दोस्तों पीछले लेख के अंदर हमने पेंसिल के आविष्कार के बारे मे विस्तार से जाना था। इस लेख के अंदर हम यह जानेंगे कि पेन का आविष्कार किसने किया था pen ka avishkar kisne kiya tha। और पेन के दिलचस्प इतिहास के बारे मे । दोस्तों आजकल हम सभी लोग पेन का यूज करते हैं।
आज से काफी साल पहले पेन ऐसा नहीं था जैसा कि आज हम यूज करते हैं। एक समय ऐसा भी था जब पंख की मदद से भी लिखा जाता था। दोस्तों यहां पर जब हम पेन शब्द का प्रयोग कर रहे हैं तो इसका मतलब है स्याही वाला पेन जिसके अंदर सिक्का भी डलता है। यदि पेन के प्रकार की बात करें तो यह कई प्रकार का होता है।reed pens, quill pens, dip pens और इनके अलावा मोर्डन पेन के अंदर ballpoint, rollerball, fountain पेन आते हैं।
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पेन का आविष्कार किसने किया और पेन का इतिहास
प्राचीन मिस्र के लोगों ने पैपाइरस स्क्रॉल पर लेखन का विकास किया था।इसको लिखने के लिए reed brushes or reed pens का यूज किया गया था।reed pens को बनाने के लिए Juncus maritimus का प्रयोग किया जाता था।Juncus maritimus समुद्री पौधे की एक प्रजाति का नाम है जो स्वीडन के अंदर पाया जाता है।
रीड कलम का प्रयोग लंबे समय तक चलता रहा और उसके बाद 7 वीं शताब्दी के बाद इसका प्रयोग कम होता चला गया ।उसके बाद बांस से बनी ईख कलम का प्रयोग किया जाने लगा भारत के कुछ स्थानों पर इस कलम का प्रयोग आज भी किया जाता है।
रीड पेन तब तक चलता रहा जब तक कि क्विल पेन नहीं आ गया । क्विल पेन मे जानवरों के पंख का प्रयोग किया जाता था और इसकी मदद से अक्षर लिखे जाते थे ।100 बीसी पूर्व इस पेन का प्रयोग Dead Sea Scrolls लिखने मे किया गया था जोकि एक धर्म की किताब है। क्विल पेन को अभी भी अठारहवीं शताब्दी में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया था, और इसका उपयोग संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान को लिखने और हस्ताक्षर करने के लिए किया गया था
- पोम्पेई के खंडहरों में एक तांबे की निब मिली है। जिसका प्रयोग लिखने मे किया जाता था। यह 79 ई की बात है।
- अगस्त 1663 की सैमुएल पेप्स की डायरी में ‘सिल्वर पेन के बारे मे जानकारी मिलती है।
- 1792 ई मे मेटल के एक पेन का विज्ञापन भी दिया गया था।
- 1811 में ब्रायन डोनकिन द्वारा धातु के पेन के लिए विज्ञापन दिया गया था।
- बर्मिंघम के जॉन मिशेल ने 1822 में धातु की निब लगे पेन का बड़ी संख्या के अंदर उत्पादन किया था।
- एक स्याही वाले पेन का ऐतिहासिक रिकॉर्ड 10 वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का है ।953 में, मिस्र के फातिमिद खलीफ़ा के पास एक ऐसा पेन था जिसके अंदर स्याही थी और यह आधुनिक पेन जैसा था। लेकिन इसके बारे मे कोई खास जानकारी उपलब्ध नहीं है।
- बाद मे 1636 मे स्याही के पेन का विकास किया गया था।डेलिसिया फिजिको-मैथेमैटिका (1636) में, जर्मन आविष्कारक डैनियल श्वेन्टर ने दो क्विल से बने पेन के बारे मे बताया था।इस पेन के अंदर स्याही भरी होती थी और निब के माध्यम से इसका प्रयोग लिखने मे किया जाता था।
