि वह निराकार है। लेकिन सगुण भक्त तो ईश्वर को एक शरीर के रूप मे पूजते हैं तो इसका मतलब यह है कि ईश्वर शरीर ‌‌‌धारी है और शरीरधारी होने की वजह से सर्वव्यापक कैसे हो सकता है?

‌‌‌6.निर्गुण मार्ग के अनुसार ईश्वर का कोई दूत नहीं होता लेकिन सगुण के अनुसार दूत होते हैं

यदि आपने कबीर दास के बारे मे पढ़ा होगा तो आपको पता होगा की कबीर दास कहा करते थे कि उस निराकार ईश्वर के वे एक दास हैं। अर्थात वे उसके सेवक हैं । वेदों के अनुसार निराकार ईश्वर का कोई दूत नहीं होता है। ‌‌‌वह अपने प्रचार के लिए किसी को नहीं भेजता है। लेकिन सगुण भक्ति के अनुसार देवता ईश्वर के दूत होते हैं और वे ईश्वर के ही अंश से बने हुए हैं। हम जिन देवी देवताओं की पूजा करते हैं वे ईश्वर के दूत ही हैं और वे हमे ईश्वर तक पहुंचाने मे मदद करते हैं।

‌‌‌7.निर्गुण भक्ति मार्ग के अनुसार ईश्वर अनन्त काल से मौजूद है लेकिन सगुण भक्ति के अनुसार ऐसा नहीं है

दोस्तों आज हम जिन देवी देवताओं को ईश्वर मान कर पूज रहे हैं। वे आज से 100000 साल पहले कहां थे ? उस वक्त धरती पर इंसान तो थे लेकिन ईश्वर का यह स्वरूप नहीं था।‌‌‌निर्गुण भक्ति मार्ग ‌‌‌की बात करें ईश्वर अनन्त काल से मौजूद था और उसका कोई आदी अंत नहीं है। जब यह दुनिया यह कायनात नहीं थी उस वक्त भी ईश्वर था। और ईश्वर शुद्ध प्रकाश, अजन्मा, अनंत, अनादि, अद्वितीय, अमूर्त हैं।

8.निर्गुण और सगुण भक्ति में अंतर श्रीकृश्ण को परब्रह्म

सगुण भक्ति की यदि हम बात करें तो इसके अंदर क्रष्ण को ही परब्रह्म माना गया है। और सूरदास मानते हैं कि क्रष्ण ही सब कुछ है।उनके दर्शन मात्र से ही सब प्राणी मुक्त हो जाते हैं। वल्लभाचार्य के समान सूर ने भी जीव को क्रष्ण का अंश स्वीकार किया । इसके अलावा कहा गया कि जीव को माया मोह से बचने के लिए भगवान क्रष्ण की सरण मे चले जाना चाहिए । वही उनको उद्वार कर सकते हैं।

निर्गुण भक्ति के अंदर क्रष्ण को एक ईश्वर नहीं माना गया ।उनके अनुसार ईश्वर अजर अमर है और वह निराकार है उसका कोई आकार नहीं हो सकता । यही वजह थी कि उन्होंने कहा कि ईश्वर सर्वेव्यापक है और उसका कोई शरीर नहीं हो सकता ।

‌‌‌9.सगुण और निर्गुण आपस मे विरोधी

निर्गुण भक्ति के उपासको ने सगुण भक्ति की परम्पराओं का बहुत ही अच्छे से विरोध किया ।उनके अनुसार ईश्वर सब जगह पर है और वह हमारे भीतर भी है। इस संबंध मे एक दोहा है।

‌‌‌जल मे कुंभ कुंभ मे जल है,बाहर भीतर पानी ।

फूटा कुंभ जल जलहिसमाना ,यहतथ कहौं गियानी ।।

‌‌‌इसके विपरित सूरदास की गोपियां तो निर्गुण ईश्वर को मानेने को ही तैयार नहीं हैं। जो नीचे दोहे मे दिया है।

निर्गुन कौन देस को वासी?

