पवन चक्की के 7 उपयोग pawan chakki use in hindi

‌‌‌इस लेख के अंदर हम जानेंगे पवन चक्की का उपयोग pawan chakki use in hindi और पवन चक्की के लाभ के बारे मे ,पवन चक्की का नाम तो आपने बहुत सुना ही होगा यह एक ऐसी संरचना होती है जोकि पवन उर्जा को यांत्रिक उर्जा के अंदर बदलती है और उसके बाद इस यात्रिक उर्जा को विधुत उर्जा के अंदर बदला जाता है।‌‌‌इन पवन चक्की का प्रयोग मध्ययुग और आधुनिक युग के अंदर किया गया है।क्षैतिज पवन चक्की 9 वी शताब्दी के अंदर ईरान मे देंखने को मिली थी। उसके बाद 12 शताब्दी मे उत्तर पश्चििम यूरोप के अंदर उर्ध्वाधर पवन चक्की दिखाई दी थी।

‌‌‌जब पवन चक्की का विकास नहीं हुआ था तो एक पहिया हुआ करता था जोकि हवा से घूमता था। और बाद मे इसी का आधार लेकर पवन चक्की बनाई गई थी।इस प्रकार के पहिये का प्रयोग चीन के अंदर 7 वीं शताब्दी के आस पास किया गया था। हालांकि इसको लेकर अभी भी स्पष्ट जानकारी नहीं है।

14 वीं शताब्दी में यूरोप में पवन चक्की लोकप्रिय हो गई; 1850 में हवा से चलने वाली मिलों की कुल संख्या लगभग 200,000 थी।इन पवन चक्की को ऐसे स्थानों पर लगाया जाता था जहां पर जमीन समतल होती थी और हवा बहुत अधिक चलती थी ताकि अधिक से अधिक उर्जा का उत्पादन किया जा सके । ‌‌‌लेकिन पानी की भाप बनाकर जब से बिजली का उत्पादन किया जाने लगा तब से इनका प्रयोग काफी कम हो गया है।

1850 के आसपास नीदरलैंड में उपयोग की जाने वाली 10,000 पवन चक्कियों में से, लगभग 1,000 अभी भी खड़ी हैं। इनमें से अधिकांश स्वयंसेवकों द्वारा चलाए जा रहे हैं, हालांकि कुछ मिल अभी भी व्यावसायिक रूप से चल रही हैं।

‌‌‌पहले बहुत से ऐसे उधोग हुआ करते थे जो पवन चक्की से संचालित होते थे लेकिन आर्थिक विकास का इन उधोगों पर बुरा प्रभाव पड़ा जिसकी वजह से इनमे से अधिकांश अब तक बंद हो चुके हैं।

पहली क्षैतिज अक्ष पानी के पहिये को विकसित करने के लिए ऑस्ट्रियन एज के एक इंजीनियर विटरुवियस द्वारा लकड़ी के कोग और रिंग गियर को प्रयोग मे लाया गया था। ‌‌‌यह माना गया है कि टॉवर मिल 1300 ई के अंदर अस्तित्व के अंदर आया था।1430 ई के अंदर नॉरमैंडी मिल का उल्लेख मिलता है।

‌‌‌पवन से चलने वाली जल पम्प मिलों को 1854 के अंदर अमेरिका के अंदर विकसित किया गया था।इन चक्की के अंदर चार लकड़ी के ब्लेड का यूज किया जाता था और 1870 ई के अंदर स्टील के ब्लेड का प्रयोग किया जाने लगा था।

1850 और 1970 ई के बीच अमेरिका के अंदर बहुत सारी पवन चक्की स्थापित की गई थी जिनके कई उपयोग किये जाते थे । खास कर पानी को पम्प करने के लिए और भाप उत्पादन के लिए । ‌‌‌बिजली पैदा करने वाली पवन चक्की का आविष्कार 1888 ई के अंदर एक इंजिनियर ने किया था।यह पवन चक्की 12 किलोवाट बिजली पैदा कर सकती थी और इसके अंदर एक भारी रोटर लगा  था।