- 1809 में, बर्थोलोमेव फोल्श ने इंग्लैंड में स्याही पेन का पेटेंट करवाया था।
- पेरिस में एक छात्र, रोमानियाई पेट्रैच पोएनारू ने फाउंटेन पेन का आविष्कार किया, जिसे 1827 ई मे पेटेंट करवाया था।
30 अक्टूबर, 1888 को जॉन जे लाउड ने बॉल पॉइट पेन पेटेंट करवाया था।उसके बाद 1938 ई मे हंगरी ने अपने भाई जार्ज की मदद से एक पेन बनाया था। जिसके आगे एक निब थी और निब के अंदर गोल गेंद लगी थी। जब पेन को कागज पर रगड़ा जाता था तो गेंद से स्याही टपकती थी। यह आज की निब की तरह ही था। स्लावोलजब एडुअर्ड पेनकाला एक पोलिश आविष्कारक था। जिसने सॉलिड-इंक फाउंटेन पेन (1907) एडमंड मोस्टर के सहयोग से बनाया था।उन लोगों ने पेनक्ला-मोस्टर कम्पनी बनाई थी जो उस समय दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनी भी थी।
रोलरबॉल पेन को 1970 के दशक की शुरुआत मे पेश किया गया था।यह पेन चिकनी रेखा बनाने के लिए तरल स्याही का यूज करता है।1990 के दशक मे रोलर बॉल के अंदर कई सुधार हुए थे । उच्च गणुवकता वाले पेन के अंदर सिरेमिक टिप होता है , जो लिखने मे बहुत ही आरामदायक होता है।
फाउंटेन पेन का आविष्कार किसने किया
लेडिस्लाओ जोस बिरो नामक एक वैज्ञानिक ने सन 1931 ई के अंदर ballpoint का आविष्कार किया था।वे खुद एक चिकित्सक और रिसर्च कर्ता थे । इस पेन के आविष्कार के बाद से ही इस पेन को बिरो पेन के नाम से भी जाना जाने लगा था।जोस बिरो जब फाउंटेन पेन का प्रयोग करते थे तो यह इसके द्वारा पैदा होने वाले धब्बों से परेशान थे ।
क्योंकि इसकी स्याही जल्दी ही नहीं सूखती थी। बाद मे उनके दिमाग मे विचार आया कि क्योंना अखबारों के अंदर प्रयोग करने वाली स्याही का प्रयोग किया जाए । लेकिन उनका यह प्रयोग सफल नहीं हो सका। ऐसा करने से लिखने मे समस्या होने लगी । क्योंकि स्याही पेन की निब तक पहुंचने मे समय लेती थी।
और काफी प्रयास करने के बाद उन्होंने ballpoint निब का आविष्कार किया था। इसके अंदर एक छोटी गेंद होती थी। जब इसको किसी कागज के संपर्क मे लाया जाता था तो इससे स्याही निकलती थी। और इसमे धब्बे की कोई समस्या नहीं थी।इस पेन की निब आमतौर पर पीतल और स्टील जैसे धातुओं से बनाई गई थी।
बायोग्राफिकल डिक्शनरी ऑफ द हिस्ट्री ऑफ टेक्नोलॉजी नामक एक बुक मे यह उल्लेख मिलता है कि बिरो पेन के पहले बनाने वाले का नाम हेनरी जॉर्ज मार्टिन था। और जब दूसरा विश्व युद्व हो रहा था तो यह पेन काफी लोकप्रिय हो गया । क्योंकि यह दूसरे पेनों की तरह नहीं था । उंचाई पर यह आसानी से काम कर सकता था।ब्रिटेन का रॉयल एयर फोर्स ने इस पेन का बहुत अधिक प्रयोग किया था। खास कर सेना के जवानों मे यह काफी पोपुलर हो चुका था।
पेन के प्रकार
दोस्तों पेन के आविष्कार से लेकर अब तक कई प्रकार के पेन आए और चले गए । बहुत से लोग उनके बारे मे जानते भी नहीं होंगे । नीचे हम पेन के आविष्कार से लेकर आज तक कितने पेन आए । उन सब के बारे मे विस्तार से बताने वाले हैं। जिससे आपको आइडिया हो जाएगा कि प्राचीन समय मे किस तरह के पेन का प्रयोग होता था।
