इस लेख के अंदर हम बात करेंगे पारले कंपनी का मालिक और पारले गर्ल के बारे मे तो इस लेख को पूरा पढ़ना ना भूले ।
Parle-G के बारे मे आप सभी जानते ही होंगे । दोस्तों Parle-G काफी फेमस बिस्कुट ब्रांड मे से एक है। जब हम छोटे हुआ करते थे तो Parle-G ही खाते थे । इसके अलावा मार्केट के अंदर कोई बिस्कुट था ही नहीं । बस सब लोग Parle-G का नाम ही जानते थे । बस इसी वजह से इसका सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता था। लेकिन यह तो कोई आज से 10 साल पहले की बात है। आज यदि आप मार्केट के अंदर देखेंगे तो आपको एक से एक ब्रांड बिस्कुट मिल जाएंगे । ऐसी बात नहीं है कि लोग अब Parle-G का यूज नहीं करते हों । लेकिन मार्केट के अंदर दूसरे बिस्कुट के आने की वजह से Parle-G के मार्केट पर असर पड़ा है। इस वजह से इसकी बिक्री भी कम हुई है। Parle-G आमतौर पर एक सीधा साधा बिस्कुट आता है। और आजकल के लोग सीधा साधे की बजाय कुछ मीठा खाना पसंद करते हैं।
वैसे किसी समय पारलेजी एक ऐसा नाम था ।जिसका प्रयोग लोग कभी सुबह सुबह चाय के साथ नास्ते के रूप मे करते थे । जब इसको चाय के अंदर डुबोया जाता था तो यह एकदम से नर्म हो जाता था। और उसके बाद सब लोग इसको मजे से खाते थे । यदि कहीं पर गए होते थे तो पेट भरने के लिए आज भी पारले जी बिस्कुट सबसे अच्छा है।
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Parle-G का इतिहास
दोस्तों Parle-G भारत के अंदर निर्मित बिस्कुट का एक ब्रांड है। 2011 के एक नीलसन सर्वेक्षण के अनुसार, यह दुनिया में बिस्कुट का सबसे अधिक बिकने वाला ब्रांड है। 1929 में, Parile Products को मुंबई के Vile Parle उपनगर में एक कन्फेक्शनरी निर्माता के रूप में स्थापित किया गया था।1939 ई के अंदर यहां पर बिस्कुट का उत्पादन शूरू किया गया था।और सन 1947 ई के अंदर जब भारत स्वतंत्र हुआ तो कम्पनी ने इस प्रोडेक्ट का प्रचार प्रसार करने के लिए विज्ञापनों का सहारा लिया था।पारले-जी बिस्कुट को पहले 1980 के दशक तक ‘पार्ले ग्लूको’ बिस्कुट कहा जाता था। पारले-जी नाम में “जी” मूल रूप से ” ग्लूकोज ” के लिए जोड़ा गया था, हालांकि बाद में ब्रांड स्लोगन ने “जी फॉर जीनियस” भी कहा था।
2013 में, Parle- G ने 5000 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया था। यह इतना आंकड़ा पार करने वाला पहला ब्रांड बन गया था।
वर्ष सन 1929 ई के अंदर मुम्बई के रेशम व्यापारी मोहनलाल दयाल ने एक मिठाई बनाने की एक पूरानी फैक्ट्री खरीदी थी। स्वदेशी आंदोलन की शूरूआत से प्रभावित होकर वे खुद कन्फेक्शनरी बनाने की कला सीखी थी।यह इरला और परला के नींद गांवों के बीच स्थित, चौहान द्वारा स्थापित एक छोटा कारखाना था। जिसमें विभिन्न क्षमताओं में परिवार के सदस्यों के साथ केवल 12 लोग कार्यरत हैं – इंजीनियर, प्रबंधक और कन्फेक्शनरी निर्माता के रूप ।
कहा जाता है कि इस कारखाने के प्रबंधक इतने अधिक व्यवस्थ थे कि इस कारखाने को नाम देना तक भूल गये थे ।उसके बाद इस कम्पनी का नाम पारले रखा गया था। पारले कम्पनी का पहला उत्पाद नारंगी कैंडी था । जोकि अन्य टॉफियों के द्वारा पीछा गिया गया था। इसके उत्पादन के 10 साल बाद ही पारले कम्पनी ने 1939 के अंदर पहला बिस्कुट निकाला था। यह बाद है द्वितिय विश्व युद्व की ।