‌‌‌आजकल बिजली पैदा करने वाली पवन चक्की को पवन टरबाइन के नाम से जाना जाता है।1973 और 1986 के वर्षों के बीच परस्पर उपयोगिता पवन कृषि अनुप्रयोगों के लिए 50 से 600 किलोवाट तक का पवन टरबाइन बनाया जा चुका है। ‌‌‌यह पवन टरबाइन कई ब्लैड के अंदर आता है। आमतौर पर दो या तीन ब्लैड वाला पवन टरबाइन सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।

1.पवन चक्की का उपयोग अनाज को पीसने मे

आज तो अनाज को पीसने के लिए बिजली से चलने वाली अलग प्रकार की चक्की आ चुकी हैं लेकिन पहले बिजली से चलने वाली आटे की चक्की नहीं थी तो कई जगह पर पवन से चलने वाली चक्की का प्रयोग किया जाता था । हालांकि इसकी उत्पादन क्षमता कम होती थी। इसमे ब्लैड हवा की मदद ‌‌‌से घूमती थी और उस ब्लैड के घूमने से उसके साथ जुड़ी दूसरी शाफट वैगरह घूमती थी एक छेद के अंदर दानों को डाला जाता था और पत्थरों के बीच दाना महिन आटे के अंदर बदल जाता था । उसके बाद उसे बोरों के अंदर भर लिया जाता था।

2.बीजों से तेल निकालने के लिए पवन चक्की का उपयोग Use of windmill to extract oil from seeds

‌‌‌तेल को निकालने के लिए भी पवन चक्की का प्रयोग किया जाता था। हमारे यहां पर तेल निकालने के लिए बैलों का प्रयोग किया जाता था। उसी प्रकार से पवन चक्की का प्रयोग बीज से तेल निकालने के लिए किया जाता है। ‌‌‌यह भी आटा पीसने के समान ही होता है। ब्लेड हवा की मदद से घूमती हैं और एक छेद के अंदर बीज को डाला जाता है। और उसके बाद बीजों को पीसा जाता है। और दूसरी तरफ तेल को पात्र के अंदर एकत्रित कर लिया जाता है।

‌‌‌3.जमीन से पानी निकालने के लिए

‌‌‌जमीन से पानी निकालने के लिए लिए भी आज भी कई स्थानों पर पवन चक्की का प्रयोग किया जाता है। ‌‌‌हालांकि प्राचीन काल के अंदर जो पानी के पम्प का प्रयोग किया जाता था वे केवल यांत्रिक पंप हुआ करते थे लेकिन आजकल जो पवन चक्की का प्रयोग किया जाता है वह काफी ऐडवांस लेवल के अंदर किया जाता है।

‌‌‌वर्तमान मे यह जल पंप बिजली से चलते हैं और इनके अंदर अल्टरनेटर का यूज किया जाता है ।जो काफी कम रखरखाव वाली प्रणाली है।और यह बिना निरिक्षण के भी वर्षों तक आसानी से काम कर सकते हैं।

पवनचक्की से उत्पन्न विद्युत पम्पिंग प्रणाली पीने के पानी और छोटे भूखंड सिंचाई दोनों के लिए छोटे डीजल पंपों के लिए एक लागत प्रभावी विकल्प प्रदान करती है जो काफी अच्छा है। ‌‌‌इसके अलावा जहां पर अधिक पानी की आवश्यकता होती है। पवन चक्की की मदद से पानी को जमीन से निकाला जाता है और उसके बाद उसे एक टैंक के अंदर भंडारित कर लिया जाता है।

उसके बाद जब जरूरत हो तो उसका प्रयोग किया जा सकता है। ‌‌‌जिन क्षेत्रों के अंदर बिजली की आपूर्ति नहीं होती हैं वहां पर पवन चक्की या सौर उर्जा यह दोनों अच्छे विकल्प होते हैं और इनकी मदद से पानी की आपूर्ति आसानी से की जा सकती है।