Ink brush
इंक ब्रश के नाम से ही आप जान चुके होंगे । इस पेन के अंदर एक ब्रश होता है। मतलब पेन के आगे वाले भाग के अंदर ब्रश के समान होता है। और इसकी बनावट की बात करें तो यह अलग अलग प्रकार की हो सकती है। आपने यदि रंग वाले पेन देखेंगे होंगे , जिनके अंदर रंग भरा होता है और बाहर छोटा ब्रश होता है।कुछ इंक ब्रश की बनावट इसी तरह की भी होती है। इसके अलावा कुछ आप चित्र मे देख रहे हैं।
इस प्रकार के भी होते हैं। जिनको स्याही के अंदर बार बार डुबोकर चलाना पड़ता है। इस ब्रश का प्रयोग पेंट करने वाले करते हैं। जैसे किसी नाम को लिखना है तो इसी तरह के ब्रश का प्रयोग होता है।
सबसे पुराना इंक ब्रश 1954 के अंदर Zuo Gong Shan 15 में चांग्शा के पास स्थित चू नामक एक नागरिक की कब्र मे मिला था।इस आदिम ब्रश के अंदर एक बांस की नली के अंदर बाल लगे हुए थे ।
Quill पेन
दोस्तों आपने फिल्मों के अंदर और किताबों मे यह देखा और पढ़ा होगा कि प्राचीन काल के अंदर पंख से बना पेन का यूज किया जाता था। यह एक तरह से जुगाड़ ही था। पंख के आगे के भाग को पेन की निब की तरह काट दिया जाता था ताकि सही से लिखा जा सके ।
यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं था।क्योंकि इसके अंदर किसी भी प्रकार की स्याही वैगरह को आप भर नहीं सकते थे । इस पेन की मदद से आपको लिखने के लिए अपने पास एक दवात भी रखनी होती थी। और आपको लिखने के लिए पेन को बार बार इस दवात के अंदर डुबोना होता था। एक तरह से यह काफी समय खराब करने वाला काम ही था।
इस पेन को बनाने के लिए सबसे ज्यादा हंस के पंखों का प्रयोग किया जाता था। यह खासकर उन पंखों का यूज किया जाता था। जिसको पक्षी ने अपने आप ही गिरा दिया हो । इसके अलावा कोवै और उल्लू के पंखों का भी प्रयोग इस पेन को बनाने मे किया जा सकता था।
Quill पेन काफी लंबे समय तक चलता था। यदि नीचे का काटा हुआ हिस्सा खराब हो जाता था तो उसके उपर के हिस्से को नीचे जैसा बना लिया जाता था। आज कल इस प्रकार के पेन सिर्फ संजोकर रखे जाते हैं। 6 वीं से 19 वीं शताब्दी तक क्विल्स पश्चिमी दुनिया में प्राथमिक लेखन साधन थे। सर्वश्रेष्ठ क्विल आमतौर पर हंस और बाद में टर्की के पंखों से बने होते थे।मेटल के पेन का आविष्कार होने के बाद क्विल पेन के उपयोग के अंदर गिरावट आने लगी थी।
Reed pen
रीड पेन आमतौर पर बांस की लकड़ियों से काट कर बनाए जाते हैं। प्राचीन काल मे मिस्र के स्थलों से इस प्रकार के पेन मिले हैं। जिनमे हाथी दांत का भी यूज किया गया है। मेसोपोटामिया और सुमेर की सभ्यताओं मे रीड पेन का उपयोग भी किया गया था।
रीड पेन अब पूरी तरह से गायब हो गया है। मैंने भी इस प्रकार का पेन लेख लिखते समय पहली बार देखा है। और देखकर यह भी समझ नहीं आया कि इस पेन का उपयोग करके किस तरह से लिखा जाता होगा । हालांकि इसके बारे मे तो वही लोग बता सकते हैं। जिन्होंने इसका यूज किया होगा ।
पेन का आविष्कार किसने किया Ballpoint pen