उस समय बाजार के अंदर अधिकतर बिस्कुट महंगे और विदेशी ब्रांड के थे ।यूनाइटेड बिस्कुट, हंटली एंड पामर्स, ब्रिटानिया और ग्लैक्सो प्रमुख ब्रिटिश ब्रांड थे। पारले प्रोडक्ट्स भोजन के लिए काफी किफायती हुआ करता था। और इतने कम पैसे के अंदर इसको कोई भी आसानी से खरीद सकता था। इस वजह से यह सबसे अधिक आमजनता मे लोकप्रिय हो गया था। द्वितिय विश्व युद्व के दौरान भारतिए सैनिकों के अंदर इसकी बहुत अधिक मांग थी।
सन 1947 ई के अंदर भारत विभाजन के साथ ही गैंहू की कमी की वजह से पारले ग्लूको बिस्कुट का उत्पादन कुछ समय बद भी हो गया था। लेकिन उसके बाद पारले कम्पनी ने यह घोषणा की थी कि वह अपने सैनिकों को सलाम करता है। और जो से बिस्कुट बनाने की दिशा मे कदम उठाएगा ।
जब भ्रमित करने लगे नकली ब्रांड
दोस्तों सन 1960 ई की बात है। जब अन्य खिलाड़ियों ने अपने बिस्कुट को शूरू कर दिया था।ब्रिटानिया ने अपना पहला ग्लूकोज बिस्किट ब्रांड, ग्लूकोज डी लॉन्च किया था। इस प्रकार के कुछ बिस्कुट बाजार मे आ जाने के बाद ग्लूकोज बिस्कुट के लिए ज्यादातर लोग भ्रमित होने लगे ।
नकली ब्रांडो से लड़ने के लिए पारलेजी कम्पनी ने एक अपने पैकिंग ब्रांड का पेटेंट करवाया और उसके बाद उसे एक विशेष पीले रंग के कवर और लाल रंग के लोगो व एक लड़की की फोटो के साथ बाजार के अंदर उतारा लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह रही कि लोग इसको आम बिस्कुट से अलग करने मे विफल रहे । 1982 में, Parle G के रूप में Parle Gluco को Parle G के रूप में वापस कर दिया गया,और उसके बाद पैकिंग प्लास्टिक को भी कम गुणवकता वाले पलास्टिक के अंदर बदल दिया गया था।
पारले जी बिस्कुट का विज्ञापन अभियान
उसके बाद पारलेजी के प्रचार प्रसार के लिए टीवी पर दादे दादियों और पोते पोतियों का एक विज्ञापन चलाया गया । जिसके अंदर वे कहते नजर आ रहे थे कि स्वेद भारे, शक्ति भारे, पारले-जी।1968 ई के अंदर शक्तिमान जो कि उस समय बच्चों का सबसे लोकप्रिय शो था। को पारलेजी ने अपना ब्रांड प्रमोटेशन के लिए नियुक्त किया था।उसके बाद पारलेजी तेजी से हिट होता चला गया ।G Maane Genius” और “Hindustan ki Taakat” से लेकर “Roko Mat, Toko Mat” तक, Parle- G के मज़ेदार अभी तक भरोसेमंद विज्ञापनों ने पारलेजी को एक एनर्जी बिस्कुट के रूप मे स्थापित कर दिया था।
पारलेजी काफी पुराना बिस्कुट ब्रांड होने की वजह से लोग इस पर काफी अधिक विश्वास करते हैं और इसको दूसरे बिस्कुट की तुलना मे अधिक महत्व भी देते हैं।इसकी कम्पनी एक महिने के अंदर अरबों बिस्कुट बेच देती थी। हर महीने पार्ले जी का एक सौ मिलियन पैकेट है, या पूरे वर्ष में 14,600 करोड़ बिस्कुट बेच देती थी।
उस समय यह बिस्कुट इतना अधिक लोकप्रिय हो चुका था कि कुछ रेस्तरां ने इसकी मदद से अंत डेसर्ट बनाना शूरू कर दिया था। फ़र्ज़ी कैफे ने पारले जी चीज़केक का आविष्कार किया था।अपनी मांग के अंदर व्रद्वि की वजह से पारलेजी हर जगहों पर काफी तेजी से लोकप्रिय हो गया था। इस वजह से यह छोटे से लेकर छोटे गांव मे भी आसानी से उपलब्ध हो जाता था।
parle g girl कौन है क्या आप जानते हैं ?
आपने पारले जी बिस्कुट को बहुत बार खाया होगा । लेकिन आपने उसके पाउच पर बना एक लड़की का चित्र भी देखा होगा । क्या आपने सोचा है कि पाउच पर बने चित्र के अंदर यह लड़की कौन है ? यदि आप इसके बारे मे नहीं जानते हैं तो हम आपको बताते हैं कि परले जी पर बनी यह लड़की कौन है ?