 8 ‘व्यास के पहिये के साथ एक विशिष्ट पवनचक्की पानी को 185 फीट उठा सकती है और 1 cylinder “के पंप सिलेंडर का उपयोग करते समय 15 से 20 मील प्रति घंटे की हवा में एक घंटे में लगभग 150 गैलन पंप कर सकती है। 15 से 20 MPH की तेज हवा में घूमने वाले ब्लेड के साथ एक पवन चक्की यदि 35% समय के अंदर उड़ती है तो वह आसानी से 1500 गैलन पानी निकाल सकती है।

‌‌‌4.पवन चक्की का उपयोग बिजली उत्पादन मे

दोस्तों बिजली पैदा करने के लिए जिन पवन चक्की का प्रयोग किया जाता है उनको पवन टरबाइन के नाम से जाना जाता है। ‌‌‌इसको पवन उर्जा कन्वर्टर के नाम से जाना जाता है।यह पवन की गतिज उर्जा को विधुत उर्जा के अंदर बदलने का काम करता है।पवन टरबाइन ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज अक्ष की एक विस्तृत श्रृंखला में निर्मित होते हैं। छोटी टर्बाइन का उपयोग अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है जैसे कि नाव या कारवां के लिए सहायक बिजली के लिए बैटरी चार्ज करना या ट्रैफ़िक चेतावनी के संकेत देना। ‌‌‌

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घरेलू विधुत आपूर्ति के लिए भी अब पवन टरबाइन का प्रयोग किया जाने लगा है।इसकी वजह से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो रही है। और भूतापीय, कोयला और गैस की तुलना में कम ग्रिनहाउस गैस का उत्सर्जन हो रहा है।

‌‌‌पवन उर्जा पहली बार यूरोप के अंदर 11 वीं या 12 शताब्दी के अंदर दिखाई दी थी।12 वीं शताब्दी में इंग्लैंड में उनके उपयोग के पहले ऐतिहासिक रिकॉर्ड, जर्मन अपराधियों को पवनचक्की बनाने के कौशल को 1190 के आसपास सीरिया लेकर जाया गया था। उन्नत पवन टर्बाइनों का आविष्कार फॉस्टो वेरानजियो ने किया था। उसने ‌‌‌ अपनी किताब के अंदर टरबाइन की अलग अलग प्रकार की ब्लैडों के बारे मे भी वर्णन किया था।

पहली बिजली पैदा करने वाली पवन टरबाइन जुलाई 1887 में स्कॉटलैंड के मैरीकोर्क, स्कॉटलैंड में अकादमिक जेम्स बेलीथ ने बनाई थी।अमेरिकी आविष्कारक चार्ल्स एफ ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एक अन्य पवन टरबाइन का आविष्कार किया था। ‌‌‌यह टरबाइन बिखरी हुई आबादी वाले क्षेत्रों के अंदर आसानी से बिजली की आपूर्ति कर सकता था।

‌‌‌1930 के दशक तक  बिजली से चलने वाले पवन जनरेटर आम थे और यह खेतों के अंदर बिजली का उत्पादन के लिए प्रयोग मे लिये जाते थे ।खास कर ऐसे स्थानों पर जहां पर बिजली की आपूर्ति नहीं होती थी।

‌‌‌आधुनिक क्षेतिज पवन जनरेटर 1931  ई के अंदर बनाया गया था।यह 30-मीटर (98 फीट) टॉवर पर 100 किलोवाट का जनरेटर था, जो स्थानीय 6.3 केवी वितरण प्रणाली से जुड़ा था। यूके में संचालित होने वाली पहली यूटिलिटी ग्रिड-कनेक्टेड विंड टरबाइन को 1951 में ब्राउन एंड कम्पनी की मदद से बनाया गया था।

पवन टरबाइन एक क्षैतिज या एक ऊर्ध्वाधर दो प्रकार के होते हैं और ऊर्ध्वाधर डिजाइन कम शक्ति पैदा करते हैं और सामान्य होते हैं।