Ballpoint pen के बारे मे आपको बताने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि इसका यूज हम सभी लोग करते हैं। बॉलपॉइंट पेन के अंदर एक धातु की एक गेंद होती है, जो स्याही को फैलाने का काम करता है।गेंद आमतौर पर धातु स्टील , पीतल , या टंगस्टन कार्बाइड की बनी होती है। यह सबसे पोपुलर पेन है और बहुत से लोग इसका यूज कर रहे हैं।
इसका यूज ग्राफिक ,कलाक्रति और लेखन मे किया जाता है।Museum of Modern Art New York मे बॉल पेन का एक शानदार कलेक्सन भी है।इस पेन की अवधारणा 19 वीं शताब्दी से ही मौजूद है। उस समय लकड़ी की एक खोखली नली के अंदर स्याही को भरकर रखा जाता था और आगे एक गेंद को लगाया जाता था। ताकि स्याही बाहर ना गिर सके ।
बॉल पॅवाइट पेन का पहला पेटेंट जॉन जे। लाउड को जारी किया गया था। इस पेन की मदद से चमड़े जैसी कठोर सतहों पर लिखा जाता था। लेकिन कागज पर लिखने मे यह उपयोगी नहीं था। बॉलपॉइंट पेन के विकसित करने मे काफी समस्याएं आई थी। जैसे यदि पेन के अंदर बहुत पतली स्याही होती तो यह गेंद के पास से निकल जाती और यदि हार्ड स्याही का यूज होता तो वह कागज तक नहीं पहुंच पाती थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कई कम्पनियों ने बॉल पॉइंट पेन बनाने की दिसा मे कदम रखा था।1945 के मध्य में, मैकेनिकल पेंसिल के निर्माता एवरशर्प ने एम्बरहार्ड फेबर कम्पनी के साथ मिलकर पेन बिक्री के लिए लाइसेंस लिया था।इसी समय के अंदर मिल्टन रेनॉल्ड्स ब्यूनस आयर्स नामक एक अन्य अमेरिकी उधोगपति ने अर्जेनटिना से कई बॉल पॉइंट पेन के नमूने खरीदे थे ।
उसके बाद इस उधोगपति ने रेनॉल्ड्स इंटरनेशनल पेन नामक एक अमेरिकी कम्पनी की स्थापना की थी। और उसके बाद अमेरिका के अंदर एक सफल पेन का बिजनेस चलाया था। 1945 तक यह कम्पनी काफी पोपुलर बनी रही । रेनॉल्ड्स एवरशर्प दोनों कुछ समय तक चले लेकिन बाद मे इनकी डिमांड तेजी से गिरने लगी थी।
1950 ई मे पेपर मेट पेन ने कनाड़ा मे पेन वितरित करने का अधिकार खरीदा था। पार्कर पेन ने द जोटर नामक एक पेन सन 1954 ई को जारी किया गया था।इस कम्पनी ने एक साल से भी कम समय मे कई मिलियन पेन बेच डाले थे ।एवरशर्प कंपनी जो असफल हो चुकी थी ने पार्कर को अपना डिविजन दे दिया था।
मार्सेल बिच ने 1950 मे अपना बॉल पॉइंट पेन अमेरिका मे पेस किया था।यह विश्व स्तर पर ब्रांड बन गया था। लेकिन 1960 ई के आस पास तेज प्रतिस्पर्धा होने की वजह से इसकी बिक्री मे भारी गिरावट आने लगी थी।
Rollerball pen
रोलर बॉल पेन के अंदर एक विशेष प्रकार की स्याही का प्रयोग किया जाता है जो कागज के अंदर गहराई तक जाती है।जापानी कंपनी ओह्टो द्वारा 1963 में रोलरबॉल पेन पेश किया गया था। इसके दो प्रमुख प्रकार होते हैं, लिक्विड इंक पेन और जेल इंक पेन।लिक्विड-इंक फाउंटेंन पेन के समान कार्य करता है। जबकि जेल स्याही में आमतौर पर पिगमेंट होते हैं।लिक्विड इंक रोलर बॉल पेन लगातार चल सकते हैं। जबकि जेल इंक पेन कम स्याही छोड़ते हैं।रोलर बॉल पेन के कई नुकसान भी होते हैं तो आइए इनके बारे मे भी विस्तार से जान लेते हैं।
- पानी-आधारित रोलर बॉल स्याही धीरे धीरे सूखती है। इसकी वजह से यदि गलती से नोटबुक को बिना अक्षर सूखाए ही बंद कर दिया तो यह आपकी नोट बुक को खराब कर सकता है।