मधुकर! हँसि समुझाय, सौंह दे बूझति साँच न हाँसि।।

उनको तो सगुण ईश्वर से प्रेम था और वे इसको अपना सब कुछ मानती थी। तो उनको निर्गुण ईश्वर पर कैसे विश्वास हो सकता ‌‌‌था।

10.निर्गुण और सगुण भक्ति में अंतर मूर्ति पूजा के आधार पर

‌‌‌दोस्तों सूरदास ने ईश्वर को तीन प्रकारों के अंदर बांटा है।परब्रह्म श्रीकृश्ण, पूर्ण पुरूशोत्तम ब्रह्म तथा अन्र्तयामी ब्रह्म। सूरदास के अनुसार निर्गुण ईश्वर आवश्यकता पड़ने पर सगुण के रूप मे अवतार लेता है।

‘‘वेद, उपनिशद् जासु को निरगुनहिं बतावै ।

भक्त बछल भगवान धरे तन भक्तिनि के पास।।’’

‌‌‌इस तरह से सगुण भक्ति के अंदर एक तरह से ईश्वर को साकार रूप दिया गया जो कहीं ना कहीं पर मूर्ति पूजा को बताता है।

‌‌‌इसके विपरित यदि हम निर्गुण भक्ति की बात करें तो इसके अंदर ईश्वर को केवल निराकार रूप माना गया है। और इसमे मूर्ति पूजा का घोर विरोध किया गया है।

‌‌‌11. ईश्वर के स्वरूप के आधार पर अंतर

दोस्तों निर्गुण और सगुण भक्ति के अंदर ईश्वर के स्वरूप को भी अलग अलग माना गया है। यदि हम बात करें सगुण भक्ति की तो इसके अंदर

रूप न रेख, बरन जाके नहिं ताको हमें बतावत।

अपनी कहौ, दरस वैसे को तुम कबहूँ हौ पावत?

मुरली अधर धरत है सो पुनि गोधन बन-बन चारत?

‌‌‌इस तरह से सूरदास ने ईश्वर के रूप और उनके मुरली के बारे मे उल्लेख किया है। एक तरह से देखा जाए तो सगुण भक्ति माया युक्त है । क्योंकि जो ईश्वर जन्म लेता है वह अपने आप ही माया से युक्त हो जाता है। लेकिन ‌‌‌निर्गुण भक्ति के अंदर ऐसा नहीं है।

निर्गता निक्रष्टा स्वादय प्राक्रता: गुणा:

यत्माजिनर्गुणमिति व्यत्पतेनिक्रष्ट गुणरहित्ये मेव निर्गुणतंम ।।

‌‌‌इसका मतलब यह है कि जो तत्व रजत ,तमस आदि निक्रष्ट गुणों से रहित है। वही ईश्वर है। तो उसके अवतार लेने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता है।

‌‌12.सिर्फ निर्गुण ईश्वर उपासना योग्य

दोस्तों सगुण भक्ति के अंदर ईश्वर को एक शरीर धारी माना गया है। और देवी देवताओं को भी ईश्वर का ही एक अंश मानकर इनकी पूजा करने के बारे मे कहा गया है। लेकिन निर्गुण भक्ति के अंदर निर्गुण ईश्वर की पूजा करने को कहा गया है। और निर्गुण ईश्वर की पूजा को ‌‌‌को अच्छा बताया गया है।