Horizontal axis

गियरबॉक्स, रोटर शाफ्ट और ब्रेक असेंबली को क्षैतिज अक्ष टरबाइन के अंदर प्रयोग मे लिया जाता है।तीन ब्लैड वाली क्षैतिज टरबाइन का यूज आज बहुत अधिक किया जाता है।इन टरबाइन के टॉवर पर मुख्य रोटर शाफ्ट और इलेक्ट्रिकल जनरेटर होते हैं। अधिकांश में गियरबॉक्स होता है, जो ब्लेड के धीमे घुमाव को एक तेज घुमाव में बदल देता है जो विद्युत जनरेटर को चला देता है।कुछ टरबाइन धीमी गति का प्रयोग करते हैं। इस वजह से उनको गियर बॉक्स की आवश्यकता नहीं होती है। इन्हें डायरेक्ट-ड्राइव के नाम से भी जाना जाता है।

इलेक्ट्रिक पावर के उत्पादन के लिए खेतों के अंदर प्रयोग किये जाने वाले टरबाइन 3 ब्लैड के होते हैं।इनके अंदर कम टॉर्क होता है और ब्लेड आमतौर पर 20 से 80 मीटर (66 से 262 फीट) तक विमान और रेंज द्वारा दृश्यता के लिए सफेद रंग के होते हैं।

‌‌‌यह 8 मेगावाट तक बनाए जाते हैं और अब तो 12 मेगावाट तक के बनाए जा चुके हैं।सामान्य मल्टी मेगावॉट टर्बाइन में 70 मीटर से 120 मीटर  तक होता है।

Vertical axis

ऊर्ध्वाधर-अक्ष पवन टर्बाइन (या VAWT) में मुख्य रोटर शाफ्ट लंबवत रूप से व्यवस्थित होते हैं।इस टरबाइन की खास बात यह है कि टरबाइन को प्रभावी होने के लिए हवा मे सेट करने की जरूरत नहीं होती है।यह टरबाइन खास कर ऐसे स्थानों पर अधिक प्रयोग किया जा सकता है। जहां पर हवा की दिशा बहुत अधिक बदलती रहती है। जनरेटर और गियरबॉक्स को जमीन के पास रखा जा सकता है। इसकी सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि समय के साथ इसकी उर्जा उत्पादन क्षमता मे कमी आती है। इसके अलावा  यह शौर भी करता है जो एक चिंता का विषय हो सकता है।

‌‌‌5.पवन चक्की का प्रयोग गन्ना उद्योगों में किया जाता है।

‌‌‌पवन चक्की का प्रयोग गन्ना उधोगों के अंदर भी किया जाता है। गन्ना उधोगों के अंदर गन्ने को पीसने के लिए पवन चक्की का प्रयोग किया जाता था। एंटीगुआ में बेट्टी होप एक गन्ना बागान था। यह 1650 में स्थापित किया गया था।यहां पर 1737 ई के अंदर गन्ने को कुचलने के लिए दो पवन चक्की का प्रयोग किया जाता था।ऊर्ध्वाधर रोलर्स की मदद इसके अंदर ली जाती थी।एक पवन चक्की के अंदर दो बार गन्ने को कुचलने पर 60 प्रतिशत रस बाहर आ जाता था।

‌‌‌एक पवन चक्की दो एकड़ गन्ने का रस निकाल सकती थी।यहां पर साप्ताहिक उत्पादन आम तौर पर 200 टन गन्ने से लगभग 5,500 गैलन गन्ने के रस का होता था।

‌‌‌हालांकि अब इस मशीनरी का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह संग्रह के रूप मे रखी गई है और लोग इसको अब देखने के लिए आते हैं।केंद्र सह संग्रहालय अब एक पुराने सूती घर के स्टोर रूम में स्थित है जहाँ बागान के इतिहास के साथ संपदा योजनाओं, चित्रों और नक्शों, कलाकृतियों और केंद्रीय स्थल के एक मॉडल को प्रदर्शित किया जाता है। 