- तरल-स्याही के साथ रोलर बॉल पेन को जब हम एक स्थान पर टिप करते हैं तो यह कागज पर अधिक स्याही छोड़ देता है। जिसकी वजह से कागज पर एक धब्बा सा बन जाता है।
- अनकैप्ड रोलर बॉल पेन में स्याही लीक होने की संभावना अधिक होती है
पेन का आविष्कार किसने किया Fountain pen
Fountain pen के बारे मे हम सभी जानते ही होंगे और कभी ना कभी आपने इसका यूज किया भी होगा । हालांकि अब इसका यूज बहुत कम हो गया है। हमारे यहां पर तो यह देखने को ही नहीं मिलता है।इस पेन के आगे एक निब लगी होती है। और इस पेन के अंदर स्याही को मैन्यूअली भरा जाता है। और जब पेन को नीचे करके कागज पर चलाया जाता है तो स्याही गुरूत्वाकर्षण की वजह से नीचे आती है। इस प्रकार से यह पेन काम करता है। वैसे इस पेन के साथ भी कई प्रकार की समस्याएं हैं।
जैसे इस पेन के अंदर यदि कचरा आ जाता है तो यह ठीक से काम नहीं कर पता है। इसके अलावा यदि निब टूट जाती है तो उसके बाद निब को बदलना पड़ता है। और कई बार स्याही की वजह से कपड़े भी खराब हो जाते हैं।
किताब अल-मजलिस वा ‘एल-मुशायरे के अंदर एक इसी प्रकार के पेन का उल्लेख मिलता है। जिसके प्रयोग करने से किसी भी प्रकार की स्याही का गिरने का खतरा नहीं था।आविष्कारक लियोनार्डो दा विंची ने भी फाउंटर पेन का यूज किया था। कई इतिहास कारों के रिसर्च से पता चलता है कि क्विल पेन की तरह इसका यूज किया गया था। हालांकि इस संबंध मे ठीक से कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है।
Marker pen
मार्कर पेन के बारे मे आप अच्छी तरह से जानते होंगे और आपने मार्कर का उपयोग भी किया होगा । अब यह कई रंगों के अंदर आता है। मार्कर पेन मे आगे एक मोटी निब होती है। और उस नीब के अंदर एक अवशेषक लग होता है। और उस अवशोषक के अंदर स्याही होती है। मार्कर पेन के अंदर कंटेनर ग्लास, एल्यूमीनियम या प्लास्टिक से बना होता है।मार्कर को सूखने से रोकने के लिए इसके उपर टोपी होती है। जिसकी शुरूआत सन 1990 के दशक मे हुई थी।
1910 में ली न्यूमैन ने सबसे पहले मार्कर को बनाया था और इसके बारे मे जानकारी दी थी। सिडनी रोसेन्थल के मैजिक मार्कर (1953) ने मार्कर को बेचने के लिए मार्केट मे उतारा था। उसके बाद यह तेजी से लोकप्रिय होता चला गया । 1962 ई मे कम्पनी युकिओ होरी ने आधुनिक आधुनिक फाइबर-टिप्ड पेन का विकास किया था।
वैसे मार्कर कई प्रकार के होते हैं। जैसे स्थायी मार्कर जिसकी मदद से आप किसी भी कांच, प्लास्टिक, लकड़ी, धातु और पत्थर सतह पर आप लिख सकते हैं। और लिखने के बाद इसको मिटाना आसान नहीं होता है। हालांकि विशेष प्रकार के कैमिकल होते हैं। जिनकी मदद से आप इसको बहुत ही आसानी से मिटा भी सकते हैं।
हाइलाइटर्स मार्कर आमतौर पर अक्षरों का हाईलाइट करने मे काम आते हैं।सुरक्षा मार्कर का प्रयोग उपकरणों को चिन्हि करने मे प्रयोग किये जाते हैं।
Gel pen