जैसा की हम आपको उपर बता चुके हैं कि सन 1929 ई के अंदर मुम्बई के अंदर रहने वाले चौहान परिवार ने पारले कम्पनी शूरू की थी। पहले यह कम्पनी केवल पेस्ट्री और कुकीज़ बनाती थी। उस समय ब्रिटिश कम्पनियां बिस्कुट बनाती थी। उसके बाद सन 1939 ई के अंदर पारले जी नामक बिस्कुट मार्केट मे आया था।
1980 ई तक यह पार्ले ग्लूको’ नाम से बिकता था। उस समय इसके कवर के उपर एक लड़की की तस्वीर ना होकर एक गाय और ग्वालन की थी। उसके बाद इसको हटाकर एक लड़की की तस्वीर लगाया गया । यह कम्पनी की एक प्रचार रणनिति थी।
लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि पारले जी पर जो लड़की दिख रही है। उसके संबंध मे तीन महिलाएं दावा करती हैं। जिनमे से नीरू देशपांडे, सुधा मूर्ति (आईटी उद्योगपति नारायण मूर्ति की पत्नी) और गुंजन गंडानिया हैं।लेकिन इसे नीरू देशपांडे का ही बच्चा माना जाता है।नीरू के पिता ने एक बार उसकी एक तस्वीर ली थी। वह एक फाटोग्राफर नहीं थे । लेकिन चित्र देखने मे काफी शानदार था। और उसकी हर तरफ प्रसन्सा हुई। यही चित्र पारले ग्रुप के हाथ आ गया । उसके बाद फिर क्या था इसको उन्होंने अपने प्रोडेक्ट पर छाप दिया ।इसके अलावा और भी इस फोटो के संबंध मे कई अफवाहे हैं। लेकिन पारले प्रबंधक के अनुसार यह फोटो किसी लड़की की नहीं है। वरन इसको साठ के दशक मे एक चित्रकार ने बनाया था। यह एक काल्पनिक चित्र है।
पारले जी कम्पनी बंद हो रही है
सन 2016 के अंदर यह सुनने को आया था कि पारलेजी कम्पनी बंद हो रही है। हालांकि पारलेजी बिस्कुट मार्केट के अंदर अभी भी मिल रहे हैं। जाहिर तौर पर कम्पनी का उत्पादन घटा है। इस वजह से यह न्यूज आई थी।एक समय ऐसा था ।जब पारलेजी कम्पनी का सबसे बड़ा मार्केट था लेकिन अब वैसा कुछ नहीं है। अधिकतर लोग और बच्चे पारलेजी खाना ही छोड़ चुके हैं। इसकी बड़ी वजह है कि मार्केट के अंदर पारलेजी से बढ़िया किस्म के बिस्कुट आ चुके हैं।बहुत बार जब हम दुकान पर जाते हैं तो आकजल के बच्चे पारलेजी की बजाया कुछ और ही बिस्कुट लेना पसंद करते हैं। जिससे कम्पनी के प्रबंधकों का कहना गलत नहीं हैं। सबसे बड़ी बात जो पारलेजी बिस्कुट की गिरावट की वजह रही है वह यह है कि समय के साथ बदलाव नहीं किया गया ।
यदि हम पारलेजी की बात करें तो यह बहुत ही साधारण बिस्कुट है। और आजकल के बच्चे पहले जितने साधारण नहीं रहे हैं। उन्हें बस चीजों को बदल बदल कर लेना है। कुछ अच्छा लगे ।विकिपिडिया के अनुसार 30 जुलाई 2016 को को पारलेजी कम्पनी को बंद कर दिया गया ।पारलेजी सर्वोधिक बिक्री वाला बिस्कुट था। भारत के ग्लूकोज बिस्कुट श्रेणी के 70% बाजार पर इसका अधिकार था।
उसके बाद ब्रिटानिया के टाइगर (17-18%) और आईटीसी के सनफीस्ट (8-9%) बाजार पर हिस्सा था।इसके अलावा पारले जी बिस्कुट की भारत के बाहर भी उपलब्धता है।भारत से बाहर पार्ले-जी यूरोप, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आदि में भी उपलब्ध था। कनाडा में जेह्र्स (Zehrs), फ़ूड बेसिक्स, लोब्लौज़ आदि द्वारा इसके 418 ग्राम के पैक को बेचते थे । एक पैक 99 सेंट का था।
Aaapne bahut acchi jaankari batayi hai. jankari ke liye dhnyawad