मई 2005 के दौरान, “ए पेनी कॉन्सर्ट” नामक एक संगीत कार्यक्रम का आयोजन करके बेट्टी होप को सुधारने के लिए धन जुटाया गया था।

‌‌‌6.बैटरी को चार्ज करने के लिए pawan chakki use in hindi

जैसा कि हमने आपको उपर बताया कि पवन उर्जा का प्रयोग बिजली को पैदा करके बैटरी को चार्ज करने मे भी किया जाता है। ‌‌‌और वर्तमान मे यही तरीका सबसे अधिक लोकप्रिय हो रहा है।इसमे एक विंड टरबाइन को बैटरी से जोड़ा जाता है और जब वह घूमता है तो बैटरी अपने आप ही चार्ज हो जाती है। बैटरी मे स्टोर बिजली को किसी दूसरे कार्य के लिए प्रयोग कर लिया जाता है । जैसे बल्ब जलाना आदि ।

7.नौकायन के अंदर पवन चक्की का प्रयोग

दोस्तों नौकायन के अंदर पवन चक्की का प्रयोग बहुत ही लंबे समय तक होता आ रहा है।5000 ईसा पूर्व से ही पवन उर्जा का प्रयोग नावों के अंदर शक्ति के उत्पादन के लिए किया जाता रहा है। ‌‌‌हाल ही के दिनों के अंदर छोटे जहाजों को भी देखा गया है जोकि विंड एनर्जी का प्रयोग कर रहे हैं।इसके पीछे कारण यह है कि इन जहाजों के अंदर विंड का प्रयेाग करके ईंधन की खपत को 30 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।और इस प्रकार से पवन उर्जा का लंबे समय तक परिवहन के अंदर प्रयोग हो रहा है।

‌‌‌पवन चक्की के फायदे या पवन उर्जा के फायदे

अब तक हमने पवन चक्की के अलग अलग उपयोग के बारे मे विस्तार से जाना । आइए अब जानते हैं कि पवन उर्जा हमे किसी प्रकार से लाभ प्रदान करती है ? और उर्जा उत्पादन का यह तरीका कितना उपयोगी है ?

‌‌‌कम लागत के अंदर उपलब्ध

दोस्तों पवन उर्जा कम लागत के अंदर उपलब्ध है और इसके लिए आपको कुछ अधिक खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है।इसके अंदर बस आपको  एक बार पैसा खर्च करना होता है। उसके बाद 20 साल तक आप फ्रि के अंदर उर्जा ले सकते हैं जो काफी बेहतरीन कार्य होता है। ‌‌‌ईंधन वैगरह के लिए आपको बाद मे किसी भी प्रकार का पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं होती है।

‌‌‌पवन उर्जा रोजगार पैदा करती है

‌‌‌पवन उर्जा रोजगार भी पैदा करती है। अमेरिकी पवन क्षेत्र 100,000 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देता है। आजकल पवन टरबाइन का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। और इसकी वजह से रोजगार भी तेजी से बढ़ रहे हैं। कुल मिलाकर पवन उर्जा बहुत ही अच्छे रोजगार के अवसर पैदा कर रही है।

‌‌‌पर्यावरण फ्रेंडली है पवन उर्जा

दोस्तों पवन उर्जा पर्यावरण फ्रेंडली है और यह वायुमंडल को दूषित नहीं करती है।जीवाश्म ईंधन के जलने से नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। और वर्तमान मे पर्यावरण प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ रहा है। ‌‌‌यदि पर्यावरण प्रदूषण ऐसे ही बढ़ता रहा तो आने वाले समय के अंदर प्रथ्वी रहने लायक ही नहीं बचेगी । लेकिन यदि लोग अधिक से अधिक विंड उर्जा और सौलर उर्जा का प्रयोग करना आरम्भ कर देते हैं तो प्रदूषण को कम किया जा सकता है। विंड उर्जा पर्यावरण को दूषित होने से बचाती है।