जेल पेन के अंदर जो स्याही प्रयोग मे ली जाती है। वह काफी मोटी होती है। और यह अपार्र्दशी सतह पर लिखने के लिए बहुत अच्छी होती है। आज कल जो जेल पेन का उपयोग हम कर रहे हैं। उसके अंदर एक मोटे रिफल का प्रयोग किया जाता है और उसके अंदर स्याही भरी जाती है। रिफल के उपर कुछ पारे जैसी धातु होती है जो स्याही को बाहर निकलने से रोकते हैं।
जेल स्याही में उच्च चिपचिपापन होता है। पिगमेंट आम तौर पर कॉपर फथलोसाइनिन और आयरन ऑक्साइड होते हैं।जेल पेन अब कई रंगों के अंदर उपलब्ध हैं। इसके अलावा कई जेल पेन चमकदार रंगों के अंदर बने होते हैं। जिसकी लिखावट को अंधेरे मे भी देखा जा सकता है।कुछ जेल स्याही पानी की प्रतिरोधी होती है और यदि इन जेल पेन से लिखने बाद कागज या किसी दूसरी सतह जिन पर इनका उपयोग किया जाता है को धोया जाता है तो इनके द्वारा लिखे अक्षर मिटते नहीं हैं।
Stylus पेन
Stylus पेन का उपयोग मिटी के बर्तन और धातु के बर्तनों पर लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है।क्यूनिफॉर्म में लिखने के लिए प्राचीन मेसोपोटामियंस द्वारा स्टाइलस का पहली बार उपयोग किया गया था।यह अधिकतर नरकट से ही बने होते थे । विभिन्न प्रकार के कलाओं के अंदर स्टाइलस का प्रयोग किया जाता है।dry transfer मे , कार्बन पेपर मे और उभरी हुई संरचना मे इसके अलावा लोक कलाओं और मैक्सिकन मिट्टी के बर्तनों की कलाकृतियों में पाए जाने वाले रंगों को बनाने के लिए स्टाइलस का उपयोग किया जाता है।ओक्साका डॉट आर्ट स्टाइलस का प्रयोग करके बनाया जाता है।
Ruling pen
इस पेन के अंदर धातु के दो जबड़े होते हैं और उनके बीच एक पेच लगा होता है। इस पेच को घुमाकर लाइन की मोटाई को सेट किया जाता है। धातु के जबड़ों के अंदर से स्याही आती है।इस पेन का प्रयोग अधिकतर केसों मे इंजिनियरिंग, picture framing or calligraphy के अंदर किया जाता है।
Fudepen
यह पेन आम पेन के समान ही होती है। लेकिन इसके अंदर निब की जगह ब्रश होता है। जो काफी छोटा होता है। और यह काफी नर्म होता है जिसको आसानी से मोड़ा जा सकता है।इसके अंदर स्याही का प्रयोग होता है जो एक अवशोषक के अंदर रहती है और आसानी से बाहर लीक नहीं होती है।
स्किन पेन
स्किन पेन के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि इस पेन का उपयोग त्वचा के उपर छवी बनाने के लिए किया जाता है।इसका प्रयोग कॉस्मेटिक सर्जरी और टेटू बनाने मे प्रयोग किया जाता है।इस पेन का आविष्कार फेरी मेन्तेघी ने 1970 मे किया था।
Digital pen
डिजिटल पेन के बारे मे आप जानते ही होंगे । इस पेन का उपयोग डिजिटल पेड के उपर लिखने के लिये किया जाता है। आपने डिजिटल पेड का यूज किया होगा तो आपको पता होगा कि डिजिटल पेन एक प्रकार का इलेक्ट्रानिंक उपकरण होता है। जो डेटा को भी स्टोर करता है। अब डिजिटल पेन से लिखे हुए डेटा को आप अपने कम्प्यूटर के अंदर भी ट्रांसफर कर सकते हैं।
डिजिटल पेन से आप सिर्फ आप डिजिटल पेड पर ही लिख सकते हैं। इनका उपयोग आप कागज पर नहीं कर सकते हैं।अमेजन पर यह उपलब्ध हैं आप चाहें तो खरीद सकते हैं।
पेन का आविष्कार किसने किया लेख आपको कैसा लगा कमेंट करके बताएं ।
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This post was last modified on October 30, 2019