‌‌‌कहत मूलकदास निरगुण के गुण कोई बड़ भागी गौवे।।

‌‌‌सुंदरदास जी कहते हैं

ब्रह्रा निरिह ,निरामय,निर्गुण ,नित्य निरंजन और नाफेस।।

‌‌‌इस प्रकार से निर्गुण भक्ति के अंदर ईश्वर के निर्गुण स्वरूप की उपासना की है।

‌‌‌13.तार्किक आधार पर अंतर

तुलसी दास तो निर्गुण का विरोध करते हुए कहते हैं कि

 फ्तुलसी अलखहिं का

लखै राम नाम जपु नीचय्। इ

इसी प्रकार गोपियां निर्गुण ईश्वर को मानने वालों से पूछती हैं

निर्गुण कौन देस को बासी ।।

‌‌‌कहने का मतलब है कि सगुण ईश्वर भले ही मानसिक संतुष्टि अवश्य ही प्रदान करें । लेकिन सगुण भक्ति से हमे तार्किक संतुश्टि कभी नहीं मिल सकती है इसी वजह से  दार्शनिक शंकर ने ब्रह्म को निर्गुण बताया है ।‌‌‌तो तार्किक आधार पर अंतर यह है कि निर्गुण भक्ति के अंदर हमे मानसिक संतुश्टि कम लेकिन तार्किक संतुष्टि अधिक प्राप्त होती है। निर्गुण ईश्वर का हम कोई रूप तय नहीं कर पाते हैं।

‌‌‌14. निर्गुण भक्ति मार्ग एकता पर बल देता है

दोस्तों निर्गुण भक्ति मार्ग एकता पर बल देता है। यही वजह थी कि कबीर दास के हिंदु मुस्लिम सभी शिष्य थे । कबीर दास का मानना था कि सबका मालिक एक ही है। इसमे अवतारवाद को जगह नहीं थी। लेकिन सगुण भक्ति के अंदर किसी ईंसान शरीर धारी को ईश्वर के रूप ‌‌‌मे स्वीकार किया गया । जिसके लिए हर इंसान का समान महत्व नहीं था। जैसे क्रष्ण राधा से अधिक प्रेम करते थे तो उनके लिए दूसरे जीवों से उतना प्रेम करना कैसे संभव था ?इसके अलावा सगुण के अंदर‌‌‌ ईश्वर के अलग अलग अवतारों को माना गया । जो किसी विशेष धर्म के थे । यही वजह थी कि सगुण भक्ति किसी एक पंथ या जात के लोगों से ही जुड़ सकी।

‌‌‌वैसे यदि आज के संदर्भ मे बात करें तो कुछ अध्यात्मिक लोगों को छोड़ देतो बहुत से लोग इस बात के अंदर अभी भी विष्वास करते हैं कि ईश्वर साकार होता है ।उसका कोई रूप होता है। लेकिन बड़े संत और महात्मा केवल यही मानते हैं कि ईश्वर का कोई रूप नहीं होता । वह निराकार है।

निर्गुण और सगुण भक्ति में अंतर लेख के अंदर हमने इन दोनो मार्गों के अंदर अंतर को स्पष्ट किया ।लेख के अंदर हमने कई उदाहरणों का प्रयोग किया है। हो सकता है इनमे से कुछ मे गड़बड़ी हो यदि ऐसा है तो आप नीचे कमेंट करके बता सकते हैं।

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This post was last modified on November 14, 2019

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  • I don't know
    Ki ye kiske vichar h
    But...
    I feel happy
    It is the best lekh
    I love reading
    But usse bhi jada ye ki
    Jab ham kisi ke bare me(about)lekhe
    To
    Uske sabhi pahlu k bare m like
    Jo is lekh
    Uski jhalak jarooor thi...
    ❤🙏

  • sagun bhakti main bhakit sirf es hamaare sour mandal par hi jayada soch dimaag main leker chalta hai.usko baki anekon brahmondon ko kisne banaya kon unko ghumata hai vahaan bhi to anek parthvi hai unko kon chlaata hai vo es baare main bhool jata hai. vo bhool jata hai ki jab Ram Chandra Ji ke sharir chhodne ke baad aour Krishan Ji ke janam se pahle es bich ke samay main es prithvi ko kon ghuma rhaa tha.. lakin nirgun bhakti main bhakt pure multi univers ko har samay kon gumaata/ chalaata hai us Super Power ko hi dimaag mai leker us Main Power ko hi mantaa hai.
    prantu mera manna hai ki jab vo shrir hi jinda nahin rha to phir usko pather main praan partishaa aour uski puja kerte hain to phir veh murti ko to chalnaa phirnaa chaahiye jinda ho jana chaahiye. vo khud apni murti ko jinda kerke chalta phirta kayon nahin. usmain praan to daal hi diye hain. to ab usko chanla phirna/ uthna baithna to chaahiye na......

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