पवन ऊर्जा  एक घरेलू स्रोत है

एक पवन चक्की के अंदर एक घर के लिए बिजली का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है। एक बार उर्जा जब उत्पन्न हो जाती है तो उसे या तो ग्रिड को भेजा जा सकता है या फिर बैटरी के अंदर स्टोर किया जा सकता है। बहुत सी जगहों पर पवन उर्जा को ग्रिड को भेजा जाता है जो घरेलू बिजली ‌‌‌ को सस्ता बनाने का कार्य करता है।

‌‌‌बहुत की कम स्थान घेरता है

पवन टरबाइन की सबसे बड़ी खास बात यह होती है कि यह सोलर प्लेट की तरह अधिक स्थान नहीं घेरता है। क्योंकि पवन टरबाइन को हवा मे उपर लगाया जाता है। नीचे सिर्फ एक पोल के जितनी जगह घेरता है। बाकी इसके नीचे की जमीन को खेती वैगरह के लिए आसानी से काम मे लिया जा सकता है। ‌‌‌जबकि यदि आप अपने खेत के अंदर सोलर प्लेट लगाते हैं तो यह पूरे स्थान को घेर लेती हैं। उसके बाद प्लेटों के नीचे की जमीन को किसी और कार्य के अंदर उपयोग मे नहीं लिया जा सकता है।

‌‌‌बिजली की अनुपलब्धता वाले स्थानों पर बहुत ही उपयोगी

जिन स्थानों पर बिजली की व्यवस्था नहीं होती है । वहां पर पवन उर्जा का प्रयोग किया जा सकता है। और यह काफी अच्छा ही है। आजकल बिजली के लिए निगम के चक्कर काटने की तुलना मे यह काफी बेहतर है।

‌‌‌वैसे तो पवन चक्की काफी फायदे मंद होती है लेकिन यह ऐसे स्थानों पर अधिक उपयुक्त नहीं होती हैं जहां पर हवा कम चलती है। और भारत जैसे इलाकों के अंदर पवन उर्जा उतनी प्रभावी नहीं होती है जितनी की सौर उर्जा होती है। इसी वजह से यहां पर सौर उर्जा की प्लेट लगभग हर जगह पर देखने को मिलती है।

‌‌‌इसके अलावा देखा जाए तो पवन उर्जा के उत्पादन की लागत बहुत अधिक आती है।4 से 5 करोड़ रुपये/मेगावाट  तक इसकी लागत आती है जो काफी महंगी है यदि सौलर सिस्टम का प्रयोग करते हैं तो यह काफी सस्ता पड़ता है। ‌‌‌इसके अलावा सोलर सिस्टम को लगाने के लिए भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे हवा की गति को चैक करने के लिए आंकड़े 1 से 2 वर्ष तक एकत्रित किये जाते हैं।ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सोलर सिस्टम सही मात्रा मे उर्जा का उत्पादन कर सके । इस तरह से यह काफी लंबी प्रोसेस है।

‌‌‌इसके अलावा पवन उर्जा को स्टोर करना भी काफी कठिन होता है।यदि आप पवन टरबाइन से बिजली का उत्पादन करते हैं तो इतनी बिजली को आप स्टोर नहीं कर सकते हैं। ऐसी स्थिति के अंदर यह आपके लिए बड़ी समस्या हो सकती है। हालांकि आप बिजली को ग्रिड को भेज सकते हैं।

‌‌‌इसके अलावा हवा की गति भी बहुत बड़ी समस्या है।भारत के अंदर बहुत सारे क्षेत्र हैं जहां पर हवा लगभग नहीं के बराबर चलती है। ऐसी जगहों पर पवन चक्की अधिक उपयोगी नहीं होती है। यह उन ईलाकों के अंदर काम करती है जहां हवा अच्छी चलती है।

पवन चक्की का उपयोग लेख के अंदर हमने पवन चक्की के अलग अलग उपयोग के बारे मे जाना । और पवन चक्की के संक्षिप्त इतिहास के बारे मे पढ़ा । उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा । ‌‌‌यदि आपके कोई सुझाव हो तो नीचे कमेंट करें ।

This post was last modified on November 24, 2020

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